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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#15
अध्याय - 10
_______________




वागले कमरे से निकल कर सीधा किचेन में गया था। उसने फ्रिज से पानी निकाल कर पीना शुरू ही किया था कि तभी पीछे से उसे सावित्री के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने पीछे मुड़ कर देखने की कोई ज़रूरत नहीं समझी। उधर सावित्री किचेन के दरवाज़े पर आ कर खड़ी हो गई थी।

"तुम यहाँ क्यों आई हो?" पीनी पी लेने के बाद वागले ने जब सावित्री को किचेन के दरवाज़े पर खड़ा देखा तो उससे कहा।
"मैं आपको लेने आई हूं।" सावित्री ने धीमे स्वर में कहा____"मैं चाहती हूं कि हमारा जो काम अधूरा रह गया है उसे हम दोनों मिल कर पूरा करें और हां, इस बार मैं आपको किसी बात पर गुस्सा हो जाने का मौका नहीं दूंगी।"

"और अगर तुमने फिर से कोई नाटक किया तो?" वागले ने जैसे उसको परखते हुए कहा।
"तो आप मेरे साथ ज़बरदस्ती कर के जो चाहे कर लीजिएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"अब चलिए कमरे में।"

"पहले अच्छी तरह सोच लो।" वागले ने सपाट लहजे में कहा_____"बाद में अगर तुमने मुझे किसी बात के लिए रोका या मेरा कहा नहीं माना तो फिर अच्छा नहीं होगा।"
"मैंने सोच लिया है।" सावित्री ने दृढ़ भाव से कहा____"अब न तो मैं आपको किसी बात के लिए रोकूंगी और ना ही आपके कहे को इंकार करुंगी।"

सावित्री की बात सुन कर वागले उसे कुछ पलों तक अपलक घूरता रहा उसके बाद वो उसके बगल से निकल कर कमरे की तरफ बढ़ गया। उसे कमरे की तरफ जाता देख सावित्री भी ख़ुशी ख़ुशी उसके पीछे कमरे की तरफ चल पड़ी।

"अपने सारे कपड़े उतार दो।" कमरे का दरवाज़ा बंद करके जैसे ही सावित्री बेड की तरफ पलटी तो वागले ने जैसे उसे हुकुम सा दिया, जिसे सुन कर सावित्री एकदम से हकबका गई। वो हैरानी भरे भाव से वागले की तरफ देखने लगी थी।

"क्या हुआ?" उसे कुछ न करता देख वागले ने जैसे उसे होश में लाते हुए कहा____"अभी बाहर तो बड़ा कह रही थी कि तुम वही करोगी जो मैं कहूंगा तो अब क्या हुआ?"

वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर असमंजस के भाव उभरे किन्तु फिर उसने वागले की तरफ देखते हुए धीरे धीरे अपनी नाइटी की डोरी खोल कर उसे उतारने लगी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा और ब्लैक कलर की पेंटी पहन रखी थी। जैसे ही उसके गोरे बदन से नाइटी सरक कर फर्श पर गिरी तो सावित्री का जिस्म नुमायां हो उठा और साथ ही सावित्री का चेहरा लाज से झुक गया। वागले ख़ामोशी से उसी की तरफ देख रहा था और मन ही मन खुश भी हो गया था। हालांकि उसे सावित्री को यूं मजबूर करने का कोई इरादा नहीं था किन्तु उसके ज़हन में ये ख़याल जैसे घर कर गया था कि अब वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ बंद कमरे में वैसा ही प्रेम और वैसा ही सेक्स करेगा जैसा आज के वक़्त में होता है। उसकी इस सोच में विक्रम सिंह की डायरी में लिखी उसकी कहानी का बड़ा ही योगदान था।

"अब बेड पर आ जाओ।" वागले ने सावित्री को जैसे फिर हुकुम दिया। सावित्री उसकी बात मानते हुए हल्के क़दमों से बेड की तरफ बढ़ी। जबकि वागले ने कहने के साथ ही अपने कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया था। उसका दिल ये सोच सोच कर धड़कने लगा था कि वो सावित्री के साथ जो जो करना चाहता है क्या वो सब सावित्री उसे करने देगी और क्या सावित्री उसके कहे अनुसार खुद भी करेगी?

