31-07-2021, 03:08 PM
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अध्याय - 02
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अब तक,,,,
उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।
अब आगे,,,,
20 दिसंबर 1998..
इस तारीख़ को मैं कभी नहीं भूल सकता। इस तारीख़ ने मेरी ज़िन्दगी को मुकम्मल तौर पर बदल दिया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी सबसे बड़ी चाहत किसी चमत्कार के जैसे पूरी हो जाएगी। वैसे तो हर इंसान किसी न किसी चीज़ की चाहत रखता है और जीवन भर इसी कोशिश में लगा रहता है कि जिस चीज़ की वो चाहत किए बैठा है वो पूरी हो जाए। जब किसी इंसान की चाहत पूरी हो जाती है तो यकीनन उसे स्वर्ग मिल जाने जितनी ख़ुशी महसूस होने लगती है। इंसान अपनी उस ख़ुशी को अलग अलग तरीके से दुनियां वालों के सामने ज़ाहिर भी करता है।
ये खुशियां और ये चाहतों का पूरा होना हर किसी के नसीब में नहीं होता। कभी कभी तो इंसान अपनी ख़ुशियों और चाहतों के पूरा होने के इंतज़ार में सारी उम्र गुज़ार देता है और एक दिन वो इस दुनियां से चला भी जाता है। हालांकि इंसान की ख़्वाहिशें और चाहतें जीवन भर किसी न किसी चीज़ की बनी ही रहती हैं लेकिन कुछ ख़ास ख़्वाहिशें ऐसी होती हैं जिनको पाने की इंसान के दिल में एक अलग ही ललक रहती है। इंसान अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए जाने कैसे कैसे जतन करता है जिसमें उसका अपना भाग्य और नसीब भी जुड़ा होता है। अगर नसीब में नहीं लिखा तो सारी उम्र हमारी चाहत पूरी नहीं हो पाती और अगर नसीबों में है तो एक दिन ज़रूर हमारी चाहत पूरी हो जाती है। ख़ैर हर किसी की तरह मेरे भी दिल में एक चाहत थी और मैं हमेशा इसी कोशिश में लगा रहता था कि किसी तरह मेरी वो चाहत पूरी हो जाए लेकिन मेरी चाहत के पूरा होने के कभी कोई आसार नज़र नहीं आए। अपनी उस चाहत के पूरा न होने की वजह से मैं एकदम से निराश सा हो गया था। मेरे ही जैसे ख़राब नसीब वाले मेरे दोस्त भी थे। वो भी मेरी तरह अपनी चाहत के पूरा होने के लिए ललक रहे थे।
कहते हैं कि हम जो सोचते हैं या हम जो चाहते हैं वो अक्सर नहीं होता बल्कि आपके लिए ईश्वर ने जो सोचा होता है वही होता है। क्योंकि इस संसार में सब कुछ उसी की मर्ज़ी से होता है। लोग तो ये भी कहते हैं कि ईश्वर हमारे लिए जो भी करता है वो अच्छे के लिए ही करता है लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है ये बात इस संसार का हर ब्यक्ति जानता है।
20 दिसंबर की शाम मैं अपने दोस्तों के साथ क्लब गया था। क्लब में हम सबने थोड़ी बहुत बियर पी और हमेशा की तरह उन लड़कियों को ताड़ने लगे जो बाकी लड़कों के साथ डांस फ्लोर पर डांस कर रहीं थी। छोटे छोटे कपड़ों में वो सुन्दर लड़कियां गज़ब ढा रहीं थी और जब गाने और ताल के रिदम पर उनकी कमर लचकती तो ऐसा लगता जैसे दिल पर बिजली गिरने लगी हो। उस वक़्त तो हालत ही ख़राब हो जाती थी जब उन लड़कियों के ब्वाय फ्रेंड उनकी गोल गोल गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर ज़ोर से भींचने लगते थे। एक दूसरा लड़का अपनी गर्ल फ्रेंड की चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलता नज़र आता तो कोई तीसरा अपनी गर्ल फ्रेंड के होठों को अपने मुँह में ऐसे भर लेता था जैसे वो खा ही जाएगा। ये मंज़र देख कर बियर का तो घंटा कोई नशा नहीं होता था लेकिन उस गरम मंज़र को देख कर मेरे साथ साथ मेरे सभी दोस्तों के लंड ज़रूर औकात से बाहर होने लगते थे। उसके बाद हम सब क्लब के बाहर अँधेरे में एक तरफ जाते और मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत कर लेते।
