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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#13
अध्याय - 08
_________________




माया बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए मेरा लंड सहलाए जा रही थी और मैं आँखें बंद कर के ये सोचने लगा था कि साला समय भी क्या चीज़ है जिसके बारे में कोई भी इंसान ये नहीं कह सकता कि कब क्या हो जाए? मैंने तो इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि मेरे जीवन में कभी ऐसा भी वक़्त आएगा जब एक खूबसूरत लड़की मेरे लंड को इस तरह से अपने हाथ में ले कर सहलाएगी और मुझे मज़े के सातवें आसमान में पहुंचा देगी। एक वक़्त था जब मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात करने में भी शर्माता था और आज ये वक़्त है कि वही लड़की ज़ात मुझे सेक्स का ज्ञान दे रही थी और मैं बिना शर्माए उससे अपना लंड सहलवाते जा रहा था।

मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकी निकल गई। माया ने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया था और अब वो उसका चोपा लगा रही थी। उसने मेरे लंड को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया था और मेरे लंड के टोपे को इस तरह से चूसे जा रही थी कि पूरे कमरे में दो तरह की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। एक तो मेरी सिसकारियों की और एक उसके चोपा लगाने की। मैं एक पल में ही मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी हो रही थी। मेरे मुँह से तेज़ तेज़ आहें और सिसकारियां निकल रहीं थी और मैं बेड पर पड़ा जैसे छटपटाने सा लगा था।

मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैंने जल्दी से हाथ बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड से हटाने के लिए ज़ोर लगाया तो माया ने अपने मुँह से मेरे लंड को निकाल दिया और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा।

"क्या हुआ डियर?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा____"क्या तुम्हें मेरे ऐसा करने से मज़ा नहीं आ रहा?"
"अ..ऐसी बात नहीं है।" मैंने अपनी साँसों को और ख़ुद की हालत को काबू करते हुए कहा_____"मज़ा तो मुझे इतना आ रहा है कि मैं उसके बारे में बता ही नहीं सकता लेकिन मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या आज सारा दिन हम यही करते रहेंगे? मेरा मतलब है कि क्या हम इसके आगे नहीं बढ़ेंगे?"

"बिल्कुल बढ़ेंगे डियर।" माया ने उसी मुस्कान के साथ कहा_____"मैं तो बस तुम्हें मज़ा देने के लिए तुम्हारे इस हलब्बी लंड को मुँह में ले कर चूस रही थी। अगर तुम्हारा मन इससे आगे बढ़ने का है तो ठीक है, चलो वही करते हैं।"

माया ने ये कहा तो मैंने खुश हो कर हां में सिर हिला दिया। असल में मैं अब सच में यही चाहता था कि अब मैं वो करूं जो हर लड़के की ख़्वाहिश होती है, यानी किसी लड़की की चूत में अपना लंड डाल कर उसे हचक हचक के चोदना। हालांकि मेरे लिए ये सब एक नया अनुभव था और मुझे इसमें बेहद मज़ा भी आ रहा था लेकिन अब ये सब मुझे ऊबता सा लगने लगा था। अब तो मुझे यही लग रहा था कि कितना जल्दी मैं इस माया की चूत में अपने लंड को डाल दूं और उसके ऊपर सवार हो कर उसकी धुआंधार चुदाई शुरू कर दूं।

"एक बात हमेशा याद रखना डियर।" माया मेरी तरफ आते हुए बोली_____"और वो ये कि तुम जिस फील्ड के लिए आए हो उसमें तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि औरत के मन का करना होगा। औरत जिस तरह से चाहेगी तुम्हें उस तरह से उसे खुश करना होगा। औरत के खुश होने पर या संतुष्ट होने पर ही ये माना जाएगा कि तुम अपनी सर्विस देने में कामयाब हुए हो। अगर तुम्हारी वजह से कोई औरत खुश न हुई और उसने शिकायत का कोई पैग़ाम भेज दिया तो समझो कि इसके लिए तुम्हें संस्था द्वारा सज़ा भी दी जाएगी।"

