08-08-2021, 03:15 PM
महुए की बूंदे
कम्मो ने एक नया पाउच खोला और अब जोबन पर से टपकते हुयी महुए की बूंदे इनके मुंह में और ये गट गट पी रहे थी,
गुड्डी की निगाह एकदम देवर भौजी के इस खेल तमाशे से चिपकी थी जितना उसके भैया गरमा रहे थे उतनी ही उनकी बहना और मेरी उँगलियाँ अब ननद की मांसल जांघो पर फिसल रही थी, उसकी जाँघे धीरे धीरे खुल रही थीं ,
पर उसके भैया से अब नहीं रहा गया कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली , एक हल्का सा झटका और भौजी पलंग पर देवर ऊपर भी अंदर भी,
शुरुआत ही इन्होने चौथे गेयर से की, कम्मो की दोनों चूँचियों को पकड़ के क्या जबरदस्त धक्के मार रहे थे, कम्मो सिसक रही थी
पर ये मुकाबला बराबर का था, कुछ देर में उतनी ही जोर से नीचे से अपने बड़े बड़े चूतड़ उठा के कम्मो भौजी भी धक्के लगा रही थीं, अपने हाथों से अपने देवर की पीठ उन्होंने कस के पकड़ ली थी, नाख़ून शोल्डर ब्लेड में धंस गए थे
इन्होने भी शुरू से ही अपनी भौजी पर तिहरा हमला बोल दिया था एक चूँची इनके मुंह में कस कस के चूसी जा रही थी तो दूसरा इनके बाएं हाथ से मसली जा रही थी , इनका तीसरा हाथ भौजी की जाँघों के बीच क्लिट पर, कोई और होती तो चार पांच मिनट में ये झाड़ देते पर कम्मो भौजी,
लेकिन थोड़ी देर में मुझे कम्मो की चालाकी समझ में आ गयी।
मैं ध्यान से देख रही थी, जिस तरह चूतड़ उठा उठा के हर धक्के का जवाब दे रही थीं , अपनी बड़ी अब्दी छातियां अपने देवर के सीने में रगड़ रही थीं, देवर की भी हालत खराब थी,
लेकिन भौजी की हालत ज्यादा खराब थी, पर जैसे ही वो झड़ने के कगार पर पहुँचती, देवर को हल्का सा धक्का देकर, फिर कभी बांसुरी वादन, अपने दोनों होंठों के बीच इनकी बित्ते भर की बांसुरी लेकर, ...या फिर से एक बार चूँची चोदन, और साथ जिस तरह इन्हे मजे से उकसाते चिढ़ाते देखतीं, बस इनकी हालत खराब हो जाती ,
पर कम्मो भौजी के पार उतरने का टाइम थोड़ा और बढ़ जाता,
पर उनके देवर भी रोज सास सलहज की बातें सुन सुन के इतने सीधे नहीं रह गए थे, उन्हें अपनी भौजी की चाल का पता चल गया, बस ताकत तो थी ही बहुत इनकी देह में, वहीं पलंग पर पटक कर, निहुरा के,
पिछवाड़े से , अपनी भौजी को कातिक की कुतिया बना के चढ़ गए, हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे साथ में दोनों चूँची बड़ी बड़ी कस कस के रगड़ते , झुक के उनके गाल काट लेते , कभी हाथ बढ़ा के उनकी क्लिट भी निप्स के साथ मसल देते,
गुड्डी बहुत ध्यान से देख रही थी और अपने भैया की चाल से खुश भी हो रही थी और कम्मो भौजी को छेड़ भी रही थी,
" क्यों भौजी कैसे लग रहे हैं देवर के धक्के"
और जवाब में क्या मस्त गन्दी गालियां कम्मो कभी मेरी ननद को लेकर तो कभी इनको लेकर , बहन इनकी , मेरी कोई ससुराल वाली नहीं बची यहाँ तक की मायके वालों का भी नंबर लगवा दिए मेरे , मेरे कोई सगा भाई तो था नहीं लेकिन चचेरे, मौसेरे, फुफेरे, ममेरे सब भाइयों का नाम तो उन्हें मालूम ही था, बस सब का नाम ले ले कर इन्हे गरियाँ रही थीं,
तेरे सब सालों से, रमेश बरजेस उमेस से तो तोरी बहिना क गाँड़ मरवाई, तोहार कुल सार तोहरी बहिनिया क भतार,... बहिन चोद,
और गालियों का जो असर इन पर होना था, हुआ और ये दुगुने जोश से अपनी निहुरी भौजाई की रगड़ाई करने में लग गए
और उस रगड़ाई का जो असर होना था वो भी हुआ, इनकी भौजी कांपने लगी, भौजी की हालत खराब थी, जिंदगी में उनको बहुत कम ऐसे मर्द मले थे जो औरत को झाड़ के झड़ते और ये तो तो जब तक तीन बार न झाड़ लें, ... कम्मो ने छुड़ाने की कोशिश की पर इन्होने पकड़ और जबरदस्त कर दी, धक्के और तेज कर दिए, ...