ऐसा नहीं था कि हम लोग दिखने में सुन्दर नहीं थे या हमारी पर्सनालिटी अच्छी नहीं थी, बल्कि वो तो अच्छी खासी थी। हम ऐसे परिवारों से ताल्लुक रखते थे जिन्हें हाई क्लास तो नहीं पर अमीर परिवारों में ज़रूर गिना जाता था। मेरे जैसे अमीर घर के लड़के हर रोज़ एक नई लड़की को रगड़ रगड़ कर चोद सकते थे किन्तु इस मामले में हमारी किस्मत बेहद ख़राब थी। किस्मत ख़राब का मतलब ये है कि हम सब बेहद शर्मीले स्वभाव के थे। दूर से किसी लड़की को देख कर हम आपस में चाहे जितनी ही गन्दी बातें करते रहें लेकिन किसी लड़की से खुल कर इस मामले में बात करने में हम लोगों की फट के हाथ में आ जाती थी। कॉलेज और कॉलेज लाइफ में बड़ी मुश्किल से एक दो लड़कियों से हमारी दोस्ती हुई थी लेकिन मामला दोस्ती तक ही रहा। हालांकि उन लड़कियों से दोस्ती का वो रिश्ता भी ज़्यादा समय तक का नहीं रह पाया था क्योंकि हमारे स्वभाव की वजह से कुछ ही समय में इन लड़कियों ने हमसे किनारा कर लिया था।
हम सभी दोस्त एक साथ बैठ कर इस बारे में बातें करते और यही फ़ैसला करते कि अब से हम शर्माएंगे नहीं बल्कि हर लड़की को लाइन मरेंगे लेकिन जब इस फ़ैसले के तहत ऐसा करने की बारी आती तो हम लोगों की फिर से गांड फट जाती थी। अपने इस शर्मीले स्वभाव की वजह से हम लोग अपने आपसे बेहद गुस्सा रहते लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। कॉलेज कॉलेज के बाकी लड़के हमारा मज़ाक उड़ाते थे। ईश्वर की दया से पढ़ाई लिखाई पूरी हुई और हम लोग अपने अपने घर आ गए। हमारे माता पिता भी जानते थे कि उनके बच्चों का स्वभाव कैसा है और इसके लिए वो हमें समझाते भी थे लेकिन इसके बावजूद हमारा ऐसा स्वभाव हमारा पीछा नहीं छोड़ता था।
उस रात क्लब से हम सभी दोस्त गर्म हो कर बाहर निकले और अँधेरे में एक जगह जा कर हमने मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत किया। अंदर की गर्मी लंड के रास्ते निकाल कर हम लोग घर की तरफ चल दिए। मेरे तीनों दोस्तों के पास अपनी अपनी मोटर साइकिल थी और उस रात भी हम अपनी अपनी मोटर साइकिल में ही क्लब से आए थे। कुछ दूर साथ साथ आने के बाद मेरे बाकी दोस्त अपने अपने घरों की तरफ मुड़ गए और मैं अपने घर की तरफ चल दिया।
ठंड का महीना और ऊपर से कोहरे की हल्की धुंध में मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा तेज़ नहीं थी। क्लब से मेरे घर की दूरी मुश्किल से दो किलो मीटर थी। मैं मोटर साइकिल चलाते हुए यही सोच रहा था कि काश क्लब की वो सारी सुन्दर लड़कियां इस वक़्त मेरे सामने आ जाएं और अपने जिस्म के बाकी बचे हुए कपड़े उतार कर मुझसे कहें कि____'आओ विक्रम, हमारे जिस्म को जैसे चाहो भोग लो।'
