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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#14
अध्याय - 09
______________




"ये आप बिलकुल भी ठीक नहीं कर रहे हैं।" बेटे चंद्रकांत के दरवाज़ा बंद करते ही सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए जैसे आहत भाव से कहा_____"इतनी सी बात के लिए आप इतनी बड़ी ज़िद कर के क्यों बैठ गए हैं?"

"क्या तुमने सोच लिया है कि तुम इस वक़्त मुझे यहाँ पर शान्ति से नहीं बैठने दोगी?" वागले ने शख़्त भाव से कहा_____"और अगर सच में सोच लिया है तो ठीक है मैं इस घर से ही चला जाता हूं।"

"नहीं नहीं भगवान के लिए कहीं मत जाइए।" वागले जैसे ही सोफे से उठा तो सावित्री ने झट से उसके पैर पकड़ लिए_____"मैं कबूल कर चुकी हूं न कि मुझसे ग़लती हुई है और मैं ये भी कह चुकी हूं कि अब से मैं वही करुँगी जो आप कहेंगे। इस लिए मुझ पर दया कीजिए और मेरे साथ अंदर कमरे में चलिए। इस उम्र में ये सब करना आपको ज़रा भी शोभा नहीं देता।"

"मुझे क्या शोभा देता है और क्या नहीं इसका तो तुम्हें बहुत अच्छी तरह से ख़याल है।" वागले ने जैसे ताना मारते हुए कहा_____"लेकिन बाकी और किन चीज़ों का तुम्हे ख़याल रखना चाहिए क्या इसका भी ख़याल है तुम्हें?"

"अगर मुझे पता होता कि आपका वो सब करने का बहुत ही मन था।" सावित्री ने धीमे स्वर में नज़रें झुका कर कहा____"तो मैं उस वक़्त आपको बिलकुल भी मना न करती। मैं तो यही समझी थी कि हर रोज़ की तरह आप उस वक़्त भी मुझे बस परेशान ही कर रहे थे इस लिए मैंने वो सब कहा था। मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि आप उतनी सी बात पर इस तरह नाराज़ हो जाएंगे।"

"बात सिर्फ इतनी नहीं है।" वागले ने सोफे पर बैठते हुए कहा_____"बल्कि ये भी है कि तुमने फ़ोन कर के मुझसे एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। दोपहर को तुमने अपने बेटे से फ़ोन करवाया और उससे ये पता लगवाया कि मैंने श्याम को खाना लाने के लिए क्यों नहीं भेजा? इतनी सी बात तुम ख़ुद भी तो फ़ोन पर मुझसे पूंछ सकती थी लेकिन तुमने नहीं पूछा। इसका तो यही मतलब हुआ न कि तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी भी बात से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता?"

"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है।" सावित्री ने जल्दी से कहा____"आप ग़लत समझ रहे हैं। मैं तो सुबह ही आपको फ़ोन करने वाली थी लेकिन डर की वजह से आपको फ़ोन करने की मुझ में हिम्मत ही नहीं हुई। यही वजह थी कि मैंने हमारे बेटे को फ़ोन करने के लिए कहा था।"

सावित्री की बात सुन कर शिवकांत वागले ने मन ही मन सोचा कि शायद इतनी डोज सावित्री के लिए अब काफी हो गई है। हालांकि सावित्री से इस तरह बेरुख़ी से बात करने में उसे ख़ुद भी तक़लीफ हो रही थी। सावित्री जैसी भी थी लेकिन वो उसे बहुत मानता था। उसने सावित्री से इतनी कठोरता में बात करने के लिए खुद को बड़ी मुश्किल से कठोर बनाया था। ख़ैर उसने अब और ज़्यादा बात को न बढ़ाने का फैसला किया और फिर सावित्री से बिना कुछ बोले उठा और कमरे की तरफ बढ़ गया। इधर सावित्री ने जब उसे कमरे में जाते देखा तो उसने राहत की सांस ली और खुद भी कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

सावित्री जब कमरे में पहुंची तो उसने वागले को बेड पर लेटा हुआ पाया। ये देख कर वो मन ही मन खुश हुई और फिर कमरे के दरवाज़े को अंदर से बंद कर के वो भी बेड पर जा कर वागले के बगल से लेट गई। उसने सोच लिया था कि अब से वो किसी भी चीज़ के लिए अपने पति को मना नहीं करेगी। इस लिए बेड पर लेटते ही उसने वागले की तरफ करवट ली और अपने पति की तरफ देखने लगी।

