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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#18
अध्याय - 11
______________





"क्या हुआ?" करीब पंद्रह मिनट बाद माया ने उस वक़्त मुझसे पूछा जब मैं बेड पर एक किनारे कुछ सोचते हुए बैठा था____"अब क्या सोच रहे हो? क्या फिर से करने का इरादा है?"

मैंने माया की तरफ देखा। वो बेड पर उठ कर बैठ गई थी। हम दोनों अभी भी पूरे नंगे ही थे। माया के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी किन्तु मैं थोड़ा उदास सा था और मुझे अंदर से बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। शायद इसी वजह से माया ने मुझसे ये पूछा था।

"नहीं, अब मेरा करने का कोई इरादा नहीं है।" मैंने पहले की ही तरह थोड़े उदास भाव से कहा।
"तो फिर तुम इस तरह सैड टाइप क्यों दिख रहे हो?" माया ने कहा____"क्या तुम्हें मेरे साथ सेक्स करने में मज़ा नहीं आया?"

"बात मज़ा आने की नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"बल्कि बात ये है कि मैंने बहुत बुरी तरह से तुम्हें काटा था जिसकी वजह से तुम्हारी छातियों में ज़ख्म बन गए हैं। उस वक़्त तो जोश जोश में मैं वो सब कर गया लेकिन अब मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया।"

"ओह! डियर।" माया ने मुस्कुरा कर मेरा चेहरा सहलाते हुए कहा____"तो तुम इस वजह से सैड हो के बैठे हो? कमाल के हो तुम। सिर्फ इतनी सी बात के लिए बुरा फील कर रहे हो। वैसे मुझे अच्छा लगा कि तुम मेरे लिए ऐसा फील कर रहे हो लेकिन यकीन मानो डियर, मुझे तुम्हारे ऐसा करने से तुमसे कोई शिकायत नहीं है। तुमने वही किया जो करने के लिए मैंने कहा और तुम्हें उकसाया भी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सब तुम्हारी ट्रेनिंग का एक हिस्सा है। रही बात मेरे ज़ख्म और तक़लीफ की तो ये सब चलता ही रहता है। इस तरह का काम करने से पहले हमें खुल कर बताया गया था कि इस काम में हमें कितनी तक़लीफ मिलेगी। हमने इस तक़लीफ को ख़ुशी से चुना है डियर, इस लिए तुम इसके लिए सैड फील मत करो।"

"तो क्या तुम सच में मुझसे नाराज़ नहीं हो?" मैंने मासूमियत से उससे पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल नहीं डियर, बल्कि मैं तो खुश हूं कि तुमने पहली बार में बहुत अच्छा करने की कोशिश की। सबसे बड़ी बात ये कि अब तुम्हारे अंदर शर्म और झिझक नहीं रही।"

"हां मुझे भी अब ऐसा ही लग रहा है कि अब मुझे पहले की तरह शर्म महसूस नहीं होती।" मैंने कहा____"हालाँकि तुम्हारे अलावा भी अगर किसी और के साथ मुझे शर्म नहीं महसूस होगी तो फिर मैं पूरी तरह समझ जाऊंगा कि अब मेरे अंदर से पूरी तरह शर्म और झिझक चली गई है।"

"अगर ऐसा है।" माया ने कहा____"तो जल्द ही तुम्हें मेरे अलावा दूसरी लड़की के साथ इस बात को आजमाने का मौका मिल जाएगा।"
"वो कैसे?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा।
"तुम कोमल और तबस्सुम को भूल गए क्या?" माया ने कहा___"अभी तो तुम्हें उन दोनों के साथ भी यही सब करना है।"

"ओह! हां।" मुझे जैसे याद आया।
"वो दोनों एक साथ ही रहती हैं।" माया ने कहा____"इस लिए तुम्हें एक साथ ही उन दोनों के साथ ये सब करना पड़ेगा। अगर तुमने इन दोनों को खुश कर दिया तो समझो तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी हो गई।"