कुछ ही देर में आलम ये था कि सावित्री ब्रा पेंटी में बेड पर नज़रें झुकाए बैठी थी और उधर वागले भी अपने कपड़े उतार कर अब सिर्फ एक कच्छे में बैठा था। उसका कच्छा कपड़े का सिलाया हुआ था।

"मैं जानता हूं सावित्री कि तुम्हें इस तरह किसी बात के लिए मजबूर करना अच्छी बात नहीं है।" वागले ने धीमे स्वर में कहा____"किन्तु यकीन मानो मैं जो भी करना चाहता हूं उससे हमें एक अलग ही आनंद आएगा। अब तक हमने अपने जीवन को कितना नीरस सा बनाया हुआ था किन्तु अब मैं चाहता हूं कि हम अपने जीवन में कुछ तो ऐसा करें जिससे हमारे बीच की ये नीरसता दूर हो। मैं जानता हूं कि शुरुआत में ये सब तुम्हारे लिए थोड़ा अजीब और थोड़ा मुश्किल सा होगा किन्तु मुझे यकीन है कि कुछ समय में ही तुम्हें इस सब में बेहद आनंद आने लगेगा।"

"ठीक है।" सावित्री ने उसकी तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा____"आपको जो ठीक लगे कीजिए। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करुँगी कि आप जो करना चाहते हैं उसमें किसी भी तरह की समस्या न हो।"
"बहुत बढ़िया।" वागले ने अंदर ही अंदर खुश होते हुए कहा____"तो चलो शुरू करते हैं।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री को कन्धों से पकड़ कर उसे बेड पर सीधा लेटा दिया। सावित्री इस वक़्त छुई मुई सी दिख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की शर्म दिख रही थी। ख़ैर वागले ने उसे बेड पर लेटाया और फिर झुक कर उसके होठों को चूमने लगा। उसका एक हाथ सावित्री के गोरे और गुदाज बदन पर घूमने लगा था। उधर उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी थी। वागले उसके होठों को अब चूसने लगा था और सावित्री जैसे अपनी साँसें थामे चुप चाप बेड पर पड़ी थी।

वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा उसके बाद वो नीचे आया और सावित्री की ब्रा को एक हाथ से पकड़ कर ऊपर सरका दिया जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियां बेपर्दा हो ग‌ईं। वागले ने लपक कर उसकी एक छाती के निप्पल को मुँह में भर लिया। सावित्री के मुख से सिसकी निकल गई। उसने झट से अपना एक हाथ वागले के सिर पर रख कर अपनी उस छाती पर दबाया। वागले मज़े से उसके निप्पल को चूसते हुए दूसरे हाथ से उसकी दूसरी छाती को मसले जा रहा था।

कुछ ही देर में कमरे में सावित्री की सिसकारियां गूजने लगीं। हालांकि वो बहुत कोशिश कर रही थी कि उसके मुख से कोई आवाज़ न निकले किन्तु न चाहते हुए भी उसके मुख से ये सिसकियां निकल ही जाती थीं। कदाचित उसे भी अब मज़ा आने लगा था। उसकी आँखें बंद थीं और वो अपनी गर्दन को इधर उधर करती जा रही थी।

वागले उसकी चूचियों को चूमते चाटते नीचे की तरफ आया और सावित्री के पेट और उसकी नाभि पर अपनी जीभ को फेरने लगा। सावित्री का पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। उधर वागले ने उसकी गहरी नाभि को अपनी जीभ से कुरेदते हुए अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर सावित्री की चूत पर पेंटी के ऊपर से रखा और उसे हल्के हल्के सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री को झटका लगा और उसने झट से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की। कुछ ही देर में वागले का वो हाथ सावित्री की चूत से निकले कामरस से गीला होता महसूस हुआ और साथ ही उसकी नाक में उस कामरस की खुशबू भी समाई।

वागले ने अपना चेहरा उठा कर सावित्री की तरफ देखा। सावित्री शख़्ती से अपनी आँखें बंद किए बेड पर पड़ी हुई थी। उसने एक हाथ से बेड की चादर को मुट्ठियों में पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ को बढ़ा कर उसने वागले के उस हाथ पर रख लिया था जो हाथ उसकी चूत को सहला रहा था।

