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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
बयान - 13

खोह वाले तिलिस्म के अंदर बाग में कुँवर वीरेंद्रसिंह और योगी जी मे बातचीत होने लगी जिसे वनकन्या और इनके ऐयार बखूबी सुन रहे थे।

कुमार - ‘पहले यह कहिए चंद्रकांता जीती है या मर गई?’

योगी – ‘राम-राम, चंद्रकांता को कोई मार सकता है? वह बहुत अच्छी तरह से इस दुनिया में मौजूद है।’

कुमार - ‘क्या उससे और मुझसे फिर मुलाकात होगी?’

योगी – ‘जरूर होगी।’

कुमार - ‘कब?’

योगी - (वनकन्या की तरफ इशारा करके) – ