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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service]
#9
अध्याय - 06
__________________




अब तक,,,,,

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

अब आगे,,,,,


शिवकांत वागले डायरी में लिखी विक्रम सिंह की कहानी को पढ़ने में खोया ही हुआ था कि तभी किसी आहट से उसका ध्यान भंग हो गया। उसने चौंक कर इधर उधर देखा। नज़र गहरी नींद में सो रही सावित्री पर पड़ी। सावित्री ने नींद में ही उसकी तरफ को करवट लिया था। शिवकांत को सहसा वक़्त का ख़्याल आया तो उसने हाथ में बंधी घड़ी पर समय देखा। रात के क़रीब सवा दो बज रहे थे। वागले समय देख कर चौंका। उसने एक गहरी सांस ली और डायरी को बंद करके ब्रीफकेस में चुपचाप रख दिया।

डायरी को यथास्थान रखने के बाद वागले बेड पर करवट ले कर लेट गया था। कुछ देर तक वो विक्रम सिंह और उसकी कहानी के बारे में सोचता रहा और फिर गहरी नींद में चला गया। दूसरे दिन वो अपने समय पर ड्यूटी पहुंचा। आज जेल में कुछ अधिकारी आए हुए थे जिसकी वजह से उसे विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। सारा दिन किसी न किसी काम में व्यस्तता ही रही।

शाम को वो अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर घर पहुंचा। रात में डिनर करने के बाद वो सीधा अपने कमरे में आ कर बेड पर लेट गया। जब से उसने विक्रम सिंह की डायरी में उसकी कहानी पढ़ना शुरू किया था तब से ज़्यादातर उसके दिलो-दिमाग़ में विक्रम सिंह का ही ख़्याल चलता रहता था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि विक्रम सिंह अपनी पिछली ज़िन्दगी में इस तरह का इंसान था या उसका इतिहास ऐसा था। बेड पर लेटा वो सोच रहा था कि अगर विक्रम सिंह का शुरूआती जीवन इस तरह से शुरू हुआ था तो फिर बाद में आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से उसने अपने ही माता पिता की बेरहमी से हत्या की होगी?

शिवकांत वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। थक हार कर उसने अपने ज़हन से इस बात को झटक दिया और फिर ये सोचने लगा कि डायरी के अनुसार कैसे विक्रम सिंह अपने शुरूआती दिनों में उन तीन तीन सुन्दर लड़कियों के साथ मसाज करवा रहा था और वो तीनों लड़कियां एकदम नंगी हो कर उसके जिस्म के हर अंग से खेल रहीं थी। उस वक़्त विक्रम सिंह की क्या हालत थी ये उसने विस्तार से अपनी डायरी में लिखा था।

वागले की आँखों के सामने डायरी में लिखा गया उस वक़्त का एक एक मंज़र जैसे उजागर होने लगा था। वागले की आँखें जाने किस शून्य को घूरने लगीं थी। आँखों के सामने उजागर हो रहे उन तीनों लड़कियों के नंगे जिस्मों ने उसके अपने जिस्म में एक हलचल सी मचानी शुरू कर दी थी। वागले को पता ही नहीं चला कि कब उसकी बीवी सावित्री कमरे में आई और कब वो उसके बगल में एक तरफ लेट गई थी।

"कहां खोए हुए हैं आप?" सावित्री ने वागले को कहीं खोए हुए देखा तो उसने फौरी तौर पर पूछा_____"सोना नहीं है क्या आपको?"
"आं हां।" वागले ने चौंक कर उसकी तरफ देखा_____"तुम कब आई?"

