31-08-2021, 06:33 PM
उस समय कुछ ऐसा अवश्य हुआ की वे मेरी उनकी छातियों को घूरती आंखों को लेकर सचेत हो गई और उन्होंने अपना पल्लू संभाल लिया। उन्होंने जब अपने पल्लू से अपने उन्नत वक्षस्थल को ढका तो लगा की जैसे मैं किसी तन्द्रा के टूटने से जागा हूँ। मैं एक चोर की तरह उनसे बिना आंख मिलाए, अपने खाने की प्लेट में धंस गया। मेरा ह्रदय बेहद तेजी से धड़क रहा था। मै अपनी मर्यादा की सीमाओं को तोड़ते जारहा था और स्वयं को धिक्कार भी रहा था, लेकिन मेरे वश में भी कुछ नहीं था।
मैंने उनको कनखियो से देखा, वो असहज सी, सिमटी हुई, धीरे धीरे मछली चावल खा रही थी। मुझे उनको देख कर लग रहा था की वे भी हिली हुई है। मुझे इसमे कोई संदेह नही रह गया था की अपने बेटे के उम्र के व्यक्ति की आंखों और उसके मन को उन्होंने पढ़ लिया था। उनके चेहरे के अभिप्राय से लग रहा था कि वे बेहद तनाव में है। मैं उनकी यह उलझन समझ सकता था क्यों कि जो मेरे से स्पंदन उन्हें मिल रहे थे, वह तो उन्होंने कभी उन्होंने सोंचा भी नहीं होगा। मैं, उस समय कमरे में छा गये कृतिम सन्नाटे को तोड़ने के लिए बराबर खाने की प्रशंसा करने लगा और आखरी कौर लेते वक्त, मेरी जबान फिर फिसल गई। मेरे मुँह से निकला,"मैंने जीवन में इतना शानदार खाना, इतने शानदार हाथो से बना हुआ कभी नहीं खाया, बहुत खूबसूरत।" और उनको देखते हुए बड़ी मादकता से मुस्करा दिया। उन्होंने मेरी यह अतिरेकता से भरी प्रशंसा को सुनकर पहले तो मुझे घूरा और फिर, "धत!" कह कर, लजाती हुई अंदर चली गई।
मैंने खाना खाने के बाद, अंदर वाश बेसिन में हाथ धोये और उनकी दी गई तौलिया से हाथ पोछने के बाद कहा,"अब मै चलता हूँ, देवब्रत को कुछ मत कहियेगा।" उन्होंने सर हिला कर, इसकी मौन सहमति दी और मेरे पीछे पीछे, मुझे बाहर मुझे छोड़ने के लिए चली आई। मैं गलियारे से होते हुए दरवाजे तक पहुंचा और उसकी सिटकनी खोलने से पहले, उनको धन्यवाद देने के लिए, अचानक पीछे मुड़ गया। मेरे अचानक पीछे की तरफ के मुड़ने को वे देख नहीं पाई और मुझसे टकरा गई।
मै लड़खड़ा गया और सँभलने के लिए उनको पकड़ लिया। मेरे हाथ उनके कंधो पर पड़े थे। मेरा उनके कंधे को छूना मेरे अंदर एक बवंडर ले आया। एक साथ मेरे दिमाग में सैकड़ो तूफान उठ गए। उस वक्त ऐसा लगा मै डूबने वाला हूँ और उस सहारे को मैं अपने अंदर समेट लूँ। अपने को सँभालते सँभालते, मेरी बाँहों ने उनका जकड लिया था। जो हुआ वह नियति प्रधान था, वह एक दैवयोग था। मैंने जब उनको अपनी बाहों में पाया तब मेरा उनके प्रति आकर्षण, आसक्ति, मेरे आप से बाहर हो चुके थे। मेरा अचानक लड़खड़ा कर, संभालने के लिए पकड़ना और उनका मेरी बाहों में जकड़ जाने वे बेहद घबड़ा गयी। उनके मुँह से हड़बड़ाते हुये बंग्ला में कुछ निकला और फिर कहा," सम्भालिये! क्या कर रहे है सर? छोड़िये।"
मैंने नशे में उनकी बात को अनसुनी कर, उनको अपनी बाँहों में और कसके समेटते हुए, आहिस्ता से लड़खड़ाती जबान से कहा,"नहीं बर्दाश्त कर पाया। आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"
"क्या बाबा क्या बाबा!" लगभग चिल्लाते हुए उन्होंने कहा।
मेरे तब तक सारे ज्ञान चक्षु बंद हो चुके थे। मैंने उनको बाहों में कस के लेते हुए, अपने ओठ उनके ओठ पर रख दिए। मेरे ओठो को अपने ओठो पर पाकर वो मुझे धक्का देकर, मुझको अलग करने की कोशिश करने लगी और पीछे मुंह मोड़ कर ड्राइंग रूम की तरफ देखने लगी। मैंने उनसे बड़ी कामुक विहल स्वर में कहा, "कुछ नहीं होगा, प्लीज आप बहुत सुन्दर हो, मै अब अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा हूँ।"
मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी तरफ लॉबी के अंधियारे में घूर कर देखा, उनकी आँखो में आंसू दिख रहे थे और चेहरे पर घबड़ाहट थी। फिर उन्होंने कातर स्वर में कहा,"सर जी, बेटे के बराबर हो! छोड़ दीजिये! यह ठीक नहीं है!!"
यह सुन कर मैंने कहा,"आप माँ कहाँ लगती है!! मेरे लिए संपूर्ण स्त्री है। मुझे मालूम है की आपको मै भी पसंद हूँ।"
यह कहते हुए मै अपना शरीर, उनसे रगड़ने लगा। मेरा कामांध लंड उनकी जांघो को साडी के ऊपर से दबाने लगा। वो बारबार ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी लेकिन कुछ कह नही रही थी। मुझे लगने लगा था कि उनका विरोध तो है लेकिन वह विरोध ऐसा नहीं था की मुझे उन्हें बाँहों में जकड़ने में कोई जबरदस्ती करनी पड़ रही थी। एक तरफ मै अपना लंड उसकी जांघो से रगड़ रहा था और दूसरी तरफ मेरे ओठ उनके ओठो, गालो और आँखों को चूमे जा रहे थे।मेरा बायां हाथ उनकी पीठ को ऐसा सहला रहा था जैसे की मैं उन्हें आश्वस्त कर रहा हूँ की सब ठीक है, घबड़ाने की कोई बात नहीं है।
मेरे तीन तरफ़ा प्रणय निवेदन से उनके शरीर में तनाव जहां बढ़ रहा था वही मेरी बाहों में उनका शरीर शिथिल हो रहा था। उन्होंने फिर धीरे से, कांपती हुई आवाज में कहा," सर! बहुत गलत हो जायेगा। बेटा बगल में ही सो रहा है। उसने कही कुछ देख सुन लिया तो इस उम्र में मुंह दिखने लायक नहीं रहूंगी!"
मुझे उनकी बात सुन कर इत्मीनान हुआ की मेरी वासना से ओतप्रोत उनका स्पर्श, उनकी अंदर की स्त्री को स्पर्श कर रहा है। उनको मेरा आलिंगन, मेरा चुम्बन और मेरे लंड की व्यग्रता, उनको भी अच्छी लग रही है लेकिन इसके साथ वह जो कह रही थी वह भी सही था। मैंने उनकी बात को सुन कर, उनको अपने सीने से चिपका लिया और उनकी छातियाँ मेरे सीने से आके चिपक गयी। मैंने उनके माथे को चूमते हुये, अपना दायाँ हाथ उनके ब्लाउज के ऊपर से ही, उनकी दाहिनी चुंची पर रख दिया। उन्हें सहलाते हुए, मैंने फुसफुसाते हुए कहा,"वो सो रहा है, कल सुबह से पहले नहीं उठेगा, सब जगह सन्नाटा है।" और यह कहते हुए मैंने उनकी चुंची की घुंडी पकड़ी और अपने ओंठ को उनके ओंठो पर रख, उनके निचले ओंठ को दबाकर चूसने लगा।
मै उनके ओठ चूस रहा था और मेरा दायाँ हाथ उनकी चूची को ब्लाउज के ऊपर से ही मसल रहा था। इस वक्त वो मेरी बाँहों में असहाय पड़ी थी। मैंने जब अपना हाथ उनके ब्लाउज के अंदर डालने का प्रयास किया तो उन्होंने अपना मुंह मोड़, पीछे की तरफ देखा। जैसे वह आशवस्त होना चाहती थी की उनका लड़का अभी सो रहा है। जब वो पीछे की तरफ देख रही थी तो मैं थोड़ा घूम कर, उनके पीछे आगया और पीछे से उनको जकड लिया। अब मेरा लंड, साड़ी के ऊपर से उनके चूतड़ों को दबा रहा था। मेरे दोनों हाथ, ब्लाउज के ऊपर से उनकी भरी हुई चूचियों को दबा रहे थे। मेरे ओठ उनकी गर्दन, उनके बाल, उनके कानो को चूमे जा रहे थे। हम दोनों, इसी अवस्था में करीब 2/3 मिनिट खड़े रहे। मेरा शरीर उनके शरीर को रगड़े जा रहा था और उनकी साँसे गहरी होती जा रही थी। 55 वर्ष की प्रौढा के अंदर के स्त्रीत्व ने कामुकता का आलिंगन कर लिया था और उनका शरीर ढीला पड़, मेरे शरीर का सहारा ले रहा था।
मैंने उसके बाद, अपनी उंगलियां उनके ब्लाउज के अंदर घुसा कर, उनकी चुंचियो को पकड़ने का प्रयास किया तो उन्होंने सर हिला कर मना किया और मेरे से अलग होने की कोशिश करने लगी। यह देख कर मैंने उनको छोड़ दिया और उनका हाथ पकड़ कर पैन्ट के ऊपर से ही अपने कड़े लंड पर रक्ख दिया। मेरे लंड पर हाथ रखते ही वे थोड़ा चिहुंकी, लेकिन मैंने उनका हाथ कस के अपने लंड के ऊपर दबाया हुआ था। उस वक्त, गलियारे के अध उजियारे में उनकी आंखें मुझे घूर रही थी। जैसे वो, कुछ मुझ मे पढ़ना चाहती हों या यह देखने का प्रयास कर रही थी की मै कितना उनको पढ़ रहा हूँ। मैंने यह देखने के लिए की उनमे कितनी आग लगी है, लंड पर रक्खे उनके हाथ पर अपने हाथ का दबाव कम कर दिया। मेरे दबाव कम हो जाने के बाद भी उन्होंने अपना हाथ, मेरे लंड से हटाने की कोई कोशिश नहीं की। इस उम्र में अपने से दो दशक से ज्यादा छोटे जवान लंड के स्पंदन ने, उनके अंदर की स्त्री को कामोत्तेजित कर दिया था।
उनके हाथ की उंगलियां मेरे लंड के तनाव को नाप रही थी और साथ मे वे गर्दन घुमा घुमा कर पीछे ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी। वो अभी भी अपने बेटे देवब्रत के उठने के प्रति संशकित थी। अब मैंने उनके कंधे पर जरा जोर देकर उनको दीवार के सहारे ही चिपका दिया और उनके ओठो को चूमने लगा। मेरे एक हाथ अब उनकी भारी अधेड़ चूंचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही मसल रहा था और दूसरे हाथ से उनके चूतरो को साड़ी के ऊपर से सहला और दबा रहा लगा। मैंने जब एक बार फिर अपनी उंगलियों को ब्लाउज में घुसेड उनकी चुंचियो की नग्नता को स्पर्श करना चाहे तो फिर उन्होंने मना करते हुए फुफुसाय,"बेटा, अब जाने दो।"
मैंने कहा,"आपने आग लगा दी है, अब कैसे रुंकु? सच कहिए, आपको अच्छा लग रहा है?"
