21-04-2019, 01:28 PM
भाग ४): बाँध का टूटना
कमरे में कुछ पलों तक सन्नाटा छाया रहा |
आशा चुप, नज़रें झुकाए बैठी रही----
और,
रणधीर बाबू पैंट की ज़िप खोल कर,
अंडरवियर से लंड निकाले उसे मसले जा रहे हैं ---
आशा के लिए प्यार भी है ---- पर उससे कहीं...... कहीं ज़्यादा वासना भी है--- रणधीर बाबू के दिल में--- |
सामने बैठी आशा के, मेज़ तक नज़र आने वाली शरीर के ऊपरी हिस्से को काफ़ी समय से देखे जा रहे थे रणधीर बाबू--- कल्पना कर रहे थे--- आशा का जिस्म मीठे पानी का कोई दरिया हो और ख़ुद को उस पानी से तर कर लेना चाहते हों |
आशा ने फ्लोरल प्रिंट हल्की नीली साड़ी पहन रखी है आज---
मैचिंग ब्लाउज--- आधी बाँह वाली--- बड़ा व खुले गले वाला ब्लाउज, जिससे की कंधे का काफ़ी हिस्सा सामने दिख रहा है---- ऊपर से डीप नेकलाइन ---- अंग्रेजी अक्षर ‘V’ वाली डीप कट है सामने से--- गले में नेकलेस भी है--- पतली सी--- सोने की--- गोरी-चिट्टी गले में सोने की चेन काम एवं सुंदरता; दोनों में अद्भुत रूप से वृद्धि किए जा रही है--- | सोने की वह चेन थोड़ी बड़ी है—रणधीर बाबू सोच में डूबे,
‘काश की यह चेन आशा की क्लीवेज तक जाए... आह!! मज़ा आ जाएगा |’
इतनी सी कल्पना मात्र से ही उनका लंड और अधिक सख्त हो गया--- लंड की यह हालत देख कर ख़ुद रणधीर बाबू भी हैरान रह गए--- लंड को इतना सख्त और फनफनाता हुआ कभी नहीं पाया था उन्होंने--- ख़ुद की बीवी तो छोड़ ही दें, शहर की टॉप एक नंबर की हाई क्लास कॉल गर्ल/वाइफ/एस्कॉर्ट भी उनके उम्र बढ़ते हथियार की ऐसी हालत नहीं कर पाई थी---|
इतना काफ़ी था रणधीर बाबू को यह भरोसा देने के लिए की ‘आशा इज़ स्पेशल !’ और स्पेशल चीज़ों से डील करने में काफ़ी, काफ़ी माहिर हैं रणधीर बाबू |
नज़र फ़िर केन्द्रित किया आशा पर --- पल्लू के बहुत सुन्दर सलीके से प्लेट्स बना कर बाएँ कंधे से पिन की हुई है आशा --- दोनों भौहों के मध्य एक छोटी सुन्दर सी हल्की नीली बिंदी है--- माँग में सिंदूर नहीं दिख रहा!--- चौंके रणधीर बाबू ! ---- ‘आश्चर्य! सिंदूर क्यूँ नहीं?’ ‘तो--- क्या हस्बैंड नहीं रहे?--- नहीं नहीं... ऐसा होता तो गले में नेकलेस नहीं होता--- और तो और; शायद इतने अच्छे से बन ठन कर नहीं रहती—या आती --- हम्म, शायद ये लोग अलग हो गये हैं--- या शायद ऐसा भी हो सकता है कि आजकल की दूसरी औरतों या टीवी-फिल्मों की हीरोइनों को देख कर बिन सिंदूर पतिव्रता नारी हो--- खैर, मुझे क्या, बस मुझे सुख दे दे--- बाद बाकि जो करना है, करे---|’
बालों को पीछे गर्दन के पास से एक बड़ी क्लिप से सेट कर के लगाईं है--- और वहाँ से बालों को खुला छोड़ रख दी--- जो की टेबल फैन से आती हवा के कारण पूरे पीठ पर उड़ उड़ कर फ़ैल रहे हैं |
‘आशा---!’ थोड़े सख्त लहजे में नाम लिया रणधीर बाबू ने |
‘ज...जी.. सर...|’ होंठ कंपकंपाए आशा के |
‘इंटरव्यू शुरू करने से पहले तुम्हें एक ज़रूरी बात बताना चाहता हूँ ---|’ बातों का मोर्चा संभाला रणधीर बाबू ने |
‘ज.. जी सर... कहिए |’ नर्वस आशा बस इतना ही बोल पाई |
‘पता नहीं ऐसा हुआ है या नहीं--- पर मुझे तुम एक स्मार्ट, समझदार और बेहद रेस्पोंसिबल लेडी लगती हो--- और अभी तक, आई होप कि तुम समझ चुकी हो शायद की, अब जो इंटरव्यू होने वाला है --- वह बाकि के इंटरव्यूज़ से बिल्कुल अलग, बिल्कुल जुदा होने वाला है--- राईट?? ’
बिल्कुल सपाट से शब्दों में चेहरे पर बिना कोई शिकन लिए रणधीर बाबू ने अपनी बात सामने रख दी और बोलते समय बिल्कुल एक ऐसे प्रोफेशनल की तरह बिहेव किए मानो ऐसा उनका रोज़ का काम है |
इसमें कोई दो राय नहीं की आशा को अब तक ये नहीं समझ में आया हो की इंटरव्यू कैसा होने वाला है--- क्या पूछा या करने को कहा जा सकता है--- क्या आज ही के दिन से उसके कोम्प्रोमाईज़ का काम शुरू होने वाला है?--- क्या जॉब अप्लाई/जॉइनिंग के दिन ही बिन ब्याही किसी की औरत बनने वाली है?
इन सभी सवालों को दिमाग से एक झटके में निकालते हुए बोली,
‘जी सर... समझ रही हूँ |’ इसबार आवाज़ में थोड़ी बोल्डनेस लाने का प्रयास करते हुए बोली |
‘ह्म्म्म ... आई गिव माई वर्ड दैट --- की जो कुछ भी होगा इस बंद कमरे में--- एवरीथिंग विल बी अ सीक्रेट बिटवीन मी एंड यू--- एक अक्षर तक बाहर नहीं जाएगी--- यू गेटिंग द पॉइंट-- व्हाट आई मीन??’
‘यस सर....’ अपनी नियति मान चुकी आशा ने सिर्फ़ इतना कहना ही उचित समझा |
‘गुड... वैरी गुड---(सब कुछ योजनानुसार होता देख रणधीर बाबू मन ही मन बल्लियों उछलने लगे)--- मेरा तो कुछ नहीं--- आई जस्ट वांट तो सी यू गेटिंग इनटू एनी काइंड ऑफ़ ट्रबल ---| ’
‘ज... जी.. जी सर... आई स्वेअर, कोई भी बात बाहर नहीं जाएगी |’
‘ऑलराईट देन,----|’ बड़ी, रेवोल्विंग चेयर पर पीठ टिका कर आराम से बैठ गये रणधीर बाबू, आशा की ओर एकटक देखते हुए---- और इधर आशा भी मन ही मन ख़ुद को समझाती---- संभालती तैयार होने लगी ----
‘रणधीर बाबू के इंटरव्यू के लिए !’
कमरे में फ़िर कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया |
‘आशा---’ रणधीर बाबू के धीर स्थिर आवाज़ ने सन्नाटे को भंग किया |
‘ज.. जी सर...’ आशा ने रणधीर बाबू की ओर देख कर जवाब दिया--- आवाज़ में उत्सुकता का पुट है |
‘नर्वस हो?’ रणधीर बाबू ने पूछा |
‘न-- नो सर..’ आशा की उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी |
‘यू आर अ यंग लेडी--- कम्पेयर्ड टू मी--- राईट?’
‘य... यस सर---’ थोड़ा सहम कर जवाब दी इस बार आशा |
‘ह्म्म्म--- फ़िर भी मुझे कुछ फ़ील क्यूँ नहीं हो रहा?’ धीरे ही सही, पर अब पॉइंट में आना शुरू किया रणधीर बाबू ने---
‘प-- प --- पता --- न-- नहीं स--- सर’ घबराने लगी वह बेचारी --- देती भी तो क्या जवाब देती इस बात का |
‘मुझे पता है क्यों--- और ये भी कि क्या करने से कुछ ---- कुछ अच्छा फ़ील हो सकता है ----| ’ होंठों पे एक घिनौनी मुस्कान लिए बोला वो शैतान |
‘क --- कहिए सर--- क्या करने से अच्छा फ़ील होगा--- आई विल ट्राई टू डू दैट--- |’
‘ट्राई नहीं आशा--- सिर्फ़ तुम्हीं कर सकती हो और तुम्हें करना ही होगा--- |’ अपने पासे एक एक कर फ़ेंक रहा था वह हवसी |
‘ओ--- ओके सर--- |’ घबराई आशा ने तुरंत हामी भरी ----
‘अगर देखा जाए तो मैं ऑलरेडी तुम्हारा बॉस हूँ--- राईट?? ’
‘यस सर---- ’
‘एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट----- राईट??’
‘यस सर--- ’
‘और हर एम्प्लोईज़ को बॉस की बात बिना रोक टोक और न नुकुर के सुनना चाहिए---- राईट ?!’