"सुनिए।" वागले को ख़ामोशी से आँखें बंद किए देख उसने आहिस्ता से कहा____"वो मैं ये कह रही हो कि सब कुछ भुला कर मुझे प्यार कीजिए न।"

सावित्री के इस तरह कहने से वागले जो आँखें बंद किए लेटा हुआ था वो मन ही मन मुस्कुराया किन्तु बोला कुछ नहीं और ना ही उसने अपनी आँखें खोली। असल में वो खुद पहल नहीं करना चाहता था। वो चाहता था कि उसका दबदबा अभी फिलहाल ऐसे ही बना रहे। वो नहीं चाहता था कि सावित्री को ये भनक लग जाए कि ये सब वो नाटक कर रहा था ताकि सावित्री इस सबसे थोड़ा डर जाए और खुद ही वो सब करने के लिए राज़ी हो जाए।

"सुनिए न।" सावित्री खिसक कर वागले के क़रीब आती हुई बोली____"अब नाराज़गी छोड़ दीजिए न। मैं अब से वही करुँगी जो आप कहेंगे।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।" वागले ने नाटक को जारी किए हुए कहा_____"चुपचाप सो जाओ और मुझे भी सोने दो।"

"अच्छा सुनिए तो।" सावित्री एकदम वागले से चिपक कर उसके सीने पर अपना हाथ फिराते हुए बोली_____"मैं ये कह रही हूं कि आप मुझे भी ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे मेरा भी मन वो सब करने को किया करे।"

"क्या करने को?" वागले मन ही मन सावित्री की इस बात से चौंका था और मारे उत्सुकता के पूंछ बैठा था, जिसके जवाब में सावित्री ने धीमे से कहा____"वही, प्यार करने को।"
"अब ये क्या बकवास है?" वागले ने मानो खीझते हुए कहा____"चुपचाप सो जाओ।"

"ऐसे कैसे सो जाऊं?" सावित्री ने वागले के सीने से अपना हाथ उठा कर वागले के चेहरे को सहलाते हुए कहा____"मुझे आपसे जानना है कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरा भी मन हर वक़्त आपसे प्यार करने को किया करे? मुझे भी इस बारे में कोई उपाय बताइए न।"

सावित्री की बात सुन कर वागले को मन ही मन मज़ा तो आया लेकिन उसे ये न समझ आया कि वो इस बारे में सावित्री को जवाब के रूप में क्या उपाय बताए? वो बड़ी तेज़ी से सोचने लगा था कि सावित्री को ऐसा क्या बताए जिससे उसे उसके जवाब से संतुष्टि मिल जाए।

"क्या हुआ?" सावित्री ने वागले को ख़ामोश देखा तो उसने इस बार सिर उठा कर वागले की तरफ देखा और कहा____"बताइए न। आप इस तरह चुप क्यों हैं? क्या अभी भी नाराज़ हैं मुझसे?"

सावित्री की इतनी मासूमियत से कही गई इस बात को सुन कर वागले का दिल मानो बुरी तरह पसीज गया और उसके जज़्बात मचल उठे। उसने अपनी आँखें खोल कर और सिर को थोड़ा ब्यवस्थित करते हुए कहा_____"मेरी समझ में इसका कोई उपाय नहीं होता मेरी जान। ये तो बस एक एहसास है। एक ऐसा एहसास जिसके कई रूप होते हैं। हम जिसे प्यार करते हैं उसके लिए हमारे दिल में प्यार का एहसास होता है और उस एहसास के तहत इंसान के ज़हन में तरह तरह के जज़्बात उभरने लगते हैं। जैसे मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं तो मेरे अंदर तुम्हारे प्रति उस प्यार के एहसास के तहत ये ख़याल उभरते हैं कि मैं अपने प्यार को तुम्हारे सामने अपने तरीके से ज़ाहिर करूं।"