माया की इस बात से मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा घबराया कि उन दोनों ने अगर मेरा बुरा हाल कर दिया तो?? ख़ैर उसके बाद मैं और माया दोनों ने अपने अपने कपडे पहने। माया के कहने पर मैं उसके साथ ही कमरे से बाहर आ गया।

उस दिन का कोटा माया के साथ पूरा हो गया था इस लिए बाकी का सारा दिन और रात कुछ नहीं हुआ। बल्कि दोपहर का लंच करने के बाद मैं एक अलग कमरे में चला गया था। माया के साथ सेक्स कर के मैं बुरी तरह थक गया था इस लिए बेड पर लेटते ही मैं गहरी नींद में चला गया था।

शाम को मेरी आँख कोमल के जगाने पर ही खुली। उसने मुझे फ्रेश हो कर आने को कहा तो मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। उसके बाद मैंने कोमल तबस्सुम और माया के साथ ही डिनर किया। डिनर के दौरान कोमल और तबस्सुम अपनी तरह तरह की बातों से मेरे और माया के साथ मज़ाक करती रहीं। मैं चुप चाप डिनर कर रहा था और साथ ही ये भी सोचता जा रहा था कि माया के बाद अब मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ सेक्स करना है। माया ने कहा था कि मुझे उन दोनों के साथ ही सेक्स की ट्रेनिंग लेनी होगी। इस बात को सोच सोच कर ही मेरे अंदर एक अलग ही तरह की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

रात में भी कुछ नहीं हुआ, बल्कि मैं डिनर करने के बाद एक अलग कमरे में सो गया था। दूसरे दिन मैं उठा और फ्रेश होने के बाद उन तीनों के साथ नास्ता वग़ैरा किया। माया ने बताया कि नास्ता करने के एक घंटे बाद मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ जाना है। मैं कोमल और तबस्सुम को कनखियों से देख लेता था। कई बार मेरी उनसे नज़रें भी चार हो ग‌ईं थी। वो दोनों बस हल्के से मुस्कुरा देती थीं। मैं अंदर ही अंदर ये सोच रहा था कि उन दोनों के साथ मैं किस तरह से खुद को एडजस्ट कर पाऊंगा?

☆☆☆

वागले ने गहरी सांस लेते हुए डायरी को बंद कर दिया। वो सोचने लगा कि विक्रम सिंह उस समय कितने मज़े में था। माया कोमल और तबस्सुम जैसी खूबसूरत लड़कियों के साथ उसने जी भर कर के सेक्स का मज़ा लिया था। उसके बाद भी उसने अलग अलग लड़कियों या औरतों के साथ इसी तरह मज़े किए होंगे। एकाएक वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि इस सबके बीच आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से विक्रम सिंह को अपने ही माता पिता की हत्या करनी पड़ी होगी? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। ख़ैर उसने केबिन के चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हैंड वाच में टाइम देखा। लंच का टाइम हो गया था। जेल का ही एक सिपाही जिसका नाम श्याम था उसने उसके घर से खाने के लिए टिफिन ला दिया था। वागले ने लंच किया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया।

जेल का चक्कर लगा कर वागले जब वापस अपने केबिन की तरफ आया तो गलियारे में उसे श्याम मिल गया। उसने उसे बताया कि एक आदमी उसके इंतज़ार में काफी देर से बैठा है। वागले उसकी बात सुन कर कुछ पल सोचा और फिर उसे बोला कि वो उस आदमी को उसके केबिन में भेज दे। वागले अपने केबिन में पहुंचा तो दो मिनट के अंदर ही एक आदमी उसके केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा और फिर उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

"शुक्रिया।" वो आदमी ये कहते हुए कुर्सी पर बैठ गया।
"कहिए कौन हैं आप?" उसके बैठते ही वागले ने उससे कहा____"और हमसे क्यों मिलना चाहते थे?"