इस पर वो चुप हो गयी। मैंने उनकी चुप्पी देख, अपने हाथ को, उनके ब्लाउज़ के भीतर डाल कर, ब्रा में घुसेड़ कर दाहिनी चुंची को पकड़ लिया। जैसे ही मेरी ऊँगली से उनकी घुंडी को को सहला कर रगड़ा, उनके मुँह से सिसियाते हुए निकला,"बाबू न बाबू!" और पहली बार उन्होंने अपना पूरा शरीर मेरे ऊपर निढाल छोड़ दिया। मै तो इस खूबसूरत बूढी स्त्री को समर्पित होता देख, बावरा हो गया था। मैं जब उनकी चूचियों को दबा रहा था तब मैंने अपनी पैन्ट की ज़िप को खोल कर, अपना लंड बाहर निकल लिया और उनका हाथ पकड़ कर अपने गर्म फंफनाए लंड पर रक्ख दिया। उनके अधेड़ हाथ को जैसे ही इस मस्त जवान लंड का स्पर्श मिला उनके मुह से उईईई की आवाज निकल पड़ी!
मेरा कड़कड़ाते लंड का स्पर्श पाते ही उनकी भावभंगिमा बदल गई। उन्होंने मेरे लंड को कस के उन्होंने मुट्ठी में दबा लिया। मैंने उनको वासना में मादक होते देख कर उनकी साड़ी उठा, अंदर हाथ डालने की कोशिश की तो उन्होंने मेरे लंड से हाथ हटा लिया और साड़ी उठाते हाथ को रोक, बंग्ला में कुछ कहा। मेरा उसका भावार्थ समझ गया था, वो मुझे साड़ी के अंदर छूने को मना कर रही थी। वो स्त्रियोचित लज्जावश मुझे रोक रही थी लेकिन मेरे अंदर तो काम इतना प्रवेश कर चुका था कि मेरे सारी इंद्रियों पर चुदाई सवार थी। उनका रुक रुक कर रोकना मेरे अंदर झुंझलाहट पैदा कर रहा था। हालांकि मैं यह जनता था कि इस पतले से गलियारे से 20/25 कदम पर उनका 27 वर्ष का जवान बेटा सो रहा है और यह उचित स्थान नही है, जहां पहली बार, इससे ज्यादा दैहिक स्वतंत्रता ली जाए। मैंने उनकी चुचियो को कसके मसलते हुए कहा,"बाहर अँधेरा है, शेड के नीचे चलते है।"
उन्होंने फिर सर हिलाया और कहा,"यह कैसे होगा? नहीं सर जी, आप अब घर जाओ।"
मैंने उस पर कहा," इस रात के सन्नाटे में, 11 बजे शेड में कोई नहीं देखेगा। उसके बाद मै चला जाऊँगा।"
यह कह कर मैंने दरवाजा खोला और बाहर इधर उधर देख, उनको हाथों से पकड़ बाहर ले आया। बाहर एक 15 वाट का बल्ब आगे गेट पर जल रहा था और पूरी कॉलोनी में सन्नाटा था। एक बार फिर चारो तरफ देखने के बाद, मै उनको शेड के नीचे ले आया, जहाँ पर घर के पुराने सामान रक्खे हुए थे। वहां आकर मैंने देखा की वो अभी भी बहुत घबड़ाई हुई थी और बार बार इधर उधर देख रही थी। मै वही फर्श पर रक्खे हुए पुआल पर बैठ गया और उनका हाथ खीच कर नीचे बैठा लिया। अब हम ऐसी जगह थे, जहाँ से कोई भी हमें नहीं देख सकता था और यदि कोई बाहर सड़क पर आता जाता भी तो वह हमें नही दिख सकता था। मैंने उनको पहले इत्मीनान से बैठने दिया और फिर उनको दिलासा देने के लिए उनकी पीठ सहलाने लगा। मेरे ऐसा करने से वे थोड़ी शांत हुयी और इस दौरान मेरा लंड जो अब भी पैंट के बाहर था वह मुरझा गया था।
मुझे उस रात के अँधेरे में उनकी भारी सांसे सुनाई दे रही थी। मेरे खुद के ह्रदय की धड़कन भी बहुत तेज चल रही थी। में जब यहां खाना खाने आया था तब मैंने सोचा भी नहीं था की मै इस तरह, चोरो की तरह, एक कोने में कामपीड़ित अवस्था में बैठूंगा। लेकिन यह चुदाई की लालसा एक ऐसा कामोन्माद है की कब और कैसे चढ़ जाये, कोई नहीं जानता है। मुझे अपने से 20/25 वर्ष बड़ी एक बूढी महिला, स्त्री के रूप में अच्छी लगी, वही एक अचरज था लेकिन मै उस पर आसक्त हो, उसे चोदने में दुस्साहसी हो रहा हूँ वह बड़ी विचित्र बात थी। मुझे कही न कही उनकी आँखों से झांकती, उनके अंदर की छुपी हुई स्त्री ने मुझे इतना निर्भय बना दिया था की मैं अपने कामातुर प्रणय को उनसे अभिव्यक्त कर दिया था। उस दुस्साहस का ही परिणाम था वह कुंदन सी दमकती प्रौढा मेरे साथ शेड के नीचे, बगल में मेरी स्त्री बनी बैठी थी।
मेरे हाथ उनकी पीठ सहला रहे थे और वे भी मेरे स्पर्श की पूरी अनुभूति ले रही थी। उनको शांत देख कर, मैंने उनके कंधे पर अपना दाहिना हाथ रख दिया और उनको गले लगा लिया। मैं अपने बाएं हाथ से उनका चेहरा उठाया और उनके ओठो को चूमने लगा। इस बार उनके ओंठ मेरे ओंठो से लड़ नहीं रहे थे। वो मेरे चुम्बन को स्वीकार कर रही थी और मेरे ओठो को उन्हें चूसने दे रही थी। मैं उनके इस तरह से चुम्बन के स्वीकार करने से आश्वस्त हो गया की वे, मैं जो आगे करने जारहा हूँ उसके लिए मानसिक रूप से तैयार होगई है। मैंने अपने बाये हाथ से उनके ब्लाउस के ऊपर से पहले उनकी चूचियो को सहलाया और फिर उंगलियो से उनके आगे के हुक खोल दिए। अँधेरे में उनकी चूचियाँ सफ़ेद ब्रा के अंदर, अध छुपी अध खुली स्वछंद होगई थी। मेरे हाथ अब तेज़ हरकत में आगये। पहले तो ब्रा के अंदर घूस कर मैंने उनकी बड़ी बड़ी चुंचियो को जो उम्र की मार पर थोड़े लटके थे उनको कब्जे में लेकर मसला और फिर बिना समय गवाए पीछे से मैने उनका ब्रा खुलने लगा।
मेरे ब्रा खोलने पर वो फिर बोल पड़ी," इसे न उतारो बेटा, जगह ठीक नहीं है।"
किंतु यह कहते हुए उन्होंने खुद ही ब्रा ऊपर कर के अपनी चूचियों को नंगा कर दिया। नंगी चूचियो को देख कर तो मै फिर उत्तेजित होगया। मेरा लंड जो छोटा हो गया था, वह भी उन नग्न चुंचियो के आतिथ्य में कड़ा हो खड़ा होने लगा। मैंने अपना मुँह उनकी चूचियो पर लगा दिया और उनको चूमने और चूसने लगा। मै एक चूची और घुंडी को चूमता और चूसता तो दूसरी को हथेली से रगड़ता और घुंडी को उंगलियों के बीच लेकर दबाता। मेरे चूसने और घुंडीयों से खिलवाड़ पर उनमें भी उन्मत्तता छाने लगी। उनकी चुंचियो में कसाव उठने लगा और घुंडीया जो निर्जीव लग रही थी, वो भी कड़ी हो गई। अब उन्होंने पीछे दीवाल पर अपनी पीठ लगा कर टेक लगा दी थी और मै उनकी चूचियो से खुल के खेल रहा था। यह सब शायद 4/5 मिनट चला होगा की मैंने उनसे कान में कहा,"बंगालिन जादूगरनी होती है, यह मैंने सुना था, लेकिन आज तो आपने तो मेरे हवास ही उड़ा दिए।"
इस पर, उनके मुँह से से सिर्फ एक हलकी सी आह निकली, मैंने फिर कहा," लौड़ा पकड़ लो, आपके लिए बावला हो रहा है।"
उस पर उन्होंने धीरे से कहा," सर जी, बेटा जी, अब जाने दो। कही पकड़ गए तो न मै बेटे को मुँह दिखा पाऊँगी न आपकी इज़्ज़त बचेगी। "
उनकी बात बिलकुल सही थी लेकिन मैं कुछ समझने की स्थिति में नही था। मैंने उनकी चुंची चूसते हुए ही, उनको पुआल पर गिराने के लिए, हल्का सा धक्का दिया और वे निढाल सी, पुवाल बार पसर गयी। मैंने अब उनको पूरी बाहो में ले लिया और अपनी जांघ को उनकी जांघो पर चढ़ा दिया। मेरा फ़ुफ़कारता हुआ लंड अब साडी के ऊपर से ही उनको रगड़ने लगा था। मैंने लंड रगड़ते हुए उनसे कान में कहा,"अच्छा लग रहा है? मजा आरहा है?"