‘बिल्कुल सर---’
‘तुम भी मेरी हर बात को बिना रोक टोक और ना नुकुर के सुनोगी और मानोगी--- इसलिए नहीं की तुम मेरी एम्प्लोई हो--- वरन इसलिए की तुमने एक सादे कागज़ में लिख कर दिया है जोकि एक तरह का बांड है--- |’
‘यस सर---- बिल्कुल---| ’
‘ह्म्म्म’
शैतानी मुस्कुराहट मुस्कराया वह ठरकी बुड्ढा ---- साफ़ था--- अब कुछ ‘आउट ऑफ़ लीग’ बोलने वाला है----
और हुआ भी वही---
‘तो आशा ---- मुझे ‘फ़्री’ टाइप रहने वाली लेडीज बहुत पसंद है ---- और फ़िलहाल तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो तुम बहुत ‘ओवर- बर्डन’ हो अभी--- बोझ बहुत ज़्यादा है--- डू वन थिंग--- रिमूव योर पल्लू----!!’ वासनायुक्त अपना पहला ही आदेश खतरनाक ढंग से दिया रणधीर बाबू ने |
आशा चौंक उठी---
अविश्वास से आँखें बड़ी बड़ी हो उठी---
मानो उसने भी पहला आदेश या यूँ समझें की ‘इंटरव्यू’ का पहला ही निर्देश कुछ ऐसा होने की आशा नहीं की थी---
प्रतिरोध स्वरुप कुछ कहने हेतु होंठ खोला आशा ने--- पर कुछ याद आते ही तुरंत होंठों को बंद भी कर लिया |
रणधीर मुस्कराया--- सुनहरे चश्में से झाँकते उसके आँखें किसी वहशी दरिंदे के माफ़िक चमकने लगी---
गंभीर स्वर में बोला,
‘आई एम सीरियसली सीरियस आशा--- अपना पल्लू हटाओ--- |’
अत्यंत स्पष्ट स्वर में स्पष्ट निर्देश आया रणधीर की तरफ़ से---
आशा हिचकी--- आँसू रोकी---- थूक का एक बड़ा गोला गटकी--- और धीरे से हाथ उठा कर बाएँ कंधे पर पिन के पास ले गई --- पिन खोलती कि तभी दूसरा निर्देश / आदेश आया ---
‘मेरी तरफ़ देखते हुए आशा--- आँखों में आँखें डाल कर---’
बड़ा ही सख्त कमीना जान पड़ा ये आदमी आशा को--- घोर अपमानित सा बोध करती हुई वह धीरे से आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी--- सीधे उसकी आँखों में --- बिना पलकें झपकाए--- फ़िर आहिस्ते से पिन खोल कर सामने टेबल पर रखी---- कंधे पर ही पल्लू को ज़रा सा सरकाई--- और दोनों हाथ चेयर के आर्मरेस्ट पर रख दी--- दो ही सेकंड में पल्लू सरसराता हुआ पूरा ही सरक कर आशा की गोद में आ गिरा--- रणधीर बाबू के आँखों में लगातार देखे जा रही आशा रणधीर बाबू के आँखों की चुभन अपने जिस्म की ऊपरी हिस्से पर साफ़ महसूस करने लगी और परिणामस्वरुप एक तेज़ सिहरन सी दौड़ गई पूरे शरीर में--- |
आशा भले ही रणधीर बाबू के आँखों में बिन पलकें झपकाए देख रही थी पर ठरकी बुड्ढे की नज़र आशा के पिन खोलते ही उसके सुपुष्ट सुडौल उभरी छाती पर जा चिपके थे |
नीले ब्लाउज में गहरे गले से झाँकती पुष्टकर चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों के आपस में अच्छे से सटे होने से बनने वाली बीच की दरार; अर्थात क्लीवेज ---- बरबस ही रणधीर बाबू की आँखों की दिशा को अपने ओर बदलने पर मजबूर कर रही थीं ---- आशा की चूचियाँ और विशेषतः उसकी चार इंच की क्लीवेज--- उसके लिए ऐसा नारीत्व वाला वरदान था जोकि उसे एक सम्पूर्ण नारी बना रहे थे --- और इस वक़्त एक हवसी ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू का शिकार |
रणधीर बाबू अधीर होते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराई--- और ख़ुद को चेयर पर एडजस्ट करते हुए अपनी दृष्टि को और अधिक केन्द्रित किया आशा के वक्षों पर ---
और जो दिखा उसे ---- उससे और भी अधिक मनचला और उत्तेजित हो उठा वह----!!
आशा के ब्लाउज के ऊपर से ब्रा की पतली रेखा दोनों कन्धों पर से होते हुए नीचे उसके छाती --- और छाती से दोनों चूचियों को दृढ़ता से ऊपर की ओर उठाकर पकड़े; ब्रा कप में बदलते हुए नज़र आ रहे हैं ---- ऐसा दृश्य तो शायद किसी अस्सी बरस के बूढ़े के बंद होती दिल और मुरझाये लंड में जान फूँक दे ---- फ़िर रणधीर जैसे पैंसठ वर्षीय हवसी ठरकी की बिसात ही क्या है ??
रणधीर बाबू ने गौर किया ---- नीले ब्लाउज में गोरी चूचियों की गोलाईयाँ जितनी फ़ब रही हैं ---- उन दोनों गोलाईयों के बीच की दरार --- ऊपर में थोड़ी कत्थे रंग की और फ़िर जैसे जैसे नीचे, ब्लाउज के पहले हुक के पीछे छिपने से पहले, वह शानदार क्लीवेज की लाइन – वह दरार; काली होती चली गई --- ज़रा ख़ुद ही कल्पना कर सकते हैं पाठकगण – एक चालीस वर्षीया सुंदर गोरी महिला --- उनके सामने अपनी नीली साड़ी की पल्लू को गोद में गिराए; गहरे गले का ब्लाउज पहने बैठी है ---- ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रेप की दो पतली धारियाँ कंधे पर से होते हुए --- सीने के पास चूचियों को सख्ती से पकड़ कर इस तरह से उठाए हुए हैं कि क्लीवेज नार्मल से भी दो इंच और बन जाए तो??!! ---- रणधीर बाबू की भी हालत कुछ कुछ ऐसी ही बनी हुई थी --- लाख चाहते हुए भी अपनी नज़रें आशा की दो गोल गोरी चूची और उनके मध्य के लंबी काली दरार पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं --- आकर्षण ही कुछ ऐसा है ---- करे तो क्या करे --- बेचारा बुड्ढा !
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू के मुख से बरबस ही निकल गया ,
‘पहला हुक खोलो आशा --’
‘ऊंह --!’
आशा चिहुंकी --- निर्देश का आशय समझने के लिए रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू की आँखें तो अभी भी गहरी घाटी में विचरण कर रही थीं --- उनकी नज़रों को फॉलो करते हुए आशा अपने पल्लू विहीन ब्लाउज की ओर नज़र डाली --- और ऐसा करते वह अपने नए नवेले बॉस के निर्देश का आशय समझ गई --- थोड़ी ठिठकी --- पल भर को सही-गलत, पाप-पुण्य का विचार उसके दिल – ओ – दिमाग में आया --- और आ कर चला भी गया --- आख़िर निर्देश का पालन तो करना ही है --- रणधीर बाबू इज़ हर बॉस एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट !
नज़रें नीची किए आहिस्ते से ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ते हुए पहला हुक खोल दी ----
अभी खोली ही थी कि दूसरा निर्देश तुरंत आया ---
‘थोड़ा फैलाओ --- ’
रणधीर बाबू की ओर देखे बिना ही आशा अब थोड़ा मुक्त हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब अपने बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और क्लीवेज का दर्शनीय हिस्सा थोड़ा और बढ़ गया बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए |
‘थोड़ा आगे की ओर करो’ अगला निर्देश !
आशा समझी नहीं --- सवालिया दृष्टि से रणधीर की ओर देखी ---
रणधीर ने हथेलियों के इशारे से थोड़ा आगे होने को बोला ---
इसबार चुक नहीं हुई आशा से ---
बहुत हल्का सा झुक कर अपने सुपुष्ट को उभारों को तान कर सामने की ओर बढ़ा दी !! --- आहह: !! ---- स्वर्ग !!---- यही एक शब्द कौंधा रणधीर बाबू के दिमाग में --- सचमुच --- अप्रतिम सुडौलता लिए हुए परम आकर्षणमय लग रहे हैं --- दोनों --- आशा और उसके दो उभर ! ---- |
कुछ मिनटों तक घूरते रहने के बाद रणधीर बाबू ने अपना आईफ़ोन निकाला और आशा को सिर एक तरफ़ झुका कर आँखें ज़रा सा बंद करने को कहा ---- जैसे कि वो नशे में हो --- नशीली आँखें --- जैसा रणधीर बाबू चाहते थे बिल्कुल वैसा करते ही रणधीर बाबू ने फटाफट तीन-चार पिक्स खिंच लिए --- |
फ़िर आँखों को नार्मल रखने को बोल कर फ़िर से तीन- चार पिक्स लिए --- यह सोच कर कि अगर किसी दिन थोड़ी ऊँच-नीच हो जाए तो वह प्रमाण के तौर पर यह दिखा सके कि उन्होंने वो पिक्स आशा के पूरे होशो हवास और उसकी सहमती से ही लिए थे |
उन पिक्स में कमाल की कामुक औरत लग रही थी आशा --- हरेक अंग-प्रत्यंग से --- रोम रोम से कामुकता टपक रही हो --- बिल्कुल किसी काम देवी की भांति --- और स्वर्ग क्या या उसका अर्थ क्या होता है यह तो उसके सामने की ओर अधिक तने हुए बूब्स और डीप क्लीवेज बता ही रहे हैं रणधीर बाबू को |
रणधीर बाबू के शैतान खोपड़ी में अब एक और बात खेल गई --- कि स्वर्ग तो सामने देख लिया पर यदि स्वर्गलाभ नहीं लिया तो फ़िर क्या किया --- इतना खेल खेलने का परिश्रम तो व्यर्थ ही जाएगा |
एक दीर्घ श्वास लेकर रणधीर बाबू ने एक निर्णय और लिया --- कुछ और बोल्ड करने का --- इस तरह के खेल वो बाद में भी खेल सकता है --- फ़िलहाल वक़्त है इस खेल का लेवल बढ़ाने का --- |
खड़े लंड को वैसे ही पैंट की ज़िप से बाहर निकला रख, रणधीर बाबू अपने उस आरामदायक विशेष रेवोल्विंग चेयर से उठे और कुछ ही कदमों में आशा के निकट पहुँच गए ---- |
आशा अपने धौंकनी की तरह बढ़ी हुई दिल की धड़कन पर नियंत्रण का बेहद असफ़ल प्रयास करते हुए तिरछी निगाहों से अपने दाईं ओर बिल्कुल पास आ कर उसकी कुर्सी से सट कर खड़े हुए रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनकी बढ़ी हुई पेट से ऊपर का हिस्सा तो नहीं देख सकी पर नज़र एकदम से उनके पैंट की ज़िप से बाहर बिल्कुल काले रंग के लंड की ओर गई; जो किसी स्टार्ट की हुई खटारे इंजन वाले किसी खटारे टेम्पो की छत पर रखे बांस की तरह हिल रहा था --- |
लंड के अग्र भाग के चमड़ी के मध्य से हल्का सा दिख रहा हल्की गुलाबी रंग का लंडमुंड धीरे धीरे बिल से बाहर आता किसी खतरनाक सांप की भाँति सामने आ रहा था --- आशा ने देखा, --- अग्र भाग की कुछ चमड़ी धीरे धीरे पीछे की ओर जा रही है और अब तक हल्की गुलाबी रंग का प्रतीत होता मशरूम-नुमा लंडमुंड अत्यधिक रक्त प्रवाह के कारण लाल रंग अख्तियार करता जा रहा है --- मशरूम नुमा भाग के टॉप पर बना चीरा बिल्कुल आशा के चेहरे के समीप ही है और पसीने और मूत्र की एक अजीब सी मिली-जुली गंध आशा के नाक में समा रही है --- |
एक पुरुष के यौननांग को अपने इतने समीप पाकर आशा तो एकदम से सकपका गई ---- बेचारी बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर रह गई --- और जब यह बात ध्यान आई कि जिसका यौननांग उसके इतने पास खड़ा है; वह उससे कहीं, कहीं अधिक उम्र के व्यक्ति का है तो शर्म से दुहरा कर लाल हो गई ---- तुरंत ही अपने चेहरे को दूसरी तरफ़ घूमा कर बोली,
‘स... सर... यह क्या....?’