"कमाल है।" सावित्री ने थोड़े हैरानी वाले लहजे में कहा____"आपको मेरे आने की भनक भी नहीं लगी, ऐसा कैसे हो सकता है?"
"अरे! वो मैं।" वागले ने बात को सम्हालते हुए कहा_____"एक क़ैदी के बारे में सोच रहा था न तो शायद इसी लिए मुझे तुम्हारे आने का आभास ही नहीं हो पाया।"

"मैंने कितनी बार कहा है आपसे कि क़ैदियों के ख़याल अपने जेल में ही लाया कीजिए।" सावित्री ने बुरा सा मुँह बनाया____"यहां घर में उन अपराधियों के बारे में मत सोचा कीजिए।"

"ग़लती हो गई भाग्यवान।" वागले ने सावित्री की तरफ करवट लेते हुए मुस्कुरा कर कहा____"अब से किसी क़ैदी के बारे में घर पर नहीं सोचूंगा लेकिन घर आने के बाद तुम्हारे बारे में तो सोच सकता हूं न?"

"क्या मतलब?" सावित्री ने अपनी भौंहें सिकोड़ी।
"मतलब ये कि घर में मैं अपनी जाने बहार के बारे में तो सोच ही सकता हूं।" वागले ने मीठे शब्दों में कहा____"वैसे एक बात कहूं??"

"कहिए क्या कहना चाहते हैं?" सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए कहा तो वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं ये कहना चाहता हूं कि तुम पहले से ज़्यादा खूबसूरत लगने लगी हो और मेरा मन करता है कि मैं अपनी इस खूबसूरत पत्नी को जी भर के प्यार करुं।"

"आप फिर से शुरू हो गए?" सावित्री ने आँखें दिखाते हुए कहा_____"आज कल कुछ ज़्यादा ही प्यार करने की बातें करने लगे हैं आप। अरे! कुछ तो बच्चों के बारे में सोचिए।"

"तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं बच्चों के बारे में नहीं सोचता?" वागले ने कहा_____"जबकि अपनी समझ में मैं हमारे बच्चों के लिए वो सब कुछ कर रहा हूं जो एक अच्छे पिता को करना चाहिए। भगवान की दया से हमारे दोनों बच्चे भी सकुशल हैं और सही राह पर हैं। अब भला और क्या सोचूं उनके बारे में? सच तो ये है भाग्यवान कि बच्चों के साथ साथ तुम्हारे बारे में भी सोचना मेरा फ़र्ज़ है और मैं अपने फ़र्ज़ को अच्छी तरह से निभाना चाहता हूं।"

"बातें बनाना आपको खूब आता है।" सावित्री कहने के साथ ही दूसरी तरफ को करवट ले कर लेट गई। जबकि वागले कुछ पल उसकी पीठ को घूरता रहा और फिर खिसक कर सावित्री के पास पहुंच गया।

"मैं मानता हूं मेरी जान कि तुम दिन भर के कामों से बुरी तरह थक जाती हो।" वागले ने पीछे से अपनी बीवी सावित्री को अपनी आगोश में भरते हुए कहा_____"लेकिन मेरा यकीन मानो डियर। मैं इस तरह से तुम्हें प्यार करुंगा कि तुम्हारी सारी थकान पलक झपकते ही दूर हो जाएगी।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने अपने पेट से वागले के हाथ को हटाते हुए कहा_____"और मुझे परेशान मत कीजिए। चुप चाप सो जाइए।"
"तुम्हारी इन बातों से मुझे अच्छी तरह पता चल गया है सवित्री।" वागले ने कहा_____"कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जज़्बात नहीं है। ठीक है फिर, आज के बाद मैं भी तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं करुंगा।"

शिवकांत वागले का दिमाग भन्ना सा गया था। ये सच है कि सावित्री कभी भी अपनी तरफ से पहल नहीं करती थी और अगर वो ख़ुद कभी उसको प्यार करने को कहे तो सावित्री उससे यही सब कह कर उसे मायूस कर देती थी। किन्तु आज की बात अलग थी, आज वागले का सच में बेहद मन कर रहा था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी को प्यार करे। उसके अंदर विक्रम सिंह की कहानी ने एक उत्तेजना सी भर दी थी किन्तु सावित्री ने जब इस तरह से बातें सुना कर उसे प्यार करने से इंकार किया तो उसे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। वो एक झटके से सावित्री से दूर हुआ और बेड से उतर कर कमरे से बाहर निकल गया।

