08-08-2021, 03:17 PM
मीठी मीठी ननदिया
प्यार से उसके नये आते जुबना दबा के मीस में बोली,
" अरी बिन्नो, बस दो चार दिन और , मेरे और कम्मो के भैया सब बनारस वाले, एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे तो पता चलेगा बना रस का रस. "
बिना घबड़ाये वो बोली, " अरे आज अपने भैया को देख लिया तो दो चार दिन में भौजी के भैया को भी देख लूंगी, लेकिन एक साथ तीन तीन,... "
" और क्या मेरी मीठी मीठी ननदिया के तीन मीठे मीठे छेद हैं , अगवाड़ा, पिछवाड़ा और ये मुंह,... सिर्फ अगवाड़े का मजा लेने से पिछवाड़े के साथ नाइंसाफी नहीं होगी, फिर तो... और तेरी आगे वाली नथ तेरे भैया ने उतारी तो पीछे वाली भौजी के भैया, हिसाब बराबर। "
ननद को प्यार से मैंने समझाते बोला और उसके रसीले होंठ चूम लिए ,
और उधर उसके भैया ने पोज बदला
कम्मो भौजी अब तक अपने देवर के ऊपर चढ़कर उन्हें चोद रही थीं पर अब कम्मो भौजी अपनी पीठ के बल , उनके देवर ऊपर, लेकिन चुदाई की तेजी में कोई कमी नहीं आयी थी ,
दोनों ओर से जैसे अखाड़े में दो बराबर के पहलवान कुश्ती लड़ें,
दूर कहीं एक का घंटा बजा,
फाग गाने वालों की आवाजे भी अब बंद पड़ गए थे , फागुनी बयार खिड़की से आ रही थी और उसमें थोड़ी चांदनी थोड़े टेसू के फूलों की महक घुली हुयी थी,
वो कभी झुक के कम्मो की बड़ी बड़ी चूँची कस के काट लेते तो कभी पूरे घुसे हुए बित्ते भर के लंड के बेस से अपनी भौजी की क्लिट रगड़ देते, कम्मो भी अपने नाख़ून उनके कंधे में गड़ा देती , अपनी गुलाबो में उनके मूसल को भींच लेती,
जब कम्मो ने कांपना शुरू किया तो उन्होंने भी जैसे कोई मन्द्र सप्तक से सीधे द्रुत पर आ जाय
देवर भौजी एक दूसरे की लय ताल पर,
बाहर टेसू झड़ रहे थे, चांदनी आम के पेड़ों से छन छन कर झड़ रही थी
अंदर देवर भाभी , झड़ रह थे, देर तक कस के एक दूसरे को पकडे हुए , भींचे हुए खूंटा एकदम जड़ तक धंसा जैसे दोनों के शरीर जुड़े हों,
बहुत देर बाद जो अलग हुए तो वो एकदम आँखे बंद कर के
और कम्मो भौजी की हालत तो और खराब थी , दोनों जाँघे फैली, एकदम खुली, एक पायल टूटकर अलग निकल गयी, हलके जाड़े में भी पसीने से लथपथ, आँखे बंद,
जैसे दुनिया जहान की उन्हें खबर ही न हो,
उनकी बिल में देवर की मलाई, उतरा रही थी , छलक रही थी जैसे बारिश में नदी का पानी किनारों में नहीं समाता, उसी तरह बाहर निकल के , उनकी मांसल खुली जाँघों पर भी अच्छी तरह फैला,
कुछ देर तक मैं और गुड्डी भी देखते रहे पर मैंने गुड्डी को उकसाया,
" अरे यार तेरे भाई की मलाई है , चाट ले भौजी की बुर से,... " और उसे साथ ले के बिस्तर पर , गुड्डी ने भी बिना हिचके,
अब वो मलाई चाटने में समझदार हो गयी थी, पहले जाँघों पर बह रही मलाई उसने जीभ से सपड़ लपड़ चाटी, फिर जीभ की टिप से भौजी के बुर की फांकों पर लगी एक के बूँद , और जैसे कोई आम की दोनों फांको को फैला के बीच में मुंह लगा के जीभ डाल के , एकदम उसी तरह से भौजी की बिलिया को फैला के दोनों होंठो से वो कस के चूस रही थी और जीभ अंदर बुर में घुसी रबड़ी मलाई चाट रही थी।
बीच में रुक कर कर के उसने ऊँगली अच्छी तरह भौजी की बिलिया में डाल के जैसे कोई टेढ़ी ऊँगली से घी निकाले, चम्मच की तरह उस तरह निकाल के चाट लिया,
अब कम्मो भौजी ने अपनी आँखे खोल ली थीं और टुकुर टुकुर अपनी ननदिया की बदमाशी देख रही थीं। लेकिन ननदिया उनकी नंबरी बदमाश, आखिर उन्ही की चेली,
अपनी भौजी की बिल से भैया की गाढ़ी मलाई निकाल के थोड़ी सी उनकी बड़ी बड़ी चूँचियों पर भी लपेटी, कुछ उनके गालों और होंठों पर भी, और वहीं से चाट लिया,
उन्होंने आँखे खोल दी थीं और अपनी जवान होती बहन और उसकी भौजाई का खेल तमाशा देख रहे थे, मुस्करा रहे थे.