कम्मो भाभी की गालियों की रफ्तार बढ़ गयी, मेरी सास ननद, सब को इनसे जोड़ के और इन्हे भी, गँड़ुआ, भंड़ुआ,
वो झड़ रही थीं, काँप रही थी पर इन्होने ज़रा भी नहीं ढील दी, ... बल्कि अपनी टांगों के बीच कम्मो भौजी की तगड़ी टांगों को कस के फंसा के बाँध के, क्या मस्त चोद रहे थे,
इनकी चुदाई देख के मैं तो खुश हो ही रही थी, आखिर 'सांड़' तो मेरा ही था, लेकिन मुझसे ज्यादा मेरी ननदिया, उनकी बहिनिया,... उसके चेहरे पे ख़ुशी देखते बनती थी, ...
वो और उन्हें उकसा रही थी, हाँ भैया हाँ और जोर से , आज भौजी को मिला है कोई उनके जोर का, इसी लिए सब बनारस वालियां आती हैं हमारे शहर में टाँगे फैलाने,
प्यार से उसके नये आते जुबना दबा के मीस में बोली,
" अरी बिन्नो, बस दो चार दिन और , मेरे और कम्मो के भैया सब बनारस वाले, एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे तो पता चलेगा बना रस का रस. "
बिना घबड़ाये वो बोली, " अरे आज अपने भैया को देख लिया तो दो चार दिन में भौजी के भैया को भी देख लूंगी, लेकिन ....भैया एक साथ तीन तीन,... "
कोमल
कम्मो ने एक नया पाउच खोला और अब जोबन पर से टपकते हुयी महुए की बूंदे इनके मुंह में और ये गट गट पी रहे थी,
गुड्डी की निगाह एकदम देवर भौजी के इस खेल तमाशे से चिपकी थी जितना उसके भैया गरमा रहे थे उतनी ही उनकी बहना और मेरी उँगलियाँ अब ननद की मांसल जांघो पर फिसल रही थी, उसकी जाँघे धीरे धीरे खुल रही थीं ,
पर उसके भैया से अब नहीं रहा गया कमान उन्होंने अपने हाथ में ले ली , एक हल्का सा झटका और भौजी पलंग पर देवर ऊपर भी अंदर भी,
शुरुआत ही इन्होने चौथे गेयर से की, कम्मो की दोनों चूँचियों को पकड़ के क्या जबरदस्त धक्के मार रहे थे, कम्मो सिसक रही थी
पर ये मुकाबला बराबर का था, कुछ देर में उतनी ही जोर से नीचे से अपने बड़े बड़े चूतड़ उठा के कम्मो भौजी भी धक्के लगा रही थीं, अपने हाथों से अपने देवर की पीठ उन्होंने कस के पकड़ ली थी, नाख़ून शोल्डर ब्लेड में धंस गए थे
इन्होने भी शुरू से ही अपनी भौजी पर तिहरा हमला बोल दिया था एक चूँची इनके मुंह में कस कस के चूसी जा रही थी तो दूसरा इनके बाएं हाथ से मसली जा रही थी , इनका तीसरा हाथ भौजी की जाँघों के बीच क्लिट पर, कोई और होती तो चार पांच मिनट में ये झाड़ देते पर कम्मो भौजी,
लेकिन थोड़ी देर में मुझे कम्मो की चालाकी समझ में आ गयी।
मैं ध्यान से देख रही थी, जिस तरह चूतड़ उठा उठा के हर धक्के का जवाब दे रही थीं , अपनी बड़ी अब्दी छातियां अपने देवर के सीने में रगड़ रही थीं, देवर की भी हालत खराब थी,
लेकिन भौजी की हालत ज्यादा खराब थी, पर जैसे ही वो झड़ने के कगार पर पहुँचती, देवर को हल्का सा धक्का देकर, फिर कभी बांसुरी वादन, अपने दोनों होंठों के बीच इनकी बित्ते भर की बांसुरी लेकर, ...या फिर से एक बार चूँची चोदन, और साथ जिस तरह इन्हे मजे से उकसाते चिढ़ाते देखतीं, बस इनकी हालत खराब हो जाती ,
