30-07-2021, 11:38 PM
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C. M. S.
(Choot Maar Service)
अध्याय-01
जेलर शिवकांत वागले के ऑफिस में एक ऐसे शख़्स ने क़दम रखा जिसके चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछें थी और सिर पर लम्बे लम्बे किन्तु उलझे हुए बाल थे। उस शख़्स के जिस्म पर इस वक़्त अगर अच्छे कपड़े न होते तो उसे देख कर हर कोई यही कहता कि वो कोई पागल ही है। चेहरे पर अजीब से भाव लिए जब वो जेलर के सामने रखी टेबल के पार आ कर खड़ा हुआ तो कुर्सी पर बैठे किन्तु कहीं खोए हुए जेलर का ध्यान भंग हुआ और उसने सिर उठा कर उस शख़्स की तरफ देखा।
"अ..अरे! आओ विक्रम सिंह?" जेलर शिवकांत ने उस शख़्स की तरफ देखते हुए नरम लहजे में कहा____"हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे। पिछले पांच सालों से हम तुमसे जो सवाल पूछते आ रहे हैं उसका जवाब आज तो ज़रूर दोगे न तुम? आज तुम बीस साल बाद इस जेल से रिहा हो कर जा रहे हो इस लिए हम चाहते हैं कि तुम हमारे उस सवाल का जवाब ज़रूर दे कर जाओ। यकीन मानो कि इन पांच सालों में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब हमने तुम्हारे बारे में सोचा न हो। सवाल तो बहुत सारे हैं लेकिन हमें सिर्फ उसी सवाल का जवाब चाहिए तुमसे।"
जेलर शिवकांत की बातें सुन कर विक्रम सिंह नाम के उस शख़्स ने कुछ पलों तक उसे देखा और फिर ख़ामोशी से अपने कंधे पर टंगे एक कपड़े वाले थैले को निकाला और उस थैले के अंदर हाथ डाल कर उससे एक मोटी सी किताब निकाली। उस मोटी सी किताब को हाथ में लिए पहले तो वो कुछ पलों तक उस किताब को देखता रहा और फिर जेलर शिवकांत वागले की तरफ देखते हुए उसने उस किताब को उसकी तरफ बढ़ा दिया।
"जेलर साहब।" फिर उसने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"ये किताब रख लीजिए। इस किताब को आप मेरी पर्सनल डायरी समझिए। इसमें आपके सभी सवालों के जवाब मौजूद हैं और साथ ही वो सब भी मौजूद है जिससे आपको मेरे बारे में पता चल सके।"
"तो क्या तुमने इसी लिए हमसे ये डायरी मंगवाई थी कि तुम इसमें अपना सब कुछ लिख सको?" जेलर ने थोड़े हैरानी भरे भाव से पूछा____"अगर ऐसी ही बात है तो फिर तो हमारे मन में ये जानने की और भी ज़्यादा जिज्ञासा जाग उठी है कि आख़िर इस किताब में तुमने अपने बारे में क्या क्या लिखा होगा?"
