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Misc. Erotica छोटी छोटी कहानियां...
Heart 
55 वर्षीय प्रौढ़ बंगालिन और मेरी कामुकता

मैं, अपने जीवन की प्रथम अक्षतयोनि के संस्मरण लिखने के बाद, कामुक लेखन पर विराम लगा, किसी अन्य विषय के अधूरे लेख को पूर्ण करनी की सोंच रहा था। लेकिन फिर एक उचक उठी की यहां से कुछ अंतराल के लिए अंतर्ध्यान होने से पहले, एक और अपना संस्मरण, यहां पाठकों के लिए छोड़ जाऊं। मैंने अक्षतयोनि में अपनी 20 वर्ष की आयु में, स्कूल गमन करती एक षोडशी के साथ बने यौन सम्बंध के संस्मरण को लिखा था और आज मैं अपने से 22 वर्ष बड़ी महिला के साथ हुये यौन सम्बन्ध के संस्मरण को यहां मूर्त रूप दे रहा हूँ। मेरा जीवन मे यह अनुभव रहा है कि कामुकता व कामुक सम्बंध किसी उम्र की सीमा में बंधा नही होता है। पुरुषों में तो यह सत्य बड़े सार्वजनिक रूप से स्वीकारा जाता रहा है लेकिन मैंने पाया है कि महिलाएं भी इसकी अपवाद नही है। यदि कोई एक अधेड़/प्रौढ़ महिला के अंदर की स्त्री को, द्वंद की मनोस्थिति में, उचित क्षणों में सहेजे तो वे अंतरंगता को स्वर देने लगती है। मैंने अपने वातावरण, कामुक कहानियों और स्वीकारोक्तियों में जवान होते लड़को में अधेड़/मध्य वय(मिडिल ऐज) की महिलाओं के प्रति आसक्ति व यौन सम्बंध की अभिलाषा अक्सर देखी है लेकिन बुजुर्ग/प्रौढ़ महिला उनके मानसिक पटल से ओझल रहती है। शायद हमारी सामाजिक संस्कृति ही ऐसी है की ये बूढ़ी बुजुर्ग महिलायें इतनी माननीय व सम्मानित हो जाती है हम लोग उनका अन्वेषण व विश्लेषण कामुक दृष्टि से नही कर पाते है। मैं यहां अपने जीवन के जिस संस्मरण को उल्लेखित करने वाला हूँ उसमे नैंसी फ्राइडे की पुस्तकों का बड़ा योगदान रहा है, उन्होंने मुझे बुजुर्ग महिलाओं और उनके कम उम्र के पुरुषों से यौन सम्बंध के मनोविज्ञान को समझने में काफी सहायता की है। मेरी कहानी में नाम व स्थान के अतिरिक्त सभी कुछ सत्य है।

आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व, जब मै करीब 32/33 वर्ष का था, सदूर एक परियोजना में कार्यरत था। वह परियोजना नगरीय सभ्यता से दूर, एकाकी, दूर वीराने में थी। अब जैसा दूर दराज की परियोजनाओं में होता है कि वही पर सभी कर्मियों को, वह चाहे अधिकारी हो या चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी, सबको घर मिले हुए थे। आप उसे को वीराने में बसाया गया टाउनशिप भी कह सकते है क्योंकि जीवन की मूलभूत सुविधाएं, परियोजना के प्रांगण में ही उपलब्ध थी। हम लोगो का दैनिक जीवन बड़ा व्यवस्थित व नीरस था। हम लोगों की, कम से कम मेरी जीवन शैली की समय सारणी बड़ी निश्चित सी थी, सुबह काम पर जाना, शाम को धूल से लथ पथ लौट कर घर आना, कभी कभार क्लब चले जाना और खाने से पहले 2/3 पैग लगाना और फिर खाना खा कर सो जाना। मेरा विवाह हो चुका था और मेरे बच्चे तब बहुत छोटे थे। वहां जब भी स्कूल में छुट्टियां होती थी तो पत्नी मायके या ससुराल चली जाती थी और मैं फिर बाद में, छुट्टी लेकर उनको लेने चला जाता था और नगरीय सभ्यता का सुख उठता था। इन छुट्टियों में पत्नी बच्चे जब चले जाते थे तो मेरा जीवन बिल्कुल ही अव्यवस्थित हो जाता था। बिल्कुल अविवाहितों का जीवन। मेरा न कोई काम से लौटने का समय, न खाने पीने का कोई समय, जहां बैठ गए तो बैठ गए, जीवन मे न कोई व्यवस्था व अनुशासन।

