30-08-2021, 10:11 PM
चैप्टर 1, ठाकुर कि शादी, अपडेट 5
काली पहाड़ी से 2km दूर मंदिर मे रूपवती तांत्रिक कि तरफ बढ़ती है और हाथ जोड़ के धन्यवाद करती है
रूपवती :- धन्यवाद बाबा मुझमे विश्वास पैदा करने के लिए, मेरे अंदर कि नारी को जगाने के लिए
मै आपका आर्शीवाद जरूर प्राप्त करूंगी, आपका वीर्य ग्रहण करूंगी
तांत्रिक :- इतना आसान नहीं होगा ठकुराइन मेरा आशीर्वाद पाना
रूपवती :- मै इस कुरूपता को त्यागने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ बाबा, उस ठाकुर ज़ालिम सिंह ने मुझे मेरी कुरूपता कि वजह से त्यागा है उसको सबक सिखाने के लिए, असली रूपवती बनने के लिए मै किसी भी हद तक जा सकती हूँ
ऐसा सुन के तांत्रिक उलजुलूल अपने स्थान पे बैठ गया, जो कि पत्थर का कुर्सीनुमा सिंघासन था
तांत्रिक अपने दोनों पैर फैला के बैठ गया जिस वजह से उसका 12इंच का लिंग दोनों पैर के बीच किसी सांप कि तरह झूल रहा था
ये नजारा देख रूपवती सिहर उठती है साथ ही मन मे एक मदहोसी सी उठती है इतने बड़े लिंग को देख कर
रूपवती आगे बढ़ती है और पास रखे कटोरे को तांत्रिक के लिंग के नीचे रख देती है और बाबा को प्रणाम करती हुई पीछे हटती है..
आज उसे वो काम करना था जो आजतक नहीं किया था
रूपवती तांत्रिक कि आँखों मे देखती है और धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू सरका देती है जिस वजह से रूपवती के बड़े बड़े काले स्तन कि घाटिया उभर के सामने आ जाती है
तांत्रिक एक टक स्तन को घूरने लगता है लेकिन चेहरे पे कोई भाव नहीं आता, आंखे पथराई सी रहती है.
रूपवती मन मे :- कैसा पत्थर इंसान है ये तांत्रिक
साथ ही अब अपनी पूरी साड़ी खोल चुकी थी, रूपवती समझ चुकी थी कि ये उसकी परीक्षा है उसे अपने शरीर से एक पत्थर को पिघला के उसका रस निकालना था.
वही रंगा बिल्ला के अड्डे पर रुखसार कामवासना मे जल रही थी, हवस से उसकी आंखे लाल हो गई थी उसकी चुत और गांड मे लगातार रंगा और बिल्ला कि जबान चल रही थी
दोनों ही उसकी गांड से शराब निकाल लेना चाहते थे.
रंगा अपनी जीभ को आगे से तिकोना करता है और पूरीजीभ रुखसाना कि चुत मे घुसा के आगे पीछे करने लगता है
रुखसार के धैर्य का अब कोई ठिकाना ही नहीं था, फिर भी अपनी गांड को पूरी ताकत से भींचे अपने स्खलन को रोके हुए थी.
लज्जत से आंखे बंद थी ऐसा लग रहा था कि कोई तूफान गांड और चुत मे कैद है जो किसी भी कीमत पे आज़ाद होना चाहता है.
इधर बिल्ला रुखसाना कि गांड को चाट रहा था अपनी जीभ घुसाने कि कोशिश कर रहा था लेकिन रुखसाना पूरी ताकत से गांड भींचे आनंद कि चरम सीमा पे थी, कामवासना मे डूबा ऐसा बम थी जो कभी भी फट सकता था.परन्तु इस बम के फटने मे असीम आनंद था वो आनंद जो शारब का नशा भी देता
बिल्ला पूरी कोशिश करता है परन्तु सफल नहीं हो पाता वो अपना पूरा मुँह खोल के गांड के छेड़ के इर्द गिर्द कब्ज़ा कर लेता है जैसे खा ही जायेगा
रंगा ने भी बिल्ला को देखते हुई पूरी चुत मुँह मे भर ली और चुत के दाने को मुँह मे ले के जोर से दबा दिया....
आआआ हहहह ..... नहीं आआआ हहहहहह
किसी शेरनी कि गर्जना करती रुखसाना भरभरा के रंगा बिल्ला के मुँह मे झड़ने लगी....
फट फट .... फुर्रररररर कि आवाज़ के साथ गांड खुल गई और ढेर सारी शराब तेज़ प्रेशर के साथ सीधा बिल्ला के मुँह मे जाने लगी, और कुछ नीचे रिसती हुई चुत के रास्ते रंगा के मुँह मे जाने लगी.
