22-08-2021, 11:00 AM
(This post was last modified: 22-08-2021, 11:01 AM by Shubham Kumar1. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
अध्याय - 13
_________________
शाम को वागले अपने घर पहुंचा। उसे थोड़ा गर्मी लग रही थी इस लिए उसने नहाने का सोचा। बाथरूम में नहाते समय उसे याद आया कि कल रात उसने अपनी बीवी से क्या कहा था। इस बात के याद आते ही उसने अपने लंड के बाल साफ़ किए और फिर बच्चों से छुपा कर उसने सावित्री से पूछा कि उसने अपने बाल साफ़ किए हैं कि नहीं? उसकी ये बात सुन कर सावित्री पहले तो हैरान हुई थी फिर उसने नज़रें चुराते हुए कहा था कि उसे इस बारे में याद ही नहीं आया। वागले ने उसे सारे काम छोड़ कर पहले अपनी सफाई करने पर ज़ोर दिया। मजबूरन सावित्री को बाथरूम में अपनी सफाई करने जाना ही पड़ा।
रात में डिनर करने के बाद दोनों पति पत्नी अपने कमरे में लेते हुए थे। वागले बहुत ही ज़्यादा उत्सुक था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ जल्द से जल्द ठीक उसी तरह सम्भोग करेगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था।
वागले ने जब सावित्री को दूसरी तरफ करवट लिए लेटा हुआ देखा तो वो सरक कर सावित्री के पास पहुंचा और उसे पीछे से पकड़ते हुए कहा कि क्या इरादा है भाग्यवान? सावित्री उसकी बात सुन कर चौंक गई थी। असल में उसके ज़हन में भी यही सब चल रहा था कि आज उसका पति उसके साथ क्या क्या करने वाला है।
वागले जनता था कि सावित्री खुद पहल करने वाली नहीं थी इस लिए उसने खुद ही पहल कर दी थी। उसने सावित्री को अपनी तरफ घुमाया और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा था। एक हाथ से वो उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलने लगा था। सावित्री उसके ऐसा करने से मचलने लगी थी। कुछ देर बाद वागले ने सावित्री के जिस्म से नाइटी निकाल दिया और ब्रा को भी। उसके बाद वो उसकी छातियों को बारी बारी से चूमने चाटने लगा था।
सावित्री के जिस्म में हलचल तो हो रही थी लेकिन वो खुद कुछ नहीं कर रही थी। वागले ने जब ये देखा तो उसने उससे कहा कि उसे भी उसका साथ देना चाहिए और इसमें मज़ा लेना चाहिए। वागले के कहने पर सावित्री ने उसका साथ देना शुरू कर दिया था। वागले पूरी तरह खुद को विक्रम सिंह की जगह पर रखे हुए था और सब कुछ वैसा ही करता जा रहा था जैसा डायरी में विक्रम सिंह ने लिखा था।
सावित्री की पेंटी उतार कर जब वागले ने उसकी चिकनी चूत को देखा तो देखता ही रह गया था। सावित्री की चूत आज बेहद साफ़ और चिकनी थी। अपनी चूत को इस तरह गौर से देखता देख सावित्री बुरी तरह शर्माने लगी थी। इधर वागले झुक कर उसकी चूत को चूमने लगा था। अपनी चूत को इस तरह चूमते देख सावित्री बुरी तरह मचलने लगी थी और साथ ही उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि वागले ने उसकी चूत को इस तरह चूमा रहा हो। औरत का ये अंग बेहद ही संवेदनशील होता है। जब वागले लगातार उसकी चूत को चूमता चाटता रहा तो सावित्री का कुछ ही देर में बुरा हाल होने लगा। उसके मुख से मज़े में डूबी सिसकारियां उभरने लगीं थी जिसे वो बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश कर रही थी।