‘ओह कम ऑन आशा--- डोंट बिहेव लाइक अ सिली गर्ल ---- यू आर अ मैरिड वुमन --- तुम्हें तो अच्छे से पता है न, कि यह क्या है ??’
चेहरे पर ऐसे भाव लिए और ऐसी टोन में बोले रणधीर बाबू मानो, परीक्षा केंद्र में किसी छात्रा ने एक जाना हुआ क्वेश्चन का मतलब पूछ ली हो और इससे इन्विजिलेटर को बहुत अफ़सोस हुआ |
‘न..न.. नो सर... म.. मेरा मतलब... आप ये क्या...क्या क...कर रहे ....हैं...?’
घबराहट के अति के कारण सूखते अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर भिगाने की कोशिश करती आशा ने किसी तरह अपना सवाल पूरा किया ---
‘ओह... यू मीन दिस?!!’ अपने तने लंड को देखते हुए आशा की ओर देख कर रणधीर बाबू अपने हल्के पीले-सफ़ेद दांतों की चमक बिखेरते हुए आगे बोले,
‘म्मम्म.... आशा.... अब ऐसे सवाल करने और इस तरह से दूसरी ओर मुँह घुमा लेने तो काम नहीं चलेगा----??--- अब इस बेचारे का ध्यान तो तुम्हें ही रखना है --- कम ऑन --- टर्न हियर --- लुक एट इट ---- इट्स डाईंग फॉर योर लव फिल्ड डिवाइन अटेंशन --- |’
आशा फ़िर भी नहीं मुड़ी --- रणधीर बाबू ने दो तीन बार अच्छे से, नर्म लहजे में आशा को मानाने की कोशिश की --- पर फ़िर भी जब आशा अपेक्षाकृत उत्तर नहीं दी तो रणधीर बाबू का स्वर एकाएक ही बहुत हार्श हो गया ----
‘आशा !! --- आई ऍम नॉट आस्किंग यू टू डू दिस --- ऍम टेलिंग यू --- ऍम ऑर्डरिंग यू टू डू दिस --- !! |’
रणधीर बाबू की आवाज़ में इस बार एक अलग ही धमक थी ---
आशा सहम कर तुरंत ही अपना चेहरा दाईं ओर की --- और ऐसा करते ही उसकी नजर सीधे रणधीर बाबू के फनफनाते लंड पर पड़ी ---
रणधीर बाबू बोले,
‘गिव सम लव --- आशा ---’
आशा आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी --- सुनहरे फ्रेम के ब्राउन ग्लास के अंदर से झाँकते रणधीर बाबू की आँखें एक खास तरह से सिकुड़ कर एक ख़ास ही मतलब बयाँ कर रही थी --- |
आशा के अंदर की बची खुची प्रतिरोधक क्षमता भी हवा में फुर्रर हो गई --- किस्मत का खेल समझ कर अब मन ही मन खुद को तन-मन से पूरी तरह रणधीर बाबू को समर्पित कर उनका मिस्ट्रेस बनने का दृढ़ निश्चय कर आशा ने अपना दाहिना हाथ उठाया और काले, सख्त तने हुए लंड को अपने नर्म हाथों की नर्म उँगलियों की गिरफ़्त में ली और बहुत ही हिचकिचाहट से; बहुत धीरे धीरे अपना हाथ आगे पीछे करने लगी ----
और ऐसा करते ही, रणधीर बाबू सुख और आनंद के चरम सीमा पर पहुँच गए --- आखिर उनकी ड्रीमगर्ल --- (यहाँ शायद ड्रीमलेडी कहना उचित होगा) --- ने उनके हथियार को अपने नर्म हाथों के गिरफ़्त में जो ले लिया है --- लंड के चमड़े पर हथेली के नर्म स्पर्श का अहसास ही उन्हें वो सुख दे रहा है जो शायद किसी कॉल गर्ल की अनुभवी चूत ने भी नहीं दी होगी --- |
इधर आशा भी धीरे धीरे आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगी --- क्योंकि आशा के हाथ के नर्म छूअन के बाद से ही रणधीर बाबू का लंड पल-प्रतिपल फूलता ही जा रहा है और मोटाई और चौड़ाई भी ऐसी बना रखी है जैसा की आज तक आशा ने केवल पोर्न मूवी क्लिप्स में ही देखा है --- रोज़ रातों को मम्मी, पापा और नीर के सो जाने के बाद आशा अकेली तन्हा हो कर बिस्तर पर पड़े पड़े ही मोबाइल पर पोर्न मूवी देखते हुए साड़ी को जाँघों तक उठा कर अपनी बीच वाली लंबी ऊँगली से चूत खुजाती और कलाकार ऊँगली की कलाकारी की मदद से ही पानी छोड़ते हुए सो जाती --- कुछेक बार ऐसा भी हुआ है की पानी छोड़ने के बाद मन में भारी पश्चाताप का बोध की है आशा ने --- पर; ---- एक मशहूर अभिनेता का डायलॉग --- ‘अपने को क्या है; अपने को तो बस; पानी निकालना है ---’ याद आते ही शर्म से लाल हो जाती और दोगुने उत्तेजना से भर वो फ़िर से पानी निकालने के काम में लग जाती ----
पर यहाँ बात यह है कि आजतक आशा ने जिस तरह के आकार वाले लंड देखी थी ; सब के सब मोबाइल के पोर्न मूवीज़ में --- उसने कभी यह कल्पना नहीं की होगी की वास्तविक जीवन में भी ऐसा औज़ार का होना सम्भव है !!
निःसंदेह नीर के पापा का भी हथियार का दर्शन की है वह ---- पर --- इतने सालों में तो वह उसका चेहरा भी लगभग भूल सी चुकी है --- हथियार को याद रखना बाद की बात है --- और अगर हथियार तक याद नहीं है, तो इसका मतलब हथियार कुछ खास नहीं रहा होगा ! (ऐसा कभी कभी आशा सोचती थी ---!!) |
इधर लंड फुंफकार रहा था और उधर रणधीर बाबू दिल ही में ज़ोरों से आहें भर रहे थे ---- खड़े रणधीर बाबू ने जब नज़रें नीची कर कुर्सी पर बैठी आशा को उनका लंड हिलाते हुए देखने कोशिश की तो पहली ही कोशिश में उनकी आँखें चौड़ी होती चली गई --- ऊपर से देखने पर आशा की पल्लू विहीन दूधिया चूचियों के बीच की घाटी अधिक लंबी और गहरी लग रही है और आकर्षक तो इतना अधिक की एकबार के लिए तो रणधीर बाबू का दिल ही धड़कना बंद हो गया !! ---- और तो और ----- उसकी ब्लाउज भी पीछे से ---- पीठ पर --- डीप ‘U’ कट लिए है जिससे कि आधे से अधिक गोरी, चिकनी, बेदाग़ पीठ सामने दृश्यमान हो रही है --- ब्लाउज भी कुछ ऐसी टाइट पहनी है की जिससे उसके पीठ की भी करीब तीन इंच की क्लीवेज बन गई है --- |
रणधीर बाबू हाथ बढ़ा कर आशा की दाईं चूची को थाम लिया और प्रेम से दबा कर उसकी नरमी का आंकलन करने लगे --- आह: ! सचमुच---- जितना सोचा था --- उससे भी कहीं अधिक नर्म है इसकी चूचियाँ ---- हह्म्म्म --- साली पूरा ध्यान रखती है अपना----- ! ऐसा सोचा रणधीर बाबू ने |
अचानक हुई इस क्रिया से आशा हतप्रभ हो कर हडबडा गई ---- पर ख़ुद ही जल्दी संभल भी गई --- पहले दिन के पहले ही प्रोजेक्ट में रणधीर बाबू को निराश या नाराज़ नहीं करना चाहती ---
अतः चुपचाप मुठ मारने के कार्य में केन्द्रित रही ---
इधर चूचियों की नरमी मन का लालच और अधिक से अधिक बढ़ाने लगी ---- ब्लाउज के ऊपर से करीब ५ मिनट तक दबाने के बाद रणधीर बाबू उन दोनों चूची को ब्लाउज और ब्रा के नापाक कैद से आज़ाद कर --- उन्हें नंगा कर अपने हाथों में ले उनके छूअन का आनंद ले पूर्ण तृप्त होना चाहते थे --- पर पहले ही दिन एकसाथ इतने सारे काण्ड करने का कोई इरादा नहीं है उनका--- पुराने खिलाड़ी हैं ---
जानते हैं नारी हृदय की आकुलता को ---
उनकी व्यग्रता और मनोभावों को ---
उनके छटपटाहट के सही समय को ---
इसलिए बिना किसी तरह की कोई जल्दबाज़ी किए वह उन नर्म, पुष्ट, गदराई चूचियों को अपनी सख्त मुट्ठी में भींचने में ही लगे रहे ---
उनकी पारखी उँगलियाँ , जल्द ही आशा को बिना कोई खास तकलीफ़ दिए --- यहाँ तक की उसे पता लगने दिए बिना ही ---- उसके ब्लाउज के अगले दो हुक्स को खोल दिए --- अभी भी दो और हुक्स शेष थे , पर उन्हें रहने दिया --- ब्लाउज के खुले दोनों सिरों/ पल्लों को थोड़ा और फैलाया --- अब करीब सत्तर प्रतिशत चूची अनावृत हो गई --- बाकि के अभी अंदर मौजूद एक सफ़ेद-क्रीम कलर के ब्रा में कैद हैं ---
कसे ब्रा कप के कारण ऊपर उठ कर पहले से फूले चूचियाँ और अधिक फूले हुए हैं --- ये देख कर रणधीर बाबू के होश ही मैराथन के लिए भाग गई --- दूधिया चूचियों को क्रीम कलर के ब्रा में देख मन ही मन हद से अधिक प्रफुल्लित होते रणधीर बाबू ये सपने देखने लगे कि गोरी आशा की ये गोरी चूचियाँ काले, लाल और गुलाबी ब्रा में कैसे लगेंगें ??!
ब्लाउज के ऊपर से ही एक एक कर दोनों चूचियों के नीचे हाथ रख कर बारी बारी से तीन चार बार इस तरह उठा उठा कर देखा मानो दोनों चूचियों का वज़न माप (तौल) रहा हो ---
पहले तो आशा बहुत बुरी तरह से शरमाई; पर जब रणधीर बाबू को उसके चूचियों के वज़न देखते हुए एक कामाग्नि भरी ‘ऊफ्फ्फ़...ओह्ह्ह..... लवली ...’ कहते सुनी तो गर्व से भर वह दुगुनी हो गई ..