"ये तो ठीक है।" सावित्री ने कहा____"लेकिन जिनसे हम प्यार नहीं करते उनके प्रति हमारे अंदर किस तरह के ख़याल उभरते हैं?"
"ये तो किसी ब्यक्ति विशेष को देखने के बाद ही पता चलता है।" वागले ने सोचते हुए कहा____"जिनसे हमारे जैसे सम्बन्ध होते हैं उनके प्रति हमारे अंदर वैसे ही ख़याल उभरते हैं।"

"ख़ैर छोड़िए।" सावित्री ने जैसे पहलू बदला____"अब ये बताइए कि इस वक़्त मेरे प्रति कैसे ख़याल उभर रहे हैं आपके अंदर?"
"सच सच बताऊं या यूं ही?" वागले ने धड़कते दिल से ये कहा तो सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"सच सच ही बताइए न। झूठ मूठ का क्यों बताएँगे?"

सावित्री की बात सुन कर वागले ने उसको पकड़ कर उसे सीधा किया और फिर उठ कर उसके चेहरे की तरफ झुकते हुए कहा_____"तुम्हारे प्रति मेरे अंदर कैसे ख़याल उभर रहे हैं ये मैं कर के दिखाऊंगा।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री के गुलाबी होठों पर अपने होंठ रख दिए। वागले के ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी हुई और उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसने वागले को रोकने का सोचा भी नहीं था।

वागले जो विक्रम सिंह की गरमा गरम कहानी पढ़ कर जाने कब से भरा बैठा था उसने सावित्री के होठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उसके ज़हन में एकदम से माया का ख़याल उभर आया था और फिर वो खुद को विक्रम सिंह समझ बैठा था। सावित्री पहले तो चौंकी थी फिर उसने अपने आपको जैसे पूरी तरह से वागले के सुपुर्द कर दिया। वो भी देखना चाहती थी कि वागले में आज अचानक इस तरह बदलाव कैसे आ गया था?

उधर वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा और जब उसकी साँसें भर आईं तो उसने चेहरा ऊपर कर लिया। उसने आँखें खोल कर सावित्री की तरफ देखा तो उसे अपनी आँखे बंद किए पाया। उसकी साँसें भी चढ़ी हुईं थी। बल्ब की रौशनी में उसका चेहरा हल्का सुर्ख पड़ा हुआ दिख रहा था। साँसें दुरुस्त हुईं तो उसने भी आँखें खोल कर वागले की तरफ देखा। वागले से नज़रें चार होते ही उसके चेहरे पर शर्म के भाव उभर आए और होठों पर मुस्कान नाच उठी।

"तुम्हारे इन होठों में आज भी शहद जैसी वही मिठास है जो तब थी जब तुम मेरी बीवी बन कर मेरी ज़िन्दगी में आई थी।" वागले ने सावित्री की गहरी आँखों में देखते हुए प्यार से कहा____"हमारे बच्चे क्या हुए जैसे हमारे बीच का सारा सिस्टम ही बिगड़ गया।"

"किसी के भी जीवन में वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" सावित्री ने वागले की आँखों में जैसे झांकते हुए कहा_____"वक़्त के साथ साथ हर चीज़ का सिस्टम भी बदल जाता है। उन चीज़ों के बारे में हमें बहुत कुछ सोचना भी पड़ता है और समझौता भी करना पड़ता है।"

"जानता हूं।" वागले ने सावित्री के दाहिने गाल को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा____"किन्तु एक चीज़ जीवन के आख़िर तक बनी रहती है जिसे हम प्यार कहते हैं। ये प्यार ही है जिसके सहारे दुनियां का हर सिस्टम अपनी जगह पर ब्यवस्थित है। ख़ैर, ज़माना बदल गया है मेरी जान। आज के बच्चे भी ये समझते हैं कि उनके माता पिता को भी एक दूसरे की प्यार की ज़रूरत महसूसत होती है जिसके लिए उन्हें अपने माता पिता को उचित और मालूल समय देना चाहिए। आज कल तो ऐसे भी बच्चे होते हैं जो बड़े होने के बाद अपने माता पिता को अपना दोस्त समझने लगते हैं और उनसे हर तरह की बातें बड़ी आसानी से साझा करते हैं।"