"कैसा लग रहा है मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री ने अपनी आँखों को और शख़्ती से बंद कर लिया और गर्दन को दूसरी तरफ लाजवश घुमा लिया। उसके होठ कांप रहे थे। वागले उसे देख कर मुस्कुरा उठा। वो जानता था कि इस मामले में सावित्री से कुछ भी पूछना बेकार था क्योंकि वो शुरू से ही इस मामले में बेहद शर्म करती थी।

"अरे! कुछ तो बोलो।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री ने आँखे बंद किए हुए ही कहा____"आपको तो लाज नहीं आती लेकिन मुझे आती है। इस लिए आपको जो करना है कीजिए, मुझसे कुछ मत पूछिए।"

सावित्री की बात सुन कर वागले की मुस्कान गहरी हो गई। उसने गर्दन घुमा कर सावित्री की चूत की तरफ देखा। ब्लैक कलर की पेंटी में उसकी चूत दिख तो नहीं रही थी किन्तु पेंटी के किनारों से चूत के बाल ज़रूर झलक रहे थे। ये देख कर वागले के ज़हन में फ़ौरन ही विक्रम सिंह की डायरी वाली माया का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था कि माया कोमल और तबस्सुम तीनों की चूतें एकदम चिकनी थीं और उन पर कहीं कोई दाग़ नहीं था बल्कि हल्की गुलाबी रंगत लिए चमक रहीं थी।

वागले ने सावित्री की पेंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे खींचा तो सावित्री ने झट से उसका हाथ पकड़ लिया, किन्तु वागले भला कहां मानने वाला था? उसने ज़ोर दे कर सावित्री की पेंटी को खींचते हुए उसकी टांगों से निकाल कर एक तरफ फेंक दिया। सावित्री को पता था कि इस वक़्त वो एकदम से बेपर्दा हो चुकी है इस लिए वो अपनी चूत को छुपाने के लिए कसमसा रही थी किन्तु वागले को जैसे पहले से पता था कि सावित्री ऐसा करेगी इस लिए उसने सावित्री को अच्छे से पकड़ लिया था। इससे पहले कभी भी सेक्स करते समय सावित्री इस तरह नंगी नहीं हुई थी, बल्कि हमेशा कपड़ों में ही सेक्स हुआ था। वागले का अगर बहुत मन होता था तो वो अपना ब्लाउज उतार देती थी बाकी साड़ी और पेटीकोट को एक साथ ऊपर कर के ही वो वागले के लंड को अपनी चूत में डलवा कर सेक्स करती रही थी।

सावित्री की घने बालों से घिरी चूत को देखने के लिए वागले को जैसे थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा क्योंकि वो साफ़ साफ़ दिख ही नहीं रही थी। ये देख कर वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सावित्री ने अपनी चूत के बालों को साफ़ कर रखा होता तो इस वक़्त वो साफ़ साफ़ देख पाता कि वो बिना बालों के कैसी दिखती है।

कुछ देर सावित्री की चूत और उसके चारो तरफ उगे घनघोर जंगल को देखने के बाद वागले खिसक कर ऊपर आया और आँखें बंद किए पड़ी सावित्री को देखते हुए बोला____"सुनो।"

"ह्म्मम्।" सावित्री ने आँखे बंद किए ही हुंकार भरी।
"तुमने अपने वहां पर इतने बाल क्यों ऊगा रखे हैं?" वागले ने ये कहा ही था कि सावित्री हड़बड़ा कर झट से उठ बैठी।

वागले ने देखा सावित्री उसकी इस बात को सुन कर किसी कुंवारी कन्या की तरह शर्माने लगी थी। उसने अपनी चूत को छुपाने के लिए अपनी दोनों टांगों को मोड़ लिया था। चेहरे पर अजीब से भाव लिए वो कभी वागले को देखती तो कभी उससे नज़रें चुराने लगती। उसकी इस हालत को देख कर वागले के मन में ख़याल उभरा कि उसने नाहक में ही ऐसा कह कर सावित्री को शर्मिंदा कर दिया है।

"क्या हुआ मेरी जान।" फिर उसने सावित्री के सुर्ख पड़े चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा_____"तुम इतना शर्मा क्यों रही हो यार? मैंने एक छोटी सी बात ही तो पूछी थी तुमसे, इसमें इतना शर्माने की भला क्या ज़रूरत है?"