और वाकई रणधीर बाबू उसके दोनों चूची के भार को देख जितना आश्चर्यचकित हुए --- उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी से बल्लियों उछलने लगे अंदर ही अंदर ---- ये सोच सोच कर कि आने वाले दिनों में इन्हीं चूचियों पर आरामदायक ; सुकून भरे पल बीतने वाले हैं --!
इधर आशा --- ;
पता नहीं क्यूँ, अपने से पच्चीस - तीस साल बड़े --- एक बुज़ुर्ग आदमी के लंड को हिलाने तो क्या; छूने तक घृणा कर रही थी --- वही अब उसी आदमी के द्वारा उसके बूब्स मसले जाने पर वह एक अलग ही ख़ुशी, आनंद मिलने लगी --- एक एडवेंचर सा फ़ील होने लगा उसे |
हिलाते हिलाते बहुत देर हो गई --- लंड अब और भी ज़्यादा अकड़ गया --- लंड हिलाते हुए आशा की हाथों की चूड़ियों से आती ‘छन छन’ की आवाज़ माहौल और मूड को और भी गरमा रही थी --- वीर्य की धार कभी भी फूट सकती है --- और रणधीर बाबू अपना कीमती वीर्य बूंदों को यूँ ही वेस्ट नहीं जाने देना चाहते – इसलिए उन्होंने एक हल्के थप्पड़ से अपने लंड पर से आशा का हाथ हटाया और आगे हो कर उसके होंठों से अपने लंड का छूअन कराया --- आशा भीषण रूप से हिचकी --- कसमसाई --- कातर दृष्टि से रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू अपना सारा होश बहुत पहले ही अपने लंड के सुपाड़े में डाल चुके थे --- सोचने समझने का काम फिलहाल उन्होंने अपने लंड पर छोड़ रखा था और लंड आशा के मुँह में घुसने को बुरी तरह से तत्पर था --- |
आशा नर्वस हो ज़रा सा मुस्कुराई और ऐसा दिखाने की कोशिश की कि;
उसे भी अब थोड़ा थोड़ा इस खेल में मज़ा आ रहा है –
और पूरे मन से रणधीर बाबू का मुठ मारने में खुद को व्यस्त दिखाने का भी भरपूर प्रयास की ----
पर रणधीर बाबू इतने में खुश होने वालों में से नहीं ---
आशा के हाथ में एक और थप्पड़ मारते हुए थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा,
‘एनफ विथ द हैंड्स, स्लट..! --- ’
और इतना कहते हुए एक झटके में जोर का प्रेशर देते हुए आशा के मुँह में लंड का प्रवेश कर दिया ---
‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह....’
इतनी ही आवाज़ निकली आशा की ---
कुछ सेकंड्स लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में ;
थोड़ा सा निकाला,
फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया आशा के गले में ---
मारे दर्द के आशा तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे तगड़े लंड को मुँह में रखने के लिए मुँह / होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर रणधीर हवस में अँधा होकर थोड़ा पर तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा आशा के मुँह में घुसे अपने लंड को --- वह आज कम से कम आशा के हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था ---
‘आःह्हह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म.....’ आशा बस इतना ही कह पा रही थी --
जबकि रणधीर बाबू मस्ती में डूबे ज़ोरों से आहें भर रहे थे,
‘ओह्ह्ह्हsssss---- आह्ह्हssssssssss.... यssसsss आsssशाsssss ----- ओह्ह्हssss यसsssssss ----- टेssक ssइटssss ---- टेक इट ssss डीपssss ---- मोर--- मोर--- इनसाइडsss यूsssss ----- ओह्ह्ह फ़कssssss ----!!’
इधर आशा,
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हsssssssss... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss गूंsssss गूंssss ह्ह्ह्हह्हsss ह्ह्ह्हह गोंss गोंss गोंss गोंsss गोंsss म्म्फ्हह्हss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssss’ अब मुँह के किनारों से लार टपकने लगा --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा |
रणधीर बाबू चूचियों को मसलना छोड़ कर आशा के सिर के पीछे हाथ रख अपने तरफ़ धकेलते और ठीक उसी समय अपने कमर को जोर से आगे की ओर झटकते --- इस तरह बेचारी आशा बचने के लिए अपना मुँह हटाए भी तो हटाए कहाँ --- ??
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मssssप्प्फ्हह्ह्हsss ... गूंsss गूंsss गूंssss गूंssss गूंssss गूंsss ह्ह्ह्हह्हsssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्ह.ssss.. गोंss गोंss गोंsss गोंsss गोंsssss ........ म्म्फ्हह्हssss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssssssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्ह गूं गूं गूंssssssss गूं गूं गूं ह्ह्ह्हह्हssssss ह्ह्ह्हहsssss ...... आह्ह्हssssssह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हssssssssssss ....... गोंsss गों ss गोंssss गोंsss गों sssss …. म्म्फ्हह्ह म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssss’
इसी तरह घपाघप आशा के मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार ठरकी बुड्ढा अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच ही गया ----
‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगला उनके औज़ार ने --- पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य की थोड़ा सा निगल लेने के सिवा और कोई चारा न था और बहुत सा तो आशा के कुछ भी सोचने समझने के पहले ही गले से नीचे उतर गया --- नमकीन स्वाद ने आशा के मुँह का जायका पूरी तरह से बिगाड़ दिया ---- उससे अधिक उम्र के --- एक खूंसट ठरकी बुड्ढे का काला गन्दा लंड को मुँह में लेना और फ़िर उसका वीर्यपान करना --- कड़वाहट से भर दिया आशा को – बाकि बचे वीर्य को उगलते हुए खांसने लगी --- हरेक कतरे को निकाल बाहर करना चाहती थी –
इधर बुड्ढे ने दो तीन सफ़ेद कागज़ उसकी ओर बढ़ा कर साफ़ हो लेने को बोला --- साथ ही अपना वाशरूम भी दिखाया --- आशा दौड़ कर अंदर घुस गई --- रणधीर बाबू बड़े प्रेम से एक कागज़ से अपने लंड को पोछते पोछते अपनी कुर्सी पर आ बैठे --- और पहली सफ़लता पर बेहद प्रसन्न मन से मुस्कुराने लगे |
करीब दस मिनट बाद आशा निकली --- कपड़े सही कर ली थी – बाल जो कि रणधीर बाबू के उसके सिर को पकड़ने के वजह से अस्त-व्यस्त हो गए थे; उन्हें भी ठीक कर ली --- पिन लगाईं --- और कुर्सी पर बैठ गई -- |
रणधीर – ‘आशा , दैट वाज़ औसम !! .... आई लव्ड इट --- थैंक्स --- |’
आशा कुछ नहीं बोली, चुप रही ---- नज़रें नीची किए --- |
रणधीर बाबू भी उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना बोले,
‘आशा --- एक और बात --- अच्छे सुन और समझ लो --- और दिमाग में बैठा लो --- आज के बाद , हर दिन, कॉलेज बिना ब्रा पहन के आया करोगी --- ओके? और हाँ, कल ही अपने बेटे का फॉर्म और ज़रूरी डाक्यूमेंट्स लेती आना ---- कल से तुम्हारी जॉइनिंग एंड तुम्हारे बेटे का एडमिशन परसों पक्का --- ....’
