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Misc. Erotica मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर...
#98
आखिरकार ठाकुर साहब का भी शरीर अब अकड़ा और काँप उठा --- 
और आख़िर में मुँह से एक ज़ोरदार आवाज़ निकालने के साथ साथ एक अंतिम ज़ोर का, जबरदस्त धक्का मारा उन्होंने .
और मेरी रूपाली दीदी भी अपने चूत में ठाकुर साहब के लंड के अकड़न और ऐंठन को भांप कर ख़ुशी और यौन आनंद से 
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्मम्मम !!!”
चिल्ला उठी ..
मेरी बहन की नर्म – गर्म चूत में ठाकुर साहब का लंड किसी फौव्वारे की तरह छूट पड़ा था ...गर्म वीर्य पूरे चूत में भर गया ...और थोड़ा सा चूत से बाहर झाँक रहा था ... मेरी बहन की सांसो में मर्दाना वीर्य की खुशबू समाने लगी थी... मेरी दीदी भी उनके साथ ही झड़ गई थी...
 ठाकुर साहब ने आराम से अपने विशालकाय घोड़े को बाहर निकाला , मेरी रूपाली दीदी की चूत का मुँह ‘आ’ कर के खुला हुआ रहा , और उसमें से गाढ़ा वीर्य धारा बाहर बह निकली ...
सुबह-सुबह ही मेरी बहन को बुरी तरह पेलने के बाद ठाकुर साहब बुरी तरह थक चुके थे ... लंड को निकाल कर मेरी दीदी के बगल में ही बिस्तर पर धप्प से गिर गए ..
  थक तो मेरी रुपाली दीदी भी गई थी..पसीने से तर बतर ..चूत से गर्म वीर्य धारा बहती हुई ...टाँगे अब भी फैले हुए .. बाल बिखरे हुए ...गाल, गर्दन, कंधे, सीने और चूचियों पर लव बाइट्स के कारण बने लाल निशान ...नंग-धरंग पिता समान उम्र वाले एक आदमी के बगल में लेटी --- साँसों को नियंत्रण में लाने की पुरजोर कोशिश करती हुई ..होंठ और किनारों पर लगे ठाकुर साहब के लार को हथेलियों से थोड़ा थोड़ा कर पोछती हुई ..
आँखें बंद कर लेटी रही --- बिल्कुल चित्त....

 दोनों थोड़ी देर तक वैसे ही लेटे रहे और आराम करते रहे..
 मेरी रूपाली दीदी:  मुझे उठना होगा ठाकुर साहब.. सोनिया को कॉलेज ले जाने के लिए तैयार करना होगा..
 ठाकुर साहब:  ठीक है जाओ..
 मेरी रूपाली दीदी बेड से उतर  कर अपने कपड़े ढूंढने लगी शर्मिंदा होते हुए.. और अपने कपड़े उठाकर बाथरूम के अंदर चली गई.. तकरीबन 5 मिनट   के बाद मेरी  दीदी  बाथरूम से बाहर निकली तब उन्होंने अपने सारे कपड़े पहन लिए थे लगभग, बस मेरी बहन की साड़ी का पल्लू उनके सीने पर नहीं था.. लाल रंग की चोली में मेरी बहन की उन्नत बड़ी-बड़ी चूचियां और गहरी नाभि देखकर ठाकुर साहब को मेरी दीदी एक बार फिर आमंत्रण की देवी लगने लगी थी.. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यह छोटे कद की जवान खूबसूरत औरत अभी थोड़ी देर पहले उनके नीचे लेटी हुई आहें भर रही थी.. ठाकुर साहब ने एक सिगरेट जला ली.. मेरी दीदी ने अपनी साड़ी का पल्लू ठीक किया और कमरे से बाहर निकलकर किचन में चली गई.

