22-09-2021, 09:05 AM
चैप्टर -3 नागमणि कि खोज अपडेट -33
ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे एक और जिस्म हवस कि आग मे जल रहा था, भूरी काकी का आज कामवती कि सुहागरात सोच सोच के उसके कलेजे पे भी छुरिया चल रही थी,
वो अपने बिस्तर पे सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे लेटी चुत को रगड़ रही थी उसे कालू बिल्लू रामु के साथ हुई चुदाई याद आ रही थी कैसे तीनो ने रगड के रख दिया था
बाहर चौकीदार कक्ष मे
बिल्लू :- यारो ठाकुर कि तो आज चांदी है मजा कर रहा होगा कुंवारी स्त्री मिल गई बुड्ढे को.
रामु :- हाँ यार ऐसा सोच सोच के तो मेरा लंड कब से खड़ा है बैठने का नाम ही नाहि ले रहा.
कालू :- भूरी काकी भी डर गई लगता है उस दिन से वरना उसे ही चोद लेते वो भी क्या नई ठकुराइन से कम है पुरानी शराब है, जितना चोदो कम है, उस दिन भरपूर मजा दिया था.
आज ही मौका है वरना कल से तो ठाकुर काम पे लगा देगा
बिल्लू :- अरे उदास क्यों होता है भगवान ने चाहा तो चुत मिल ही जाएगी, ले दारू पी
ऐसा बोल के तीनो भूरी का नशीला बदन याद करते हुए लंड पकड़े एक घूंट मे शराब पी जाते है
रामु :- चलो एक चक्कर मार लिया जाये हवेली का कही कोई चोर तो नहीं घुस आया होगा?
चोर तो घुस ही आया था कबका.... वो भी चोर मंगूस
तीनो पे बराबर नजर बनाये हुए था, काम करने का मया तरीका है? सोते कब है? करते क्या है?
मंगूस को कमजोरिया ही नजर आ रही थी.
"हवेली मे आना जाना बड़ी बात नहीं है बस मुझे नागमणि का पता लगाना होगा "
भूरी काकी भी अपने कमरे मे वासना मे तड़प रही थी "ऐसे कैसे चलेगा भूरी, ठाकुर के रहते चुदाई संभव भी नहीं है हवेली पे,कब तक चुत रगड़ेगी पीछे मूत के आती हूँ थोड़ी वासना कम हो तो सुकून कि नींद आये "
भूरी ब्लाउज पेटीकोट मे अपने कमरे के पिछवाड़े चल देती है, चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था.
वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर उठा देती है, अँधेरी रात मे गोरी बड़ी गद्दाराई गांड चमक उठती है, मंगूस पास ही झाड़ी मे छुपा हुआ था उसकी नजर जैसे ही साये पे पड़ती है वो दुबक जाता है.
फिर अचानक उसकी आंखे चोघीया जाती है... भूरी काकी कि गांड ठीक उसके सामने थी दो हिस्सों मे बटी बड़ी गोरी दूध से उजली गांड... तभी पिस्स्स.... कि तेज़ मधुर आवाज़ के साथ चुत एक धार छोड़ देती है, पीछे से मंगूस को यव नजारा ऐसा दीखता है जैसे दो बड़ी गोल चट्टान के बीच से पानी का झरना छूट पड़ा हो,मंगूस इस मनमोहक नज़ारे को देख घन घना जाता है.
जैसे ही चुत से मूत कि धार निकलती है भूरी को थोड़ी राहत मिलती है
उसके मुँह से आनंदमय सिसकरी फुट पड़ती है.
जैसे ही वो खड़ी होती है पीछे से एक जोड़ी हाथ ब्लाउज पे कसते चले जाते है और पीछे से कोई सख्त लोहे कि रोड नुमा चीज भूरी कि गांड कि दरार मे सामाति चली जाती है
पेटीकोट पूरी तरह नीचे भी नहीं हुआ था कि ये हमला हो गया... स्तन बुरी तरह दो हाथो मे दब गये थे,
ना चाहते हुए भी भूरी सिसकारी छोड़ देती है वो पहले से ही गरम थी इस गर्मी को उन दो हाथो ने बड़ा दियाथा.
