27-08-2021, 12:37 PM
(This post was last modified: 27-08-2021, 12:38 PM by Shubham Kumar1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अध्याय - 14
_________________
माया कोमल और तबस्सुम के साथ सेक्स की ट्रेनिंग लेते हुए पांच दिन कब गुज़र गए पता ही नहीं चला। इन पांच दिनों में उन तीनों हसीनाओं ने मुझे सेक्स के हर वो गुन सिखाए जिन्हें मैं सोच भी नहीं सकता था। अगर अपने दिल की कहूं तो वो ये था कि मैं उन तीनों हसीनाओं पर पूरी तरह फ़िदा हो चुका था। वो मेरे साथ ऐसा ब्यौहार करती थीं कि लगता ही नहीं था कि मैं उनके पास सेक्स की ट्रेनिंग लेने आया हूं। मेरा दिल करता था कि मैं चौबीसों घंटे उन ख़ूबसूरत बालाओं के साथ ही रहूं और जी भर कर उनसे वैसे ही प्यार करता रहूं। इन पांच दिनों में मैं अपनी बाहरी दुनियां को जैसे भूल ही गया था। ख़ैर मेरी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी और इस ट्रेनिंग की वजह से अब मेरे अंदर किसी भी तरह की शर्म या झिझक नहीं रह गई थी। मैं खुद महसूस करने लगा था कि अब मैं पहले वाला वो विक्रम नहीं रह गया था जो लड़की के सामने आते ही उससे नज़रें चुराने लगता था बल्कि अब तो मुझे खुद ऐसा महसूस होता था जैसे मैं दुनियां की किसी भी लड़की या औरत से बेझिझक हो कर हर तरह की बातें कर सकता हूं।
01 जनवरी 1999
तीन ख़ूबसूरत हसीनाओं से सेक्स की ट्रेनिंग ले कर मैं नए साल को एक नए रूप में दुनियां के सामने आने वाला था। सुबह का नास्ता करने के बाद मैं माया कोमल और तबस्सुम से बातें ही कर रहा था कि तभी वहां पर वही सफेदपोश आदमी आया जो कुछ दिन पहले मुझे यहाँ ले कर आया था। उसे देखते ही हम सब उसके सामने खड़े हो गए। मैंने देखा कि माया कोमल और तबस्सुम तीनों ही उससे बड़े ही अदब से बातें कर रहीं थी। ज़ाहिर था कि वो आदमी उनके लिए एक बड़ी हैसियत रखता था। ख़ैर कुछ देर उसने उन तीनों से बातें की जिसमें उसने मेरी ट्रेनिंग के बारे में ही पूंछा, उसके बाद उसने मुझे अपने साथ चलने को कहा तो एकदम से मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मुझे उसके साथ नहीं जाना चाहिए बल्कि माया कोमल और तबस्सुम के पास ही रहना चाहिए। पता नहीं पर शायद उन तीनों से मुझे लगाव सा हो गया था।
माया कोमल और तबस्सुम से विदा लेने का वक़्त आ गया था। मेरा मन एकदम से भारी हो गया था। मैंने उन तीनों की तरफ देखा तो उन्हें भी अपनी तरफ मुस्कुराते हुए देखता पाया। सफेदपोश के सामने उनके चेहरे पर मेरे प्रति कोई भाव नहीं थे, जबकि इसके पहले मैं महसूस करता था कि उनके मन में मेरे प्रति कहीं न कहीं प्यार या सम्मान वाली बात ज़रूर थी। ख़ैर उस सफेदपोश की मौजूदगी में मैंने उनसे ज़्यादा कुछ नहीं कहा, बल्कि भारी मन से उन्हें हाथ हिला कर ही अलविदा कहा और फिर उस सफेदपोश आदमी के साथ वहां से चल पड़ा।