 अगले 2 दिनों तक घर में शांति लग रही थी मुझे क्योंकि ठाकुर साहब एक बार फिर अपने नेतागिरी के चक्कर में 2 दिनों के लिए घर से बाहर चले गए थे... और इस बात की खुशी मुझसे ज्यादा और किसी को भी नहीं हो सकती थी... 2 दिनों तक मैं रात में बड़े चैन से सोया.. परंतु तीसरे दिन रात को ठाकुर साहब वापस लौट आय... वह काफी देर रात लौटे थे..  मैंने ही उनके लिए दरवाजा  खोला.. ठाकुर साहब की सांसो से शराब की बदबू आ रही थी.. वह नशे में झूम रहे थे... इसके बावजूद वह एक बार फिर  किचन में गए और वहां पर जाकर दो तीन पैग गटागट पीके मेरे पास आकर मुझसे पूछने लगे.
 ठाकुर साहब:  तेरी रुपाली दीदी किस कमरे में सो रही है... सैंडी..?
 मैं(  डरते हुए):  जी उस कमरे में...
 ठाकुर साहब:  ठीक है अब तुम सो जाओ..
 आज की रात एक बार फिर मेरे जीजाजी अपनी दोनों बेटियों के साथ ठाकुर साहब के बेडरूम में सो रहे थे.. और मेरी दीदी दूसरे वाले बेडरूम में जिसमें  जीजू सोया करते थे.. ठाकुर साहब मेरी रुपाली दीदी के बेडरूम के अंदर चले गए और उन्होंने अंदर से दरवाजा बंद किया.. दरवाजे बंद करने से पहले वह मेरी तरफ देखते हुए कुटिलता से मुस्कुरा रहे थे.. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था पर मैंने अपने आप पर काबू रखा हुआ था.. मैं चुपचाप देखता रहा उनको जब तक कि उन्होंने दरवाजा बंद नहीं कर लिया..
 मैं अपने बेड पर आकर लेट गया और उनके बेडरूम के अंदर होने वाली हरकतों को सुनने का प्रयास करने लगा.. तकरीबन 5 मिनट के अंदर ही मुझे दीदी की चूड़ियों की खन खन की आवाज सुनाई देने लगी.. दोनों आपस में  बहुत धीरे-धीरे बात कर रहे थे जो मैं ठीक से सुन नहीं पा रहा था..
अहाहहह्ह.. मम्मी... प्लीज ठाकुर साहब.. नहीं..अहहह.. मेरी रुपाली दीदी की कामुक सिसकियां उनकी चूड़ी और पायलों की खन खन के साथ मुझे सुनाई देने लगी... साथ ही उस कमरे का पलंग चरमर आने लगा था.. मैं समझ गया था कि पलंग हिलने  की वजह..
आऊऊऊऊचचच.. चोली  फट जाएगी मेरी... मेरी दीदी बोली ..मेरे कान खड़े हो गए थे उनकी आवाज सुनकर..
“आअह्ह्ह्ह ऊऊऊऊओ --- ह्ह्ह्हह्ह्ह्हम्म... नहीं ठाकुर साहब प्लीज अब रुक जाइए.. सुबह नूपुर को क्या  पिलाऊंगी... मेरी बहन तड़पते हुए बोल रही थी...
 आई लव यू रूपाली.. आई लव यू मेरी जान.. आज मुझे मत रोको... ठाकुर साहब बोल रहे थे..
 मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था.. मैं अपना ध्यान उस ओर से हटाना चाह रहा था लेकिन बार-बार कमरे के अंदर से आती हुई आवाज मुझे सुनने पर मजबूर कर दे रही थी.
 तकरीबन 10 मिनट के बाद ही..“आह्ह, आह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह्ह्ह, इस्स्स्स, इस्स्स्स, आह्ह्ह्ह, आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्आ्ह्ह्ह्ह्ह।” ये सिसकियां और कामुकता से भरपूर आहें मेरी रूपाली दीदी के मुंह से निकलकर मेरे कानों में गूंजने लगी थी.. साथ में पलंग के चर चर चर चर करने की आवाज.. और मेरी बहन की चूड़ी और पायल की खन खन  छन छन  छन की आवाज..
   थप थप थप थप...आह्ह्ह्ह... ठाकुर साहब...आह्ह्ह्ह.. धीरे प्लीज.
 उस रात ठाकुर साहब मेरी बहन को सुबह 3:00 बजे तक चोदने म लगे रहे.. फिर वह दोनों सो गए और मैं भी सो गया..
 लेकिन कुछ देर बाद ही मेरी आंख खुल गई... क्योंकि उस कमरे के अंदर से मेरी रूपाली दीदी की चूड़ियां फिर से खनखनआने लगी थी.. मैंने घड़ी की तरफ देखा तो सुबह के 6:00 बज चुके थे... मैंने मन ही मन सोचा कि यह ठाकुर साहब आदमी है या जानवर... रात भर मेरी रूपाली दीदी को पेलने के बाद भी इसका मन नहीं भरा है और सुबह-सुबह फिर से मेरी बहन   की लेना चाहता है...