"करते होंगे।" सावित्री ने कहा____"पर हमारे बच्चे ऐसे तो नहीं हैं न और ना ही हम ऐसे हैं कि अपने बीच की ऐसी बातों को उनके बीच सहजता से ज़ाहिर कर दें।"
"किसी के भी बच्चे या किसी के भी माता पिता शुरू से ऐसे नहीं होते।" वागले ने मानो समझाते हुए कहा____"बल्कि इन सब बातों के बारे में गहराई से सोच कर ही वो इसकी शुरुआत करते हैं ताकि माता पिता का अपने बच्चों के बीच एक ऐसा ताल मेल बना रहे जिससे उन्हें बड़ी से बड़ी बात के लिए एक दूसरे से कहने सुनने में संकोच करने जैसी सिचुएशन पैदा न हो।"

"तो क्या अब आप भी हमारे बच्चों के बीच इसी तरह का ताल मेल बनाने का सोच रहे हैं?" सावित्री ने सवालिया निगाहों से वागले को देखा।
"नहीं।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं फिलहाल ये सोच रहा हूं कि इस वक़्त अपनी खूबसूरत बीवी को जी भर के प्यार करूं और हां ये भी चाहता हूं कि मेरी बीवी भी उसी तरह मुझसे प्यार करे।"

"आपको जो करना है कीजिए।" सावित्री ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं आपको किसी चीज़ के लिए रोकूंगी नहीं।"
"ऐसे नहीं भाग्यवान।" वागले ने कहा____"बल्कि ऐसे कि उस प्यार में तुम्हें भी उतना ही आनंद और सुख प्राप्त हो जितना की मुझे प्राप्त होगा। एक तो तुमने घर परिवार और बच्चों के अलावा कुछ और सोचना ही बंद कर दिया है इस लिए तुम्हारे अंदर के प्यार वाले वो एहसास ही लुप्त हो गए हैं। उन्हें अपने अंदर फिर से जगाओ मेरी जान। हम दोनों के जीवन का कोई भरोसा नहीं है, इस लिए मैं चाहता हूं कि जब तक साँसें हैं और जब तक मुमकिन हो सके तब तक हम एक दूसरे के बीच प्यार को इस तरह बनाए रखें कि एक पल के लिए भी एक दूसरे से जुदा न रह सकें।"

"मैं पूरी कोशिश करुँगी कि अब से ऐसा ही हो।" सावित्री ने कहा____"किन्तु एक बात बताइए कि इतने सालों बाद अचानक से ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके अंदर प्यार करने का इस क़दर भूत सवार हो गया है?"

"क्या तुम्हें लगता है कि इसकी कोई ख़ास वजह है?" वागले ने उल्टा सवाल करते हुए पूछा।
"हां क्यों नहीं।" सावित्री ने वागले के चेहरे के भावों को जैसे गौर से पढ़ते हुए कहा____"मुझे तो पूरा यकीन है कि कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से अचानक से आप पर ये बदलाव आया है, वरना आज से पहले आप कभी भी ये सब करने के नाम पर मुझसे इस तरह नाराज़ नहीं हुए थे।"

सावित्री की बात सुन कर वागले तुरंत कुछ बोल न सका था, बल्कि सावित्री के चेहरे को ये सोच कर देखता रह गया था कि अब वो सावित्री को कैसे बताए कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने से हुआ है? हालांकि कई बार उसके अपने मन में भी ये ख़याल उभरे थे कि उसके अंदर आए इन बदलावों की वजह क्या विक्रम सिंह की कहानी पढ़ना है? क्या सच में विक्रम सिंह की कहानी ने उसके अंदर सेक्स की एक उत्तेजना को जाग्रत कर दिया है? वागले इस बारे में न जाने कितनी ही बार सोच चुका था और वो इस बात को स्वीकार भी कर चुका था कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने का ही नतीजा था किन्तु कहीं न कहीं विक्रम सिंह की कहानी ने उसे ये भी एहसास कराया था कि सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो उम्र नहीं देखता बल्कि वो अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए रास्ता और उपाय देखता है। विक्रम सिंह की कहानी ने उसे एहसास कराया था कि औरत और मर्द अपनी हवस को पूरा करने के लिए जाने क्या क्या कर डालते हैं। हवस का नशा जब इंसान के दिलो दिमाग़ पर हावी हो जाता है तो वो सही और ग़लत नहीं देखता बल्कि वो उस नशे का इलाज़ ही खोजता है।

