03-08-2021, 09:39 PM
भाभी के उछलते मम्मे मेरे को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे… मगर मेरा ईमान मुझे रोके था…
मेरे इच्छा और भी देखने की होने लगी…
मैं सोचने लगा कि काश उनके गद्देदार चूतड़ भी दिख जायें… और यहाँ भी भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि अंकल अभी वापस ना आएं…
और शायद भगवान ने मेरी सुन ली…
भाभी तौलिये को वहीं स्टूल पर रख, एक कोने पर रखे ड्रेसिंग टेबल की ओर जाने लगीं और जाते हुए ही उन्होंने अपना पेटीकोट चूतड़ों से नीचे सरकाते हुए पूरा निकाल दिया…
उनकी पीठ मेरी ओर थी… पीछे से पूरी नंगी नलिनी भाभी मुझे जानमारू लग रही थी…
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
उनकी नंगी गोरी पीठ और विशाल गोल उठे हुए चूतड़… गजब का नज़ारा पेश कर रहे थे…
उनके दोनों चूतड़ आपस में इस कदर चिपके थे कि जरा सा भी गैप नहीं दिख रहा था…
फिर भाभी दर्पण के सामने खड़ी हो अपने बाल कंघे से सही करने लगी…
मुझे दर्पण का जरा भी हिस्सा नहीं दिख रहा था… मैं दर्पण से ही उनके आगे का भाग या यूँ कहो कि उनकी चूत को देखना चाह रहा था…
मगर मेरी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी…
भाभी ने वहीं टेबल से उठा अपनी कच्छी पहन ली और फिर ब्रा भी…
फिर वो घूम कर जैसे ही आगे बढ़ी…
उनकी नजर मुझ पर पड़ी…
भाभी ने ‘हाय राम !’ कहते हुए तौलिये को उठा कर खुद को आगे से ढक लिया।
मैं ‘सॉरी’ बोल कर उनको सामान देकर वापस आ गया।
उस दिन के इस वाकिये का कभी कोई जिक्र नहीं हुआ था…
बस सलोनी ने ही एक बार कुछ कहा था जिसका मेरे से कोई मतलब नहीं था…
हाँ तो आज फिर दरवाजा खुला देख मैं अंदर चला गया…
आज मेरे पास कोई बहाना नहीं था, ना ही मैं उनको कुछ देने आया था मगर मेरी हिम्मत इतनी हो गई थी कि आज अगर भाभी वैसे मिली तो चाहे जो हो…
आज तो पकड़ कर अपना लण्ड पीछे से उनके चूतड़ों में डाल ही दूंगा…
यही सोचते हुए मैं अंदर घुसा… बाहर कोई नहीं था… इसका मतलब भाभी अंदर वाले कमरे में ही थी…
और मैंने चुपके से अंदर वाले कमरे में झाँका…
मेरे इच्छा और भी देखने की होने लगी…
मैं सोचने लगा कि काश उनके गद्देदार चूतड़ भी दिख जायें… और यहाँ भी भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि अंकल अभी वापस ना आएं…
और शायद भगवान ने मेरी सुन ली…
भाभी तौलिये को वहीं स्टूल पर रख, एक कोने पर रखे ड्रेसिंग टेबल की ओर जाने लगीं और जाते हुए ही उन्होंने अपना पेटीकोट चूतड़ों से नीचे सरकाते हुए पूरा निकाल दिया…
उनकी पीठ मेरी ओर थी… पीछे से पूरी नंगी नलिनी भाभी मुझे जानमारू लग रही थी…
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उनकी नंगी गोरी पीठ और विशाल गोल उठे हुए चूतड़… गजब का नज़ारा पेश कर रहे थे…
उनके दोनों चूतड़ आपस में इस कदर चिपके थे कि जरा सा भी गैप नहीं दिख रहा था…
फिर भाभी दर्पण के सामने खड़ी हो अपने बाल कंघे से सही करने लगी…
मुझे दर्पण का जरा भी हिस्सा नहीं दिख रहा था… मैं दर्पण से ही उनके आगे का भाग या यूँ कहो कि उनकी चूत को देखना चाह रहा था…
मगर मेरी किस्मत इतनी अच्छी नहीं थी…
भाभी ने वहीं टेबल से उठा अपनी कच्छी पहन ली और फिर ब्रा भी…
फिर वो घूम कर जैसे ही आगे बढ़ी…
उनकी नजर मुझ पर पड़ी…
भाभी ने ‘हाय राम !’ कहते हुए तौलिये को उठा कर खुद को आगे से ढक लिया।
मैं ‘सॉरी’ बोल कर उनको सामान देकर वापस आ गया।
उस दिन के इस वाकिये का कभी कोई जिक्र नहीं हुआ था…
बस सलोनी ने ही एक बार कुछ कहा था जिसका मेरे से कोई मतलब नहीं था…
हाँ तो आज फिर दरवाजा खुला देख मैं अंदर चला गया…
आज मेरे पास कोई बहाना नहीं था, ना ही मैं उनको कुछ देने आया था मगर मेरी हिम्मत इतनी हो गई थी कि आज अगर भाभी वैसे मिली तो चाहे जो हो…
आज तो पकड़ कर अपना लण्ड पीछे से उनके चूतड़ों में डाल ही दूंगा…
यही सोचते हुए मैं अंदर घुसा… बाहर कोई नहीं था… इसका मतलब भाभी अंदर वाले कमरे में ही थी…
और मैंने चुपके से अंदर वाले कमरे में झाँका…