वागले जो अब खुद को विक्रम सिंह ही समझ बैठा था वो पूरे जोश और पागलपन में अपनी बीवी की चूत को चाटे जा रहा था। हैरानी की बात थी कि आज से पहले वागले ने कभी ऐसा करने के बारे में सोचा तक नहीं था और आज वो किसी कुत्ते की तरह अपनी बीवी की चूत को चाटने में लगा हुआ था। यकीनन वो होश में नहीं था वरना अगर ज़रा भी उसे एहसास होता कि वो इस वक़्त क्या कर रहा है तो उसे उल्टियां आने लगतीं। ख़ैर जो भी हो वागले आज एक नए ही रूप में था और उसकी बीवी उसकी इस क्रिया से हैरान परेशान तो थी ही लेकिन जब उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं तो उसे भी वागले के ऐसा करने से अब कोई परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि वो तो अब यही चाहती थी कि वागले इसी तरह उसकी चूत को चाटता रहे।
"आह्ह्ह्ह ये क्या हो रहा है मुझे?" मज़े में डूबी सावित्री सिसकारियां भरते हुए जैसे बोल पड़ी थी____"आज से पहले मेरे जिस्म में ऐसी आनंद की तरंगें कभी नहीं उठीं थी। आह्ह्ह्ह रूप के पापा ये क्या कर रहे हैं आप?"
सावित्री क्या बोल रही थी ये तो जैसे वागले को अब सुनाई ही नहीं दे रहा था वो तो बस पूरे जोश में उसकी चूत को चाटे जा रहा था। उसका पूरा मुँह सावित्री की चूत से निकले कामरस से लिसलिसा हो गया था। उधर सावित्री कभी बेड पर बिछी चादर को अपनी मुट्ठियों में खींचती तो कभी खुद ही अपने हाथों से अपनी बड़ी बड़ी छातियों को मुट्ठी में भर कर मसलने लगती।
जब सावित्री से बर्दास्त नहीं हुआ तो उसने हाथ बढ़ा कर वागले के बालों को पकड़ कर ज़ोर से खींचा तो वागले दर्द से आह भरते हुए उसकी चूत से हटा और उसकी तरफ इस तरह देखा जैसे भारी नशे में हो।
"क्या हुआ मेरी जान?" वागले जैसे नशे में ही बोला____"मज़ा नहीं आ रहा क्या तुम्हें?"
"आप मज़े की बात करते हैं और यहाँ मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा है।" सावित्री अपनी उखड़ी हुई साँसों को किसी तरह काबू करते हुए बोली____"आख़िर क्या हो गया है आपको? आज से पहले तो ऐसा कभी नहीं किया आपने। आप उस जगह को कैसे इस तरह चाट सकते हैं जो जगह इतनी गन्दी होती है?"
"किसने कहा कि वो जगह गन्दी होती है मेरी जान?" वागले ने हाथ नचाते हुए कहा____"अरे! वो जगह तो स्वर्ग का द्वार होती है रानी। पहले मुझे भी इसका एहसास नहीं था लेकिन अब एहसास हो चुका है मुझे। अब मैं समझ गया हूं कि स्वर्ग का असली मज़ा कैसे मिलता है। तुम भी मेरे साथ स्वर्ग के इस मज़े में डूब जाओ डियर।"
"मैं तो ये सोच सोच के ही पागल हुई जा रही हूं कि आप ये सब कहां से सीख के आये हैं?" सावित्री ने कहा____"आज से पहले तो कभी आपने इस तरह से कुछ नहीं किया था।"
"सब कुछ बताऊंगा मेरी जान।" वागले ने उसकी एक चूची को मसलते हुए कहा____"अभी तो फिलहाल तुम इस सबका मज़ा लो। मैं जो करूं वो तुम करने देना और फिर मैं जो कहूं वो तुम करना। फिर देखना कैसे तुम्हें इस सब में मज़ा आएगा।"