"इस डायरी को पढ़ने के बाद।" विक्रम सिंह ने सपाट लहजे में कहा____"आप ये भी समझ जाएंगे कि मैंने आपके बार बार पूछने पर भी आपके सवालों के जवाब क्यों नहीं दिए थे? ख़ैर, चलते चलते आपसे बस एक ही गुज़ारिश है कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां आ जाएं किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश नहीं करेंगे।"
"ऐसा क्यों कह रहे हो विक्रम सिंह?" जेलर ने चौंकते हुए कहा____"एक तुम ही तो थे जिसने इन पांच सालों में हमें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था। हम हमेशा सोचते थे कि बीस साल पहले जिन इल्ज़ामों के तहत तुम यहाँ पर आए थे तो क्या वो सच रहे होंगे? इन पांच सालों में हमने कभी भी तुम्हें ऐसा वैसा कुछ भी करते हुए नहीं देखा जिससे ये लगे कि तुम जैसे इंसान ने ऐसा संगीन जुर्म किया रहा होगा।"
"ये दुनियां एक मायाजाल है जेलर साहब।" विक्रम सिंह ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"यहां पर आँखों देखा और कानों सुना भी सच नहीं होता। ख़ैर, अब जाने की इजाज़त दीजिए मुझे।"
जेलर शिवकांत को तुरंत कुछ समझ न आया कि वो क्या कहे, अलबत्ता विक्रम सिंह के अंतिम वाक्य को सुन कर वो अपनी कुर्सी से उठ कर ज़रूर खड़ा हो गया था। उधर विक्रम सिंह ने जेलर को देखते हुए नमस्कार करने के लिए अपने दोनों हाथ जोड़े और ऑफिस के दरवाज़े की तरफ बढ़ गया।
विक्रम सिंह के जाने के बाद भी जेलर शिवकांत वागले काफी देर तक किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा था। फिर जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो उसने एक लम्बी सांस ली और वापस कुर्सी पर बैठ गया। नज़र सामने टेबल पर रखी उस डायरी पर पड़ी जिसे विक्रम सिंह उसे दे गया था।
विक्रम सिंह बीस साल पहले इस जेल में क़ैदी बन कर आया था। अपने माता पिता की हत्या का संगीन इल्ज़ाम लगा था उस पर। सिक्युरिटी ने उसे घटना स्थल पर रंगे हाथ पकड़ा था। मामला अदालत पर पहुंचा और फिर न्यायाधीश ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी। उस सज़ा के बाद विक्रम सिंह ने बीस साल इस जेल में गुज़ारे। इन बीस सालों में उसने हर वो यातनाएं सहीं जो जेल में ख़तरनाक अपराधियों के बीच रह कर सहनी पड़ती हैं और साथ ही उसने हर वो काम भी किया जो जेल में रहते हुए करना पड़ता है। गुज़रते वक़्त के साथ हर कोई ये समझ गया था कि विक्रम सिंह नाम का ये शख़्स ज़िंदा रहते हुए भी एक बेजान लाश की तरह है जिस पर किसी भी चीज़ का प्रभाव नहीं पड़ता।
जेलर शिवकांत वागले पांच साल पहले इस जगह पर तबादले के रूप में आया था। विक्रम सिंह के बारे में उसे भी पता चला था और उसके मन में विक्रम सिंह के बारे में जानने की जिज्ञासा भी पैदा हुई थी किन्तु उसके पूछने पर हर बार विक्रम सिंह ने उससे बस यही कहा था कि उसके पास उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं है। अदालत में भी विक्रम सिंह ने न्यायाधीश को ये नहीं बताया था कि क्यों उसने अपने ही माता पिता की हत्या की थी?
विक्रम सिंह के अच्छे वर्ताव के चलते अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर दिया था। हालांकि अदालत के इस फ़ैसले से विक्रम सिंह ज़रा भी खुश नहीं था। उसका कहना था कि अब ये जेल ही उसकी दुनियां है और इसी दुनियां में एक दिन उसे फ़ना हो जाना है। इस दुनियां से बाहर वो जाना ही नहीं चाहता किन्तु अदालत ने उसकी इस इच्छा के विरुद्ध उसे रिहा कर दिया था।
एक महीने पहले विक्रम सिंह ने जेलर शिवकांत वागले से एक डायरी की मांग की थी। जेलर के पूछने पर उसने यही बताया था कि रात के समय उसे नींद नहीं आती इस लिए समय काटने के लिए उसे एक ऐसी डायरी चाहिए जिसमें वो अपनी स्वेच्छा से जो चाहे लिख सके। विक्रम सिंह ने क्योंकि पहली बार ऐसी किसी चीज़ की मांग की थी इस लिए वागले ने फ़ौरन ही उसके लिए एक डायरी मंगवा दी थी।