अंधेरा पसरा हुआ था... तभी एक जोड़ी हाथ भूरी कि जाँघ सहलाने लगता है.
"क्यों काकी मूतने आई थी?"
भूरी आवाज़ पहचान गई "बिल्लू तुम? ये क्या तरीका है "
बिल्लू :- काकी हम तीनो कब से तड़प रहे है और आप तरीका पूछ रही हो?
पीछे से स्तन मर्दन करता रामु भूरी कि गर्दन पे जीभ रख देता है और एक लम्बा चटकारा भर लेता है "आह काकी क्या स्वाद है आपका मजा आ गया "
भूरी सिर्फ सिसक के रह जाती है
अचानक उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ गिला गिला सा महसूस होता है वो नीचे देखती है तो पाती है कि कालू अपनी जबान निकाले चुत से निकलती मूत कि गरम बूंदो को चाट रहा था
भूरी तो इस अहसास से मरी ही जा रही थी कहाँ वो अपनी वासना कम करने आई थी कहाँ ये तीनो पील पडे उस पे.
भूरी वासना मे इतना जल रही थी कि वो किसी प्रकार का विरोध ना कर सकी करती भी क्यों उसे भी तो प्यास लगी थी हवस कि प्यास.
अंदर हवेली मे नागेंद्र भी कामवती के कमरे मे पहुंच चूका था और चुपचाप एक कोने मे सिमट के बैठ गया था उसकी नजर कामवती के कामुक बदन पे टिकी हुई थी.
आह्हः.... अभी भी वैसे ही है बिल्कुल मादक कामवासना से भरी, लेकिन जैसे भी हो मुझे श्राप तोड़ने कि क्रिया करनी ही होंगी.
कामवती के सामने बैठा ठाकुर का लिंग अपने चरम पे था उसने ऐसा रूप सौंदर्य कभी देखा ही नहीं था
उसकी लुल्ली खड़ी हो के सलामी दे रही थी.अब सहननहीं कर सकता था वो
ठाकुर :- कामवती आप लेट जाइये सुहागरात मे देर नहीं करनी चाहिए.
कामवती को काम कला को कोई ज्ञान नहीं था
"ज़ी ठाकुर साहेब "बोल के सिरहाने पे टिक के लेट जाती है.
ठाकुर उसके पैरो के पास बैठ उसके लहंगे को ऊपर उठाना शुरू कर देता है ज़ालिम सिंह जैसे जैसे लहंगा उठा रहा था वैसे वैसे कामवति कि गोरी काया निकलती जा रही थी
ठाकुर ये सब देख मदहोश हुए जा रहा था.
ये नजारा नागेंद्र के सामने भी प्रस्तुत था परन्तु "हाय री मेरी किस्मत मेरी प्रेमिका मेरे सामने ही किसी और से सम्भोग करने जा रही है और उसे कोई ज्ञान ही नहीं है "
हे नागदेव काश मेरी शक्तियांमेरे पास होती तो मै ये नहीं होने देता, मुझे मौके का इंतज़ार करना होगा. "
ठाकुर अब तक कामवती का लहंगा पूरा कमर तक उठा चूका था जो नजारा उसके सामने था वो किसीभी मर्द कि दिल कि धड़कन जाम कर सकता था दोनों जांघो के बीच छुपी पतली सी लकीर हलके हलके सुनहरे बाल, एक दम गोरी चुत कोई दाग़ नहीं सुंदरता मे
ये दृश्य देख ठाकुर का कलेजा मुँह को आ गया, वो तुरंत अपना पजामा खोल के कामवती के ऊपर लेट गया उस से अब रहा नहीं जा रहा था
कामवती के ऊपर लेट के अपनी छोटी सी लुल्ली कोचुत कि लकीर पे रगड़ने लगा,कामवती को अपने निचले भाग मे कुछ कड़क सा महसूस हुआ उसे थोड़ा अजीब लगा कुछ अलग था जो जीवन मे पहली बार महुसूस कर रही थी वो..
उसने सर ऊपर उठा के देखना चाहा परन्तु ठाकुर का भाटी शरीर उसके ऊपर था कामवती ऐसा ना कर सकी
ठाकुर इस कदर मदहोश था ऐसा पागल हुआ किउसे कुछ ध्यान ही नहीं रहा ना कोई प्यार ना कोई मोहब्बत सिर्फ चुत मारनी थी अपना वंश आगे बढ़ाना था.
उसकी लुल्ली कड़क हो के कामवती कि चुत रुपी लकीर पे घिस रही थी आगे पीछे मात्र 4-5 धक्को मे ही ठाकुर जोरदात हंफने लगा जैसे उसके प्राण निकल गये हो, उसकी लुल्ली से 2-3 पानी कि बून्द निकल के चुत कि लकीर से होती गांड तक बह गई ठाकुर सख्तलित हो गया था ठाकुर कामवती के उभार और चुत देख के इतना गरम हो चूका था कि डॉ. असलम दवारा दी गई पुड़िया ही लेना भूल गया नतीजा मात्र 1मिनट मे सामने आ गया.
यही औकात थी ठाकुर ज़ालिम सिंह कि
वो कामवती के ऊपर से बगल मे लुढ़क गया और जी भर के हंफने लगा जैसे तो कोई पहाड़ तोड़ के आया हो, कामवती ने एक बार उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा कि ये अभी क्या हुआ?
मुझे अर्ध नंगा कर के ठाकुर साहेब लुढ़क क्यों गयेऔर ये मेरी जांघो के बीच गिला सा क्या है,
शायद यही होती होंगी सुहागरात ऐसा सोच कामवती ने लहंगा नीचे कर लिया और करवट ले के सोने लगी.
वही नागेंद्र जो ये सब कुछ देख रहा था वो मन ही मन जसने लगा "साला हिजड़ा निकला ये भी अपने परदादा जलन सिंह कि तरह"
कामवती लुल्ली से संतुष्ट होने वाली स्त्री है ही कहाँ हाहाहाहाहा..... नागेंद्र तहखाने कि और चल देता है उसे ठाकुर से कोई खतरा नहीं था.
हिजड़ा साला... आक थू.
ठाकुर कि सुहागरात तो शुरू होते ही ख़त्म हो गई थी,
लेकिन भूरी कि रात अभी बाकि है
बने रहिये
कथा जारी है....
ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे एक और जिस्म हवस कि आग मे जल रहा था, भूरी काकी का आज कामवती कि सुहागरात सोच सोच के उसके कलेजे पे भी छुरिया चल रही थी,
वो अपने बिस्तर पे सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे लेटी चुत को रगड़ रही थी उसे कालू बिल्लू रामु के साथ हुई चुदाई याद आ रही थी कैसे तीनो ने रगड के रख दिया था
बाहर चौकीदार कक्ष मे
बिल्लू :- यारो ठाकुर कि तो आज चांदी है मजा कर रहा होगा कुंवारी स्त्री मिल गई बुड्ढे को.
रामु :- हाँ यार ऐसा सोच सोच के तो मेरा लंड कब से खड़ा है बैठने का नाम ही नाहि ले रहा.
कालू :- भूरी काकी भी डर गई लगता है उस दिन से वरना उसे ही चोद लेते वो भी क्या नई ठकुराइन से कम है पुरानी शराब है, जितना चोदो कम है, उस दिन भरपूर मजा दिया था.
आज ही मौका है वरना कल से तो ठाकुर काम पे लगा देगा
बिल्लू :- अरे उदास क्यों होता है भगवान ने चाहा तो चुत मिल ही जाएगी, ले दारू पी
ऐसा बोल के तीनो भूरी का नशीला बदन याद करते हुए लंड पकड़े एक घूंट मे शराब पी जाते है
रामु :- चलो एक चक्कर मार लिया जाये हवेली का कही कोई चोर तो नहीं घुस आया होगा?
चोर तो घुस ही आया था कबका.... वो भी चोर मंगूस
तीनो पे बराबर नजर बनाये हुए था, काम करने का मया तरीका है? सोते कब है? करते क्या है?
मंगूस को कमजोरिया ही नजर आ रही थी.
"हवेली मे आना जाना बड़ी बात नहीं है बस मुझे नागमणि का पता लगाना होगा "
भूरी काकी भी अपने कमरे मे वासना मे तड़प रही थी "ऐसे कैसे चलेगा भूरी, ठाकुर के रहते चुदाई संभव भी नहीं है हवेली पे,कब तक चुत रगड़ेगी पीछे मूत के आती हूँ थोड़ी वासना कम हो तो सुकून कि नींद आये "
भूरी ब्लाउज पेटीकोट मे अपने कमरे के पिछवाड़े चल देती है, चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा पसरा हुआ था.