उनके मुँह से एक सकपकाती हुई आवाज निकली और उनका बदन कसमसा गया। फिर उन्होंने कहा, "बाबू ,जो करना है जल्दी करो।"
मै समझ गया था की अब मैंने ज्यादा देर की तो वे घबड़ा कर मना कर सकती है और पकडे जाने का खतरा भी ज्यादा बढ़ जायेगा। मै अपने ओठ उनके कान के पास लगाया और उनके कान चूसते हुए बोला,"आपका भी मन कर रहा है, जरा लौड़े को भी पुचकार दो!'
यह कह के मैंने उनकी हथेली पकड़नी चाही लेकिन उससे पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में बन्द कर लिया था। जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर दबाया , उनके मुह से "उम्म्म" की आवाज निकल पड़ी और वे बिना मेरे कुछ कहे, मेरे लंड को सहलाने लगी। मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंघुठे से रगड़ने लगी। उनकी इस हरकत से मेरे अंदर तो बिजली दौड़ पड़ी और उनको मैंने कस के जकड कर, उनकी चूचियों, उनके पेट, उनकी गर्दन को चूमने लगा। मेरे चूमने की रफ़्तार के साथ साथ वे भी मेरे लंड को कस के हिलाने लगी। वो मेरे लंड को इस तेजी से हिला रही थी कि मुझे लगा की कहीं इनका इरादा मुझे मुट्ठ मार कर झाड़ देने का तो नही है? मैंने उनको रोकने की जगह, हाथ बढ़ा कर उनकी साड़ी ऊपर खीच दी। जैसे ही मैंने ऐसा किया उन्होंने लंड छोड़ मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली,"बाबू बेटा जी, अब यह मत करो। आज छोड़ दो फिर कभी। जगह ठीक नही है, खतरा है।"
उनकी बात सुनकर मै अंदर ही अंदर मुस्करा दिया। यह पहली बार था जब वह खुद ही मुझसे फिर से मिलने के लिए कह रही थी। मै जानता था जिस जगह और जिस हालत में हम लोग है वो बिलकुल भी सही नहीं है। उनका भी मन डोल चुका था और अब खुद चुदासी हो चुकी थी। वह यही चाहती थी कि जब चुदना ही है तो कायदे से, चुदा जाये। लेकिन मेरे अंदर कामुक पुरुष सब जानते हुए भी कल पर कुछ नहीं छोड़ना चाहता था। मैंने साड़ी ऊंची करते हुए कहा,"अब चूत तो छूने दो, देंखे तो आपकी बंगाली चूत कैसी है। मेरा लंड तो देख लिया मुझे भी देखने दीजिये।"
इसके साथ साड़ी, पेटीकोट समेत ऊपर तक उठ दी। उनकी नंगी जांघे दिखने लगी थी। मै जब उन पर हाथ फिराते हुए, अपने हाथ धीरे धीरे ऊपर ले जाने लगा, उनके पैर कांप रहे थे। उनका कंपन मुझे महसूस हो रहा था। यह कंपन कामोत्तजना का भी था और इस प्रकार बाहर अँधेरे में इस तरह लथ पथ पड़े होने का भी था। आखिर मेरी हथेली उनकी जांघो के बीच पहुँच गयी और घनेरे बालो के बीच वो जादुई चूत मेरी उंगलियो से घनघना उठी। मै उनकी चूत को इतने आहिस्ते से सहलाया जैसे कोई नयी नवेली चिकनी चूत हो। मै इतना अभिभूत था की उंगलियों से उनकी चूत के घनियारे बालो को ऐसे सहला रहा था जैसे मैं चूत को कंघी कर रहा हूँ। मेरी ऊँगली ने जब उनकी चूत को फांको को अलग कर अंदर उनकी चूत में प्रवेश किया तो वो एक दम से मेरी बाहों में धनुषाकार टेढ़ी हो गयी और फुसफुसाने लगी,"उई बाबू उई!आआआआअहह्ह्ह!"
मै उनकी उखड़ी बैचेन आवाजो से और उत्तेजित हो गया और झट सर उठा उनकी जांघो के बीच घुसेड़ दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ की वो भी नहीं समझ पायी यह क्या हुआ। जब उनको मेरी नाक और मेरी जीभ उनकी चूत पर महसूस हुयी तो न चाहते हुए उनके मुँह से ,"हाय!!! छी छी!!!! गन्दा गन्दा!" निकल पड़ा। उनके दोनों हाथ मेरी सर पर गये और मुझे अपनी चूत से हटाने लगी। लेकिन मैंने उनकी एक भी नहीं सुनी। मैं तो चूत का उन्मत्त प्रेमी हूँ, उसकी महक, उसके स्वाद और उसके स्पंदन का दीवाना हूँ। मैंने उनकी जांघे थोड़ी और चौड़ा कर उनकी झांटो सहित चूत को अपने ओठो में दबोच लिया। मेरी जीभ पर जैसे ही चूत का स्वाद चढ़ा, मै उसकी चूत की फांको को कस के चूसने लगा। मेरी जीभ जब उनकी चूत के अंदर तक गई तो तो वे छटपटाने लगी। उनका विरोध इस लिए था की कभी उनकी चूत किसी ने चूसी नहीं थी। चूत चूसना, कामक्रीड़ा में महत्वपूर्ण है यह मालूम ही नही था। उनके लिए यह गन्दा काम था। उनको चूत चुसवाने में शर्म भी आरही थी, क्यों की मेरी जीभ को पता चल चूका था की उनकी बरसो से सूखी चूत, अंदर से गरम और लसलसी हो गयी थी। मै अपनी जीभ से ही उनकी चूत को चोदने लगा था। जैसे जैसे मेरी जीभ, उनकी चूत अंदर बाहर होती, उनकी जांघे ढीली पड़नी और फैलनी शुरू हो गई थी। उनको अपनी चूत पर इस नए प्रहार का अंजाना सुख मिल रहा था और वे अपनी सुधबुध खोती जारही थी।
बरसो से सूखी चूत पाकर मै निहाल होगया था। उस वक्त मै कहाँ, किस हाल , कैसे और किसके साथ हूँ, यह मेरे चित्त से बिलकुल ही उतर गया था। मेरी जीभ तेजी से घनी झांटो वाली चूत के अंदर बाहर हो रही थी और बीच बीच मै उनकी भग्नाशा को ओठो के बीच लेकर कर चूसते हुए कस के मसल दे रहा था। उनकी भग्नाशा बड़ी थी, जो मेरे ओठ और जीभ के आक्रमण से कड़ी हो कर चूत की फलको से ऊपर निकल आई थी। अपनी चूत पर मेरे चुंबन और जीभ से की गई चुदाई के कारण, वे पूर्ण समर्पण किये, अब पड़ी हुयी थी। मुझे सिर्फ उनकी गर्म सांसे और बीच बीच में घुटी हुयी आहे ही सुनाई पड़ रही थी। तभी बाहर सड़क पर कोई कुत्ता भौका और हम दोनों ही अपनी अपनी तन्द्रा से जाग पड़े। वे हड़बड़ा कर, अपने पैर भीचते हुए उठने लगी और मै भी, इस अचानक जांघो के दबाव से, उनकी चूत से मुँह हटा कर, अपना सर ऊपर कर के अँधेरे में सड़क की तरफ देखने लगा था। जब इत्मीनान हो गया की कोई नहीं है, तब मैंने उनकी तरफ सर घुमाया तो देखा वो उठी बैठी थी, ब्रा में चुचिया कैद हो चुकी थी और साडी ने भी उनकी चूत को ढक लिया था। हकीकत में मेरे लंड भी अपना कड़ापन भूल कर ज़िप के बाहर झूल रहा था।
मैंने जैसे ही उनको अपने पास खीचा , वो कांपती हुयी आवाज में धीरे से बोली," सर जी, बेटा जी, रात बहुत हो गयी है, अब आप जाओ. प्लीज!"