बार बार आँखों के सामने उन लड़कियों की मटकती गांड और उछलती चूचियां नज़र आ रहीं थी। अभी मैं इन सब में खोया ही हुआ था कि तभी मुझे ज़ोर का झटका लगा और मैं मोटर साइकिल के साथ ही सड़क पर गिर गया। सड़क में शायद कहीं पर स्पीड ब्रेकर था जिस पर मैंने ध्यान नहीं दिया था और जैसे ही स्पीड ब्रेकर पर मोटर साइकिल का अगला पहिया चढ़ा तो मुझे ज़ोर का झटका लगा जिससे हैंडल से मेरे हाथ छूट गए और फिर मैं कुछ न कर सका। ये तो शुक्र था कि मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा नहीं थी वरना गहरी चोंट लग जाती मुझे। फिर भी एक घुटना छिल ही गया था और बायां कन्धा पक्की सड़क पर ज़ोर से लगने की वजह से दर्द करने लगा था।
उस वक़्त सड़क पर कोई नहीं था, और आस पास भी कोहरे की वजह से कुछ दिख नहीं रहा था। हालांकि कोहरे में दूर दूर कहीं हल्की रौशनी का आभास ज़रूर हो रहा था। ख़ैर मैं किसी तरह उठा और चलने की कोशिश की तो घुटने में तेज़ दर्द हुआ जिससे मेरे हलक से कराह निकल गई। मैं फ़ौरन ही सड़क पर बैठ गया और आस पास देखने लगा। कोहरे की वजह से मुझे इस बात का भी डर लगने लगा था कि सड़क पर किसी तरफ से अचानक कोई वाहन न आ जाए और मुझे कुचल दे इस लिए मैं फिर से उठा और दर्द को सहते हुए सड़क के किनारे पर आ कर बैठ गया।
सड़क के किनारे बैठे हुए अभी मुझे कुछ ही देर हुई थी कि तभी मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे मेरे पीछे कोई खड़ा है। इस एहसास के साथ ही मेरे जिस्म का रोयां रोयां कांप गया और मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं। मैंने हिम्मत कर के अपनी गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया तो जिस शख़्स पर मेरी नज़र पड़ी उसे देखते ही मैं बुरी तरह उछल पड़ा और साथ ही मेरे मुख से चीख निकलते निकलते रह गई। मेरे पीछे एक ऐसा शख़्स खड़ा था जिसका समूचा बदन काले कपड़ों से ढंका हुआ था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी काले नक़ाब में छुपा हुआ था। सिर पर गोलाकार काली टोपी थी जो उसके अग्रिम ललाट की तरफ काफी ज़्यादा झुकी हुई थी।
"क..क..कौन हो तुम?" मारे दहशत के मैंने उससे पूछने की हिम्मत दिखाई तो उसने अजीब सी आवाज़ में कहा____"मैं वो हूं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकता है।"
"क्..क्या मतलब??" मैं उसकी बात सुन कर चकरा सा गया था।
"मतलब समझाने के लिए ये सही जगह नहीं है।" उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी बहुत ही अजीब आवाज़ में कहा____"उसके लिए तुम्हें मेरे साथ एक ख़ास जगह पर चलना होगा।"
उसकी बात सुन कर अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी जैसे क़यामत आ गई। उस रहस्यमयी शख़्स का एक हाथ बिजली की तरह मेरी तरफ लपका और मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मेरी कनपटी के किसी ख़ास हिस्से पर उसने ऐसा वार किया था कि मुझे बेहोश होने में ज़रा भी देरी नहीं हुई।
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जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने अपने आपको एक ऐसी जगह पर पाया जो मेरे लिए निहायत ही अजनबी थी। मैं एक आलीशान कमरे में एक आलीशान बेड पर पड़ा हुआ था। मेरे जिस्म में जो कपड़े थे वो अब नहीं थे बल्कि उन कपड़ों की जगह दूसरे कपड़े थे। ये सब देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। मुझे समझ में नहीं आया कि मैं एकदम से यहाँ कैसे आ गया? तभी मुझे ख़याल आया कि मुझे एक रहस्यमयी शख़्स ने बेहोश किया था। इस