"क्या हुआ?" वागले को एकदम से कहीं गुम हो गए देख सावित्री ने कहा____"कहां खो गए आप?"
"आं..हां।" वागले हल्के से चौंका____"नहीं, कहीं नहीं। असल में काफी समय से मैं इस बारे में सोच रहा था और तुमसे कह भी रहा था लेकिन तुम हमेशा की तरह मना कर देती थी और मैं भी ये सोच कर फिर कुछ नहीं कहता था कि तुम दिन भर के कामों की वजह से बुरी तरह थक जाती हो इस लिए क्यों तुम्हे परेशान करना? ख़ैर मैंने सोच लिया है कि मैं घर के काम के लिए एक नौकरानी रख दूंगा जिससे तुम पर ज़्यादा बोझ न पड़े।"

"अरे! इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"आप किसी नौकरानी वौकरानी को मत रखना। घर के काम इतने भी ज़्यादा नहीं होते हैं कि मैं थक जाऊं और वैसे भी काम करना तो ज़रूरी ही है न। काम नहीं करुँगी तो खा खा के मोटी हो जाउंगी, और कुछ दिन बाद ऐसी हालत हो जाएगी कि उठना बैठना भी बंद हो जाएगा मेरा।"

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता।" वागले ने कहा____"मैंने सोच लिया है कि घर के सभी बड़े बड़े काम करने के लिए एक नौकरानी रख दूंगा। तुम्हारा काम सिर्फ खाना बनाने का रहेगा, क्योंकि मुझे तो तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाना ही पसंद है।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ने कुछ बोलने का मन तो बनाया पर फिर चुप रह गई। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव आए थे जैसे वो वागले पर बलिहार हो जाने वाली हो।

"तो शुरू करें?" सावित्री को प्यार से अपनी तरफ देखते देख वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री उसकी बात सुन कर मुस्कुरा उठी और हां में अपनी पलकों को झपका दिया।

वागले ने झुक कर फिर से सावित्री के होठों को चूम लिया। इस वक़्त वो सावित्री के बगल से अधलेटा हुआ सा था। उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा उठा हुआ था और सावित्री की तरफ झुका हुआ था। एक हाथ सावित्री के ऊपर से होते हुए उसके दूसरी तरह बेड पर टिका हुआ था, जबकि दूसरा हाथ कुहनी के बल इस तरफ तकिए के पास ही था।

वागले कुछ पलों तक सावित्री के होठों को प्यार से चूमता चूसता रहा। सावित्री एकदम शांत पड़ी थी। तभी वागले का दूसरी तरफ वाला हाथ उठा और सावित्री की छाती पर आ गया। सावित्री के जिस्म पर इस वक़्त क्रीम कलर की नाइटी थी जिसकी डोरी उसने पेट के पास बाँध रखी थी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा पहन रखी थी जो ऊपर उसकी नाइटी के खुले गले से दिख रही थी।

वागले ने नाइटी के ऊपर से सावित्री की दाहिनी छाती को सहलाना शुरू किया तो सावित्री के जिस्म में एकदम से झुरझुरी होने लगी। वो जो पहले एकदम से शांत पड़ी थी उसका एक हाथ फ़ौरन ही वागले के उस हाथ के ऊपर आ गया जो हाथ उसकी छाती को सहला रहा था। सावित्री के सीने में बड़ी बड़ी छातियां थी जो वागले के पूरे हाथ में समां नहीं रही थी। इस उम्र में भी उसकी छातियों में हल्का कसाव था। वागले को शायद उसकी छाती सहलाने में मज़ा आया था इस लिए उसने थोड़ा ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू किया तो सावित्री ने अपने होठों को वागले के होठो से आज़ाद करके सिसकी ली।

