13-08-2021, 11:44 AM
वासना अंधी होती है :-------
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दोस्तो, आज मैं अजित आपको अपनी एक कामुकता कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
दरअसल ये कामुकता कहानी है पुरुष की अंधी वासना की।
अंधी वासना मैं इसे इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि कई बार आपने खुद भी महसूस किया होगा कि कोई लड़की या औरत आपके आस पास ऐसी भी होती है, जो न आपको सुंदर लगती है, न वो हॉट होती है, न सेक्सी होती है।
यानि आपको उसमें कुछ भी पसंद नहीं होता मगर फिर न जाने क्यों आप ऐसी औरत पर आपका दिल आ जाता है, और आप उसे चोदने में कोई समय नहीं गँवाते।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ, उसी की कहानी है। लीजिये कामुकता कहानी मुलाहिज़ा फरमाइए।
मेरे पत्नी की एक सहेली है, नाम है उसका सलोनी (परिवर्तित नाम)। दरअसल मेरी पत्नी को बिज़नेस का बहुत शौक था, तो उसने अपनी एक सहेली के साथ रेडीमेड लेडीज सूट, कुर्ती का काम खोला।
अब अगर देखा जाए तो मेरी बीवी और उसकी सहेली सलोनी में ज़मीन आसमान का फर्क है। न रंग में मे रूप मे, न शारीरिक बनावट में वो किसी भी तरह से मेरी बीवी के समांतर नहीं है। इसी लिए मैंने उसे कभी कोई तवज्जो नहीं दी.
हाँ वो हमेशा जीजू जीजू करके आस पास मंडराती थी।
यहाँ तक कि मेरी पत्नी ने भी मुझे कई बार कहा कि सलोनी आप पर पूरी तरह से फिदा है।
मैंने पूछा- क्यों उसका पति नहीं है क्या?
तो मेरी पत्नी से मुझे पता चला के उसके पति की जॉब कुछ खास नहीं है, घर में अक्सर पैसे की तंगी रहती है, जिस वजह से वो भी काम करती है, मगर पति और पत्नी में पैसे की तंगी
को लेकर अक्सर तकरार भी रहती है।
मगर मुझे फिर भी उसमें कोई खास इंटरेस्ट नहीं था। बल्कि एक दो बार सलोनी ने मेरा फोन नंबर भी मांगा, मगर मैंने बहाना लगा दिया और दिया नहीं।
डेढ़ साल तक ऐसे ही मैं उसे इगनोर करता रहा।
मगर इस होली कुछ नया सा हुआ।
हुआ यूं के होली वाले दिन सलोनी अपने बच्चों के साथ हमारे घर आई- जीजू संग होली खेलनी है, जीजू संग होली खेलनी है।
मैं होली नहीं खेलता, मगर फिर भी उसने जानबूझ कर मुझ पर रंग लगा दिया.
फिर अपनी थाली मेरे आगे करके बोली- आप भी रंग लगा लो अपनी साली को!
मैंने उसके हल्का सा रंग लगा दिया पर उसको पसंद नहीं आया।
बाद में जब मेरी बीवी किचन में गई और मैं अपने लैपटाप पर बैठ कर अपनी एक कहानी लिखने लगा.
तो वो मेरे पास आई और मेरे सामने बैठ गई।
मैंने पूछा- जी कहिए?
वो मुंह सा बना कर बोली- क्या जीजू, मैंने तो सोचा था कि जीजू के संग होली खेलूँगी, खूब मस्ती करूंगी। मगर आप ऐसे हैं कि अपनी साली को ठीक से रंग भी नहीं लगाया?
मैंने कहा- अरे यार … मुझे ये रंग वंग से खेलना पसंद नहीं है।
वो बोली- लोग तो कहते हैं कि साली आधी घर वाली होती है. और एक आप हो कि आधी तो क्या एक पेरसेंट भी नहीं मानते।
मैंने कहा- अब जब अपनी घरवाली इतनी मस्त है, तो बाहर देखने की क्या ज़रूरत है?
वो बोली- अजी मानते हैं कि दीदी के सामने मैं कुछ भी नहीं, मगर इतनी बात नहीं के मैं बिल्कुल ही कुछ भी नहीं।
मैंने उसकी और देखा, उसकी आँखों में एक खास चमक थी।
मैंने पूछा- क्या चाहती हो?
वो बोली- मैं चाहती हूँ कि आप मुझे रंग से सराबोर कर दो।
मैंने कहा- तो थाली लाओ, रंग से भर के तुम्हारे सर पर उलट देता हूँ।
वो फिर तुनक कर बोली- क्या जीजू … ऐसे होली थोड़े ही होती है, रंग तो जहां भी लगाते हैं हाथ से लगते हैं।
मैंने कहा- अरे नहीं, यूं रंग लगाने के नाम पर बदतमीजी करना मुझे पसंद नहीं।
वो बोली- बदतमीजी तब होती है जब कोई सामने वाले की मर्ज़ी के बिना रंग लगाने की कोशिश करे।
मैंने सोचा यार तो साली खुद अपने साथ बदतमीजी करवाना चाहती है। मगर ऐसा कुछ है भी नहीं इसमें कि इसके साथ कुछ ऐसी वैसी हरकत करूँ।
मैंने कहा- ठीक है, लाओ रंग, थोड़ा और लगा देता हूँ।
हालांकि मैं सोच तो चुका था कि चलो देखते हैं कि अगर इसने ऐतराज न किया तो इसके मम्मों को भी रंग दूँगा, न पसंद आया, तो जाने दो।
वो जल्दी से बाहर से रंग वाली थाली में और रंग डाल कर ले आई।
मैंने उठ कर उसकी थाली से रंग की मुट्ठी भरी और उसके माथे पर, चेहरे पर लगा दी। पूरा चेहरे रंग दिया.
मगर मेरे रुकते ही वो बोली- और … मतलब और रंग लगाओ।
मैंने दूसरी मुट्ठी भरी और उसकी गर्दन, कंधों और बाजुओं पर भी रंग लगा दिया।
वो फिर बोली- और!
मैंने उसकी पीठ और पेट पर भी कपड़ों के ऊपर से रंग लगाया।
वो मेरी तरफ देख कर बोली- शर्मा क्यों रहे हो जीजू, जहां मर्ज़ी लगा लो, मैं बुरा नहीं मानूँगी।
अब ये तो बिल्कुल साफ आमंत्रण था। मैंने अपनी दोनों हाथों में रंग भर और उसके दोनों मम्मों पर लगा दिया।
वो बोली- और।
मैंने कहा- अब और कहाँ लगाऊँ?
वो बोली- आपने सिर्फ कपड़ों पर ही रंग लगाया है जीजू।
मैंने कहा- तो अगर कपड़ों के अंदर लगा दूँ, तो बुरा तो नहीं मानोगी?
वो बोली- होली है, बुरा मानने का सवाल ही नहीं।
मैंने थोड़ा सा रंग लिया और उसकी आँखों में देखते हुये उसकी कमीज़ के गले से अंदर हाथ डाल दिया। पहले ब्रा के ऊपर से रंग लगाया, वो आँखें बंद कर के खड़ी थी कि लगा लो जितना रंग लगाना है।।
फिर मैंने अपना हाथ उसके ब्रा के अंदर डाला और जब उसका मम्मा पकड़ कर दबाया तो मुझे लगा ‘यार … यहाँ कुछ बढ़िया है।’
बढ़िया इसलिए क्योंकि मुझे उसका मम्मा अपनी बीवी से कुछ ज़्यादा सॉलिड लगा, कुछ ज़्यादा चिकना लगा।
मैंने कहा- तुम्हारे मम्में बड़े शानदार हैं साली साहिबा।
वो बोली- क्या करूँ शानदार का … जब कोई देखता ही नहीं।
मैंने कहा- तो क्या तुम्हारा पति नहीं देखता?
वो बोली- अजी कहाँ, वो तो पहली बाल पर आउट होने वाला खिलाड़ी है। कभी ढंग से पिच पर एक ओवर भी नहीं खेल पता।
मैं घूम कर उसके पीछे आ गया और मैंने कहा- तो बैट्समेन बदल कर देख लो.
वो बोली- वही तो सोच रही हूँ. मगर जिस बैट्समेन से मैं खेलना चाहती हूँ, वो मुझसे खेलना ही नहीं चाहता।
मैंने पीछे से जाकर उसे अपनी आगोश में लिया और अपना हाथ फिर से ऊपर से उसकी कमीज के गले से अंदर डाला. और इस बार उसके दोनों मम्मों को बारी बारी से दबा कर देखा।
मम्में मस्त थे साली के।
मैंने कहा- तुम्हारे मम्में तो मेरी बीवी से भी ज़्यादा मस्त हैं।
वो बोली- अब दीदी 6 साल बड़ी भी तो हैं मुझसे।
बस यहीं मुझे लगा के यार अपने से 10 साल छोटी औरत मिल रही है, क्यों न इसके साथ एंजॉय करके देखा जाए। और कुछ नहीं एक नया एडवेंचर ही होगा।
मैंने कहा- सुनो, अगर कोई मौका मिले, तो मिलना चाहोगी मुझसे?
वो बोली- आप मौका तो दो।
मैंने कहा- ठीक है, मैं कोई प्रोग्राम बनाता हूँ, उसके बाद देखते हैं, अगर सेटिंग बैठी, तो ज़रूर मिलेंगे।
उसके बाद मैंने थोड़े से उसके मम्में और दबाये, और थोड़ा सा उसकी गांड पर अपना लंड घिसाया। ये भी साला हरामी पराई औरत की गांड से घिसते ही सर उठाने लगा।
अब तो बात बन ही गई थी। मैंने उसे छोड़ा, उसको अपना फोन नंबर दे कर कहा कि अब फोन पर बात करेंगे, और आगे का प्रोग्राम बनाएँगे।
फिर मैं वापिस अपने लैपटाप पर आकर काम करने लगा और वो मेरे सामने ही कुर्सी पर बैठ कर टीवी देखने लगी।
इतने में मेरी बीवी चाय नाश्ता लेकर आ गई।
फिर हमने चाय नाश्ता और गप्पों के मज़े लिए। करीब 3 बजे वो अपने बच्चों के साथ अपने घर चली गई।
अगले दिन मैंने उसे अपने ऑफिस से फोन किया।
अब क्योंकि मैं जब अपनी किसी महिला पाठक की कामुकता कहानी लिखता हूँ, तो धीरे धीरे मैं उनसे उनकी सभी गुप्त बातें पूछ लेता हूँ. और अक्सर वो अपनी कहानी लिखवाने के लिए अपने अन्तर्मन से ऐसी ऐसी बातें बताती है जो उनके पति को भी नहीं पता होती।
वह लडकी या महिला किसी की बेटी या बहू, किसी की बहन, बीवी, माँ जब मेरे सामने अपने मन की बात करती हैं, तो फिर तो वो ऐसी बातें भी बताती हैं कि ये जान कर बड़ा आश्चर्य होता है कि समाज में परिवार में इस औरत की, इस लड़की की कितनी प्रतिष्ठा होगी। ऊपर से ये कितनी सती सावित्री, शरीफ, सीधी सदी लगती होगी। इसके घर परिवार वाले इसके बारे कितना अच्छा सोचते होंगे, मगर मेरे सामने ये इसका कोई और ही रूप है।
खैर, मैंने करीब आधा घंटा सलोनी से बात की. और इस आधे घंटे में ही मैंने उसके जीवन की सारी किताब पढ़ ली।
बातों बातों में मैंने उस से पूछ लिया कि क्या वो लंड चूसती है, गांड मरवा लेती है। शादी से पहले शादी बाद उसके कितने संबंध रहे हैं।
वो भी शायद सेक्सी बातें करने के मूड में थी, तो उसने भी खूब खुल कर खूब खुश हो हो कर बताया।
जब मैंने अपने मतलब की सब जानकारी हासिल कर ली तो उससे कहा कि अब बस जल्दी ही मैं उससे मिलना चाहता हूँ।
मगर इससे पहले कि मैं उससे किसी होटल के कमरे में मिलता, मैंने उससे एक बार वैसे ही अकेले में मिलने को कहा.