बात के याद आते ही मेरे अंदर घबराहट उभर आई। मैं सोचने लगा कि वो रहस्यमयी शख़्स कौन था और मैं यहाँ कैसे पहुंचा? मुझे एकदम से ख़याल आया कि कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैंने अपनी आँखों को मल मल कर बार बार चारों तरफ देखा किन्तु सच्चाई यही थी कि मैं एक आलीशान जगह पर था। मेरे ज़हन में सवालों की जैसे बाढ़ सी आ गई। उस आलीशान कमरे में मेरे अलावा दूसरा कोई नहीं था। कमरे का दरवाज़ा बंद था। ये देख कर मैं एक झटके से उठा और बेड से नीचे उतर आया। नीचे उतरते ही मैं बुरी तरह चौंका, क्योंकि एकदम से मुझे याद आया कि बेहोश होने से पहले मैं अपनी मोटर साइकिल से गिर गया था और मेरा एक घुटना छिल गया था जिसकी वजह से मुझसे चला नहीं जा रहा था किन्तु इस वक़्त मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा था। मैंने फ़ौरन ही झुक कर अपने पैंट को पकड़ कर ऊपर सरकाया तो देखा मेरे घुटने पर दवा के साथ साथ पट्टी लगी हुई थी। इसका मतलब यहाँ लाने के बाद मेरे ज़ख्म पर मरहम पट्टी की गई थी किन्तु सवाल ये था कि ऐसा किसने किया होगा, क्या उस रहस्यमयी शख़्स ने? आख़िर वो मुझसे चाहता क्या है और यहाँ क्यों ले कर आया है मुझे?
मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक ऐसा शख़्स कमरे में दाखिल हुआ जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी सफ़ेद रंग के नक़ाब में ढंका हुआ था। नक़ाब के अंदर से सिर्फ उसकी आँखें ही झलक रहीं थी। मैं उस सफ़ेदपोश को देख कर एक बार फिर से बुरी तरह हैरान रह गया था। आख़िर ये चक्कर क्या था कि एक बार काले कपड़े वाला मिलता है और अब ये सफ़ेद कपड़े में एक शख़्स आ गया है?
"अब तुम कौन हो भाई?" मैंने उस शख़्स को घूरते हुए पूछा तो उसने अपनी सामान्य आवाज़ में कहा____"एक ऐसा शख़्स जिसके बारे में जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं है।" उस सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"तुम्हें इसी वक़्त मेरे साथ चलना होगा।"
"लेकिन कहां?" मैं उसकी बात सुन कर उलझ सा गया।
"उन्हीं के पास।" सफ़ेद कपड़े वाले ने कहा____"जो तुम्हें यहाँ पर ले कर आए हैं? क्या तुम जानना नहीं चाहोगे कि तुम्हें यहाँ किस लिए लाया गया है?"
सफ़ेदपोश ने एकदम सही कहा था। मैं यही तो जानना चाहता था कि मुझे यहाँ किस लिए लाया गया है? मैंने उस सफ़ेदपोश की बात पर हां में सिर हिलाया और उसकी तरफ बढ़ चला। मुझे अपनी तरफ आता देख वो शख़्स वापस पलटा और दरवाज़े के बाहर निकल गया।
उस सफ़ेदपोश के पीछे पीछे चलते हुए मैं कुछ ही देर में एक ऐसी जगह पहुंचा जहां पर बल्ब की रोशनी बहुत ही कम थी। हर तरफ मौत की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। मैं हर तरफ देखता हुआ आया था किन्तु कहीं पर भी दूसरा आदमी नज़र नहीं आया था। पता नहीं ये कौन सी जगह थी लेकिन इतना ज़रूर था कि ये जगह थी बड़ी कमाल की और बेहद हसीन भी।
वो एक लम्बा चौड़ा हाल था जिसमें नीम अँधेरा था और उसी नीम अँधेरे में हाल के दूसरे छोर पर वो रहस्यमयी शख़्स एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठा हुआ था जो मुझे पहले मिला था और जिसने मुझे बेहोश किया था। इस वक़्त भी उसका समूचा जिस्म काले कपड़ों में ढंका हुआ था और चेहरे पर काला नक़ाब था।