"य..ये क्या कह रही हो तुम?" मैं माया की ये बातें सुन कर बुरी तरह हैरान हो गया था।
"यही सच है डियर।" माया मुझसे सट कर बैठते हुए बोली____"हालाँकि हम लोग ये बातें किसी को भी नहीं बताते लेकिन क्योंकि तुम ख़ास हो इस लिए मैंने तुम्हें बता दिया है और हां इस बात का ज़िक्र तुम संस्था में किसी से भी मत करना वरना इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"क्या ये भी संस्था का कोई नियम है?"
"शायद अभी तुम्हें संस्था के सारे नियम कानून नहीं बताये गए हैं।" माया ने कहा_____"वरना मेरी बात सुन कर तुम इस तरह हैरान नहीं होते। ख़ैर कोई बात नहीं, जल्द ही तुम्हें सारे नियम कानून पता चल जाएंगे। चलो अब छोड़ो ये बातें और अपनी मर्ज़ी से वो करो जो तुम करना चाहते हो।"

माया इतना कह कर बेड पर सीधा लेट गई थी। उसका गोरा और मादक जिस्म ऐसा था कि मैं चाह कर भी उसके बदन से नज़र नहीं हटा सकता था। उसके सीने पर गर्व से तने हुए बड़े बड़े पर्वत शिखर इतने सुडौल और सुन्दर थे कि मुझसे रहा न गया। मैंने झुक कर फ़ौरन ही उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भर लिया। अपने दूसरे हाथ से मैंने माया की दूसरी चूची को मसलना शुरू कर दिया। एक हाथ से मैं उसके पेट और नाभि को सहलाने लगा। माया के जिस्म में इसका असर हुआ तो उसने मेरे सिर पर अपना एक हाथ रख लिया जबकि दूसरे हाथ से उसने बेड की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

माया की चूचियों को चूमते हुए मैं जल्दी ही नीचे आया और उसकी रस से भरी चूत को कुछ पल देखने के बाद मैंने उस पर अपना मुँह रख दिया। अपनी जीभ निकाल कर मैंने उसकी चूत की फांकों के बीच नीचे से ऊपर की तरफ फेरा तो माया के जिस्म में कंपकंपी सी हुई। इधर मेरे मुँह में उसकी चूत के रस का खटमिट्ठा स्वाद भर गया। मैंने अपने एक हाथ की दो उंगलियों से उसकी चूत की फांकों को फैलाया तो मुझे उसके अंदर सुर्ख रंग का लिसलिसा सा मंज़र नज़र आया। मेरे बदन में एक झुरझुरी सी हुई और मैंने अपनी एक ऊँगली उसके छेंद पर डाल दिया जिससे माया के जिस्म में फिर से कंपकंपी हुई। उसकी चूत में एक ऊँगली डालने के बाद मैंने उसे यूं ही अंदर घुमाया। मेरी पूरी ऊँगली उसके कामरस से भींग गई थी। मैंने ऊँगली निकाल कर देखा और उसे मुँह में भर लिया। कामरस के स्वाद से बड़ा अजीब सा एहसास हुआ मुझे। मेरा मन किया कि मैं माया की चूत को खा ही जाऊं लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था।

मैं अब और बरदास्त नहीं कर सकता था इस लिए मैं उठा और माया की दोनों टांगों को फैला कर उसके बीच में आ गया। मेरा लंड इतना कठोर हो गया था कि अब मुझे उसमें दर्द सा होने लगा था। मेरे पास किताबी ज्ञान था जिसके सहारे मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से माया की चूत की फांकों को फैला कर अपने लंड को उसके छेंद के पास टिकाया। मेरी धड़कनें इस वक़्त काफी तेज़ी से चल रहीं थी और इस वक़्त मैं अजीब ही हालत में पहुंच गया था। चूत के छेंद पर लंड के टोपे को टिका कर मैंने अपनी कमर को आगे की तरफ हल्के से ढकेला तो मेरा हाथ माया की चूत से छूट गया जिससे मेरा लंड भी फिसल गया। मैंने चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे अपनी तरफ ही मुस्कुराते हुए देखता पाया। उसे इस तरह मुस्कुराते देख मुझे शर्म सी महसूस हुई और मैंने फ़ौरन ही उसकी तरफ से नज़रें हटा ली।