ऐसे ही एक बार गर्मी की छुट्टी में मेरी पत्नी, बच्चों को लेकर अपने घर चली गई और मैं अपना ज्यादा समय कार्यालय और कार्यस्थल पर व्यतीत करने लगा। मेरे अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारियों की टीम काफी अच्छी थी इसलिए मुझे घर के बाहर, कार्य करते हुए समय व्यतीत करने में कोई विशेष परेशानी नही होती थी। इन्ही लोगो मे मेरे नीचे एक लड़का काम करता था, वह बड़ा अच्छा लड़का था। वह एक बंगाली लड़का था, उसकी उम्र होगी करीब 26/27 वर्ष और उसका नाम देवब्रत भट्टाचार्या था।

मैं एक दिन, देर शाम तक अपने कार्यालय में काम कर रहा था और ज्यादातर कर्मचारी लोग घर वापस जाचुके थे। कुछ लोग जो मेरे साथ रुके थे उसमे से एक देवब्रत भी था। शाम को करीब 7:30 बजे, जब देवब्रत छुट्टी कर, घर जाने लगा तो मेरे पास आया और मुझसे कहा,"सर, आज कल भाभी जी तो घर पर है नही, आप इस शनिवार को मेरे घर खाना खाने आइये।"

मैंने कहा,' छोड़ो देवब्रत, क्यों परेशान होते हो? घर पर नौकर है, वह बना देता है।"

इस पर देवब्रत ने कहा,"अरे सर परेशानी कि क्या बात है? आपको तो मछली खाने का बहुत शौक है और आज कल मेरी माँ भी कलकत्ते से आयी हुई है, बहुत बढ़िया बनाती है।"

उसकी बात सुन कर तो मेरा भी मन मचल गया। वहां जो लोग मुझे जानते थे, उन सभी को यह मालूम था कि मै मांसाहारी खाने का बहुत शौकीन हूँ, इसलिये देवब्रत का निमंत्रण बड़ा स्वाभाविक था। लेकिन फिर भी मुझे इस निमंत्रण को स्वीकारने में एक झिझिक थी। मैंने कहा," चलो ठीक है, मै तुमको रात तक निश्चयात्मक निर्णय बता दूंगा।"

मेरा देवब्रत के निमंत्रण को स्वीकारने में जो झिझक थी वह खाने को लेकर नहीं थी। मेरा संकोच उसके घर जाने को लेकर था। मै अधिकारी था और अधिकारीयों के आवास की बनी कॉलोनी में रहता था और देवब्रत स्टाफ कॉलोनी में रहता था जिसका प्रांगण मेरी कॉलोनी से अलग था। देवब्रत का निमंत्रण सार्वजनिक न हो कर व्यक्तिगत रूप से मुझ अकेले के लिए था इसलिये एक अधिकारी हो कर, स्टाफ कॉलोनी में रात को जाना मुझे असहज कर रहा था। मैं जिस तरह की परियोजना में काम कर रहा था, सदूर वैसी परियोजनाओं एवं ऐसे ही अन्य दूर दराज के औद्योगिक इलाको में, हर तरह कि बाते होती है। इसे स्थानों में छोटी से आबादी होती है और व्यक्ति की निजता पर हमेशा प्रश्नचिन्ह लगा रहता है। यदि आप ज्यादा इधर उधर होते है तो आपके चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लग जाते है, नाम जुड़ने लगते है। वैसे भी यह एक आदिवासी इलाका था और पूर्व के बहुतो के किस्से मै जानता था। खैर रात को मैंने उसको फोन किया, हमारे यहाँ इंटरनल फोने एक्सचेंज था, सभी के यहाँ फोन लगा हुआ था ताकि आपातकालीन स्थिति में किसी को भी, कभी भी बुलाया जासके। मैंने कहा,"ठीक है देवब्रत, मै शनिवार को 8 बजे तुम्हारे घर खाने पर आऊंगा।"