उनकी बात बिलकुल सत्य थी लेकिन शराब के कारण चुदाई का भूत इस तरह मुझ पर चढ़ा था की न मुझे उनको छोड़ते बन रहा था न ही रुकते बन रहा था। मैंने बहुत दारुण स्वर से उनसे कहा," जानता हूँ, लेकिन सब्र नहीं होता। आप का मन न कर रहा हो तो, मैं चला जाता हूँ।"
उसके बाद मै उनका हाथ पकड़ कर जवाब का इंतज़ार करने लगा। वे चुप चाप उस अँधेरे में सर झुकाये वही पुआल मै बैठी रही, उनकी साँसे धौकनी की तरह चल रही थी। उनको चुप देख कर मैंने उनके गालो का चुंबन लेते हुए बोला," बोलिए." और अपने लंड पर उनका हाथ रक्ख दिया। उनके हाथ का स्पर्श पाते ही मेरा लंड एक दम से उचक के खड़ा होने लगा और उसके साथ ही मैंने अपने लंड को उनकी मुट्ठी में दबते हुए पाया। वो मेरे लंड को कस के दबा रही थी और उसको सहलाने लगी थी। उनके हाथो की गर्मी से मेरा लंड फिर से कड़ा हो गया और उसके साथ ही मुझे उनका उत्तर भी मिल गया था। मैंने अपनी दोनों हथेलियों से उनके चेहरे को पकड़ा कर ऊपर किया और उनको लंबा चुंबन दिया। उनके ओठ अपने आप खुल गए और मेरी जीभ, जो उनकी ही चूत के रस में नहायी हुयी थी, उनके मुँह के अंदर चली गई।
फिर मैंने अपने दाहिने हाथ को नीचे कर के उनके ब्लाउस के हुक खोल दिए और साथ में उनकी ब्रा भी उनके बदन से अलग कर दी। अब उनकी चूचियाँ पूरी तरह नंगी मुझसे चिपक गई थी। फिर मेरे एक हलके से इशारे पर वे खुद ही पुआल पर लेट गई और मैंने आनन फानन में अपनी बुशर्ट , बनियान, पेंट और अंडरवियर उतार दी। अब मै पूरी तरह मदार जात नंगा था। मै नंगे ही उन पर गिर पड़ा और उनकी चूचियों को चूमने चाटने लगा। मेरी जांघो ने उनको अपनी गिरिफ्त में लिया था और उनके हाथ मेरे पीठ कमर और जांघो को सहलाने लगे थे। अँधेरे में उनके हाथ अब भी शर्म के मारे, मेरे लंड के आस पास से निकल जारहे थे लेकिन उसको पकड़ कर अपनी चूत में डालने का हौसला नहीं कर रही थी। उनको बरसो के बाद, किसी नंगे शरीर से जकडा था। मेरे ऐसे जवान नंगे शरीर को उनसे लिप्त पाकर, वे मेरे ही शरीर का पूरा सुख लेना चाहती थी। अब मैंने उनकी साडी ऊपर करने के बजाये , उसकी गांठ ही खोल दी। मैंने साडी जब खींची तो उन्होंने ने जरा भी विरोध नहीं किया, वे अब खुद भी कामाग्नि में जल उठी थी। उनको भी अब जगह और समय का कोई विचार नहीं रह गया था। उनका पेटीकोट भी एक झटके में खुल गया और उसको भी मैंने उनसे अलग कर दिया। अब हम दोनों ही नंगे थे और एक दूसरे से बुरी तरह चिपक हुए थे। मै उनको हर जगह चुम रहा था और मेरी हाथ उनकी चूत और चूतड़ों को सहला और दबा रहे थे। मेरी उत्तेजना तो इस सीमा तक बढ़ गई थी की मुझे इस बात का डर लगने लगा था की कही मै उनकी जांघो से लंड रगड़ते रगड़ते कही झड़ न जाऊ। यह सोच कर मै पलट कर उनके ऊपर आगया और नीचे की तरफ चला गया। वो भी समझ गई थी की जिस के लिए, इतने समय से अंतर्द्वंद चल रहा था, वह घडी आगयी है। उन्होंने अपने पैर उठा, अपने आप फैला दिए। जैसे अब वे निमंत्रण दे रही हों की आओ, बड़ी मेहनत कर ली, अब चोद लो मुझे आकर।
मैंने उनके पैरो को थोड़ा और ऊपर किया और अपना लंड उनकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। उनकी चूत लसलसायी हुयी थी। मेरे सुपाडे का स्पर्श पाकर वो एक दम से विहल हो गई और उनके मुँह से एक मादकता वाली कराहट निकल पड़ी। मुझे तो और इस तरह उनकी चूत को सुपाडे से रगड़ने की इच्छा थी लेकिन लंड इतने समय से उबला पड़ा था की मुझे खुद अपने पर ही विश्वास नहीं था की मेरा लंड कितने समय तक मेरा साथ दे सकेगा। वाकई यह कामक्रीड़ा का ही प्रताप था की एक करीब 55 वर्ष की हसीन बुढ़िया, मेरे 33 वर्ष के जवान लंड का मान मर्दन कर रही थी।
मैंने और देरी न कर के अपने लंड पर धूक लगाया और उनकी चूत पर लंड रख कर एक कसके धक्का मारा। मेरे लंड के उनके चूत में घुसते ही उनकी कमर कसके हिली और उनके मुँह से हलकी सी चीख निकल पड़ी। उनके मुँह से,"अरी बाबा!' निकला और तेजी से बांग्ला में उन्होंने कुछ बोला। उनके स्वर में जहां वर्षों बाद बिना चुदी चूत में 6 इंच के भन्नाए लंड के घुसने की कराहट थी वही उनकी अनभ्यस्त चूत में जवान लंड के आगमन का कामसुख भी था। मेरा लंड एक धक्के में ही आधे से ज्यादा उनकी चूत में घुस गया था। उनकी चूत बुजुर्ग जरूर थी लेकिन कई बरसो से अनचुदी होने के कारण कसाव लिए हुई थी। मैंने दूसरा धक्का और कस के मारा और उनकी चूत में मेरा पूरा लंड समां गया। मेरे दूसरे धक्के पर वो कसमसा उठी और उनके मुँह से फिर से दबी हुई आवाज़ निकली। मैंने तुरंत उनके मुँह को अपने ओठो से बंद कर दिया। अँधेरे सन्नाटे में हलकी आवाज भी दूर तक जाती है और मुझे डर था की कही किसी को आहट न हो जाये। मैं उनकी चूत में लंड डाले पड़ा रहा और उनसे फुसफुसते हुए कहा,"आवाज मत करिये।" उन्होंने सर हिलाकर बताया की वो समझ रही है।
अब मैंने उनकी चूत को धीरे धीरे चोदने लगा। लंड ने पूरी तरह उनकी चूत में अपना रास्ता बना लिया था और चूत की गर्माहट उसको महसूस होने लगी थी। उनकी चूत को मेरे लंड से मिल रही गर्मी, उन पर भी असर कर रही थी। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं 6/7 धीरे धक्के मारने के बाद एक कस के धक्का मार कर लंड को चूत की जड़ तक पंहुचा दे रहा था। जब मै कसके धक्का मारता तब उनकी कमर हिल जाती थी। अब मैंने उनके पैरो को और उठा दिया और अब लंड सीधे उनकी चूत को चोट कर रहा था। 4/5 मिनट उनको इस तरह चोदने के बाद, मै उनकी चूचियों को भी मसलने लगा और वो भी अब अपनी कमर को उठा कर मेरे लंड को अपने अंदर पूरा लेने लगी थी। उस सन्नाटे में पुवाल के ऊपर मेरे लंड के हर धक्के पर अब धम्म धम्म की आवाज आने लगी थी। इधर मेरा लंड उनकी चूत को अब मस्त होकर चोद रहा था और मेरे हाथ उनकी चूचियो, उनकी घुंडीयों को आज़ादी से मसल और दबा रहे थे। मेरे ओठ कभी उनके गर्दन को चूमते कभी उनके गालो को और कभी उनकी चूची को चूस रहे थे। फिर तभी उन्होंने अपनी दोनों बाँहों से मुझे कस के पकड़ लिया और अपनी हथेली से मेरी पीठ और कमर सहलाने लगी। यह उन्होंने पहली बार इस तरह से मेरे साथ किया था। उनके इस तरह के स्पर्श से मेरे शरीर में एक सनसनी सी फ़ैल गयी थी। उनको चुदाई में आनंद आने लगा था। उनको चुदने के सुख की अनुभूति ने जाग्रत कर दिया था। वे इसी सुख और जागरण से अभिभूत मुझे सहला कर, अनुग्रहित होने के भाव को मुझे समर्पित कर रही थी।
मै उनके कान के पास जाकर बोला," मजा आरहा है? बहुत मस्त हो आप, सारी जवान औरते बेकार है। जो आपको चोदने में मजा आ रहा है वो अभी तक नहीं मिला।"
यह सुनकर, वे अपना मुँह उठा कर मेरे से गले लग गयी और अपने पैरो को मेरे कमर पर चढ़ा दिया। उन्होंने मुझे अपने से और चिपका लिया और मेरे गालों और ओंठो पर ताबड़तोड़ चुम्बन देने लगी। उनके मुँह से 'उम्म''उम्म' की आवाज निकल रही थी। उन्होंने फिर अपने पैर से मेरे चूतड़ों की सहल दिया जिस पर मै पगला ही गया और तेजी से उनको चोदने लगा मै अब अंतिम पड़ाव पर पहुंचने वाला था, इसलिए मैंने उनसे कहा,''सुनो घोड़ी बन जाओ, पीछे से चोदते है।''
तब उन्होंने सर हिलाते हुए धीरे से कहा,' बेटा, नही, अभी ऐसे ही कर के जाओ, बाद में जैसा चाहना कर लेना।"
उनकी बात सुन कर मैंने ताबड़ तोड़ 5/6 धक्के मारे और कहा,''ठीक है, लेकिन पहले बताओ चुदने में मजा आया?''
उन्होंने सर हिलाया लेकिन मैंने उनके कान को चूसते हुए कहा,"ऐसे नहीं, बोलिये।"
इसपर उन्होंने नीचे से कमर चलते हुए कहा,"बेटा क्या कहे, पाप तो हो ही गया है। अपने बेटे जैसे से करवाऊँगी नहीं सोचा था। मर्द हो।" मै उनकी बात सुनकर और उत्तेजित हो गया और लगने लगा की अब कभी भी झड़ जाऊँगा। मैंने ध्यान बटाने के लिए उनसे कामांध कहा,"अब कब फिर चुदवाओगी? तुमको कुतिया बनाकर चोदना है।"
इस पर "आह" "आह" कहते हुए उन्होंने कहा,"बाबू मौका मिलेगा तो बेटे से कुत्ता बन जाना।"
उनका मुझे इस बार बेटा कहना कही मेरे लंड को हिला दिया और लगा कि अब नही रोक पाऊंगा। इसी के साथ मै उनकी चूत में कस कस के धक्के मारने लगा। मैंने थोड़े ही धक्के मारे होंगे की मेरे लंड से पिचकारी छूट गयी और मेरा गरम गरम लावा, लंड से निकल कर उनकी चूत में समां गया।
मेरे झड़ते ही मेरे वीर्य की गर्माहट से वे निहाल हो गई और कस कस के अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरे लंड को ही चोदने लगी। मै झड़ने के बाद भी उनके बदन को कसके लिपटे हुए धक्के मार रहा था। धक्के मारते मारते हुए ही मेरा लंड अपने वीर्य और उनकी चूत के पानी से लिपटे हुये, उनकी चूत से बाहर निकल कर, उनकी झांटो और झांघो में सिमट गया। मै बुरी तरह हांफ रहा था और वो भी बेसुध बेहाल, बाल तितर बितर हुए, पुवाल में पड़ी हुयी थी। मै उनके ऊपर लेटा ही रहा। थक कर बेहाल था आँख भी बंद हो रही थी। मुझे चेतना तब आई जब उन्होंने मुझे अपने ऊपर से धकेल कर हटाया। मै उनके ऊपर से उठा और अँधेरे में उनको निहारने लगा। वे मुझे घूरता देख कर, अपने कपडे उठा, उठ खड़ी हुई। बड़ा ही खूबसूरत मंजर था, अँधेरे में उनके नग्न शरीर का सिर्फ एहसास भर हो रहा था, बाल खुले हुये थे, हाथ में कपडे लिए साडी लपेटने की कोशिश कर रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनको वैसे ही बाहो में ले कर और चूम लिया। उन्होंने अपना बायां हाथ मेरे सर पर रख कर, मेरे बालो को सहलाते हुए कहा,"बाबा! अब तो बस करो! जाओ!"
मैंने उनकी चूची दबाते हुए कहा ," मन से बताइये, कब फिर मिलेंगी और चोदना है ?"
