19-09-2021, 02:55 PM
आज सुबह-सुबह ही मेरी रूपाली दीदी नहा धोकर तैयार हो चुकी थी और बिल्कुल फ्रेश महसूस कर रही थी... ठाकुर साहब तो अपने काम से जल्द ही घर से निकल गए थे... आज मेरी बहन को भीमा नाई की दुकान पर जाना था सोनिया के बाल कटवाने के लिए... घर के सारे काम निपटाने के बाद मेरी दीदी अपने बेडरूम में गई और तैयार होने लगी.. 10:00 बज चुके थे... मेरी रूपाली दीदी अपने बेडरूम में खड़ी अपने आदमकद आईने के सामने में खुद को निहार रही थी.. मेरी बहन आज बदली बदली सी लग रही थी.. कुछ दिनों पहले की एक पतिव्रता सीधी साधी औरत क्या से क्या बन चुकी थी... दीदी अपने आपको आईने में देख कर हैरान थी...
मेरी बहना आज बेहद खूबसूरत लग रही थी, जैसे स्वर्ग से उतर के कोई अप्सरा धरती पर आ गई हो.... मेरी रूपाली दीदी, छोटे कद की मगर फिर भी बेहद उत्तेजक और आकर्षक लग रही थी आज....
मेरी रूपाली दीदी के मादक शरीर से निकल रही खुशबू पूरे घर के वातावरण को कामुक बना रही थी... मेरी बहन आदम कद आईने के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने एक-एक अंग को निहार रही थी..
कल रात को जिस तरह से ठाकुर साहब ने मेरी बहन को रगड़ा था..पेला था.. उसकी मस्ती अभी भी मेरी बहन के चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थी ... मेरी रूपाली दीदी के गुलाबी चिकने छेद में अभी भी मीठा मीठा दर्द हो रहा था.. ठाकुर साहब के मुसल ने रात भर मेरी बहन को बहुत तकलीफ दी थी... मेरी बहन का छेद रात भर की कुटाई से अभी भी जलन का अनुभव कर रहा था..
मेरी दीदी लाल रंग की साड़ी में और स्लीवलेस चोली में खुद को देखकर ही शर्म आ रही थी... मेरे जीजू के एक्सीडेंट होने के बाद आज मेरी बहन पहली बार इतनी सज धज के तैयार हुई थी... वह भीमा के बारे में सोच रही थी ..जिस इंसान से आज तक वह कभी नहीं मिली थी...
मेरी बहन एक पतिव्रता नारी की तरह नहीं बल्कि एक कामुक वेश्या की तरह सोच रही थी... मेरी दीदी उठ कर खड़ी हो गई..
मेरी रूपाली दीदी अपने हाथों से अपनी चूचियों को पकड़ कर दबाने लगी थी और मन ही मन: कितने बड़े बड़े हैं मेरे.... हाय मां... 36 के हो चुके होंगे..... अब इसमें मेरा क्या कसूर है... इतने बड़े बड़े हो गए हैं तो मैं क्या करूं... पिछले 1 महीने से ठाकुर साहब भी तो इतनी मेहनत कर रहे हैं इनके ऊपर... जब से 18 साल की हुई थी... तभी से मर्दों की गंदी नजर से बचाती आ रही हूं... बस अपने पति के लिए... जो अपाहिज हो चुका है..
मेरे रुपाली दीदी: ठाकुर साहब... हा हा... आप नहीं होते तो क्या होता मेरे इन गुब्बारों का... कौन चूसता इनको.. कौन दबाता इनको... कौन इनको अपने मुंह में लेकर प्यार करता..... मेरा नाकारा पति तो अपने व्हील चेयर पर बैठा हुआ है.. मेरे पति का खड़ा भी नहीं होता..
- "हाय री... मेरी किस्मत... सुहागरात में ही सारी कसर निकलने के बाद पति तो अपाहिज होकर व्हीलचेयर के ऊपर बैठ गया... दो बेटियां ... कैसे संभालू मैं इन दोनों को... मेरा भाई भी तो नाकारा है.. किसी काम का नहीं है..... मेरी रुपाली दीदी अपनी चुचियों को अपने कोमल हाथों से मसल रही थी.. रुपाली दीदी सिसक रही थी..
मेरी बहन ठाकुर साहब के मर्दाना हाथों की कमी को महसूस कर रही थी..
अब कम से कम दूसरे मर्द को दिखा दिखा कर मेरी यह दोनों बड़ी बड़ी ... कम से कम लोगों का खड़ा तो कर देती होगी.. तो इसमें बुरा क्या है... किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए.....