यह सुनते ही आशा को जैसे अपने कानों पर यकीं नहीं हुआ --- आश्चर्य से रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनके चेहरे पर एक सहमती वाली मुस्कान देख कर उसकी आँखें छलक गईं --- रुंधे स्वर में बोली,
‘थैंक्यू सो मच सर --- थैंक्यू ---’
रणधीर बाबू एक बड़ी सी कमीनी मुस्कान लिए बोला,
‘ओके ओके... एनफ ऑफ़ थैंक्स ---- यू मे गो नाउ --- पर जाने से पहले एक छोटा सा काम और करो --- |’
आशा सवालिया नज़रों से देखी उनकी ओर,
‘अभी जो ब्रा पहनी हुई हो उसे खोल कर यहाँ रख जाओ --- |’
आशा उठी और वाशरूम में जल्दी से घुस गई --- रणधीर बाबू का फ़िर कोई नया आदेश न आ जाए यह सोच कर जल्दी से ब्रा उतर कर ; कपड़ों को ठीक कर के बाहर निकली--- उसे बाहर निकलते देखते ही रणधीर बाबू ने अपना बाँया हाथ बढ़ा दिया --- आशा ने इशारा समझ कर ब्रा उनकी हथेली पर रख दी --- बिना नज़रें उठाए धीरे कदमों से कुर्सी तक पहुँची --- अपना बैग उठाई और जाने लगी --- दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि रणधीर बाबू की आवाज़ आई ,
‘एक और बात --- आज तुम्हारा फर्स्ट टाइम था क्या--- आई मीन टेकिंग माय थिंग इनटू योर माउथ --??!’ बड़ी बेशर्मी से सवाल दागा बुड्डे ने --- |
आशा सिर घूमाए बिना बोली,
‘यस सर |’
और इतना बोल कर तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर चली गई --- |
इधर रणधीर बाबू हैरान --- साफ़ सुनकर भी यकीं नहीं हो रहा --- मानो यकीं करने को ही उनका दिमाग नहीं चाह रहा ---
आखिर एक शादीशुदा, उच्च घर की, संस्कारी, सुशिक्षित महिला का वर्जिन मुँह चोदा है उन्होंने --- न जानते हुए ही सही --- पर चोदा तो ---- और एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने आज एक ऐसी ही महिला को अपना लंड चूसा कर उसके शर्म – ओ – ह्या, हिचक, झिझक, बेबसी और ऐसे ही बहुत सी बाधाओं का बाँध तोड़ा है ---- जो आगे जा कर बहुत काम आने वाला है ----
‘आह्ह्ह:’
एक और आह निकली रणधीर बाबू के मुँह से और हाथ में पकड़े आशा की मुलायम क्रीम कलर के ब्रा को पागलों की तरह नाक और मुँह से लगा कर उसका गंध सूँघने लगे --------- |
क्रमशः
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कमरे में कुछ पलों तक सन्नाटा छाया रहा |
आशा चुप, नज़रें झुकाए बैठी रही----
और,
रणधीर बाबू पैंट की ज़िप खोल कर,
अंडरवियर से लंड निकाले उसे मसले जा रहे हैं ---
आशा के लिए प्यार भी है ---- पर उससे कहीं...... कहीं ज़्यादा वासना भी है--- रणधीर बाबू के दिल में--- |
सामने बैठी आशा के, मेज़ तक नज़र आने वाली शरीर के ऊपरी हिस्से को काफ़ी समय से देखे जा रहे थे रणधीर बाबू--- कल्पना कर रहे थे--- आशा का जिस्म मीठे पानी का कोई दरिया हो और ख़ुद को उस पानी से तर कर लेना चाहते हों |
आशा ने फ्लोरल प्रिंट हल्की नीली साड़ी पहन रखी है आज---
मैचिंग ब्लाउज--- आधी बाँह वाली--- बड़ा व खुले गले वाला ब्लाउज, जिससे की कंधे का काफ़ी हिस्सा सामने दिख रहा है---- ऊपर से डीप नेकलाइन ---- अंग्रेजी अक्षर ‘V’ वाली डीप कट है सामने से--- गले में नेकलेस भी है--- पतली सी--- सोने की--- गोरी-चिट्टी गले में सोने की चेन काम एवं सुंदरता; दोनों में अद्भुत रूप से वृद्धि किए जा रही है--- | सोने की वह चेन थोड़ी बड़ी है—रणधीर बाबू सोच में डूबे,
‘काश की यह चेन आशा की क्लीवेज तक जाए... आह!! मज़ा आ जाएगा |’
इतनी सी कल्पना मात्र से ही उनका लंड और अधिक सख्त हो गया--- लंड की यह हालत देख कर ख़ुद रणधीर बाबू भी हैरान रह गए--- लंड को इतना सख्त और फनफनाता हुआ कभी नहीं पाया था उन्होंने--- ख़ुद की बीवी तो छोड़ ही दें, शहर की टॉप एक नंबर की हाई क्लास कॉल गर्ल/वाइफ/एस्कॉर्ट भी उनके उम्र बढ़ते हथियार की ऐसी हालत नहीं कर पाई थी---|
इतना काफ़ी था रणधीर बाबू को यह भरोसा देने के लिए की ‘आशा इज़ स्पेशल !’ और स्पेशल चीज़ों से डील करने में काफ़ी, काफ़ी माहिर हैं रणधीर बाबू |
नज़र फ़िर केन्द्रित किया आशा पर --- पल्लू के बहुत सुन्दर सलीके से प्लेट्स बना कर बाएँ कंधे से पिन की हुई है आशा --- दोनों भौहों के मध्य एक छोटी सुन्दर सी हल्की नीली बिंदी है--- माँग में सिंदूर नहीं दिख रहा!--- चौंके रणधीर बाबू ! ---- ‘आश्चर्य! सिंदूर क्यूँ नहीं?’ ‘तो--- क्या हस्बैंड नहीं रहे?--- नहीं नहीं... ऐसा होता तो गले में नेकलेस नहीं होता--- और तो और; शायद इतने अच्छे से बन ठन कर नहीं रहती—या आती --- हम्म, शायद ये लोग अलग हो गये हैं--- या शायद ऐसा भी हो सकता है कि आजकल की दूसरी औरतों या टीवी-फिल्मों की हीरोइनों को देख कर बिन सिंदूर पतिव्रता नारी हो--- खैर, मुझे क्या, बस मुझे सुख दे दे--- बाद बाकि जो करना है, करे---|’
बालों को पीछे गर्दन के पास से एक बड़ी क्लिप से सेट कर के लगाईं है--- और वहाँ से बालों को खुला छोड़ रख दी--- जो की टेबल फैन से आती हवा के कारण पूरे पीठ पर उड़ उड़ कर फ़ैल रहे हैं |
‘आशा---!’ थोड़े सख्त लहजे में नाम लिया रणधीर बाबू ने |
‘ज...जी.. सर...|’ होंठ कंपकंपाए आशा के |
‘इंटरव्यू शुरू करने से पहले तुम्हें एक ज़रूरी बात बताना चाहता हूँ ---|’ बातों का मोर्चा संभाला रणधीर बाबू ने |
‘ज.. जी सर... कहिए |’ नर्वस आशा बस इतना ही बोल पाई |
‘पता नहीं ऐसा हुआ है या नहीं--- पर मुझे तुम एक स्मार्ट, समझदार और बेहद रेस्पोंसिबल लेडी लगती हो--- और अभी तक, आई होप कि तुम समझ चुकी हो शायद की, अब जो इंटरव्यू होने वाला है --- वह बाकि के इंटरव्यूज़ से बिल्कुल अलग, बिल्कुल जुदा होने वाला है--- राईट?? ’
बिल्कुल सपाट से शब्दों में चेहरे पर बिना कोई शिकन लिए रणधीर बाबू ने अपनी बात सामने रख दी और बोलते समय बिल्कुल एक ऐसे प्रोफेशनल की तरह बिहेव किए मानो ऐसा उनका रोज़ का काम है |
इसमें कोई दो राय नहीं की आशा को अब तक ये नहीं समझ में आया हो की इंटरव्यू कैसा होने वाला है--- क्या पूछा या करने को कहा जा सकता है--- क्या आज ही के दिन से उसके कोम्प्रोमाईज़ का काम शुरू होने वाला है?--- क्या जॉब अप्लाई/जॉइनिंग के दिन ही बिन ब्याही किसी की औरत बनने वाली है?
इन सभी सवालों को दिमाग से एक झटके में निकालते हुए बोली,
‘जी सर... समझ रही हूँ |’ इसबार आवाज़ में थोड़ी बोल्डनेस लाने का प्रयास करते हुए बोली |
‘ह्म्म्म ... आई गिव माई वर्ड दैट --- की जो कुछ भी होगा इस बंद कमरे में--- एवरीथिंग विल बी अ सीक्रेट बिटवीन मी एंड यू--- एक अक्षर तक बाहर नहीं जाएगी--- यू गेटिंग द पॉइंट-- व्हाट आई मीन??’
‘यस सर....’ अपनी नियति मान चुकी आशा ने सिर्फ़ इतना कहना ही उचित समझा |
‘गुड... वैरी गुड---(सब कुछ योजनानुसार होता देख रणधीर बाबू मन ही मन बल्लियों उछलने लगे)--- मेरा तो कुछ नहीं--- आई जस्ट वांट तो सी यू गेटिंग इनटू एनी काइंड ऑफ़ ट्रबल ---| ’
‘ज... जी.. जी सर... आई स्वेअर, कोई भी बात बाहर नहीं जाएगी |’
‘ऑलराईट देन,----|’ बड़ी, रेवोल्विंग चेयर पर पीठ टिका कर आराम से बैठ गये रणधीर बाबू, आशा की ओर एकटक देखते हुए---- और इधर आशा भी मन ही मन ख़ुद को समझाती---- संभालती तैयार होने लगी ----
‘रणधीर बाबू के इंटरव्यू के लिए !’
कमरे में फ़िर कुछ पलों के लिए सन्नाटा छा गया |
‘आशा---’ रणधीर बाबू के धीर स्थिर आवाज़ ने सन्नाटे को भंग किया |
‘ज.. जी सर...’ आशा ने रणधीर बाबू की ओर देख कर जवाब दिया--- आवाज़ में उत्सुकता का पुट है |
‘नर्वस हो?’ रणधीर बाबू ने पूछा |
‘न-- नो सर..’ आशा की उत्सुकता थोड़ी और बढ़ी |
‘यू आर अ यंग लेडी--- कम्पेयर्ड टू मी--- राईट?’
‘य... यस सर---’ थोड़ा सहम कर जवाब दी इस बार आशा |
‘ह्म्म्म--- फ़िर भी मुझे कुछ फ़ील क्यूँ नहीं हो रहा?’ धीरे ही सही, पर अब पॉइंट में आना शुरू किया रणधीर बाबू ने---
‘प-- प --- पता --- न-- नहीं स--- सर’ घबराने लगी वह बेचारी --- देती भी तो क्या जवाब देती इस बात का |
‘मुझे पता है क्यों--- और ये भी कि क्या करने से कुछ ---- कुछ अच्छा फ़ील हो सकता है ----| ’ होंठों पे एक घिनौनी मुस्कान लिए बोला वो शैतान |
‘क --- कहिए सर--- क्या करने से अच्छा फ़ील होगा--- आई विल ट्राई टू डू दैट--- |’
‘ट्राई नहीं आशा--- सिर्फ़ तुम्हीं कर सकती हो और तुम्हें करना ही होगा--- |’ अपने पासे एक एक कर फ़ेंक रहा था वह हवसी |
‘ओ--- ओके सर--- |’ घबराई आशा ने तुरंत हामी भरी ----
‘अगर देखा जाए तो मैं ऑलरेडी तुम्हारा बॉस हूँ--- राईट?? ’
‘यस सर---- ’
‘एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट----- राईट??’
‘यस सर--- ’
‘और हर एम्प्लोईज़ को बॉस की बात बिना रोक टोक और न नुकुर के सुनना चाहिए---- राईट ?!’
