08-08-2021, 03:13 PM
इंटरवल-बखीर
तीसरे राउंड के बाद इंटरवल हो गया, मैं नीचे उतर आयी बखीर लाने के लिए ,...
कुछ देर के बाद कम्मो भी मेरे पीछे पीछे
हाँ भाई बहिन को ये बोला गया था , हम दोनों के बिना चुम्मा चाटी से ज्यादा कुछ भी नहीं।
इंटरवल में बड़े काम थे,
एक तो सांड़ और बछिया दोनों में डीजल भरना जरूरी था, बखीर मैंने इसी लिए बना के रखी थी , एकदम वही जिसे गौने की रात दुल्हन को उसकी ननदें जरूर खिलाती हैं की रात में उनकी भौजी खुद टाँगे फैला दें,
दूसरा थोड़ा सा ब्रेक, ढाई तीन घंटे से लगातार, तीन बार तो उसके भैया ने चढ़ाई की, फिर बीच बीच भौजाइयों ने भी खूब रस लिया उसके नए आते जुबना का
और तीसरा कुछ कम्मो भौजी की ख़ास प्लानिंग भी थी, ...
मैं नीचे आ गयी थी बखीर का बड़ा वाला कटोरा फ्रिज से निकालने के लिए,
तबतक पीछे पीछे कम्मो भाभी भी आ गयीं , हँसते हुए बोली, मैंने दोनों को बाँध छान के छोड़ दिया वरना दोनों फिर चालू हो जाते, ... और फिर वो अपनी कुठरिया में गयीं कुछ लाने, ...
और फिर पता नहीं कौन कौन सी जड़ी बूटियां, जादू टोने की चीजें ले आयीं, और वो सब बखीर में मिला के पूरे सात मिनट उन्होंने चलाया ,
मैं समझ रही थी इन सबका असर जित्ता उनके देवर पर होगा उससे ज्यादा हम दोनों की टीनेजर ननद पर, वैसे ही वो आज पगला रही है , इसके बाद तो और,...
४५ मिनट का इंटरवल लगता था जैसे पल भर में ख़तम हो गया,
मैंने खिड़कियां खोल दी , बाहर के टेसू से लदे टेसू के पेड़ जैसे मेरी ननदिया का रूप रस देखने , उसके भैया के साथ उसके ' चक्कर' की जासूसी करने, खिड़कियों से झाँक रहे थे ,
बस अब होली चार पांच दिन ही तो रह गयी थी, मस्त फागुनी बयार चल रही थी और उसमे फगुआ के रसीले गाने घुले थे,
नकबेसर कागा ले भागा, अरे सैंया अभागा ना जागा,
उड़ उड़ कागा मेरी चोलिया पे बैठा, मेरे जुबना का सब रस ले भागा,
पर आज तो मेरी ननद का जुबना लूटने वाला कोई और था, ( हाँ ये बात अलग है की आज तो नथ उतरी थी , उसकी भौजाई की बात रही तो कित्ते भौरें उसके जुबना का रस लूटेंगे वो भी नहीं गईं पाएगी )
मैंने बखीर बांटना शुरू किया ही था की गुड्डी ने मेरे कान में बोला,
" आज भैया को मैं दूंगी "
" एकदम आज अपने भैया को दो कल से हमारे भैया को, ... है न "
कम्मो ने हम दोनों की ननद को छेड़ा , लेकिन बात सच ही थी हम लोगों के जाने के बाद यही होना था। बिना नागा।
वैसे भी कम्मो ने उनके हाथ अभी नहीं खोले थे, ननद रानी ने अपने मुंह में दो चम्मच बखीर डाली, थोड़ी सी गप्प , बाकी देर तक मुंह में, ... फिर अपने भैया के पास जा कर अपने मुंह से सीधे उनके मुंह में,
बेचारे उनके हाथ तो बंधे थे दोनों पीठ के पीछे, कस के कम्मो की लगाई गाँठ , छूटने वाली नहीं
तीसरे राउंड के बाद इंटरवल हो गया, मैं नीचे उतर आयी बखीर लाने के लिए ,...
