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Misc. Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर...
कुछ देर में ही सोनिया नाश्ता करने के बाद अपने कॉलेज जाने के लिए तैयार होने लगी , वह अपने जूते पहन रही थी... ठाकुर साहब भी तैयार होकर अपने बेडरूम से बाहर निकल आए थे और मुस्कुराते हुए मेरी दीदी की तरफ देख रहे थे.. ठाकुर साहब मेन गेट से बाहर निकल गए सोनिया भी उनके पीछे-पीछे... मेरी रूपाली दीदी गेट तक उनको बाय बोलने के लिए गई थी... अचानक मेरी बहन को कुछ याद आया..
 मेरी रूपाली दीदी( थोड़ी ऊंची आवाज में):  अजी सुनिए ना... शायद सोनिया की कॉलेज की डायरी बेडरूम में ही रह गई है.. जरा देख लीजिए ना... नहीं तो कॉलेज में फिर प्रॉब्लम हो जाएगी...
 मेरे जीजू:  ठीक है रुको...
 मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चले गए और सोनिया की डायरी को ढूंढने लगे... कुछ देर ढूंढने के बाद जीजू परेशान होने लगे...
 उन्हें सोनिया की डायरी तो नहीं मिली मगर जब उनकी नजर ठाकुर साहब के बिस्तर के ऊपर पड़ी तो उनके होश उड़ गए... इसी बेडरूम के अंदर थोड़ी देर पहले  मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के साथ थी और बेडरूम का दरवाजा भी अंदर से बंद था... मेरे जीजा जी ने देखा कि बिस्तर की हालत बहुत खराब  थी... बेडशीट पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था... उसके ऊपर मेरी बहन के हाथ की चूड़ियां भी टूटी हुई पड़ी थी.. बेडशीट पर अजीब अजीब धब्बे बने हुए थे.. जो  वीर्य के थे.. मेरी रूपाली दीदी की एक फटी हुई पेंटी बेड के नीचे पड़ी हुई थी... जो कल रात ठाकुर साहब ने नशे में  निकालने के बदले फाड़ डाली थी... कमरे के अंदर एक अजीब तरह की मादक खुशबू फैली हुई थी.. वही खुशबू जब किसी कमरे में एक औरत और एक मर्द संभोग करते हैं, उसके बाद की खुशबू...  मेरे जीजाजी किसी गहरी सोच में डूब चुके थे... उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इस घर में हो क्या रहा है...
 क्या रूपाली और ठाकुर साहब एक साथ.... नहीं नहीं मैं ऐसा कैसे सोच सकता हूं... मैं रूपाली के बारे में ऐसा बिल्कुल भी नहीं सोच सकता.. मेरे  जीजू मन ही मन खुद को दिलासा देने की कोशिश कर रहे थे... इसके बावजूद भी उनका दिल बैठा जा रहा था... सोनिया की डायरी ढूंढने की बात तो  वह भूल चुके थे... दूसरी तरफ सोनिया को उसकी डायरी उसके बैग में ही मिल  चुकी थी... अपनी मम्मी को बाय बोल कर सोनिया खुशी-खुशी ठाकुर साहब के साथ अपने कॉलेज जा रही थी..
 मेरी दीदी वापस आकर जीजू को ढूंढने  लगी... मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम के अंदर  गई जिसके अंदर मेरे जीजू अपने व्हीलचेयर पर अपना सर पकड़ कर बैठे हुए थे... मेरी बहन ने देखा कि उनके चेहरे पर चिंता की  लकीरे साफ-साफ झलक रही है...
 मेरी रूपाली दीदी:  अरे आप यहां पर क्या कर रहे हैं..
 मेरे जीजू:  तुमने ही तो कहा था सोनिया की डायरी ढूंढने के लिए.. पर रुपाली यह सब क्या है...
  मेरी रूपाली दीदी:  क्या मतलब यह सब क्या है?  कल रात को सोनिया तो आपके साथ सोई थी ना आपके बेडरूम में, तो फिर उसकी डायरी तो वही होनी चाहिए थी... आप ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर क्या कर रहे हैं.. वैसे भी सोनिया की डायरी मिल गई है.. उसी के बैग में ही थी..
 मेरे जीजू:  नहीं रूपाली...  मैं उसके बारे में नहीं कह रहा था.. मैं तो यह पूछ रहा था कि.. पूछ रहा था ... (हकलाने लगे)..