उस जगह से जब मैं उस सफेदपोश के साथ थोड़ा बाहर की तरफ आया तो उसने मेरी आँखों में काली पट्टी बाँध दी। उसके बाद मैं उसके ही सहारे चलता हुआ आगे गया। कुछ देर बाद उसने मुझे कार में बैठाया और खुद भी मेरे बगल से बैठ गया। कार का दरवाज़ा बंद हुआ तो कार झटके से आगे बढ़ चली। क़रीब आधे घंटे बाद कार रुकी तो सफेदपोश आदमी ने मुझे कार से नीचे उतारा और फिर मुझे ले कर एक तरफ को चल दिया। मैंने महसूस किया कि यहाँ पर मेरे जिस्म में ठंडक का आभास हो रहा था। क़रीब पांच मिनट बाद उसने मुझे एक जगह रुक जाने को कहा और फिर मेरी आँखों से वो काली पट्टी निकाल दी। मेरी आँखों के सामने धुंधला धुंधला सा मंज़र नज़र आया। मैंने अपनी पलकें झपकते हुए इधर उधर नज़रें घुमाई तो कुछ ही पलों में मुझे समझ आया कि मैं एक बार फिर से उसी हाल पर आ गया था जिस हॉल में नीम अँधेरा था और हॉल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन जैसी कुर्सी पर वो काला नक़ाबपोश बैठा हुआ था जो शायद इन सबका बॉस था।
"वेलकम बैक ट्रिप्पल वन।" हॉल में उस रहस्यमयी आदमी की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"हमें उम्मीद है कि इन पांच दिनों में तुम ट्रेनिंग के बाद अब उस चीज़ के लिए बेहतर हो गए होगे जिस चीज़ के लिए तुम्हें चुना गया है।"
"जी मुझे भी ऐसा ही लगता है सर।" मैंने उस आदमी को सर कह कर सम्बोधित किया____"उस ट्रेनिंग के बाद मैं अपने आप में एक अलग ही तरह का बदलाव महसूस कर रहा हूं।"
"वैरी गुड।" रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"इसी तरह धीरे धीरे तुम्हें बाकी चीज़ों की ट्रेनिंग भी दे दी जाएगी। ख़ैर अब तुम हमारी इस संस्था के मेंबर बन चुके हो और इस संस्था के मेंबर के रूप में तुम्हारा नाम ट्रिप्पल वन है। यानी आज के बाद यहाँ पर लोग तुम्हें ट्रिप्पल वन के नाम से ही जानेंगे। हालांकि तुम्हारा चेहरा किसी की नज़र में नहीं आएगा और ना ही तुम कभी किसी को अपना चेहरा दिखाने का सोचोगे। संस्था की गोपनीयता बनाए रखने के लिए हर एजेंट को अपना चेहरा छुपा के रखने के साथ साथ अपनी असल पहचान को भी छुपा के रखना अनिवार्य है।"
"जी जैसी आपकी आज्ञा।" मैंने बड़े अदब से कहा।
"हमारी संस्था के नियम कानून का शख़्ती से पालन करना अनिवार्य है।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"संस्था का कोई भी नियम तोड़ने पर शख़्त से शख़्त सज़ा दी जाएगी।"
"पर मुझे तो अभी तक संस्था के सारे नियम कानून बताए ही नहीं गए सर।" मैंने हिम्मत कर के कहा।