सावित्री ने जैसे ही अपने होठों को वागले के होठों से अलग किया तो वागले उसके गले को चूमना शुरू कर दिया। सावित्री का दूसरा हाथ फ़ौरन ही वागले के सिर पर आ गया और वो उस हाथ से वागले के सिर के बालों को मुठियाने लगी। उधर वागले सावित्री के गले को चूमते हुए सावित्री के सीने की तरफ आया। एक हाथ से उसने नाइटी के छोर को पकड़ कर एक तरफ किया तो उसका सीना ब्रा समेत दिखने लगा। वागले पर जैसे नशा चढ़ने लगा था इस लिए वो बिना रुके सावित्री की छाती के हर हिस्से को चूमने लगा था। उसका एक हाथ अभी भी सावित्री की दाहिनी चूची को ज़ोर ज़ोर से मसले जा रहा था।

वागले ने सावित्री की चूची से हाथ हटा कर नाइटी की डोरी को पकड़ कर खींचा तो वो बड़े आराम से खुल गई। उसके बाद वागले ने सिर उठा कर नाइटी के दोनों सिरों को पकड़ कर सावित्री के बदन से हटा दिया जिससे सावित्री का गदराया हुआ गोरा बदन बल्ब की रौशनी में चमकने लगा। वागले ने ध्यान से सावित्री के जिस्म को देखा। आज भी उसके जिस्म में पहले जैसा ही आकर्षण था। सावित्री का जिस्म भरा हुआ तो था किन्तु एक्स्ट्रा चर्बी कहीं पर भी नहीं थी।

सावित्री ने आँखें खोल कर जब वागले को देखा तो उसे अपने बदन को गौर से निहारता पाया। ये देख कर सावित्री को शर्म महसूस हुई जिससे उसने फ़ौरन ही अपनी नाइटी के छोर को पकड़ कर अपने बदन को ढंकना चाहा लेकिन वागले ने फ़ौरन ही उसका हाथ पकड़ लिया।

"मुझसे क्यों छुपा रही हो मेरी जान?" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या तुम भूल गई हो कि तुम्हारे इस खूबसूरत बदन के हर हिस्से को मैं जाने कितनी ही बार देख चुका हूं?"
"हां लेकिन फिर भी मुझे शर्म आ रही है।" सावित्री ने अपनी गर्दन को दूसरी तरफ घुमा कर मुस्कुराते हुए कहा____"आपको तो जैसे अब कोई लाज ही नहीं आती।"

"अगर मैं भी शरमाऊंगा तो फिर तुम्हें खुल कर प्यार कैसे करुंगा?" वागले ने सावित्री के गुदाज पेट पर हाथ फेरते हुए कहा_____"तुम्हें देख कर मैं हमेशा ये सोच कर गर्व करता हूं कि तुम जैसी हसीन बीवी किस्मत से मुझे मिली है। एक मैं हूं कि दिन-ब-दिन बूढ़ा होता जा रहा हूं और एक तुम हो कि दिन-ब-दिन जवान होती जा रही हो। मुझे तो अब ये सोच कर डर सताने लगेगा कि मेरी इस जवान बीवी को कहीं कोई मुझसे छीन कर न ले जाए।"

"धत्।" सावित्री ने लजा कर कहा____"ये कैसी बातें करते हैं आप? ऐसा कुछ नहीं होने वाला और ना ही मैं ऐसा होने दूंगी।"
"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो?" वागले जाने क्या सोच कर ये पूछ बैठा था।
"ऐसा नहीं होगा।" सावित्री ने जैसे दृढ़ भाव से कहा____"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो ये भी समझ लीजिए कि वो दिन मेरी ज़िन्दगी का आख़िरी दिन होगा।"

सावित्री की ये बात सुन कर वागले ये सोच कर मन ही मन बेहद खुश हो गया कि उसकी बीवी उससे कितना प्यार करती है और उसके प्रति कितनी वफादार है। एक पति को इससे ज़्यादा भला और क्या सबूत चाहिए होता है? वागले उसकी बात से इतना गद गद हो उठा था कि उसने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर पहले सावित्री के माथे को प्यार से चूमा और फिर उसके होठों को हल्के से चूम लिया। उसके बाद वो वापस नीचे आया और सफ़ेद रंग की ब्रा में कैद सावित्री की छातियों के बीच की दरार को चूमने लगा। एक हाथ से वो उसकी चूची को मसल भी रहा था और दूसरी को ब्रा के ऊपर से ही चूम रहा था।