वागले की बातें सुन कर सावित्री कुछ न बोली, बल्कि हैरत से उसे देखती रही। उधर वागले इतना कहने के बाद फिर से सावित्री पर टूट पड़ा था। वो हाथों से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को मसलते हुए चूसने लगा था और सावित्री एक बार फिर से अपने जिस्म में उठने लगी मज़े की तरंगों में डूबने लगी थी। वागले उसकी चूचियों को चूसते हुए नीचे की तरफ सरका और पेट को चूमते हुए फिर से उसकी चूत पर आ गया। उसने उसकी चूत को फिर से जीभ से चाटना शुरू कर दिया। सावित्री के जिस्म में बड़ी तेज़ी से सनसनी हुई और वो बिना पानी के मछली की तरह मचलने लगी।
वागले ने एक झटके से अपना चेहरा सावित्री की चूत से हटाया और तेज़ी से अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही वो पूरी तरह नंगा हो गया। उधर सावित्री अचानक ही रुक गई मज़े की तरंगों की वजह से होश में आ गई थी और वो झटके से आँखें खोल कर अपने पति वागले को देखने लगी थी। वागले को पूरी तरह नंगा होते देख सावित्री की आँखें फैल गईं। लाइट के तेज़ प्रकाश में उसकी नज़रें वागले के खड़े हुए लंड पर जैसे जम सी गईं थी। वैसे तो उसने न जाने कितनी ही बार वागले के लंड को देखा था लेकिन आज की बात ही अलग थी। आज उसका पति एक अलग ही अवतार में नज़र आ रहा था। उसे लग ही नहीं रहा था कि वो दो दो जवान बच्चों का एक ऐसा पिता है जिसने आज से पहले कभी भी इस तरह सेक्स के प्रति इतनी उग्रता और निर्लज्जता नहीं दिखाई थी।
"अब देखती ही रहोगी या इसे प्यार भी करोगी मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री उसकी ये बात सुन कर हड़बड़ा गई और एकदम से अपनी नज़रें वागले के लंड से हटा कर वागले की तरफ देखने लगी।
"उठो मेरी जान।" वागले बेड पर सीधा लेटते हुए बोला____"और जैसे मैंने तुम्हारी चूत को चाट चाट कर प्यार किया है वैसे ही अब तुम मेरे लंड को अपने मुंह में भर कर इसे प्यार करो।"
"क् क्...क्या???" वागले की बात सुन कर सावित्री को जैसे ज़बरदस्त झटका लगा। उसने हैरतज़दा आँखों से वागले की तरफ देखते हुए आगे कहा____"ये क्या कह रहे हैं आप??"
"इतना चकित न हो डियर।" वागले ने सावित्री का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा____"असली मज़े की तरंग में डूबना है तो वही करो जो मैं कह रहा हूं। चलो उठो अब, देर मत करो वरना सारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा।"
वागले के द्वारा हाथ पकड़ कर उठाए जाने पर सावित्री उठ तो गई लेकिन वो अभी भी उसकी तरफ फटी फटी आँखों से देखे जा रही थी। जैसे यकीन न कर पा रही हो कि उसके पति ने अभी अभी उससे जो करने के लिए कहा है वो सच है या बेवजह ही उसके कान बज उठे थे।
"ऐसे क्यों देख रही हो यार?" सावित्री को भौचक्की सी हालत में अपनी तरफ देखते देख वागले ने इस बार थोड़ा खीझते हुए कहा_____"जो कह रहा हूं वो करो जल्दी।"
"प...पर ये सब।" सावित्री के जैसे होश उड़े हुए थे, हकलाते हुए बोली____"ये मैं नहीं कर सकती। आप सोच भी कैसे सकते हैं कि मैं इतना गन्दा काम करुँगी?"
"तुमने मुझसे वादा किया था सावित्री कि तुम वही करोगी जो करने को मैं कहूंगा।" वागले ने शख़्त भाव से कहा___"और अब तुम अपना किया हुआ वादा तोड़ रही हो। अगर वादा ही तोड़ना था तो ऐसा बोला ही क्यों था तुमने?"