रुखसार बैदम सी निढाल ही के आगे को पसर गई लेकिन बिल्ला ने गांड को सहारा दे के उसे ऊपर कि तरफ ही टांगे रखा
और गांड से निकली शराब पिने लगे.
एक भी बून्द जमीन मे नहीं गिरने दी,खूब चाट चाट के चूस चूस के जीभ गांड के अंदर डाल के, मुँह से खींच खींच के दोनों ने खूब शराब पी
शराब पिने ने ऐसा आनंद आज तक नहीं आया था....
जब पूरी शराब ख़त्म ही गई तो बिल्ला ने रुखसाना को छोड़ दिया.
रुखसाना किसी कटे पेड़ कि तरह ढह गई, लम्बी लम्बी सांसे खींचने लगी
ऐसा स्खलन उसे आज तक नहीं मिला था वो अंदर तक तृप्त हो चुकी थी.
अब रंगा बिल्ला शराब के नशे मे धुत रुखसाना को हाफ्ता देख रहे थे.... और जोर का ठाहका लगा रहे थे.
लंड अभी भी दोनों के बराबर खडे थे, आंखे हवस से भरी हुई थी...
रुखसाना समझ चुकी थी अब आगे क्या होना है
काली पहाड़ी से दूर मंदिर मे रूपवती अब सिर्फ ब्रा और पैंटी मे थी, तांत्रिक भी उसकीकाया देख के हैरान था
ऐसी स्त्री उसने भी आज तक नहीं देखि थी
रूप वती तांत्रिक के सामने घुटनो पे बैठ जाती है और अपनी एक ऊँगली मुँह मे डाल के कुछ देर चुस्ती है, ऐसे चुस्ती है जैसे कि लंड को और ऐसा करते हुए रूपवती कि नजर तांत्रिक के लिंग पे ही थी
अब वो अपनी ऊँगली को बाहर निकलती है उसपे लगे थूक को तांत्रिक कि तरफ दिखा कर अपने होंठ पे फेरने लगती है
रूपवती खुद नहीं जानती थी कि वो ऐसा कैसे कर ले रही है उसने तो कभी ऐसा देखा सुना ही नहीं था.
अपनी मनमोहनी अदाओ से रूपवती तांत्रिक को रिझा रही थी.
रूपवती अपने होंठो को गोल कर के ऊँगली अंदर बाहर करने लगी, थूक रिसते हुए ब्रा मे कैद स्तन पे गिर रहा था.
इतना थूक गिरा रही थी कि ब्रा गीली हो चली थी.
गिलापन तो नीचे पैंटी मे भी उत्पन्न होने लगा था, रूपवती हैरान थी कि ऐसे कैसे हो रहा है कभी भी इतनी वासना हावी नहीं हुई कि पैंटी गीली हो सके. बिना किसी मर्द के छुए चुत गीली कैसे हो रही है.
क्युकी ठाकुर साहेब के साथ तो सम्भोग ना के बराबर ही था,
वासना मे डूबी रूपवती आज कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी
रूपवती अपने काले घने बालो को खोल के लहरा देती है और दोनों हाथ सर के पीछे रख अपनी काली कांख(armpit) दिखाते हुए तांत्रिक कि आँखों मे देखती है...
वासना से भारी आँखों से देखते हुए रूपवती अपनी नाक कांख के करीब लाती है और एक गहरी सांस लेती है आज ये खुसबू उसे मदहोश कर रही थी, पसीने और इत्र कि मिली जुली खुसबू मंदिर के इस छोटे से गुफा नुमा कमरे मे फ़ैल जाती है.
ये खुसबू तांत्रिक कि नाक मे पहुँचती है, तांत्रिक हल्का सा विचलित होता है परन्तु इस विचलन को रूपवती भांप नहीं पाती और अपनी जीभ निकल के पता नहीं किस आवेश मे अपनी कांख चाटने लगती है
आज तक ये काम घृणाप्रद था परन्तु आज यही काम सुख प्रदान कर रहा था.
काम वासना मे औतप्रोत रूपवती पूरी जीभ निकाल के अपनी कांख ऊपर नीचे चाटने लगती है और एकटक तांत्रिक कि आँखों मे देखती रहती है.
ऐसा ही वो अपनी दूसरी कांख के साथ करती है दोनों ही कांख थूक से पुरे गीले हो चुके थे, जबान थी कि फिसले ही जा रही थी, रूपवती कि शरीर बेहद गरम होने पे आया था ऐसा लगता था जैसे रूपवती जल के खाक हो जाएगी...
