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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#11
अध्याय - 07
__________________


अब तक,,,,,

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

अब आगे,,,,,


"चलो अब शुरू करो।" बेड पर मेरे एकदम पास बैठते ही माया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मेरे दिल की धड़कनें पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि उसने किस चीज़ को शुरू करने को कहा था किन्तु मेरे लिए ये सब शुरू करना अगर इतना ही आसान होता तो मैं यहाँ इस हाल में होता ही क्यों?

"क्या हुआ? तुम शुरू क्यों नहीं कर रहे?" मुझे कुछ न करते देख माया ने फिर से कहा_____"देखो डियर, तुम यहाँ सेक्स की ट्रेनिंग लेने आए हो और तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है कि तुम्हें जिसके साथ सेक्स करने की ट्रेनिंग लेनी है वो तुम्हारा पूरा साथ देगी। यूं समझो कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मेरे साथ कर सकते हो। मैं तुम्हें किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करुंगी। दुनियां में बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिनके नसीब में इतना अच्छा मौका मिलता है। अगर तुम इसी तरह सेक्स के नाम पर शर्म करोगे तो फिर कैसे तुम किसी औरत के साथ सेक्स कर पाओगे और कैसे उसे संतुष्ट कर पाओगे? एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी तो क्या तुम अपनी बीवी के साथ भी सेक्स नहीं करोगे? ऐसे में तो लोग तुम्हें नपुंसक और हिंजड़ा कहेंगे। वो ये भी कहेंगे कि तुम मर्द नहीं बल्कि गांडू हो जो किसी औरत के साथ सेक्स ही नहीं कर सकता बल्कि दूसरे मर्दों से खुद अपनी ही गांड मरवाता है। क्या तुम सच में गांडू बनना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं एकदम से बौखलाते हुए बोल पड़ा_____"मैं ऐसा नहीं बनना चाहता।"
"तो फिर मर्द बनो डियर।" माया ने मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा_____"भगवान की कृपा से तुम्हें इतना तगड़ा हथियार मिला है तो अब तुम भी साबित करो कि तुम एक मुकम्मल मर्द हो और अपने इस हलब्बी लंड के द्वारा किसी भी औरत की चीखें निकाल सकते हो। दुनियां की हर औरत को तुम अपने इस हलब्बी लंड की दीवानी बना दो। जब ऐसा हो जाएगा तो देखना दुनियां की हर औरत ख़ुद ही अपना सब कुछ तुम्हें देने को तैयार रहेगी।"

माया के द्वारा खुल कर कही गई इन बातों ने मेरे अंदर एक जोश सा भर दिया था और मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वो सच कह रही थी। यानी सच में मुझे ईश्वर ने एक ऐसा लंड दिया था जिसके बलबूते पर मैं किसी भी औरत की चीखें निकाल सकता था। ऐसे हलब्बी लंड के होते हुए भी अगर मैं मुकम्मल मर्द न बन सका तो फिर ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात ही होगी। इस ख़याल के साथ ही मैंने एक गहरी सांस ली और मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे मुकम्मल मर्द बनना है। मुझे अपने अंदर से इस शर्मो हया को निकाल कर दूर फेंक देना होगा।

मैंने आँखें बंद कर के दो तीन गहरी गहरी साँसें ली और फिर झटके से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। इस बार मेरे देखने का अंदाज़ पहले से काफी अलग था। मैं अपने अंदर एक निडरता महसूस करने लगा था। माया मेरे चेहरे के बदले हुए भावों को ही देख रही थी। मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं थी। कुछ पलों तक मेरी नज़रें उसके चेहरे पर ही जमी रहीं उसके बाद मेरी नज़र उसके रसीले होठों पर पड़ी। मैंने महसूस किया जैसे उसके वो रसीले होंठ मुझे इशारा करते हुए कह रहे हों कि आओ और मुझे अपने मुँह में भर कर चूस लो।

