30-07-2021, 12:52 PM
योगी – ‘मगर पहले हमारी एक बात का जवाब दे लो।’
कुमार - ‘वह क्या?’
योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) ‘इस लड़की ने तुम्हारी बहुत मदद की है और तुमने तथा तुम्हारे ऐयारों ने इसे देखा भी है। इसका हाल और कौन-कौन जानता है और तुम्हारे ऐयारों के सिवाय इसे और किस-किस ने देखा है?’
कुमार - ‘मेरे और फतहसिंह के सिवाय इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा। आज ये ऐयार लोग इनको देख रहे हैं।’
वनकन्या – ‘एक दफा ये (तेजसिंह की तरफ बता कर) मुझसे मिल गए हैं, मगर शायद वह हाल इन्होंने आपसे न कहा हो, क्योंकि मैंने कसम दे दी थी।’
यह सुन कर कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखा। उन्होंने कहा - ‘जी हाँ, यह उस वक्त की बात है, जब आपने मुझसे कहा था कि आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। तब मैंने कोशिश करके इनसे मुलाकात की और कहा कि अपना पूरा हाल मुझसे जब तक न कहेंगी मैं न मानूँगा और आपका पीछा न छोडूँगा। तब इन्होंने कहा – “एक दिन वह आएगा कि चंद्रकांता और मै, कुमार की कहलाएँगी मगर इस वक्त तुम मेरा पीछा मत करो नहीं तो तुम्हीं लोगों के काम का हर्ज होगा।” तब मैंने कहा – “अगर आप इस बात की कसम खाएँ कि चंद्रकांता, कुमार को मिलेंगी तो इस वक्त मैं यहाँ से चला जाऊँ।” इन्होंने कहा – “तुम भी इस बात की कसम खाओ कि आज का हाल तब तक किसी से न कहोगे जब तक मेरा और कुमार का सामना न हो जाए।” आखिर इस बात की हम दोनों ने कसम खाई। यही सबब है कि पूछने पर भी मैंने यह सब हाल किसी से नहीं कहा, आज इनका और आपका पूरी तौर से सामना हो गया इसलिए कहता हूँ।’
योगी - (कुमार से) ‘अच्छा तो इस लड़की को सिवाय तुम्हारे तथा ऐयारों के और किसी ने नहीं देखा, मगर इसका हाल तो तुम्हारे लश्कर वाले जानते होंगे कि आजकल कोई नई औरत आई है जो कुमार की मदद कर रही है?’
कुमार - ‘नहीं, यह हाल भी किसी को मालूम नहीं, क्योंकि सिवाय ऐयारों के मैं और किसी से इनका हाल कहता ही न था और ऐयार लोग, सिवाय अपनी मंडली के दूसरे को किसी बात का पता क्यों देने लगे। हाँ, इनके नकाबपोश सवारों को हमारे लश्कर वालों ने कई दफा देखा है और इनका खत ले कर भी जब-जब कोई हमारे पास गया तब हमारे लश्कर वालों ने देख कर शायद कुछ समझा हो।’
योगी – ‘इसका कोई हर्ज नहीं, अच्छा यह बताओ कि तुम्हारी जुबानी राजा सुरेंद्रसिंह और जयसिंह ने भी कुछ इसका हाल सुना है?’