मैंने फिर से अपने लंड को माया की चूत के छेंद पर अच्छे से टिकाया और इस बार ज़रा सावधानी से अपनी कमर को आगे की तरफ ढकेला तो मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुस गया। टोपा घुसते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और मैंने फिर से नज़र उठा कर माया की तरफ देखा। इस बार उसे मुस्कुराता देख मुझे शर्म नहीं महसूस हुई बल्कि ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत बड़ी फ़तह हासिल कर ली हो। खै़र मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुसा तो मैंने अपने लंड से अपना हाथ हटा लिया और माया की दोनों जाँघों को पकड़ कर अपनी कमर को और भी आगे की तरफ धकेला तो मेरा लंड फिर से उसकी चूत में अंदर की तरफ घुसा। मैंने महसूस किया कि माया की चूत अंदर से बेहद गरम है और उसने चारो तरफ से मेरे लंड को जकड़ लिया है।

तीन चार बार में मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को आधे से ज़्यादा माया की चूत में उतार दिया था। माया के मुख से हर बार सिसकी निकल जाती थी। जब मेरा लंड आधा उसकी चूत में उतर गया तो माया ने मुझे धीरे धीरे धक्का लगाने को कहा तो मैं अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। गीली और गरम चूत पर मेरा लंड बहुत ज़्यादा तो नहीं लेकिन कसा हुआ ज़रूर लग रहा था और जैसे जैसे मैं उसे अंदर बाहर कर रहा था वैसे वैसे मुझे मज़ा आ रहा था। देखते ही देखते मज़े में आ कर मैंने तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने महसूस किया कि अब ये मेरे लिए मुश्किल काम नहीं है और शायद यही वजह थी कि मेरे धक्कों की रफ़्तार पहले की अपेक्षा तेज़ हो गई थी। माया की मांसल जाँघों को पकड़े मैं तेज़ तेज़ धक्के लगाए जा रहा था। हर धक्के के साथ मेरा लंड और भी गहराई में उतरता जा रहा था जिसकी वजह से माया के मुँह से सिसकारियों के साथ साथ अब आहें भी निकलने लगीं थी।

किसी लड़की के साथ चुदाई करने में सच में इतना मज़ा आता है ये मुझे अब पता चल रहा था। मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं थी। मैं आनंद में अपने होश खोता जा रहा था और धीरे धीरे मुझमें एक जूनून सा सवार होता जा रहा था। उसी जूनून के तहत मैं और भी तेज़ी से माया की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करता जा रहा था। मैंने नज़र उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे मज़े में अपनी आँखें बंद किए पाया। उसकी बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां मेरे हर धक्के पर उछल पड़ती थीं। चूचियों का उछलना देख कर मुझे और भी ज़्यादा जोश चढ़ गया और मैं और भी तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

पूरे कमरे में माया की मज़े में डूबी आहें और सिसकारियां गूँज रहीं थी। बीच बीच में वो ये भी बोलती जा रही थी कि हां डियर ऐसे ही, बहुत मज़ा आ रहा है। उसके ऐसा कहने पर मैं दोगुने जोश में धक्के लगाने लगता। मैं ख़ुद भी बुरी तरह हांफने लगा था लेकिन मज़ा इतना आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। काफी देर तक यही आलम रहा। उसके बाद माया ने मुझे रुकने को कहा तो मैं रुक गया। मुझे उसका यूं रोकना अच्छा तो नहीं लगा था लेकिन जब मैंने उसे घोड़ी बनते हुए देखा तो मुझे किताब में बने चित्र की याद आई और मैं मुस्कुरा उठा। घोड़ी बनते ही माया ने मुझसे कहा कि मैं पीछे से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई करूं तो मैंने ऐसा ही किया। मेरे मोटे लंड की वजह से उसकी चूत का छेंद खुला हुआ साफ़ दिख रहा था जिसकी वजह से मुझे उसके छेंद पर अपना लंड डालने में कोई परेशानी नहीं हुई।