सामने टेबल पर रखी उसी डायरी को देखते हुए जेलर सोच रहा था कि विक्रम सिंह ने आख़िर इसमें ऐसी कौन सी इबारत लिखी होगी जो उसके बारे में उसे बताने वाली है? जेलर का मन किया कि वो फ़ौरन ही डायरी को खोल कर देखे कि उसमें क्या लिखा है किन्तु फिर ये सोच कर उसने अपना इरादा बदल दिया कि वो फुर्सत के समय इस डायरी को खोलेगा और देखेगा कि उस विक्रम सिंह ने इसमें क्या लिखा है।
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शिवकांत वागले अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर अपने सरकारी आवास पर पहुंचा। उसके परिवार में उसकी पत्नी सावित्री और दो बच्चे थे। उसके दोनों बच्चों में एक लड़का था और एक लड़की। लड़की कॉलेज में लास्ट ईयर की छात्रा थी और लड़के ने इसी साल कॉलेज ज्वाइन किया था। रात में डिनर करने के बाद शिवकांत वागले विक्रम सिंह की डायरी ले कर अपने स्टडी रूम में चला गया था।
स्टडी रूम में कुर्सी पर बैठा वागले सिगरेट जला कर उसके कश ले रहा था और टेबल पर रखी डायरी को देखता भी जा रहा था। उसके दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा तेज़ चल रहीं थी। कदाचित इस एहसास से कि जाने इस डायरी में क्या लिखा होगा विक्रम सिंह ने? कुछ देर तक सिगरेट के कश लेने के बाद शिवकांत वागले ने सिगरेट को टेबल पर ही एक कोने में रखी ऐसट्रे में बुझाया और फिर एक गहरी सांस ले कर उसने उस डायरी की तरफ अपने हाथ बढ़ाए।
डायरी का मोटा कवर पलटाते ही शिवकांत वागले को उसमें एक तह किया हुआ कागज़ नज़र आया। वागले ने उसे हाथ में लिया और उसे खोल कर देखा। तह किए हुए उस कागज़ में कोई लम्बा सा मजमून लिखा हुआ था जिसे वागले ने मन ही मन पढ़ना शुरू किया।
आदर्णीय जेलर साहब,
पिछले पांच सालों से आप मेरे बारे में और मेरे उस अपराध के बारे में पूछते रहे जिसकी वजह से मैं आपकी जेल में मुजरिम बन कर आया था किन्तु मैंने कभी भी आपके सवालों के जवाब नहीं दिए। असल में मुझे कभी समझ ही नहीं आया कि मैं जवाब के रूप में आपसे क्या कहूं और किस तरह से कहूं? इस दुनियां में ऐसी बहुत सी चीज़ें देखने सुनने को मिलती हैं जिनके बारे में हम इंसान कभी कल्पना भी नहीं किए होते। इंसान अपनी ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसे दोराहे पर भी आ जाता है जहां पर वो सही ग़लत का फैसला नहीं कर पाता। ऐसे दोराहे पर खड़े इंसान का अगर ज़रा सा भी विवेक काम कर जाए तो समझो अनर्थ होने से बच गया वरना तो सारी ज़िन्दगी पछताने के सिवा दूसरा कोई चारा ही नहीं रहता।
जेलर साहब जब एक महीने पहले आपने मुझे बताया कि अदालत ने मेरी बाकी की सज़ा माफ़ कर दी है और मुझे रिहा करने का फ़ैसला सुना दिया है तो यकीन मानिए मुझे अदालत के उस फैसले से ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई। मैं उस दुनियां में अब वापस नहीं जाना चाहता था जहां पर मेरा सब कुछ ख़त्म हो चुका था। ख़ैर शायद मेरे नसीब में सुकून जैसी चीज़ लिखी ही नहीं थी तभी तो मुझे यहाँ से रिहा कर के निकाल देने का फ़ैसला किया अदालत ने। आपके द्वारा मिली इस सूचना के बाद रात में मैंने बहुत सोचा और फिर ये फ़ैसला किया कि जाते जाते आपको वो सब बता कर ही जाऊं जिसके बारे में आप मुझसे पिछले पांच सालों से पूछते आ रहे थे लेकिन आपके सामने अपने मुख से वो सब बताने की ना तो पहले मुझ में हिम्मत थी और ना ही आगे कभी हो सकती थी इस लिए मैंने कागज़ और कलम का सहारा लेने का फ़ैसला किया। मैंने आपसे एक डायरी की मांग की और आपने मुझे एक डायरी ला कर दी।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस डायरी में आपके किन किन सवालों के जवाब लिखूं? मैंने बहुत सोचा और फिर मैंने बहुत सोच समझ कर ये फ़ैसला किया कि मैं अपने बारे में वो सब कुछ लिखूंगा जिसे पढ़ने के बाद आप ख़ुद इस बात का फ़ैसला कर सकें कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी किया वो सही था या ग़लत? अगर मैं सही था तो कहां तक सही था और अगर मैं ग़लत था तो कहां तक ग़लत था?