 दरअसल उस बेडरूम के अंदर मेरी रूपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों बिस्तर पर नंगे लेटे हुए सोए हुए थे.. और मेरी रूपाली दीदी की आंख खुल गई थी.. वह मुस्कुराते हुए ठाकुर साहब के मुरझाए हुए लंड की तरफ देख रही थी.. और ठाकुर साहब तो खर्राटे मारते हुए सो रहे थे.. पिछले कुछ दिनों में जो कुछ भी हुआ था उसके कारण से मेरी रूपाली दीदी की शर्म कुछ कम हो गई थी ठाकुर साहब के प्रति... यह जानकर कि ठाकुर साहब नींद में मेरी रूपाली दीदी उनके मुसल लोड़े को पकड़ कर देखने  लगी हाथ से... ठाकुर साहब की नींद खुल गई.. उन्हें एहसास हुआ कि मेरी बहन उनका लंड थाम  के लेटी हुई है... उन्होंने मेरी बहन को पकड़कर अपने ऊपर खींच लिया और  मेरी दीदी को अपनी गोद में बिठा लिया अपनी जांघ पर... उनका लंड  मेरी रूपाली दीदी की दोनों जांघों के बीच में टन टना के खड़ा था ऊपर के पंखे की तरफ... 

 इसके पहले की ठाकुर साहब आगे का कार्यक्रम शुरू कर दे.. मैंने अपनी पूरी हिम्मत जुटाई और उनके बेडरूम का दरवाजा पीटना शुरू कर दिया धीरे धीरे... दरवाजे पर दस्तक सुनकर मेरी रुपाली दीदी और ठाकुर साहब दोनों  सन्न रह गय.. दोनों एक दूसरे की तरफ देख रहे थे.. उन दोनों को ही समझ नहीं आ रहा था कि आखिर दरवाजे पर कौन है.. मेरी दीदी तो बुरी तरह डर गई थी पर ठाकुर साहब ने अपना होश संभाला..
 ठाकुर साहब:  कौन है..
 मैं:  जी मैं  ठाकुर साहब.. मैं  मैं सैंडी..
 ठाकुर साहब:  हां सैंडी बोलो क्या हुआ?
 मैं:  कुछ नहीं ठाकुर साहब... वह मेरी जीजू जग गय है... और मेरी रूपाली दीदी को चाय  बनाने के लिए बोल रहे हैं...
 मेरी रूपाली दीदी ठाकुर साहब के ऊपर नंगी बैठी हुई थरथर कांपने लगी थी.. डर और रोमांच के मारे उनकी दोनों बड़ी-बड़ी दुधारू चूचियां  ऊपर नीचे होने लगी थी... ठाकुर साहब की नजरें मेरी रूपाली दीदी के ऊपर टिकी हुई थी...

 मेरी रूपाली दीदी की मांग में सिंदूर और उनके गले में लटकता हुआ मंगलसूत्र जो की दोनों दुधारू  चुचियों के ऊपर टिका हुआ उपर नीचे हो रहा था,  देखकर इस परिस्थिति में भी ठाकुर साहब बेहद उत्तेजित हो गए थे.. किसी दूसरे की  ब्याही औरत को अपने बिस्तर पर नंगी हालत में अपनी गोद में पाकर ठाकुर साहब  हवस की सारी सीमाएं लांग चुके थे... शायद इस बात का एहसास कि मैं उनका भाई दरवाजे के बाहर खड़ा हूं उनको और भी ज्यादा उत्तेजित कर रहा था... एक हाथ से उन्होंने अपना  मुसल लंड पकड़ लिया और मेरी बहन को अपनी गांड उठाने का इशारा किया.. मेरी दीदी ने भी अपनी गांड उठा  दी थी.. ठाकुर साहब ने अपने हथियार को मेरी रुपाली दीदी की सुर्ख गुलाबी चिकनी  मुनिया के ऊपर टीका के नीचे से झटका दिया और मेरी दीदी को ऊपर से दबा दिया.. उनका आधा लौंडा मेरी बहन की छेद में समा गया...