इस पर उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया और कहा, '"शीघ्र।"
इसके साथ ही मैंने भी जल्दी से कपडे पहने और उनके अंदर जाने के बाद, अंधियारे में छुपता छुपाता अपने घर पहुंच चला आया।
वे करीब दो महीने वहां रही थी और इस बीच करीब 20 बार मैंने उनको चोदा था। देवब्रत जब भी अपनी मित्र मंडली या जहां काम चल रहा था, वहां फंसा होता तो फोन पर बात हो जाती। मैं रात को ही जाता था क्योंकि दिन में मेरे लिए देवब्रत के यहां जाना संभव नही था। लेकिन एकांत होने पर मैं उन्हें अपने ही घर बुलवा लेता था। हमारी पहली चुदाई के बाद से वे खुल गयी थी और उन्होंने ने मुझ से हर तरीके से चुदवाया। आज मै खुद 60 के ऊपर हो चुका हूँ लेकिन आज भी वह खूबसूरत 55 वर्षीय प्रौढ़ बंगालिन की याद मुझे कामातुर कर जाती है।
मैंने उनको कनखियो से देखा, वो असहज सी, सिमटी हुई, धीरे धीरे मछली चावल खा रही थी। मुझे उनको देख कर लग रहा था की वे भी हिली हुई है। मुझे इसमे कोई संदेह नही रह गया था की अपने बेटे के उम्र के व्यक्ति की आंखों और उसके मन को उन्होंने पढ़ लिया था। उनके चेहरे के अभिप्राय से लग रहा था कि वे बेहद तनाव में है। मैं उनकी यह उलझन समझ सकता था क्यों कि जो मेरे से स्पंदन उन्हें मिल रहे थे, वह तो उन्होंने कभी उन्होंने सोंचा भी नहीं होगा। मैं, उस समय कमरे में छा गये कृतिम सन्नाटे को तोड़ने के लिए बराबर खाने की प्रशंसा करने लगा और आखरी कौर लेते वक्त, मेरी जबान फिर फिसल गई। मेरे मुँह से निकला,"मैंने जीवन में इतना शानदार खाना, इतने शानदार हाथो से बना हुआ कभी नहीं खाया, बहुत खूबसूरत।" और उनको देखते हुए बड़ी मादकता से मुस्करा दिया। उन्होंने मेरी यह अतिरेकता से भरी प्रशंसा को सुनकर पहले तो मुझे घूरा और फिर, "धत!" कह कर, लजाती हुई अंदर चली गई।
मैंने खाना खाने के बाद, अंदर वाश बेसिन में हाथ धोये और उनकी दी गई तौलिया से हाथ पोछने के बाद कहा,"अब मै चलता हूँ, देवब्रत को कुछ मत कहियेगा।" उन्होंने सर हिला कर, इसकी मौन सहमति दी और मेरे पीछे पीछे, मुझे बाहर मुझे छोड़ने के लिए चली आई। मैं गलियारे से होते हुए दरवाजे तक पहुंचा और उसकी सिटकनी खोलने से पहले, उनको धन्यवाद देने के लिए, अचानक पीछे मुड़ गया। मेरे अचानक पीछे की तरफ के मुड़ने को वे देख नहीं पाई और मुझसे टकरा गई।
मै लड़खड़ा गया और सँभलने के लिए उनको पकड़ लिया। मेरे हाथ उनके कंधो पर पड़े थे। मेरा उनके कंधे को छूना मेरे अंदर एक बवंडर ले आया। एक साथ मेरे दिमाग में सैकड़ो तूफान उठ गए। उस वक्त ऐसा लगा मै डूबने वाला हूँ और उस सहारे को मैं अपने अंदर समेट लूँ। अपने को सँभालते सँभालते, मेरी बाँहों ने उनका जकड लिया था। जो हुआ वह नियति प्रधान था, वह एक दैवयोग था। मैंने जब उनको अपनी बाहों में पाया तब मेरा उनके प्रति आकर्षण, आसक्ति, मेरे आप से बाहर हो चुके थे। मेरा अचानक लड़खड़ा कर, संभालने के लिए पकड़ना और उनका मेरी बाहों में जकड़ जाने वे बेहद घबड़ा गयी। उनके मुँह से हड़बड़ाते हुये बंग्ला में कुछ निकला और फिर कहा," सम्भालिये! क्या कर रहे है सर? छोड़िये।"
मैंने नशे में उनकी बात को अनसुनी कर, उनको अपनी बाँहों में और कसके समेटते हुए, आहिस्ता से लड़खड़ाती जबान से कहा,"नहीं बर्दाश्त कर पाया। आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो।"
"क्या बाबा क्या बाबा!" लगभग चिल्लाते हुए उन्होंने कहा।
मेरे तब तक सारे ज्ञान चक्षु बंद हो चुके थे। मैंने उनको बाहों में कस के लेते हुए, अपने ओठ उनके ओठ पर रख दिए। मेरे ओठो को अपने ओठो पर पाकर वो मुझे धक्का देकर, मुझको अलग करने की कोशिश करने लगी और पीछे मुंह मोड़ कर ड्राइंग रूम की तरफ देखने लगी। मैंने उनसे बड़ी कामुक विहल स्वर में कहा, "कुछ नहीं होगा, प्लीज आप बहुत सुन्दर हो, मै अब अपने आप पर काबू नहीं रख पा रहा हूँ।"
मेरी बात सुन कर उन्होंने मेरी तरफ लॉबी के अंधियारे में घूर कर देखा, उनकी आँखो में आंसू दिख रहे थे और चेहरे पर घबड़ाहट थी। फिर उन्होंने कातर स्वर में कहा,"सर जी, बेटे के बराबर हो! छोड़ दीजिये! यह ठीक नहीं है!!"
यह सुन कर मैंने कहा,"आप माँ कहाँ लगती है!! मेरे लिए संपूर्ण स्त्री है। मुझे मालूम है की आपको मै भी पसंद हूँ।"
यह कहते हुए मै अपना शरीर, उनसे रगड़ने लगा। मेरा कामांध लंड उनकी जांघो को साडी के ऊपर से दबाने लगा। वो बारबार ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी लेकिन कुछ कह नही रही थी। मुझे लगने लगा था कि उनका विरोध तो है लेकिन वह विरोध ऐसा नहीं था की मुझे उन्हें बाँहों में जकड़ने में कोई जबरदस्ती करनी पड़ रही थी। एक तरफ मै अपना लंड उसकी जांघो से रगड़ रहा था और दूसरी तरफ मेरे ओठ उनके ओठो, गालो और आँखों को चूमे जा रहे थे।मेरा बायां हाथ उनकी पीठ को ऐसा सहला रहा था जैसे की मैं उन्हें आश्वस्त कर रहा हूँ की सब ठीक है, घबड़ाने की कोई बात नहीं है।
मेरे तीन तरफ़ा प्रणय निवेदन से उनके शरीर में तनाव जहां बढ़ रहा था वही मेरी बाहों में उनका शरीर शिथिल हो रहा था। उन्होंने फिर धीरे से, कांपती हुई आवाज में कहा," सर! बहुत गलत हो जायेगा। बेटा बगल में ही सो रहा है। उसने कही कुछ देख सुन लिया तो इस उम्र में मुंह दिखने लायक नहीं रहूंगी!"
मुझे उनकी बात सुन कर इत्मीनान हुआ की मेरी वासना से ओतप्रोत उनका स्पर्श, उनकी अंदर की स्त्री को स्पर्श कर रहा है। उनको मेरा आलिंगन, मेरा चुम्बन और मेरे लंड की व्यग्रता, उनको भी अच्छी लग रही है लेकिन इसके साथ वह जो कह रही थी वह भी सही था। मैंने उनकी बात को सुन कर, उनको अपने सीने से चिपका लिया और उनकी छातियाँ मेरे सीने से आके चिपक गयी। मैंने उनके माथे को चूमते हुये, अपना दायाँ हाथ उनके ब्लाउज के ऊपर से ही, उनकी दाहिनी चुंची पर रख दिया। उन्हें सहलाते हुए, मैंने फुसफुसाते हुए कहा,"वो सो रहा है, कल सुबह से पहले नहीं उठेगा, सब जगह सन्नाटा है।" और यह कहते हुए मैंने उनकी चुंची की घुंडी पकड़ी और अपने ओंठ को उनके ओंठो पर रख, उनके निचले ओंठ को दबाकर चूसने लगा।
मै उनके ओठ चूस रहा था और मेरा दायाँ हाथ उनकी चूची को ब्लाउज के ऊपर से ही मसल रहा था। इस वक्त वो मेरी बाँहों में असहाय पड़ी थी। मैंने जब अपना हाथ उनके ब्लाउज के अंदर डालने का प्रयास किया तो उन्होंने अपना मुंह मोड़, पीछे की तरफ देखा। जैसे वह आशवस्त होना चाहती थी की उनका लड़का अभी सो रहा है। जब वो पीछे की तरफ देख रही थी तो मैं थोड़ा घूम कर, उनके पीछे आगया और पीछे से उनको जकड लिया। अब मेरा लंड, साड़ी के ऊपर से उनके चूतड़ों को दबा रहा था। मेरे दोनों हाथ, ब्लाउज के ऊपर से उनकी भरी हुई चूचियों को दबा रहे थे। मेरे ओठ उनकी गर्दन, उनके बाल, उनके कानो को चूमे जा रहे थे। हम दोनों, इसी अवस्था में करीब 2/3 मिनिट खड़े रहे। मेरा शरीर उनके शरीर को रगड़े जा रहा था और उनकी साँसे गहरी होती जा रही थी। 55 वर्ष की प्रौढा के अंदर के स्त्रीत्व ने कामुकता का आलिंगन कर लिया था और उनका शरीर ढीला पड़, मेरे शरीर का सहारा ले रहा था।
मैंने उसके बाद, अपनी उंगलियां उनके ब्लाउज के अंदर घुसा कर, उनकी चुंचियो को पकड़ने का प्रयास किया तो उन्होंने सर हिला कर मना किया और मेरे से अलग होने की कोशिश करने लगी। यह देख कर मैंने उनको छोड़ दिया और उनका हाथ पकड़ कर पैन्ट के ऊपर से ही अपने कड़े लंड पर रक्ख दिया। मेरे लंड पर हाथ रखते ही वे थोड़ा चिहुंकी, लेकिन मैंने उनका हाथ कस के अपने लंड के ऊपर दबाया हुआ था। उस वक्त, गलियारे के अध उजियारे में उनकी आंखें मुझे घूर रही थी। जैसे वो, कुछ मुझ मे पढ़ना चाहती हों या यह देखने का प्रयास कर रही थी की मै कितना उनको पढ़ रहा हूँ। मैंने यह देखने के लिए की उनमे कितनी आग लगी है, लंड पर रक्खे उनके हाथ पर अपने हाथ का दबाव कम कर दिया। मेरे दबाव कम हो जाने के बाद भी उन्होंने अपना हाथ, मेरे लंड से हटाने की कोई कोशिश नहीं की। इस उम्र में अपने से दो दशक से ज्यादा छोटे जवान लंड के स्पंदन ने, उनके अंदर की स्त्री को कामोत्तेजित कर दिया था।
उनके हाथ की उंगलियां मेरे लंड के तनाव को नाप रही थी और साथ मे वे गर्दन घुमा घुमा कर पीछे ड्राइंगरूम की तरफ देख रही थी। वो अभी भी अपने बेटे देवब्रत के उठने के प्रति संशकित थी। अब मैंने उनके कंधे पर जरा जोर देकर उनको दीवार के सहारे ही चिपका दिया और उनके ओठो को चूमने लगा। मेरे एक हाथ अब उनकी भारी अधेड़ चूंचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही मसल रहा था और दूसरे हाथ से उनके चूतरो को साड़ी के ऊपर से सहला और दबा रहा लगा। मैंने जब एक बार फिर अपनी उंगलियों को ब्लाउज में घुसेड उनकी चुंचियो की नग्नता को स्पर्श करना चाहे तो फिर उन्होंने मना करते हुए फुफुसाय,"बेटा, अब जाने दो।"
मैंने कहा,"आपने आग लगा दी है, अब कैसे रुंकु? सच कहिए, आपको अच्छा लग रहा है?"