आईईई उईईई... मेरी रूपाली दीदी अपनी साड़ी उठाकर अपने छेद में अपनी बीच वाली उंगली से अंदर बाहर कर रही थी...नाजुक गुलाबी चूत से रस का फव्वारा निकलने लगा था जो शीशे के ऊपर जाकर टकरा रहा था..
मेरी बहना आज बेहद खूबसूरत लग रही थी, जैसे स्वर्ग से उतर के कोई अप्सरा धरती पर आ गई हो.... मेरी रूपाली दीदी, छोटे कद की मगर फिर भी बेहद उत्तेजक और आकर्षक लग रही थी आज....
मेरी रूपाली दीदी के मादक शरीर से निकल रही खुशबू पूरे घर के वातावरण को कामुक बना रही थी... मेरी बहन आदम कद आईने के सामने एक स्टूल पर बैठ कर अपने एक-एक अंग को निहार रही थी..
कल रात को जिस तरह से ठाकुर साहब ने मेरी बहन को रगड़ा था..पेला था.. उसकी मस्ती अभी भी मेरी बहन के चेहरे पर साफ साफ दिखाई दे रही थी ... मेरी रूपाली दीदी के गुलाबी चिकने छेद में अभी भी मीठा मीठा दर्द हो रहा था.. ठाकुर साहब के मुसल ने रात भर मेरी बहन को बहुत तकलीफ दी थी... मेरी बहन का छेद रात भर की कुटाई से अभी भी जलन का अनुभव कर रहा था..
मेरी दीदी लाल रंग की साड़ी में और स्लीवलेस चोली में खुद को देखकर ही शर्म आ रही थी... मेरे जीजू के एक्सीडेंट होने के बाद आज मेरी बहन पहली बार इतनी सज धज के तैयार हुई थी... वह भीमा के बारे में सोच रही थी ..जिस इंसान से आज तक वह कभी नहीं मिली थी...
मेरी बहन एक पतिव्रता नारी की तरह नहीं बल्कि एक कामुक वेश्या की तरह सोच रही थी... मेरी दीदी उठ कर खड़ी हो गई..
मेरी रूपाली दीदी अपने हाथों से अपनी चूचियों को पकड़ कर दबाने लगी थी और मन ही मन: कितने बड़े बड़े हैं मेरे.... हाय मां... 36 के हो चुके होंगे..... अब इसमें मेरा क्या कसूर है... इतने बड़े बड़े हो गए हैं तो मैं क्या करूं... पिछले 1 महीने से ठाकुर साहब भी तो इतनी मेहनत कर रहे हैं इनके ऊपर... जब से 18 साल की हुई थी... तभी से मर्दों की गंदी नजर से बचाती आ रही हूं... बस अपने पति के लिए... जो अपाहिज हो चुका है..
मेरे रुपाली दीदी: ठाकुर साहब... हा हा... आप नहीं होते तो क्या होता मेरे इन गुब्बारों का... कौन चूसता इनको.. कौन दबाता इनको... कौन इनको अपने मुंह में लेकर प्यार करता..... मेरा नाकारा पति तो अपने व्हील चेयर पर बैठा हुआ है.. मेरे पति का खड़ा भी नहीं होता..
- "हाय री... मेरी किस्मत... सुहागरात में ही सारी कसर निकलने के बाद पति तो अपाहिज होकर व्हीलचेयर के ऊपर बैठ गया... दो बेटियां ... कैसे संभालू मैं इन दोनों को... मेरा भाई भी तो नाकारा है.. किसी काम का नहीं है..... मेरी रुपाली दीदी अपनी चुचियों को अपने कोमल हाथों से मसल रही थी.. रुपाली दीदी सिसक रही थी..
मेरी बहन ठाकुर साहब के मर्दाना हाथों की कमी को महसूस कर रही थी..
अब कम से कम दूसरे मर्द को दिखा दिखा कर मेरी यह दोनों बड़ी बड़ी ... कम से कम लोगों का खड़ा तो कर देती होगी.. तो इसमें बुरा क्या है... किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए.....
आईईई उईईई... मेरी रूपाली दीदी अपनी साड़ी उठाकर अपने छेद में अपनी बीच वाली उंगली से अंदर बाहर कर रही थी...नाजुक गुलाबी चूत से रस का फव्वारा निकलने लगा था जो शीशे के ऊपर जाकर टकरा रहा था..