मै उस शनिवार ठीक रात के 8 बजे देवब्रत के घर पहुँच गया। उसका 4 मकानो के ब्लाक में नीचे वाला घर था। घर के बाहर करीब 20 फिट की खुली जगह थी जिसमे एक तरफ शेड पड़ा था। शेष जगह पेड़ पौधे लगे हुए थे और वहाँ एक गेट था। मै जब वहां पहूँचा तो वह पहले से ही गेट पर ही खड़ा होकर मेरा इंतज़ार कर रहा था। देवब्रत मुझे अंदर ले गया। उसका छोटा सा ड्राइंग रूम था वही एक सोफा पड़ा था और बीच में एक टेबल रक्खी हुई थी। देबरत ने कहा,"सर बैठिये, मै अभी अंदर से आता हूँ।"

वह 5 मिनट में वापस आ गया और उसके हाथ ट्रे थी जिसमे गिलास, बर्फ, पानी और कुछ खाने का सामान था। यह देख कर मैंने उससे कहाँ, "इसकी क्या जरुरत थी?"

उसने हँसते हुए कहाँ, "सर मालूम है आपको क्या पसंद है, इस बहाने मुझे भी पीने कि छूट मिल जायेगी।"

फिर उसने सोफे के बगल से जिन कि बोतल निकाली, जो उस ज़माने में मैं गर्मियों में पीता था। उसने दो गिलास में पैग बनाये और साथ मे गरमा गरम तली होई मछली सामने रख थी, जो गज़ब कि महक रही थी। हम लोगो ने चियर्स किया और पीने लगे। थोड़ी देर में मुझे देवब्रत के घर में बड़ा सन्नाटा से लगा तो मैंने उसे पूछा, "क्यों सब लोग बाहर गए है क्या? तुम तो कह रहे थे कि माँ आयी है?'

वो बोला, "सर माँ है न? बीबी तो डिलेवरी के लिए अपने मायके गयी है, इसीलिये मेरे पास कुछ दिन रहने के लिए माँ आ गयी है।"

मैंने पूछा," कहाँ है?"

उसने जवाब दिया,' माँ रसोई मै है, आप आये है इसलिए माँ कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।"

तभी उसकी माँ ने अंदर से कुछ बंग्ला में कहाँ और वह अंदर चला गया। मैंने देखा की फिर वह कुछ लेकर चला आया है। तब मैंने कहाँ,"देवब्रत यह बात बड़ी बुरी है, माँ से कहो वे यहाँ आकर बैठे, मुझे और कुछ नहीं चाहिए है। अब सीथे खाना ही खायेंगे।"

तब उसने कुछ कहा बंग्ला में और अंदर चला गया। मुझे कुछ फूस फुसाहट की आवाज अंदर से आरही थी और मेरा अनुमान था कि माँ यहाँ आने से हिचक रही है। तब मैंने आवाज़ देकर कहाँ,"देवब्रत उनसे कहो यदि नहीं आयी तो मै कुछ भी नहीं खाऊंगा।"

मेरी बात का प्रभाव यह हुआ कि देवब्रत की माँ उसके पीछे पीछे, ड्राइंगरूम के अंदर आई और मै उन्हें प्रणाम करने के लिए खड़ा होगया। मैंने हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए उनका मुख देखा तो बस देखता ही रह गया। मेरे मन में जो देवब्रत की माँ की एक कल्पना थी, वह उन्हें देख कर वह कल्पना धूलधूसरित हो गयी थी। वे एक लगभग 55 वर्ष की गौरवर्ण की महिला थी, घने मिश्रित काले सफ़ेद बाल उन पर दमक रहे थे। वो सजी धजी, सफ़ेद रंग कि लाल बॉर्डर कि बढ़िया से साड़ी पहने हुई थी। 5',3" के लगभग लंबाई, चौड़ा माथा, गोल चेहरा, उनके बेहद तीखे नाक नक्श थे, कोई भी उन्हें देख कर बंगाली बता सकता था। देवब्रत की माँ हष्टपुष्ट बड़ा गठा हुआ बदन था, मै बिलकुल ही झटका खा गया था।