वो इधर उधर देख के अपना पेटीकोट ऊपर उठा देती है, अँधेरी रात मे गोरी बड़ी गद्दाराई गांड चमक उठती है, मंगूस पास ही झाड़ी मे छुपा हुआ था उसकी नजर जैसे ही साये पे पड़ती है वो दुबक जाता है.
फिर अचानक उसकी आंखे चोघीया जाती है... भूरी काकी कि गांड ठीक उसके सामने थी दो हिस्सों मे बटी बड़ी गोरी दूध से उजली गांड... तभी पिस्स्स.... कि तेज़ मधुर आवाज़ के साथ चुत एक धार छोड़ देती है, पीछे से मंगूस को यव नजारा ऐसा दीखता है जैसे दो बड़ी गोल चट्टान के बीच से पानी का झरना छूट पड़ा हो,मंगूस इस मनमोहक नज़ारे को देख घन घना जाता है.
जैसे ही चुत से मूत कि धार निकलती है भूरी को थोड़ी राहत मिलती है
उसके मुँह से आनंदमय सिसकरी फुट पड़ती है.
जैसे ही वो खड़ी होती है पीछे से एक जोड़ी हाथ ब्लाउज पे कसते चले जाते है और पीछे से कोई सख्त लोहे कि रोड नुमा चीज भूरी कि गांड कि दरार मे सामाति चली जाती है
पेटीकोट पूरी तरह नीचे भी नहीं हुआ था कि ये हमला हो गया... स्तन बुरी तरह दो हाथो मे दब गये थे,
ना चाहते हुए भी भूरी सिसकारी छोड़ देती है वो पहले से ही गरम थी इस गर्मी को उन दो हाथो ने बड़ा दियाथा.
अंधेरा पसरा हुआ था... तभी एक जोड़ी हाथ भूरी कि जाँघ सहलाने लगता है.
"क्यों काकी मूतने आई थी?"
भूरी आवाज़ पहचान गई "बिल्लू तुम? ये क्या तरीका है "
बिल्लू :- काकी हम तीनो कब से तड़प रहे है और आप तरीका पूछ रही हो?
पीछे से स्तन मर्दन करता रामु भूरी कि गर्दन पे जीभ रख देता है और एक लम्बा चटकारा भर लेता है "आह काकी क्या स्वाद है आपका मजा आ गया "
भूरी सिर्फ सिसक के रह जाती है
अचानक उसकी दोनों जांघो के बीच कुछ गिला गिला सा महसूस होता है वो नीचे देखती है तो पाती है कि कालू अपनी जबान निकाले चुत से निकलती मूत कि गरम बूंदो को चाट रहा था
भूरी तो इस अहसास से मरी ही जा रही थी कहाँ वो अपनी वासना कम करने आई थी कहाँ ये तीनो पील पडे उस पे.
भूरी वासना मे इतना जल रही थी कि वो किसी प्रकार का विरोध ना कर सकी करती भी क्यों उसे भी तो प्यास लगी थी हवस कि प्यास.
अंदर हवेली मे नागेंद्र भी कामवती के कमरे मे पहुंच चूका था और चुपचाप एक कोने मे सिमट के बैठ गया था उसकी नजर कामवती के कामुक बदन पे टिकी हुई थी.
आह्हः.... अभी भी वैसे ही है बिल्कुल मादक कामवासना से भरी, लेकिन जैसे भी हो मुझे श्राप तोड़ने कि क्रिया करनी ही होंगी.
कामवती के सामने बैठा ठाकुर का लिंग अपने चरम पे था उसने ऐसा रूप सौंदर्य कभी देखा ही नहीं था
उसकी लुल्ली खड़ी हो के सलामी दे रही थी.अब सहननहीं कर सकता था वो
ठाकुर :- कामवती आप लेट जाइये सुहागरात मे देर नहीं करनी चाहिए.
कामवती को काम कला को कोई ज्ञान नहीं था
"ज़ी ठाकुर साहेब "बोल के सिरहाने पे टिक के लेट जाती है.