"जी मैं इंटेलिजेंस विभाग से हूं।"उस आदमी ने अपनी आवाज़ को प्रभावशाली बनाते हुए कहा_____"और एक केस के सिलसिले में आपसे कुछ गुफ्तगू करने आया हूं।"

"ओह! आई सी।" वागले मन ही मन चौंकते हुए कहा____"जी कहिए किस केस के सिलसिले में आप हमसे गुफ्तगू करना चाहते हैं?"
"असल में मैं सीक्रेट रूप से केस पर छानबीन कर रहा हूं।" उस आदमी ने ख़ास भाव से कहा____"इस लिए आपको केस के बारे में डिटेल में कोई जानकारी नहीं दे सकता।"

"तो फिर आप हमसे क्या चाहते हैं?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा।
"आपकी जेल में विक्रम सिंह का नाम कैदी था।" उस आदमी ने कहा____"जिसे उम्र कैद की सज़ा हुई थी किन्तु फिर उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। मैं ये जानना चाहता हूं कि उससे सम्बंधित आपके पास क्या क्या जानकारी है?"

"कमाल की बात है जनाब।" वागले उसके मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर मन ही मन बुरी तरह चौंका था, किन्तु फिर अपने चेहरे के भावों को शख़्ती से दबाते हुए प्रत्यक्ष में कहा____"विक्रम सिंह नाम का कैदी इस जेल से रिहा हो कर क्या गया उसके तो कई सारे चाहने वाले नज़र आने लगे।"

"क्या मतलब।" उस आदमी के चेहरे पर सिलवटें उभरीं____"मैं कुछ समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?"
"क्या आप मुझे अपना आई कार्ड दिखाएंगे?" वागले ने जाने क्या सोच कर ये कहा तो उस आदमी ने कुछ पलों तक वागले की तरफ देखा उसके बाद उसने अपनी कोट की जेब से अपना आई कार्ड निकाल कर वागले के सामने टेबल पर रख दिया।

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" आई कार्ड देखने के बाद वागले ने उसका आई कार्ड वापस उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"असल में आपका आई कार्ड देखने के पीछे दो वजहें थीं। एक तो फॉर्मेलिटी के तौर पर दूसरे अपनी एक शंका को दूर करने के लिए। कुछ दिनों पहले हमसे मिलने एक आदमी आया था। उसने खुद को विक्रम सिंह का दोस्त बताया था जो कि हाल ही में विदेश से आया था। वो यहाँ पर हमसे अपने दोस्त विक्रम सिंह के बारे में जानने आया था और आज जब आप आए तो हम ये सोचने पर मजबूर से हो गए कि बीस सालों बाद जबकि विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो उसके चाहने वाले कहां से आ गए? अगर उसके इतने ही चाहने वाले थे तो वो इन बीस सालों कभी उससे मिलने क्यों नहीं आए? उसके यहाँ से रिहा होने के बाद जब इस तरह से कोई उसके बारे में जानने यहाँ आया तो अब हमें यही लग रहा है कि जैसे विक्रम सिंह के चाहने वाले उसके रिहा होने का ही इंतज़ार कर रहे थे। हालांकि सवाल तो कई सारे हैं किन्तु जवाब किसी का भी नहीं है। ख़ैर आप बताइए आप हमसे विक्रम सिंह के बारे में क्या जानना चाहते हैं?"

"सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि मुझे ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ कि विक्रम सिंह के बारे में जानने के लिए उसका कोई दोस्त यहाँ आया था।" उस आदमी ने लम्बी सांस लेते हुए कहा____"जबकि मेरी जानकारी में उसके जितने भी दोस्त थे वो बहुत पहले ही उससे सम्बन्ध तोड़ चुके थे। कहने का मतलब ये कि विक्रम सिंह का ऐसा कोई गहरा दोस्त बचा ही नहीं था जो उसके लिए जानने को इस क़दर उत्सुक हो। ख़ैर मैं यहाँ आपसे ये जानने आया हूं कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपको क्या बताया है?"