"आप ऐसी बात करेंगे तो मुझे शर्म नहीं आएगी क्या?" सावित्री ने उसकी बात सुन कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"आपको मेरे वहां के बाल से मतलब है या उससे जो आप करना चाहते हैं?"

सावित्री की बात सुन कर वागले के होठों पर मुस्कान उभर आई। वैसे नार्मल तरीके से सोचा जाए तो उसने सच ही कहा था किन्तु उसे नहीं पता था कि आज कल उसका पति किस तरह की मनोदशा में है।

"बात तो तुम्हारी ठीक है भाग्यवान।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अब से तुम हर जगह की साफ़ सफाई कर के रखोगी। मैं चाहता हूं कि मेरी प्यारी और खूबसूरत बीवी हर जगह से साफ़ और खूबसूरत दिखे। वैसे मैं तो तुम्हें इस बात का ज्ञान दे रहा हूं लेकिन सच तो ये है कि मेरे भी लंड के चारो तरफ तुम्हारी तरह ही घने बालों का जंगल ऊगा हुआ है।"

"हे भगवान! कितने बेशर्म हैं आप।" सावित्री ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा____"पता नहीं कहां से आपके मन में ऐसी बातें भर ग‌ईं हैं?"

"ये सब छोड़ो।" वागले ने कहा____"मैं ये कह रहा हूं कि कल हम दोनों ही अपने अपने बाल साफ़ कर लेंगे। उसके बाद ही तसल्ली से काम क्रीड़ा करेंगे। चलो अब सो जाते हैं, क्योंकि रात भी काफी हो गई है।"

वागले की इस बात को सुन कर सावित्री ने गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे। शायद वो यही चाहती थी कि वागले ये सब बंद कर के सोने की बात कह दे और क्योंकि वागले ने उसके मन की बात कह दी थी इस लिए उसने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और बेड के एक तरफ लेट गई। वागले के अंदर की गर्मी कदाचित शांत पड़ ग‌ई थी या शायद सावित्री की चूत के बालों को देख कर उसका मन ये सब करने से उचट गया था। ख़ैर वागले ने भी अपना पजामा कुर्ता पहना और बेड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।

दूसरे दिन वागले अपने निर्धारित वक़्त पर जेल के अपने केबिन में पहुंचा। ब्रीफ़केस को टेबल पर रखने के बाद वो कुछ देर फाइल्स को देखते हुए अपना काम करता रहा उसके बाद वो जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। क़रीब डेढ़ घंटे बाद वो वापस अपने केबिन में आया । कुछ देर जाने वो क्या सोचता रहा उसके बाद उसने अपने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसे खोल कर आगे की कहानी पढ़ने लगा।

☆☆☆

काफी देर बाद जब अंदर का और साँसों का तूफ़ान थमा तो मैंने आँखें खोली और बेड पर एक तरफ लेटी माया की तरफ देखा। उसे बेड पर न पा कर मैं चौंका। तभी मेरी नज़र कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर पड़ी। माया सोफे पर बैठी सिगरेट फूंक रही थी। उसका जिस्म अभी भी बेपर्दा ही था। मैं सोचने लगा कि क्या उसे ज़रा भी शर्म न आती होगी?

"स्वारी।" जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा।
"स्वारी फॉर व्हाट?" उसके माथे पर सलवटें उभरीं।

"मेरी वजह से तुम्हें तक़लीफ हुई।" मैंने मासूमियत से उसकी तरफ देखा।
"भूल जाओ उस बात को।" उसने छोटे से स्टूल पर रखी ऐशट्रे में सिगरेट के बचे हुए टुकड़े को मसल कर बुझाया और मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये बताओ कि अभी और करने का इरादा है या आज के लिए इतना काफी समझते हो तुम?"