वागले इस वक़्त बेहद खुश था और उसका बस चलता तो वो जाने क्या क्या कर जाता। उसके ज़हन में बार बार विक्रम सिंह की डायरी में लिखी कहानी के अंश घूम जाते थे। उसने अपने जीवन में कभी भी सावित्री के साथ वैसा कुछ नहीं किया था जिस तरह विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था। उसने तो बस एक ही तरह की क्रिया की थी। सावित्री की चूचियों को पहले मसलना और फिर उसकी चूत में अपना लंड डाल कर उसे चोदना। पांच मिनट में ही उसका काम तमाम हो जाता था। उसने ये जानने समझने की कभी कोशिश नहीं की थी कि उसके द्वारा किए गए सेक्स से उसकी बीवी को संतुष्टि होती थी या नहीं। हालांकि सावित्री ने भी उससे इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा था। विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने के बाद ही उसने जाना था कि किसी औरत के साथ एक मुकम्मल मर्द सेक्स करते समय क्या क्या करता है और किस तरह से औरत को संतुष्ट करता है?

कुछ ही देर में वागले के ज़हन में माया और विक्रम सिंह उभर आए और वो एकदम से जूनूनी अंदाज़ में वैसा ही करने लगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी कहानी में माया के साथ किया था। बेड पर लेटी उसकी बीवी अपने पति के द्वारा की जा रही ऐसी क्रियाओं से चौंक उठती थी लेकिन वो कुछ कह नहीं रही थी उसे। उसे खुद भी उसके द्वारा ऐसा करने में एक अलग ही मज़ा आने लगा था।

वागले ने सावित्री की ब्रा को उतार दिया था और अब वो उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भरे बड़ी तेज़ी से चूस रहा था। उसका एक हाथ सावित्री की पेंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहला रहा था। दो तरफ के हमले से सावित्री एक अलग ही रंग में डूबी नज़र आने लगी थी। उसका पूरा जिस्म छटपटा सा रहा था और वो आँखें बंद किए एक अलग ही मज़े में खोती जा रही थी।

सावित्री की दोनों चूचियों को जी भर के चूसने के बाद वागले नीचे आया और उसके गुदाज पेट और नाभि को चूमने चाटने लगा। सावित्री को पेट में गुदगुदी होने लगी थी या कुछ और लेकिन उसके द्वारा इस तरह चूमने चाटने से उसका पेट झटका ज़रूर खा रहा था। उसके मुख से सिसकारियां फूट रहीं थी। सावित्री एकदम से उस वक़्त उछल पड़ी जब वागले ने अपना हाथ पेंटी के अंदर डाल कर सावित्री की बालों से घिरी चूत पर रख दिया था। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के हाथ को पकड़ लिया।

"आह्ह ये क्या रहे हैं आप?" सावित्री ने बड़ी मुश्किल से कहा____"वहां से हाथ हटा लीजिए न। वो हाथ रखने की जगह नहीं है।"
"ये तुमसे किसने कहा?" वागले ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर जिस्म का कोई अंग हाथ रखने लायक न होता तो भगवान इसे बनाता ही क्यों? अरे! भाग्यवान ये तो ऐसी जगह है जहां से इंसानों का उदय होता है। भला ऐसी महान जगह हाथ रखने लायक कैसे नहीं होगी? तुम बस आनंद लो मेरी जान।"

कहने के साथ ही वागले ने अपने हाथ को ज़ोर दिया तो उसका हाथ फ़ौरन ही सावित्री की गीली हो गई चूत पर जा पहुंचा। सावित्री ने उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया था। वागले ने उसके चहेरे की तरफ देखा तो उसे दूसरी तरफ अपना चेहरा किए पाया। सावित्री ने कस कर अपनी आँखों को बंद कर लिया था, जैसे वो किसी भी कीमत पर वागले के उस हाथ को अपनी चूत पर रखा हुआ नहीं देखना चाहती थी। वागले के होठों पर ये सोच कर गहरी मुस्कान उभर आई कि उसकी बीवी आज भी किसी कुवारी लड़की की तरह शर्मा रही है। उसे सावित्री पर बेहद प्यार आया और शायद यही वजह थी कि उसने फ़ौरन ही ऐसा काम किया जिसकी सावित्री को स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी। वो तेज़ी से नीचे खिसका था और इससे पहले कि सावित्री को इसकी भनक लगती उसने बड़ी तेज़ी से उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया था।