"आप ये कैसे कह सकते हैं जनाब कि विक्रम सिंह ने हमें अपने बारे में कुछ बताया है?" वागले ने उस आदमी की तरफ अपलक देखते हुए कहा।

"हमारे डिपार्टमेंट के कुछ लोग कई बार इस जेल की गतिविधियों पर नज़र रख चुके हैं।" उस आदमी ने कहा____"उन्हीं से हमें पता चला है कि इस जेल में विक्रम सिंह से आपका गहरा सम्बन्ध रहता था। बस इसी वजह से मुझे लगता है कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपसे ज़रूर कुछ न कुछ बताया होगा।"

"फिर तो आपके जो डिपार्टमेंट वाले यहाँ की गतिविधियों पर नज़र रख रहे थे।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"उन्होंने ठीक तरह से नज़र नहीं रखी वरना उन्हें ये भी पता चल जाता कि विक्रम सिंह से भले ही हमारा गहरा ताल्लुक रहता था लेकिन हमारी लाख कोशिशों के बाद भी उसने अपने बारे में हमें कभी कुछ नहीं बताया।"

"बडे आश्चर्य की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"ये विक्रम सिंह तो सच में बड़ा ही शख़्तजान आदमी लगता है। कहने का मतलब ये कि उसने न तो पहले कभी सिक्युरिटी या कानून को अपने बारे में कुछ बताया और ना ही यहाँ आपसे कुछ बताया।"

"वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि विक्रम सिंह के मामले में इंटेलिजेंस विभाग वाले क्यों इन्वॉल्व हुए?" वागले ने कहा____"और अगर हुए भी तो इतने सालों बाद क्यों? विक्रम सिंह के मामले को दो दशक गुज़र चुके हैं किन्तु इन दो दशकों में कभी इंटेलिजेंस का उसके इस मामले में इन्वॉल्वमेंट नहीं हुआ। तो अब आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके लिए इंटेलिजेंस वाले बीस साल बाद विक्रम सिंह के मामले पर इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं?"

"जैसा कि मैं शुरू में ही आपसे बता चुका हूं कि हमारा ये केस सीक्रेट है।" उस आदमी ने कहा____"इस लिए डिटेल में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता किन्तु हां, इतना ज़रूर बता सकता हूं कि इसके पहले कई सालों तक ये मामला सिक्युरिटी के हाथ में ही था किन्तु जब कोई पुख़्ता सबूत या सुराग़ नहीं मिला तो सिक्युरिटी ने फाइल को क्लोज कर दिया और इस मामले को जैसे भुला ही दिया। अभी कुछ समय पहले ये मामला फिर से उभरा और इस तरह से उभरा कि इस मामले को डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को सौंप दिया गया और इसकी छानबीन को सीक्रेट रूप से करने को कहा गया।"

"काफी दिलचस्प बात है।" वागले ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब आप तो कुछ बता नहीं सकते क्योंकि आपके अनुसार ये सीक्रेट मामला है लेकिन सोचने वाली बात है ही कि आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से बीस साल हो चुके मामले में बीस सालो बाद इंटेलिजेंस विभाग इसमें इन्वॉल्व हुआ। हमारा ख़याल है कि ज़रूर इसमें किसी बड़ी हस्ती का भी नाम आया होगा और कुछ इस तरह से आया होगा कि उसने मामले की छानबीन के लिए डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को इन्वॉल्व कर दिया।"

"ख़ैर अब जो है सो है।" उस आदमी ने गहरी सांस ली____"लेकिन एक बात अच्छी नहीं हुई और वो ये कि मेरा यहाँ आना फायदेमंद नहीं हुआ। चलिए कोई बात नहीं। वैसे आपको क्या लगता है, विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर कहां गया होगा?"