मेरी प्रतिक्रिया अप्रत्याशित व अवांछनीय थी। मुझे कुछ ही क्षणों में माँ के आगमन पर अपनी अभिक्रिया पर ग्लानि होने लगी थी। मुझे बोध हो रहा था कि मैं जिस प्रकार से उनको अवाक देखता रहा था, वह सभ्य समाज में अमर्यादित माना जाता है। मुझे अपने पर खीज आरही थी। मैंने झेप मिटाते हुए बोला, "आई ये साथ मे यहां बैठिए, मुझको यह बुरा लग रहा था कि हम लोग यहाँ पर बैठे है और आप अकेले अंदर काम मे लगी हुई है। इतना तो कुछ आप भेज चुकी है, अब और नही। माँ जी, मैंने किसी बंगाली परिवार में इतनी शानदार मछली आज तक नहीं खाई है।"

मेरे कहने पर वो कोने में देवब्रत की तरफ बैठ गई और हमारी प्लेट में और मछली के कुछ टुकड़े डाल दिए। मैं और देवब्रत दोनो जिन पीते हुए, इधर उधर कि बात करने लगे, लेकिन पता नहीं क्यों, मेरा ध्यान बट चुका था। मै, देवब्रत से बात करते करते, अंजाने में, उसकी माँ की तरफ देखने लगता। दो चार बार तो हमारी आंखे मिल गई, उन्होंने मेरा उन्हें चोर नज़रों से देखना, पकड़ लिया था। मुझे जीवन मे बहुत से अनुभव हुये है लेकिन फिर भी, मै उस समय यह बिलकुल भी नहीं समझ पा रहा था कि क्यों मै अपने से 20/25 वर्ष की प्रौढ़ बूढी महिला के मुख को बार बार, देखना चाहता था। मेरा देवब्रत की बुजुर्ग माँ के प्रति अभिभूत होना, शोचनीय था। जब हम लोगो के 3 पैग हो गये तो मुझे देवब्रत की आवाज़ में लड़खड़ाहट लगने लगी थी। मैंने उसको मना किया कि वह अब न पिये, उसकी माँ ने भी बंग्ला में उसको कुछ कहा, लेकिन देवब्रत बोला."सर कुछ नहीं है, सब कंट्रोल में है, आप और लीजिये, फिर उसके बाद खाना खायेंगे."

देवब्रत की बात सुन मै धर्म संकट में पड़ गया। मुझको और पीने की इच्छा थी लेकिन यहां तो मेजबान ही लुढ़का जा रहा था। मैंने उसकी माँ कि तरफ देखा और इशारे से पूछा क्या करे ? उनके चेहरे से लग रहा था कि उनको अपने लड़के कि हरकत पसंद नहीं आरही थी, वो बंग्ला में कुछ कुछ कह भी रही थी, लेकिन बड़ी शालीनता से बैठी हुई थी। मैंने उनसे कहा,"सुनिये आप भी कुछ ले। मुझे यह बड़ा अजीब लग रहा है की हम लोग इस तरह खाए जारहे है और आप ऐसे ही बैठी हुई है। आप भी लीजिए न?" यह कह कर मैंने एक प्लेट में मछली के दो टुकड़े परोस दिए। मैं परोस रहा था और वो न न कहती जारही थी लेकिन आखिर मेरे बहुत कहने पर उन्होंने प्लेट अपने हाथ में ले ली। इस बीच देवब्रत ने कब चाौथा पैग बना कर एक झटके में ख़तम कर दिया मुझे पता ही नहीं चला। थोड़ी देर बाद बात करते करते, देवब्रत ऊंची आवाज में बोलने लगा और बाते भी, लड़खड़ाती आवाज़ में अंट शंट करने लगा, तब मैंने उससे कहाँ,"देवब्रत, तुम को चढ़ गयी है। तुम मुँह जाकर धो और अब तुम बिल्कुल भी नहीं पियोगे।"

देवब्रत बोला,"सॉरी सर, बहुत दिन बाद ली, लगता है लग गई, आप बैठो अभी आया।"

जब वो चला गया तब मैंने उसकी माँ से कहाँ,"आप परेशान मत हो, देवब्रत अच्छा लड़का है। लड़के है, ठीक हो जायेगा।"

"हमे ये सब बुरा लग रहा है। देबू आपके सामने ऐसे हो गया, क्या सोचेंगा आप?" उन्होंने बड़ी मीठी बंग्ला मिश्रित हिंदी आवाज में मुझको जवाब दिया। यह पहली बार था की उन्होंने मुझसे सीधे कुछ कहा था।