"सच कहूं तो मेरा अभी और करने का मन है।" मैंने नज़रें झुका कर और हल्की मुस्कान होठों पर सजाते हुए कहा____"मेरा तो मन करता है कि तुम्हारे साथ ये सब करता ही रहूं।"

"मुझे पता था तुम यही कहोगे।" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"सेक्स चीज़ ही ऐसी है कि इससे किसी का मन नहीं भरता, ख़ास कर तब जब किसी को पहली बार करने को मिला हो। ख़ैर चलो फिर शुरू करते हैं, लेकिन इस बार तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि एक औरत के मन का करना होगा। यानी जैसा मैं कहूंगी वैसा ही तुम्हें करना होगा।"

माया की बात सुन कर मैंने हाँ में सिर हिला दिया। सच तो ये था कि दुबारा सेक्स करने की बात से ही मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा था। ख़ैर माया सोफे से उठ कर मेरे पास आई। उसके बेपर्दा जिस्म पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। उसकी बड़ी बड़ी छातियां उसके चलने से जब हिलीं थी तो उसका असर ये हुआ कि मेरा मुरझाया हुआ लंड फ़ौरन ही सिर उठाने लगा था। माया बेड पर आ कर सीधा लेट गई। मैं उसी को देख रहा था। जैसे ही वो सीधा लेटी तो मेरी नज़र उसके गोरे सफ्फाक बदन के हर हिस्से पर दौड़ने लगी। उसकी चिकनी और फूली हुई चूत को देखते ही मेरा हलक मुझे सूझता हुआ सा प्रतीत होने लगा था।

"ऐसे क्या देख रहा है भड़वे?" माया एकदम से किसी शेरनी की तरफ गुर्राई तो मैं जैसे सहम गया, जबकि उसने उसी गुर्राहट में आगे कहा____"चल कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट।"

माया का बदला हुआ रूप देख कर मेरी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई थी। मैं समझ नहीं पाया कि माया को अचानक से क्या हो गया है? उसके चेहरे पर हाहाकारी भाव थे और आँखों में गुस्सा झलक रहा था।

"सुनाई नहीं दिया क्या तुझे?" माया इस बार ज़ोर से चिल्लाई तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया और फिर बोला____"ये...ये सब क्या है? ये तुम किस लहजे में बात कर रही हो?"
"अबे गांडू कहीं के।" माया झटके से उठी और गुर्राई____"लहजे को अपनी गांड में डाल ले समझे। अभी जल्दी से कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट वरना गांड में इतने डंडे बरसाऊंगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"

मुझे माया से ऐसे बर्ताव की सपने में भी उम्मीद नहीं थी। कहां इसके पहले मैं दुबारा सेक्स करने की बात से मन ही मन खुशियां मना रहा था और कहां अब माया के इस खतरनाक रवैए से मेरी हालत ही पतली हो गई थी। ख़ैर मरता क्या न करता वाली हालत में आ कर मैंने माया के हुकुम का पालन किया। वैसे एक सच्चाई ये भी थी कि माया के इस बर्ताव से मेरा दिल बुरी तरह दुःख गया था।

माया फिर से सीधा लेट गई थी और इस बार उसने अपनी दोनों टांगों को फैला दिया था जिससे उसकी चूत खुल कर मुझे दिखने लगी थी। बल्ब की तेज़ रौशनी में मैं माया की चूत को साफ़ देख सकता था। एकदम चिकनी चूत की दोनों फांकें उसकी टाँगें फैली होने से हल्की खुल ग‌ईं थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। मैंने अपने सूखे गले को थूक निगल कर तर किया और आगे बढ़ते हुए माया की टांगों के बीच आ गया।

मैंने माया की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वो मुझ पर दया कर दे लेकिन उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया, बल्कि उसने फ़ौरन ही मुझे उसकी चूत चाटने का शख़्ती से इशारा किया।

कोई नार्मल सिचुएशन होती तो मैं पूरे जोश में आ कर माया के ऊपर सवार हो गया होता किन्तु वक़्त और हालात जैसे एकदम से बदल गए थे। ख़ैर मैंने खुद को एडजस्ट किया और फिर माया की चूत पर झुकता चला गया। चूत के क़रीब जैसे ही मेरा मुँह पहुंचा तो मेरी नाक में इसके चूत के कामरस की खुशबू समाने लगी। जाने क्यों इस बार मुझे वो खुशबू बड़ी बेकार सी लगी। ऐसा शायद इस लिए कि माया के बर्ताव से मेरा मन अब इस सबसे उचट गया था, किन्तु मजबूरी थी इस लिए मैंने झुक कर उसकी चूत पर हल्के से पहले अपना मुँह रखा और फिर जीभ निकाल कर उसे चाटा। एक अजीब सा स्वाद मेरी जीभ में पड़ा तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां झनझना गया।