‘बिल्कुल सर---’
‘तुम भी मेरी हर बात को बिना रोक टोक और ना नुकुर के सुनोगी और मानोगी--- इसलिए नहीं की तुम मेरी एम्प्लोई हो--- वरन इसलिए की तुमने एक सादे कागज़ में लिख कर दिया है जोकि एक तरह का बांड है--- |’
‘यस सर---- बिल्कुल---| ’
‘ह्म्म्म’
शैतानी मुस्कुराहट मुस्कराया वह ठरकी बुड्ढा ---- साफ़ था--- अब कुछ ‘आउट ऑफ़ लीग’ बोलने वाला है----
और हुआ भी वही---
‘तो आशा ---- मुझे ‘फ़्री’ टाइप रहने वाली लेडीज बहुत पसंद है ---- और फ़िलहाल तुम्हें देख कर ऐसा लग रहा है मानो तुम बहुत ‘ओवर- बर्डन’ हो अभी--- बोझ बहुत ज़्यादा है--- डू वन थिंग--- रिमूव योर पल्लू----!!’ वासनायुक्त अपना पहला ही आदेश खतरनाक ढंग से दिया रणधीर बाबू ने |
आशा चौंक उठी---
अविश्वास से आँखें बड़ी बड़ी हो उठी---
मानो उसने भी पहला आदेश या यूँ समझें की ‘इंटरव्यू’ का पहला ही निर्देश कुछ ऐसा होने की आशा नहीं की थी---
प्रतिरोध स्वरुप कुछ कहने हेतु होंठ खोला आशा ने--- पर कुछ याद आते ही तुरंत होंठों को बंद भी कर लिया |
रणधीर मुस्कराया--- सुनहरे चश्में से झाँकते उसके आँखें किसी वहशी दरिंदे के माफ़िक चमकने लगी---
गंभीर स्वर में बोला,
‘आई एम सीरियसली सीरियस आशा--- अपना पल्लू हटाओ--- |’
अत्यंत स्पष्ट स्वर में स्पष्ट निर्देश आया रणधीर की तरफ़ से---
आशा हिचकी--- आँसू रोकी---- थूक का एक बड़ा गोला गटकी--- और धीरे से हाथ उठा कर बाएँ कंधे पर पिन के पास ले गई --- पिन खोलती कि तभी दूसरा निर्देश / आदेश आया ---
‘मेरी तरफ़ देखते हुए आशा--- आँखों में आँखें डाल कर---’
बड़ा ही सख्त कमीना जान पड़ा ये आदमी आशा को--- घोर अपमानित सा बोध करती हुई वह धीरे से आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी--- सीधे उसकी आँखों में --- बिना पलकें झपकाए--- फ़िर आहिस्ते से पिन खोल कर सामने टेबल पर रखी---- कंधे पर ही पल्लू को ज़रा सा सरकाई--- और दोनों हाथ चेयर के आर्मरेस्ट पर रख दी--- दो ही सेकंड में पल्लू सरसराता हुआ पूरा ही सरक कर आशा की गोद में आ गिरा--- रणधीर बाबू के आँखों में लगातार देखे जा रही आशा रणधीर बाबू के आँखों की चुभन अपने जिस्म की ऊपरी हिस्से पर साफ़ महसूस करने लगी और परिणामस्वरुप एक तेज़ सिहरन सी दौड़ गई पूरे शरीर में--- |
आशा भले ही रणधीर बाबू के आँखों में बिन पलकें झपकाए देख रही थी पर ठरकी बुड्ढे की नज़र आशा के पिन खोलते ही उसके सुपुष्ट सुडौल उभरी छाती पर जा चिपके थे |
नीले ब्लाउज में गहरे गले से झाँकती पुष्टकर चूचियों की ऊपरी गोलाईयाँ और दोनों के आपस में अच्छे से सटे होने से बनने वाली बीच की दरार; अर्थात क्लीवेज ---- बरबस ही रणधीर बाबू की आँखों की दिशा को अपने ओर बदलने पर मजबूर कर रही थीं ---- आशा की चूचियाँ और विशेषतः उसकी चार इंच की क्लीवेज--- उसके लिए ऐसा नारीत्व वाला वरदान था जोकि उसे एक सम्पूर्ण नारी बना रहे थे --- और इस वक़्त एक हवसी ठरकी बुड्ढे--- रणधीर बाबू का शिकार |
रणधीर बाबू अधीर होते हुए अपने होंठों पर जीभ फिराई--- और ख़ुद को चेयर पर एडजस्ट करते हुए अपनी दृष्टि को और अधिक केन्द्रित किया आशा के वक्षों पर ---
और जो दिखा उसे ---- उससे और भी अधिक मनचला और उत्तेजित हो उठा वह----!!
आशा के ब्लाउज के ऊपर से ब्रा की पतली रेखा दोनों कन्धों पर से होते हुए नीचे उसके छाती --- और छाती से दोनों चूचियों को दृढ़ता से ऊपर की ओर उठाकर पकड़े; ब्रा कप में बदलते हुए नज़र आ रहे हैं ---- ऐसा दृश्य तो शायद किसी अस्सी बरस के बूढ़े के बंद होती दिल और मुरझाये लंड में जान फूँक दे ---- फ़िर रणधीर जैसे पैंसठ वर्षीय हवसी ठरकी की बिसात ही क्या है ??
रणधीर बाबू ने गौर किया ---- नीले ब्लाउज में गोरी चूचियों की गोलाईयाँ जितनी फ़ब रही हैं ---- उन दोनों गोलाईयों के बीच की दरार --- ऊपर में थोड़ी कत्थे रंग की और फ़िर जैसे जैसे नीचे, ब्लाउज के पहले हुक के पीछे छिपने से पहले, वह शानदार क्लीवेज की लाइन – वह दरार; काली होती चली गई --- ज़रा ख़ुद ही कल्पना कर सकते हैं पाठकगण – एक चालीस वर्षीया सुंदर गोरी महिला --- उनके सामने अपनी नीली साड़ी की पल्लू को गोद में गिराए; गहरे गले का ब्लाउज पहने बैठी है ---- ब्लाउज के ऊपर से ब्रा स्ट्रेप की दो पतली धारियाँ कंधे पर से होते हुए --- सीने के पास चूचियों को सख्ती से पकड़ कर इस तरह से उठाए हुए हैं कि क्लीवेज नार्मल से भी दो इंच और बन जाए तो??!! ---- रणधीर बाबू की भी हालत कुछ कुछ ऐसी ही बनी हुई थी --- लाख चाहते हुए भी अपनी नज़रें आशा की दो गोल गोरी चूची और उनके मध्य के लंबी काली दरार पर से हटा ही नहीं पा रहे हैं --- आकर्षण ही कुछ ऐसा है ---- करे तो क्या करे --- बेचारा बुड्ढा !
उत्तेजना की अधिकता में रणधीर बाबू के मुख से बरबस ही निकल गया ,
‘पहला हुक खोलो आशा --’
‘ऊंह --!’
आशा चिहुंकी --- निर्देश का आशय समझने के लिए रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू की आँखें तो अभी भी गहरी घाटी में विचरण कर रही थीं --- उनकी नज़रों को फॉलो करते हुए आशा अपने पल्लू विहीन ब्लाउज की ओर नज़र डाली --- और ऐसा करते वह अपने नए नवेले बॉस के निर्देश का आशय समझ गई --- थोड़ी ठिठकी --- पल भर को सही-गलत, पाप-पुण्य का विचार उसके दिल – ओ – दिमाग में आया --- और आ कर चला भी गया --- आख़िर निर्देश का पालन तो करना ही है --- रणधीर बाबू इज़ हर बॉस एंड बॉस इज़ ऑलवेज़ राईट !
नज़रें नीची किए आहिस्ते से ब्लाउज के ऊपरी दोनों सिरों को पकड़ते हुए पहला हुक खोल दी ----
अभी खोली ही थी कि दूसरा निर्देश तुरंत आया ---
‘थोड़ा फैलाओ --- ’
रणधीर बाबू की ओर देखे बिना ही आशा अब थोड़ा मुक्त हुए ब्लाउज के ऊपरी दोनों दोनों सिरों को प्रथम हुक समेत ज़रा सा मोड़ते हुए अंदर कर दी --- मतलब अपने बूब्स की ओर अंदर कर दी दोनों ऊपरी उन्मुक्त सिरों को --- इससे ब्लाउज की नेकलाइन और गहरी हो गई और क्लीवेज का दर्शनीय हिस्सा थोड़ा और बढ़ गया बिना कोई अतिरिक्त या विशेष जतन किए |
‘थोड़ा आगे की ओर करो’ अगला निर्देश !
आशा समझी नहीं --- सवालिया दृष्टि से रणधीर की ओर देखी ---
रणधीर ने हथेलियों के इशारे से थोड़ा आगे होने को बोला ---
इसबार चुक नहीं हुई आशा से ---
बहुत हल्का सा झुक कर अपने सुपुष्ट को उभारों को तान कर सामने की ओर बढ़ा दी !! --- आहह: !! ---- स्वर्ग !!---- यही एक शब्द कौंधा रणधीर बाबू के दिमाग में --- सचमुच --- अप्रतिम सुडौलता लिए हुए परम आकर्षणमय लग रहे हैं --- दोनों --- आशा और उसके दो उभर ! ---- |
कुछ मिनटों तक घूरते रहने के बाद रणधीर बाबू ने अपना आईफ़ोन निकाला और आशा को सिर एक तरफ़ झुका कर आँखें ज़रा सा बंद करने को कहा ---- जैसे कि वो नशे में हो --- नशीली आँखें --- जैसा रणधीर बाबू चाहते थे बिल्कुल वैसा करते ही रणधीर बाबू ने फटाफट तीन-चार पिक्स खिंच लिए --- |
फ़िर आँखों को नार्मल रखने को बोल कर फ़िर से तीन- चार पिक्स लिए --- यह सोच कर कि अगर किसी दिन थोड़ी ऊँच-नीच हो जाए तो वह प्रमाण के तौर पर यह दिखा सके कि उन्होंने वो पिक्स आशा के पूरे होशो हवास और उसकी सहमती से ही लिए थे |
उन पिक्स में कमाल की कामुक औरत लग रही थी आशा --- हरेक अंग-प्रत्यंग से --- रोम रोम से कामुकता टपक रही हो --- बिल्कुल किसी काम देवी की भांति --- और स्वर्ग क्या या उसका अर्थ क्या होता है यह तो उसके सामने की ओर अधिक तने हुए बूब्स और डीप क्लीवेज बता ही रहे हैं रणधीर बाबू को |
रणधीर बाबू के शैतान खोपड़ी में अब एक और बात खेल गई --- कि स्वर्ग तो सामने देख लिया पर यदि स्वर्गलाभ नहीं लिया तो फ़िर क्या किया --- इतना खेल खेलने का परिश्रम तो व्यर्थ ही जाएगा |
एक दीर्घ श्वास लेकर रणधीर बाबू ने एक निर्णय और लिया --- कुछ और बोल्ड करने का --- इस तरह के खेल वो बाद में भी खेल सकता है --- फ़िलहाल वक़्त है इस खेल का लेवल बढ़ाने का --- |
खड़े लंड को वैसे ही पैंट की ज़िप से बाहर निकला रख, रणधीर बाबू अपने उस आरामदायक विशेष रेवोल्विंग चेयर से उठे और कुछ ही कदमों में आशा के निकट पहुँच गए ---- |
आशा अपने धौंकनी की तरह बढ़ी हुई दिल की धड़कन पर नियंत्रण का बेहद असफ़ल प्रयास करते हुए तिरछी निगाहों से अपने दाईं ओर बिल्कुल पास आ कर उसकी कुर्सी से सट कर खड़े हुए रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनकी बढ़ी हुई पेट से ऊपर का हिस्सा तो नहीं देख सकी पर नज़र एकदम से उनके पैंट की ज़िप से बाहर बिल्कुल काले रंग के लंड की ओर गई; जो किसी स्टार्ट की हुई खटारे इंजन वाले किसी खटारे टेम्पो की छत पर रखे बांस की तरह हिल रहा था --- |
लंड के अग्र भाग के चमड़ी के मध्य से हल्का सा दिख रहा हल्की गुलाबी रंग का लंडमुंड धीरे धीरे बिल से बाहर आता किसी खतरनाक सांप की भाँति सामने आ रहा था --- आशा ने देखा, --- अग्र भाग की कुछ चमड़ी धीरे धीरे पीछे की ओर जा रही है और अब तक हल्की गुलाबी रंग का प्रतीत होता मशरूम-नुमा लंडमुंड अत्यधिक रक्त प्रवाह के कारण लाल रंग अख्तियार करता जा रहा है --- मशरूम नुमा भाग के टॉप पर बना चीरा बिल्कुल आशा के चेहरे के समीप ही है और पसीने और मूत्र की एक अजीब सी मिली-जुली गंध आशा के नाक में समा रही है --- |
एक पुरुष के यौननांग को अपने इतने समीप पाकर आशा तो एकदम से सकपका गई ---- बेचारी बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर रह गई --- और जब यह बात ध्यान आई कि जिसका यौननांग उसके इतने पास खड़ा है; वह उससे कहीं, कहीं अधिक उम्र के व्यक्ति का है तो शर्म से दुहरा कर लाल हो गई ---- तुरंत ही अपने चेहरे को दूसरी तरफ़ घूमा कर बोली,
‘स... सर... यह क्या....?’