 मेरी रूपाली दीदी: ममममममम स्स्से... नहीं ...
 अपने मुंह से निकलने वाली  आवाज को दबाने की मेरी बहन ने पूरी कोशिश की पर मुझे सुनाई दे दी फिर भी..
 मैं:  क्या हुआ ठाकुर साहब...
 ठाकुर साहब:  कुछ नहीं हुआ क्या होगा... क्या तुम अभी भी यही खड़े हो...
 मैं:  हां ठाकुर साहब... मुझे लगा था मेरी बहन कुछ बोल रही है..
 मेरी बात सुनकर ठाकुर साहब को मजा आने लगा... उन्होंने अपना पूरा औजार मेरी बहन की छेद में ठोक दिया..  और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी बहन को पेलने लगे...
 ठाकुर साहब:   नहीं रे सैंडी... तेरी बहन तो सो रही है.. बस नींद में कुछ बड़बड़ा रही है...
 ठाकुर साहब को बहुत मजा आने लगा था.. इस प्रकार से मुझसे बात करते हुए और मेरी बहन के साथ खेलते हुए... एक झटके में उन्होंने अपना पूरा का पूरा मुसल लोड़ा मेरी रूपाली दीदी  की गीली गुलाबी चूत  में डाल दिया... और मेरी रूपाली दीदी की दोनों गांड को अपने हाथ से दबोच कर मेरी बहन की तरफ देखने लगे..
 अब सीन कुछ ऐसा था कि मेरी रूपाली दीदी बिस्तर पर ठाकुर साहब के लोड़े के ऊपर  सवार हो चुकी थी.. और मैं बाहर दरवाजे पर खड़ा था.
 मेरे रूपाली दीदी के गले में मंगलसूत्र और उनकी मांग में मेरे जीजा जी के नाम का सिंदूर देखकर ठाकुर साहब का लंड पत्थर की तरह सख्त हो चुका था... आंखों ही आंखों में उन्होंने मेरी  दीदी को  अपने लंड के ऊपर कूदने का इशारा किया... उनका इशारा देख कर मेरी बहन शर्म से पानी पानी हो गई... एक शर्मीली हाउसवाइफ होने के नाते मेरी दीदी में अभी भी इतना हौसला पैदा नहीं हुआ था कि वह किसी गैर मर्द के 

लंड की सवारी करें, खासकर तब जबकि उनका भाई दरवाजे के बाहर ही खड़ा है और उनका पति बगल के कमरे में लेटा हुआ है... ठाकुर साहब मेरी बहन की हालत को समझ रहे थे लेकिन उन्हें इस परिस्थिति में कुछ ज्यादा ही काम उत्तेजना हो रही थी...
 ठाकुर साहब ने मेरी बहन को दबोच  अपनी छाती से सटा लिया और नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर मेरी दीदी  की चूत में लंड पेलने लगे.

 मुझे कमरे के अंदर से से हल्की सी सिसकने की आवाज़ आई....उस आवाज़ को मैं झट से पहचान गया...आवाज़ मेरी बहन की थी. पर वो इस समय ठाकुर साहब के साथ क्या कर रही थी....उत्सकता वश मैं वही दरवाजे पर ही खड़ा रहा...  मुझे अजीब तो लगने लगा था.. लेकिन मेरा प्लान तो उनको डिस्टर्ब करने का था.. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अब मैं क्या करूं..

 अंदर कमरे में तकरीबन 5 मिनट तक इसी पोजीशन में मेरी रूपाली  दीदी की चूत को चोदने के बाद ठाकुर साहब ने मेरी बहन को पलट दिया और ऊपर चढ़कर चोदने लगे... दो-तीन मिनट के अंदर..
 मेरी दीदी( बहुत धीमी आवाज में): अहह.. ! अहह.. ! उ ई ई ईई... ठाकुर साहब प्लीज धीरे-धीरे.. मुझे लगता है..अहह.. !  मेरा भाई दरवाजे के बाहर खड़ा है..
 ठाकुर साहब:  हां रूपाली...अहह.. ! अहह.. मुझे पता है तुम्हारा भाई बाहर खड़ा है...
 मेरी रूपाली दीदी: अहह.. ! उ ई ई ईई मम्मी.. इसीलिए  आप जानवर की तरह..अहह..  मर गई..
 मेरी बहन की आवाज़ और ये लफ़्ज सुनते ही मेरे हाथ पैर काँपने लगे.....नज़ाने क्यों अंदर क्या हो रहा देखने की टीस मन मे उठने लगी....पर अंदर झाँकना ना मुमकिन था....मैं हड़बड़ा कर पीछे हटा और वापस जाने के लिए मूड नहीं वाला था कि..
 मेरे रूपाली दीदी: आहह..आहह... ठाकुर साहब...आहह.. मैं गई ..आहह
....
 ठाकुर साहब: आहह... रूपाली... आई लव यू... मेरा भी निकलने वाला है... बस ऐसे ही करती रहो..
 ठाकुर साहब ने अपने लोड़े की मलाई से मेरी रूपाली दीदी की गुलाबी सुरंग को पूरा भर दिया... और उनके ऊपर लेट के सुस्ताने लगे..
 मैं वहां दरवाजे से हटकर अपने बेड पर आकर बैठ गया और अपनी किताब निकाल कर पढ़ने की कोशिश करने लगा...
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RE: मेरी रूपाली दीदी और जालिम ठाकुर... - by babasandy - 27-08-2021, 10:10 PM



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