इस पर वो चुप हो गयी। मैंने उनकी चुप्पी देख, अपने हाथ को, उनके ब्लाउज़ के भीतर डाल कर, ब्रा में घुसेड़ कर दाहिनी चुंची को पकड़ लिया। जैसे ही मेरी ऊँगली से उनकी घुंडी को को सहला कर रगड़ा, उनके मुँह से सिसियाते हुए निकला,"बाबू न बाबू!" और पहली बार उन्होंने अपना पूरा शरीर मेरे ऊपर निढाल छोड़ दिया। मै तो इस खूबसूरत बूढी स्त्री को समर्पित होता देख, बावरा हो गया था। मैं जब उनकी चूचियों को दबा रहा था तब मैंने अपनी पैन्ट की ज़िप को खोल कर, अपना लंड बाहर निकल लिया और उनका हाथ पकड़ कर अपने गर्म फंफनाए लंड पर रक्ख दिया। उनके अधेड़ हाथ को जैसे ही इस मस्त जवान लंड का स्पर्श मिला उनके मुह से उईईई की आवाज निकल पड़ी!
मेरा कड़कड़ाते लंड का स्पर्श पाते ही उनकी भावभंगिमा बदल गई। उन्होंने मेरे लंड को कस के उन्होंने मुट्ठी में दबा लिया। मैंने उनको वासना में मादक होते देख कर उनकी साड़ी उठा, अंदर हाथ डालने की कोशिश की तो उन्होंने मेरे लंड से हाथ हटा लिया और साड़ी उठाते हाथ को रोक, बंग्ला में कुछ कहा। मेरा उसका भावार्थ समझ गया था, वो मुझे साड़ी के अंदर छूने को मना कर रही थी। वो स्त्रियोचित लज्जावश मुझे रोक रही थी लेकिन मेरे अंदर तो काम इतना प्रवेश कर चुका था कि मेरे सारी इंद्रियों पर चुदाई सवार थी। उनका रुक रुक कर रोकना मेरे अंदर झुंझलाहट पैदा कर रहा था। हालांकि मैं यह जनता था कि इस पतले से गलियारे से 20/25 कदम पर उनका 27 वर्ष का जवान बेटा सो रहा है और यह उचित स्थान नही है, जहां पहली बार, इससे ज्यादा दैहिक स्वतंत्रता ली जाए। मैंने उनकी चुचियो को कसके मसलते हुए कहा,"बाहर अँधेरा है, शेड के नीचे चलते है।"
उन्होंने फिर सर हिलाया और कहा,"यह कैसे होगा? नहीं सर जी, आप अब घर जाओ।"
मैंने उस पर कहा," इस रात के सन्नाटे में, 11 बजे शेड में कोई नहीं देखेगा। उसके बाद मै चला जाऊँगा।"
यह कह कर मैंने दरवाजा खोला और बाहर इधर उधर देख, उनको हाथों से पकड़ बाहर ले आया। बाहर एक 15 वाट का बल्ब आगे गेट पर जल रहा था और पूरी कॉलोनी में सन्नाटा था। एक बार फिर चारो तरफ देखने के बाद, मै उनको शेड के नीचे ले आया, जहाँ पर घर के पुराने सामान रक्खे हुए थे। वहां आकर मैंने देखा की वो अभी भी बहुत घबड़ाई हुई थी और बार बार इधर उधर देख रही थी। मै वही फर्श पर रक्खे हुए पुआल पर बैठ गया और उनका हाथ खीच कर नीचे बैठा लिया। अब हम ऐसी जगह थे, जहाँ से कोई भी हमें नहीं देख सकता था और यदि कोई बाहर सड़क पर आता जाता भी तो वह हमें नही दिख सकता था। मैंने उनको पहले इत्मीनान से बैठने दिया और फिर उनको दिलासा देने के लिए उनकी पीठ सहलाने लगा। मेरे ऐसा करने से वे थोड़ी शांत हुयी और इस दौरान मेरा लंड जो अब भी पैंट के बाहर था वह मुरझा गया था।
मुझे उस रात के अँधेरे में उनकी भारी सांसे सुनाई दे रही थी। मेरे खुद के ह्रदय की धड़कन भी बहुत तेज चल रही थी। में जब यहां खाना खाने आया था तब मैंने सोचा भी नहीं था की मै इस तरह, चोरो की तरह, एक कोने में कामपीड़ित अवस्था में बैठूंगा। लेकिन यह चुदाई की लालसा एक ऐसा कामोन्माद है की कब और कैसे चढ़ जाये, कोई नहीं जानता है। मुझे अपने से 20/25 वर्ष बड़ी एक बूढी महिला, स्त्री के रूप में अच्छी लगी, वही एक अचरज था लेकिन मै उस पर आसक्त हो, उसे चोदने में दुस्साहसी हो रहा हूँ वह बड़ी विचित्र बात थी। मुझे कही न कही उनकी आँखों से झांकती, उनके अंदर की छुपी हुई स्त्री ने मुझे इतना निर्भय बना दिया था की मैं अपने कामातुर प्रणय को उनसे अभिव्यक्त कर दिया था। उस दुस्साहस का ही परिणाम था वह कुंदन सी दमकती प्रौढा मेरे साथ शेड के नीचे, बगल में मेरी स्त्री बनी बैठी थी।
मेरे हाथ उनकी पीठ सहला रहे थे और वे भी मेरे स्पर्श की पूरी अनुभूति ले रही थी। उनको शांत देख कर, मैंने उनके कंधे पर अपना दाहिना हाथ रख दिया और उनको गले लगा लिया। मैं अपने बाएं हाथ से उनका चेहरा उठाया और उनके ओठो को चूमने लगा। इस बार उनके ओंठ मेरे ओंठो से लड़ नहीं रहे थे। वो मेरे चुम्बन को स्वीकार कर रही थी और मेरे ओठो को उन्हें चूसने दे रही थी। मैं उनके इस तरह से चुम्बन के स्वीकार करने से आश्वस्त हो गया की वे, मैं जो आगे करने जारहा हूँ उसके लिए मानसिक रूप से तैयार होगई है। मैंने अपने बाये हाथ से उनके ब्लाउस के ऊपर से पहले उनकी चूचियो को सहलाया और फिर उंगलियो से उनके आगे के हुक खोल दिए। अँधेरे में उनकी चूचियाँ सफ़ेद ब्रा के अंदर, अध छुपी अध खुली स्वछंद होगई थी। मेरे हाथ अब तेज़ हरकत में आगये। पहले तो ब्रा के अंदर घूस कर मैंने उनकी बड़ी बड़ी चुंचियो को जो उम्र की मार पर थोड़े लटके थे उनको कब्जे में लेकर मसला और फिर बिना समय गवाए पीछे से मैने उनका ब्रा खुलने लगा।
मेरे ब्रा खोलने पर वो फिर बोल पड़ी," इसे न उतारो बेटा, जगह ठीक नहीं है।"
किंतु यह कहते हुए उन्होंने खुद ही ब्रा ऊपर कर के अपनी चूचियों को नंगा कर दिया। नंगी चूचियो को देख कर तो मै फिर उत्तेजित होगया। मेरा लंड जो छोटा हो गया था, वह भी उन नग्न चुंचियो के आतिथ्य में कड़ा हो खड़ा होने लगा। मैंने अपना मुँह उनकी चूचियो पर लगा दिया और उनको चूमने और चूसने लगा। मै एक चूची और घुंडी को चूमता और चूसता तो दूसरी को हथेली से रगड़ता और घुंडी को उंगलियों के बीच लेकर दबाता। मेरे चूसने और घुंडीयों से खिलवाड़ पर उनमें भी उन्मत्तता छाने लगी। उनकी चुंचियो में कसाव उठने लगा और घुंडीया जो निर्जीव लग रही थी, वो भी कड़ी हो गई। अब उन्होंने पीछे दीवाल पर अपनी पीठ लगा कर टेक लगा दी थी और मै उनकी चूचियो से खुल के खेल रहा था। यह सब शायद 4/5 मिनट चला होगा की मैंने उनसे कान में कहा,"बंगालिन जादूगरनी होती है, यह मैंने सुना था, लेकिन आज तो आपने तो मेरे हवास ही उड़ा दिए।"
इस पर, उनके मुँह से से सिर्फ एक हलकी सी आह निकली, मैंने फिर कहा," लौड़ा पकड़ लो, आपके लिए बावला हो रहा है।"
उस पर उन्होंने धीरे से कहा," सर जी, बेटा जी, अब जाने दो। कही पकड़ गए तो न मै बेटे को मुँह दिखा पाऊँगी न आपकी इज़्ज़त बचेगी। "
उनकी बात बिलकुल सही थी लेकिन मैं कुछ समझने की स्थिति में नही था। मैंने उनकी चुंची चूसते हुए ही, उनको पुआल पर गिराने के लिए, हल्का सा धक्का दिया और वे निढाल सी, पुवाल बार पसर गयी। मैंने अब उनको पूरी बाहो में ले लिया और अपनी जांघ को उनकी जांघो पर चढ़ा दिया। मेरा फ़ुफ़कारता हुआ लंड अब साडी के ऊपर से ही उनको रगड़ने लगा था। मैंने लंड रगड़ते हुए उनसे कान में कहा,"अच्छा लग रहा है? मजा आरहा है?"
उनके मुँह से एक सकपकाती हुई आवाज निकली और उनका बदन कसमसा गया। फिर उन्होंने कहा, "बाबू ,जो करना है जल्दी करो।"
मै समझ गया था की अब मैंने ज्यादा देर की तो वे घबड़ा कर मना कर सकती है और पकडे जाने का खतरा भी ज्यादा बढ़ जायेगा। मै अपने ओठ उनके कान के पास लगाया और उनके कान चूसते हुए बोला,"आपका भी मन कर रहा है, जरा लौड़े को भी पुचकार दो!'