तो वो बोली- मेरे पति सुबह सात बजे चले जाते हैं और शाम को सात बजे वापिस आते हैं। बच्चे सुबह साढ़े आठ बजे तक चले जाते हैं. और घर के बाकी सब काम निपटा कर मैं 10 बजे तक फ्री हो जाती हूँ. शाम के 4 बजे उसके बच्चे वापिस आते हैं. और 11 बजे वो दुकान पर मेरी पत्नी के पास चली जाती है।
मतलब उसने बता दिया कि सुबह 10 से 11 बजे तक तो वो पक्का फ्री है।
तो मेरे पास सुबह 10 से 11 के बीच का समय था। मैंने अगले ही दिन उसके घर जाने का प्रोग्राम बनाया.
अगले दिन ठीक 10 बजे मैं ऑफिस से किसी काम का बहाना करके निकला और उसके घर गया। मैंने घण्टी बजाई तो उसने बड़ी खुशी से मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया।
ड्राइंगरूम में बैठा कर उसने मुझे पानी ला कर दिया।
पानी की गिलास पकड़ते हुये मैंने उसकी कमीज़ के गले से उसके दोनों साँवले मम्मों को देखा।
उसने ताड़ लिया कि मैं उसके मम्में देख रहा हूँ। उसने भी छिपाने की कोई कोशिश नहीं करी।।
पानी पीकर मैं उससे इधर उधर की बातें करने लगा। मगर उसके व्यवहार से लग रहा था, जैसे वो चाहती हो कि ‘यार बातें छोड़ो और मुझे पकड़ लो, साली की चुदाई करने आए हो वो करो।’
थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद उसने चाय पूछी।
मैंने हाँ कही तो वो चाय बनाने किचन में चली गई।
अब मैंने सोचा कि ‘यार मैं खामख्वाह साली की चुदाई में देर कर रहा हूँ, अब मेरे पास सिर्फ यही रास्ता बचा है कि मैं हिम्मत दिखाऊँ और इसे पकड़ लूँ।’
वैसे भी इसके मम्में मैं दबा चुका हूँ तो अगर फिर दबा देता हूँ, तो कौन सा इसने बुरा मानना है।
तो मैं उठ कर किचन में गया। पहले उसके पीछे से गुज़र कर खिड़की तक गया, यूं ही बाहर को देखा और फिर वापिस आया।
और जब वापिस आते हुये मैं उसके पीछे से गुज़रा तो मैंने उसे अपनी आगोश में ले लिया।
उसने सिर्फ ‘अरे’ कहा।
इस ‘अरे’ में भी खुशी और आश्चर्य का मिला जुला प्रतिक्रम था।
मैंने उसको कस के अपने सीने से लगाया तो उसने अपना सर मेरे कंधे पर डाल दिया, गैस को धीमा करके अपनी दोनों बाजुएँ ऊपर हवा में उठाई और पीछे मेरे गले में डाल दी।
मैंने अपने दोनों हाथ उसके कमीज़ के अंदर डाले और ऊपर लेजा कर उसके दोनों मम्में पकड़ लिए।
वो थोड़ शरमाई, मुस्कुराई, हंसी।
मगर ये हंसी, शरारत वाली थी।
मैं अपने दोनों हाथ घुमा कर पीछे लाया और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया. फिर अपने हाथ आगे ले कर गया.
और इस बार उसकी ब्रा ऊपर को उठा कर उसके दोनों मम्में ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिये और अपने हाथों में पकड़ लिए।
और जब दबाये ‘आह …’ साली पराई औरत के जिस्म में एक अलग ही कशिश होती है।
मैंने उसके दोनों मम्मों को सहलाया तो उसने अपना सर मेरी ओर घुमाया. मैं थोड़ा नीचे को झुका और फिर हमारे होंठ मिले। दोनों के होंठ ऐसे जुड़े के अलग होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मैं ये देख रहा था कि मुझसे ज़्यादा वो इस चुंबन का आनंद ले रही थी।
मैंने उसके एक मम्मे को छोड़ा और अपने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया। अंदर मैदान बिल्कुल साफ था, चिकनी चूत को छूआ तो वो थोड़ा सा चिहुंकी।
‘आह …’ हल्की सी सिसकारी उसके मुंह से निकली।
मैंने अपने हाथ से उसकी चूत का दना मसला तो उसने अपनी जांघें भींच ली. सिर्फ इतनी सी ही देर में उसकी चूत पानी पानी हो गई।
मेरा भी लंड टनटना गया।
उसने गैस बंद कर दी, बोली- यहाँ मज़ा नहीं आ रहा, चलो बेडरूम में चलते हैं।
मैंने कहा- नहीं यार, अभी नहीं, अभी तुमने 11 बजे दुकान पर जाना है। इतनी जल्दी मुझे मज़ा नहीं आता। मुझे अच्छा लगता है, जब खुला समय हो, और बिल्कुल एकांत हो। ताकि खुल कर प्यार करने, साली की चुदाई का मज़ा आ सके। इस भागदौड़ में साला मज़ा नहीं आता।
वो बोली- तो फिर जल्दी कोई प्रोग्राम बनाओ आप। अब मुझसे सब्र करना मुश्किल हो रहा है।
मैंने कहा- सब्र तो मुझसे भी नहीं हो रहा। खैर देखता हूँ, बनाता हूँ कोई प्रोग्राम। मगर मेरी एक इच्छा है, मैं तुम्हें एक बार बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ।
वो बोली- अब तो मैं आपकी हो चुकी हूँ, खुद ही देख लो।
मैंने अपने हाथों से उसकी कमीज़, ब्रा सलवार सब उतार कर उसे किचन में ही नंगी कर दिया। बेशक वो देखने में कोई हूर परी नहीं थी, मगर उसे नंगी देख कर मेरा दिल मचल गया। मेरा मन तो कर रहा था कि अभी इसे चोद डालूँ।
मगर अभी वक्त नहीं था तो मैंने सिर्फ उसके नंगे जिस्म को थोड़ा सा सहलाया और फिर वापिस अपने ऑफिस आ गया।
ऑफिस आकर मैंने अपने एक दोस्त से बात करी कि होटल के एक कमरे का इंतजाम करके दे, एक पर्सनल माशूक है, उसको चोदना है।
उसने कहा- कोई दिक्कत नहीं, अपनी माशूक से कहो, जब वो फ्री हो, तब बता दे, होटल का कमरा तो मैं मौके पर ही दिलवा दूँगा।
शाम को घर गया तो बीवी बोली कि उसकी छोटी भाभी के घर बेटा हुआ है, तो उसे अपने मायके जाना है।
मेरे मन में एकदम से विचार आया और मैंने अपनी ऑफिस का ज़रूरी काम बता कर उसको बोला- तुम ही चली जाओ और साथ में बेटे को भी ले जाओ। मैं एक दो दिन बाद आ जाऊंगा।
सुबह 6 बजे पत्नी और बेटे को मैंने दिल्ली की बस बैठा दिया और खुद घर आकर 9 बजने का इंतज़ार करने लगा।
9 बजे पहले मैंने अपने दफ्तर फोन करके बोला- आज मैं नहीं आ सकता.
और फिर सलोनी को फोन लगाया।
उसने फोन उठाते ही पूछा- हां जी, गई दीदी?
मैंने कहा- तुम्हें पता है?
वो बोली- हाँ कल रात बताया दीदी ने!
मैंने पूछा- तो क्या प्रोग्राम है, आज मिलें फिर?
वो बोली- कब और कहाँ?
मैंने कहा- और कहाँ? मेरे घर … तुम दुकान खोलो और 11 बजे मैं तुम्हें पीछे वाली गली में लेने आऊँगा. ठीक है?
वो मान गई।
मैंने नहा धोकर तैयार होकर 11 बजने से 5 मिनट पहले गाड़ी निकाली और सलोनी को लेने चल पड़ा।
मैं सोच रहा था कि जिस औरत को मैंने आज तक भाव नहीं दिया, ढंग से उसकी तरफ कभी देखा भी नहीं, आज मुझे उसकी चूत मारने के लिए चाव चढ़ा हुआ है।।
खैर मैं उसे चुपके से उठा लाया और घर आ कर गाड़ी खड़ी करी. हम दोनों अपने ड्राइंग रूम में गए।
मैं उसके लिए गिलास में कोल्ड ड्रिंक डाल कर लाया।
उसके चेहरे पर, खुशी, घबराहट, जिज्ञासा सब कुछ झलक रहा था।
मैंने उसको कोल्ड ड्रिंक पीते देख कर कहा- यहाँ इतनी दूर क्यों बैठी हो, इधर पास हो कर बैठो।
वो शर्मा गई.
तो मैंने उसकी बाजू पकड़ कर खींची और उसको अपने से सटा लिया।
मैंने कहा- इतनी चुप क्यों हो? पहले तो इतना बोलती हो?
वो बोली- क्या कहूँ?
मैंने कहा- अगर कुछ नहीं कहना तो मेरी गोद में आ जाओ।
वो शरारत से बोली- अच्छा, यूं ही?
मैंने उसकी बाजू पकड़ कर खींची तो वो खुद ही उठ कर मेरी गोद में बैठ गई. मैंने उसे अपनी बाजू का सहारा देकर अपनी गोद में ही लेटा लिया। दोनों के गिलास टेबल पर रख दिये।
मैंने उसके चेहरे को अपने हाथ से पकड़ा और ध्यान से देखा।
सुंदर न होते हुये भी वो मुझे प्यारी लग रही थी।
मैंने उसके माथे, गाल पर उंगली फेरी तो उसने अपनी आँखें बंद कर ली. आँखें मींचे वो मेरी गोद में लेटी थी और मैं उसके चेहरे से होते हुये उसके सारे बदन को छूकर, सहला कर देख रहा था। मुझे
साली की चुदाई की कोई जल्दी नहीं थी मुझे, मैं तो सिर्फ उसके जिस्म ऊंचाइयों, गहराइयों और गोलाइयों को छू कर अपने मन को तसल्ली दे रहा था।
वो भी किसी कमसिन की तरह लरज़ रही थी।
मैंने उसके होंठ को छुआ, और फिर उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में ले लिया.
