31-07-2021, 10:01 PM
भाभी का रँग एकदम गोरा था जिस कारण ट्यूब लाईट की सफेद रोशनी मे उनकी दुधिया सफेद जाँघे कोरे कागज के जैसे बेदाग एकदम सफेद लग रही थी, और दोनो जाँघो के बीच कामरस भीगी व फुली हुई चुत तो जैसे चमक ही रही थी।
मुश्किल से तीन चार उँगल के जितना बङी चुत होगी भाभी की, मगर कचौङी के जैसे एकदम फुली हुई थी। चुत की फुलावट के कारण उसकी चुत की फाँके हल्का सा खुली थी जिससे चुत के अन्दर का गुलाबी भाग अलग ही नजर आ रहा था।
दिन मे तो मै भाभी की चुत को अच्छे से देख नही सका था, मगर मै अब उसे अच्छे से देखना चाह रहा था। मुझे भाभी की चुत को देखने की जिग्यासा तो थी पर साथ ही शरम के साथ साथ थोङा डर सा भी लग रहा था।
भाभी कही बुरा ना मान जाये मेरे इस बात से डरते डरते मैने एक हाथ से भाभी के घुटने को पकङकर पहले तो थोङा सा सरकाया फिर भाभी की ओर देखने लगा..
भाभी भी मेरी ओर ही देख रही थी जिससे एक बार फिर मेरी व भाभी की नजरे मिल गयी.. भाभी के चेहरे पर अब भी वही मुस्कान थी। वो मुझे देखकर सामान्य भाव से हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी जैसे की कह रही हो, देखलो जी भर के तुम्हे जो देखना है..मगर मुझे अभी भी शरम सी आ रही थी।
मेरा ये पहला अवसर था मगर मेरी भाभी पुरी खेली खाई थी। उन्हे ये समझ थी की मेरे दिल मे क्या चल रहा है इसलिये भाभी ने अपनी जाँघो को अब पुरा फैला दिया और खुद ही मेरा हाथ पकङकर सीधा अपनी नँगी चुत पर रखवा दिया.. अब तो मै भी जल्दी से उठकर भाभी की दोनो जाँघो के बीच आकर बैठ गया और अपने अँगुठे व एक उँगली से चुत की फाँको को फैलाकर उसे बङे ही ध्यान से देखने लगा..
भाभी के चुत की फाँके बाहर से तो हल्की भुरी थी मगर उनके अन्दर का भाग एकदम गुलाबी था और चुत की फाँको के बीचो बीच किशमिश के दाने के जैसे चुत का फुला दाना तो सिन्दुर के जैसे एकदम ही सुर्ख लाल था। चुत का दाना हल्का हल्का हिल सा भी रहा था। जैसे उत्तेजना से लङको का लण्ड झटके मारता है शायद वो भी वैसे ही झटके से खा रहा था।
ठीक चुत के दाने नीचे चुत का प्रवेशद्वार था जिसमे से हल्का हल्का लिसलिसा सा एक द्रव रिस रहा था, जोकी चुत के प्रवेशद्वार से निकलकर नीचे भाभी के कुल्हो की लाईन मे जा रहा था। मेरे चुत को सहलाये जाने से वो द्रव सारी चुत पर फैल गया था शायद इस द्रव की चिकनाई से ही भाभी की चुत इतना चमक रही थी।
मैने जिस हाथ के उँगुठे व उँगली से भाभी की चुत की फाँको को फैला रखा था उन पर भी वो द्रव लग गया था इसलिये भाभी की चुत का अच्छे से मुवाईना करने के बाद मैने जब अपना हाथ उनकी चुत पर से हटाया तो चाशनी के जैसे, दो लम्बी लारे मेरी उँगली व उँगुठे के साथ उपर तक उठती चली गयी..
चुतरश की वो दोनो लारे अब थोङा सा तो उपर उठी मगर फिर ज्यादा लम्बी होने पर बीच से टुटकर आधा तो वापस उस द्रव मे जा मिली और आधा मेरी उँगली व अँगुठे पर लगी रह गयी। मैने उँगली व अँगुठे को अब आपस मे रगङकर देखा तो पाया मेरी उँगली व अँगुठा घी के जैसे एकदम चिकना हो गया था।
अपनी उँगली व उँगुठे पर लगे उस द्रव को मैने अब सुँघ कर भी देखा, उसमे से अजीब सी ही एक मादक गँध आ रही थी। उँगली को सुँघते समय मेरी नजरे एक बार फिर अब भाभी की नजरो से जा टकराई, मगर इस बार भाभी ने मुझे अपनी चुत के रस को सुँघते देखा तो उनके चेहरे पर भी शरम हया वाली मुस्कान तैर गयी।
भाभी ने एक बार तो मेरी ओर हँशकर देखा फिर अपनी गर्दन को घुमा दुसरी ओर देखने लगी। मैने भी बस अब एक बार तो भाभी की ओर देखा फिर नीचे झुक कर उनकी गोरी चिकनी जाँघो पर चुम लिया...