कुछ देर के बाद कम्मो भी मेरे पीछे पीछे
हाँ भाई बहिन को ये बोला गया था , हम दोनों के बिना चुम्मा चाटी से ज्यादा कुछ भी नहीं।
इंटरवल में बड़े काम थे,
एक तो सांड़ और बछिया दोनों में डीजल भरना जरूरी था, बखीर मैंने इसी लिए बना के रखी थी , एकदम वही जिसे गौने की रात दुल्हन को उसकी ननदें जरूर खिलाती हैं की रात में उनकी भौजी खुद टाँगे फैला दें,
दूसरा थोड़ा सा ब्रेक, ढाई तीन घंटे से लगातार, तीन बार तो उसके भैया ने चढ़ाई की, फिर बीच बीच भौजाइयों ने भी खूब रस लिया उसके नए आते जुबना का
और तीसरा कुछ कम्मो भौजी की ख़ास प्लानिंग भी थी, ...
मैं नीचे आ गयी थी बखीर का बड़ा वाला कटोरा फ्रिज से निकालने के लिए,
तबतक पीछे पीछे कम्मो भाभी भी आ गयीं , हँसते हुए बोली, मैंने दोनों को बाँध छान के छोड़ दिया वरना दोनों फिर चालू हो जाते, ... और फिर वो अपनी कुठरिया में गयीं कुछ लाने, ...
और फिर पता नहीं कौन कौन सी जड़ी बूटियां, जादू टोने की चीजें ले आयीं, और वो सब बखीर में मिला के पूरे सात मिनट उन्होंने चलाया ,
मैं समझ रही थी इन सबका असर जित्ता उनके देवर पर होगा उससे ज्यादा हम दोनों की टीनेजर ननद पर, वैसे ही वो आज पगला रही है , इसके बाद तो और,...
४५ मिनट का इंटरवल लगता था जैसे पल भर में ख़तम हो गया,
मैंने खिड़कियां खोल दी , बाहर के टेसू से लदे टेसू के पेड़ जैसे मेरी ननदिया का रूप रस देखने , उसके भैया के साथ उसके ' चक्कर' की जासूसी करने, खिड़कियों से झाँक रहे थे ,
बस अब होली चार पांच दिन ही तो रह गयी थी, मस्त फागुनी बयार चल रही थी और उसमे फगुआ के रसीले गाने घुले थे,
नकबेसर कागा ले भागा, अरे सैंया अभागा ना जागा,
उड़ उड़ कागा मेरी चोलिया पे बैठा, मेरे जुबना का सब रस ले भागा,
पर आज तो मेरी ननद का जुबना लूटने वाला कोई और था, ( हाँ ये बात अलग है की आज तो नथ उतरी थी , उसकी भौजाई की बात रही तो कित्ते भौरें उसके जुबना का रस लूटेंगे वो भी नहीं गईं पाएगी )
मैंने बखीर बांटना शुरू किया ही था की गुड्डी ने मेरे कान में बोला,
" आज भैया को मैं दूंगी "
" एकदम आज अपने भैया को दो कल से हमारे भैया को, ... है न "
कम्मो ने हम दोनों की ननद को छेड़ा , लेकिन बात सच ही थी हम लोगों के जाने के बाद यही होना था। बिना नागा।
वैसे भी कम्मो ने उनके हाथ अभी नहीं खोले थे, ननद रानी ने अपने मुंह में दो चम्मच बखीर डाली, थोड़ी सी गप्प , बाकी देर तक मुंह में, ... फिर अपने भैया के पास जा कर अपने मुंह से सीधे उनके मुंह में,
बेचारे उनके हाथ तो बंधे थे दोनों पीठ के पीछे, कस के कम्मो की लगाई गाँठ , छूटने वाली नहीं