वागले के इस तरह चले जाने से पहले तो सावित्री चुपचाप पड़ी ही रही लेकिन जब उसे आभास हुआ कि वागले कमरे से ही चला गया है तो उसने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा। कमरे में बल्ब का प्रकाश फैला हुआ था और सावित्री को कमरे में वागले नज़र न आया। कुछ देर तक वो खुले हुए दरवाज़े की तरफ देखती रही और फिर वो पहले की ही तरह करवट के बल लेट गई। उसने कमरे से बाहर निकल कर ये देखने की कोई भी कोशिश नहीं की कि वागले कमरे से निकल कर आख़िर गया कहां होगा? शायद उसे ये लगा था कि वागले किचेन में पानी पीने गया होगा।

दिन भर के कामों की वजह से थकी हुई सावित्री कुछ ही देर में गहरी नींद में जा चुकी थी। उधर वागले कमरे से निकल कर सीधा किचन में गया और पानी पीने के बाद ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर बड़े ही शख़्त भाव थे। काफी देर तक वो सोफे में बैठा जाने क्या क्या सोचता रहा और फिर उसी सोफे पर लेट कर सो गया।

रात सोफे पर ही गुज़र गई। सुबह वो जल्दी ही उठ जाता था इस लिए सुबह नित्य कर्मों से फुर्सत हो कर वो नहाया धोया। सावित्री को भी सुबह जल्दी ही उठने की आदत थी। वो वागले से पहले ही उठ जाती थी, इस लिए जब वो सुबह उठी थी तो कमरे में वागले को न पा कर पहले तो वो सोच में पड़ गई थी फिर बाथरूम में घुस गई थी।

सावित्री किचेन में नास्ता बना रही थी जबकि वागले अपनी वर्दी पहन कर और ब्रीफ़केस ले कर बाहर आया। दोनों बच्चे भी उठ चुके थे और नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर डाइनिंग टेबल पर नास्ते का इंतज़ार कर रहे थे। शिवकांत वागले ब्रीफ़केस ले कर कमरे से बाहर आया और बिना किसी से कुछ बोले घर से बाहर निकल गया। उसके इस तरह चले जाने से दोनों बच्चे पहले तो हैरान हुए लेकिन फिर ये सोच कर सामान्य हो गए कि शायद उनके पिता को ड्यूटी पर पहुंचना बेहद ज़रूरी रहा होगा, जैसा कि इस पेशे में अक्सर होता ही रहता है। हालांकि बच्चों को पता था कि अगर उनके पिता को जल्दी ही ड्यूटी पर जाना होता था तो वो ब्रेकफास्ट अपने साथ ही ले कर चले जाते थे किन्तु आज ऐसा नहीं हुआ था। वागले की बेटी ने फ़ौरन की किचेन में जा कर सावित्री को बताया कि पापा अपना ब्रीफ़केस ले कर ड्यूटी चले गए हैं। बेटी की ये बात सुन कर सावित्री मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसका पति सच में उससे नाराज़ हो गया है। इस एहसास के साथ ही वो थोड़ा चिंतित हो गई थी।

उधर वागले जेल पहुंचा। उसके ज़हन में कई सारी बातें चल रही थी जिनकी वजह से उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवा गवन चालू था। जेल का चक्कर लगाने के बाद वो अपने केबिन में आया और कुछ ज़रूरी फाइल्स को देखने लगा। क़रीब एक घंटे बाद वो फुर्सत हुआ। इस बीच उसने एक सिपाही के द्वारा एक ढाबे से नास्ता मगवा लिया था। नास्ता करने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और आगे की कहानी पढ़ने लगा।