मैंने एक बार फिर से गहरी सांस ली और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर माया के चेहरे को थाम लिया। मेरे ऐसा करते ही माया के रसीले होठों पर मुस्कान थिरक उठी जिससे मेरे अंदर के जज़्बात मचल से उठे और मैंने एक पल की भी देरी न करते हुए लपक कर उसके होठों पर अपने होठों को रख दिया। यकीनन माया को मुझसे इतनी जल्दी इस सबकी उम्मीद न रही होगी लेकिन मैंने तो अब सोच लिया था कि मुझे मुकम्मल मर्द बनना है।

माया के रसीले होंठों को जैसे ही मैंने अपने होंठों से छुआ तो मेरे जिस्म में एक सुखद अनुभूति हुई। जीवन में पहली बार मैं किसी लड़की के होठों पर अपने होठ रखे हुए था। मैं बयां नहीं कर सकता था कि उस वक्त मुझे कितना अच्छा महसूस हुआ था। उसके बाद तो जैसे सब कुछ अपने आप ही होता चला गया। माया के होठों में शराब से भी ज़्यादा नशा था जिसने मुझे मदहोश करना शुरू कर दिया था। मेरे अंदर लेश मात्र भी कहीं शर्म नहीं रह गई थी बल्कि जिस्म का हर रोयां मदहोशी में ये कह उठा कि अब रुकना नहीं क्योंकि इसमें उन्हें बेहद मज़ा आने लगा है।

माया कुछ पलों तक बुत सी बनी रही और जब मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया तो जैसे उसे होश आया। उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए मेरा साथ देने लगी। उधर माया के शहद जैसे मीठे होठों को चूसने में मुझे इतना मज़ा आने लगा था कि मैं एकदम से पागलों की तरह उन्हें चूसे ही चला जा रहा था। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर जैसे सागर की लहरों की तरह हिलोरें ले रही थी।

मुझे कोई होश नहीं था कि माया के होठों को चूसते हुए मैं किस हद तक जुनूनी हो उठा था। मुझे उसके होठ इतने मीठे और लजीज़ लग रहे थे कि मैं बस उन्हें खा ही जाना चाहता था। कुछ ही पलों में मेरी साँसें मेरे काबू से बाहर होने लगीं लेकिन मैं रुका तब भी नहीं बल्कि लगा ही रहा। उधर माया की भी साँसें भारी हो चलीं थी लेकिन वो भी मुझे रोक नहीं रही थी बल्कि मेरी तरह वो भी मेरा साथ दे रही थी। हम दोनों बेड पर बैठे हुए थे और मैं इस हद तक जूनून के हवाले हो चुका था कि प्रतिपल मैं उसके ऊपर हावी होता जा रहा था जिसका नतीजा ये निकला की कुछ ही देर में मैंने माया को उसी बेड पर गिरा दिया।

माया बेड पर सीधा गिरी तो हम दोनों के होठ एक दूसरे के होठों से अलग हो गए। होठ अलग हुए तो जैसे एक तूफ़ान कुछ पलों के लिए थम सा गया। मैंने आँखें खोल कर माया की तरफ देखा तो बेड पर लेटी हुई मुझे दो दो माया नज़र आ रही थी। मैं समझ न पाया कि ये माया के होठों को चूसने से उसका नशा मुझ पर चढ़ गया था या सच में दो दो माया प्रकट हो गईं थी। मैंने नशे की खुमारी जैसे आलम में उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसकी ब्रा में कैद बड़ी बड़ी चूचियों पर पड़ी जो तेज़ चलती साँसों की वजह से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहीं थी।

माया की चूचियों ने भी जैसे मुझे मूक आमंत्रण दे दिया और मैंने भी उनके आमंत्रण को नहीं ठुकराया बल्कि आव देखा न ताव एक झटके से उन पर टूट पड़ा। माया की चूचियों पर रेशमी कपड़े की ब्रा इस तरह से बंधी हुई थी कि उसके किनारों से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर को झाँक रहीं थी। मैंने अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया। मुझे अपनी हथेलियों में ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बहुत ही मुलायम चीज़ पर मेरा हाथ पड़ गया हो जिसके एहसास ने मेरे जिस्म के हर ज़र्रे पर एक बार फिर से मज़े की लहरों को दौड़ा दिया। मैंने माया की दोनों चूचियों को मुट्ठी में भरा और ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू कर दिया जिसकी वजह से माया के मुख से सिसकियों के साथ साथ दर्द में डूबी मीठी सी कराहें निकलने लगीं।