"हमारा ख़याल है कि तुम्हें यहाँ तक चल कर आने में ज़रा भी तक़लीफ नहीं हुई होगी।" उस रहस्यमयी शख़्स की बहुत ही अजीब सी आवाज़ हाल में गूंजी____"और हां, हमें इस बात के लिए माफ़ करना कि हम तुम्हें इस तरह से यहाँ ले कर आए।"
"मुझे ये बताओ कि तुम हो कौन?" मैं अंदर से डरा हुआ तो था किन्तु फिर भी हिम्मत कर के पूछ ही बैठा था____"और ये भी बताओ कि मुझे यहाँ क्यों ले कर आए हो? तुम शायद जानते नहीं हो कि मैं किसका बेटा हूं? अगर जानते तो मुझे इस तरह यहाँ लाने की हिमाक़त नहीं करते।"
"हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"संक्षेप में तुम ये समझ लो कि हमसे किसी के भी बारे में कुछ भी छुपा नहीं है। तुम्हारी जानकारी के लिए हम तुम्हें ये भी बता देते हैं कि हम किसी का भी कुछ भी बिगाड़ सकते हैं लेकिन हमारा कोई भी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।"
"पर मुझे इस तरह यहाँ लाने का क्या मतलब है?" उसकी बात सुनकर मेरे जिस्म में डर की वजह से झुरझुरी सी हुई थी, किन्तु फिर मैंने ख़ुद को सम्हालते हुए कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसके लिए कोई मुझे इस तरह से यहाँ ले आए।"
"तो हमने कब कहा कि तुमने कुछ किया है?" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"जैसा कि हमने तुम्हें उस वक़्त भी बताया था कि हम वो हैं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकते हैं, इस लिए अब तुम बताओ कि क्या तुम अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"
"क्या तुम कोई भगवान हो?" मैंने उसकी तरफ घूरते हुए हिम्मत करके कहा____"जो मेरी हर इच्छा को पूरा कर सकते हो?"
"ऐसा ही समझ लो।" कुर्सी पर बैठे उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"हम एक तरह के भगवान ही हैं जो किसी की भी इच्छा को पूरी कर सकते हैं।"
"पर तुम मेरी इच्छाओं को क्यों पूरा करना चाहते हो?" मैंने कहा____"मैंने तो तुमसे या किसी से भी नहीं कहा कि मेरी इच्छाओं को पूरा कर दो।"
"तुमने मुख से भले ही नहीं कहा।" उस शख़्स ने कहा____"किन्तु हर पल तो तुम यही सोचते रहते हो न कि काश तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो जाए?"
"तु...तुम्हें ये कैसे पता?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
"हमने बताया न कि हम सबके बारे में सब कुछ जानते हैं।" उसने कहा_____"ख़ैर तुम बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"
मैं उस रहस्यमयी शख़्स की बातें सुन कर चकित तो था ही किन्तु मन ही मन ये भी सोचने लगा था कि क्या ये सच में मेरी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा कर देगा? यानी क्या ये मेरी इस इच्छा को पूरा कर सकता है कि मैं किसी सुन्दर लड़की को अपनी मर्ज़ी से जैसे चाहूं भोग सकूं? ये सब सोचते हुए जहां एक तरफ मेरे मन के किसी कोने में ख़ुशी के लड्डू फूटने लगे थे वहीं एक तरफ मैं ये भी सोचने लगा कि आख़िर ये शख़्स मेरी सबसे बड़ी इच्छा को बिना किसी स्वार्थ के कैसे पूरा कर सकता है? मतलब मेरे लिए ऐसा करने के पीछे ज़रूर इसका भी कोई न कोई मकसद या फ़ायदा होगा लेकिन क्या????
"क्या हुआ?" मुझे ख़ामोशी से कुछ सोचता देख उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"क्या सोचने लगे?"