☆☆☆

मैं अंदर से घबराया हुआ तो था किन्तु मेरे मन में ये उत्सुकता भी प्रबल हो रही थी कि अब ये तीनों नंगी पुंगी हसीनाएं मेरे साथ क्या क्या करेंगी। माया की बात मुझे अब तक याद थी जब उसने कोमल और तबस्सुम से ये कहा था कि अब मुझे सिर्फ ये सिखाना है कि किसी औरत को संतुस्ट कैसे किया जाता है। मतलब साफ़ था कि अब वो तीनों मुझे सेक्स का ज्ञान कराने वाली थीं। मैं मन ही मन ये सोच कर बेहद खुश भी हो रहा था कि अब ये तीनों मेरे साथ सेक्स करेंगी और मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। मैं क्योंकि नंगा ही था इस लिए मेरा लंड अपनी पूरी औकात पर खड़ा हो कर कुछ इस तरीके से ठुमकते हुए झटके मार रहा था जैसे वो उन्हें सलामी दे रहा हो।

"हम तीनों ये देख चुकी हैं कि तुम में संयम की कोई कमी नहीं है।" माया ने आगे बढ़ कर मुझसे कहा_____"हालाँकि पहली बार में तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो हम तीनों के द्वारा इतना कुछ करने से पहले ही अपना संयम खो देता। हम तीनों सबसे पहले यही देखना चाहते थे कि तुम में संयम रखने की क्षमता है या नहीं। अगर तुम में संयम की कमी होती तो हम तीनों तुम्हें संयम कैसे रखना होता है ये सिखाते। ख़ैर अब जबकि हमें पता चल चुका है कि तुम्हें कुदरती तौर पर सब कुछ मिला है और संयम की भी कोई कमी नहीं है। अब हम तुम्हें ये सिखाएंगे कि किसी औरत को सेक्स से खुश और संतुस्ट कैसे करना होता है।"

माया की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि रेशमी कपड़े जैसी ब्रा में क़ैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को देखता रहा। उसे भी पता था कि मैं उसकी चूचियों को ही देख रहा हूं किन्तु उसे इस बात से जैसे कोई ऐतराज़ नहीं था।

"एक बात हमेशा याद रखना।" कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद उसने फिर से कहा____"और वो ये कि कभी भी किसी लड़की या औरत के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती में सेक्स न करना। क्योंकि ऐसा करना बलात्कार कहलाता है और इससे न तो तुम्हें ख़ुशी मिलेगी और ना ही उस औरत को। किसी के साथ बलात्कार करने से दो पल के लिए भले ही मज़े का एहसास हो लेकिन मज़े के बाद जब वास्तविकता का एहसास होता है तब ये बोध भी होता है कि हमने कितना ग़लत किया है। ख़ैर सेक्स का असली मज़ा दोनों पर्सन की रज़ामंदी से ही मिलता है। ईश्वर ने औरत को इतना सुन्दर इसी लिए बनाया होता है कि मर्द उसे सिर्फ प्यार करे। औरत प्यार में अपना सब कुछ मर्द को सौंप देती है।"

"हालाँकि दुनिया में तरह तरह की मानसिकता वाले लोग भी होते हैं।" कोमल ने कहा____"जिनमें औरतें भी होती हैं। कुछ मर्द और औरतें ऐसी मानसिकता वाली होती हैं जिन्हें अलग अलग तरीके से सेक्स करने में मज़ा आता है। कोई प्यार से सेक्स करता है तो कोई सेक्स करते समय पागलपन की हद को पार कर जाता है। उस पागलपन में लोग सेक्स करते समय एक दूसरे को बुरी तरह से कष्ट पहुंचाते हैं। उन्हें सेक्स में ऐसा ही वहशीपना पसंद होता है।"

"यहां पर तुम्हें दोनों तरह से सेक्स करने के बारे में सीखना ज़रूरी है।" तबस्सुम ने कहा____"क्योंकि आने वाले समय में तुम्हें ऐसे ही काम करने होंगे।"
"वो सब तो ठीक है।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मैं बहुत ही ज़्यादा शर्मीले स्वभाव का हूं जिससे मैं किसी औरत ज़ात से खुल कर बात करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता।"