उसकी लिपस्टिक का टेस्ट मेरे मुंह में आया मगर मैं उसके होंठ को चूसने लगा।
वो भी मुझसे लिपट गई।
काफी देर हम दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूसा।
फिर मैंने कहा- सलोनी मेरी जान, मैं तुम्हें बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ।
वो बोली- उस दिन देख तो लिया था।
मैंने कहा- वो तो तुम्हारे घर में था, यहाँ मेरे घर में मुझे नंगी हो कर दिखाओ।
वो नखरे से बोली- नहीं, मैं नहीं, आप गंदे हो।
मैंने कहा- क्यूँ? मैं क्यूँ गंदा हूँ?
वो बोली- आप गंदी बातें करते हो।
मैंने कहा- नहीं मेरी जान, मैं गंदी बात नहीं करता, प्यार में ये सब करते हैं।
वो बड़े भोलेपन से बोली- अच्छा जी, पर कैसे करते हैं?
मैंने कहा- सब बता दूँगा, मेरी जान अगर तुम मेरी हर बात मानो। मेरा बाबू मेरी बात मानेगा?
उसने किसी बच्चे की तरह से अपना सर हाँ में हिलाया।
तो मैंने उसे उठा कर खड़ा किया और फिर मैंने उसकी कमीज़ को पकड़ कर ऊपर को उठाया, उसने भी मेरा साथ दिया.
पहले कमीज़ उतारी, फिर ब्रा खोल कर उतारी, फिर सलवार का नाड़ा खोला और सलवार उतार कर उसे बिल्कुल नंगी कर दिया।
एक एक करते उसके कपड़े उतारते हुये उसने मेरा पूरा साथ दिया, जैसे उसके अंदर भी यह चाहत हो कि ‘कर दो मुझे नंगी और देखो मेरे सेक्सी जिस्म को।’
उसे नंगी करके मैंने अपनी कपड़े भी उतारे।
उसके सामने जब मैं कपड़े उतार रहा था तो वो भी बड़ी उत्सुकता से मुझे नंगा होते हुए देख रही थी।
टीशर्ट और जीन्स के बाद मैंने जब अपनी चड्डी को उतरना चाहा तो उसने मुझे रोका- सुनिए, थोड़ा रुक जाइए!
मैंने पूछा- क्यों?
“आपने इतने प्यार से मेरे कपड़े उतारे, मुझे भी मौका दीजिये कि मैं भी अपनी मर्ज़ी से कुछ कर सकूँ।”
मैं रुक गया तो वो मेरे पास आई और मेरे सामने बैठ गई।
चड्डी में मेरे तने हुए लंड का पूरा आकार बना हुआ था. उसने पहले चड्डी के ऊपर से ही मेरे लंड को छूकर देखा।
उसके चेहरे पर एक बड़ी आश्चर्य वाली मुस्कान थी क्योंकि उससे प्रेम प्यार करते मेरा लंड भी पूरा अकड़ चुका था।
मेरे तने हुये लंड को देख कर वो बोली- आप तो पूरे तैयार हुए फिरते हो।
मैंने कहा- हाँ तैयार तो रहना पड़ता है.
और उसके बाद उसने अपने हाथों से मेरी चड्डी नीचे को सरका दी और मेरा कड़क लंड झूम कर बाहर निकला।
अपनी चड्डी उतर जाने के बाद मैंने आगे बढ़ कर उसे उठाया और अपने सामने खड़ी करके एकदम से उसे अपने गले से लगाया. और जानबूझ कर अपना कड़क लंड उसके पेट पर ज़ोर से टकराया। वो बिलबिलाई- हाय … कितना सख्त है पत्थर के जैसे! कितनी ज़ोर से मारा, इतना दर्द हुआ।
मैंने अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा कर कहा- अब जब ये तेरी भोंसड़ी में घुसेगा, तब देखना!
उसने मेरे सीने पर हल्का सा मुक्का मार कर कहा- छी, गंदे ऐसे नहीं कहते।
मैंने कहा- अब जैसे भी कहते हों! अब कहने सुनने का वक्त गया, अब कुछ करने के वक्त है.
कहते हुये मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया तो उसने भी अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी।
गोद में उठा कर मैं उसे अपने बेडरूम में ले गया और लेजा कर बेड पर पटक दिया.
वो मदमस्त मेरे बिस्तर पर बिछ गई।
मैं दूसरी तरफ जाकर बेड पर टेक लगा कर बैठ गया और उसकी बाजू पकड़ कर अपनी ओर खींचा.
एक बदमाश हंसी के साथ वो मेरी जांघ पर सर रख कर लेट गई।
हरी चादर पर साँवले रंग की औरत जैसे जंगल में से मटमैले रंग की भरी हुई बरसाती नदी बह निकली हो।
मैंने उसके सर को अपनी ओर घुमाया और अपने लंड से उसके माथे पर चोट करते हुये पूछा- खाएगी इसे?
वो घूम कर उल्टी लेट गई और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ कर देखने लगी।।
पहले चमड़ी पीछे हटा कर गुलाबी टोपा बाहर निकाला और फिर मेरी ओर देखते हुये कई बार मेरे लंड को अपने मुंह पर घुमाती रही. कभी अपने गालों पर माथे पर आँखों पर लगाती रही.
मैं उसे मेरे लंड से खेलते देखता रहा.
फिर कई बार मेरे लंड को इधर उधर से चूमा और फिर चूमते चाटते उसने मेरे टोपे को दाँतों से काटा और फिर चाटा. और चाटते चाटते उसने मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया।
मैं अपना एक हाथ उसकी नंगी मांसल पीठ पर रखा और सहलाने लगा। भरी हुई चर्बी वाली पीठ!
लंड चूसते चूसते वो उठी और बिल्कुल मेरे सामने मेरी दोनों टाँगों के बीच आ कर बैठ गई. वो मेरे लंड को जड़ तक अपने मुंह में ले ले कर चूसने लगी।
पीछे उसने अपने दोनों घुटने मोड़ रखे थे तो उसकी गोल गांड हवा में उठी हुई थी जिसकी बड़ी सुंदर शेप बन रही थी।
मैं अपने दोनों पांव से उसके चूतड़ सहला रहा था।
मेरे कहे बिना ही उसने मेरे लंड के साथ साथ मेरे दोनों आँड भी चूसे। उसके चाटने चूसने से मेरे जिस्म की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी, तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया।
वो भी मेरी कमर के ऊपर एक टांग इधर और दूसरी टांग उधर रख कर अपने घुटने मोड़ कर बैठ गई।
इस तरह से उसकी चूत पूरी तरह से मेरे लंड के ऊपर रखी गई। उसकी गीली चूत के दोनों होंठों के बीच मेरा लंड सेट हो गया था।
मैंने उसको अपनी बांहों में भींच कर कहा- ले इसे, अपने यार को अपनी चूत में ले ले मेरी जानेमन।
वो थोड़ा सा ऊपर को उठी मेरे लंड को अपने हाथ से उठा कर अपनी चूत पर सेट किया और फिर बैठ गई, इस बार मेरे लंड का टोपा ठीक उसकी चूत के नीचे था।
जैसे जैसे वो बैठती गई, मेरा लंड उसकी चूत में अंदर घुसता गया।
दो बार ऊपर नीचे हो कर ही उसने मेरा सारा लंड निगल लिया। पूरा लंड अंदर जाने के बाद वो रुक गई, उसने अपना मम्मा अपने हाथ में पकड़ा और मेरे मुंह से लगाया।
मैंने उसके मम्मा चूसा और फिर उससे पूछा- काट लूँ मम्मे पर तेरे?
वो बोली- हाँ काट लो, बस निप्पल पर मत काटना, यहाँ दर्द ज़्यादा होता है।
मैंने कहा- मगर मैं तो तुम्हें दर्द देने के लिए ही काटना चाहता हूँ।
वो बोली- कोई बात नहीं मेरे सरताज, जितना मर्ज़ी दर्द दे लो।
मैंने कहा- और अगर तुम्हारे पति ने मेरे दाँतों के निशान तुम्हारे बदन पर देख लिए तो?
वो बोली- उसकी चिंता आप मत करो।
मैंने उसके मम्में पर ज़ोर से काटा, तो उसने ज़ोर से ‘आह … ऊई …’ करके सिसकारी भरी।
उसकी सिसकारी मुझे बहुत प्यारी लगी।
मैंने उसके मम्मों पर,कंधों पर गर्दन पर, बाजू पर कई जगह काटा। सच में मुझे उसके जिस्म का मांस चबाने में मज़ा आ रहा था।
उसके जिस्म पर कई जगह निशान बनाने के बाद मैंने उसको ऊपर नीचे होने को कहा.
वो धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी. ऐसा मज़ा आया जैसे वो मेरे लंड को चूस रही हो, अंदर तक खींच कर ले जाती और फिर धीरे धीरे बाहर निकालती।
मैंने कहा- तुम तो लंड को मुंह से ज़्यादा बढ़िया अपनी चूत से चूसती हो।
वो बोली- मैं तो खुद कबसे यही सब करना चाहती थी।
मैंने कहा- क्यों, पति से ये सब नहीं करती?
वो बोली- अरे जीजू आपको बताया न, इतनी देर में तो वो कब का पिचकारी मार चुका होता।
मैंने कहा- जब तुम रात को प्यासी रह जाती हो, तो फिर कैसे अपनी आग ठंडी करती हो?
वो बोली- बस ये मत पूछो।
मैंने कहा- बता न यार?
वो बोली- बस कभी हाथ से कभी मूली गाजर या खीरा।
मैं- और कुछ सोचती भी हो हस्तमैथुन करते हुए?
वो बोली- हाँ सोचने से ही तो खून में जोश आता है, कुछ करने का मज़ा आता है।
मैंने पूछा- क्या सोचती हो? किसके बारे में सोचती हो?
वो बोली- सब कुछ सोचती हूँ जो कुछ भी ब्लू फिल्मों में देखा है वो सब करने का सोचती हूँ. और मैंने अपने जानने वाले हर मर्द के साथ अपने ख्यालों में सेक्स किया है।
मैंने पूछा- मेरे बारे में भी सोचती हो?
वो हंस कर बोली- आपके बारे में? अरे आपको तो मैं इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कहो न कि सलोनी तुझसे मैं शादी तो नहीं कर सकता, पर तुझे एक रखैल बना कर रख सकता हूँ। तो इसके लिए भी मैं अपना पति छोड़ सकती हूँ।
मैंने पूछा- अपने पति से बिल्कुल प्यार नहीं करती।
वो बोली- बिल्कुल भी नहीं, वो मेरी जूती से।
“और मुझसे?” मैंने पूछा।
वो बोली- अगर प्यार न करती जीजू तो अपने पति बच्चों को धोखा दे देकर इस तरह आपकी गोद में न बैठी होती।
मैंने उसे अपने गले से लगा लिया तो वो मुझसे कस कर लिपट गई।
“आई लव यू जीजू!” वो बोली.