"म..मुझे क्या पता था कि आप मुझसे ये करने को कहेंगे।" सावित्री ने एक नज़र वागले के लंड पर डालते हुए कहा____"मैं तो यही समझती थी कि आप मुझे सेक्स करने के लिए कहेंगे और मैं वो ख़ुशी ख़ुशी आपके साथ कर लूंगी। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि आप मुझसे ऐसा गन्दा काम करने को कहेंगे? आख़िर आपको हो क्या गया है? मैं तो यही सोच कर शर्म और हैरत में डूबी जा रही हूं कि आपने मेरे वहां पर मुँह कैसे लगाया। भला कोई ऐसी गन्दी जगह पर मुँह लगता है क्या?"
"मैं भी अभी तक इस बारे में ऐसा नहीं सोच सकता था।" वागले ने कहा____"लेकिन अब मैं जान चुका हूं कि दुनियां में ये सब भी होता है। आज कल सेक्स करने की शुरुआत ही इसी तरीके से होती है। पहले मुझे भी भरोसा नहीं हो रहा था लेकिन जब मैंने खुद किया तो मुझे यकीन हो गया कि ये सब करने में एक अलग ही मज़ा आता है। तुम खुद भी तो मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर कितना आनंद में डूब गई थी। याद करो जब मैं तुम्हारी चूत को मज़े से चाट रहा था तब तुम किस क़दर मज़े में डूब गई थी और मज़े में सिसकियां ले रही थी। यहाँ तक कि उसी मज़े में डूब कर तुम अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर झोंकती जा रही थी और ये भी कह रही थी कि तुम्हें ऐसा मज़ा इसके पहले कभी नहीं मिला।"
वागले की बातें सुन कर सावित्री का चेहरा ये सोच कर शर्म से झुकता चला गया कि उसका पति सही कह रहा है। उस वक़्त सच में वागले के ऐसा करने पर उसे बेहद आनंद मिल रहा था और उसका दिल कर रहा था कि वागले ऐसे ही उसकी चूत को चाटता रहे। उसे शर्म से सर झुकाए और कुछ न बोलता देख वागले ने उसके चेहरे को पकड़ कर ऊपर किया।
"मैं जनता हूं कि शुरू शुरू में ये सब करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता।" वागले ने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"ख़ुद मेरे लिए भी आसान नहीं था। जैसे तुम ये कह रही हो कि उस गन्दी जगह पर कोई कैसे मुँह लगा सकता है वैसे ही मैं भी यही सोचता था लेकिन सच के प्रमाण को जानने समझने के लिए मैंने ज़बरदस्ती ऐसा किया और यकीन मानो ऐसा करने के बाद मुझे बेहद मज़ा ही आया। उसके बाद तो मैं वैसा ही करता चला गया। मेरे ज़हन में ज़रा भी ये ख़याल नहीं आया कि वो जगह कितनी गन्दी होती है।"
"पर मुझसे नहीं हो पाएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए बेबस भाव से कहा____"मुझे तो सोच के ही घिन आती है। ऐसा करुँगी तो न जाने क्या हो जाएगा।"
"कुछ नहीं होगा मेरी जान।" वागले ने झुक कर उसके होठों को प्यार से चूमा और फिर कहा____"हर चीज़ को करने का एक तरीका होता है। जब किसी चीज़ को तरीके से किया जाता है तो वो चीज़ करने में बेहद आसान हो जाती है और ये बात मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं बल्कि जब खुद किया तब मुझे भी समझ आया है। तुम भी करो डियर। अपनी आँखें बंद कर के और अपनी साँसें रोक कर करो। पहले धीरे धीरे करो और जब लगे कि ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं है तो उसे मज़े में डूब कर करना शुरू कर दो।"
