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Misc. Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर...
जैसे ही मेरी  मेरी रूपाली दीदी  मेरे जीजू के पास पहुंच कर नीचे झुक कप प्लेट उठाने लगी उनका,  मेरे  जीजू की नजर मेरी बहन की कमर पर लगे हुए उस पदार्थ पर पड़ी...
 मेरे  जीजू(  आश्चर्य से):  अरे रूपाली... यह तुम्हारी कमर पर यह चिकना चिकना क्या लगा हुआ है...
 मेरी रूपाली दीदी( मुस्कुराते हुए):  नहीं कुछ नहीं है जी... वह तो  मेरी कमर पर एक चींटी  चल रही थी, उसी को हटाने के लिए मैंने अपने हाथ से छू लिया था ..मेरी हाथ में लगा हुआ बटर भी लग गया है यहां पर...
 थोड़ा रुक कर मेरी रुपाली दीदी एक बार फिर बोली... अबकी बार उनके तेवर बहुत  तेज हो गए थे:  और हां.. मैंने बेडरूम का दरवाजा इसलिए बंद किया था कि ठाकुर साहब मुझसे बात करना चाहते थे... घर के खर्चे के बारे में और भी कुछ बातें थी... वह नहीं चाहते थे कि आप और सैंडी इस बारे में कुछ भी सुने, और किसी तरह का टेंशन ले.... इसीलिए ठाकुर साहब के कहने पर ही मैंने बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद किया था.... यह आखरी लाइन बोलते हुए मेरी दीदी मेरे जीजू की तरफ नफरत की निगाह से देख रही थी...
मेरे जीजू अपनी घबराहट और शर्मिंदगी के वजह से नीचे सर झुका कर देखने लगे.. मेरी रूपाली दीदी वहां से उठकर किचन में चली गई और काम करने लगी... थोड़ी देर में ही ठाकुर साहब अपने बेडरूम से बाहर निकले... उन्होंने सिर्फ एक लूंगी पहन रखी थी... उनका ऊपर का पूरा बदन नंगा था... उनकी चौड़ी छाती के ऊपर काले काले घने बाल  थे, साथ ही साथ कुछ सफेद बाल  भी दिखाई दे रहे थे...  ठाकुर साहब की बॉडी और उनकी पर्सनैलिटी देखकर मैं घबरा उठा था.. और अपने किताब की तरफ देखने लगा था... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी मैं उनकी आंखों से आंखें  मिला कर देख सकूं..... मेरे जीजू की हालत भी कुछ वैसे ही थी... वैसे भी ठाकुर साहब ने हम दोनों पर कुछ भी ध्यान नहीं दिया था और आकर सोफे पर बैठ गए थे और टीवी पर न्यूज़ देखने लगे थे..
 अगले तकरीबन 1 घंटे तक कुछ भी नहीं हुआ... 7:00 बजे के आसपास सोनिया बाहर से खेल कर आई थी... सोनिया को ठाकुर साहब ने अपने पास बुलाया और उसको अपने गोद में बिठा कर उससे बात करने लगे.
 ठाकुर साहब:  मेरी सोनिया बेटी किसके साथ खेल रही थी..
 सोनिया:  अंकल.. अंकल मैं वह दूसरे बच्चों के साथ खेल रही थी.. बहुत मजा आ रहा था खेलने में आज...
 ठाकुर साहब सोनिया से कुछ देर तक बात करते रहे, उसने आज दिन भर क्या क्या किया इसके बारे में पूछते रहे... सोनिया भी उनको बड़े प्यार से जवाब दे रही थी... मेरी भांजी भी ठाकुर साहब को पसंद करने लगी थी... और उनके अंदर अपने पिता की छवि देख रही थी... थोड़ी देर में ही मेरी रूपाली दीदी किचन से निकलकर बाहर आई और सोनिया को को बोली...