"संस्था के ज़रूरी नियम तुम्हें हमने पहले ही बता दिया था।" उस शख़्स ने कहा_____"और अब बाकी के नियम कानून भी बता देते हैं। संस्था का पहला नियम ये है कि संस्था की गोपनीयता का ख़याल रखना संस्था के एजेंट की सबसे पहली प्राथमिकता है। अगर तुम्हारी वजह से संस्था का भेद किसी के सामने खुलने वाला हो तो तुम उसी वक़्त अपनी जान दे कर संस्था का भेद खुलने से बचाओगे। दूसरा नियम ये है कि तुम अपने बारे में जीवन में कभी भी किसी को ये नहीं बताओगे कि तुम सी एम एस नाम की किसी संस्था के एजेंट हो या इस नाम की किसी संस्था को जानते हो और अगर किसी को तुम्हारे इस भेद के बारे में पता चल जाता है तो तुम उसी वक़्त उस इंसान को ख़त्म कर दोगे। संस्था का तीसरा नियम ये है कि अपने मन में खुद कभी संस्था की जासूसी करने का ख़याल नहीं लाओगे, क्योंकि अगर संस्था को ये पता चल गया कि तुम संस्था के अंदर किसी तरह की जासूसी कर रहे हो तो तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी। संस्था का चौथा नियम ये है कि संस्था के किसी भी एजेंट से तुम ना तो उसके बारे में जानने की कोशिश करोगे और ना ही उसे अपने बारे में बताओगे। क्योंकि ऐसा करना संस्था के भेद जानने जैसा कहलाएगा और इसके लिए तुम्हें मौत की सज़ा दी जा सकती है। संस्था का पांचवां नियम ये है कि जिसको तुम सेक्स की सर्विस दे चुके होंगे उससे तुम विक्रम सिंह के रूप में या ट्रिप्पल वन दोनों ही रूपों में अपनी मर्ज़ी से मिलने की कोशिश नहीं करोगे।"
रहस्यमयी आदमी के चुप होते ही हॉल में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। मेरे कानों में अभी भी उस रहस्यमयी आदमी के बताए हुए नियम ही गूँज रहे थे। सारे नियम अपनी जगह पर सही और जायज़ थे और हाँ शख़्त भी थे।
"तुम्हें संस्था से दो जोड़ी ऐसे कपड़े दिए जाएंगे।" मुझे ख़ामोश देख कर उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"जैसे कपड़े संस्था के हर एजेंट पहनते हैं लेकिन ये कपड़े तभी पहनना होता है जब संस्था की तरफ से किसी काम को करने का हुकुम दिया जाता है। कहने का मतलब ये कि जब भी तुम हमारे हुकुम से किसी को सेक्स की सर्विस देने जाओगे तो उन्हीं कपड़ों को पहन कर जाओगे। वो कपड़े ऐसे होंगे जिनमें तुम्हारे जिस्म का कोई भी हिस्सा किसी को नज़र नहीं आएगा। अब तुम ये सोचोगे कि ऐसे कपड़े पहन कर तुम सेक्स की सर्विस कैसे दे आओगे क्योंकि सेक्स के लिए तो अपने औज़ार को कपड़े के अंदर से निकालना ज़रूरी होता है। असल में हमारा सर्विस देने का प्रोसेस ये है कि जब भी कोई एजेंट लड़की या औरत के पास सर्विस देने जाता है तो सबसे पहले उसकी आँखों में काली पट्टी बांधता है। उसके बाद कमरे में नीम अँधेरा या फिर पूरी तरह अँधेरा कर देता है। ऐसा इस लिए ताकि अगर मान लो उस लड़की या औरत के मन में अपने सेक्स पार्टनर को देखने का ख़याल आ गया और वो उसे देखने की कोशिश करे तो वो उसे देख न पाए। इसी लिए एजेंट को सेक्स करते समय अपने सारे कपड़े पहने रहना अनिवार्य है ताकि किसी भी तरह से उसकी पार्टनर उसका चेहरा न देख सके।"
"लेकिन ऐसी कोई लड़की या औरत ऐसा करेगी ही क्यों?" मैंने पूछा____"उसे तो सेक्स से और उस सेक्स से मिलने वाले सुख से ही मतलब होगा न?"