वागले की बातें सुन कर सावित्री ख़ामोशी से अपने पति की तरफ देखती रही। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभर रहे थे। वो समझ चुकी थी कि उसे वो करना ही पड़ेगा जो करने के लिए उसका पति कह रहा है। वो जानती थी कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उसका पति फिर से उससे नाराज़ या गुस्सा हो जाएगा। ये सोच कर उसने अपनी आँखें बंद कर के गहरी सांस ली। वागले उसी को ध्यान से देख रहा था। जब सावित्री ने आँखें बंद कर के गहरी सांस ली तो वो समझ गया कि सावित्री वैसा करने के लिए खुद को तैयार कर रही है।
वागले जानता था कि इन सारी बातों के चलते दोनों के जिस्म में मज़े की जो तरंगे इसके पहले भर गईं थी वो अब गायब हो चुकी हैं। इस लिए उसने उन मज़े की तरंगों को वापस लाने के लिए फिर से सावित्री को पकड़ कर उसके होठों को चूमना चूसना शुरू कर दिया। उसकी सोच थी कि सावित्री जब मज़े में डूब जाएगी तो उसके लिए उसके लंड को मुँह में भर कर प्यार करना थोड़ा आसान सा हो जाएगा।
वागले सावित्री के होठों को चूसते हुए एक हाथ से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलता जा रहा था। कुछ देर छातियों को मसलने के बाद उसने अपना हाथ सावित्री की चिकनी चूत पर रखा और उसे सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में हलचल होने लगी जिसे उसने खुद भी महसूस किया। ये महसूस करते ही उसने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री का जिस्म बुरी तरह मचलने लगा। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के उस हाथ पर रख लिया। इधर वागले ज़ोर ज़ोर से अपनी ऊँगली को उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा था जिससे सावित्री ने उसके होठों से अपने होठों को आज़ाद किया और तेज़ तेज़ सिसकियां लेने लगी। आँखें बंद किए वो बुरी तरह मचलने लगी थी। इधर वागले सिर नीचे कर के उसकी चूची के एक निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। दो तरफ से हो रहे हमलों ने सावित्री की हालत ख़राब कर दी। वो बुरी तरह छटपटाते हुए वागले के सिर को अपनी छाती पर दबाती जा रही थी।
"आह्ह्ह्ह रूप के पापा।" सावित्री आहें भरते हुए बोल पड़ी____"ये क्या हो रहा है मुझे? मेरा जिस्म क्यों इतना ज़्यादा मचला जा रहा है? ऐसा लगता है जैसे आअह्ह्ह शीश्श्श् जैसे मेरे अंदर एक ऐसी गर्मी सी भरती जा रही है जो मुझे जला भी रही है और मुझे असीम सुख भी दे रही है।"
"मेरे साथ इस आग में जलती रहो मेरी जान।" वागले ने उसकी चूची के निप्पल को मुँह से निकालते हुए कहा____"और जो मज़ा मिल रहा है उसमें बस डूबती जाओ। अच्छा ये बताओ कि इस सबसे तुम्हें कितना मज़ा आ रहा है?"