माया घोड़ी बनी हुई थी और मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। काफी देर तक मैं ऐसे ही धक्के लगाता रहा। माया जब थक गई तो उसने फिर से मुझे रुकने को कहा।

"तुम सच में कमाल हो डियर।" माया ने सीधा हो कर लेटते हुए कहा_____"मैंने ऐसा मर्द नहीं देखा जिसका पहली बार में इतना गज़ब का स्टेमिना हो। काश तुम हमेशा के लिए मेरे पास ही रहते।"

"तुम एक ऐसी लड़की हो माया।" मैंने माया को उसके नाम से सम्बोधित करते हुए कहा____"जिसने मुझे जीवन में पहली बार सेक्स का इतना सुख दिया है। इस लिए तुम्हारे लिए मेरे दिल में हमेशा एक ख़ास जगह रहेगी। अगर तुम्हें संभव लगे तो मुझे ज़रूर याद करना। मैं जहां भी रहूंगा तुम्हारे पास ज़रूर आऊंगा।"

"यही तो मुश्किल है डियर।" माया ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा_____"यहाँ से जाने के बाद कोई भी मर्द हमारे पास वापस नहीं आता और ना ही हमने कभी उन्हें बुलाने की कोशिश की। ऐसा नहीं है कि हमें कभी उन मर्दों की याद नहीं आती लेकिन नियम कानून के डर से हमने कभी भी उन्हें बुलाने का नहीं सोचा। दूसरी बात ये भी थी कि उनसे सम्बन्ध स्थापित करने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। ख़ैर छोड़ो ये सब बातें और इस असीम सुख का आनंद लो। जब तक यहाँ हो तब तक तो तुम हमारे ही रहोगे न।"

माया की इस बात ने मेरा दिल खुश कर दिया था। मैंने उसके होठों को प्यार से चूम लिया और एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई का कार्यक्रम शुरू कर दिया। इस बार मैंने पहले से भी ज़्यादा जोश में आ कर माया की हचक हचक कर चुदाई की थी। माया इस बार ज़्यादा देर तक ठहर नहीं पाई और झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। झड़ते वक़्त उसने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी कमर को जकड़ लिया था। जब वो झड़ कर शांत हो गई तो मैंने फिर से धक्के तेज़ कर दिए। क़रीब पांच मिनट बाद ही मुझे लगने लगा कि अब मैं भी झड़ने की कगार पर आ गया हूं। मेरे मुँह से निकलती सिसकारियों से ही माया को पता चल गया कि मैं झड़ने वाला हूं इस लिए उसने फ़ौरन ही मुझे अपनी चूत से मेरा लंड निकालने को कहा तो मैंने न चाहते हुए भी अपना लंड निकाल लिया।

मैंने लंड निकाला तो माया जल्दी से उठी और मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया। मैं इस वक़्त बेहद आनंद और जोश में था इस लिए जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भरा तो मैंने उसके सिर को पकड़ कर उसके मुख को ही चोदना शुरू कर दिया। जल्दी ही मैं मज़े की चरम सीमा पर पंहुच गया और फिर एक लम्बी आह भरते हुए मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया। मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरने लगा। मुझे कोई होश नहीं था कि मैंने कितने झटके खाए और मेरे लंड का सारा पानी कहां गया। चौंका तब जब माया ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया। उसके धक्के से मैं बेड पर भरभरा कर गिर गया। उधर माया का मुँह मेरे लंड से निकले कामरस से लबालब भरा हुआ था और उसके मुख से बाहर भी निकल कर बेड पर गिरता जा रहा था। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ा हुआ था। आँखें बंद करते वक़्त मुझे एहसास हुआ कि शायद एक बार फिर से मैंने माया की हालत ख़राब कर दी थी जिसके लिए मुझे बेहद अफ़सोस और शर्मिंदगी हुई।