"दुनियां में कई तरह के प्राणी पाए जाते हैं।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"कुछ लोगों के मन में ये ख़याल भी उभर आता है कि जो ब्यक्ति सेक्स में उन्हें इतना अधिक आनंद दे रहा है वो दिखने में कैसा होगा? ये ख़याल जब किसी के अंदर प्रबल हो उठता है तो फिर वो वही करता है जिसके बारे में हमने तुम्हें पहले बताया है। वो ये भूल जाती हैं कि जिससे वो सेक्स का मज़ा ले रही हैं उसकी गोपनीयता का ख़याल रखना उनका भी फ़र्ज़ होता है। क्योंकि एक तरह से वो एजेंट अपनी जान हथेली पर रख कर उनको सेक्स की सर्विस देने आया होता है। ख़ैर इन्हीं सब बातों का ख़याल रख कर ही हमने सेक्स की सर्विस देने का ऐसा नियम बनाया था।"
रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैं इस बार कुछ न बोला था बल्कि उसकी बातों के बारे में सोचने लगा था। उसकी बात बिलकुल सही थी। सेक्स की सर्विस देने वाले एजेंट को यकीनन जान का ख़तरा रहता है। जो लड़कियां या जो औरतें किसी और के साथ इस तरह से सेक्स का मज़ा लेती हैं अगर उनके घर वालों को कहीं से इसकी भनक लग जाए और वो मौके पर वहां पर पहुंच जाएं तो यकीनन एजेंट के लेने के देने पड़ जाएंगे। ये सोचते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। एकदम से मेरे मन में ये ख़याल आया कि बेटा ऐसा मज़ा मिलना इतना भी आसान नहीं होता है बल्कि अगर पकड़े जाएं तो अपने लौड़े भी लग जाते हैं।
"तुम्हारे मन में अब ये सवाल उभर रहा होगा कि।" अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"इस काम में तो बहुत रिस्क है, तो फिर कैसे कोई एजेंट किसी लड़की या औरत को पूरी सफलता से सेक्स की सर्विस दे सकता है?"
"जी हाँ बिल्कुल।" मैंने झट से कहा____"ये सब बातें सुनने के बाद मुझे भी अब लग रहा है कि ये सब इतना आसान नहीं है।"
"फ़िक्र मत करो।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"संस्था के एजेंट सेक्स की सर्विस देने तभी जाते हैं जब हम खुद इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि हमारे एजेंट्स को सर्विस देने में कोई ख़तरा नहीं है। इसके लिए हमारे दूसरे एजेंट्स पहले से ही ऐसी हर बातों का पता लगा लेते हैं और फिर हमें सूचित कर देते हैं। उनकी पॉजिटिव रिपोर्ट मिलने के बाद ही हम एजेंट्स को सर्विस देने के लिए भेजते हैं।"
रहसयमयी आदमी की ये बात सुन कर कसम से जान में जान आ गई थी वरना मैं तो अब ये समझ बैठा था कि बेटा तूने तो ख़ुशी ख़ुशी अपने ही हाथों अपनी ही गांड फाड़ लेने का बढ़िया जुगाड़ कर लिया है। ख़ैर रहस्यमयी आदमी की बातों से मुझे अपनी गांड के सही सलामत होने का एहसास हुआ।
अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे पीछे वो सफेदपोश आदमी आया और उसने मेरे पास एक बड़ा सा नीले रंग का बैग रख दिया और मेरी तरफ एक चाभी बढ़ाई तो मैंने उसे ले लिया लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि वो बैग और वो चाभी किस लिए थी?
"इस बैग में तुम्हारे वो कपड़े हैं ट्रिप्पल वन।" हाल में रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"जिन्हें तुम्हें तब पहनना है जब तुम एजेंट के रूप में हमारे हुकुम से किसी को सर्विस देने जाओगे। उन कपड़ों के साथ इस बैग में कुछ और भी सामान है जो तुम्हारे लिए बेहद ज़रूरी होंगे और साथ ही एक मोबाइल भी है। एजेंट के रूप में जब भी तुम्हें कहीं भेजा जाएगा तो उसकी सूचना तुम्हें उसी मोबाइल पर दी जाएगी। एक बात और, तुम खुद कभी संस्था से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश नहीं करोगे। हालांकि ग़लती से अगर तुम ऐसा करोगे भी तो तुम कर नहीं पाओगे क्योंकि उस मोबाइल में आउटगोइंग वाला कोई सिस्टम नहीं होगा। ख़ैर अब तुम जा सकते हो।"
रहसयमयी आदमी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और वो बैग ले कर उस सफेदपोश आदमी के साथ चल पड़ा। मेरे ज़हन में कई सारी बातें चलने लगीं थी। जिनके बारे में जानने के लिए मेरे मन में उत्सुकता बढ़ गई थी।
"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?" रास्ते में मैंने उस सफेदपोश आदमी से कहा तो उसने पलट कर मेरी देखा।
"क्या पूछना चाहते हो?" कुछ पलों तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद उसने सपाट लहजे में कहा था।
"हाल के दूसरे छोर में बड़ी सी कुर्सी पर वो जो बैठे थे।" मैंने झिझकते हुए कहा____"उन्हें आप लोग क्या कहते हैं? मेरा मतलब है कि आप लोग उन्हें किस नाम से जानते हैं?"