"मत पूछिए रूप के पापा।" सावित्री ने उसके चेहरे को अपनी उसी छाती पर ज़ोर से दबाते हुए कहा जिसे वागले चूस रहा था, बोली____"मैं कुछ बता नहीं सकती। बस इतना ही महसूस कर रही हूं जैसे मैं मज़े में डूबती जा रही हूं। फिर दूसरे ही पल ऐसा लगने लगता है जैसे मैं यहाँ पर हूं ही नहीं बल्कि किसी और ही दुनियां की तरफ भागी जा रही हूं। आह्हहहह मेरी छाती को ज़ोर से चूसिए न।"
वागले समझ गया कि उसकी बीवी अब उसी स्टेज पर है जहां पर वो उसे पहुंचा देना चाहता था ताकि जब वो उसे अपना लंड मुँह में भरने को कहे तो वो इंकार न कर सके। ख़ैर उसके कहने पर वागले ने एक बार फिर से उसकी चूची के निप्पल को मुँह में भरा और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। वो निप्पल को चूसते हुए खींच भी लेता था जिससे सावित्री ज़ोर से मचलते हुए सिसिया उठती थी। उधर उसकी चूत में वो अभी भी ऊँगली करता जा रहा था जिससे उसकी वो ऊँगली ही नहीं बल्कि उसकी हथेली भी सावित्री के चूत से निकले कामरस से भींग गई थी।
वागले के मन में जाने क्या आया कि उसने सावित्री की चूत से अपनी ऊँगली निकाली और तेज़ी से ऊपर ला कर सावित्री के मुँह में डाल दिया। सावित्री आँखें बंद किए मज़े में डूबी हुई थी और अपने होठ खोले सिसकियां ले रही थी। जैसे ही वागले ने उसके मुँह में चूत रस से भींगी ऊँगली डाली तो सावित्री अपने होठ उसकी ऊँगली में कस लिए और उसकी उंगली को चूसना शुरु कर दिया। मज़े और मदहोशी में जैसे उसे पता ही नहीं चला था कि उसके पति की ऊँगली में उसका ही चूत रस लगा हुआ था।
वागले ने अपनी ऊँगली को आधा निकाल कर फिर से उसके मुँह में अंदर तक डाला। ऐसा उसने दो तीन बार किया, सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने होठों की पकड़ से छोड़ा नहीं। ये देख कर वागले मुस्कुराया।
"मेरी ऊँगली का स्वाद कैसा लगा मेरी जान?" वागले ने उसके कान में सरगोशी करते हुए पूछा तो सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने मुँह से निकाल कर सिसियाते हुए कहा_____"बड़ा नमकीन सा स्वाद है रूप के पापा। मेरे मुँह में अपनी ऊँगली फिर से डालिए न।"
सावित्री की बात सुन कर वागले मन ही मन ये सोच कर हँसा कि सावित्री को अभी भी ये एहसास नहीं हुआ कि उसे उसकी ऊँगली में जो नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ था वो असल में क्या था। ख़ैर वागले उसके कहने पर अपना वो हाथ तेज़ी से नीचे लाया और सावित्री की चूत में उस हाथ की बड़ी वाली ऊँगली झटके से घुसेड़ दी, जिससे सावित्री ने मचलते हुए लम्बी आह भरी। इधर वागले ने तेज़ी से उसकी चूत में अपनी ऊँगली को दो तीन बार अंदर बाहर किया और फिर उसी तेज़ी से निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया।
सावित्री के मुँह में जैसे ही उसकी ऊँगली घुसी तो सावत्री फ़ौरन ही उसे लोलीपाप की तरह चूसने लगी। ये देख कर वागले के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। इस वक़्त सावित्री पर उसे बेहद प्यार आ रहा था और यही वजह थी कि उसने अगले ही पल उसके मुँह से अपनी ऊँगली निकाली और उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया।