यह कह के मैंने उनकी हथेली पकड़नी चाही लेकिन उससे पहले ही उन्होंने हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में बन्द कर लिया था। जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर दबाया , उनके मुह से "उम्म्म" की आवाज निकल पड़ी और वे बिना मेरे कुछ कहे, मेरे लंड को सहलाने लगी। मेरे लंड के सुपाडे को अपने अंघुठे से रगड़ने लगी। उनकी इस हरकत से मेरे अंदर तो बिजली दौड़ पड़ी और उनको मैंने कस के जकड कर, उनकी चूचियों, उनके पेट, उनकी गर्दन को चूमने लगा। मेरे चूमने की रफ़्तार के साथ साथ वे भी मेरे लंड को कस के हिलाने लगी। वो मेरे लंड को इस तेजी से हिला रही थी कि मुझे लगा की कहीं इनका इरादा मुझे मुट्ठ मार कर झाड़ देने का तो नही है? मैंने उनको रोकने की जगह, हाथ बढ़ा कर उनकी साड़ी ऊपर खीच दी। जैसे ही मैंने ऐसा किया उन्होंने लंड छोड़ मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली,"बाबू बेटा जी, अब यह मत करो। आज छोड़ दो फिर कभी। जगह ठीक नही है, खतरा है।"
उनकी बात सुनकर मै अंदर ही अंदर मुस्करा दिया। यह पहली बार था जब वह खुद ही मुझसे फिर से मिलने के लिए कह रही थी। मै जानता था जिस जगह और जिस हालत में हम लोग है वो बिलकुल भी सही नहीं है। उनका भी मन डोल चुका था और अब खुद चुदासी हो चुकी थी। वह यही चाहती थी कि जब चुदना ही है तो कायदे से, चुदा जाये। लेकिन मेरे अंदर कामुक पुरुष सब जानते हुए भी कल पर कुछ नहीं छोड़ना चाहता था। मैंने साड़ी ऊंची करते हुए कहा,"अब चूत तो छूने दो, देंखे तो आपकी बंगाली चूत कैसी है। मेरा लंड तो देख लिया मुझे भी देखने दीजिये।"
इसके साथ साड़ी, पेटीकोट समेत ऊपर तक उठ दी। उनकी नंगी जांघे दिखने लगी थी। मै जब उन पर हाथ फिराते हुए, अपने हाथ धीरे धीरे ऊपर ले जाने लगा, उनके पैर कांप रहे थे। उनका कंपन मुझे महसूस हो रहा था। यह कंपन कामोत्तजना का भी था और इस प्रकार बाहर अँधेरे में इस तरह लथ पथ पड़े होने का भी था। आखिर मेरी हथेली उनकी जांघो के बीच पहुँच गयी और घनेरे बालो के बीच वो जादुई चूत मेरी उंगलियो से घनघना उठी। मै उनकी चूत को इतने आहिस्ते से सहलाया जैसे कोई नयी नवेली चिकनी चूत हो। मै इतना अभिभूत था की उंगलियों से उनकी चूत के घनियारे बालो को ऐसे सहला रहा था जैसे मैं चूत को कंघी कर रहा हूँ। मेरी ऊँगली ने जब उनकी चूत को फांको को अलग कर अंदर उनकी चूत में प्रवेश किया तो वो एक दम से मेरी बाहों में धनुषाकार टेढ़ी हो गयी और फुसफुसाने लगी,"उई बाबू उई!आआआआअहह्ह्ह!"
मै उनकी उखड़ी बैचेन आवाजो से और उत्तेजित हो गया और झट सर उठा उनकी जांघो के बीच घुसेड़ दिया। यह सब इतनी तेजी से हुआ की वो भी नहीं समझ पायी यह क्या हुआ। जब उनको मेरी नाक और मेरी जीभ उनकी चूत पर महसूस हुयी तो न चाहते हुए उनके मुँह से ,"हाय!!! छी छी!!!! गन्दा गन्दा!" निकल पड़ा। उनके दोनों हाथ मेरी सर पर गये और मुझे अपनी चूत से हटाने लगी। लेकिन मैंने उनकी एक भी नहीं सुनी। मैं तो चूत का उन्मत्त प्रेमी हूँ, उसकी महक, उसके स्वाद और उसके स्पंदन का दीवाना हूँ। मैंने उनकी जांघे थोड़ी और चौड़ा कर उनकी झांटो सहित चूत को अपने ओठो में दबोच लिया। मेरी जीभ पर जैसे ही चूत का स्वाद चढ़ा, मै उसकी चूत की फांको को कस के चूसने लगा। मेरी जीभ जब उनकी चूत के अंदर तक गई तो तो वे छटपटाने लगी। उनका विरोध इस लिए था की कभी उनकी चूत किसी ने चूसी नहीं थी। चूत चूसना, कामक्रीड़ा में महत्वपूर्ण है यह मालूम ही नही था। उनके लिए यह गन्दा काम था। उनको चूत चुसवाने में शर्म भी आरही थी, क्यों की मेरी जीभ को पता चल चूका था की उनकी बरसो से सूखी चूत, अंदर से गरम और लसलसी हो गयी थी। मै अपनी जीभ से ही उनकी चूत को चोदने लगा था। जैसे जैसे मेरी जीभ, उनकी चूत अंदर बाहर होती, उनकी जांघे ढीली पड़नी और फैलनी शुरू हो गई थी। उनको अपनी चूत पर इस नए प्रहार का अंजाना सुख मिल रहा था और वे अपनी सुधबुध खोती जारही थी।
बरसो से सूखी चूत पाकर मै निहाल होगया था। उस वक्त मै कहाँ, किस हाल , कैसे और किसके साथ हूँ, यह मेरे चित्त से बिलकुल ही उतर गया था। मेरी जीभ तेजी से घनी झांटो वाली चूत के अंदर बाहर हो रही थी और बीच बीच मै उनकी भग्नाशा को ओठो के बीच लेकर कर चूसते हुए कस के मसल दे रहा था। उनकी भग्नाशा बड़ी थी, जो मेरे ओठ और जीभ के आक्रमण से कड़ी हो कर चूत की फलको से ऊपर निकल आई थी। अपनी चूत पर मेरे चुंबन और जीभ से की गई चुदाई के कारण, वे पूर्ण समर्पण किये, अब पड़ी हुयी थी। मुझे सिर्फ उनकी गर्म सांसे और बीच बीच में घुटी हुयी आहे ही सुनाई पड़ रही थी। तभी बाहर सड़क पर कोई कुत्ता भौका और हम दोनों ही अपनी अपनी तन्द्रा से जाग पड़े। वे हड़बड़ा कर, अपने पैर भीचते हुए उठने लगी और मै भी, इस अचानक जांघो के दबाव से, उनकी चूत से मुँह हटा कर, अपना सर ऊपर कर के अँधेरे में सड़क की तरफ देखने लगा था। जब इत्मीनान हो गया की कोई नहीं है, तब मैंने उनकी तरफ सर घुमाया तो देखा वो उठी बैठी थी, ब्रा में चुचिया कैद हो चुकी थी और साडी ने भी उनकी चूत को ढक लिया था। हकीकत में मेरे लंड भी अपना कड़ापन भूल कर ज़िप के बाहर झूल रहा था।
मैंने जैसे ही उनको अपने पास खीचा , वो कांपती हुयी आवाज में धीरे से बोली," सर जी, बेटा जी, रात बहुत हो गयी है, अब आप जाओ. प्लीज!"
उनकी बात बिलकुल सत्य थी लेकिन शराब के कारण चुदाई का भूत इस तरह मुझ पर चढ़ा था की न मुझे उनको छोड़ते बन रहा था न ही रुकते बन रहा था। मैंने बहुत दारुण स्वर से उनसे कहा," जानता हूँ, लेकिन सब्र नहीं होता। आप का मन न कर रहा हो तो, मैं चला जाता हूँ।"
उसके बाद मै उनका हाथ पकड़ कर जवाब का इंतज़ार करने लगा। वे चुप चाप उस अँधेरे में सर झुकाये वही पुआल मै बैठी रही, उनकी साँसे धौकनी की तरह चल रही थी। उनको चुप देख कर मैंने उनके गालो का चुंबन लेते हुए बोला," बोलिए." और अपने लंड पर उनका हाथ रक्ख दिया। उनके हाथ का स्पर्श पाते ही मेरा लंड एक दम से उचक के खड़ा होने लगा और उसके साथ ही मैंने अपने लंड को उनकी मुट्ठी में दबते हुए पाया। वो मेरे लंड को कस के दबा रही थी और उसको सहलाने लगी थी। उनके हाथो की गर्मी से मेरा लंड फिर से कड़ा हो गया और उसके साथ ही मुझे उनका उत्तर भी मिल गया था। मैंने अपनी दोनों हथेलियों से उनके चेहरे को पकड़ा कर ऊपर किया और उनको लंबा चुंबन दिया। उनके ओठ अपने आप खुल गए और मेरी जीभ, जो उनकी ही चूत के रस में नहायी हुयी थी, उनके मुँह के अंदर चली गई।
फिर मैंने अपने दाहिने हाथ को नीचे कर के उनके ब्लाउस के हुक खोल दिए और साथ में उनकी ब्रा भी उनके बदन से अलग कर दी। अब उनकी चूचियाँ पूरी तरह नंगी मुझसे चिपक गई थी। फिर मेरे एक हलके से इशारे पर वे खुद ही पुआल पर लेट गई और मैंने आनन फानन में अपनी बुशर्ट , बनियान, पेंट और अंडरवियर उतार दी। अब मै पूरी तरह मदार जात नंगा था। मै नंगे ही उन पर गिर पड़ा और उनकी चूचियों को चूमने चाटने लगा। मेरी जांघो ने उनको अपनी गिरिफ्त में लिया था और उनके हाथ मेरे पीठ कमर और जांघो को सहलाने लगे थे। अँधेरे में उनके हाथ अब भी शर्म के मारे, मेरे लंड के आस पास से निकल जारहे थे लेकिन उसको पकड़ कर अपनी चूत में डालने का हौसला नहीं कर रही थी। उनको बरसो के बाद, किसी नंगे शरीर से जकडा था। मेरे ऐसे जवान नंगे शरीर को उनसे लिप्त पाकर, वे मेरे ही शरीर का पूरा सुख लेना चाहती थी। अब मैंने उनकी साडी ऊपर करने के बजाये , उसकी गांठ ही खोल दी। मैंने साडी जब खींची तो उन्होंने ने जरा भी विरोध नहीं किया, वे अब खुद भी कामाग्नि में जल उठी थी। उनको भी अब जगह और समय का कोई विचार नहीं रह गया था। उनका पेटीकोट भी एक झटके में खुल गया और उसको भी मैंने उनसे अलग कर दिया। अब हम दोनों ही नंगे थे और एक दूसरे से बुरी तरह चिपक हुए थे। मै उनको हर जगह चुम रहा था और मेरी हाथ उनकी चूत और चूतड़ों को सहला और दबा रहे थे। मेरी उत्तेजना तो इस सीमा तक बढ़ गई थी की मुझे इस बात का डर लगने लगा था की कही मै उनकी जांघो से लंड रगड़ते रगड़ते कही झड़ न जाऊ। यह सोच कर मै पलट कर उनके ऊपर आगया और नीचे की तरफ चला गया। वो भी समझ गई थी की जिस के लिए, इतने समय से अंतर्द्वंद चल रहा था, वह घडी आगयी है। उन्होंने अपने पैर उठा, अपने आप फैला दिए। जैसे अब वे निमंत्रण दे रही हों की आओ, बड़ी मेहनत कर ली, अब चोद लो मुझे आकर।