"म..मैं सोच रहा हूं कि तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करना चाहते हो?" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी स्वार्थ के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। फिर तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे भला? मतलब साफ़ है कि मेरे लिए ऐसा करने के पीछे तुम्हारा भी अपना कोई स्वार्थ है या फिर कोई मकसद है।"
"बिल्कुल ठीक कहा तुमने।" उस शख़्स ने कहा_____"इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी मतलब के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। अगर हम तुम्हारे लिए ऐसा करेंगे तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा भी कोई न कोई स्वार्थ ही होगा।"
"क्या मैं जान सकता हूं कि ऐसा करने के पीछे तुम्हारा क्या स्वार्थ है?" मैंने हिम्मत कर के पूछा_____"कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे किसी ऐसे संकट में फंसा देना चाहते हो जिससे मेरी लाइफ़ ही बर्बाद हो जाए?"
"तुम्हारा ऐसा सोचना बिलकुल जायज़ है लड़के।" उस शख़्स ने कहा_____"लेकिन यकीन मानो हमारा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। तुम किसी भी तरह के संकट में नहीं फंसोगे और ना ही इससे तुम्हारी लाइफ़ बर्बाद होगी। बल्कि ऐसा करने से तुम्हें मज़ा ही आएगा और तुम्हारी लाइफ़ भी ऐशो आराम वाली हो जाएगी।"
"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा____"क्या दुनियां में ऐसा भी कहीं होता है?"
"दुनियां की बात मत करो लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"अभी तुमने दुनियां देखी ही कहां है? तुम्हें तो अंदाज़ा भी नहीं है कि इस दुनियां में क्या क्या होता है। तुम जिन चीज़ों की कल्पना भी नहीं कर सकते वो सब चीज़ें इस दुनियां में कहीं न कहीं होती हैं। ख़ैर छोड़ो इस बात को और अच्छी तरह सोच कर बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करते हुए अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली बनाना चाहोगे?"
"भला इस दुनियां में ऐसा कौन होगा जो अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली न बनाना चाहे?" मैंने कहा____"लेकिन मैं तुम पर भरोसा क्यों करूं? कल को अगर कोई लफड़ा हो गया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूंगा? मेरे माता पिता का क्या होगा? मैं उनकी इकलौती औलाद हूं? ऐसे काम की वजह से अगर उनका सिर नीचा हो गया तो मैं कैसे उन्हें अपना चेहरा दिखा पाऊंगा?"
"तुम इस बात से बेफिक्र रहो विक्रम।" रहस्यमयी शख़्स ने मेरा नाम लेते हुए कहा_____"तुम्हारे ऐसे काम की वजह से तुम्हारी फैमिली पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी तुम ये जानते ही नहीं हो कि हम कौन हैं और हम किस तरह की संस्था चलाते हैं।"
"क्या मतलब???" मेरे माथे पर बल पड़ा____"संस्था चलाने से क्या मतलब है तुम्हारा?"
"हम एक ऐसी संस्था चलाते हैं।" उस शख़्स ने कहा_____"जो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती है। दुनियां के किसी भी कोने में चले जाओ, हर जगह औरत और मर्द की ढेर सारी समस्याओं में से एक समस्या सेक्स भी है। कोई मर्द अपनी पत्नी से खुश नहीं है तो कोई पत्नी अपने पति से खुश नहीं है। इससे होता ये है कि हर औरत और मर्द अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए घर से बाहर अपने लिए पार्टनर ढूंढ़ते हैं। हालांकि औरतों और मर्दों के ऐसा करने से अक्सर उनकी मैरिड लाइफ़ ख़तरे में पड़ जाती है लेकिन इंसान करे भी तो क्या करे? ख़ैर, हमारी संस्था गुप्त रूप से औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर प्रोवाइड करती है। हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों के पास उनकी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाते हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत पड़ती है।"
"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" मैंने चकित भाव से कहा_____"लेकिन एक सवाल है मेरे मन में और वो कि जिनको अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है वो लोग इस संस्था से सम्बन्ध कैसे बनाते हैं? क्योंकि तुम्हारे अनुसार तो ये संस्था गुप्त ही है न, जिसके बारे में बाहरी दुनियां को पता ही नहीं है कि ऐसी कोई संस्था भी है।"