मैंने तुरंत कहा,"आप इसकी चिंता मत करे। कुछ ऐसा वैसा सोचने कि जरुरत नहीं है। चलिए इसी बहाने आपसे बात हो गयी।"

तभी देवब्रत, डोलता हुआ ड्राइंग रूम में आगया और उसका चेहरा देख कर लग रहा था कि उसके बाजे बजे हुए है। उसकी हालत देख कर लग रहा था कि वह अपने बल पर, ज्यादा देर तक संतुलित नहीं खड़ा हो पायेगा। उसकी माँ ने बंग्ला में उससे कुछ कहा तो उसने झटक दिया। तब मैंने देवब्रत से कहा ,"सुनो देवब्रत, तुम बिलकुल भी ठीक नहीं हो, जा कर थोडा लेट जाओ, मै चलता हूँ।"

उस पर वो हाथ जोड़ कर विनती करने लगा और मुझसे माफ़ी मांगते हुए कहा,"सर अब ये न कीजिये, बिना खाना खाये जायेंगे माँ को बुरा लगेगा और बहुत नाराज़ हो जायेगी।"

तब उन्होंने तेज आवाज में कहाँ," देबू तुई जेबी! लेटो जाकर! आपनी जाबेन ना साहब! खा कर जाना।"

मैं माँ की बंग्ला कुछ कुछ समझ रहा था, वो देवब्रत को सोने को बोल रही थी और मुझसे खा कर ही जाने को कह रही थी। मैंने देवब्रत से कहा की वो थोड़ा लेट कर आराम करे, मै इंतज़ार कर लूंगा। उसके बाद वो सर झुका, कमरे में चला गया और उसकी माँ उसके पीछे पीछे चली गई।

उनके जाने के बाद मै सोफे से धीरे से उठा और दरवाजा खोल कर निकलने लगा, तभी देवब्रत की माँ आगयी और कहा," सर आपनी जाबेन ना! रुक जाओ आप! दोया कोरे।इज्जत रख लो।"

मैंने उनको देखा वो हाथ जोड़े हुए थी। मै वही रुक गया और आगे बढ़ कर उनके जोड़े हुये हाथ को हाथ में ले लिया और कहा," हाथ मत जोड़िये, चलिए मै रुक जाता हूँ।"

जब मैंने उनका हाथ पकड़ा, तो मेरे शरीर मे एक सिहरन सी दौड़ गई। मै नहीं जानता कि उस पल मुझे क्या हुआ था, लेकिन लगा, जैसे मै एक स्त्री को स्पर्श रहा हूँ। मेरा मन विचलित हो गया। मै जड़वत उनका हाथ पकडे ही रहा और इसका मुझे एहसास तब हुआ जब उन्होंने अपना हाथ खीचा लिया। मुझे उनकी आँखों में एक अजीब सी लज्जा और चेहरे पर बेचैनी सी देखी। मै अपनी इस हरकत पर खुद भौचक्का था। मैंने शराब पी रक्खी थी, थोडा नशा भी था लेकिन मुझे अपने से इस तरह के व्यवहार की बिल्कुल अपेक्षा नहीं थी। मैने अटकते हुए बोला,'' अरे आप परेशान न हो, मै बिल्कुल भी नाराज नहीं हूँ, आप चलिए मै बैठता हूँ।"

यह कह कर मै खुद ही ड्राइंग रूम कि ऒर मुड़ लिया। बाहर के दरवाजे वाला गलियारा संकरा था, जब मै तजी से पीछे ड्राइंगरूम के लिए बढ़ा, तो उन्होंने दिवार से सटते हुए, मुझे आगे जाने की जगह दी, लेकिन फिर भी, मेरा दाहिना हाथ उनसे रगड़ा और मेरी कोहनी उनकी छाती को सहलाते हुए चली गयी। जैसे ही मेरी कोहनी उनके वक्षस्थल से छुई, मेरे ह्र्दय की गति थम गई। सांस, जहां थी वही ही ओझल हो गई। मै बिना ठहरे, तीर की तरह सीधे सोफे पर जा गिरा। मेरा अपने ह्रदय में हर धड़कन के साथ हो रहे प्रहार को सुन सकता था। मेरे मस्तिष्क में सैकड़ो सवाल कौंध रहे थे।