"वो हमारे चीफ़ हैं।" उस सफेदपोश आदमी ने कहा____"और हम सब उन्हें ट्रिपल एक्स के नाम से जानते हैं और उन्हें सर या चीफ़ कहते हैं।"
"और आपको मैं क्या कह कर बुला सकता हूं?" मैंने हिम्मत कर के उससे पूछा तो उसने कहा____"मुझे ज़ीरो ज़ीरो सेवन कहते हैं और क्योंकि मैं तुमसे सीनियर हूं इस लिए तुम मुझे सर कह कर ही बुलाओगे। एक बात और, उस मोबाइल को हमेशा अपने पास ही रखना और इस बात का ख़ास ख़याल रखना कि वो मोबाइल किसी के हाथ न लगने पाए।"
उसकी बात सुन कर मैंने हाँ में सिर हिला दिया। उसके बाद मैंने उससे कुछ नहीं पूछा। थोड़ी ही देर में हम जब थोड़ा बाहर आए तो उस सफेदपोश ने मेरी आँखों में काली पट्टी बाँध दी। उसके बाद उसने किसी और को मुझे ले जाने का हुकुम दिया तो मैं दूसरे आदमी के साथ चल पड़ा। कुछ ही देर में मुझे एक कार में बैठाया गया और फिर मेरे बैठते ही कार आगे बढ़ चली। क़रीब बीस मिनट बाद मेरे आँखों से पट्टी हटा दी गई। मैंने कार की विंडो से बाहर देखा तो पता चला कि मैं शहर में दाखिल हो चुका था। मैंने मन ही मन सोचा कि सी एम एस नाम की संस्था वाली जगह शायद शहर से दूर कहीं पर है। ख़ैर कुछ ही देर में कार के ड्राइवर ने मेरे घर के क़रीब ही कार रोकी और मुझे उतर जाने को कहा तो मैं उतर गया।
मेरे पास अब दो बैग थे। एक तो वो जिसे मैं घर से ले के आया था और अब ये दूसरा बैग संस्था से मुझे मिल गया था। इस बैग में मेरे लिए ऐसे कपड़े रखे गए थे जिन्हें मैं अपनी फैमिली को नहीं दिखा सकता था। मैंने मन ही मन सोचा कि मुझे इस बैग को अपने कमरे में ऐसी जगह छुपा के रखना होगा जहां पर वो बैग मेरे माता पिता या बंगले की किसी नौकरानी की नज़र में न आए। यही सब सोचते हुए मैं घर पहुंच गया। मैं जानता था कि आज नए साल की पहली तारीख़ थी इस लिए मेरे माता पिता इस वक़्त अपने ऑफिस में ही होंगे। मेरे लिए ये अच्छी बात थी। गेट पर पहुंच कर मैंने डोर बेल बजाई तो शीतल आंटी ने दरवाज़ा खोला। शीतल आंटी हमारे घर की बहुत पुरानी नौकरानी थीं। हालांकि हम उसे नौकरानी नहीं मानते थे बल्कि उसे अपनी फैमिली का ही मेंबर मानते थे। ख़ैर मुझे देखते ही शीतल आंटी के चेहरे पर ख़ुशी की चमक आ गई और उन्होंने मुझे अंदर आने का रास्ता दिया तो मैं अंदर दाखिल हो गया। उन्होंने मुझसे मेरा हाल पूछते हुए मेरे पिकनिक के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें थोड़ा बहुत बताया और फिर अपने कमरे में चला गया।
