08-08-2021, 02:14 PM
अगले 10 मिनट तक ठाकुर साहब इसी अंदाज में मेरी रूपाली दीदी को पेल रहे थे.. उसके बाद उन्होंने अपना हथियार बाहर निकाल लिया.. और मेरी बहन को उठाकर बिस्तर पर चौपाया कर दिया.. कुत्तिया के पोज में.. और खुद पीछे आकर मेरी बहन के गुलाबी छेद में अपना मोटा मुसल फिर से पेल दिया... एक जबरदस्त झटके के साथ ही मोटा लौड़ा मेरी दीदी की चुत को रगड़ता पूरा का पूरा जड़ तक अंदर समा चुका था...
...उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज ैमाँ ओह्ह आह नहीईईईई..
अब ठाकुर साहब पीछे से मेरी बहन की ठुकाई कर रहे थे... इस पोजीशन में उनका पूरा का पूरा हथियार मेरी बहन के अंदर बाहर हो रहा था.. उनकी बड़ी आंड मेरी दीदी की गांड से टकरा रही थी...
मेरी रूपाली दीदी की दोनों बड़ी-बड़ी दुधारू चूचियां उनके मंगलसूत्र के साथ झूला झूल रही थी.. क्योंकि पीछे से ठाकुर साहब बड़े जोर-जोर से मेरी दीदी को पेल रहे थे.. अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी ठाकुर साहब ने मेरी बहन के अंदर..
ठाकुर साहब मेरी बहन को घोड़ी बनाकर पीछे से बड़े जबरदस्त तरीके से पेल रहे थे... अब मेरी रूपाली दीदी के मुंह से भी कामुक सिसकियां और जोर जोर से निकल रही थी.. मेरी दीदी को अच्छी तरह पता था कि मैं हॉल में सोया हुआ और जगह हुआ हूं... और ठाकुर साहब के झटकों ने उन को बेहाल कर रखा था... वह अपनी सिसकियों पर काबू नहीं पा रही थी.. मैं सब कुछ सुन रहा था... मुझे तो डर बस इस बात का था कि अगर जीजू ने सुन लिया तो उनके दिल पर क्या बीतेगी...
ठाकुर साहब: आहह.. ! आ आहह.. ! आ आ आ आ आ आ आ..म म... रूपाली... आई लव यू..
मेरी रुपाली दीदी:::आहह.. ! आ आहह.. ! आ... बस ठाकुर साहब.. प्लीज अब और नहीं..आहह.. उंहम म..
. पर मेरे लिए सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि मेरी दीदी भी पूरा सहयोग दे रही थी... एक काम पीड़ित स्त्री की तरह मेरी दीदी सिसकियां ले रही थी... बल्कि सच कहूं तो उन्हें बेहद आनंद आ रहा था... मेरी दीदी भूल चुकी थी कि वह किस अवस्था में.... अपने यौन सुख के उन्माद में मेरी दीदी को यह भी याद नहीं रहा कि उनका भाई बगल के कमरे में लेटा हुआ सब कुछ सुन रहा है...
ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरी दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और ऊपर आकर ठुकाई करने लगे.. इस खेल का अंत होने वाला था..
मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब को धीरे से कहा: अब बस कीजिए.. ! मैं बहुत थक गई हूँ.. !
ठाकुर साहब ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उनकी रफ्तार और तेज हो चुकी थी... कसी गुलाबी चिकनी मुनिया ने ठाकुर साहब के औजार को पिघला दिया था... मेरी बहन इस खेल में जीतने वाली थी.. झड़ने से पहले ठाकुर साहब ने मेरी बहन के अंदर 4-5 जबरदस्त झटके दिए... और अपना मक्खन मेरी बहन की कोख में भर दिया... तकरीबन 30 सेकंड तक वह मेरी बहन की कोख को भरते रहे.. अपनी मलाई से.. पूरा झड़ने के बाद भी कुछ देर तक मेरी बहन को पेल रहे थे... अपने मुरझाए हुए लोड़े से... मेरी बहन साथ ही झड़ गई थी... दोनों एक दूसरे से लिपट के सुस्ताने लगे थे... अब कमरे के अंदर थोड़ी शांति थी...
रात तकरीबन 2:00 बज चुके थे.. ठाकुर साहब तो बुरी तरह थक गए थे.. वह मेरी बहन के बगल में लेटकर नंगे ही सो गय और खर्राटे लेने लगे..
मेरी रूपाली दीदी का भी बुरा हाल था.. वह भी नंगी ही सो गई.. एक पतिव्रता नारी आज किसी गैर मर्द के बगल में नंगी सोई हुई थी.. कुछ ही दिनों में यह एक बहुत बड़ा बदलाव हो गया था मेरी बहन के लिए.. अब मुझे भी नींद आ गई थी वह मैं भी सो गया था.. सुबह तकरीबन 5:00 बजे मेरी रूपाली दीदी की आंख खुली..