"सवाल अच्छा है।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"किन्तु इसका जवाब ये है कि इसके लिए हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों का पता लगाते रहते हैं जिन्हें अपने लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है। दुनियां में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अपना टेस्ट बदलने के लिए दूसरी औरतों या दूसरे मर्दों से सेक्स करने की चाह रखते हैं। हमारी संस्था में ऐसे लोगों के बारे में पता लगाने का काम दूसरे एजेंट्स करते हैं, जबकि सेक्स की सर्विस देने वाले एजेंट्स दूसरे होते हैं।"
"ओह! तो इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें तुम्हारे एजेंट्स के द्वारा ही मेरे बारे में पता चला है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस शख़्स ने कहा____"ज़ाहिर सी बात है। जैसा कि हमने अभी तुम्हें बताया कि ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए हमारी संस्था के दूसरे एजेंट्स होते हैं। उन्हीं एजेंट्स के पता करने का नतीजा ये हुआ है कि इस वक़्त तुम यहाँ पर हो।"
"अगर मैं इसके लिए मना कर दूं तो?" मैंने कुछ सोचते हुए ये कहा तो उस शख़्स ने कहा____"वो तुम्हारी मर्ज़ी की बात है। इसके लिए तुम्हें मजबूर नहीं किया जाएगा लेकिन हां अगर तुम अपनी मर्ज़ी से एक बार हमारी इस संस्था से जुड़ कर इसके एजेंट बन गए तो फिर तुम इस संस्था को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।"
"ऐसा क्यों?" मैंने न समझने वाले भाव से कहा।
"दुनियां में हर चीज़ के अपने नियम कानून होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"उसी तरह हमारी इस संस्था के भी कुछ नियम कानून हैं जिनका पालन करना संस्था के हर एजेंट का फ़र्ज़ है। संस्था के नियम कानून तोड़ने पर शख़्त से शख़्त सज़ा भी दी जाती है। हालांकि आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं है कि हमारी संस्था के किसी एजेंट ने कोई नियम कानून तोड़ा हो या अपनी मर्ज़ी से ऐसा कुछ किया हो जो संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ रहा हो।"
"इसका मतलब ये हुआ कि इस संस्था से जुड़ने के बाद इंसान अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकता?" मैंने ये कहा तो रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"नियम कानून इस लिए बनाए जाते हैं ताकि इंसान किसी चीज़ का नाजायज़ फायदा न उठाए और अनुशासित ढंग से अपना हर काम करे। ये नियम कानून हर जगह और हर क्षेत्र में बने होते हैं। बिना नियम कानून के कोई भी क्षेत्र हो वो बहुत जल्द ही गर्त में डूब जाता है।"
रहसयमयी शख़्स की बातें सुन कर इस बार मैं कुछ न बोला। ये अलग बात है कि बार बार मेरे ज़हन में यही ख़याल उभर रहा था कि मुझे इस शख़्स के कहने पर इस संस्था से जुड़ जाना चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी हो जाएगी। यानी एजेंट के रूप में मैं किसी न किसी लड़की या औरत की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और फिर जैसे चाहूंगा वैसे उन्हें भोगूंगा। इस ख़याल के साथ ही मेरा मन बल्लियों उछलने लगा था। साला कहां आज तक मेरी किसी लड़की से बात करने में भी गांड फट के हाथ में आ जाती थी और कहां अब इस संस्था से जुड़ने के बाद मैं बिना किसी बाधा के किसी लड़की या औरत को सहज ही भोग सकता था। मुझे कहीं से भी इस काम में अपने लिए कोई लफड़ा नज़र नहीं आ रहा था बल्कि मेरे लिए तो हर बार एक नई और अलग चूत मारने को मिलने वाली थी। हालांकि मेरे लिए अभी भी एक समस्या ये थी कि मैं स्वभाव से शर्मीला था जिसकी वजह से मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात नहीं कर पाता था किन्तु मैं जानता था कि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी ये समस्या भी दूर हो जाएगी।
"तुम चाहो तो इसके बारे में सोचने के लिए समय ले सकते हो।" मुझे चुप देख उस शख़्स ने कहा_____"तुम्हें इस काम के लिए किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जाएगा। इस संस्था से जुड़ने का फ़ैसला सिर्फ तुम्हारा ही होगा, लेकिन संस्था से जुड़ने के बाद फिर तुम इस संस्था को छोड़ने के बारे में सोचोगे भी नहीं और ना ही संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ जा कर अपनी मर्ज़ी से कुछ करोगे।"
"ठीक है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मुझे इस बारे में सोचने के लिए दो दिन का समय चाहिए। वैसे, इस संस्था से जुड़ने के बाद ऐसा भी तो हो सकता है कि अपने परिवार के बीच रहते हुए मुझे संस्था के लिए काम करने में समस्या होने लगे। उस सूरत में मैं क्या करुंगा?"