तो साला दिल को बड़ा सुकून मिला के इस उम्र में भी हम पर कोई मरती है।।
बेशक वो कोई सुंदर नहीं थी, मगर फिर भी मैं उसके चेहरे को चाट गया, उसका सारा मेकअप खा गया।
मैंने एक बात नोटिस की है। जब एक औरत किसी दूसरी औरत के पति के साथ सेक्स करने जाती है, तो वो सारा ध्यान अपनी लुक्स पर देती है। कपड़े अच्छे हों, मेकअप अच्छा हो, अंडरगार्मेंट्स अच्छे हों, हेअर स्टाइल अच्छा हो।
मगर जब कोई मर्द किसी और की बीवी के साथ सेक्स करने को जाता है, उसका सारा ध्यान सिर्फ अपने लंड पर होता है। मेरा लंड उसके पति के लंड से बड़ा हो, मैं उसके पति से ज़्यादा देर तक उसकी चुदाई करूँ, मैं उसके पति से ज़्यादा जोरदार सेक्स करूँ।
शायद यही वजह थी कि सलोनी के साथ सेक्स का प्रोग्राम बनाने से पहले ही मैंने अपना इंतजाम कर लिया था कि मौके पर मेरा लंड सारा टाइम बिल्कुल कड़क रहे और जितना ज़्यादा देर हो सके तब न झड़े।
जहां सलोनी का पति सिर्फ 3-4 मिनट में ही माल गिरा देता था, वहाँ मैं उसे पिछले 20 मिनट से चोद रहा था। उसकी चूत भी पूरा भर भर के पानी छोड़ रही थी।
मैंने उसके होंठों को अपनी जीभ से चाटते हुए पूछा- सलोनी एक बात बता, जब से तू अपने पति से नाखुश है, तब से लेकर अब तक तूने कितने मर्दों को अपने ऊपर चढ़ाया है?
वो हंस कर बोली- ये सभी मर्दों को इस बात में क्या इंटरेस्ट होता है?
मैंने कहा- बस होता है, बता न?
वो बोली- मेरी शादी को 22 साल हो चुके हैं, 1998 में हुई थी, तब से लेकर अब तक करीब 50 मर्द तो मेरे ऊपर लेट चुके होंगे।
मैंने कहा- अरे क्या बात है, फिर तो तू एक गश्ती ही हुई।
वो बोली- हाँ आप कह सकते हो, मगर मेरा तर्क दूसरा है। मैंने कभी पैसे के लिए किसी से नहीं चुदवाया है। मैंने जब भी किसी मर्द से संबंध बनाए तो सिर्फ अपने तन और मन की संतुष्टि के लिए बनाए।
मैंने पूछा- तो किस किस का लंड ले चुकी हो अब तक?
वो बोली- बहुतों का, अपना कोई जानकार मैंने नहीं छोड़ा, जिसको मैंने लाइन नहीं दी। बहुत से लोग तो मेरी साधारण शक्ल सूरत करके ही आगे नहीं आए, जो आए, वो कोई भी मुझे खुश नहीं कर पाये। बल्कि एक दो तो मेरे नजदीकी रिश्तेदार थे।
मैंने पूछा- कौन?
वो बोली- एक मेरी सगी बुआ का बेटा था, बड़ा दीदी दीदी कर चिपकता था, तो एक दिन मैंने उसे अपने से चिपका ही लिया कि आ जा तेरी आग ठंडी करूँ।
“अपनी सगी बुआ के लड़के से?” मैंने हैरान हो कर पूछा।
वो बोली- जीजू, रिश्ता मर्द औरत में एक ही होता है, ये हमारे समाज के नियम कायदे ऐसे हैं। आप बताओ अगर आपको आपकी कोई रिश्तेदार औरत या लड़की, खुल्ली ऑफर दे सेक्स की, तो क्या आप मना करोगे? चाहे वो कोई भी हो, आपकी बहन, भाभी चाची मासी, भतीजी या भांजी।
मैंने कुछ सोचा और कहा- हाँ बात तो सही है, मैं तो अक्सर कई बार सोचता भी हूँ उनके बारे में कि अगर वो मान जाए तो क्या करूं, और अगर ये मान जाए तो क्या करूँ। किसी के मम्में अच्छे हैं, किसी गांड मस्त है, किसीकी जांघें, किसी के होंठ। हर एक में मुझे कुछ न कुछ अच्छा लग ही जाता है।
वो बोली- तो यही भावना औरतों में भी होती है, और जब कोई औरत बिस्तर पर प्यासी रह जाती है, तो वो भी अपने आस पास के हर मर्द के बारे में ऐसा ही सोचती है। मगर उसके पास चॉइस ज़्यादा नहीं होती। क्योंकि उसे सिर्फ मर्द की शक्ल से प्रेम होता है, और उसके बाद तो उसके नीचे लेट कर ही पता चलता है कि वो किसी काम का है भी या नहीं।
मैंने कहा- तुम तो बड़ी ज्ञानी हो।
वो बोली- जीजाजी, बहुत घिसाई कारवाई है इस ज्ञान को हासिल करने के लिए।
मैंने कहा- तो चल अब नीचे लेट, तुझे तसल्ली से पेल कर देखूँ।
वो चहक कर मेरी गोद से उठी और बिस्तर पर लेट गई, दोनों टाँगे खोल कर अपनी बाहें भी मेरी और फैला दी।
“आओ प्रभु!” वो बोली।
मैंने कहा- प्रभु?
वो बोली- आप से मिल कर मुझे बहुत खुशी हुई, इतनी देर तक कोई मर्द मुझे नहीं भोग पाया। अब तक तो सभी आउट हो चुके होते हैं।
मैं उसके ऊपर लेट गया और उसने मेरे लंड को पकड़ कर पहले उसको हिलाया, थोड़ी सी मुट्ठ मारी और फिर अपनी चूत पर रखा. मैंने धक्का देकर अंदर घुसेड़ दिया।
“ओ मेरी जान!” वो बोली।
मैंने कहा- दर्द हुआ?
वो बोली- अरे नहीं मेरी जान, दर्द नहीं हुआ, ऐसा लगा जैसे कोई पत्थर मेरे अंदर घुस गया हो, क्या खा कर आए हो आप? न झड़ रहे हो, न ढीले पड़ रहे हो।
मैंने कहा- अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। बस तुम्हें बहुत देर तक चोदने के लिए खुद पर काबू रख रहा हूँ। कि अगर कहीं जल्दी झड़ गया, तो तुम चली जाओगी, और फिर पता नहीं तुम्हें कब चोद पाऊँगा।
वो बोली- अरे उसकी आप चिंता न करो, कभी कभी मेरे पति को कंपनी के काम से बाहर भी जाना पड़ता है, जब वो बाहर गए होंगे तो आप पीछे से आ जाना, सुबह 9 से 11 बजे तक खुल कर सेक्स करेंगे।
उसकी बात सुन कर मैंने उसे ज़ोर ज़ोर से चोदा।
वो बोली- क्या हुआ, गुस्सा निकाल रहे हो?
मैंने कहा- नहीं तो।
वो बोली- तो पहले की तरह प्यार से करते रहो न, होले होले लंड अंदर बाहर जाता है, तो ज़्यादा मज़ा आता है।
मैंने उसकी चुदाई स्लो स्लो करनी शुरू कर दी. मैं अपना लंड पूरा बाहर निकाल कर अंदर डालता, फिर निकालता, फिर डालता. और जब डालता तो ज़ोर से धक्का मारता के अंदर जाकर मेरे लंड का टोपा उसकी बच्चेदानी पर टकराता।
अब मैंने पूछा- मज़ा आया?
वो बोली- बहुत … तीन बार झड़ चुकी हूँ।
मैंने हैरान होकर कहा- तीन बार, मुझे तो पता ही नहीं चला।
वो बोली- मैं ज़्यादा तड़पती नहीं उछलती नहीं। इसलिए किसी को भी पता नहीं चलता।
मेरी चुदाई धीरे धीरे चलती रही, और फिर मेरा भी मुकाम आया।
मैंने पूछा- मेरा भी होने वाला है।कहा निकालु ????
वो बोली- अंदर मत गिराना, बाकी कहीं भी गिरा दो। भिगो दो मुझे।
मैंने उसकी चूत से अपना लंड निकाला और निकाल कर हिलाने लगा. कुछ ही पलों में मेरे लंड से गाढ़े लेस के फव्वारे छूट पड़े जो उसके पेट सीने और मुंह तक को भिगो गए।
वो मस्त लेटी मेरी और देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
कुछ देर बार वो उठी और बाथरूम में जाकर नहाने लगी।
मैं भी बाथरूम में घुस गया, पहले तो हम एक साथ नहाये, और नहाते नहाते मेरा लंड फिर से तन गया, मैंने उसे वहीं बाथरूम में ही घोड़ी बना लिया और चलते फव्वारे के नीचे उसे फिर से चोदने लगा।
ये कोई वैसी चुदाई नहीं थी, ये तो बस शुगल था कि नहाते हुये उसे चोद कर देखना है।
मैंने देखा उसके जिस्म पर कई जगह निशान थे, मैंने कहा- ये अपने प्यार की निशानियाँ अपने पति से छुपा कर रखना। वो हंस कर बोली- अगर देख भी लेगा, तो भी क्या है। मैंने तो उस से कह दूँगी, यही हाल अगर तू करदे तो मुझे बाहर जाने की ज़रूरत ही क्या है। मैंने पूछा- तो क्या तेरे पति को पता है सब कुछ?