कुमार - ‘उन्होंने तो नहीं सुना हाँ, तेजसिंह के पिता जीतसिंह जी से मैंने सब हाल जरूर कह दिया था, शायद उन्होंने मेरे पिता से कहा हो।’
योगी – ‘नहीं, जीतसिंह यह सब हाल तुम्हारे पिता से कभी न कहेंगे। मगर अब तुम इस बात का खूब ख्याल रखो कि वनकन्या ने जो-जो काम तुम्हारे साथ किए हैं, उनका हाल किसी को न मालूम हो।’
कुमार - ‘मैं कभी न कहूँगा, मगर आप यह तो बताएँ कि इनका हाल किसी से न कहने में क्या फायदा सोचा है? अगर मैं किसी से कहूँगा तो इसमें इनकी तारीफ ही होगी।’
योगी – ‘तुम लोगों के बीच में चाहे इसकी तारीफ हो मगर जब यह हाल इसके माँ-बाप सुनेंगे तो उन्हें कितना रंज होगा? क्योंकि एक बड़े घर की लड़की का पराए मर्द से मिलना और पत्र-व्यवहार करना तथा ब्याह का संदेश देना इत्यादि कितने ऐब की बात है।’
कुमार - ‘हाँ, यह तो ठीक है। अच्छा, इनके माँ-बाप कौन हैं और कहाँ रहते हैं।’
योगी – ‘इसका हाल भी तुमको तब मालूम होगा जब राजा सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह यहाँ आएँगे और कुमारी चंद्रकांता उनके हवाले कर दी जाएगी।’
कुमार - ‘तो आप मुझे हुक्म दीजिए कि मैं इसी वक्त उन लोगों को लाने के लिए यहाँ से चला जाऊँ।’
योगी – ‘यहाँ से जाने का भला यह कौन-सा वक्त है। क्या शहर का मामला है? रात-भर ठहर जाओ, सुबह को जाना, रात भी अब थोड़ी ही रह गई है, कुछ आराम कर लो।’
कुमार - ‘जैसी आपकी मर्जी।’
गर्मी बहुत थी इस वजह से उसी मैदान में कुमार ने सोना पसंद किया। इन सभी के सोने का इंतजाम योगी जी के हुक्म से उसी वक्त कर दिया गया। इसके बाद योगी जी अपने कमरे की तरफ रवाना हुए और वनकन्या भी एक तरफ को चली गई।
थोड़ी-सी रात बाकी थी, वह भी उन लोगों को बातचीत करते बीत गई। अभी सूरज नहीं निकला था कि योगी जी अकेले फिर कुमार के पास आ मौजूद हुए और बोले - ‘मैं रात को एक बात कहना भूल गया था सो इस वक्त समझा देता हूँ। जब राजा जयसिंह इस खोह में आने के लिए तैयार हो जाएँ बल्कि तुम्हारे पिता और जयसिंह दोनों मिल कर इस खोह के दरवाजे तक आ जाएँ, तब पहले तुम उन लोगों को बाहर ही छोड़ कर अपने ऐयारों के साथ यहाँ आ कर हमसे मिल जाना, इसके बाद उन लोगों को यहाँ लाना, और इस वक्त स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तब यहाँ से जाओ।’
कुमार ने ऐसा ही किया, मगर योगी की आखिरी बात से इनको और भी ताज्जुब हुआ कि हमें पहले क्यों बुलाया।
कुछ खाने का सामान हो गया। कुमार और उनके ऐयारों को खिला-पिला कर योगी ने विदा कर दिया।
कुमार - ‘वह क्या?’
योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) ‘इस लड़की ने तुम्हारी बहुत मदद की है और तुमने तथा तुम्हारे ऐयारों ने इसे देखा भी है। इसका हाल और कौन-कौन जानता है और तुम्हारे ऐयारों के सिवाय इसे और किस-किस ने देखा है?’
कुमार - ‘मेरे और फतहसिंह के सिवाय इन्हें आज तक किसी ने नहीं देखा। आज ये ऐयार लोग इनको देख रहे हैं।’
वनकन्या – ‘एक दफा ये (तेजसिंह की तरफ बता कर) मुझसे मिल गए हैं, मगर शायद वह हाल इन्होंने आपसे न कहा हो, क्योंकि मैंने कसम दे दी थी।’
यह सुन कर कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखा। उन्होंने कहा - ‘जी हाँ, यह उस वक्त की बात है, जब आपने मुझसे कहा था कि आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। तब मैंने कोशिश करके इनसे मुलाकात की और कहा कि अपना पूरा हाल मुझसे जब तक न कहेंगी मैं न मानूँगा और आपका पीछा न छोडूँगा। तब इन्होंने कहा – “एक दिन वह आएगा कि चंद्रकांता और मै, कुमार की कहलाएँगी मगर इस वक्त तुम मेरा पीछा मत करो नहीं तो तुम्हीं लोगों के काम का हर्ज होगा।” तब मैंने कहा – “अगर आप इस बात की कसम खाएँ कि चंद्रकांता, कुमार को मिलेंगी तो इस वक्त मैं यहाँ से चला जाऊँ।” इन्होंने कहा – “तुम भी इस बात की कसम खाओ कि आज का हाल तब तक किसी से न कहोगे जब तक मेरा और कुमार का सामना न हो जाए।” आखिर इस बात की हम दोनों ने कसम खाई। यही सबब है कि पूछने पर भी मैंने यह सब हाल किसी से नहीं कहा, आज इनका और आपका पूरी तौर से सामना हो गया इसलिए कहता हूँ।’
योगी - (कुमार से) ‘अच्छा तो इस लड़की को सिवाय तुम्हारे तथा ऐयारों के और किसी ने नहीं देखा, मगर इसका हाल तो तुम्हारे लश्कर वाले जानते होंगे कि आजकल कोई नई औरत आई है जो कुमार की मदद कर रही है?’