सावित्री पूरी तरह मज़े के तरंग में डूब चुकी थी। बंद कमरे में उसकी आहें तथा उसकी सिसकारियां गूँज रहीं थी। वागले ने उसे बड़े ही आहिस्ता से बेड पर सीधा लेटाया और फिर जल्दी ही उसके चेहरे के पास अपना लंड ला कर उसके होठों पर छुआया। सावित्री मज़े में आँखें बंद किए हुए थी और जैसे ही उसे अपने होठों पर किसी चीज़ का एहसास हुआ तो उसे लगा उसका पति फिर से अपनी ऊँगली उसके मुँह में डालना चाहता है इस लिए उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया।
सावित्री ने जैसे ही अपना मुँह खोला तो वागले ने अपने खड़े लंड को उसके मुँह में बड़ी ही सावधानी से घुसेड़ दिया। सावित्री को पहले तो समझ न आया लेकिन जल्दी ही उसे एक अलग एहसास हुआ और उसने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। नज़र अपने बेहद क़रीब हल्का झुके वागले पर पड़ी। कुछ पल उसे कुछ समझ न आया लेकिन जल्द ही उसे पता चल गया कि इस वक़्त उसके मुँह में उसके पति का लंड है। उसकी आँखें हैरत से फट पड़ीं और उसने जल्दी से अपने मुँह से उसके लंड को निकालना चाहा मगर वागले जैसे पहले से ही जानता था इस लिए उसने सावित्री के सिर को मजबूती से पकड़ लिया और अपनी कमर को थोड़ा और आगे सरकाया जिससे उसका लंड सावित्री के मुँह में थोड़ा और अंदर चला गया।
"घबराओ मत मेरी जान।" वागले ने सावित्री को देखते हुए कहा____"आँखें बंद कर लो और ये समझो कि तुम मेरी ऊँगली को ही चूस रही हो। एक बार कोशिश तो कर के देखो डियर, मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें इसको लोलीपाप की तरह चूसने में बेहद मज़ा आएगा।"
सावित्री के चेहरे पर अभी भी अजीब से भाव थे। वागले की बात सुन कर उसने बेबस भाव से ही सही लेकिन आँखें बंद कर ली। उसके मुँह में वागले का लंड टोपे सहित घुसा हुआ था। जब सावित्री ने अपनी आँखें बंद कर ली तो वागले अपनी कमर को हिलाने लगा। उसने सावित्री के सिर को छोड़ा नहीं था, क्योंकि वो जानता था कि उसके हाथ हटाते ही सावित्री उसके लंड को अपने मुँह से निकाल देगी। कुछ देर बाद वागले ने महसूस किया कि सावित्री ने विरोध करना बंद कर दिया है तो उसने अपने दोनों हाथ उसके सिर से हटा लिए और उसकी छातियों को मसलने लगा।
सावित्री का चेहरा ही बता रहा था कि अपने मुँह में अपने पति का लंड होने से उसे कितना ख़राब लग रहा था लेकिन जैसे उसने अब ये सोच लिया था कि अब जब उसके पति का लंड उसके मुँह में आ ही गया है तो उसे भी अब एक बार ये देख ही लेना चाहिए कि लंड चूसने से कैसा लगता है? अभी तक वो शर्म और गन्दा होने की वजह से ऐसा नहीं कर रही थी। उसने अपनी जीभ से अंदर ही अंदर वागले के लंड के टोपे को छुआ। उसे बड़ा ही अजीब लगा और साथ ही कुछ नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ। शायद वागले का लंड मज़े की तरंग में अपना रस छोड़ रहा था।
वागले की कमर दुखने लगी तो उसने सावित्री के मुँह से अपना लंड निकाल लिया। लंड के निकलते ही सावित्री ने राहत की लम्बी सांस ली और फ़ौरन ही उठ कर बैठ गई।
"आख़िर आपने अपने मन का ही किया न।" सावित्री ने हांफते हुए कहा___"बहुत गंदे हैं आप।"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने मुस्कुरा कर पूछा।
"क्या ऐसा करने से अच्छा लगना चाहिए था?" सावित्री ने कहा____"मुझे तो रह रह कर उल्टी आ रही थी लेकिन आप नाराज़ न हो जाएं ये सोच कर आपके उसे मुँह में लिए हुए थी।"
"अच्छा ये बताओ कि।" वागले ने कहा____"जब तुम मेरी ऊँगली चूस रही थी तब तुम्हें उसमें नमकीन जैसा स्वाद लग रहा था न?"