कथा जारी है
काली पहाड़ी से 2km दूर मंदिर मे रूपवती तांत्रिक कि तरफ बढ़ती है और हाथ जोड़ के धन्यवाद करती है
रूपवती :- धन्यवाद बाबा मुझमे विश्वास पैदा करने के लिए, मेरे अंदर कि नारी को जगाने के लिए
मै आपका आर्शीवाद जरूर प्राप्त करूंगी, आपका वीर्य ग्रहण करूंगी
तांत्रिक :- इतना आसान नहीं होगा ठकुराइन मेरा आशीर्वाद पाना
रूपवती :- मै इस कुरूपता को त्यागने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ बाबा, उस ठाकुर ज़ालिम सिंह ने मुझे मेरी कुरूपता कि वजह से त्यागा है उसको सबक सिखाने के लिए, असली रूपवती बनने के लिए मै किसी भी हद तक जा सकती हूँ
ऐसा सुन के तांत्रिक उलजुलूल अपने स्थान पे बैठ गया, जो कि पत्थर का कुर्सीनुमा सिंघासन था
तांत्रिक अपने दोनों पैर फैला के बैठ गया जिस वजह से उसका 12इंच का लिंग दोनों पैर के बीच किसी सांप कि तरह झूल रहा था
ये नजारा देख रूपवती सिहर उठती है साथ ही मन मे एक मदहोसी सी उठती है इतने बड़े लिंग को देख कर
रूपवती आगे बढ़ती है और पास रखे कटोरे को तांत्रिक के लिंग के नीचे रख देती है और बाबा को प्रणाम करती हुई पीछे हटती है..
आज उसे वो काम करना था जो आजतक नहीं किया था
रूपवती तांत्रिक कि आँखों मे देखती है और धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू सरका देती है जिस वजह से रूपवती के बड़े बड़े काले स्तन कि घाटिया उभर के सामने आ जाती है
तांत्रिक एक टक स्तन को घूरने लगता है लेकिन चेहरे पे कोई भाव नहीं आता, आंखे पथराई सी रहती है.
रूपवती मन मे :- कैसा पत्थर इंसान है ये तांत्रिक
साथ ही अब अपनी पूरी साड़ी खोल चुकी थी, रूपवती समझ चुकी थी कि ये उसकी परीक्षा है उसे अपने शरीर से एक पत्थर को पिघला के उसका रस निकालना था.
वही रंगा बिल्ला के अड्डे पर रुखसार कामवासना मे जल रही थी, हवस से उसकी आंखे लाल हो गई थी उसकी चुत और गांड मे लगातार रंगा और बिल्ला कि जबान चल रही थी
दोनों ही उसकी गांड से शराब निकाल लेना चाहते थे.
रंगा अपनी जीभ को आगे से तिकोना करता है और पूरीजीभ रुखसाना कि चुत मे घुसा के आगे पीछे करने लगता है
रुखसार के धैर्य का अब कोई ठिकाना ही नहीं था, फिर भी अपनी गांड को पूरी ताकत से भींचे अपने स्खलन को रोके हुए थी.
लज्जत से आंखे बंद थी ऐसा लग रहा था कि कोई तूफान गांड और चुत मे कैद है जो किसी भी कीमत पे आज़ाद होना चाहता है.
इधर बिल्ला रुखसाना कि गांड को चाट रहा था अपनी जीभ घुसाने कि कोशिश कर रहा था लेकिन रुखसाना पूरी ताकत से गांड भींचे आनंद कि चरम सीमा पे थी, कामवासना मे डूबा ऐसा बम थी जो कभी भी फट सकता था.परन्तु इस बम के फटने मे असीम आनंद था वो आनंद जो शारब का नशा भी देता
बिल्ला पूरी कोशिश करता है परन्तु सफल नहीं हो पाता वो अपना पूरा मुँह खोल के गांड के छेड़ के इर्द गिर्द कब्ज़ा कर लेता है जैसे खा ही जायेगा
रंगा ने भी बिल्ला को देखते हुई पूरी चुत मुँह मे भर ली और चुत के दाने को मुँह मे ले के जोर से दबा दिया....
आआआ हहहह ..... नहीं आआआ हहहहहह
किसी शेरनी कि गर्जना करती रुखसाना भरभरा के रंगा बिल्ला के मुँह मे झड़ने लगी....
फट फट .... फुर्रररररर कि आवाज़ के साथ गांड खुल गई और ढेर सारी शराब तेज़ प्रेशर के साथ सीधा बिल्ला के मुँह मे जाने लगी, और कुछ नीचे रिसती हुई चुत के रास्ते रंगा के मुँह मे जाने लगी.
