22-09-2021, 09:13 AM
चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -37
सुबह हो चली थी सुबह कि किरण कामवती के सुन्दर मुख पे गिर रही थी,
वो आंखे मसलती उठ बैठती है उसे अच्छी नींद आईथी मखमली बिस्तर पे.
उसकी नजर ठाकुर पे पड़ती है जो कि घोड़े बैच के किसी बोर कि तरह खर्राटे मार रहा था उसे देख कामवती कि हसीं फुट पड़ती है.
कितनी हसीन लगती है कामवती हसती हुई किसी स्वर्ग कि अप्सरा को भी ईर्ष्या हो जाये उसे हसता देख के.
चोर मंगूस अपनी तलाश मे सुबह सुबह ही लग गया था.वो हवेली मे कुछ ढूंढ़ रहा था भूरी काकी रात भर कि थकी चुदी हुई सोइ थी.
कामवती बिस्तर से उठ जाती है ऊसर तेज़ पेशाब आया था सहना मुश्किल था.
वो एक कमरे कि और चल पड़ती है जो गुसालखाने जैसा ही था परन्तु ऊपर से खुला ही था,
पहले के ज़माने मे घर के अंदर ही गुसालखाना हो ऐसा अच्छा नहीं मना जाता था.
कामवती जल्दी जल्दी चलती हुई वहाँ पहुंच जाती है, पैरो मे पड़ी पायल के छन छानहत मंगूस के कानो मे पड़ती है वो जल्दी से उसी गुसालखाने नुमा कमरे किऔर भागता है...
वही पायल का मधुर संगीत नागेंद्र के कानो मे भी पड़ता है वो तुरंत सरसरा जाता है आवाज़ कि दिशा मे.
वो अपनी प्रेमिका को निहारने का एक भी मौका नहीं खोना चाहता था.
कामवती इन सब से अनजान गुसालखाने मे पहुंचती है अच्छा बना हुआ था परदे लगे हुए थे, वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर कर देती है और नीचे बैठ जाती है...
आअह्ह्ह.... सुकून मिला कामवती के मुख से फुट पड़ता है
वही दो जोड़ी आंखे ये दृश्य देख पथरा गई थी.
कामवती कि गांड कि तरफ मंगूस कही छुपा बैठा था उसके सामने कामवती कि बड़ी गोरी गांड थी.
मंगूस :- साला इस घर मे सब कि सब एक से बढकर एक गांड है.
कल रात वो भूरी आज ये जवान कामुक कामवती, इसकी गांड भी लुटनी पड़ेगी लगता है.
तभी मंगूस कि नजर कामवती से होती हुई सामने जाती है जहाँ एक सांप दुबका पड़ा था वो हिल दुल नहीं रहा था.
सांप कि नजर कामवती कि पेशाब करती चुत मे जमीं हुई थी ऐसा लगता था जैसे वो साँप चुत से निकलते मधुर संगीत मे कही खो गया है.
नागेंद्र को सामने से कामवती कि चिपकी हुई चुत से पानी कि तेज़ धार निकलती दिख रही थी उसका बस चलता तो वो इस झरने मे डूब डूब के नहाता.
कामवती का ध्यान बिल्कुल भी सामने नहीं था नहीं तो नागेंद्र उसे दिख जाता, उसे तेज पेशाब लगा था इसलिए वो पेशाब करने के आनद मे खोई हुई थी.
नागेंद्र :- फुसससस.... बस मुझे इसी प्यारी सी चुत मे घुस के काटना है, ताकि कामवती का श्राप खत्म हो और मेरी शक्ति लौट आये, फिर उस घोड़े वीरा कि खेर नहीं ये सब सोचता नागेंद्र आगे को चुत चूमने के लिए बढ़ता है तभी पीछे से सरसरहत से कामवती चौक जाती है,
डर से वो खड़ी हो जाती है उसका मूत रूक जाता है, उसे लगता है जैसे परदे के पीछे से कोई उसे देख रहा है.
वो डरती हुई परदे तक जाती है और झट से पर्दा हटा देती है...
परन्तु वहाँ कोई नहीं था, मंगूस छलवा था गायब हो गया.
कामवती चैन को सांस लेती है...
कामवती.... अरी ठकुराइन बाहर से ठाकुर ज़ालिम कि आवाज़ अति.
कामवती :- ज़ी आई ठाकुर साहेब.
कामवती बाहर कि ओर निकल जाती है.
नागेंद्र फिर से नाकाम रहता है.....
वही मंगूस के दिमाग़ मे बहुत से विचार दौड़ रहे थे.
वो सांप कौन था? भला कोई सांप किसी लड़की कि चुत क्यों देखेगा?
सांप है तो नागमणि भी होंगी?
इसी सांप पे काबू पाना होगा सच जानना होगा मुझे.
चल बेटा मंगूस.... मंगूस हवेली के बाहर निकल जाता है.