मेरी दीदी ठाकुर साहब के साथ नंगी लेटी हुई थी एक चादर के नीचे... इस अहसास को महसूस करके ही मेरी रूपाली दीदी शर्म से पानी पानी हो गई... पर दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे कि मेरी वाली दीदी गर्म हो रही थी.. वासना की आग में पागल हो रही थी... ठाकुर साहब का खड़ा था..लंबा मोटा लण्ड मेरी बहन की नाभि में चुभ रहा था... घरेलू और पतिव्रता औरत होने के नाते मेरी रुपाली जी देश शर्मआ रही थी.. ठाकुर साहब के औजार को अपने हाथ में लेना चाहती थी...
ठाकुर साहब गहरी नींद में थे.. और खर्राटे ले रहे थे... उनकी नींद का फायदा उठाकर और अपनी सारी शरम ताक पर रखकर मेरी बहन ने उनके हथियार को अपने हाथ में थाम लिया.. और सहलाने लगी..
हाय राम कितना बड़ा है ... मेरी रूपाली दीदी मन ही मन सोच रही थी.
ठाकुर साहब के खड़े लण्ड को हिलाते हुए अपने हाथ से पकड़ते हुए मेरी रूपाली दीदी ने अपने छेद पर लगा दिया और खुद उसको रगड़ रही थी.. मेरी बहन आज अपने आप से ही युद्ध कर रही थी.. यह क्या पाप कर रही है वह? खुद ही एक जानवर को जगा रही है... अपने होशो हवास गवा कर मेरी बहन गुंडे को जगा रही थी... ठाकुर साहब की आंख खुल गई.. नया एहसास हो गया था कि क्या हो रहा है.. सुबह के 5:30 बज चुके थे..
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को खींच कर अपने ऊपर बिठा लिया.. और उनको देख कर मुस्कुराने लगे.. मेरी दीदी शर्म से पानी पानी हो गई थी.. ठाकुर साहब की तरफ देख भी नहीं पा रही थी...
ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरी बहन को पेल दिया था..उनका आधा लण्ड, मेरी रूपाली दीदी के चूत के अंदर चला गया और ठाकुर साहब धीरे धीरे मेरी दीदी के कानों मे कुछ कहते हुए, अपना लण्ड उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगे..
ठाकुर साहब: क्या हुआ रूपाली... और पास आओ ना मेरे..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ठाकुर साहब प्लीज.. आपने जो बस आज सोनिया के लिए किया... मैं तो बस आभारी हूं आपकी.... आपने बहुत बड़ा एहसान की हमारे ऊपर... मेरी बेटी के चेहरे पर खुशी आज बहुत दिनों के बाद दिख रही थी..
...उईइइइइइइइइइ माँ , प्लीज ैमाँ ओह्ह आह नहीईईईई..
अब ठाकुर साहब पीछे से मेरी बहन की ठुकाई कर रहे थे... इस पोजीशन में उनका पूरा का पूरा हथियार मेरी बहन के अंदर बाहर हो रहा था.. उनकी बड़ी आंड मेरी दीदी की गांड से टकरा रही थी...
मेरी रूपाली दीदी की दोनों बड़ी-बड़ी दुधारू चूचियां उनके मंगलसूत्र के साथ झूला झूल रही थी.. क्योंकि पीछे से ठाकुर साहब बड़े जोर-जोर से मेरी दीदी को पेल रहे थे.. अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी ठाकुर साहब ने मेरी बहन के अंदर..
ठाकुर साहब मेरी बहन को घोड़ी बनाकर पीछे से बड़े जबरदस्त तरीके से पेल रहे थे... अब मेरी रूपाली दीदी के मुंह से भी कामुक सिसकियां और जोर जोर से निकल रही थी.. मेरी दीदी को अच्छी तरह पता था कि मैं हॉल में सोया हुआ और जगह हुआ हूं... और ठाकुर साहब के झटकों ने उन को बेहाल कर रखा था... वह अपनी सिसकियों पर काबू नहीं पा रही थी.. मैं सब कुछ सुन रहा था... मुझे तो डर बस इस बात का था कि अगर जीजू ने सुन लिया तो उनके दिल पर क्या बीतेगी...
ठाकुर साहब: आहह.. ! आ आहह.. ! आ आ आ आ आ आ आ..म म... रूपाली... आई लव यू..
मेरी रुपाली दीदी:::आहह.. ! आ आहह.. ! आ... बस ठाकुर साहब.. प्लीज अब और नहीं..आहह.. उंहम म..
. पर मेरे लिए सबसे आश्चर्य की बात यह थी कि मेरी दीदी भी पूरा सहयोग दे रही थी... एक काम पीड़ित स्त्री की तरह मेरी दीदी सिसकियां ले रही थी... बल्कि सच कहूं तो उन्हें बेहद आनंद आ रहा था... मेरी दीदी भूल चुकी थी कि वह किस अवस्था में.... अपने यौन सुख के उन्माद में मेरी दीदी को यह भी याद नहीं रहा कि उनका भाई बगल के कमरे में लेटा हुआ सब कुछ सुन रहा है...
ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरी दीदी को बिस्तर पर पटक दिया और ऊपर आकर ठुकाई करने लगे.. इस खेल का अंत होने वाला था..
मेरी रूपाली दीदी ने ठाकुर साहब को धीरे से कहा: अब बस कीजिए.. ! मैं बहुत थक गई हूँ.. !
ठाकुर साहब ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उनकी रफ्तार और तेज हो चुकी थी... कसी गुलाबी चिकनी मुनिया ने ठाकुर साहब के औजार को पिघला दिया था... मेरी बहन इस खेल में जीतने वाली थी.. झड़ने से पहले ठाकुर साहब ने मेरी बहन के अंदर 4-5 जबरदस्त झटके दिए... और अपना मक्खन मेरी बहन की कोख में भर दिया... तकरीबन 30 सेकंड तक वह मेरी बहन की कोख को भरते रहे.. अपनी मलाई से.. पूरा झड़ने के बाद भी कुछ देर तक मेरी बहन को पेल रहे थे... अपने मुरझाए हुए लोड़े से... मेरी बहन साथ ही झड़ गई थी... दोनों एक दूसरे से लिपट के सुस्ताने लगे थे... अब कमरे के अंदर थोड़ी शांति थी...
रात तकरीबन 2:00 बज चुके थे.. ठाकुर साहब तो बुरी तरह थक गए थे.. वह मेरी बहन के बगल में लेटकर नंगे ही सो गय और खर्राटे लेने लगे..
मेरी रूपाली दीदी का भी बुरा हाल था.. वह भी नंगी ही सो गई.. एक पतिव्रता नारी आज किसी गैर मर्द के बगल में नंगी सोई हुई थी.. कुछ ही दिनों में यह एक बहुत बड़ा बदलाव हो गया था मेरी बहन के लिए.. अब मुझे भी नींद आ गई थी वह मैं भी सो गया था.. सुबह तकरीबन 5:00 बजे मेरी रूपाली दीदी की आंख खुली..
मेरी दीदी ठाकुर साहब के साथ नंगी लेटी हुई थी एक चादर के नीचे... इस अहसास को महसूस करके ही मेरी रूपाली दीदी शर्म से पानी पानी हो गई... पर दोनों एक दूसरे के इतने करीब थे कि मेरी वाली दीदी गर्म हो रही थी.. वासना की आग में पागल हो रही थी... ठाकुर साहब का खड़ा था..लंबा मोटा लण्ड मेरी बहन की नाभि में चुभ रहा था... घरेलू और पतिव्रता औरत होने के नाते मेरी रुपाली जी देश शर्मआ रही थी.. ठाकुर साहब के औजार को अपने हाथ में लेना चाहती थी...
ठाकुर साहब गहरी नींद में थे.. और खर्राटे ले रहे थे... उनकी नींद का फायदा उठाकर और अपनी सारी शरम ताक पर रखकर मेरी बहन ने उनके हथियार को अपने हाथ में थाम लिया.. और सहलाने लगी..
हाय राम कितना बड़ा है ... मेरी रूपाली दीदी मन ही मन सोच रही थी.
ठाकुर साहब के खड़े लण्ड को हिलाते हुए अपने हाथ से पकड़ते हुए मेरी रूपाली दीदी ने अपने छेद पर लगा दिया और खुद उसको रगड़ रही थी.. मेरी बहन आज अपने आप से ही युद्ध कर रही थी.. यह क्या पाप कर रही है वह? खुद ही एक जानवर को जगा रही है... अपने होशो हवास गवा कर मेरी बहन गुंडे को जगा रही थी... ठाकुर साहब की आंख खुल गई.. नया एहसास हो गया था कि क्या हो रहा है.. सुबह के 5:30 बज चुके थे..
ठाकुर साहब ने मेरी बहन को खींच कर अपने ऊपर बिठा लिया.. और उनको देख कर मुस्कुराने लगे.. मेरी दीदी शर्म से पानी पानी हो गई थी.. ठाकुर साहब की तरफ देख भी नहीं पा रही थी...
ठाकुर साहब ने एक बार फिर मेरी बहन को पेल दिया था..उनका आधा लण्ड, मेरी रूपाली दीदी के चूत के अंदर चला गया और ठाकुर साहब धीरे धीरे मेरी दीदी के कानों मे कुछ कहते हुए, अपना लण्ड उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगे..
ठाकुर साहब: क्या हुआ रूपाली... और पास आओ ना मेरे..
मेरी रूपाली दीदी: नहीं ठाकुर साहब प्लीज.. आपने जो बस आज सोनिया के लिए किया... मैं तो बस आभारी हूं आपकी.... आपने बहुत बड़ा एहसान की हमारे ऊपर... मेरी बेटी के चेहरे पर खुशी आज बहुत दिनों के बाद दिख रही थी..