"अब साले डर डर के क्या छू रहा है।" माया की तीखी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मैंने कहा न कि कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट। अब जल्दी से चाट वरना गांड में हंटर बजाऊंगी।"

"मैं ये नहीं कर सकता।" मैंने हिम्मत करके ये कहा और एक तरफ हट गया। इस वक़्त मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ करके बज रहीं थी। किन्तु मैंने भी अब ठान लिया था कि मैं माया के इस बर्ताव पर उसके किसी भी हुकुम को नहीं मानूंगा।

"क्या हुआ?" माया झट से उठ ग‌ई____"इतने में ही डर गए? अरे! वहशीपना वाला सेक्स करना है तो ये सब भी सुनना पड़ेगा। मान लो अगर किसी औरत को इसी तरह से सेक्स करना पसंद हुआ तब तुम कैसे उसे खुश कर पाओगे?"

"इसका मतलब।" मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरा____"तुम सच मुच का मुझ पर गुस्सा नहीं हो??"
"अरे! यार, तुम पर भला मैं क्यों गुस्सा होऊंगी?" माया ने कहा____"मेरा तो काम ही यही है कि मैं तुम्हें हर तरह से सेक्स करने की ट्रेनिंग दूं।"

माया की बात सुन कर जैसे मेरी जान में जान आई और मेरे होंठों पर मुस्कान उभरी। उधर माया ने मुझे समझाया कि अब मैं वैसा ही करूं जैसा वो कहे। मैं ये समझूं कि वो एक ऐसी औरत है जिसे सेक्स करते समय अपने मेल पार्टनर को गाली देना पसंद है और वो भी चाहती है कि उसका पार्टनर उसे गाली दे और साथ ही ये भी कि सेक्स करते समय उसका पार्टनर उसे बुरी तरह से चोदे। मैं माया की बात समझ गया था इस लिए अब मैं उसके अनुसार सब कुछ करने के लिए खुद को तैयार करने लगा था। माया ने इशारा किया और वो फिर से लेट गई।

"चल कुत्ते चाट मेरी चूत को।" माया ने लेटने के साथ ही ये कहा तो मैं पहले तो मुस्कुराया और फिर मैं भी उसकी तरह बर्ताव करते हुए आगे बढ़ा।
"अगर मैं तेरा कुत्ता हूं तो तू भी मेरी कुतिया है साली।" मैंने हिम्मत करके कहा____"अब देख मैं कैसे तेरी चूत को चाटता हूं और फिर तेरी चूत को अपने मोटे लंड से चोद चोद कर फाड़ता हूं।"

"तो फाड़ न गांडू साले।" माया ने कहने के साथ ही अपनी टांग चला दी जो सीधा मेरी कमर में लगी। मुझे दर्द तो हुआ किन्तु मैंने सहन कर लिया और फिर तो जैसा मेरे अंदर का मर्द भी जाग गया।

"साली कुतिया।" मैंने कहते हुए अपने दोनों हाथों से उसकी टांगों को पकड़ कर फैलाया और झुक कर उसकी चिकनी चूत में अपना मुँह रख दिया।

मेरे अंदर एक अजीब सा जोश भर गया था। अब मुझे उसके चूत की खुशबू से कोई परेशानी नहीं हो रही थी, बल्कि मैंने उसकी चूत की फांकों को मुँह में भर कर ज़ोर से खींचा तो माया की सिसकी निकल गई। उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ा और अपनी चूत पर ज़ोर से दबाया।

मैं सच में किसी कुत्ते की तरह माया की चूत को लपर लपर चाटने लगा था। मैं कभी जीभ से उसकी चूत को चाटता तो कभी उसकी चूत को मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर खींचने लगता। कमरे में माया की आहें और सिसकारियां गूजने लगीं थी और उसका जिस्म छटपटाने लगा था। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि मैं पागलों की तरह उसकी चूत को चाटते हुए उसकी दोनों चूचियों को भी बुरी तरह मसलने लगा। माया की सिसकियों में दर्द भी शामिल हो गया। वो बार बार मुझे कोई न कोई गाली देती तो जवाब में मैं भी उसकी चूत से अपना चेहरा उठा कर उसे गाली देता और उसके निप्पल को ज़ोर से खींच लेता।