इस डायरी में अपना इतिहास लिखते हुए मेरे हाथ बुरी तरह कांप रहे थे और मेरी धड़कनें थम सी गईं थी। मैं इस कल्पना से ही बेहद लाचार और बेबस सा महसूस करने लगा था कि सब कुछ पढ़़ लेने के बाद आपकी नज़र में मेरी क्या औकात बन जाएगी और आप मेरे बारे में किस तरह का नज़रिया बना लेंगे किन्तु फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला अब किसी बात से मुझे कैसे कोई फ़र्क पड़ सकता है? जिसका मुकम्मल वजूद ही एक मज़ाक बन के रह गया हो उसके लिए किसी बात का आख़िर क्या महत्व रह जाता है? यही सब सोच कर मैंने इस डायरी पर अपनी कलम को चलाना शुरू कर दिया था।
अन्त में आपसे बस इतना ही कहूंगा कि इस डायरी में मैंने जो कुछ भी लिखा है और जिस तरीके से भी लिखा है उसे आप आख़िर तक ज़रूर पढ़िएगा। मैं जानता हूं कि इस डायरी में लिखी बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें पढ़ना आपके लिए संभव नहीं हो सकेगा लेकिन मेरी गुज़ारिश का ख़याल रखते हुए ज़रूर पढ़िएगा। आख़िर में एक विनती भी है आपसे और वो ये कि इस डायरी में लिखी मेरी दास्तान पढ़ने के बाद चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश मत कीजिएगा। अच्छा अब अलविदा.....नमस्कार!
_____विक्रम सिंह
लम्बे चौड़े इस मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले ने एक गहरी सांस ली। कुछ देर तक वो उस कागज़ को और कागज़ में लिखे मजमून को देखता रहा उसके बाद उसने उस कागज़ को तह करके एक तरफ रख दिया। कागज़ को एक तरफ रखने के बाद वागले ने जब डायरी के प्रथम पेज़ को देखा तो उस पेज़ पर लिखे अक्षरों को पढ़ते ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभर आए।
डायरी के पहले ही पेज पर उसे बड़े बड़े किन्तु अंग्रेजी के अक्षरों में सी. एम. एस. लिखा नज़र आया था और साथ ही सी. एम. एस. के नीचे बिलकुल छोटे अक्षरों में उसे जो कुछ लिखा नज़र आया था उसे पढ़ते ही शिवकांत वागले के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ चौंकने के भी भाव उभर आए थे। अंग्रेजी के छोटे अक्षरों में ही लिखा था____'चूत मार सर्विस'।
शिवकांत वागले चूत मार सर्विस पढ़ कर बुरी तरह अचंभित हुआ। उसे लगा कि उससे उन शब्दों को पढ़ने में कहीं कोई ग़लती तो नहीं हो गई है इस लिए उसने उन्हें आँखें फाड़ फाड़ कर बार बार पढ़ा किन्तु हर बार उसे वही लिखा नज़र आया जो उसके लिए बड़े ही आश्चर्य की बात थी। वो समझ नहीं पाया कि विक्रम सिंह ने इस डायरी में ये क्या बकवास लिख दिया है? अपलक उन शब्दों को देखते हुए शिवकांत के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर विक्रम सिंह ने ऐसा लिखा है तो ज़रूर इसके पीछे कोई ख़ास वजह ही होगी किन्तु सबसे ज़्यादा सोचने वाली बात तो ये थी कि आख़िर ये चूत मार सर्विस का मतलब क्या है?