वो बोली- अंधा थोड़े ही है वो, सब देखता समझता है। पता उसको भी है, इसलिए कभी कुछ नहीं कहता।
मैं उस औरत की बहदुरी का कायल हो गया, कितनी बेबाक, कितनी दिलेर है।
नहा कर हम बाहर आए. उसके बाद हमने अपने अपने कपड़े पहने, उसने फिर से मेकअप किया। और फिर मैं उसे दुकान पर छोड़ने गया।
दुकान पर छोड़ कर मैं वापिस आ गया।
घर आकर मैं सोचने लगा, लोग कहते हैं प्यार अंधा होता है, मैं कहता हूँ, वासना भी अंधी होती है।
जिस औरत को मैंने कभी ढंग से बुलाया नहीं, उसको को तवज्जो नहीं दी, आज उसकी भोंसड़ी मार कर कितना सुकून मिल रहा था मुझे।
जिसको कभी खूबसूरत नहीं समझा, उसके भी होंठ चूस गया। जो कभी हॉट नहीं लगी, उसको चोदने का लालच भी मैं छोड़ नहीं पाया।
सच में वासना भी अंधी होती है।
End
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दोस्तो, आज मैं अजित आपको अपनी एक कामुकता कहानी सुनाने जा रहा हूँ।
दरअसल ये कामुकता कहानी है पुरुष की अंधी वासना की।
अंधी वासना मैं इसे इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि कई बार आपने खुद भी महसूस किया होगा कि कोई लड़की या औरत आपके आस पास ऐसी भी होती है, जो न आपको सुंदर लगती है, न वो हॉट होती है, न सेक्सी होती है।
यानि आपको उसमें कुछ भी पसंद नहीं होता मगर फिर न जाने क्यों आप ऐसी औरत पर आपका दिल आ जाता है, और आप उसे चोदने में कोई समय नहीं गँवाते।
ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ, उसी की कहानी है। लीजिये कामुकता कहानी मुलाहिज़ा फरमाइए।
मेरे पत्नी की एक सहेली है, नाम है उसका सलोनी (परिवर्तित नाम)। दरअसल मेरी पत्नी को बिज़नेस का बहुत शौक था, तो उसने अपनी एक सहेली के साथ रेडीमेड लेडीज सूट, कुर्ती का काम खोला।
अब अगर देखा जाए तो मेरी बीवी और उसकी सहेली सलोनी में ज़मीन आसमान का फर्क है। न रंग में मे रूप मे, न शारीरिक बनावट में वो किसी भी तरह से मेरी बीवी के समांतर नहीं है। इसी लिए मैंने उसे कभी कोई तवज्जो नहीं दी.
हाँ वो हमेशा जीजू जीजू करके आस पास मंडराती थी।
यहाँ तक कि मेरी पत्नी ने भी मुझे कई बार कहा कि सलोनी आप पर पूरी तरह से फिदा है।
मैंने पूछा- क्यों उसका पति नहीं है क्या?
तो मेरी पत्नी से मुझे पता चला के उसके पति की जॉब कुछ खास नहीं है, घर में अक्सर पैसे की तंगी रहती है, जिस वजह से वो भी काम करती है, मगर पति और पत्नी में पैसे की तंगी
को लेकर अक्सर तकरार भी रहती है।
मगर मुझे फिर भी उसमें कोई खास इंटरेस्ट नहीं था। बल्कि एक दो बार सलोनी ने मेरा फोन नंबर भी मांगा, मगर मैंने बहाना लगा दिया और दिया नहीं।
डेढ़ साल तक ऐसे ही मैं उसे इगनोर करता रहा।
मगर इस होली कुछ नया सा हुआ।
हुआ यूं के होली वाले दिन सलोनी अपने बच्चों के साथ हमारे घर आई- जीजू संग होली खेलनी है, जीजू संग होली खेलनी है।
मैं होली नहीं खेलता, मगर फिर भी उसने जानबूझ कर मुझ पर रंग लगा दिया.
फिर अपनी थाली मेरे आगे करके बोली- आप भी रंग लगा लो अपनी साली को!
मैंने उसके हल्का सा रंग लगा दिया पर उसको पसंद नहीं आया।
बाद में जब मेरी बीवी किचन में गई और मैं अपने लैपटाप पर बैठ कर अपनी एक कहानी लिखने लगा.
तो वो मेरे पास आई और मेरे सामने बैठ गई।
मैंने पूछा- जी कहिए?
वो मुंह सा बना कर बोली- क्या जीजू, मैंने तो सोचा था कि जीजू के संग होली खेलूँगी, खूब मस्ती करूंगी। मगर आप ऐसे हैं कि अपनी साली को ठीक से रंग भी नहीं लगाया?
मैंने कहा- अरे यार … मुझे ये रंग वंग से खेलना पसंद नहीं है।
वो बोली- लोग तो कहते हैं कि साली आधी घर वाली होती है. और एक आप हो कि आधी तो क्या एक पेरसेंट भी नहीं मानते।
मैंने कहा- अब जब अपनी घरवाली इतनी मस्त है, तो बाहर देखने की क्या ज़रूरत है?
वो बोली- अजी मानते हैं कि दीदी के सामने मैं कुछ भी नहीं, मगर इतनी बात नहीं के मैं बिल्कुल ही कुछ भी नहीं।
मैंने उसकी और देखा, उसकी आँखों में एक खास चमक थी।
मैंने पूछा- क्या चाहती हो?
वो बोली- मैं चाहती हूँ कि आप मुझे रंग से सराबोर कर दो।
मैंने कहा- तो थाली लाओ, रंग से भर के तुम्हारे सर पर उलट देता हूँ।
वो फिर तुनक कर बोली- क्या जीजू … ऐसे होली थोड़े ही होती है, रंग तो जहां भी लगाते हैं हाथ से लगते हैं।
मैंने कहा- अरे नहीं, यूं रंग लगाने के नाम पर बदतमीजी करना मुझे पसंद नहीं।
वो बोली- बदतमीजी तब होती है जब कोई सामने वाले की मर्ज़ी के बिना रंग लगाने की कोशिश करे।
मैंने सोचा यार तो साली खुद अपने साथ बदतमीजी करवाना चाहती है। मगर ऐसा कुछ है भी नहीं इसमें कि इसके साथ कुछ ऐसी वैसी हरकत करूँ।
मैंने कहा- ठीक है, लाओ रंग, थोड़ा और लगा देता हूँ।
हालांकि मैं सोच तो चुका था कि चलो देखते हैं कि अगर इसने ऐतराज न किया तो इसके मम्मों को भी रंग दूँगा, न पसंद आया, तो जाने दो।
वो जल्दी से बाहर से रंग वाली थाली में और रंग डाल कर ले आई।
मैंने उठ कर उसकी थाली से रंग की मुट्ठी भरी और उसके माथे पर, चेहरे पर लगा दी। पूरा चेहरे रंग दिया.
मगर मेरे रुकते ही वो बोली- और … मतलब और रंग लगाओ।
मैंने दूसरी मुट्ठी भरी और उसकी गर्दन, कंधों और बाजुओं पर भी रंग लगा दिया।
वो फिर बोली- और!
मैंने उसकी पीठ और पेट पर भी कपड़ों के ऊपर से रंग लगाया।
वो मेरी तरफ देख कर बोली- शर्मा क्यों रहे हो जीजू, जहां मर्ज़ी लगा लो, मैं बुरा नहीं मानूँगी।
अब ये तो बिल्कुल साफ आमंत्रण था। मैंने अपनी दोनों हाथों में रंग भर और उसके दोनों मम्मों पर लगा दिया।
वो बोली- और।
मैंने कहा- अब और कहाँ लगाऊँ?
वो बोली- आपने सिर्फ कपड़ों पर ही रंग लगाया है जीजू।
मैंने कहा- तो अगर कपड़ों के अंदर लगा दूँ, तो बुरा तो नहीं मानोगी?
वो बोली- होली है, बुरा मानने का सवाल ही नहीं।
मैंने थोड़ा सा रंग लिया और उसकी आँखों में देखते हुये उसकी कमीज़ के गले से अंदर हाथ डाल दिया। पहले ब्रा के ऊपर से रंग लगाया, वो आँखें बंद कर के खड़ी थी कि लगा लो जितना रंग लगाना है।।
फिर मैंने अपना हाथ उसके ब्रा के अंदर डाला और जब उसका मम्मा पकड़ कर दबाया तो मुझे लगा ‘यार … यहाँ कुछ बढ़िया है।’
बढ़िया इसलिए क्योंकि मुझे उसका मम्मा अपनी बीवी से कुछ ज़्यादा सॉलिड लगा, कुछ ज़्यादा चिकना लगा।
मैंने कहा- तुम्हारे मम्में बड़े शानदार हैं साली साहिबा।
वो बोली- क्या करूँ शानदार का … जब कोई देखता ही नहीं।
मैंने कहा- तो क्या तुम्हारा पति नहीं देखता?
वो बोली- अजी कहाँ, वो तो पहली बाल पर आउट होने वाला खिलाड़ी है। कभी ढंग से पिच पर एक ओवर भी नहीं खेल पता।
मैं घूम कर उसके पीछे आ गया और मैंने कहा- तो बैट्समेन बदल कर देख लो.
वो बोली- वही तो सोच रही हूँ. मगर जिस बैट्समेन से मैं खेलना चाहती हूँ, वो मुझसे खेलना ही नहीं चाहता।
मैंने पीछे से जाकर उसे अपनी आगोश में लिया और अपना हाथ फिर से ऊपर से उसकी कमीज के गले से अंदर डाला. और इस बार उसके दोनों मम्मों को बारी बारी से दबा कर देखा।
मम्में मस्त थे साली के।
मैंने कहा- तुम्हारे मम्में तो मेरी बीवी से भी ज़्यादा मस्त हैं।
वो बोली- अब दीदी 6 साल बड़ी भी तो हैं मुझसे।
बस यहीं मुझे लगा के यार अपने से 10 साल छोटी औरत मिल रही है, क्यों न इसके साथ एंजॉय करके देखा जाए। और कुछ नहीं एक नया एडवेंचर ही होगा।
मैंने कहा- सुनो, अगर कोई मौका मिले, तो मिलना चाहोगी मुझसे?
वो बोली- आप मौका तो दो।
मैंने कहा- ठीक है, मैं कोई प्रोग्राम बनाता हूँ, उसके बाद देखते हैं, अगर सेटिंग बैठी, तो ज़रूर मिलेंगे।
उसके बाद मैंने थोड़े से उसके मम्में और दबाये, और थोड़ा सा उसकी गांड पर अपना लंड घिसाया। ये भी साला हरामी पराई औरत की गांड से घिसते ही सर उठाने लगा।
अब तो बात बन ही गई थी। मैंने उसे छोड़ा, उसको अपना फोन नंबर दे कर कहा कि अब फोन पर बात करेंगे, और आगे का प्रोग्राम बनाएँगे।
फिर मैं वापिस अपने लैपटाप पर आकर काम करने लगा और वो मेरे सामने ही कुर्सी पर बैठ कर टीवी देखने लगी।
इतने में मेरी बीवी चाय नाश्ता लेकर आ गई।
फिर हमने चाय नाश्ता और गप्पों के मज़े लिए। करीब 3 बजे वो अपने बच्चों के साथ अपने घर चली गई।
अगले दिन मैंने उसे अपने ऑफिस से फोन किया।
अब क्योंकि मैं जब अपनी किसी महिला पाठक की कामुकता कहानी लिखता हूँ, तो धीरे धीरे मैं उनसे उनकी सभी गुप्त बातें पूछ लेता हूँ. और अक्सर वो अपनी कहानी लिखवाने के लिए अपने अन्तर्मन से ऐसी ऐसी बातें बताती है जो उनके पति को भी नहीं पता होती।
वह लडकी या महिला किसी की बेटी या बहू, किसी की बहन, बीवी, माँ जब मेरे सामने अपने मन की बात करती हैं, तो फिर तो वो ऐसी बातें भी बताती हैं कि ये जान कर बड़ा आश्चर्य होता है कि समाज में परिवार में इस औरत की, इस लड़की की कितनी प्रतिष्ठा होगी। ऊपर से ये कितनी सती सावित्री, शरीफ, सीधी सदी लगती होगी। इसके घर परिवार वाले इसके बारे कितना अच्छा सोचते होंगे, मगर मेरे सामने ये इसका कोई और ही रूप है।
खैर, मैंने करीब आधा घंटा सलोनी से बात की. और इस आधे घंटे में ही मैंने उसके जीवन की सारी किताब पढ़ ली।
बातों बातों में मैंने उस से पूछ लिया कि क्या वो लंड चूसती है, गांड मरवा लेती है। शादी से पहले शादी बाद उसके कितने संबंध रहे हैं।
वो भी शायद सेक्सी बातें करने के मूड में थी, तो उसने भी खूब खुल कर खूब खुश हो हो कर बताया।
जब मैंने अपने मतलब की सब जानकारी हासिल कर ली तो उससे कहा कि अब बस जल्दी ही मैं उससे मिलना चाहता हूँ।
मगर इससे पहले कि मैं उससे किसी होटल के कमरे में मिलता, मैंने उससे एक बार वैसे ही अकेले में मिलने को कहा.