☆☆☆

शिवकांत वागले ने फ़ौरन ही डायरी को बंद कर दिया और लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए कुर्सी की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका लिया। इस वक़्त उसकी हालत बड़ी अजीब सी दिख रही थी। चेहरे पर पसीना उभरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर का तापमान इस वक़्त बढ़ गया था। हालांकि सच तो यही था कि उसके अंदर का तापमान बढ़ चुका था। विक्रम सिंह की डायरी में उसकी गरमा गरम कहानी पढ़ कर उसकी ख़ुद की हालत ख़राब हो गई थी। दो दो जवान बच्चों का बाप होते हुए भी वागले अपने अंदर सेक्स की गर्मी महसूस कर रहा था। कहानी में तो विक्रम सिंह और माया चरम सीमा में पहुंच कर तथा आनंद को प्राप्त कर के शांत पड़ गए थे लेकिन यहाँ वागले का हाल बेहाल सा नज़र आ रहा था। उसका अपना लंड पैंट के अंदर अकड़ा हुआ था।

वागले ने अपनी मौजूदा हालत को ठीक करने के लिए आँखें बंद कर ली किन्तु आँखें बंद करते ही उसकी बंद पलकों के तले कहानी के वो सारे मंज़र एक एक कर के दिखने लगे जिन्हें अभी उसने पढ़ा था। वागले ने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोली और केबिन में इधर उधर देखने के बाद उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास को उठा कर पानी पिया। माथे पर उभर आए पसीने को उसने रुमाल से पोंछा और फिर अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट जला ली। सिगरेट के लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआँ हवा में उड़ाया। न चाहते हुए भी बार बार उसकी आँखों के सामने कहानी में लिखा एक एक मंज़र घूमने लगता था। वागले सोचने लगा कि विक्रम सिंह जैसा इंसान एक डायरी में अपनी इस तरह की आप बीती कैसे लिख सकता है जबकि उसे ख़ुद इस बात का एहसास हो कि अगर उसका लिखा हुआ किसी ने पढ़ लिया तो उसके बारे में क्या सोचेगा?

शिवकांत वागले को समझ में नहीं आ रहा था कि अगर विक्रम सिंह को उसे अपने अतीत के बारे में ही बताना था तो वो दूसरे तरीके से लिख कर भी बता सकता था लेकिन इस तरह सेक्स से भरी कहानी लिखने का क्या मतलब था उसका? आख़िर उसके ज़हन में इस तरह से अपनी आप बीती लिखने की मूर्खता क्यों आई होगी? वागले को याद आया कि जिस दिन विक्रम सिंह ने उसे ये डायरी दी थी उस दिन उसने जाते समय उससे ये भी कहा था कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें लेकिन वो उसे खोजने की कभी कोशिश न करे। वागले को समझ न आया कि आख़िर विक्रम सिंह ने उससे ऐसा क्यों कहा होगा? क्या इसके पीछे भी कोई ऐसी बात हो सकती है जिसके बारे में फिलहाल वो सोच नहीं पा रहा है?

शिवकांत वागले की बेचैनी जब सिगरेट पीने के बाद भी शांत न हुई तो वो कुर्सी से उठ कर जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। इसके पहले वो डायरी को ब्रीफ़केस में डालना नहीं भूला था। शाम तक वागले जेल में ही इधर उधर चक्कर लगाता रहा और दूसरे कुछ ख़ास कै़दियों से मिलता जुलता रहा। उसके बाद वो ब्रीफ़केस ले कर अपने सरकारी आवास की तरफ निकल गया।

घर पर आया तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। वागले ने एक नज़र सावित्री पर डाली और फिर बिना कुछ बोले ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसका बेटा चंद्रकांत और बेटी सुप्रिया शायद घर पर नहीं थी वरना इस वक़्त वो वागले को ड्राइंग रूम में ज़रूर दिख जाते। ख़ैर वागले ने कमरे में जा कर अपनी वर्दी उतारी और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया।

इधर सावित्री किचेन में उसके लिए चाय बनाने लगी थी और सोचती भी जा रही थी कि क्या उसका पति सच में उससे नाराज़ है या फिर ये उसका वहम है? हालांकि जब उसने दरवाज़ा खोला था तो वागले ने उससे कोई बात नहीं की थी और इसी बात से सावित्री को लगने लगा था कि उसका पति शायद सच में ही उससे नाराज़ है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो अपने पति से किस तरह बात करे?