" हे भगवान ये मुझे हो क्या रहा है!"
"एक बार नहीं, दो बार नही, बारंबार देवब्रत की माँ के साथ कुछ न कुछ, मुझसे होते जा रहा है!"
"क्यों एक 55/60 साल कि प्रौढ़ मुझे अंदर से हिला दे रही है?"
"वह क्या सोचेंगी?"
"क्या मैं अतिरेक कामुकता से पीड़ित, उम्र और पद की गरिमा छिन्न भिन्न कर रहा हूँ?"
"मै मानसिक रूप से विछिप्त हो रहा हूँ, क्या?"

मै इसी उधेड़ बुन में ही था कि मुझे उनकी आवाज़ सुनाई पड़ी, वो कह रही थी,"अमी दुक्खीतो, सॉरी।" मैंने उनसे बिना आंखे मिलाए कहा,"सॉरी? क्यों? आपको यह कह कर मुझे शर्मिंदा न करे, ऐसा हो जाता है, कभी कभी।"

इस पर उन्होंने कहा," आप ड्रिंक ले लीजिये, जब खाना लगाना हो, बोल दीजियेगा।"

वह यह कह कर अंदर जाने लगी तब मैंने उनसे कहा,"आप कहां जा रही है? आप भी बैठिये, अकेले ठीक नहीं लगता है।"

इस पर वो सामने बैठ गयी। बड़ी असाधारण परिस्थिति बन गई थी। मैंने जल्दी से निकल जाना चाहता था लेकिन उनका सामने बैठना, मुझे मेरा ह्रदय वहां और रोक रहा था। मन कह रहा था,"प्रशांत, अभी तक इज्जत बची हुई है, जल्दी थोड़ा खा कर निकल जाओ।" लेकिन ह्रदय में पल्लवित हो चुकी कामुकता, मुझे उनके सांनिध्य को देर तक, खींचना चाह रही थी। मैंने अपने को संयमित करने के लिए अगला पैग बनाया और उनसे कहा," मै नहीं जानता कि मुझे कहना चाहिए या नहीं लेकिन मुझे आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।"

इस पर वो हँसने लगी और साड़ी के पल्लू से अपने मुँह में दबा दिया। उनके इस व्यवहार पर मुझे भी हंसी आ गई और वातावरण में जो अब तक तनाव भरा हुआ था, हल्का हो गया। मैंने अपने पैग पीने के दौरान उनसे कलकत्ता और उनके परिवार के बारे में पूछताज की तो मुझे पता चला कि वो ग्रेजुएट थी और उन्होंने संगीत भी सीखा था। मै बात तो उनसे कर रहा था लेकिन हर क्षण उनका आभा मंडल मुझ पर छाता जा रहा था। मै अब उनको बिना झिझके उनकी देख भी रहा था और उनसे खुल के बात भी कर रहा था। मुझे तभी सरूर का एक झौंका आया और मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा,"है यह बड़ी अजीब बात, उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेगी। मुझे आपके सामने यह स्वीकार करने में कोई शर्मिंदगी नही की आज तक मैंने आपकी ऐसी इतनी सुन्दर गरिमामय स्त्री नहीं देखी।"

मेरी इस स्वछंद स्वीकारोक्ति पर वे अचंभित हो कर अवाक रह गई। फिर वह संभली और बंग्ला में उन्होंने कुछ तेजी से कहा, जो मेरे पल्ले बिल्कुल भी नहीं पड़ा। मै उन्हें प्रश्नवाचक दृष्टिसे एकटक देखता रहा, जैसे मै उनसे पूछ रहा हूँ की आपने क्या कहा ?

उन्होंने साड़ी का पल्ला अपने सर पर रखते हुए, आंखे निकालते हुए मुझसे कहा,"सर आपको भी चढ़ गया? कैसी बात बोला? मै कहाँ एक बुढ़िया और आप मेरा प्रशोन्सा कर रहे है?"