माया की चूत कामरस बहा रही थी और मेरा चेहरा उसके कामरस से भींग गया था लेकिन मैं इसके बावजूद लगा ही रहा। माया बुरी तरह मेरे बालों को खींच रही थी जिससे मुझे दर्द भी हो रहा था। बदले में मैं भी उसकी चूत को दांतों से काट लेता था जिससे माया उछल पड़ती थी और गन्दी गन्दी गालियां देने लगती थी।

"आह्ह कुत्ते कमीने मेरी चूचियों को भी ऐसे ही काट साले।" माया सीसियाते हुए बोली और मेरे सिर के बालों को पकड़ कर अपनी छातियों की तरफ खींचने लगी।

"साली कुतिया।" मैं उसकी छाती की तरफ बढ़ता हुआ बोला____"तेरी इन खरबूजे जैसी चूचियों को तो मैं मिर्च मसाला लगा के खाऊंगा।"
"हां तो खा न बहनचोद।" माया मेरे सिर को अपनी छातियों पर दबाते हुए बोली तो मैंने उसके एक निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोर से काटा तो वो चिल्ला ही पड़ी।

"आह्ह्ह्ह और ज़ोर से काट गांडू।" माया ने दर्द से चीखते हुए कहा तो मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ कि वो दर्द के बावजूद अभी और ज़ोर से काटने को कह रही थी।
"ऐसा क्या।" मैंने सिर उठा कर कहा____"ठीक है फिर, अब तो मैं ऐसा काटूंगा साली कि तू अगर रहम की भीख भी मांगेगी तो नहीं छोड़ूंगा।"

मैंने कहने के साथ ही माया की चूची के मांस को मुँह में भरा और इस बार थोड़ा ज़ोर से काटा तो माया बुरी तरह बिलबिला उठी और उसने अपनी चूची से मुझे हटाने के लिए मेरे सिर को ज़ोर से हटाना चाहा लेकिन मैं किसी जोंक की तरह उसकी चूची पर चिपक गया था। माया दर्द से सिसयाते हुए पूरा ज़ोर लगा रही थी मगर मैं उसकी चूची के हर हिस्से पर बारी बारी से काट ले रहा था। उसके बाद मैं लपक कर उसकी दूसरी चूची को भी काटने लगा। माया का बुरा हाल हो गया था। वो दर्द और गुस्से में मुझे और भी ज़्यादा गालियां देने लगी थी।

काफी देर तक मैं माया की चूचियों को ऐसे ही काटता रहा और वो ऐसे ही दर्द से बिलबिलाती रही। फिर जब मुझे लगा कि कहीं वो रोने ही न लगे तो मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा। माया का बुरा हाल था। उसकी आँखों के किनारों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। मुझे ये सोच कर उस पर तरस आ गया कि यही वो लड़की है जिसने मुझे पहली बार जीवन का असली मज़ा दिया है। मैं झट से आगे को खिसका और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा माया ने फ़ौरन ही मेरे सिर को पकड़ा और खुद भी मेरे होठों को चूसने लगी। अचानक ही मेरा हाथ सरक कर उसकी एक चूची को मुठियाया तो वो मचल उठी। शायद काटने से उसकी चूचियों पर गहरे घाव हो गए थे जिससे मेरा हाथ लगते ही उसे दर्द हुआ था।

कुछ देर माया के होठों को चूसने के बाद मैंने अपना चेहरा उससे दूर किया और उसके बालों को मुट्ठी में पकड़ कर उसे उठाया। इससे पहले की वो कुछ समझ पाती मैंने फ़ौरन ही खड़े हो कर अपने भन्नाए हुए लंड को उसके मुँह के पास ला कर उसके मुँह में ठूंसने की कोशिश करने लगा।

"चल कुतिया अब तू मेरा लंड चूस।" मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसके मुँह में मारते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया। जैसे ही उसने मुँह खोला मैंने उसके मुँह में अपना लंड घप्प से डाल दिया। मुझ में इतना जोश चढ़ गया था कि मैंने उसके सिर को पकड़ कर ज़ोर से झटका दिया, जिससे मेरा लंड सनसनाते हुए उसके गले तक पहुंच गया। वो बुरी तरह छटपटाई लेकिन मैंने उसे छोड़ा नहीं। हालांकि जब मैंने उसके मुँह में एक झटके में लंड घुसाया था तो उसके दाँत मेरे लंड पर भी गड़े थे और मेरे मुँह से दर्द मिश्रित आह निकल गई थी।