कमरे में आ कर मैंने दरवाज़े को अंदर से बंद किया और फिर कमरे में कोई ऐसी जगह देखने लगा जहां पर मैं अपना ये बैग छुपा सकूं। मैं क्योंकि अपने माता पिता का इकलौता बेटा था इस लिए मेरा कमरा भी काफी बड़ा और खूबसूरत था। मैं सोचने लगा कि इस बैग को मैं इस कमरे में ऐसी कौन सी जगह पर छुपाऊं जिससे किसी की नज़र बैग पर न पड़ सके? काफी देर तक जांच परख करने के बाद मुझे यही समझ आया कि कमरे में और तो कोई ख़ास जगह नहीं है लेकिन एक जगह ऐसी है जहां पर मैं इस बैग को छुपा सकता हूं। मेरा बेड ही ऐसी वो जगह था, क्योंकि वो अंदर से खोखला था और उसमें सामान रखा जा सकता था। मैंने फ़ौरन ही बेड पर बिछे मोटे मोटे गद्दों को उठाया और फिर उसके नीचे की प्लाई को निकाल कर उसके अंदर देखा तो मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई।
अभी मैं मुस्कुरा ही रहा था कि तभी दरवाज़े के बाहर से शीतल आंटी की आवाज़ आई। वो मुझसे खाने पीने का पूछ रहीं थी तो मैंने उनसे कहा कि मैं आधे घंटे बाद खाऊंगा। ख़ैर उसके बाद मैंने सोचा कि पहले ये देख लूं कि बैग में क्या क्या चीज़ें मेरे लिए रख कर दी गई हैं? ये सोच कर मैंने जेब से चाभी निकाली और बैग पर लगा ताला खोला। बैग के अंदर सच में ऐसे कपड़े थे जो काले रंग के थे और उनमें डिज़ाइन के रूप में लेदर की पट्टियां बनी हुई थीं। एक काला मास्क भी था और काले दस्ताने भी। कपड़ों के नीचे एक मोबाइल था जो कि था तो कीपैड ही लेकिन उसकी स्क्रीन बड़ी थी। बैग के अंदर एक खंज़र भी था जो लेटर के कवर में ही बंद था और उसी के पास एक काले रंग का बॉक्स रखा हुआ था। मैंने उस बॉक्स को निकाल कर उसे खोला तो उसके अंदर मुझे जो चीज़ नज़र आई उसे देख कर मेरी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो गईं। दरअसल बॉक्स में एक रिवाल्वर था और उसी के साथ उसकी एक मैगज़ीन रखी हुई थी जिसमें गोलियां भरी हुई थीं। ये देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। मैं ये सोच कर थोड़ा कांप सा गया कि ऐसी ख़तरनाक चीज़ भला मेरे लिए किस काम में आ सकती थी? क्या इस लिए कि अगर मेरा राज़ किसी को पता चल जाए तो मैं उसे इसी रिवाल्वर के द्वारा जान से मार सकूं? मैंने कांपते हाथों से उस रिवाल्वर को बॉक्स से निकाला और बड़े गौर से उसे उलटा पलटा कर देखने लगा। रिवाल्वर में क्योंकि गोलियों से भरी मैगज़ीन नहीं लगी हुई थी इस लिए वो मुझे थोड़ा हल्का ही लग रहा था। सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे तो रिवाल्वर चलाना आता ही नहीं है और ना ही मेरा सटीक निशाना लग सकता है। इसका मतलब क्या इसे चलाने की भी मुझे ट्रेनिंग दी जाएगी? मुझे याद आया कि चीफ़ ने मुझसे कहा था कि धीरे धीरे मुझे बाकी चीज़ों की भी ट्रेनिंग दे दी जाएगी इसका मतलब उन चीज़ों में ये चीज़ भी शामिल है।
☆☆☆