रुखसार बैदम सी निढाल ही के आगे को पसर गई लेकिन बिल्ला ने गांड को सहारा दे के उसे ऊपर कि तरफ ही टांगे रखा
और गांड से निकली शराब पिने लगे.
एक भी बून्द जमीन मे नहीं गिरने दी,खूब चाट चाट के चूस चूस के जीभ गांड के अंदर डाल के, मुँह से खींच खींच के दोनों ने खूब शराब पी
शराब पिने ने ऐसा आनंद आज तक नहीं आया था....
जब पूरी शराब ख़त्म ही गई तो बिल्ला ने रुखसाना को छोड़ दिया.
रुखसाना किसी कटे पेड़ कि तरह ढह गई, लम्बी लम्बी सांसे खींचने लगी
ऐसा स्खलन उसे आज तक नहीं मिला था वो अंदर तक तृप्त हो चुकी थी.
अब रंगा बिल्ला शराब के नशे मे धुत रुखसाना को हाफ्ता देख रहे थे.... और जोर का ठाहका लगा रहे थे.
लंड अभी भी दोनों के बराबर खडे थे, आंखे हवस से भरी हुई थी...
रुखसाना समझ चुकी थी अब आगे क्या होना है
काली पहाड़ी से दूर मंदिर मे रूपवती अब सिर्फ ब्रा और पैंटी मे थी, तांत्रिक भी उसकीकाया देख के हैरान था
ऐसी स्त्री उसने भी आज तक नहीं देखि थी
रूप वती तांत्रिक के सामने घुटनो पे बैठ जाती है और अपनी एक ऊँगली मुँह मे डाल के कुछ देर चुस्ती है, ऐसे चुस्ती है जैसे कि लंड को और ऐसा करते हुए रूपवती कि नजर तांत्रिक के लिंग पे ही थी
अब वो अपनी ऊँगली को बाहर निकलती है उसपे लगे थूक को तांत्रिक कि तरफ दिखा कर अपने होंठ पे फेरने लगती है
रूपवती खुद नहीं जानती थी कि वो ऐसा कैसे कर ले रही है उसने तो कभी ऐसा देखा सुना ही नहीं था.
अपनी मनमोहनी अदाओ से रूपवती तांत्रिक को रिझा रही थी.
रूपवती अपने होंठो को गोल कर के ऊँगली अंदर बाहर करने लगी, थूक रिसते हुए ब्रा मे कैद स्तन पे गिर रहा था.
इतना थूक गिरा रही थी कि ब्रा गीली हो चली थी.
गिलापन तो नीचे पैंटी मे भी उत्पन्न होने लगा था, रूपवती हैरान थी कि ऐसे कैसे हो रहा है कभी भी इतनी वासना हावी नहीं हुई कि पैंटी गीली हो सके. बिना किसी मर्द के छुए चुत गीली कैसे हो रही है.
क्युकी ठाकुर साहेब के साथ तो सम्भोग ना के बराबर ही था,
वासना मे डूबी रूपवती आज कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी
रूपवती अपने काले घने बालो को खोल के लहरा देती है और दोनों हाथ सर के पीछे रख अपनी काली कांख(armpit) दिखाते हुए तांत्रिक कि आँखों मे देखती है...
वासना से भारी आँखों से देखते हुए रूपवती अपनी नाक कांख के करीब लाती है और एक गहरी सांस लेती है आज ये खुसबू उसे मदहोश कर रही थी, पसीने और इत्र कि मिली जुली खुसबू मंदिर के इस छोटे से गुफा नुमा कमरे मे फ़ैल जाती है.
ये खुसबू तांत्रिक कि नाक मे पहुँचती है, तांत्रिक हल्का सा विचलित होता है परन्तु इस विचलन को रूपवती भांप नहीं पाती और अपनी जीभ निकल के पता नहीं किस आवेश मे अपनी कांख चाटने लगती है
आज तक ये काम घृणाप्रद था परन्तु आज यही काम सुख प्रदान कर रहा था.
काम वासना मे औतप्रोत रूपवती पूरी जीभ निकाल के अपनी कांख ऊपर नीचे चाटने लगती है और एकटक तांत्रिक कि आँखों मे देखती रहती है.
ऐसा ही वो अपनी दूसरी कांख के साथ करती है दोनों ही कांख थूक से पुरे गीले हो चुके थे, जबान थी कि फिसले ही जा रही थी, रूपवती कि शरीर बेहद गरम होने पे आया था ऐसा लगता था जैसे रूपवती जल के खाक हो जाएगी...
कथा जारी है