माया ने एक बार फिर से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे चेहरे को अपनी छातियों की तरफ झुकाने लगी। उसके झुकाने से मैं समझा तो कुछ नहीं लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं उसकी चूचियों के खुले हुए हिस्से को ज़रूर चूमने और चाटने लगा था। कुछ देर उसकी चूचियों को चाटने के बाद मैंने चेहरा उठाया और उस रेशमी कपड़े की ब्रा के ऊपर से ही माया की एक चूची को मुँह में भर कर ज़ोर से काट लिया जिससे माया की घुटी घुटी सी चीख निकल गई और वो एकदम से उछल पड़ी।

"आह्ह्ह्ह इतनी ज़ोर से मत काटो डियर।" माया ने कराहते हुए कहा_____"ये तो सलीके से प्यार करने वाली चीज़ है। इन्हें जितना प्यार करोगे उतना ही हम दोनों को मज़ा आएगा। अभी प्यार वाला सेक्स करो उसके बाद अगर तुम्हारा दिल करे तो वहशीपन वाला भी कर लेना।"

माया की इन बातों का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उसकी बात मान कर उसकी चूची को काटना बंद कर दिया। उसकी बातों ने एक पल के लिए मुझे होश में ला दिया था और उस एक पल ने मुझे ये भी एहसास करा दिया था कि मुझे इस तरह किसी के कोमल अंगों को काटना नहीं चाहिए। ख़ैर मैंने अपने ज़हन से इस बात को झटका और फिर से माया की चूचियों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। मुझे माया की बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों को दबाने और मसलने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मन कर रहा था कि मैं उन्हें मसलता ही रहूं। एकाएक मुझे ख़याल आया कि मुझे माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े को हटा देना चाहिए क्योंकि अभी तक मैंने माया की चूचियों को पूरी तरह नंगा नहीं देखा था। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े वाली ब्रा को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया जिससे माया की दोनों खरबूजे जैसी चूचियां उछल कर मेरी आँखों के सामने आ ग‌ईं।

दूध की तरह गोरी चूचियों को देखते ही मुझे मेरा गला सूखता हुआ सा प्रतीत हुआ। मैंने लपक कर उसकी एक चूची के भूरे निप्पल को पूरा ही मुँह में भर लिया और उसे इस तरह से चूसना शुरू कर दिया जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी मां का दूध निचोड़ निचोड़ कर पीना शुरू कर देता है। हालांकि माया के निप्पल से दूध नहीं निकल रहा था लेकिन मैं किसी बच्चे की तरह ही चूसे जा रहा था और उधर माया भी मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरने लगी थी जैसे वो मुझे अपना बच्चा समझ कर मुझे अपना दूध पिला रही हो। काफी देर तक मैं माया की उस चूची को चूसता रहा और माया मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए सिसकारियां भरती रही उसके बाद मैंने उसकी दूसरी चूची के निप्पल को भी मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

मज़ा अथवा आनंद क्या होता है ये मैं आज महसूस कर रहा था। अपनी कल्पनाओं में मैंने न जाने कितनी ही बार अलग अलग लड़कियों को सोच कर उनके साथ न जाने क्या क्या किया था लेकिन जो मज़ा हक़ीक़त में मिल रहा था वो मेरी कल्पनाओ में तो हो ही नहीं सकता था।

"तुम तो किसी बच्चे की तरह मेरी चूचियों को पी रहे हो डियर।" माया ने मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरते हुए कहा_____"जबकी तुम्हें एक मर्द की तरह मेरे साथ पेश आना चाहिए। तुम ये मत भूलो कि तुम्हें एक मुकम्मल मर्द बनना है और हर औरत को सेक्स में संतुष्ट करना है।"

"मैं भूला नहीं हूं इस बात को।" मैंने उसकी चूची से अपना चेहरा उठा कर उससे कहा____"लेकिन इस वक़्त मैं सिर्फ वो कर रहा हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं किया था। पहले मुझे जी भर के एक लड़की के इन खूबसूरत अंगों को देखने के साथ साथ प्यार तो कर लेने दो उसके बाद मैं एक मर्द की तरह भी तुमसे पेश आऊंगा।"