शिवकांत वागले का दिमाग़ एकदम से भन्ना सा गया था। उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि विक्रम सिंह जैसा शख़्स ऐसी वाहियात बात लिख सकता है। उसने डायरी के कवर को झटके से बंद किया और हल्के गुस्से में उसने उस डायरी को उठा कर टेबल की ड्रावर में रख दिया। कुछ देर खुद के जज़्बातों को शांत करने के बाद वो कुर्सी से उठ कर स्टडी रूम से बाहर निकला और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।
कमरे में आ कर शिवकांत बेड पर अपनी पत्नी सावित्री के बगल पर लेट गया। उसकी पत्नी सावित्री को जल्दी ही सो जाने की आदत थी इस लिए वो सो गई थी जबकि वागले बेड पर करवट के बल लेटा गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था। उसके ज़हन में अभी भी विक्रम सिंह द्वारा लिखे गए वो शब्द गूंज से रहे थे_____'चूत मार सर्विस।'
वागले को समझ नहीं आ रहा था कि इस सब का आख़िर क्या मतलब हो सकता है? क्या विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में अपने गुज़रे हुए कल को लिखा है और अगर उसने अपने गुज़रे हुए कल को ही लिखा है तो क्या उसका गुज़रा हुआ कल डायरी में लिखे गए उन शब्दों से ही सम्बंधित है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? शिवकांत ने बहुत सोचा किन्तु वो किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। अंत में उसने यही फ़ैसला किया कि कल वो उस डायरी को अपने साथ ऑफिस ले जाएगा और वहीं पर तसल्ली से उसमें लिखी हुई बातों को पढ़ेगा। ये सब सोच कर वागले ने अपनी आँखे बंद कर ली। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वो नींद की वादियों में खोता चला गया।
दूसरे दिन शिवकांत वागले जेलर की वर्दी पहन कर जेल पहुंचा। अपने केबिन में पहुंच कर उसने कुछ देर ज़रूरी फाइल्स को चेक किया और फिर पूरी जेल का चक्कर लगाते हुए निरीक्षण किया। सब कुछ ठीक ठाक देख कर वो वापस अपने केबिन में आ गया। एक सिगरेट सुलगाने के बाद उसे विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल आया। विक्रम सिंह की डायरी वो अपने साथ ही ले कर आया था।
अपने छोटे से ब्रीफ़केस से डायरी निकाल कर वागले ने उसे टेबल पर रखा और सिगरेट के कश लेते हुए उसे घूरने लगा। धड़कते दिल के साथ उसने डायरी के कवर को पलटा। नज़र फिर से पहले पेज पर अंग्रेजी के अक्षरों में लिखे सी. एम. एस. पर पड़ी और उसी के नीचे अंग्रेजी में ही लेकिन छोटे अक्षरों में लिखे चूत मार सर्विस पर पड़ी। शिवकांत वागले के ज़हन में बिजली की स्पीड से ये ख़याल उभरा कि सी. एम. एस. अंग्रेजी में लिखे छोटे अक्षरों का शार्ट नाम है जबकि चूत मार सर्विस उसका फुल फॉर्म है। कुछ देर शार्ट और फुल दोनों नाम के फॉर्मों को देखने के बाद वागले ने उस पेज को पलटाया। उस पेज के बाद बाकी के कुछ पेजेस पर भारत देश और उसके कई राज्यों के नक़्शे बने हुए थे और अलग अलग देशों के कोड्स लिखे हुए थे। शिवकांत वागले इस तरह के सभी पेजेस को एक ही बार में पलट दिया। उन पेजेस के बाद जो पहला पेज दिखा उसमें वागले की निगाह ठहर गई।
उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।
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