नहा धो कर और पजामा कुर्ता पहन कर वागले कमरे से निकला और घर से बाहर लान में एक तऱफ रखी कुर्सी पर बैठ गया। सावित्री उसी के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही वो बाहर गया तो सावित्री भी ट्रे में दो कप चाय ले कर बाहर निकल गई। लान में वागले के पास आ कर उसने ट्रे को अपने पति के सामने किया तो वागले ने बिना कुछ बोले चुपचाप ट्रे से चाय का कप उठा लिया। सावित्री ने ट्रे से अपना कप ले कर ट्रे को वही सेंटर टेबल पर रख दिया और उस पार रखी एक कुर्सी पर बैठ गई।

शिवकांत वागले ने जब सावित्री को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठते देखा तो वो अपनी कुर्सी से उठ गया। सावित्री ये देख कर चौंकी और उसने वागले की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा_____"कहां जा रहे हैं? अब क्या मेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहते हैं?"

वागले ने सावित्री की इस बात को सुन कर एक नज़र उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चला गया। पति के इस तरह चले जाने से सावित्री को बहुत बुरा लगा। आज सारा दिन वो यही सब सोच कर उदास रही थी और इस वक़्त पति का ऐसा बर्ताव देख कर उसका गला भर आया था। हालांकि वो जानती थी कि दोष उसी का है। माना कि उसके दो दो जवाब बच्चे थे लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता था न कि बच्चों के जवान हो जाने की वजह से उनका अपना कोई निजी जीवन ही नहीं रहा या अपनी कोई हसरतें ही नहीं रहीं? सावित्री जानती थी कि वागले कभी इस तरह उसे सेक्स के लिए नहीं कहता था बल्कि वो तभी कहता था जब कभी ख़ुद उसका मन होता था वरना दोनों के बीच अब सेक्स न के बराबर ही होता था। सावित्री तो कभी भी इसके लिए पहल नहीं करती थी और वागले अगर पहल करता था तो सावित्री हमेशा ही उसे जवाब में बच्चों का हवाला दे कर इसके लिए मना कर देती थी। इसके पहले वागले कभी भी इस तरह उससे नाराज़ नहीं हुआ था किन्तु इस बार शायद सावित्री ने सच में उसका दिल दुख दिया था।

सावित्री की आँखों में आंसू तो आए लेकिन कुर्सी से उठ कर वागले के पीछे जाने की उसमें हिम्मत न हुई। किसी तरह उसने चाय ख़त्म की और फिर अंदर जा कर रात के लिए खाना बनाने में लग गई। उधर वागले दूसरे कपड़े पहन कर घर से बाहर कहीं निकल गया।

रात में वागले उस वक़्त आया जब खाना खाने का वक़्त हो गया था। खाना खाने के बाद वो कमरे में गया और पैंट की जगह पजामा पहन कर बाहर आया। ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर वो बैठ गया और टीवी चला कर उसमें न्यूज़ देखने लगा। न्यूज़ देखने में वो इतना खो गया कि उसे वक़्त का पता ही नहीं चला और शायद आगे भी उसे पता न चलता अगर सावित्री आ कर स्विच बोर्ड से टीवी का बटन न बंद कर देती।

"सोने का वक़्त हो गया है।" सावित्री ने शांत भाव से कहा_____"कमरे में चलिए। मैंने दूध का गिलास वहीं स्टूल में रख दिया है।"
"ज़रुरत नहीं है।" वागले ने रूखे भाव से कहा____"मैं यहीं सोऊंगा।"

"अब भला ये क्या बात हुई?" सावित्री ने कातर भाव से वागले की तरफ देखा तो वागले ने सपाट लहजे में कहा____"बात कुछ नहीं हुई। मुझे यहीं पर सोना है। तुम जाओ और सो जाओ।"
"पहले तो कभी आप यहाँ नहीं सोए।" सावित्री ने कहा____"फिर आज क्यों यहाँ पर सोने को कह रहे हैं?"

"क्योंकि यही पर मेरा सोने का मन है।" वागले ने कहा____"अब जाओ यहाँ से।"
"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए?" सावित्री ने इस बार थोड़ा दुखी भाव से कहा____"बच्चे पास में ही अपने कमरे में है। अगर उन्होंने सुन लिया कि आप यहाँ सोने की बात कह रहे हैं तो वो क्या सोचेंगे?"

"तो क्यों सुना रही हो उन्हें?" वागले ने उखड़े हुए भाव से कहा____"जब मैंने कह दिया कि मुझे यहीं पर सोना है तो क्यों मुझे कमरे में सोने को कह रही हो? अब जाओ यहाँ से या फिर अगर चाहती हो कि बच्चे सुन ही लें तो ऐसे ही लगी रहो। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।"

"मैं मानती हूं कि मुझसे ग़लती हुई है।" सावित्री की आँखों में आंसू भर आए____"इस लिए मैं अपनी ग़लती को स्वीकार करती हूं और अब से वही करुँगी जो आप चाहेंगे। अब भगवान के लिए गुस्सा थूक दीजिए और कमरे में चलिए।"

"तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुमसे उस वजह से गुस्सा हूं?" वागले ने कहा____"नहीं, तुम ग़लत सोच रही हो। तुम्हारी इच्छाएं मर गई हैं तो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है बल्कि दोष तो मेरा है जिसे अभी तक तृष्णा ने अपना शिकार बना रखा है, लेकिन तुम फ़िक्र मत करो। मैं अपनी ज़रूरत कहीं और से पूरी कर लूंगा। आज की दुनियां में पैसे से सब कुछ मिल जाता है।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए____"इतनी सी बात के लिए आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं?"
"क्यों नहीं सोच सकता?" वागले ने दो टूक भाव से कहा_____"मेरी ज़िन्दगी है, मैं जैसा चाहूं सोच सकता हूं। इसमें तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। जिस तरह तुम अपनी सोच के अनुसार जीवन जी रही हो उसी तरह हर इंसान को अपनी सोच के अनुसार जीवन जीने का हक़ है।"

"मैं कह तो रही हूं कि अब से जो आप कहेंगे मैं वही करुंगी।" सावित्री ने बेचैनी से कहा_____"फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप?"
"मुझे अब तुमसे कुछ नहीं चाहिए।" वागले ने स्पष्ट रूप से कहा____"अब जाओ यहाँ से, मेरा दिमाग़ मत ख़राब करो।"

"क्या हुआ पापा?" तभी ड्राइंग रूम में चंद्रकांत की आवाज़ गूँजी तो सावित्री ने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा। पीछे कमरे के दरवाज़े पर चंद्रकांत खड़ा था। अपने बेटे को देख कर और उसकी बात सुन कर जहां सावित्री ये सोच कर बुरी तरह घबरा गई कि कहीं उसके बेटे ने सारी बातें तो नहीं सुन ली तो वहीं वागले पर जैसे अपने बेटे की इस आवाज़ से कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

"कुछ नहीं बेटा।" वागले ने उसकी तरफ देखते हुए सामान्य भाव से कहा_____"वो हम ऐसे ही इधर उधर की बातें कर रहे थे। तुम जाओ अपने कमरे में, और आराम से सो जाओ।"
"जी पापा।" चंद्रकांत ने बड़े अदब से कहा और वापस अपने कमरे में जा कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

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Messages In This Thread
C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 04-08-2021, 06:22 PM



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