अपनी छूट पर गर्म साँसों का एहसास होते ही सावित्री को जैसे किसी बात का एहसास हुआ था इस लिए फ़ौरन ही तकिए से सिर उठा कर नीचे की तरफ देखा और जैसे ही उसकी नज़र अपनी चूत पर झुके अपने पति पर पड़ी तो वो हक्की बक्की सी रह गई। होश तब आया उसे जब वागले ने उसकी चूत को चूम लिया था। सावित्री को ज़बरदस्त झटका लगा। वो एकदम से उछल कर बेड पर बैठ गई। उधर उसके इस तरह बैठते ही वागले चौंक पड़ा था। उसने फ़ौरन ही पलट कर उसकी तरफ देखा।

"छी...! ये क्या किया आपने?" सावित्री ने आश्चर्य मिश्रित भाव के साथ साथ बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"ऐसा कैसे कर सकते हैं आप?"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा तो सावित्री ने आँखें फैलाते हुए कहा____"हे भगवान! क्या आपके ऐसा करने से मुझे अच्छा लगेगा? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि आपने ऐसा किया है। सच सच बताइए, ऐसा क्यों किया आपने? क्या आपको ज़रा भी उस गन्दी जगह पर अपना मुँह रखने पर घिन नहीं आई?"

"मेरे मन ने कहा कि वैसा करूं।" वागले ने मानो भोलेपन से कहा____"इस लिए कर दिया। हालांकि कुछ पलों के लिए मन ज़रूर मचला था लेकिन मैं भी देखना चाहता था कि उस जगह पर मुँह रखने से या उस जगह को चूमने से कैसा लगता है?"

"हे भगवान! पता नहीं आज कल आपको क्या हो गया है।" सावित्री ने अपनी नाइटी को फिर से पहनते हुए कहा____"अभी तक तो मैं यही समझ रही थी कि शायद आपको वो सब करने का बहुत मन करता होगा इस लिए आपने मुझे ज़ोर दिया था, पर अभी जो आपने किया उससे मैं समझ गई हूं कि कुछ तो हुआ है आपके साथ। भगवान के लिए बताइए मुझे कि आज कल ये क्या हो गया है आपको?"

"तुम बेवजह ही इतना ज़्यादा सोच रही हो भाग्यवान।" वागले ने कहा____"ऐसी कोई भी बात नहीं है। असल में मैंने ये सब कहीं पढ़ा था इस लिए आज अचानक ही जब मुझे याद आया तो मैंने सोचा एक बार मैं भी वैसा कर के देखता हूं कि कैसा लगता है।"

"आज से पहले तो कभी आपको ये सब याद नहीं आया था।" सावित्री ने शक भरी नज़रों से वागले की तरफ देखते हुए कहा____"फिर आज ही ये अचानक से आपको कैसे याद आ गया? मुझे सच सच बताइए कि असल बात क्या है। अगर नहीं बताएँगे तो सोच लीजिए मैं आपको हमारे बच्चों की कसम दे दूंगी।"

"अब ये क्या बात हुई यार?" वागले मन ही मन घबरा तो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में कठोरता से कहा____"तुमने खुद कहा था कि तुम मुझे किसी भी बात के लिए नहीं रोकोगी। फिर अब क्यों रोक रही हो और क्यों इस तरह बच्चों की कसम देने की बात कर रही हो? अगर तुम्हें यही सब करना था तो उस वक़्त क्यों मुझे झूठा अस्वाशन दिया था?"

वागले की बात सुन कर एकदम से सावित्री को अपनी बात याद आई तो वो एकदम से चुप हो गई। उधर वागले झूठा गुस्सा दिखाते हुए बेड से उतरा और कमरे से बाहर चला गया। वागले के इस तरह जाते ही सावित्री ये सोच कर घबरा गई कि कहीं उसका पति फिर से उससे नाराज़ न हो जाए इस लिए वो भी तेज़ी से कमरे से निकल कर वागले के पीछे लपकी। उसे अब ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने ऐसी बातें अपने पति से की ही क्यों जिसकी वजह से उसका पति उससे फिर से नाराज़ हो जाए?

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C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 07-08-2021, 12:39 PM



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