तो वो बोली- मेरे पति सुबह सात बजे चले जाते हैं और शाम को सात बजे वापिस आते हैं। बच्चे सुबह साढ़े आठ बजे तक चले जाते हैं. और घर के बाकी सब काम निपटा कर मैं 10 बजे तक फ्री हो जाती हूँ. शाम के 4 बजे उसके बच्चे वापिस आते हैं. और 11 बजे वो दुकान पर मेरी पत्नी के पास चली जाती है।
मतलब उसने बता दिया कि सुबह 10 से 11 बजे तक तो वो पक्का फ्री है।
तो मेरे पास सुबह 10 से 11 के बीच का समय था। मैंने अगले ही दिन उसके घर जाने का प्रोग्राम बनाया.
अगले दिन ठीक 10 बजे मैं ऑफिस से किसी काम का बहाना करके निकला और उसके घर गया। मैंने घण्टी बजाई तो उसने बड़ी खुशी से मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया।
ड्राइंगरूम में बैठा कर उसने मुझे पानी ला कर दिया।
पानी की गिलास पकड़ते हुये मैंने उसकी कमीज़ के गले से उसके दोनों साँवले मम्मों को देखा।
उसने ताड़ लिया कि मैं उसके मम्में देख रहा हूँ। उसने भी छिपाने की कोई कोशिश नहीं करी।।
पानी पीकर मैं उससे इधर उधर की बातें करने लगा। मगर उसके व्यवहार से लग रहा था, जैसे वो चाहती हो कि ‘यार बातें छोड़ो और मुझे पकड़ लो, साली की चुदाई करने आए हो वो करो।’
थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद उसने चाय पूछी।
मैंने हाँ कही तो वो चाय बनाने किचन में चली गई।
अब मैंने सोचा कि ‘यार मैं खामख्वाह साली की चुदाई में देर कर रहा हूँ, अब मेरे पास सिर्फ यही रास्ता बचा है कि मैं हिम्मत दिखाऊँ और इसे पकड़ लूँ।’
वैसे भी इसके मम्में मैं दबा चुका हूँ तो अगर फिर दबा देता हूँ, तो कौन सा इसने बुरा मानना है।
तो मैं उठ कर किचन में गया। पहले उसके पीछे से गुज़र कर खिड़की तक गया, यूं ही बाहर को देखा और फिर वापिस आया।
और जब वापिस आते हुये मैं उसके पीछे से गुज़रा तो मैंने उसे अपनी आगोश में ले लिया।
उसने सिर्फ ‘अरे’ कहा।
इस ‘अरे’ में भी खुशी और आश्चर्य का मिला जुला प्रतिक्रम था।
मैंने उसको कस के अपने सीने से लगाया तो उसने अपना सर मेरे कंधे पर डाल दिया, गैस को धीमा करके अपनी दोनों बाजुएँ ऊपर हवा में उठाई और पीछे मेरे गले में डाल दी।
मैंने अपने दोनों हाथ उसके कमीज़ के अंदर डाले और ऊपर लेजा कर उसके दोनों मम्में पकड़ लिए।
वो थोड़ शरमाई, मुस्कुराई, हंसी।
मगर ये हंसी, शरारत वाली थी।
मैं अपने दोनों हाथ घुमा कर पीछे लाया और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया. फिर अपने हाथ आगे ले कर गया.
और इस बार उसकी ब्रा ऊपर को उठा कर उसके दोनों मम्में ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिये और अपने हाथों में पकड़ लिए।
और जब दबाये ‘आह …’ साली पराई औरत के जिस्म में एक अलग ही कशिश होती है।
मैंने उसके दोनों मम्मों को सहलाया तो उसने अपना सर मेरी ओर घुमाया. मैं थोड़ा नीचे को झुका और फिर हमारे होंठ मिले। दोनों के होंठ ऐसे जुड़े के अलग होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मैं ये देख रहा था कि मुझसे ज़्यादा वो इस चुंबन का आनंद ले रही थी।
मैंने उसके एक मम्मे को छोड़ा और अपने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया। अंदर मैदान बिल्कुल साफ था, चिकनी चूत को छूआ तो वो थोड़ा सा चिहुंकी।
‘आह …’ हल्की सी सिसकारी उसके मुंह से निकली।
मैंने अपने हाथ से उसकी चूत का दना मसला तो उसने अपनी जांघें भींच ली. सिर्फ इतनी सी ही देर में उसकी चूत पानी पानी हो गई।
मेरा भी लंड टनटना गया।
उसने गैस बंद कर दी, बोली- यहाँ मज़ा नहीं आ रहा, चलो बेडरूम में चलते हैं।
मैंने कहा- नहीं यार, अभी नहीं, अभी तुमने 11 बजे दुकान पर जाना है। इतनी जल्दी मुझे मज़ा नहीं आता। मुझे अच्छा लगता है, जब खुला समय हो, और बिल्कुल एकांत हो। ताकि खुल कर प्यार करने, साली की चुदाई का मज़ा आ सके। इस भागदौड़ में साला मज़ा नहीं आता।
वो बोली- तो फिर जल्दी कोई प्रोग्राम बनाओ आप। अब मुझसे सब्र करना मुश्किल हो रहा है।
मैंने कहा- सब्र तो मुझसे भी नहीं हो रहा। खैर देखता हूँ, बनाता हूँ कोई प्रोग्राम। मगर मेरी एक इच्छा है, मैं तुम्हें एक बार बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ।
वो बोली- अब तो मैं आपकी हो चुकी हूँ, खुद ही देख लो।
मैंने अपने हाथों से उसकी कमीज़, ब्रा सलवार सब उतार कर उसे किचन में ही नंगी कर दिया। बेशक वो देखने में कोई हूर परी नहीं थी, मगर उसे नंगी देख कर मेरा दिल मचल गया। मेरा मन तो कर रहा था कि अभी इसे चोद डालूँ।
मगर अभी वक्त नहीं था तो मैंने सिर्फ उसके नंगे जिस्म को थोड़ा सा सहलाया और फिर वापिस अपने ऑफिस आ गया।
ऑफिस आकर मैंने अपने एक दोस्त से बात करी कि होटल के एक कमरे का इंतजाम करके दे, एक पर्सनल माशूक है, उसको चोदना है।
उसने कहा- कोई दिक्कत नहीं, अपनी माशूक से कहो, जब वो फ्री हो, तब बता दे, होटल का कमरा तो मैं मौके पर ही दिलवा दूँगा।
शाम को घर गया तो बीवी बोली कि उसकी छोटी भाभी के घर बेटा हुआ है, तो उसे अपने मायके जाना है।
मेरे मन में एकदम से विचार आया और मैंने अपनी ऑफिस का ज़रूरी काम बता कर उसको बोला- तुम ही चली जाओ और साथ में बेटे को भी ले जाओ। मैं एक दो दिन बाद आ जाऊंगा।
सुबह 6 बजे पत्नी और बेटे को मैंने दिल्ली की बस बैठा दिया और खुद घर आकर 9 बजने का इंतज़ार करने लगा।
9 बजे पहले मैंने अपने दफ्तर फोन करके बोला- आज मैं नहीं आ सकता.
और फिर सलोनी को फोन लगाया।
उसने फोन उठाते ही पूछा- हां जी, गई दीदी?
मैंने कहा- तुम्हें पता है?
वो बोली- हाँ कल रात बताया दीदी ने!
मैंने पूछा- तो क्या प्रोग्राम है, आज मिलें फिर?
वो बोली- कब और कहाँ?
मैंने कहा- और कहाँ? मेरे घर … तुम दुकान खोलो और 11 बजे मैं तुम्हें पीछे वाली गली में लेने आऊँगा. ठीक है?
वो मान गई।
मैंने नहा धोकर तैयार होकर 11 बजने से 5 मिनट पहले गाड़ी निकाली और सलोनी को लेने चल पड़ा।
मैं सोच रहा था कि जिस औरत को मैंने आज तक भाव नहीं दिया, ढंग से उसकी तरफ कभी देखा भी नहीं, आज मुझे उसकी चूत मारने के लिए चाव चढ़ा हुआ है।।
खैर मैं उसे चुपके से उठा लाया और घर आ कर गाड़ी खड़ी करी. हम दोनों अपने ड्राइंग रूम में गए।
मैं उसके लिए गिलास में कोल्ड ड्रिंक डाल कर लाया।
उसके चेहरे पर, खुशी, घबराहट, जिज्ञासा सब कुछ झलक रहा था।
मैंने उसको कोल्ड ड्रिंक पीते देख कर कहा- यहाँ इतनी दूर क्यों बैठी हो, इधर पास हो कर बैठो।
वो शर्मा गई.
तो मैंने उसकी बाजू पकड़ कर खींची और उसको अपने से सटा लिया।
मैंने कहा- इतनी चुप क्यों हो? पहले तो इतना बोलती हो?
वो बोली- क्या कहूँ?
मैंने कहा- अगर कुछ नहीं कहना तो मेरी गोद में आ जाओ।
वो शरारत से बोली- अच्छा, यूं ही?
मैंने उसकी बाजू पकड़ कर खींची तो वो खुद ही उठ कर मेरी गोद में बैठ गई. मैंने उसे अपनी बाजू का सहारा देकर अपनी गोद में ही लेटा लिया। दोनों के गिलास टेबल पर रख दिये।
मैंने उसके चेहरे को अपने हाथ से पकड़ा और ध्यान से देखा।
सुंदर न होते हुये भी वो मुझे प्यारी लग रही थी।
मैंने उसके माथे, गाल पर उंगली फेरी तो उसने अपनी आँखें बंद कर ली. आँखें मींचे वो मेरी गोद में लेटी थी और मैं उसके चेहरे से होते हुये उसके सारे बदन को छूकर, सहला कर देख रहा था। मुझे
साली की चुदाई की कोई जल्दी नहीं थी मुझे, मैं तो सिर्फ उसके जिस्म ऊंचाइयों, गहराइयों और गोलाइयों को छू कर अपने मन को तसल्ली दे रहा था।
वो भी किसी कमसिन की तरह लरज़ रही थी।
मैंने उसके होंठ को छुआ, और फिर उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठों में ले लिया.