"हां।" सावित्री ने कहा____"मेरा मन कर रहा था कि मैं उस नमकीन स्वाद को ऐसे ही आपकी ऊँगली से चूसती रहूं।"
"वाह भाई वाह!" वागले ने ब्यंगात्मक भाव से कहा_____"मतलब अपनी चूत का रस नमकीन जैसा स्वाद दे रहा था और उसे बार बार चूसने का भी मन कर रहा था और मेरे लंड को चूसने में उल्टी आ रही थी। गज़ब भाग्यवान, क्या बात है।"
"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी।
"और नहीं तो क्या।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा_____"मेरी ऊँगली में तुम्हारी ही चूत का रस लगा हुआ था। उसी ऊँगली से मैं तुम्हारी चूत में ऊँगली कर रहा था, याद करो ज़रा।"
वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर घनघोर आश्चर्य तांडव कर उठा। फिर जैसे उसे कुछ याद आया तो एकदम से उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और उसने झट से अपना चेहरा अपने घुटनों के बीच छुपा लिया।
"आप बहुत ख़राब हैं।" फिर उसने उसी पोजीशन में कहा_____"छी, ये क्या करवा दिया मुझसे। हे भगवान! मैंने अपनी चू....।"
आंगे के शब्द बोलते बोलते अचानक ही सावित्री रुक गई और उसने और भी ज़ोरों से अपने चेहरे को घुटनों के बीच भींच लिया। वो शर्म से जैसे गड़ी ही जा रही थी और इधर वागले उसकी हालत देख कर धीरे से हंस पड़ा था।
"अरे! तो क्या हुआ मेरी जान।" फिर वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर तुमने अपनी ही चूत के रस का स्वाद ले लिया तो इसमें इतना शर्माने की क्या ज़रूरत है? वैसे ये बात तो तुमने सच कही कि उसका स्वाद नमकीन जैसा था।"
"चुप कीजिए आप।" सावित्री ने घुटनों में अपना चेहरा छुपाए हुए ही कहा____"आपको तो ज़रा भी शर्म नहीं आती लेकिन मैं अब ये सोच कर शर्म से मरी जा रही हूं कि ये मैंने क्या कर दिया है। हे भगवान! इस उम्र में यही सब करवाना था मुझसे।"
"इसमें भगवान को दोष क्यों दे रही हो भाग्यवान?" वागले ने उसके चेहरे को ऊपर करने की कोशिश करते हुए कहा तो सावित्री ने नाराज़ लहजे में कहा_____"मुझे हाथ मत लगाइए। आपने ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है।"
"अच्छा छोड़ो।" वागले ने कहा____"चलो अब वो काम तो कर लें जिसे करने में तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं होगा।"
"मुझे अब कुछ नहीं करना है।" सावित्री ने घुटनों से सिर निकाल कर कहा____"आपको अगर नाराज़ हो जाना है तो हो जाइए।"
कहने के साथ ही सावित्री बेड से नीचे उतर गई और अपनी ब्रा पेंटी के साथ नाइटी भी उठा कर बाथरूम में चली गई। उसे इस तरह चले जाते देख वागले समझ गया कि उसका के.एल.पी.डी. हो गया है। उसने अब सावित्री को इसके लिए मानना ठीक नहीं समझा। वो जानता था कि अब सावित्री कुछ भी करने वाली नहीं थी। ये सोच कर उसने गहरी सांस ली और अपने कपड़े पहनने लगा।
रात दोनों के बीच छा गई ख़ामोशी में ही गुज़र गई। बाथरूम से आने के बाद सावित्री चुप चाप बेड पर लेट गई थी। वागले ने उससे बात करने की कोशिश की थी लेकिन सावित्री ने उसे बस एक ही बार शख़्त लहजे में कहा था कि अब चुप चाप सो जाइए वरना अच्छा नहीं होगा। उसके बाद वागले ने भी चुप चाप सो जाना ही बेहतर समझा था।
दूसरे दिन वागले जेल पहुंचा। अपने सभी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस खोल कर विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसके मोटे कवर पर लिखे सी एम एस शब्दों को ध्यान से देखा और फिर छोटे अक्षरों में लिखे उसके फुल फॉर्म को। कुछ देर यूं ही देखते रहने के बाद उसने उस पेज को खोला जहां पर वो इसके पहले पढ़ रहा था।
☆☆☆