"अच्छा तो ये बात है।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"चलो कोई बात नहीं। तुम पहले अपनी उन हसरतों को ही पूरा कर लो जिन्हें पूरा करने की तुमने अपने मन में ख़्वाहिश की रही होगी। मुझे इसमें कोई ऐतराज़ नहीं है।"

माया की बात सुन कर मैंने उसे शुक्रिया कहा और इस बार थोड़ा ऊपर खिसक कर मैंने फिर से उसके रसीले होठों को मुँह में भर लिया। वो कहते हैं न कि सूखी रोटियां खाने वाले को जब घी में सनी हुई गरमा गरम रोटियां मिलती हैं तो वो उन पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे दोबारा उसे वैसी रोटियां नसीब ही नहीं होंगी। मेरी हालात भी कदाचित वैसी ही थी। हालांकि सच में ऐसा नहीं था बल्कि सच तो ये था कि अब से तो मेरे नसीब में न जाने ऐसे कितने ही जिस्म मिलने वाले थे जिनके साथ मुझे मज़े भी करना था और उन जिस्मों की मालकिनों को संतुष्ट भी करना था।

माया के होठों का जाम पीने के बाद मैं फिर से नीचे आया और एक बार फिर से उसकी दोनों चूचियों को मसलते हुए उन्हें चूमने चाटने लगा। किसी भी लड़की या औरत की सुडौल चूचियां मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थीं और सबसे ज़्यादा आकर्षित भी करती थीं। मैं अक्सर ये तक सोच बैठता था कि काश इतनी खूबसूरत चूचियां मेरे सीने में भी होतीं तो मैं दिन रात उन्हें अपने हाथों में ले कर सहलाता रहता।

कुछ देर मैंने माया की दोनों चूचियों को मसला और चूमा चाटा उसके बाद मैं नीचे की तरफ बढ़ा। मेरा लंड न जाने कब से मुझसे रहम की भीख मांग रहा था जिस पर मेरा कोई ध्यान ही नहीं था। मैं तो अभी अपनी ख़्वाहिश ही पूरी करने में लगा हुआ था। उसकी ख़्वाहिशों का ख़याल तो मुझे बाद में ही आना था। नीचे आया तो देखा माया का चिकना पेट दूध की तरह गोरा था जिस पर एक गहरी सी नाभि थी। मुझसे रहा न गया तो मैंने फ़ौरन ही उसके पेट पर अपना चेहरा रख दिया और मुँह से उसके पूरे पेट को चूमने चाटने लगा। मेरी इस क्रिया से माया की एक बार फिर से सिसकियां निकलने लगीं और उसका जिस्म झटका सा खाने लगा। मैं उसके पूरे पेट को चूमा और चाट रहा था। उसकी नाभि के चारो तरफ मैं अपनी जीभ फिरा रहा था। ये सब करना मुझे पहले से पता था। ऐसा नहीं था कि मैं एकदम से ही अनाड़ी था। हम सभी दोस्त गन्दी गन्दी किताबों में ये सब बहुत बार देख और पढ़ चुके थे। इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि लड़कियों के साथ क्या क्या किया जाता है। ये तो हमारी ख़राब किस्मत ही थी कि शर्मीले स्वभाव की वजह से कभी भी किसी लड़की के साथ सेक्स करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था।

मैंने माया की गहरी नाभि में अपनी पूरी जीभ घुसा दी तो माया ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने पेट पर दबाने लगी। शायद मेरे ऐसा करने से उसे भी बेहद मज़ा आने लगा था। उसका पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। नाभि के नीचे रेशमी कपड़े की ही उसकी पेंटी थी जहां से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी। मैंने उन गन्दी किताबों में पढ़ा था कि जब लड़की हद से ज़्यादा गरम हो जाती है या उत्तेजित हो जाती है तो उसकी चूत से कामरस का रिसाव होने लगता है और ये खुशबू उसी कामरस से निकल कर आती है। मेरे मन में ये देखने की बड़ी तीव्र जिज्ञासा जाग उठी कि एक लड़की की चूत किस तरह की होती है। हालांकि गन्दी किताबों में मैंने चूत देखी थी लेकिन असलियत में तो मैंने कभी नहीं देखा था।