"भगवान ही जाने।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैंने अपनी ज़िन्दगी में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा। वो हमसे थोड़ा बहुत बातें तो कर लेता था लेकिन जब हम उससे उसके बारे में कुछ भी पूछते थे तो वो अपने होठों को शख़्ती से भींच लेता था। जैसे ग़लती से भी वो ये न चाहता हो कि उसके होठों से कोई ऐसा शब्द निकल जाए जिसके तहत हमें उसके बारे में ज़रा सा भी कुछ पता चल जाए।"

आगन्तुक का नाम जयराज पाटिल था। वागले ने उसके आई कार्ड में यही नाम पढ़ा था। कुछ देर और इधर उधर की बातें करने के बाद वो वागले से विदा ले कर चला गया था। उसके जाने के बाद वागले काफी देर तक उसके और विक्रम सिंह के बारे में सोचता रहा था। उसके लिए अब ये सोचने वाली बात थी कि ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से देश का इंटेलिजेंस विभाग विक्रम सिंह के बारे में छानबीन करने उसके पास पहुंच गया है? वागले के ज़हन में एकदम से ये ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह का मामला यकीनन एक ऐसा मामला है जो मामूली नहीं हो सकता। इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी के आने के बाद वागले को पहली बार महसूस हुआ कि मामला गंभीर है किन्तु उसकी समस्या ये थी कि वो खुद कुछ कर नहीं सकता था, क्योंकि उसके पास सच में विक्रम सिंह के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी और ना ही वो ये जानता था कि विक्रम सिंह उसकी जेल से रिहा हो कर कहां गया होगा?

अगर उसे पहले से इस मामले की गंभीरता का पता होता तो वो यकीनन विक्रम सिंह के पीछे अपने जेल के किसी सिक्युरिटी वाले को लगा देता, ताकि पता चल सके कि विक्रम सिंह कहां जाने का इरादा रखे हुए था? वागले ने एक सिगरेट जलाई और उसके लम्बे लम्बे कश लेते हुए सोचने लगा। एकाएक ही वो चौंका। उसके ज़हन में अचानक से विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह की डायरी में तो उसके बारे में लगभग सब कुछ ही लिखा हुआ था। यानी डायरी के आधार पर शायद वो पता लगा सकता था कि विक्रम सिंह कहां गया होगा। उसने अपनी डायरी में कहीं तो किसी प्रकार का सुराग़ छोड़ा होगा। वागले ने सोचा कि अगर वो विक्रम सिंह की डायरी को जयराज पाटिल के हवाले कर देता तो मुमकिन है कि वो उस डायरी के आधार पर उसके बारे में जान लेते और उसका पता भी कर लेते, लेकिन तभी वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह ने वो डायरी सिर्फ उसके लिए लिखी थी और उस पर विस्वास कर के ही उसको दी थी। ऐसे में इस डायरी को किसी और के हवाले कर के क्या वो विक्रम सिंह से विश्वासघात नहीं कर बैठेगा? वागले ने गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा कि अच्छा हुआ कि उसने जयराज से विक्रम सिंह की डायरी का ज़िक्र नहीं किया।

वागले को इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी यानि जयराज पाटिल की बात याद आई जब उसने उससे कहा था कि विक्रम सिंह के सभी दोस्तों ने उससे अपने संबंध तोड़ लिए थे। अगर जयराज पाटिल की ये बात सच है तो फिर वो शख़्स कौन था जो उस दिन उससे मिलने आया था और खुद को विक्रम सिंह का दोस्त कह रहा था? उसके अनुसार जब विक्रम सिंह ने अपने माता-पिता की हत्या की थी तब वो भारत देश में ही नहीं था। वागले के ज़हन में सवाल उभरा कि कहीं वो शख़्स कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं था जो झूठ मूठ का विक्रम सिंह को अपना दोस्त कह रहा था और किसी खास मकसद के तहत वो उससे विक्रम सिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता था?

वागले सोचने लगा कि आख़िर वो कौन रहा होगा और किस मकसद से विक्रम सिंह के बारे में उससे जानकारी प्राप्त करना चाहता था? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसको इससे संबंधित कुछ भी खास बात समझ में न आई। थक हार कर वागले ने इन सारी बातों को अपने दिमाग़ से झटका और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर आगे की कहानी पढ़ना शुरू किया।

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C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 12-08-2021, 02:35 PM



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