 मेरी रूपाली दीदी:  अच्छा सोनिया... अब तुम अपने कमरे में जाओ और ठाकुर साहब को परेशान करना बंद कर दो... हाथ पैर धो कर पढ़ाई करना उसके बाद हम लोग डिनर करेंगे..
 सोनिया:  जी मम्मी... बोलकर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई...
 मेरे जीजू:  ठाकुर साहब... आपने जो कुछ भी हमारे लिए और हमारे परिवार के लिए किया उसके लिए मैं किस तरह से आपका शुक्रिया अदा करूं मुझे समझ नहीं आ रहा है.... आपने जो कुछ भी किया है वह शायद ही कोई किसी के लिए करता है...
 ठाकुर साहब:  देखो विनोद... भले ही तुम लोग मुझे अपना नहीं समझते हो... पर मैं तो तुम लोगों को ही अपना परिवार समझता हूं... मैं सोनिया और नूपुर को अपनी बेटी की  तरह ही समझता हूं... तुम्हारे, सैंडी  और रूपाली की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है... मेरी रूपाली दीदी का नाम लेते हुए ठाकुर साहब मेरी दीदी की तरफ ही देख रहे थे और मुस्कुरा रहे थे... मेरी बहन भी मुस्कुरा कर उनकी तरफ देख रही थी..
 अगले 1 घंटे में कुछ भी नहीं हुआ... मेरी रूपाली दीदी किचन में काम करती  रही... किचन का काम खत्म करने के बाद मेरी रूपाली दीदी बाहर निकल कर आ गई और सोफे पर ठाकुर साहब के बगल में बैठ गई.. जब मैंने दीदी के ऊपर गौर किया तो मैंने पाया कि उन्होंने अपनी कमर के ऊपर लगा हुआ वह चिकना पदार्थ अभी तक साफ नहीं किया था.. साफ जाहिर है मेरी रूपाली दीदी के  चरित्र में काफी परिवर्तन हो चुका था... मेरी बहन के मन में अब कुछ खास ज्यादा डर बचा नहीं था... जीजू ने भी गौर किया था मेरी बहन की कमर के ऊपर.. पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा.. तो फिर भला मेरी हिम्मत कैसे हो सकती थी कुछ कहने की... हम सब लोग अपनी अपनी जगह पर बैठकर चुपचाप टीवी की तरफ देख रहे थे... रात के 9:00 बजे सोनिया बेडरूम से निकलकर बाहर आई... मम्मी मम्मी मुझे भूख लग गई है...

 हम सब ने मिलकर एक साथ खाना खाया... खाना खाते वक्त हम लोगों के बीच में कुछ खास बातचीत नहीं हो रही थी... बस ठाकुर साहब ही मेरे जीजू से बात करते हुए मिल रुपाली दीदी की तरफ देख रहे थे... खाना खत्म होने के बाद सोनिया भागकर ठाकुर साहब के बेडरूम में चली गई और उनके बिस्तर पर सो गई.. नूपुर तो पहले से ही उसी कमरे में पालने में सो रही थी... बाकी हम चारों लोग हॉल में बैठे हुए बातचीत कर रहे थे..
 मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के बगल में सोफे पर बैठी हुई थी और मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर... मैं अपने बेड पर बैठा हुआ था... मुझ पर तो कोई ध्यान भी नहीं दे रहा था..
 मेरी रूपाली दीदी:  ठाकुर साहब... आपने ऐसी रिपेयर करने वाले मकैनिक को बोला था क्या.. वह तो आज भी नहीं आया ठीक करने के लिए... 
 ठाकुर साहब:  वह माफ करो रूपाली... काम के चक्कर में मैं भूल गया.. कल पक्का ठीक करवा दूंगा..
 मेरी रूपाली दीदी कुछ बोल पाती इसके पहले ही मेरे जीजू बीच में टपक पड़े...