"शर्म हर इंसान में होती है।" माया ने कहा____"फिर चाहे वो मर्द हो या औरत। ये एक कुदरती गुण होता है जो आगे चल कर वक़्त और हालात के साथ साथ घटता और बढ़ता रहता है। कुछ लोग सिचुएशन के अनुसार जल्दी ही खुद को ढाल लेते हैं और कुछ लोगों को सिचुएशन के अनुसार खुद को ढालने में थोड़ा वक़्त लगता है लेकिन ये सच है कि वो ढल ज़रूर जाता है। तुम भी ढल जाओगे और बहुत जल्दी ढल जाओगे।"

कहने के साथ ही माया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ बढ़ी तो मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ चलीं। मैं उसी की तरफ देख रहा था और सोचने लगा था कि अब ये क्या करने वाली है? उधर वो मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर हल्के से खींचते हुए बेड पर ला कर मुझे बैठा दिया।

"सपने तो ज़रूर देखते होंगे न तुम?" माया मेरे क़रीब ही बैठते हुए बोली____"और किसी न किसी के बारे में तरह तरह के ख़याल भी बुनते होगे?"
"मैं कुछ समझा नहीं?" माया की इस बात से मैं चकरा सा गया था।

"बड़ी सीधी सी बात है डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"हर कोई सपने देखता है। कभी खुली आँखों से तो कभी बंद आँखों से। हर लड़का एक ऐसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता है जो दुनियां में उसे सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती है। तुम भी तो किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर अपने मन में तरह तरह के ख़याल बुनते होगे?"

"ओह! हां ये तो सही कहा आपने।" मैंने हल्के से शर्माते हुए कहा____"पर शायद मैं बाकी लड़कों से ज़्यादा लड़कियों के बारे में तरह तरह के ख़याल बुनता हूं। वो बात ये है कि मैं और तो कुछ करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता इस लिए जो मेरे बस में होता है वही करता रहता हूं। यानि दिन रात किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता रहता हूं। वैसे आपने ये क्यों पूछा मुझसे?"

"अब तक तुमने।" माया ने जैसे मेरे सवाल को नज़रअंदाज़ ही कर दिया, बोली____"जिन जिन लड़कियों के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुने हैं उन ख़यालों को अब सच में करके दिखावो।"

"दि...दिखाओ???" मैं जैसे हकला गया_____"मेरा मतलब है कि मैं भला कैसे...???"
"मैं भला कैसे का क्या मतलब है?" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"क्या तुम ये चाहते हो कि कोई दूसरा लड़का आए और तुम्हारे सामने हम तीनों के साथ मज़े करे?"

"न..नहीं तो।" मैं एकदम से बौखला गया_____"मैं भला ऐसा कैसे चाह सकता हूं?"
"देखो मिस्टर।" माया ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"हमारा तो काम ही यही है कि हम तुम जैसे लड़कों को सेक्स की ट्रेनिंग दें और वो हम अपने तरीके से दे भी देंगे लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम ख़ुद अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो जिन्हें तुमने अपने मन में अब तक बुने हैं। इससे तुम्हें ही फायदा होगा। तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और तुम्हारे अंदर की झिझक व शर्म भी दूर होगी।"

"मैं माया की बात से सहमत हूं।" कोमल ने कहा____"ये सच है कि हम तुम्हें ट्रेंड कर देंगे लेकिन अगर तुम खुद अपने तरीके से अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो तो ये तुम्हारे लिए बेहतर ही होगा।"

माया और कोमल की बातों ने मुझे अजीब कस्मकस में डाल दिया था। ये सच था कि मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उन तीनों के खूबसूरत जिस्मों के साथ खेलूं। उनकी सुडौल चूचियों को अपने हाथों में ले कर सहलाऊं और मसलूं लेकिन ऐसा करने की मुझ में हिम्मत नहीं हो सकती थी।

"अच्छा अब ये बताओ कि हम तीनों में से तुम्हें सबसे ज़्यादा कौन पसंद है?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैंने उसकी तरफ देखा, जबकि उसने उसी मुस्कान में आगे कहा_____"सच सच बताना और हां ये मत सोचना कि अगर तुमने हम में से बाकी दो को पसंद नहीं किया तो हमें बुरा लग जाएगा। चलो अब खुल कर बताओ।"