शेर भी थोड़ा थोड़ा जगने लगा था, ... कम्मो ने इन्हे छेड़ा,
प्यार से उसके नये आते जुबना दबा के मीस में बोली,
" अरी बिन्नो, बस दो चार दिन और , मेरे और कम्मो के भैया सब बनारस वाले, एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे तो पता चलेगा बना रस का रस. "
बिना घबड़ाये वो बोली, " अरे आज अपने भैया को देख लिया तो दो चार दिन में भौजी के भैया को भी देख लूंगी, लेकिन एक साथ तीन तीन,... "
" और क्या मेरी मीठी मीठी ननदिया के तीन मीठे मीठे छेद हैं , अगवाड़ा, पिछवाड़ा और ये मुंह,... सिर्फ अगवाड़े का मजा लेने से पिछवाड़े के साथ नाइंसाफी नहीं होगी, फिर तो... और तेरी आगे वाली नथ तेरे भैया ने उतारी तो पीछे वाली भौजी के भैया, हिसाब बराबर। "
ननद को प्यार से मैंने समझाते बोला और उसके रसीले होंठ चूम लिए ,
और उधर उसके भैया ने पोज बदला
कम्मो भौजी अब तक अपने देवर के ऊपर चढ़कर उन्हें चोद रही थीं पर अब कम्मो भौजी अपनी पीठ के बल , उनके देवर ऊपर, लेकिन चुदाई की तेजी में कोई कमी नहीं आयी थी ,
दोनों ओर से जैसे अखाड़े में दो बराबर के पहलवान कुश्ती लड़ें,
दूर कहीं एक का घंटा बजा,
फाग गाने वालों की आवाजे भी अब बंद पड़ गए थे , फागुनी बयार खिड़की से आ रही थी और उसमें थोड़ी चांदनी थोड़े टेसू के फूलों की महक घुली हुयी थी,
वो कभी झुक के कम्मो की बड़ी बड़ी चूँची कस के काट लेते तो कभी पूरे घुसे हुए बित्ते भर के लंड के बेस से अपनी भौजी की क्लिट रगड़ देते, कम्मो भी अपने नाख़ून उनके कंधे में गड़ा देती , अपनी गुलाबो में उनके मूसल को भींच लेती,
जब कम्मो ने कांपना शुरू किया तो उन्होंने भी जैसे कोई मन्द्र सप्तक से सीधे द्रुत पर आ जाय
देवर भौजी एक दूसरे की लय ताल पर,
बाहर टेसू झड़ रहे थे, चांदनी आम के पेड़ों से छन छन कर झड़ रही थी
अंदर देवर भाभी , झड़ रह थे, देर तक कस के एक दूसरे को पकडे हुए , भींचे हुए खूंटा एकदम जड़ तक धंसा जैसे दोनों के शरीर जुड़े हों,
बहुत देर बाद जो अलग हुए तो वो एकदम आँखे बंद कर के
और कम्मो भौजी की हालत तो और खराब थी , दोनों जाँघे फैली, एकदम खुली, एक पायल टूटकर अलग निकल गयी, हलके जाड़े में भी पसीने से लथपथ, आँखे बंद,
जैसे दुनिया जहान की उन्हें खबर ही न हो,
उनकी बिल में देवर की मलाई, उतरा रही थी , छलक रही थी जैसे बारिश में नदी का पानी किनारों में नहीं समाता, उसी तरह बाहर निकल के , उनकी मांसल खुली जाँघों पर भी अच्छी तरह फैला,
कुछ देर तक मैं और गुड्डी भी देखते रहे पर मैंने गुड्डी को उकसाया,
" अरे यार तेरे भाई की मलाई है , चाट ले भौजी की बुर से,... " और उसे साथ ले के बिस्तर पर , गुड्डी ने भी बिना हिचके,
अब वो मलाई चाटने में समझदार हो गयी थी, पहले जाँघों पर बह रही मलाई उसने जीभ से सपड़ लपड़ चाटी, फिर जीभ की टिप से भौजी के बुर की फांकों पर लगी एक के बूँद , और जैसे कोई आम की दोनों फांको को फैला के बीच में मुंह लगा के जीभ डाल के , एकदम उसी तरह से भौजी की बिलिया को फैला के दोनों होंठो से वो कस के चूस रही थी और जीभ अंदर बुर में घुसी रबड़ी मलाई चाट रही थी।
बीच में रुक कर कर के उसने ऊँगली अच्छी तरह भौजी की बिलिया में डाल के जैसे कोई टेढ़ी ऊँगली से घी निकाले, चम्मच की तरह उस तरह निकाल के चाट लिया,
अब कम्मो भौजी ने अपनी आँखे खोल ली थीं और टुकुर टुकुर अपनी ननदिया की बदमाशी देख रही थीं। लेकिन ननदिया उनकी नंबरी बदमाश, आखिर उन्ही की चेली,
अपनी भौजी की बिल से भैया की गाढ़ी मलाई निकाल के थोड़ी सी उनकी बड़ी बड़ी चूँचियों पर भी लपेटी, कुछ उनके गालों और होंठों पर भी, और वहीं से चाट लिया,
उन्होंने आँखे खोल दी थीं और अपनी जवान होती बहन और उसकी भौजाई का खेल तमाशा देख रहे थे, मुस्करा रहे थे.
शेर भी थोड़ा थोड़ा जगने लगा था, ... कम्मो ने इन्हे छेड़ा,