 मेरे जीजू:  रूपाली तुम ठाकुर साहब को क्यों परेशान कर रही हो... मैं तो बिना एसी के ही सो जाऊंगा... मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है ठाकुर साहब...
 मेरी रूपाली दीदी:  नहीं विनोद आप कैसी बातें कर रहे हो... रात में आपको बहुत तकलीफ हो सकती है गर्मी के कारण... अगर हम लोगों को गर्मी लगेगी तो हम लोग तो उठकर हॉल में भी आ सकते हैं... आप तो नहीं आ सकते हो ना....
 मेरी बहन की बातों की डबल  मीनिंग को मैं अच्छी तरह समझ रहा था पर मेरा नासमझ जीजा, उसे तो कुछ समझ नहीं आ रहा था.
 मेरी रूपाली दीदी:  एक काम कीजिए आप आज की रात भी ठाकुर साहब के बेडरूम में ही सो जाइए...
 मेरी रूपाली दीदी की बात सुनकर ठाकुर साहब को पहले  मन में गुस्सा आया.. फिर वह समझ गय और मुस्कुराने लगे मेरी तरफ देख कर... अपने मन के किसी कोने में ठाकुर साहब मुझे जलील करना चाहते थे... मैंने अपना सर नीचे झुका दिया था...
 मेरी रूपाली दीदी मेरे जीजू को उनके व्हीलचेयर पर घसीटते हुए ठाकुर साहब के बेडरूम में लेकर गई और किसी तरह से  उनको उठा कर ठाकुर साहब के बिस्तर पर लिटा दी... उनके माथे को  चूम कर मेरी बहन बोली..
 मेरी रूपाली दीदी:  देखिए जी मैं तो आपके साथ ही  सोना चाहती हूं.. मगर ठाकुर साहब को बहुत बुरा लगेगा... हम दोनों उनके ही घर में एयर कंडीशन में सो रहे हैं और वह गर्मी में पंखे के नीचे... इसलिए मैं ठाकुर साहब के पास जा रही हूं... प्लीज आप बुरा मत मानिए...
 मेरे जीजू:  इसमें बुरा मानने की क्या बात है रुपाली... ठाकुर साहब वैसे भी हम लोगों को अपना समझते हैं.. तुम जाओ और उनके पास सो जाओ... तुम दिनभर थक गई होगी काम कर करके... मुझे तुम दोनों पर पूरा भरोसा है.. मेरी बहन ने मेरी जीजू के होठों पर एक चुम्मा देकर कमरे की लाइट बंद कर दी... और उस बेडरूम से बाहर निकल कर आ गई..
 ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर जाने से पहले मेरी दीदी ने मुझे तेज निगाहों से देख  अपना गुस्सा जताया... ना जाने क्यों मेरी बहन मुझसे बहुत नाराज थी... डर के मारे मैंने भी हॉल की लाइट बंद कर दी और अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया... मेरी रुपाली  दीदी अब ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई थी और उन्होंने दरवाजा भी बंद कर लिया था  अंदर से... मैं अपनी सांसे  रोककर बेडरूम के अंदर होने वाली हलचल को सुनने का प्रयास कर रहा था...
 कमरे के अंदर ठाकुर साहब बिस्तर पर लेटे हुए थे...
 मेरी रूपाली दीदी को अपने कमरे के अंदर आते हुए देखकर ठाकुर साहब अपनी शराब की बोतल को नीचे रख दिय... वह दारू पी रहे थे पहले से... लेकिन उनको आश्चर्य तब हुआ जब उन्होंने मेरी दीदी को अच्छी तरह देखा... आंखों में काजल, होठों पर लिपस्टिक, चेहरे पर हल्का मगर प्यार  मेकअप, मेरी रूपाली दीदी सजधज के तैयार थी...
 ठाकुर साहब( अपना मुसल अपने हाथ में पकड़े हुए):  इतनी देर क्यों लगा दी  तुमने रूपाली?