उसकी लिपस्टिक का टेस्ट मेरे मुंह में आया मगर मैं उसके होंठ को चूसने लगा।
वो भी मुझसे लिपट गई।
काफी देर हम दोनों ने एक दूसरे के होंठों को चूसा।
फिर मैंने कहा- सलोनी मेरी जान, मैं तुम्हें बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ।
वो बोली- उस दिन देख तो लिया था।
मैंने कहा- वो तो तुम्हारे घर में था, यहाँ मेरे घर में मुझे नंगी हो कर दिखाओ।
वो नखरे से बोली- नहीं, मैं नहीं, आप गंदे हो।
मैंने कहा- क्यूँ? मैं क्यूँ गंदा हूँ?
वो बोली- आप गंदी बातें करते हो।
मैंने कहा- नहीं मेरी जान, मैं गंदी बात नहीं करता, प्यार में ये सब करते हैं।
वो बड़े भोलेपन से बोली- अच्छा जी, पर कैसे करते हैं?
मैंने कहा- सब बता दूँगा, मेरी जान अगर तुम मेरी हर बात मानो। मेरा बाबू मेरी बात मानेगा?
उसने किसी बच्चे की तरह से अपना सर हाँ में हिलाया।
तो मैंने उसे उठा कर खड़ा किया और फिर मैंने उसकी कमीज़ को पकड़ कर ऊपर को उठाया, उसने भी मेरा साथ दिया.
पहले कमीज़ उतारी, फिर ब्रा खोल कर उतारी, फिर सलवार का नाड़ा खोला और सलवार उतार कर उसे बिल्कुल नंगी कर दिया।
एक एक करते उसके कपड़े उतारते हुये उसने मेरा पूरा साथ दिया, जैसे उसके अंदर भी यह चाहत हो कि ‘कर दो मुझे नंगी और देखो मेरे सेक्सी जिस्म को।’
उसे नंगी करके मैंने अपनी कपड़े भी उतारे।
उसके सामने जब मैं कपड़े उतार रहा था तो वो भी बड़ी उत्सुकता से मुझे नंगा होते हुए देख रही थी।
टीशर्ट और जीन्स के बाद मैंने जब अपनी चड्डी को उतरना चाहा तो उसने मुझे रोका- सुनिए, थोड़ा रुक जाइए!
मैंने पूछा- क्यों?
“आपने इतने प्यार से मेरे कपड़े उतारे, मुझे भी मौका दीजिये कि मैं भी अपनी मर्ज़ी से कुछ कर सकूँ।”
मैं रुक गया तो वो मेरे पास आई और मेरे सामने बैठ गई।
चड्डी में मेरे तने हुए लंड का पूरा आकार बना हुआ था. उसने पहले चड्डी के ऊपर से ही मेरे लंड को छूकर देखा।
उसके चेहरे पर एक बड़ी आश्चर्य वाली मुस्कान थी क्योंकि उससे प्रेम प्यार करते मेरा लंड भी पूरा अकड़ चुका था।
मेरे तने हुये लंड को देख कर वो बोली- आप तो पूरे तैयार हुए फिरते हो।
मैंने कहा- हाँ तैयार तो रहना पड़ता है.
और उसके बाद उसने अपने हाथों से मेरी चड्डी नीचे को सरका दी और मेरा कड़क लंड झूम कर बाहर निकला।
अपनी चड्डी उतर जाने के बाद मैंने आगे बढ़ कर उसे उठाया और अपने सामने खड़ी करके एकदम से उसे अपने गले से लगाया. और जानबूझ कर अपना कड़क लंड उसके पेट पर ज़ोर से टकराया। वो बिलबिलाई- हाय … कितना सख्त है पत्थर के जैसे! कितनी ज़ोर से मारा, इतना दर्द हुआ।
मैंने अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा कर कहा- अब जब ये तेरी भोंसड़ी में घुसेगा, तब देखना!
उसने मेरे सीने पर हल्का सा मुक्का मार कर कहा- छी, गंदे ऐसे नहीं कहते।
मैंने कहा- अब जैसे भी कहते हों! अब कहने सुनने का वक्त गया, अब कुछ करने के वक्त है.
कहते हुये मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया तो उसने भी अपनी बांहें मेरे गले में डाल दी।
गोद में उठा कर मैं उसे अपने बेडरूम में ले गया और लेजा कर बेड पर पटक दिया.
वो मदमस्त मेरे बिस्तर पर बिछ गई।
मैं दूसरी तरफ जाकर बेड पर टेक लगा कर बैठ गया और उसकी बाजू पकड़ कर अपनी ओर खींचा.
एक बदमाश हंसी के साथ वो मेरी जांघ पर सर रख कर लेट गई।
हरी चादर पर साँवले रंग की औरत जैसे जंगल में से मटमैले रंग की भरी हुई बरसाती नदी बह निकली हो।
मैंने उसके सर को अपनी ओर घुमाया और अपने लंड से उसके माथे पर चोट करते हुये पूछा- खाएगी इसे?
वो घूम कर उल्टी लेट गई और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ कर देखने लगी।।
पहले चमड़ी पीछे हटा कर गुलाबी टोपा बाहर निकाला और फिर मेरी ओर देखते हुये कई बार मेरे लंड को अपने मुंह पर घुमाती रही. कभी अपने गालों पर माथे पर आँखों पर लगाती रही.
मैं उसे मेरे लंड से खेलते देखता रहा.
फिर कई बार मेरे लंड को इधर उधर से चूमा और फिर चूमते चाटते उसने मेरे टोपे को दाँतों से काटा और फिर चाटा. और चाटते चाटते उसने मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया।
मैं अपना एक हाथ उसकी नंगी मांसल पीठ पर रखा और सहलाने लगा। भरी हुई चर्बी वाली पीठ!
लंड चूसते चूसते वो उठी और बिल्कुल मेरे सामने मेरी दोनों टाँगों के बीच आ कर बैठ गई. वो मेरे लंड को जड़ तक अपने मुंह में ले ले कर चूसने लगी।
पीछे उसने अपने दोनों घुटने मोड़ रखे थे तो उसकी गोल गांड हवा में उठी हुई थी जिसकी बड़ी सुंदर शेप बन रही थी।
मैं अपने दोनों पांव से उसके चूतड़ सहला रहा था।
मेरे कहे बिना ही उसने मेरे लंड के साथ साथ मेरे दोनों आँड भी चूसे। उसके चाटने चूसने से मेरे जिस्म की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी, तो मैंने उसे उठा कर अपनी गोद में बैठा लिया।
वो भी मेरी कमर के ऊपर एक टांग इधर और दूसरी टांग उधर रख कर अपने घुटने मोड़ कर बैठ गई।
इस तरह से उसकी चूत पूरी तरह से मेरे लंड के ऊपर रखी गई। उसकी गीली चूत के दोनों होंठों के बीच मेरा लंड सेट हो गया था।
मैंने उसको अपनी बांहों में भींच कर कहा- ले इसे, अपने यार को अपनी चूत में ले ले मेरी जानेमन।
वो थोड़ा सा ऊपर को उठी मेरे लंड को अपने हाथ से उठा कर अपनी चूत पर सेट किया और फिर बैठ गई, इस बार मेरे लंड का टोपा ठीक उसकी चूत के नीचे था।
जैसे जैसे वो बैठती गई, मेरा लंड उसकी चूत में अंदर घुसता गया।
दो बार ऊपर नीचे हो कर ही उसने मेरा सारा लंड निगल लिया। पूरा लंड अंदर जाने के बाद वो रुक गई, उसने अपना मम्मा अपने हाथ में पकड़ा और मेरे मुंह से लगाया।
मैंने उसके मम्मा चूसा और फिर उससे पूछा- काट लूँ मम्मे पर तेरे?
वो बोली- हाँ काट लो, बस निप्पल पर मत काटना, यहाँ दर्द ज़्यादा होता है।
मैंने कहा- मगर मैं तो तुम्हें दर्द देने के लिए ही काटना चाहता हूँ।
वो बोली- कोई बात नहीं मेरे सरताज, जितना मर्ज़ी दर्द दे लो।
मैंने कहा- और अगर तुम्हारे पति ने मेरे दाँतों के निशान तुम्हारे बदन पर देख लिए तो?
वो बोली- उसकी चिंता आप मत करो।
मैंने उसके मम्में पर ज़ोर से काटा, तो उसने ज़ोर से ‘आह … ऊई …’ करके सिसकारी भरी।
उसकी सिसकारी मुझे बहुत प्यारी लगी।
मैंने उसके मम्मों पर,कंधों पर गर्दन पर, बाजू पर कई जगह काटा। सच में मुझे उसके जिस्म का मांस चबाने में मज़ा आ रहा था।
उसके जिस्म पर कई जगह निशान बनाने के बाद मैंने उसको ऊपर नीचे होने को कहा.
वो धीरे धीरे ऊपर नीचे होने लगी. ऐसा मज़ा आया जैसे वो मेरे लंड को चूस रही हो, अंदर तक खींच कर ले जाती और फिर धीरे धीरे बाहर निकालती।
मैंने कहा- तुम तो लंड को मुंह से ज़्यादा बढ़िया अपनी चूत से चूसती हो।
वो बोली- मैं तो खुद कबसे यही सब करना चाहती थी।
मैंने कहा- क्यों, पति से ये सब नहीं करती?
वो बोली- अरे जीजू आपको बताया न, इतनी देर में तो वो कब का पिचकारी मार चुका होता।
मैंने कहा- जब तुम रात को प्यासी रह जाती हो, तो फिर कैसे अपनी आग ठंडी करती हो?
वो बोली- बस ये मत पूछो।
मैंने कहा- बता न यार?
वो बोली- बस कभी हाथ से कभी मूली गाजर या खीरा।
मैं- और कुछ सोचती भी हो हस्तमैथुन करते हुए?
वो बोली- हाँ सोचने से ही तो खून में जोश आता है, कुछ करने का मज़ा आता है।
मैंने पूछा- क्या सोचती हो? किसके बारे में सोचती हो?
वो बोली- सब कुछ सोचती हूँ जो कुछ भी ब्लू फिल्मों में देखा है वो सब करने का सोचती हूँ. और मैंने अपने जानने वाले हर मर्द के साथ अपने ख्यालों में सेक्स किया है।
मैंने पूछा- मेरे बारे में भी सोचती हो?
वो हंस कर बोली- आपके बारे में? अरे आपको तो मैं इतना प्यार करती हूँ कि अगर आप कहो न कि सलोनी तुझसे मैं शादी तो नहीं कर सकता, पर तुझे एक रखैल बना कर रख सकता हूँ। तो इसके लिए भी मैं अपना पति छोड़ सकती हूँ।
मैंने पूछा- अपने पति से बिल्कुल प्यार नहीं करती।
वो बोली- बिल्कुल भी नहीं, वो मेरी जूती से।
“और मुझसे?” मैंने पूछा।
वो बोली- अगर प्यार न करती जीजू तो अपने पति बच्चों को धोखा दे देकर इस तरह आपकी गोद में न बैठी होती।
मैंने उसे अपने गले से लगा लिया तो वो मुझसे कस कर लिपट गई।
“आई लव यू जीजू!” वो बोली.