ठाकुर उसके पैरो के पास बैठ उसके लहंगे को ऊपर उठाना शुरू कर देता है ज़ालिम सिंह जैसे जैसे लहंगा उठा रहा था वैसे वैसे कामवति कि गोरी काया निकलती जा रही थी
ठाकुर ये सब देख मदहोश हुए जा रहा था.
ये नजारा नागेंद्र के सामने भी प्रस्तुत था परन्तु "हाय री मेरी किस्मत मेरी प्रेमिका मेरे सामने ही किसी और से सम्भोग करने जा रही है और उसे कोई ज्ञान ही नहीं है "
हे नागदेव काश मेरी शक्तियांमेरे पास होती तो मै ये नहीं होने देता, मुझे मौके का इंतज़ार करना होगा. "
ठाकुर अब तक कामवती का लहंगा पूरा कमर तक उठा चूका था जो नजारा उसके सामने था वो किसीभी मर्द कि दिल कि धड़कन जाम कर सकता था दोनों जांघो के बीच छुपी पतली सी लकीर हलके हलके सुनहरे बाल, एक दम गोरी चुत कोई दाग़ नहीं सुंदरता मे
ये दृश्य देख ठाकुर का कलेजा मुँह को आ गया, वो तुरंत अपना पजामा खोल के कामवती के ऊपर लेट गया उस से अब रहा नहीं जा रहा था
कामवती के ऊपर लेट के अपनी छोटी सी लुल्ली कोचुत कि लकीर पे रगड़ने लगा,कामवती को अपने निचले भाग मे कुछ कड़क सा महसूस हुआ उसे थोड़ा अजीब लगा कुछ अलग था जो जीवन मे पहली बार महुसूस कर रही थी वो..
उसने सर ऊपर उठा के देखना चाहा परन्तु ठाकुर का भाटी शरीर उसके ऊपर था कामवती ऐसा ना कर सकी
ठाकुर इस कदर मदहोश था ऐसा पागल हुआ किउसे कुछ ध्यान ही नहीं रहा ना कोई प्यार ना कोई मोहब्बत सिर्फ चुत मारनी थी अपना वंश आगे बढ़ाना था.
उसकी लुल्ली कड़क हो के कामवती कि चुत रुपी लकीर पे घिस रही थी आगे पीछे मात्र 4-5 धक्को मे ही ठाकुर जोरदात हंफने लगा जैसे उसके प्राण निकल गये हो, उसकी लुल्ली से 2-3 पानी कि बून्द निकल के चुत कि लकीर से होती गांड तक बह गई ठाकुर सख्तलित हो गया था ठाकुर कामवती के उभार और चुत देख के इतना गरम हो चूका था कि डॉ. असलम दवारा दी गई पुड़िया ही लेना भूल गया नतीजा मात्र 1मिनट मे सामने आ गया.
यही औकात थी ठाकुर ज़ालिम सिंह कि
वो कामवती के ऊपर से बगल मे लुढ़क गया और जी भर के हंफने लगा जैसे तो कोई पहाड़ तोड़ के आया हो, कामवती ने एक बार उसकी तरफ़ आश्चर्य से देखा कि ये अभी क्या हुआ?
मुझे अर्ध नंगा कर के ठाकुर साहेब लुढ़क क्यों गयेऔर ये मेरी जांघो के बीच गिला सा क्या है,
शायद यही होती होंगी सुहागरात ऐसा सोच कामवती ने लहंगा नीचे कर लिया और करवट ले के सोने लगी.
वही नागेंद्र जो ये सब कुछ देख रहा था वो मन ही मन जसने लगा "साला हिजड़ा निकला ये भी अपने परदादा जलन सिंह कि तरह"
कामवती लुल्ली से संतुष्ट होने वाली स्त्री है ही कहाँ हाहाहाहाहा..... नागेंद्र तहखाने कि और चल देता है उसे ठाकुर से कोई खतरा नहीं था.
हिजड़ा साला... आक थू.
ठाकुर कि सुहागरात तो शुरू होते ही ख़त्म हो गई थी,
लेकिन भूरी कि रात अभी बाकि है
बने रहिये
कथा जारी है....