 मेरी रूपाली दीदी:  क्या बोल रहे हो आप... साफ-साफ बोलो ना मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.. मुझे काम है किचन में...
 मेरी दीदी ने थोड़ी ऊंची आवाज में जीजा जी को कहा... मेरी बहन का तेवर देखकर  मेरे  जीजू की हालत और भी खराब हो गई और उनके मुंह से कुछ बोल नहीं निकल रहे थे.. लेकिन इसके साथ ही कमरे के अंदर का दृश्य और माहौल देखकर मेरे जीजू के मरे हुए हथियार में हलचल होने लगी थी... अपने व्हीलचेयर पर खुद को घसीटते हुए मेरी जीजू मेरी रुपाली दीदी के पास में आए और उनकी कमर पकड़ के लिपट गय.. वह मेरी रूपाली दीदी की गांड दबोच कर उनकी नाभि को चूमने लगे...
 मेरे जीजू की इस हरकत पर मेरी बहन दंग रह गई..
 मेरी रूपाली  दीदी: क्या कर रहे हो जी.... नहीं छोड़ दो मुझे.. क्या मूड है आपका...
 मेरे  जीजू(  मेरी दीदी की नाभि को  अपनी जीभ से  चाट कर):  रूपाली... आज तुम बेहद खूबसूरत लग रही हो... करने दो ना..
 मेरी रूपाली दीदी:  अच्छा जी.. और बाकी दिन बदसूरत  लगती हूं क्या मैं आपको?... बोलो..
 मेरी दीदी की बात सुनकर मेरे जीजा जी का लंड,जिसमें बड़ी मुश्किल से तनाव आया था आज कितने दिनों के बाद, फिर से मुरझा गया..
 मेरी रूपाली दीदी:  छोड़ो मुझे.. मेरा छोटा भाई घर में ही बैठा हुआ है.. क्या सोचेगा... वैसे भी मुझे किचन में बहुत काम है.. आप भी जा कर आराम करो...
 मेरी दीदी उनसे अलग हो गई.. और अपनी गांड  मटका के उस बेडरूम से बाहर निकल गई.. मेरे जीजू उनकी गांड की तरफ ही देखते रहे.. और मन ही मन खुद को कोस रहे थे... मेरी दीदी किचन में चली गई और किचन का काम करने  लगी थी.. मैं हॉल में बैठा हुआ पढ़ाई कर रहा था..
 अब मेरे जीजू भी हॉल में आ चुके थे और मेरे पास बैठ कर टीवी देखने लगे थे... दीदी किचन में काम कर  रही थी... तकरीबन आधे घंटे के बाद हमारे घर की घंटी बजी.. मेरी रुपाली दीदी नहीं दरवाजा खुला.. सामने ठाकुर साहब खड़े थे और मेरी बहन को देख कर मुस्कुरा रहे थे.. मेरी दीदी भी उनको देख कर मुस्कुराने लगी थी..
 ठाकुर साहब ने मुझ पर और  मेरे जीजू पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने बेडरूम में चले गए... फिर वह अपने बाथरूम में घुस गय और नहाने लगे... उन्होंने अपने बेडरूम का दरवाजा पूरी तरह बंद नहीं किया था.. थोड़ी देर बाद उनकी आवाज अंदर से आई..
 ठाकुर साहब:  रूपाली.. रूपाली.... कहां हो तुम.. मेरे पीले रंग की शर्ट नहीं मिल रही है... कहां रख दी है तुमने..
  मेरी रूपाली दीदी किचन में से  गुस्से में निकली और  मेरे जीजू की तरफ देखते हुए अजीब नजरों से:  यह ठाकुर साहब   भी ना.... अजीब किस्म के मर्द है... उनका ही घर है फिर भी उनको नहीं पता होता है तो उनकी चीजें कहां पर है... और फिर ठाकुर साहब के बेडरूम में  चली गई..
 साथ ही साथ मेरी बहन ने दरवाजा भी  थोड़ा और बंद कर लिया उस बेडरूम का.. पूरा बंद नहीं... मैं और मेरे जीजू उस दरवाजे की तरफ देख रहे थे... हैरान होकर...
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RE: मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर... - by babasandy - 05-09-2021, 05:43 PM



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