मै उनकी बात सुनकर हंस दिया और ऐसा व्यवहार किया कि जैसे मैंने कोई आमोद की बात की हो ताकि वो कोई बुरा न माने। इसी बीच अंदर कमरे से देवब्रत की खर्राटे की तेज आवाज आने लगी। हम दोनों ने खर्राटों को सुना और हम दोनों की आँखे मिली।

मैंने कहा," अब तो देबरत सुबह ही उठेगा. मेरे ख्याल से अब चलता हूँ। पेट भर चूका है।"

इस पर उन्होंने कहा," अरे यह कैसे हो सकता है? बैठिये, अभी खाना आता है।"

यह कह कर वे अंदर चली गयी और थोड़ी देर में ट्रे में खाना लेकर वापस अंदर आगई। उन्होंने एक प्लेट में मेरा खाना लगा दिया। मैंने यह देख कर कहा,"यह क्या? सिर्फ मै? नहीं, मैं अकेला नही खाऊंगा, आप भी साथ मे खाइए।"

मैं यह कहते हुए खुद ही दूसरी प्लेट लाने, किचन की तरफ लेने चल दिया। उस पर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर रोक दिया और बोली," बोशो बोशो! बाबा लाती हूँ!"

अब तक शराब ने निसंदेह मेरा बहुत ज्यादा सामर्थ्य बढ़ा दिया था। मेरा विवेक गायब होते जा रहा था। मैं जो कर रहा था, वह यदि चेतन अवस्था मे होता तो अदम्य इच्छा होने के बाद भी नहीं करता। मैं सौ बार ऊँच नीच को सोचता। मेरे लिए यतार्थ तो यही था की देवब्रत भट्टाचार्य, मेरे अधीन तृतीय श्रेणी के सहायक के रूप में कार्यरत था। मै उसका अधिकारी, अंधेरी रात में, कर्मचारियों की कॉलोनी में उसके घर मे बैठ कर शराब पी रहा था और मेरे साथ अकेले में एक अकेली महिला बैठी हुई थी। वो महिला, भले ही मेरी माँ की उम्र कि थी लेकिन उसके व्यक्तिव ने मुझे उसके प्रति आसक्त कर दिया था।

वो फ़ौरन अपनी भी प्लेट ले आई और खाना परसने लगी। वह जब खाना परोस रही थी तब उनकी साड़ी का पल्लू खिसक गया और उनका लाल ब्लाउज दिखने लगा था। किसी स्त्री का ब्लाउज दिखना तो को खास बात नहीं थी लेकिन विशेष यह था की इस उम्र में भी वह ब्लाउज उनकी कसी कसी छातियो की अनुभूति दे रही थी। मुझे नशा जरुर चढ़ रहा था लेकिन मेरे अंदर उफान लेती हुई कामुकता की एक अद्मय लालसा, मेरे नशे को और बढ़ा रही थी। मुझे वह बुजुर्ग महिला, बेहद सम्मोहित कर रही थी। मेरे लिए, मेरे सामने, बालो में सफेदी लिए बैठी वह प्रौढा, सिर्फ, शारीरिक रूप से कामोत्तेजना का संचार करने वाली पूर्ण रूपेण स्त्री थी। मेरे अंदर प्रज्वलित हो चुकी कामाग्नि का न उनकी उम्र से कोई मतलब था, न सामाजिक बंधन की, न मर्यादा की और न ही संस्कार की बाध्यता की। उस क्षण, रात के सन्नाटे में, टेबल पर एक तरफ सिर्फ कामुकता से विहिल एक पुरुष बैठा था और दूसरी तरफ एक आभा बिखेरती स्त्री थी जो स्वयं अंजाने में उस पुरुष में काम को उद्वेलित कर रही थी।
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RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:14 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:18 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:21 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:24 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:26 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:36 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:39 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:42 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:44 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 04:56 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:00 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:02 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:04 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:07 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:08 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:16 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:20 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:23 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:27 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 23-04-2021, 05:30 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:16 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:17 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:24 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:27 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:27 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:31 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 09:44 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 11:00 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 29-04-2021, 11:03 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 01:25 PM
RE: चूत चुदाई... - by mastmast123 - 24-07-2021, 11:49 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 01:30 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 08:57 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 08:59 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 09:01 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 01-05-2021, 09:04 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:00 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:01 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:04 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:08 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:10 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 04-05-2021, 09:12 PM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 12-05-2021, 09:59 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 18-05-2021, 10:55 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 18-05-2021, 10:56 AM
RE: चूत चुदाई... - by usaiha2 - 18-05-2021, 10:57 AM
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