"इस तरह की समस्या हमारे बाकी एजेंट्स को भी थी।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन ये भी सच है कि आज तक उन्हें ऐसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। क्योंकि हमारी संस्था का काम गुप्त रूप से करने का है और संस्था के नियम कानून के अनुसार संस्था का कोई भी एजेंट्स न तो अपने बारे में किसी को पता चलने देता है और ना ही उसे ऐसी किसी सिचुएशन में फंसने दिया जाता है जिसके चलते एजेंट के साथ साथ हमारी संस्था को भी कोई नुकसान पहुंच सके। इस संस्था की गोपनीयता का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि संस्था का कोई भी एजेंट संस्था के दूसरे एजेंट्स के बारे में कुछ नहीं जानता। एक तरह से तुम ये समझो कि ये एक सीक्रेट सर्विस है, यानि कि एक गुप्त नौकरी। जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसी को पता चलने दिया जाता है। संस्था के साथ साथ संस्था के हर एजेंट्स की गोपनीयता का सबसे पहले ख़याल रखा जाता है।"
"वैसे इस संस्था का नाम क्या है?" मैंने जिज्ञासावश पूछा तो कुछ पल रुकने के बाद रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"संस्था के नाम के बारे में तुम्हें तभी बताया जाएगा जब तुम इस संस्था का एजेंट बनने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाओगे। ख़ैर तुमने सोचने के लिए दो दिन का वक़्त मांगा है इस लिए जाओ और आराम से सोचो इस बारे में।"
"तो क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूं?" मैंने पूछा तो उस शख़्स की आवाज़ आई____"बेशक, तुम अपने घर ही जाओगे किन्तु उसी हालत में जिस हालत में तुम्हें यहाँ पर लाया गया था।"
"यहां से जाने के बाद।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा_____"अगर मैंने लोगों को इस संस्था के बारे में बता दिया तो?"
"शौक से बता देना।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन किसी को भी बताने से पहले एक बार ज़रा खुद भी सोचना कि तुम्हारी बात का यकीन कौन करेगा?"
उस रहस्यमयी शख़्स की ये बात सुन कर मुझे भी एहसास हुआ कि यकीनन मेरी इस बात पर भला कौन यकीन करेगा कि इस दुनियां में ऐसी कोई संस्था भी हो सकती है। एक तरह से इस बारे में लोगों को बता कर मैं अपना ही मज़ाक उड़ाऊंगा। ख़ैर अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे मेरे पीछे से किसी के आने की आहट हुई तो मैंने पलट कर पीछे देखना चाहा लेकिन उसी पल जैसे क़यामत टूट पड़ी मुझ पर। एक बार फिर से मुझे बड़ी ही सफाई से बेहोश कर दिया गया था।
जब मुझे होश आया तो मैं उसी सड़क के किनारे पड़ा हुआ था जहां पर मैं पहली बार बेहोश हुआ था। मेरे बदन पर इस बार मेरे ही कपड़े थे। ये देख कर मैं एक बार फिर से चकित रह गया। मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। मोटर साइकिल को किसी ने सड़क से हटा कर ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया था जहां पर आसानी से किसी की नज़र नहीं पड़ सकती थी। कुछ पलों के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तक मैं कोई ख़्वाब देख रहा था और जब आँख खुली तो मैं हक़ीक़त की दुनिया में आ गया हूं। आस पास पहले की ही भाँति कोहरे की हल्की धुंध थी और अब मुझे ठण्ड भी प्रतीत हो रही थी। कुछ देर मैं बेहोश होने से पूर्व की घटना के बारे में याद कर के सोचता रहा, उसके बाद उठा और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर घर की तरफ बढ़ गया।
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