चूत को देखने की हसरत जब प्रबल हो उठी तो मैंने माया के पेट से अपना चेहरा उठा कर चूत की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। मेरा दिल अनायास ही तेज़ी से धड़कने लगा था। मेरे अंदर अब डर या घबराहट जैसी कोई बात नहीं रह गई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मैं माया के साथ इस क्षेत्र में आगे निकल चुका था और मुझे किसी भी तरह से रोका नहीं गया था। चूत के ऊपर रेशमी कपड़े की पेंटी के पास जैसे ही मेरा चेहरा आया तो मेरे नथुनों में कामरस की खुशबू और भी तेज़ी से समाने लगी जिसकी वजह से मुझ पर एक अजीब सा नशा चढ़ने लगा।

☆☆☆

"ट्रिन्निंग...ट्रिन्निंग" अचानक ही टेबल पर रखे फ़ोन की घंटी ज़ोरों से बज उठी तो डायरी में विक्रम सिंह की कहानी पढ़ रहा शिवकांत वागले जैसे उछल ही पड़ा। उसने फ़ोन को बड़े ही गुस्से से देखा। उसके चेहरे पर बेहद ही अप्रसन्नता के भाव उभर आए थे। वो कहानी पढ़ने में इतना खो गया था कि इस वक़्त उसे फ़ोन का एकाएक इस तरह बज उठना बहुत ही नागवार गुज़रा था। कहानी इस वक़्त ऐसे मुकाम पर थी कि उसके असर से खुद वागले का जिस्म गरम हो उठा था और उसके पैंट में उसके खड़े हुए लंड का उभार साफ़ दिख रहा था।

"हैलो।" फिर उसने किसी तरह अपने गुस्से वाले भावों को दबाते हुए फ़ोन को उठा कर कान से लगाते हुए कहा तो उधर से उसके कान में उसके बेटे चंद्रकांत वागले की आवाज़ पड़ी।

"हैलो पापा मैं चंद्रकांत बोल रहा हूं।" उधर से उसके बेटे ने कहा____"आज आप सुबह ब्रेकफास्ट कर के नहीं गए और ना ही श्याम को दोपहर का खाना लाने के लिए भेजा।"

"हां वो मुझे किसी ज़रूरी काम से सुबह जल्दी ही निकलना था।" शिवकांत भला अब अपने बेटे से क्या कहता, इस लिए बहाना बनाते हुए आगे कहा_____"और दोपहर में भी मुझे अपने ऑफिस में नहीं रहना था इस लिए श्याम को नहीं भेजा। ख़ैर तुम फ़िक्र मत करो बेटा। मैंने बाहर ही लंच कर लिया है।"

शिवकांत वागले ने इतना कहने के बाद फोन का रिसीवर केड्रिल पर रख दिया। वो जानता था कि ये फ़ोन उसकी बीवी सावित्री ने अपने बेटे से लगवाया था और उसे इस बात से ये सोच कर बुरा भी लगा था कि सावित्री ने खुद उससे बात क्यों नहीं की? वो सावित्री से नाराज़ था और चाहता था कि सावित्री खुद उसे मनाए लेकिन ऐसा फिलहाल हुआ नहीं था। ख़ैर फ़ोन रखने के बाद वागले कुछ देर जाने क्या सोचता रहा उसके बाद उसने विक्रम सिंह की डायरी को ब्रीफ़केस में रखा और श्याम को बुला कर उसे किसी ढाबे से खाना लाने के लिए पैसे दिए। उसने श्याम को ख़ास तौर पर ये कहा कि वो अपनी मैडम से यानी वागले की बीवी से इस बात को न बताए कि वो आज कहां गया था या उसने कहां खाना खाया था? श्याम जो कि जेल का ही एक मामूली सा सिपाही था उसने वागले के कहने पर अपना सिर हां में हिलाया और केबिन से बाहर चला गया।

श्याम के आने के बाद वागले ने खाना खाया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। करीब एक घंटे बाद वागले अपने केबिन में आया और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर उसे फिर से पढ़ने लगा।

☆☆☆

To be continued....
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Messages In This Thread
C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 02-08-2021, 11:15 PM



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