मैं माया के सिर को दोनों हाथों से पकड़े उसके मुख को चोद रहा था। उसके मुख से उसकी लार बहने लगी थी और उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। मेरे धक्के देने से नीचे उसकी चूचियां बुरी तरह हिल रहीं थी। इधर मैं मज़े के सातवें आसमान में था।

"चूस साली और चूस।" मैं इसके सिर को पकड़े और धक्के लगाते हुए बोल रहा था____"अच्छे से चूस कुतिया वरना गले के नीचे उतार दूंगा लंड को।"

मैंने ज़ोर से धक्का लगाया तो माया के जिस्म को झटके लगने लगे। उसने पूरी ताकत से मुझे पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड उसके मुख से निकल गया। लंड के निकलते ही वो बुरी तरह खांसने लगी थी। उसकी साँसें उखड़ी हु‌ईं थी।

"साले हरामी।" वो खांसते हुए कह रही थी____"मार ही डालने का इरादा था क्या तेरा?"
"लंड चूसने कोई नहीं मरता कुतिया।" मैंने उसे धक्का दिया तो वो बेड पर सीधा हो कर गिरी। उसके गिरते ही मैंने उसकी दोनों टाँगें फैलाई और उसकी दहकती चूत में अपना लंड एक ही झटके में डाल दिया।

"आह्हहह कुत्ते फाड़ दी मेरी चूत।" माया दर्द से चीखी।
"तेरी तो पहले से ही फटी हुई है साली।" मैंने फिर से ज़ोर का धक्का दिया।
"अब ज़ोर ज़ोर से चोद मुझे।" माया ने चिल्ला कर कहा_____"साले कुत्ते दम नहीं है क्या तुझमें?"

माया की बात सुन कर मैं पूरे जोश में तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा। मैं पूरी तरह भूल चुका था कि आज से पहले मैं क्या था। इस वक़्त मैं किसी प्रोफेशनल की तरह माया को चोदे जा रहा था। मेरा मोटा तगड़ा लंड माया की चूत में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। उसकी चूत इतनी गीली थी कि फच्च फच्च की आवाज़ आ रही थी। ज़िन्दगी में पहली बार मैं स्वर्ग में था। मेरी नज़र माया की हिलती चूचियों पर पड़ी तो मैंने हाथ आगे बढ़ा कर ज़ोर से उसकी एक चूची पर थप्पड़ मारा जिससे उसके मुख से दर्द भरी कराह निकल गई और साथ ही उसने मुझे गाली दी।

क़रीब दस मिनट बाद ही माया झटके लेते हुए झड़ गई। झड़ने के बाद वो बेजान लाश की तरह शांत पड़ ग‌ई थी लेकिन मैं रुका नहीं बल्कि धक्के लगाता ही रहा। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। कुछ देर में जब माया को फिर से जोश चढ़ा तो मैंने उसकी चूत से लंड निकाल कर उसे घोड़ी बना दिया और उसके गोरे गोरे चूतड़ में ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ मारते हुए अपने लंड को उसकी चूत में डाल दिया।

क़रीब दस मिनट बाद माया फिर से चिल्लाने लगी। वो झड़ने की कगार पर आ गई थी और यही हाल मेरा भी था। मैं ट्रेन की स्पीड से धक्के लगाने लगा और फिर जैसे मज़े की चरम सीमा के अंत होने का वक़्त आ गया। माया झटके खाते हुए झड़ी तो उसका गर्म गर्म पानी मेरे लंड महसूस हुआ और फिर मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरा जिस्म अकड़ गया और मैं माया की चूत में ही झड़ता चला गया। पता नहीं कब तक मुझे झटके लगते रहे और फिर मैं उसके ऊपर ही जैसे बेहोश सा हो गया। सेक्स का तूफ़ान थम चुका था। कमरे में शान्ति छा गई थी। सिर्फ हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज़ें गूँज रहीं थी।

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C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 10-08-2021, 06:28 AM



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