 मेरी रूपाली दीदी:  वह ...वह.. मैं विनोद को सुलाने की कोशिश कर रही थी.. इसीलिए देर हो गई...
 ठाकुर साहब:  उसको सुलाने में तुमको इतना टाइम लग गया?
 मेरी रूपाली दीदी अब ठाकुर साहब के बगल में जाकर लेट  चुकी थी.
 मेरी रूपाली दीदी:  मैं उनकी बीवी हूं... बस उनको सुलाना ही मेरा काम नहीं है.. उनके साथ सोना भी मेरा धर्म है.. अगर उनको  सुलाने में थोड़ा वक्त लगा दी तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए ठाकुर साहब...
 ठाकुर साहब ने मेरी बहन की एक  चूची पकड़कर कसके मसल दिया..
 मेरी  रुपाली  दीदी: "हाईई... मर गई .... ऑईईई... उहह... उम्म्म्म..
 ठाकुर साहब: ऐसे मत  करो रूपाली... तुम्हारा भाई बाहर ही सो रहा है... तुम्हारा पति अभी भी जगा हुआ ही होगा...
 मेरी रूपाली दीदी: उम्म्म्म... अपने आप को फ्रेश करने में और मेकअप करने में इतना टाइम लग गया... अपने पति को सुलाने में नहीं..
 ठाकुर साहब:  तुमको मेकअप करने की क्या जरूरत है... रूपाली.. तुम तो दुनिया की सबसे हसीन औरत हो...
 मेरी रूपाली दीदी:  आप मेरी झूठी तारीफ करते हैं...उहह... उम्म्म्म हाय मां... धीरे.....
 कुछ ही देर में ठाकुर साहब मेरे रूपाली दीदी को नंगी कर चुके थे और खुद भी  नंगे होकर मेरी बहन के ऊपर सवार हो गए थे..
बेदर्दी से सुपर स्पीड से चोद रहे ठाकुर साहब मेरी बहन के  मुंह से कामुक सिसकियां निकलवा रहे थे... मैं दरवाजे के बाहर खड़ा होकर कान लगाकर सुन रहा था...
 मेरी रूपाली दीदी की चूत तो आग की भट्ठी बन ... इतनी तेज ठुकाई से चूत की दीवारे जलने  लगी थी...
 बिना कुछ सोचे समझे मैं अपना छोटा चेतन पकड़ कर हिला रहा था...
 अपनी सगी बहन की ठुकाई की आवाजें सुनकर मैं अपना हिला रहा था..
 कमरे के अंदर मेरी रूपाली दीदी की साड़ी चोली उनका पेटीकोट नीचे जमीन पर पड़ा हुआ था... दीदी की ब्रा और पेंटी बिस्तर पर ही थी... ठाकुर साहब की लूंगी के ऊपर... और मेरी बहन  ठाकुर साहब के नीचे पड़ी हुई सिसकारियां मार रही थी...
 आज पहली बार मैं अपनी बहन के नाम की मुठ  मार रहा था..
… आह्ह मर गई … ओह्ह, उफ्फ … उई माँ, .. थोड़ा धीरे, हाँ अब ठीक है.. थोड़ा जोर से …” रूपाली दीदी बोल रही थी.
 अंदर से मेरी रूपाली दीदी के कराहने की आवाज के साथ फच-फच जैसी आवाज भी आ रही थी जो मैं अच्छी तरह समझ रहा था..
 मैं भी जोर जोर से अपना छोटा चेतन हिलाने लगा था..
बाहर खड़े हुए मैं अपने आप को कंट्रोल नहीं कर सका और मेरा लंड वहीं पर खड़े हुए ही झड़ गया. पता नहीं क्या हो गया था कि इतनी उत्तेजना हो गई थी कि मेरा पानी वहीं पर निकल गया. मैं जल्दी से बिस्तर पर आकर लेट गया.
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RE: मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर... - by babasandy - 18-09-2021, 12:30 AM



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