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Misc. Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर...
ठाकुर साहब मेरी बहन के ऊपर से उतर कर उनके बगल में लुढ़क गय.. उनका मुरझाया हुआ काला हथियार देखकर मेरी रूपाली दीदी को हंसी आने लगी... दीदी उनके सीने पर सर रख कर लेट गई... ठाकुर साहब ने अपने  हथियार से मेरी बहन को पूरा संतुष्ट किया था...
 ठाकुर साहब:  रुपाली मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं..
 मेरी रूपाली दीदी:  ठाकुर साहब मैं आपको शुक्रिया कहना चाहती हूं.. आपने जो सोनिया के लिए किया उसके लिए मैं बहुत एहसानमंद हूं आपकी... उसके चेहरे पर जो खुशी थी वह देख कर मुझे भी बड़ी खुशी हुई...
 ठाकुर साहब:  यह तो मेरा फर्ज है रुपाली.. भले ही तुम मुझे अपना नहीं समझती होंगी लेकिन मैं तो तुमसे प्यार करने लगा हूं.. और तुम्हारी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता हूं.. सोनिया मेरी  भी  बेटी ही है...
 ठाकुर साहब की बातें सुनकर मेरी दीदी  इमोशनल होने  लगी... धीरे-धीरे ही सही ठाकुर साहब मेरी दीदी के दिल में अपनी जगह बनाने लगे थे.. ठाकुर साहब के प्रति मेरी रूपाली दीदी के दिल में जो नफरत थी वह पूरी तरह खत्म हो चुकी थी... ठाकुर साहब मेरी दीदी के होठों को एक बार फिर चूमने लगे... तकरीबन 1 मिनट तक दोनों के बीच जबरदस्त चुंबन का सिलसिला चलता रहा... उसके बाद मेरी दीदी उठकर बाथरूम में चली गई.. अपने बदन को उसकी साफ सफाई करने के लिए..
 बाथरूम से निकलने के बाद मेरी दीदी ने अपनी साड़ी चोली अच्छे से पहन ली थी.. और वह बेडरूम से निकलकर किचन की तरफ गई चाय बनाने के लिए... मैं अपने बिस्तर पर बैठा किताब में नजर गड़ाए जानबूझकर उनको इग्नोर करना चाहता था.. मेरी दीदी ने किचन में जाने से पहले मेरी तरफ एक बार  घूर कर देखा था... मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं उनकी तरफ देखता...

 हम दोनों ही इस परिस्थिति को अच्छी तरह समझ रहे थे.. वैसे तो किसी पराए मर्द के साथ उसके बेडरूम में रात भर घमासान संभोग करने के बाद मेरी रूपाली दीदी को मेरा सामना करते हुए शर्मिंदा होना चाहिए था, पर यहां तो उल्टा हो रहा था... मैं शर्मिंदा हो रहा था और मेरी दीदी मुझे तेज गुस्से वाली निगाहों से घूर रही थी... मुझसे बिना कुछ बोले दीदी किचन में चली गई और चाय बनाने लगी... मेरे जीजाजी भी अपने व्हीलचेयर पर अपने कमरे से बाहर निकल कर आ चुके थे..
 मेरे जीजू:  क्या हुआ रूपाली बहुत थकी हुई लग रही हो सुबह-सुबह..
 मेरी रूपाली दीदी:  कुछ नहीं बस रात को ठीक से नींद नहीं आई..
 मेरे  जीजू:  क्या हुआ... अच्छा गर्मी के कारण ठीक से सो नहीं पाई.. ठाकुर साहब आ जाएंगे तो फिर कमरे  का  एयर कंडीशन ठीक करवाने के लिए मैं बोलूंगा उनको..
 मेरी रूपाली दीदी:  ठाकुर साहब आ चुके हैं.. कल रात को आए थे.. अभी सोए हुए हैं..
 मेरे जीजू:  ओ अच्छा... फिर तो उनको भी रात में बहुत तकलीफ हुई होगी... क्या  ठाकुर साहब अभी भी सो रहे हैं..
 मेरी रूपाली दीदी:  हां वह सो  रहे है...
 उन दोनों के बीच की होने वाली बातचीत सुनकर मुझे अजीब लग रहा था.. मेरे जीजू इतने  भोले क्यों कैसे हो सकते हैं... उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि कल रात को क्या कांड हुआ है..
 मेरी दीदी ने चाय बनाई... और  मुझे और जीजा जी को एक-एक कप  देने के बाद दो कप चाय लेकर ठाकुर साहब के बेडरूम के अंदर चली गई और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद कर लिया... मैं और जीजू दोनों ही उस बंद होते हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... मेरे जीजू तो हैरान होकर हक्का-बक्का लग रहे थे... वह मेरी तरफ देखने लगे.. मैं अपनी नजरें किताब में खड़ा कर देखने लगा...