मेरे होठ के स्पर्श से ही भाभी के मुँह से अब
"इईईई.......श्श्शशशश......" की एक मीठी सित्कार निकल गयी और स्वतः ही उनकी दोनो जाँघे एक दुसरे से चिपक गयी मगर फिर जल्दी ही वो खुल भी गयी...
मुश्किल से तीन चार उँगल के जितना बङी चुत होगी भाभी की, मगर कचौङी के जैसे एकदम फुली हुई थी। चुत की फुलावट के कारण उसकी चुत की फाँके हल्का सा खुली थी जिससे चुत के अन्दर का गुलाबी भाग अलग ही नजर आ रहा था।
दिन मे तो मै भाभी की चुत को अच्छे से देख नही सका था, मगर मै अब उसे अच्छे से देखना चाह रहा था। मुझे भाभी की चुत को देखने की जिग्यासा तो थी पर साथ ही शरम के साथ साथ थोङा डर सा भी लग रहा था।
भाभी कही बुरा ना मान जाये मेरे इस बात से डरते डरते मैने एक हाथ से भाभी के घुटने को पकङकर पहले तो थोङा सा सरकाया फिर भाभी की ओर देखने लगा..
भाभी भी मेरी ओर ही देख रही थी जिससे एक बार फिर मेरी व भाभी की नजरे मिल गयी.. भाभी के चेहरे पर अब भी वही मुस्कान थी। वो मुझे देखकर सामान्य भाव से हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी जैसे की कह रही हो, देखलो जी भर के तुम्हे जो देखना है..मगर मुझे अभी भी शरम सी आ रही थी।
मेरा ये पहला अवसर था मगर मेरी भाभी पुरी खेली खाई थी। उन्हे ये समझ थी की मेरे दिल मे क्या चल रहा है इसलिये भाभी ने अपनी जाँघो को अब पुरा फैला दिया और खुद ही मेरा हाथ पकङकर सीधा अपनी नँगी चुत पर रखवा दिया.. अब तो मै भी जल्दी से उठकर भाभी की दोनो जाँघो के बीच आकर बैठ गया और अपने अँगुठे व एक उँगली से चुत की फाँको को फैलाकर उसे बङे ही ध्यान से देखने लगा..
भाभी के चुत की फाँके बाहर से तो हल्की भुरी थी मगर उनके अन्दर का भाग एकदम गुलाबी था और चुत की फाँको के बीचो बीच किशमिश के दाने के जैसे चुत का फुला दाना तो सिन्दुर के जैसे एकदम ही सुर्ख लाल था। चुत का दाना हल्का हल्का हिल सा भी रहा था। जैसे उत्तेजना से लङको का लण्ड झटके मारता है शायद वो भी वैसे ही झटके से खा रहा था।
ठीक चुत के दाने नीचे चुत का प्रवेशद्वार था जिसमे से हल्का हल्का लिसलिसा सा एक द्रव रिस रहा था, जोकी चुत के प्रवेशद्वार से निकलकर नीचे भाभी के कुल्हो की लाईन मे जा रहा था। मेरे चुत को सहलाये जाने से वो द्रव सारी चुत पर फैल गया था शायद इस द्रव की चिकनाई से ही भाभी की चुत इतना चमक रही थी।
मैने जिस हाथ के उँगुठे व उँगली से भाभी की चुत की फाँको को फैला रखा था उन पर भी वो द्रव लग गया था इसलिये भाभी की चुत का अच्छे से मुवाईना करने के बाद मैने जब अपना हाथ उनकी चुत पर से हटाया तो चाशनी के जैसे, दो लम्बी लारे मेरी उँगली व उँगुठे के साथ उपर तक उठती चली गयी..
चुतरश की वो दोनो लारे अब थोङा सा तो उपर उठी मगर फिर ज्यादा लम्बी होने पर बीच से टुटकर आधा तो वापस उस द्रव मे जा मिली और आधा मेरी उँगली व अँगुठे पर लगी रह गयी। मैने उँगली व अँगुठे को अब आपस मे रगङकर देखा तो पाया मेरी उँगली व अँगुठा घी के जैसे एकदम चिकना हो गया था।
अपनी उँगली व उँगुठे पर लगे उस द्रव को मैने अब सुँघ कर भी देखा, उसमे से अजीब सी ही एक मादक गँध आ रही थी। उँगली को सुँघते समय मेरी नजरे एक बार फिर अब भाभी की नजरो से जा टकराई, मगर इस बार भाभी ने मुझे अपनी चुत के रस को सुँघते देखा तो उनके चेहरे पर भी शरम हया वाली मुस्कान तैर गयी।
भाभी ने एक बार तो मेरी ओर हँशकर देखा फिर अपनी गर्दन को घुमा दुसरी ओर देखने लगी। मैने भी बस अब एक बार तो भाभी की ओर देखा फिर नीचे झुक कर उनकी गोरी चिकनी जाँघो पर चुम लिया...
मेरे होठ के स्पर्श से ही भाभी के मुँह से अब
"इईईई.......श्श्शशशश......" की एक मीठी सित्कार निकल गयी और स्वतः ही उनकी दोनो जाँघे एक दुसरे से चिपक गयी मगर फिर जल्दी ही वो खुल भी गयी...