पर कम्मो भौजी के पार उतरने का टाइम थोड़ा और बढ़ जाता,
पर उनके देवर भी रोज सास सलहज की बातें सुन सुन के इतने सीधे नहीं रह गए थे, उन्हें अपनी भौजी की चाल का पता चल गया, बस ताकत तो थी ही बहुत इनकी देह में, वहीं पलंग पर पटक कर, निहुरा के,
पिछवाड़े से , अपनी भौजी को कातिक की कुतिया बना के चढ़ गए, हर धक्का सीधे बच्चेदानी पे साथ में दोनों चूँची बड़ी बड़ी कस कस के रगड़ते , झुक के उनके गाल काट लेते , कभी हाथ बढ़ा के उनकी क्लिट भी निप्स के साथ मसल देते,
गुड्डी बहुत ध्यान से देख रही थी और अपने भैया की चाल से खुश भी हो रही थी और कम्मो भौजी को छेड़ भी रही थी,
" क्यों भौजी कैसे लग रहे हैं देवर के धक्के"
और जवाब में क्या मस्त गन्दी गालियां कम्मो कभी मेरी ननद को लेकर तो कभी इनको लेकर , बहन इनकी , मेरी कोई ससुराल वाली नहीं बची यहाँ तक की मायके वालों का भी नंबर लगवा दिए मेरे , मेरे कोई सगा भाई तो था नहीं लेकिन चचेरे, मौसेरे, फुफेरे, ममेरे सब भाइयों का नाम तो उन्हें मालूम ही था, बस सब का नाम ले ले कर इन्हे गरियाँ रही थीं,
तेरे सब सालों से, रमेश बरजेस उमेस से तो तोरी बहिना क गाँड़ मरवाई, तोहार कुल सार तोहरी बहिनिया क भतार,... बहिन चोद,
और गालियों का जो असर इन पर होना था, हुआ और ये दुगुने जोश से अपनी निहुरी भौजाई की रगड़ाई करने में लग गए
और उस रगड़ाई का जो असर होना था वो भी हुआ, इनकी भौजी कांपने लगी, भौजी की हालत खराब थी, जिंदगी में उनको बहुत कम ऐसे मर्द मले थे जो औरत को झाड़ के झड़ते और ये तो तो जब तक तीन बार न झाड़ लें, ... कम्मो ने छुड़ाने की कोशिश की पर इन्होने पकड़ और जबरदस्त कर दी, धक्के और तेज कर दिए, ...
कम्मो भाभी की गालियों की रफ्तार बढ़ गयी, मेरी सास ननद, सब को इनसे जोड़ के और इन्हे भी, गँड़ुआ, भंड़ुआ,
वो झड़ रही थीं, काँप रही थी पर इन्होने ज़रा भी नहीं ढील दी, ... बल्कि अपनी टांगों के बीच कम्मो भौजी की तगड़ी टांगों को कस के फंसा के बाँध के, क्या मस्त चोद रहे थे,
इनकी चुदाई देख के मैं तो खुश हो ही रही थी, आखिर 'सांड़' तो मेरा ही था, लेकिन मुझसे ज्यादा मेरी ननदिया, उनकी बहिनिया,... उसके चेहरे पे ख़ुशी देखते बनती थी, ...
वो और उन्हें उकसा रही थी, हाँ भैया हाँ और जोर से , आज भौजी को मिला है कोई उनके जोर का, इसी लिए सब बनारस वालियां आती हैं हमारे शहर में टाँगे फैलाने,
प्यार से उसके नये आते जुबना दबा के मीस में बोली,
" अरी बिन्नो, बस दो चार दिन और , मेरे और कम्मो के भैया सब बनारस वाले, एक साथ तीन तीन चढ़ेंगे तो पता चलेगा बना रस का रस. "
बिना घबड़ाये वो बोली, " अरे आज अपने भैया को देख लिया तो दो चार दिन में भौजी के भैया को भी देख लूंगी, लेकिन ....भैया एक साथ तीन तीन,... "
कोमल