 थोड़ी देर में ही उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियों की खनखन सुनाई देने लगी...
 मेरे जीजू:   सैंडी... तुम्हें कुछ सुनाई दे रहा है क्या.. यह चूड़ियों की आवाज...
 मैं:  नहीं जीजू आपके कान बज रहे हैं शायद...
 मेरे जीजू:  तुम्हारी दीदी ने अंदर से दरवाजा क्यों बंद कर लिया..
 मैं:  मुझे क्या पता... आप उनसे ही पूछ लो ना..
 मेरी जीजू हताश होकर नीचे जमीन की तरफ देखने लगे..
 हम दोनों के बीच आगे कोई बातचीत नहीं हुई... कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ी और पायल की खन खन आवाज सुनाई देती रही और पलंग चर चर चर करके हिल रहा था... मैं अपनी निगाहें किताब में गड़ाए हुए था.. मेरे  जीजा जी के चेहरे पर निराशा के भाव देख कर मुझे उन पर दया आ रही थी पर मैं कुछ बोल नहीं रहा था..
 तकरीबन 15 मिनट के बाद उस बेडरूम का दरवाजा खुला... ठाकुर साहब बाहर निकल  कर आ गए थे... उन्होंने बस लूंगी पहन रखी थी... उनका बदन पसीने से भीगा हुआ था...
 मेरे जीजू ने उनको गुड मॉर्निंग कहा ... ठाकुर साहब ने भी उनको गुड मॉर्निंग कहा...
 ठाकुर साहब न्यूज़पेपर उठाकर पढ़ने लगे.. सोफे के ऊपर बैठे हुए... मेरे जीजू उनसे कुछ पूछना चाह रहे थे पर उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी... वह उस बेडरूम के खुले हुए दरवाजे की तरफ देख रहे थे... बड़ी हिम्मत करके उन्होंने आखिरकार पूछ लिया..
 मेरे जीजू:   ठाकुर साहब.. रूपाली कहां है..
 ठाकुर साहब:  वह नहा रही है अभी..
 तकरीबन 15 मिनट के बाद मेरी रूपाली दीदी उस बेडरूम की कमरे से बाहर  निकल  के बाहर आ गई... पीले रंग की साड़ी चोली में मेरी दीदी आज कयामत लग रही थी... चेहरे पर हल्का  मेकअप... आंखों में काजल.. होठों पर लाली... और बिजली गिराने के लिए आज मेरी दीदी ने अपनी नाक में नथनी भी पहन रखा था... मेरे जीजू और ठाकुर साहब दोनों ही आंखें फाड़ फाड़ के उनको घूर रहे थे...
 मेरी दीदी सोनिया के बेडरूम में गई.. उसको जगा कर वह बाथरूम के अंदर ले गई.. सोनिया को ब्रश कराने के बाद... दीदी ने उसको कपड़े पहना  दीय.. सोनिया कॉलेज जाने के लिए तैयार हो  चुकी थी.
 मेरी रूपाली दीदी ने नूपुर को अपनी गोद में लिया... अपनी चोली उठाकर अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर  दीदी ने नूपुर का मुंह में डाल दिया और उसको दूध पिलाने लगी.. नूपुर को दूध पिलाने के बाद मेरी दीदी ने उसको पालने में फिर से सुला दिया... और सोनिया को साथ लेकर उस बेडरूम से बाहर निकल कर आ गई... बाहर हम तीनों ही बैठे हुए थे..
   दीदी सोनिया को लेकर किचन में गई और और उसके लिए ब्रेकफास्ट तैयार  करने लगी... इसी बीच ठाकुर साहब भी उठ कर अपने बेडरूम में चले गए और थोड़ी देर बाद अपनी शर्ट पैंट पहन कर वापस आ गए.. ब्रेकफास्ट करने के बाद सोनिया भी कॉलेज जाने के लिए तैयार थी..
 हम दोनों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है...
 मेरी रूपाली दीदी ने हम दोनों को  समझा दिया:  अब आज से ठाकुर साहब सोनिया को सुबह सुबह कॉलेज लेकर जाएंगे.. है ना सोनिया.. सोनिया भी यही चाहती है.. और मैं उसको कॉलेज से वापस लेने के लिए जाऊंगी...
 मेरे जीजू:   ठाकुर साहब और अब कितना एहसान करेंगे हमारे ऊपर...
 ठाकुर साहब:  कोई बात नहीं विनोद.. तुम्हारी बेटी भी मेरी बेटी की  तरह ही है...
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RE: मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर... - by babasandy - 28-08-2021, 03:22 PM



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