साला ये तो ऐसा सवाल था जिसका उत्तर देना तो जैसे टेढ़ी खीर था। मेरी नज़र में तो वो तीनों ही बला की खूबसूरत थीं। तीनो में से किसी एक को पसंद करना या चुनना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे कौन सा उनमें से किसी से शादी करनी है। कहने का मतलब ये कि मुझे तो किसी एक को पसंद कर के शायद उसके साथ सेक्स ही करना है न तो फिर इसमें इतना सोचने की क्या ज़रूरत है? किसी एक को पसंद कर लेता हूं बाकी जो होगा देखा जाएगा। मैंने तीनों को बारी बारी से देखा। मैंने सोचा कि कोमल और तबस्सुम को तो मैं पूरा ही नंगा देख चुका हूं जबकि माया अभी भी ब्रा पेंटी पहने हुए है इस लिए मैंने सोचा इसको भी नंगा देख लेता हूं।

"देखिए बात ये है कि।" फिर मैंने झिझकते हुए कहा_____"मुझे तो आप तीनों ही सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं। आप तीनों में से किसी एक को पसंद करना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल है, फिर भी आप कहती हैं तो मैं बताए देता हूं कि मुझे सबसे ज़्यादा आप ही पसंद हैं।"

"मुबारक़ हो माया।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इस लड़के की सील तोड़ने का पहला मौका तुम्हें ही मिल गया।"
"सही कहा तबस्सुम।" कोमल ने जैसे ताना सा मारा_____"हम तीनों में से एक माया ही तो है जो सबसे ज़्यादा सुन्दर है और पसंद करने वाली चीज़ भी है। ये लड़का तो बड़ा ही चालू निकला।"

"देखिए आप लोग प्लीज़ बुरा मत मानिए।" उन दोनों की बातें सुन कर मैं जल्दी से बोल पड़ा था____"मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे लिए आप में से किसी एक को पसंद करना बेहद ही मुश्किल है।"

"अरे! तुम इनकी बातों पर ध्यान मत दो।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये दोनों तो मज़ाक में ऐसा बोल रही हैं तुम्हें। ख़ैर तो अब जबकि तुमने मुझे पसंद किया है तो आज के लिए मैं तुम्हारी हुई। आज के दिन अब तुम और मैं ही एक दूसरे के साथ रहेंगे। तुम ये समझो कि मैं वो लड़की हूं जिसके बारे में सोच कर तुम तरह तरह के ख़याल बुनते थे और अब जबकि मैं तुम्हारे ख़यालों से बाहर आ कर तुम्हारे पास ही हूं तो तुम मेरे साथ वो सब कुछ कर सकते हो जो ख़यालों में मेरे साथ करते थे।"

"क्या सच में???" मेरे मुख से जाने ये कैसे निकल गया, जबकि मेरे द्वारा इतनी उत्सुकता से कहे गए इस वाक्य को सुन कर कोमल और तबस्सुम ने एक साथ मुस्कुराते हुए कहा_____"ओए होए, देखो तो कितना उतावले हो उठे हैं ये जनाब।"

कोमल और तबस्सुम की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह झेंप गया और शर्म से लाल हो गया। जबकि उन दोनों की बात सुन कर माया ने उन्हें डांटते हुए कहा____"क्यों छेड़ रही हो बेचारे को?"

"अच्छा ठीक है हम कुछ नहीं कहेंगी।" कोमल ने कहा____"लेकिन हां ये ज़रूर कहेंगे कि थोड़ा सम्हाल के करना। तुम तो जानती हो कि इस बेचारे की अभी सील भी नहीं टूटी है।"

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

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C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 30-07-2021, 11:28 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Eswar P - 01-08-2021, 08:21 PM
RE: C. M. S. [Choot Maar Service] - by Shubham Kumar1 - 02-08-2021, 04:18 PM



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