‘ओह कम ऑन आशा--- डोंट बिहेव लाइक अ सिली गर्ल ---- यू आर अ मैरिड वुमन --- तुम्हें तो अच्छे से पता है न, कि यह क्या है ??’
चेहरे पर ऐसे भाव लिए और ऐसी टोन में बोले रणधीर बाबू मानो, परीक्षा केंद्र में किसी छात्रा ने एक जाना हुआ क्वेश्चन का मतलब पूछ ली हो और इससे इन्विजिलेटर को बहुत अफ़सोस हुआ |
‘न..न.. नो सर... म.. मेरा मतलब... आप ये क्या...क्या क...कर रहे ....हैं...?’
घबराहट के अति के कारण सूखते अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर भिगाने की कोशिश करती आशा ने किसी तरह अपना सवाल पूरा किया ---
‘ओह... यू मीन दिस?!!’ अपने तने लंड को देखते हुए आशा की ओर देख कर रणधीर बाबू अपने हल्के पीले-सफ़ेद दांतों की चमक बिखेरते हुए आगे बोले,
‘म्मम्म.... आशा.... अब ऐसे सवाल करने और इस तरह से दूसरी ओर मुँह घुमा लेने तो काम नहीं चलेगा----??--- अब इस बेचारे का ध्यान तो तुम्हें ही रखना है --- कम ऑन --- टर्न हियर --- लुक एट इट ---- इट्स डाईंग फॉर योर लव फिल्ड डिवाइन अटेंशन --- |’
आशा फ़िर भी नहीं मुड़ी --- रणधीर बाबू ने दो तीन बार अच्छे से, नर्म लहजे में आशा को मानाने की कोशिश की --- पर फ़िर भी जब आशा अपेक्षाकृत उत्तर नहीं दी तो रणधीर बाबू का स्वर एकाएक ही बहुत हार्श हो गया ----
‘आशा !! --- आई ऍम नॉट आस्किंग यू टू डू दिस --- ऍम टेलिंग यू --- ऍम ऑर्डरिंग यू टू डू दिस --- !! |’
रणधीर बाबू की आवाज़ में इस बार एक अलग ही धमक थी ---
आशा सहम कर तुरंत ही अपना चेहरा दाईं ओर की --- और ऐसा करते ही उसकी नजर सीधे रणधीर बाबू के फनफनाते लंड पर पड़ी ---
रणधीर बाबू बोले,
‘गिव सम लव --- आशा ---’
आशा आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी --- सुनहरे फ्रेम के ब्राउन ग्लास के अंदर से झाँकते रणधीर बाबू की आँखें एक खास तरह से सिकुड़ कर एक ख़ास ही मतलब बयाँ कर रही थी --- |
आशा के अंदर की बची खुची प्रतिरोधक क्षमता भी हवा में फुर्रर हो गई --- किस्मत का खेल समझ कर अब मन ही मन खुद को तन-मन से पूरी तरह रणधीर बाबू को समर्पित कर उनका मिस्ट्रेस बनने का दृढ़ निश्चय कर आशा ने अपना दाहिना हाथ उठाया और काले, सख्त तने हुए लंड को अपने नर्म हाथों की नर्म उँगलियों की गिरफ़्त में ली और बहुत ही हिचकिचाहट से; बहुत धीरे धीरे अपना हाथ आगे पीछे करने लगी ----
और ऐसा करते ही, रणधीर बाबू सुख और आनंद के चरम सीमा पर पहुँच गए --- आखिर उनकी ड्रीमगर्ल --- (यहाँ शायद ड्रीमलेडी कहना उचित होगा) --- ने उनके हथियार को अपने नर्म हाथों के गिरफ़्त में जो ले लिया है --- लंड के चमड़े पर हथेली के नर्म स्पर्श का अहसास ही उन्हें वो सुख दे रहा है जो शायद किसी कॉल गर्ल की अनुभवी चूत ने भी नहीं दी होगी --- |
इधर आशा भी धीरे धीरे आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगी --- क्योंकि आशा के हाथ के नर्म छूअन के बाद से ही रणधीर बाबू का लंड पल-प्रतिपल फूलता ही जा रहा है और मोटाई और चौड़ाई भी ऐसी बना रखी है जैसा की आज तक आशा ने केवल पोर्न मूवी क्लिप्स में ही देखा है --- रोज़ रातों को मम्मी, पापा और नीर के सो जाने के बाद आशा अकेली तन्हा हो कर बिस्तर पर पड़े पड़े ही मोबाइल पर पोर्न मूवी देखते हुए साड़ी को जाँघों तक उठा कर अपनी बीच वाली लंबी ऊँगली से चूत खुजाती और कलाकार ऊँगली की कलाकारी की मदद से ही पानी छोड़ते हुए सो जाती --- कुछेक बार ऐसा भी हुआ है की पानी छोड़ने के बाद मन में भारी पश्चाताप का बोध की है आशा ने --- पर; ---- एक मशहूर अभिनेता का डायलॉग --- ‘अपने को क्या है; अपने को तो बस; पानी निकालना है ---’ याद आते ही शर्म से लाल हो जाती और दोगुने उत्तेजना से भर वो फ़िर से पानी निकालने के काम में लग जाती ----
पर यहाँ बात यह है कि आजतक आशा ने जिस तरह के आकार वाले लंड देखी थी ; सब के सब मोबाइल के पोर्न मूवीज़ में --- उसने कभी यह कल्पना नहीं की होगी की वास्तविक जीवन में भी ऐसा औज़ार का होना सम्भव है !!
निःसंदेह नीर के पापा का भी हथियार का दर्शन की है वह ---- पर --- इतने सालों में तो वह उसका चेहरा भी लगभग भूल सी चुकी है --- हथियार को याद रखना बाद की बात है --- और अगर हथियार तक याद नहीं है, तो इसका मतलब हथियार कुछ खास नहीं रहा होगा ! (ऐसा कभी कभी आशा सोचती थी ---!!) |
इधर लंड फुंफकार रहा था और उधर रणधीर बाबू दिल ही में ज़ोरों से आहें भर रहे थे ---- खड़े रणधीर बाबू ने जब नज़रें नीची कर कुर्सी पर बैठी आशा को उनका लंड हिलाते हुए देखने कोशिश की तो पहली ही कोशिश में उनकी आँखें चौड़ी होती चली गई --- ऊपर से देखने पर आशा की पल्लू विहीन दूधिया चूचियों के बीच की घाटी अधिक लंबी और गहरी लग रही है और आकर्षक तो इतना अधिक की एकबार के लिए तो रणधीर बाबू का दिल ही धड़कना बंद हो गया !! ---- और तो और ----- उसकी ब्लाउज भी पीछे से ---- पीठ पर --- डीप ‘U’ कट लिए है जिससे कि आधे से अधिक गोरी, चिकनी, बेदाग़ पीठ सामने दृश्यमान हो रही है --- ब्लाउज भी कुछ ऐसी टाइट पहनी है की जिससे उसके पीठ की भी करीब तीन इंच की क्लीवेज बन गई है --- |
रणधीर बाबू हाथ बढ़ा कर आशा की दाईं चूची को थाम लिया और प्रेम से दबा कर उसकी नरमी का आंकलन करने लगे --- आह: ! सचमुच---- जितना सोचा था --- उससे भी कहीं अधिक नर्म है इसकी चूचियाँ ---- हह्म्म्म --- साली पूरा ध्यान रखती है अपना----- ! ऐसा सोचा रणधीर बाबू ने |
अचानक हुई इस क्रिया से आशा हतप्रभ हो कर हडबडा गई ---- पर ख़ुद ही जल्दी संभल भी गई --- पहले दिन के पहले ही प्रोजेक्ट में रणधीर बाबू को निराश या नाराज़ नहीं करना चाहती ---
अतः चुपचाप मुठ मारने के कार्य में केन्द्रित रही ---
इधर चूचियों की नरमी मन का लालच और अधिक से अधिक बढ़ाने लगी ---- ब्लाउज के ऊपर से करीब ५ मिनट तक दबाने के बाद रणधीर बाबू उन दोनों चूची को ब्लाउज और ब्रा के नापाक कैद से आज़ाद कर --- उन्हें नंगा कर अपने हाथों में ले उनके छूअन का आनंद ले पूर्ण तृप्त होना चाहते थे --- पर पहले ही दिन एकसाथ इतने सारे काण्ड करने का कोई इरादा नहीं है उनका--- पुराने खिलाड़ी हैं ---
जानते हैं नारी हृदय की आकुलता को ---
उनकी व्यग्रता और मनोभावों को ---
उनके छटपटाहट के सही समय को ---
इसलिए बिना किसी तरह की कोई जल्दबाज़ी किए वह उन नर्म, पुष्ट, गदराई चूचियों को अपनी सख्त मुट्ठी में भींचने में ही लगे रहे ---
उनकी पारखी उँगलियाँ , जल्द ही आशा को बिना कोई खास तकलीफ़ दिए --- यहाँ तक की उसे पता लगने दिए बिना ही ---- उसके ब्लाउज के अगले दो हुक्स को खोल दिए --- अभी भी दो और हुक्स शेष थे , पर उन्हें रहने दिया --- ब्लाउज के खुले दोनों सिरों/ पल्लों को थोड़ा और फैलाया --- अब करीब सत्तर प्रतिशत चूची अनावृत हो गई --- बाकि के अभी अंदर मौजूद एक सफ़ेद-क्रीम कलर के ब्रा में कैद हैं ---
कसे ब्रा कप के कारण ऊपर उठ कर पहले से फूले चूचियाँ और अधिक फूले हुए हैं --- ये देख कर रणधीर बाबू के होश ही मैराथन के लिए भाग गई --- दूधिया चूचियों को क्रीम कलर के ब्रा में देख मन ही मन हद से अधिक प्रफुल्लित होते रणधीर बाबू ये सपने देखने लगे कि गोरी आशा की ये गोरी चूचियाँ काले, लाल और गुलाबी ब्रा में कैसे लगेंगें ??!