तो साला दिल को बड़ा सुकून मिला के इस उम्र में भी हम पर कोई मरती है।।
बेशक वो कोई सुंदर नहीं थी, मगर फिर भी मैं उसके चेहरे को चाट गया, उसका सारा मेकअप खा गया।
मैंने एक बात नोटिस की है। जब एक औरत किसी दूसरी औरत के पति के साथ सेक्स करने जाती है, तो वो सारा ध्यान अपनी लुक्स पर देती है। कपड़े अच्छे हों, मेकअप अच्छा हो, अंडरगार्मेंट्स अच्छे हों, हेअर स्टाइल अच्छा हो।
मगर जब कोई मर्द किसी और की बीवी के साथ सेक्स करने को जाता है, उसका सारा ध्यान सिर्फ अपने लंड पर होता है। मेरा लंड उसके पति के लंड से बड़ा हो, मैं उसके पति से ज़्यादा देर तक उसकी चुदाई करूँ, मैं उसके पति से ज़्यादा जोरदार सेक्स करूँ।
शायद यही वजह थी कि सलोनी के साथ सेक्स का प्रोग्राम बनाने से पहले ही मैंने अपना इंतजाम कर लिया था कि मौके पर मेरा लंड सारा टाइम बिल्कुल कड़क रहे और जितना ज़्यादा देर हो सके तब न झड़े।
जहां सलोनी का पति सिर्फ 3-4 मिनट में ही माल गिरा देता था, वहाँ मैं उसे पिछले 20 मिनट से चोद रहा था। उसकी चूत भी पूरा भर भर के पानी छोड़ रही थी।
मैंने उसके होंठों को अपनी जीभ से चाटते हुए पूछा- सलोनी एक बात बता, जब से तू अपने पति से नाखुश है, तब से लेकर अब तक तूने कितने मर्दों को अपने ऊपर चढ़ाया है?
वो हंस कर बोली- ये सभी मर्दों को इस बात में क्या इंटरेस्ट होता है?
मैंने कहा- बस होता है, बता न?
वो बोली- मेरी शादी को 22 साल हो चुके हैं, 1998 में हुई थी, तब से लेकर अब तक करीब 50 मर्द तो मेरे ऊपर लेट चुके होंगे।
मैंने कहा- अरे क्या बात है, फिर तो तू एक गश्ती ही हुई।
वो बोली- हाँ आप कह सकते हो, मगर मेरा तर्क दूसरा है। मैंने कभी पैसे के लिए किसी से नहीं चुदवाया है। मैंने जब भी किसी मर्द से संबंध बनाए तो सिर्फ अपने तन और मन की संतुष्टि के लिए बनाए।
मैंने पूछा- तो किस किस का लंड ले चुकी हो अब तक?
वो बोली- बहुतों का, अपना कोई जानकार मैंने नहीं छोड़ा, जिसको मैंने लाइन नहीं दी। बहुत से लोग तो मेरी साधारण शक्ल सूरत करके ही आगे नहीं आए, जो आए, वो कोई भी मुझे खुश नहीं कर पाये। बल्कि एक दो तो मेरे नजदीकी रिश्तेदार थे।
मैंने पूछा- कौन?
वो बोली- एक मेरी सगी बुआ का बेटा था, बड़ा दीदी दीदी कर चिपकता था, तो एक दिन मैंने उसे अपने से चिपका ही लिया कि आ जा तेरी आग ठंडी करूँ।
“अपनी सगी बुआ के लड़के से?” मैंने हैरान हो कर पूछा।
वो बोली- जीजू, रिश्ता मर्द औरत में एक ही होता है, ये हमारे समाज के नियम कायदे ऐसे हैं। आप बताओ अगर आपको आपकी कोई रिश्तेदार औरत या लड़की, खुल्ली ऑफर दे सेक्स की, तो क्या आप मना करोगे? चाहे वो कोई भी हो, आपकी बहन, भाभी चाची मासी, भतीजी या भांजी।
मैंने कुछ सोचा और कहा- हाँ बात तो सही है, मैं तो अक्सर कई बार सोचता भी हूँ उनके बारे में कि अगर वो मान जाए तो क्या करूं, और अगर ये मान जाए तो क्या करूँ। किसी के मम्में अच्छे हैं, किसी गांड मस्त है, किसीकी जांघें, किसी के होंठ। हर एक में मुझे कुछ न कुछ अच्छा लग ही जाता है।
वो बोली- तो यही भावना औरतों में भी होती है, और जब कोई औरत बिस्तर पर प्यासी रह जाती है, तो वो भी अपने आस पास के हर मर्द के बारे में ऐसा ही सोचती है। मगर उसके पास चॉइस ज़्यादा नहीं होती। क्योंकि उसे सिर्फ मर्द की शक्ल से प्रेम होता है, और उसके बाद तो उसके नीचे लेट कर ही पता चलता है कि वो किसी काम का है भी या नहीं।
मैंने कहा- तुम तो बड़ी ज्ञानी हो।
वो बोली- जीजाजी, बहुत घिसाई कारवाई है इस ज्ञान को हासिल करने के लिए।
मैंने कहा- तो चल अब नीचे लेट, तुझे तसल्ली से पेल कर देखूँ।
वो चहक कर मेरी गोद से उठी और बिस्तर पर लेट गई, दोनों टाँगे खोल कर अपनी बाहें भी मेरी और फैला दी।
“आओ प्रभु!” वो बोली।
मैंने कहा- प्रभु?
वो बोली- आप से मिल कर मुझे बहुत खुशी हुई, इतनी देर तक कोई मर्द मुझे नहीं भोग पाया। अब तक तो सभी आउट हो चुके होते हैं।
मैं उसके ऊपर लेट गया और उसने मेरे लंड को पकड़ कर पहले उसको हिलाया, थोड़ी सी मुट्ठ मारी और फिर अपनी चूत पर रखा. मैंने धक्का देकर अंदर घुसेड़ दिया।
“ओ मेरी जान!” वो बोली।
मैंने कहा- दर्द हुआ?
वो बोली- अरे नहीं मेरी जान, दर्द नहीं हुआ, ऐसा लगा जैसे कोई पत्थर मेरे अंदर घुस गया हो, क्या खा कर आए हो आप? न झड़ रहे हो, न ढीले पड़ रहे हो।
मैंने कहा- अरे नहीं ऐसा कुछ नहीं है। बस तुम्हें बहुत देर तक चोदने के लिए खुद पर काबू रख रहा हूँ। कि अगर कहीं जल्दी झड़ गया, तो तुम चली जाओगी, और फिर पता नहीं तुम्हें कब चोद पाऊँगा।
वो बोली- अरे उसकी आप चिंता न करो, कभी कभी मेरे पति को कंपनी के काम से बाहर भी जाना पड़ता है, जब वो बाहर गए होंगे तो आप पीछे से आ जाना, सुबह 9 से 11 बजे तक खुल कर सेक्स करेंगे।
उसकी बात सुन कर मैंने उसे ज़ोर ज़ोर से चोदा।
वो बोली- क्या हुआ, गुस्सा निकाल रहे हो?
मैंने कहा- नहीं तो।
वो बोली- तो पहले की तरह प्यार से करते रहो न, होले होले लंड अंदर बाहर जाता है, तो ज़्यादा मज़ा आता है।
मैंने उसकी चुदाई स्लो स्लो करनी शुरू कर दी. मैं अपना लंड पूरा बाहर निकाल कर अंदर डालता, फिर निकालता, फिर डालता. और जब डालता तो ज़ोर से धक्का मारता के अंदर जाकर मेरे लंड का टोपा उसकी बच्चेदानी पर टकराता।
अब मैंने पूछा- मज़ा आया?
वो बोली- बहुत … तीन बार झड़ चुकी हूँ।
मैंने हैरान होकर कहा- तीन बार, मुझे तो पता ही नहीं चला।
वो बोली- मैं ज़्यादा तड़पती नहीं उछलती नहीं। इसलिए किसी को भी पता नहीं चलता।
मेरी चुदाई धीरे धीरे चलती रही, और फिर मेरा भी मुकाम आया।
मैंने पूछा- मेरा भी होने वाला है।कहा निकालु ????
वो बोली- अंदर मत गिराना, बाकी कहीं भी गिरा दो। भिगो दो मुझे।
मैंने उसकी चूत से अपना लंड निकाला और निकाल कर हिलाने लगा. कुछ ही पलों में मेरे लंड से गाढ़े लेस के फव्वारे छूट पड़े जो उसके पेट सीने और मुंह तक को भिगो गए।
वो मस्त लेटी मेरी और देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
कुछ देर बार वो उठी और बाथरूम में जाकर नहाने लगी।
मैं भी बाथरूम में घुस गया, पहले तो हम एक साथ नहाये, और नहाते नहाते मेरा लंड फिर से तन गया, मैंने उसे वहीं बाथरूम में ही घोड़ी बना लिया और चलते फव्वारे के नीचे उसे फिर से चोदने लगा।
ये कोई वैसी चुदाई नहीं थी, ये तो बस शुगल था कि नहाते हुये उसे चोद कर देखना है।
मैंने देखा उसके जिस्म पर कई जगह निशान थे, मैंने कहा- ये अपने प्यार की निशानियाँ अपने पति से छुपा कर रखना। वो हंस कर बोली- अगर देख भी लेगा, तो भी क्या है। मैंने तो उस से कह दूँगी, यही हाल अगर तू करदे तो मुझे बाहर जाने की ज़रूरत ही क्या है। मैंने पूछा- तो क्या तेरे पति को पता है सब कुछ?
वो बोली- अंधा थोड़े ही है वो, सब देखता समझता है। पता उसको भी है, इसलिए कभी कुछ नहीं कहता।
मैं उस औरत की बहदुरी का कायल हो गया, कितनी बेबाक, कितनी दिलेर है।
नहा कर हम बाहर आए. उसके बाद हमने अपने अपने कपड़े पहने, उसने फिर से मेकअप किया। और फिर मैं उसे दुकान पर छोड़ने गया।
दुकान पर छोड़ कर मैं वापिस आ गया।
घर आकर मैं सोचने लगा, लोग कहते हैं प्यार अंधा होता है, मैं कहता हूँ, वासना भी अंधी होती है।
जिस औरत को मैंने कभी ढंग से बुलाया नहीं, उसको को तवज्जो नहीं दी, आज उसकी भोंसड़ी मार कर कितना सुकून मिल रहा था मुझे।
जिसको कभी खूबसूरत नहीं समझा, उसके भी होंठ चूस गया। जो कभी हॉट नहीं लगी, उसको चोदने का लालच भी मैं छोड़ नहीं पाया।
सच में वासना भी अंधी होती है।
End