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Adultery मायके का जायका
#14
कहीं गए ।कुछेक 10 मि. में लौटे तो उनके साथ एक 30/32वर्षीय भरे पुरे बदन वाली औरत ,माथे में सिन्दूर, होठों पे गहरी लाल लिपिस्टक तथा गले में मंगलसूत्र थी आई और रमेश जी के हाथो में एक झोली थी। ऊषा भाभी ऊसे देखते ही बोली, आई आई सविता बहिन आजो बुक बानी की। ना हे आज आपन देवर के रात वाली ड्यूटी बिया ।दुकनिया के आगे ईहा के भैंट गईनी। का करेब घरे ब्ईठ के ,ईतनी बात बोल के वह भी भाभी के बगल में बैठ गई। तिपहिया फिर आगे बढ चली थी । मुझे ऊत्सुकता थी जानने की ,वह औरत कौन थी और बुक बानी का मतलव केया है। ईधर सीमा अपने दुपट्टे को माथे बाल पर ऐसे लपेट रखी थी कि एक नजर में कोई ऊसे बिना गौर से देखे ना पहचान सकता था।
आटो शहर के भीड भार से निकल कर अंतरराज्यीय सड़क पर आ गई ।रास्ते मे सिर्फ हर तरह के वाहनों की आवाजाही हो रही थी। कभी कभार एक दो आदमी नजर आ रही थी । रात के आठ के उपर बज रही थी और हमलोगों को ऊषा भाभी का घर ही अभी 35__36 की. मी दूर थी और करीब उतनी ही दूरी वहां से मंदिर की थी।अब तक तो सब लोग शांत बैठे थे, सिवाए हल्की फुलकी बातों के। लेकिन अभी आई सविता ,आटो के चलते ही बोलना आरंभ कर दी। वह अपने शिर को हमलोंगो को गौर से देखने लगी, मेरे चेहरे को तो वह साफ देख पा रही थी पर सीमा ड्राइवर के पुस्त मेंलगी डंडे को पकड़ कर उसी पर सर टिकाए बैठी थी,कि ओर ईशारा कर वह ऊषा भाभी से पुछी ,ऊषा बहिन ई लोग पसिन्जर बारी की। अरे ईनका सब के न्ईखे जानतारू ,हंसती हुईं उषा भाभी बोली। और फिर मेरी तरफ ईसारा कर बोली ,ई बारिन मीरा हमार मुहल्ला के पुरनकी माल और ओने बारीन सीमा रानी। सीमा शर्माती अपने मुंह को पिछे सविता के तरफ घुमाती हुई बोली परणाम भौजी। जबाव में सविता ,सीमा के गालो को चिकोटती हुई बोली, आए हाए आज बरा शरम आतिया,ओ दिने त रमेश जी के लौड़ा पुरा ६ईंची धंसवा के चिल्लात रहींं फार दे भैया पुरा धांस दे और भाई के बहिनचोद, माईचोदी आउय न जानी काथी काथी बोलत रही ।यह सब सुनके मैं सीमा के तरफ देखने लगी, वैसे तो हम दोनो ने क्ई बार एक साथ क्ई बार एक साथ क्ई लौडे लिए थे वह भी शादी से पहले, लेकिन सीमा रमेश भाई से भी चुदी है यह मेरी जानकारी में नही थी। सीमा के लाल चेहरा देखते ही मैं समझ गई कि यह मजाक नही सच है। रमेश भाई आटो चलाते हुए झेंपी आवाज में सविता को हंसते हुए डांटने लगे, रंडी एही खतिरा तोहरा हम ब्ईठ्ईनी ह ।सीमा अपनी शर्म को भूल कर रमेश से बोली भैया ना होखे त दमुआ के पिछे सिटवा पर भेज दिहीं, दमुआ के डनडा जब ईंहा के मुंह में ठोकाई तब जा के ईनकर छिनारी बंद होखी। अरे हमार मुंह में डारी चाहे बुर गांर फांरी, वही खतिरा त जात बानी। आऊर शरम का हे खतिरा कैल जाई,बताईं उषा बहिन याद बा नू जे एके चट्ईवा पर हमतिनो एके साथे घचाघच घचाचच लौड़ा पेलवैले रहनी मन।
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RE: मायके का जायका - by Meerachatwani111 - 18-04-2019, 08:15 AM



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