ब्लाउज के ऊपर से ही एक एक कर दोनों चूचियों के नीचे हाथ रख कर बारी बारी से तीन चार बार इस तरह उठा उठा कर देखा मानो दोनों चूचियों का वज़न माप (तौल) रहा हो ---
पहले तो आशा बहुत बुरी तरह से शरमाई; पर जब रणधीर बाबू को उसके चूचियों के वज़न देखते हुए एक कामाग्नि भरी ‘ऊफ्फ्फ़...ओह्ह्ह..... लवली ...’ कहते सुनी तो गर्व से भर वह दुगुनी हो गई ..
और वाकई रणधीर बाबू उसके दोनों चूची के भार को देख जितना आश्चर्यचकित हुए --- उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी से बल्लियों उछलने लगे अंदर ही अंदर ---- ये सोच सोच कर कि आने वाले दिनों में इन्हीं चूचियों पर आरामदायक ; सुकून भरे पल बीतने वाले हैं --!
इधर आशा --- ;
पता नहीं क्यूँ, अपने से पच्चीस - तीस साल बड़े --- एक बुज़ुर्ग आदमी के लंड को हिलाने तो क्या; छूने तक घृणा कर रही थी --- वही अब उसी आदमी के द्वारा उसके बूब्स मसले जाने पर वह एक अलग ही ख़ुशी, आनंद मिलने लगी --- एक एडवेंचर सा फ़ील होने लगा उसे |
हिलाते हिलाते बहुत देर हो गई --- लंड अब और भी ज़्यादा अकड़ गया --- लंड हिलाते हुए आशा की हाथों की चूड़ियों से आती ‘छन छन’ की आवाज़ माहौल और मूड को और भी गरमा रही थी --- वीर्य की धार कभी भी फूट सकती है --- और रणधीर बाबू अपना कीमती वीर्य बूंदों को यूँ ही वेस्ट नहीं जाने देना चाहते – इसलिए उन्होंने एक हल्के थप्पड़ से अपने लंड पर से आशा का हाथ हटाया और आगे हो कर उसके होंठों से अपने लंड का छूअन कराया --- आशा भीषण रूप से हिचकी --- कसमसाई --- कातर दृष्टि से रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू अपना सारा होश बहुत पहले ही अपने लंड के सुपाड़े में डाल चुके थे --- सोचने समझने का काम फिलहाल उन्होंने अपने लंड पर छोड़ रखा था और लंड आशा के मुँह में घुसने को बुरी तरह से तत्पर था --- |
आशा नर्वस हो ज़रा सा मुस्कुराई और ऐसा दिखाने की कोशिश की कि;
उसे भी अब थोड़ा थोड़ा इस खेल में मज़ा आ रहा है –
और पूरे मन से रणधीर बाबू का मुठ मारने में खुद को व्यस्त दिखाने का भी भरपूर प्रयास की ----
पर रणधीर बाबू इतने में खुश होने वालों में से नहीं ---
आशा के हाथ में एक और थप्पड़ मारते हुए थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा,
‘एनफ विथ द हैंड्स, स्लट..! --- ’
और इतना कहते हुए एक झटके में जोर का प्रेशर देते हुए आशा के मुँह में लंड का प्रवेश कर दिया ---
‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह....’
इतनी ही आवाज़ निकली आशा की ---
कुछ सेकंड्स लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में ;
थोड़ा सा निकाला,
फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया आशा के गले में ---
मारे दर्द के आशा तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे तगड़े लंड को मुँह में रखने के लिए मुँह / होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर रणधीर हवस में अँधा होकर थोड़ा पर तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा आशा के मुँह में घुसे अपने लंड को --- वह आज कम से कम आशा के हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था ---
‘आःह्हह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म.....’ आशा बस इतना ही कह पा रही थी --
जबकि रणधीर बाबू मस्ती में डूबे ज़ोरों से आहें भर रहे थे,
‘ओह्ह्ह्हsssss---- आह्ह्हssssssssss.... यssसsss आsssशाsssss ----- ओह्ह्हssss यसsssssss ----- टेssक ssइटssss ---- टेक इट ssss डीपssss ---- मोर--- मोर--- इनसाइडsss यूsssss ----- ओह्ह्ह फ़कssssss ----!!’
इधर आशा,
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हsssssssss... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss गूंsssss गूंssss ह्ह्ह्हह्हsss ह्ह्ह्हह गोंss गोंss गोंss गोंsss गोंsss म्म्फ्हह्हss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssss’ अब मुँह के किनारों से लार टपकने लगा --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा |
रणधीर बाबू चूचियों को मसलना छोड़ कर आशा के सिर के पीछे हाथ रख अपने तरफ़ धकेलते और ठीक उसी समय अपने कमर को जोर से आगे की ओर झटकते --- इस तरह बेचारी आशा बचने के लिए अपना मुँह हटाए भी तो हटाए कहाँ --- ??
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मssssप्प्फ्हह्ह्हsss ... गूंsss गूंsss गूंssss गूंssss गूंssss गूंsss ह्ह्ह्हह्हsssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्ह.ssss.. गोंss गोंss गोंsss गोंsss गोंsssss ........ म्म्फ्हह्हssss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssssssss’
‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्ह गूं गूं गूंssssssss गूं गूं गूं ह्ह्ह्हह्हssssss ह्ह्ह्हहsssss ...... आह्ह्हssssssह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हssssssssssss ....... गोंsss गों ss गोंssss गोंsss गों sssss …. म्म्फ्हह्ह म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssss’
इसी तरह घपाघप आशा के मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार ठरकी बुड्ढा अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच ही गया ----
‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगला उनके औज़ार ने --- पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य की थोड़ा सा निगल लेने के सिवा और कोई चारा न था और बहुत सा तो आशा के कुछ भी सोचने समझने के पहले ही गले से नीचे उतर गया --- नमकीन स्वाद ने आशा के मुँह का जायका पूरी तरह से बिगाड़ दिया ---- उससे अधिक उम्र के --- एक खूंसट ठरकी बुड्ढे का काला गन्दा लंड को मुँह में लेना और फ़िर उसका वीर्यपान करना --- कड़वाहट से भर दिया आशा को – बाकि बचे वीर्य को उगलते हुए खांसने लगी --- हरेक कतरे को निकाल बाहर करना चाहती थी –
इधर बुड्ढे ने दो तीन सफ़ेद कागज़ उसकी ओर बढ़ा कर साफ़ हो लेने को बोला --- साथ ही अपना वाशरूम भी दिखाया --- आशा दौड़ कर अंदर घुस गई --- रणधीर बाबू बड़े प्रेम से एक कागज़ से अपने लंड को पोछते पोछते अपनी कुर्सी पर आ बैठे --- और पहली सफ़लता पर बेहद प्रसन्न मन से मुस्कुराने लगे |
करीब दस मिनट बाद आशा निकली --- कपड़े सही कर ली थी – बाल जो कि रणधीर बाबू के उसके सिर को पकड़ने के वजह से अस्त-व्यस्त हो गए थे; उन्हें भी ठीक कर ली --- पिन लगाईं --- और कुर्सी पर बैठ गई -- |
रणधीर – ‘आशा , दैट वाज़ औसम !! .... आई लव्ड इट --- थैंक्स --- |’
आशा कुछ नहीं बोली, चुप रही ---- नज़रें नीची किए --- |
रणधीर बाबू भी उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना बोले,
‘आशा --- एक और बात --- अच्छे सुन और समझ लो --- और दिमाग में बैठा लो --- आज के बाद , हर दिन, कॉलेज बिना ब्रा पहन के आया करोगी --- ओके? और हाँ, कल ही अपने बेटे का फॉर्म और ज़रूरी डाक्यूमेंट्स लेती आना ---- कल से तुम्हारी जॉइनिंग एंड तुम्हारे बेटे का एडमिशन परसों पक्का --- ....’
यह सुनते ही आशा को जैसे अपने कानों पर यकीं नहीं हुआ --- आश्चर्य से रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनके चेहरे पर एक सहमती वाली मुस्कान देख कर उसकी आँखें छलक गईं --- रुंधे स्वर में बोली,
‘थैंक्यू सो मच सर --- थैंक्यू ---’
रणधीर बाबू एक बड़ी सी कमीनी मुस्कान लिए बोला,
‘ओके ओके... एनफ ऑफ़ थैंक्स ---- यू मे गो नाउ --- पर जाने से पहले एक छोटा सा काम और करो --- |’
आशा सवालिया नज़रों से देखी उनकी ओर,
‘अभी जो ब्रा पहनी हुई हो उसे खोल कर यहाँ रख जाओ --- |’
आशा उठी और वाशरूम में जल्दी से घुस गई --- रणधीर बाबू का फ़िर कोई नया आदेश न आ जाए यह सोच कर जल्दी से ब्रा उतर कर ; कपड़ों को ठीक कर के बाहर निकली--- उसे बाहर निकलते देखते ही रणधीर बाबू ने अपना बाँया हाथ बढ़ा दिया --- आशा ने इशारा समझ कर ब्रा उनकी हथेली पर रख दी --- बिना नज़रें उठाए धीरे कदमों से कुर्सी तक पहुँची --- अपना बैग उठाई और जाने लगी --- दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि रणधीर बाबू की आवाज़ आई ,
‘एक और बात --- आज तुम्हारा फर्स्ट टाइम था क्या--- आई मीन टेकिंग माय थिंग इनटू योर माउथ --??!’ बड़ी बेशर्मी से सवाल दागा बुड्डे ने --- |
आशा सिर घूमाए बिना बोली,
‘यस सर |’
और इतना बोल कर तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर चली गई --- |
इधर रणधीर बाबू हैरान --- साफ़ सुनकर भी यकीं नहीं हो रहा --- मानो यकीं करने को ही उनका दिमाग नहीं चाह रहा ---
आखिर एक शादीशुदा, उच्च घर की, संस्कारी, सुशिक्षित महिला का वर्जिन मुँह चोदा है उन्होंने --- न जानते हुए ही सही --- पर चोदा तो ---- और एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने आज एक ऐसी ही महिला को अपना लंड चूसा कर उसके शर्म – ओ – ह्या, हिचक, झिझक, बेबसी और ऐसे ही बहुत सी बाधाओं का बाँध तोड़ा है ---- जो आगे जा कर बहुत काम आने वाला है ----
‘आह्ह्ह:’
एक और आह निकली रणधीर बाबू के मुँह से और हाथ में पकड़े आशा की मुलायम क्रीम कलर के ब्रा को पागलों की तरह नाक और मुँह से लगा कर उसका गंध सूँघने लगे --------- |
क्रमशः
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