सुबह हो चली थी सुबह कि किरण कामवती के सुन्दर मुख पे गिर रही थी,
वो आंखे मसलती उठ बैठती है उसे अच्छी नींद आईथी मखमली बिस्तर पे.
उसकी नजर ठाकुर पे पड़ती है जो कि घोड़े बैच के किसी बोर कि तरह खर्राटे मार रहा था उसे देख कामवती कि हसीं फुट पड़ती है.
कितनी हसीन लगती है कामवती हसती हुई किसी स्वर्ग कि अप्सरा को भी ईर्ष्या हो जाये उसे हसता देख के.
चोर मंगूस अपनी तलाश मे सुबह सुबह ही लग गया था.वो हवेली मे कुछ ढूंढ़ रहा था भूरी काकी रात भर कि थकी चुदी हुई सोइ थी.
कामवती बिस्तर से उठ जाती है ऊसर तेज़ पेशाब आया था सहना मुश्किल था.
वो एक कमरे कि और चल पड़ती है जो गुसालखाने जैसा ही था परन्तु ऊपर से खुला ही था,
पहले के ज़माने मे घर के अंदर ही गुसालखाना हो ऐसा अच्छा नहीं मना जाता था.
कामवती जल्दी जल्दी चलती हुई वहाँ पहुंच जाती है, पैरो मे पड़ी पायल के छन छानहत मंगूस के कानो मे पड़ती है वो जल्दी से उसी गुसालखाने नुमा कमरे किऔर भागता है...
वही पायल का मधुर संगीत नागेंद्र के कानो मे भी पड़ता है वो तुरंत सरसरा जाता है आवाज़ कि दिशा मे.
वो अपनी प्रेमिका को निहारने का एक भी मौका नहीं खोना चाहता था.
कामवती इन सब से अनजान गुसालखाने मे पहुंचती है अच्छा बना हुआ था परदे लगे हुए थे, वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर कर देती है और नीचे बैठ जाती है...
आअह्ह्ह.... सुकून मिला कामवती के मुख से फुट पड़ता है
वही दो जोड़ी आंखे ये दृश्य देख पथरा गई थी.
कामवती कि गांड कि तरफ मंगूस कही छुपा बैठा था उसके सामने कामवती कि बड़ी गोरी गांड थी.
मंगूस :- साला इस घर मे सब कि सब एक से बढकर एक गांड है.
कल रात वो भूरी आज ये जवान कामुक कामवती, इसकी गांड भी लुटनी पड़ेगी लगता है.
तभी मंगूस कि नजर कामवती से होती हुई सामने जाती है जहाँ एक सांप दुबका पड़ा था वो हिल दुल नहीं रहा था.
सांप कि नजर कामवती कि पेशाब करती चुत मे जमीं हुई थी ऐसा लगता था जैसे वो साँप चुत से निकलते मधुर संगीत मे कही खो गया है.
नागेंद्र को सामने से कामवती कि चिपकी हुई चुत से पानी कि तेज़ धार निकलती दिख रही थी उसका बस चलता तो वो इस झरने मे डूब डूब के नहाता.
कामवती का ध्यान बिल्कुल भी सामने नहीं था नहीं तो नागेंद्र उसे दिख जाता, उसे तेज पेशाब लगा था इसलिए वो पेशाब करने के आनद मे खोई हुई थी.
नागेंद्र :- फुसससस.... बस मुझे इसी प्यारी सी चुत मे घुस के काटना है, ताकि कामवती का श्राप खत्म हो और मेरी शक्ति लौट आये, फिर उस घोड़े वीरा कि खेर नहीं ये सब सोचता नागेंद्र आगे को चुत चूमने के लिए बढ़ता है तभी पीछे से सरसरहत से कामवती चौक जाती है,
डर से वो खड़ी हो जाती है उसका मूत रूक जाता है, उसे लगता है जैसे परदे के पीछे से कोई उसे देख रहा है.
वो डरती हुई परदे तक जाती है और झट से पर्दा हटा देती है...
परन्तु वहाँ कोई नहीं था, मंगूस छलवा था गायब हो गया.
कामवती चैन को सांस लेती है...
कामवती.... अरी ठकुराइन बाहर से ठाकुर ज़ालिम कि आवाज़ अति.
कामवती :- ज़ी आई ठाकुर साहेब.
कामवती बाहर कि ओर निकल जाती है.
नागेंद्र फिर से नाकाम रहता है.....
वही मंगूस के दिमाग़ मे बहुत से विचार दौड़ रहे थे.
वो सांप कौन था? भला कोई सांप किसी लड़की कि चुत क्यों देखेगा?
सांप है तो नागमणि भी होंगी?
इसी सांप पे काबू पाना होगा सच जानना होगा मुझे.
चल बेटा मंगूस.... मंगूस हवेली के बाहर निकल जाता है.