मैंने उनके पैरो को थोड़ा और ऊपर किया और अपना लंड उनकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। उनकी चूत लसलसायी हुयी थी। मेरे सुपाडे का स्पर्श पाकर वो एक दम से विहल हो गई और उनके मुँह से एक मादकता वाली कराहट निकल पड़ी। मुझे तो और इस तरह उनकी चूत को सुपाडे से रगड़ने की इच्छा थी लेकिन लंड इतने समय से उबला पड़ा था की मुझे खुद अपने पर ही विश्वास नहीं था की मेरा लंड कितने समय तक मेरा साथ दे सकेगा। वाकई यह कामक्रीड़ा का ही प्रताप था की एक करीब 55 वर्ष की हसीन बुढ़िया, मेरे 33 वर्ष के जवान लंड का मान मर्दन कर रही थी।
मैंने और देरी न कर के अपने लंड पर धूक लगाया और उनकी चूत पर लंड रख कर एक कसके धक्का मारा। मेरे लंड के उनके चूत में घुसते ही उनकी कमर कसके हिली और उनके मुँह से हलकी सी चीख निकल पड़ी। उनके मुँह से,"अरी बाबा!' निकला और तेजी से बांग्ला में उन्होंने कुछ बोला। उनके स्वर में जहां वर्षों बाद बिना चुदी चूत में 6 इंच के भन्नाए लंड के घुसने की कराहट थी वही उनकी अनभ्यस्त चूत में जवान लंड के आगमन का कामसुख भी था। मेरा लंड एक धक्के में ही आधे से ज्यादा उनकी चूत में घुस गया था। उनकी चूत बुजुर्ग जरूर थी लेकिन कई बरसो से अनचुदी होने के कारण कसाव लिए हुई थी। मैंने दूसरा धक्का और कस के मारा और उनकी चूत में मेरा पूरा लंड समां गया। मेरे दूसरे धक्के पर वो कसमसा उठी और उनके मुँह से फिर से दबी हुई आवाज़ निकली। मैंने तुरंत उनके मुँह को अपने ओठो से बंद कर दिया। अँधेरे सन्नाटे में हलकी आवाज भी दूर तक जाती है और मुझे डर था की कही किसी को आहट न हो जाये। मैं उनकी चूत में लंड डाले पड़ा रहा और उनसे फुसफुसते हुए कहा,"आवाज मत करिये।" उन्होंने सर हिलाकर बताया की वो समझ रही है।
अब मैंने उनकी चूत को धीरे धीरे चोदने लगा। लंड ने पूरी तरह उनकी चूत में अपना रास्ता बना लिया था और चूत की गर्माहट उसको महसूस होने लगी थी। उनकी चूत को मेरे लंड से मिल रही गर्मी, उन पर भी असर कर रही थी। उन्होंने ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया। मैं 6/7 धीरे धक्के मारने के बाद एक कस के धक्का मार कर लंड को चूत की जड़ तक पंहुचा दे रहा था। जब मै कसके धक्का मारता तब उनकी कमर हिल जाती थी। अब मैंने उनके पैरो को और उठा दिया और अब लंड सीधे उनकी चूत को चोट कर रहा था। 4/5 मिनट उनको इस तरह चोदने के बाद, मै उनकी चूचियों को भी मसलने लगा और वो भी अब अपनी कमर को उठा कर मेरे लंड को अपने अंदर पूरा लेने लगी थी। उस सन्नाटे में पुवाल के ऊपर मेरे लंड के हर धक्के पर अब धम्म धम्म की आवाज आने लगी थी। इधर मेरा लंड उनकी चूत को अब मस्त होकर चोद रहा था और मेरे हाथ उनकी चूचियो, उनकी घुंडीयों को आज़ादी से मसल और दबा रहे थे। मेरे ओठ कभी उनके गर्दन को चूमते कभी उनके गालो को और कभी उनकी चूची को चूस रहे थे। फिर तभी उन्होंने अपनी दोनों बाँहों से मुझे कस के पकड़ लिया और अपनी हथेली से मेरी पीठ और कमर सहलाने लगी। यह उन्होंने पहली बार इस तरह से मेरे साथ किया था। उनके इस तरह के स्पर्श से मेरे शरीर में एक सनसनी सी फ़ैल गयी थी। उनको चुदाई में आनंद आने लगा था। उनको चुदने के सुख की अनुभूति ने जाग्रत कर दिया था। वे इसी सुख और जागरण से अभिभूत मुझे सहला कर, अनुग्रहित होने के भाव को मुझे समर्पित कर रही थी।
मै उनके कान के पास जाकर बोला," मजा आरहा है? बहुत मस्त हो आप, सारी जवान औरते बेकार है। जो आपको चोदने में मजा आ रहा है वो अभी तक नहीं मिला।"
यह सुनकर, वे अपना मुँह उठा कर मेरे से गले लग गयी और अपने पैरो को मेरे कमर पर चढ़ा दिया। उन्होंने मुझे अपने से और चिपका लिया और मेरे गालों और ओंठो पर ताबड़तोड़ चुम्बन देने लगी। उनके मुँह से 'उम्म''उम्म' की आवाज निकल रही थी। उन्होंने फिर अपने पैर से मेरे चूतड़ों की सहल दिया जिस पर मै पगला ही गया और तेजी से उनको चोदने लगा मै अब अंतिम पड़ाव पर पहुंचने वाला था, इसलिए मैंने उनसे कहा,''सुनो घोड़ी बन जाओ, पीछे से चोदते है।''
तब उन्होंने सर हिलाते हुए धीरे से कहा,' बेटा, नही, अभी ऐसे ही कर के जाओ, बाद में जैसा चाहना कर लेना।"
उनकी बात सुन कर मैंने ताबड़ तोड़ 5/6 धक्के मारे और कहा,''ठीक है, लेकिन पहले बताओ चुदने में मजा आया?''
उन्होंने सर हिलाया लेकिन मैंने उनके कान को चूसते हुए कहा,"ऐसे नहीं, बोलिये।"
इसपर उन्होंने नीचे से कमर चलते हुए कहा,"बेटा क्या कहे, पाप तो हो ही गया है। अपने बेटे जैसे से करवाऊँगी नहीं सोचा था। मर्द हो।" मै उनकी बात सुनकर और उत्तेजित हो गया और लगने लगा की अब कभी भी झड़ जाऊँगा। मैंने ध्यान बटाने के लिए उनसे कामांध कहा,"अब कब फिर चुदवाओगी? तुमको कुतिया बनाकर चोदना है।"
इस पर "आह" "आह" कहते हुए उन्होंने कहा,"बाबू मौका मिलेगा तो बेटे से कुत्ता बन जाना।"
उनका मुझे इस बार बेटा कहना कही मेरे लंड को हिला दिया और लगा कि अब नही रोक पाऊंगा। इसी के साथ मै उनकी चूत में कस कस के धक्के मारने लगा। मैंने थोड़े ही धक्के मारे होंगे की मेरे लंड से पिचकारी छूट गयी और मेरा गरम गरम लावा, लंड से निकल कर उनकी चूत में समां गया।
मेरे झड़ते ही मेरे वीर्य की गर्माहट से वे निहाल हो गई और कस कस के अपने चूतड़ उठा उठा कर मेरे लंड को ही चोदने लगी। मै झड़ने के बाद भी उनके बदन को कसके लिपटे हुए धक्के मार रहा था। धक्के मारते मारते हुए ही मेरा लंड अपने वीर्य और उनकी चूत के पानी से लिपटे हुये, उनकी चूत से बाहर निकल कर, उनकी झांटो और झांघो में सिमट गया। मै बुरी तरह हांफ रहा था और वो भी बेसुध बेहाल, बाल तितर बितर हुए, पुवाल में पड़ी हुयी थी। मै उनके ऊपर लेटा ही रहा। थक कर बेहाल था आँख भी बंद हो रही थी। मुझे चेतना तब आई जब उन्होंने मुझे अपने ऊपर से धकेल कर हटाया। मै उनके ऊपर से उठा और अँधेरे में उनको निहारने लगा। वे मुझे घूरता देख कर, अपने कपडे उठा, उठ खड़ी हुई। बड़ा ही खूबसूरत मंजर था, अँधेरे में उनके नग्न शरीर का सिर्फ एहसास भर हो रहा था, बाल खुले हुये थे, हाथ में कपडे लिए साडी लपेटने की कोशिश कर रही थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनको वैसे ही बाहो में ले कर और चूम लिया। उन्होंने अपना बायां हाथ मेरे सर पर रख कर, मेरे बालो को सहलाते हुए कहा,"बाबा! अब तो बस करो! जाओ!"
मैंने उनकी चूची दबाते हुए कहा ," मन से बताइये, कब फिर मिलेंगी और चोदना है ?"
इस पर उन्होंने मेरे माथे को चूम लिया और कहा, '"शीघ्र।"
इसके साथ ही मैंने भी जल्दी से कपडे पहने और उनके अंदर जाने के बाद, अंधियारे में छुपता छुपाता अपने घर पहुंच चला आया।
वे करीब दो महीने वहां रही थी और इस बीच करीब 20 बार मैंने उनको चोदा था। देवब्रत जब भी अपनी मित्र मंडली या जहां काम चल रहा था, वहां फंसा होता तो फोन पर बात हो जाती। मैं रात को ही जाता था क्योंकि दिन में मेरे लिए देवब्रत के यहां जाना संभव नही था। लेकिन एकांत होने पर मैं उन्हें अपने ही घर बुलवा लेता था। हमारी पहली चुदाई के बाद से वे खुल गयी थी और उन्होंने ने मुझ से हर तरीके से चुदवाया। आज मै खुद 60 के ऊपर हो चुका हूँ लेकिन आज भी वह खूबसूरत 55 वर्षीय प्रौढ़ बंगालिन की याद मुझे कामातुर कर जाती है।