कुमार - ‘नहीं, यह हाल भी किसी को मालूम नहीं, क्योंकि सिवाय ऐयारों के मैं और किसी से इनका हाल कहता ही न था और ऐयार लोग, सिवाय अपनी मंडली के दूसरे को किसी बात का पता क्यों देने लगे। हाँ, इनके नकाबपोश सवारों को हमारे लश्कर वालों ने कई दफा देखा है और इनका खत ले कर भी जब-जब कोई हमारे पास गया तब हमारे लश्कर वालों ने देख कर शायद कुछ समझा हो।’
योगी – ‘इसका कोई हर्ज नहीं, अच्छा यह बताओ कि तुम्हारी जुबानी राजा सुरेंद्रसिंह और जयसिंह ने भी कुछ इसका हाल सुना है?’
कुमार - ‘उन्होंने तो नहीं सुना हाँ, तेजसिंह के पिता जीतसिंह जी से मैंने सब हाल जरूर कह दिया था, शायद उन्होंने मेरे पिता से कहा हो।’
योगी – ‘नहीं, जीतसिंह यह सब हाल तुम्हारे पिता से कभी न कहेंगे। मगर अब तुम इस बात का खूब ख्याल रखो कि वनकन्या ने जो-जो काम तुम्हारे साथ किए हैं, उनका हाल किसी को न मालूम हो।’
कुमार - ‘मैं कभी न कहूँगा, मगर आप यह तो बताएँ कि इनका हाल किसी से न कहने में क्या फायदा सोचा है? अगर मैं किसी से कहूँगा तो इसमें इनकी तारीफ ही होगी।’
योगी – ‘तुम लोगों के बीच में चाहे इसकी तारीफ हो मगर जब यह हाल इसके माँ-बाप सुनेंगे तो उन्हें कितना रंज होगा? क्योंकि एक बड़े घर की लड़की का पराए मर्द से मिलना और पत्र-व्यवहार करना तथा ब्याह का संदेश देना इत्यादि कितने ऐब की बात है।’
कुमार - ‘हाँ, यह तो ठीक है। अच्छा, इनके माँ-बाप कौन हैं और कहाँ रहते हैं।’
योगी – ‘इसका हाल भी तुमको तब मालूम होगा जब राजा सुरेंद्रसिंह और महाराज जयसिंह यहाँ आएँगे और कुमारी चंद्रकांता उनके हवाले कर दी जाएगी।’
कुमार - ‘तो आप मुझे हुक्म दीजिए कि मैं इसी वक्त उन लोगों को लाने के लिए यहाँ से चला जाऊँ।’
योगी – ‘यहाँ से जाने का भला यह कौन-सा वक्त है। क्या शहर का मामला है? रात-भर ठहर जाओ, सुबह को जाना, रात भी अब थोड़ी ही रह गई है, कुछ आराम कर लो।’
कुमार - ‘जैसी आपकी मर्जी।’
गर्मी बहुत थी इस वजह से उसी मैदान में कुमार ने सोना पसंद किया। इन सभी के सोने का इंतजाम योगी जी के हुक्म से उसी वक्त कर दिया गया। इसके बाद योगी जी अपने कमरे की तरफ रवाना हुए और वनकन्या भी एक तरफ को चली गई।
थोड़ी-सी रात बाकी थी, वह भी उन लोगों को बातचीत करते बीत गई। अभी सूरज नहीं निकला था कि योगी जी अकेले फिर कुमार के पास आ मौजूद हुए और बोले - ‘मैं रात को एक बात कहना भूल गया था सो इस वक्त समझा देता हूँ। जब राजा जयसिंह इस खोह में आने के लिए तैयार हो जाएँ बल्कि तुम्हारे पिता और जयसिंह दोनों मिल कर इस खोह के दरवाजे तक आ जाएँ, तब पहले तुम उन लोगों को बाहर ही छोड़ कर अपने ऐयारों के साथ यहाँ आ कर हमसे मिल जाना, इसके बाद उन लोगों को यहाँ लाना, और इस वक्त स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तब यहाँ से जाओ।’
कुमार ने ऐसा ही किया, मगर योगी की आखिरी बात से इनको और भी ताज्जुब हुआ कि हमें पहले क्यों बुलाया।
कुछ खाने का सामान हो गया। कुमार और उनके ऐयारों को खिला-पिला कर योगी ने विदा कर दिया।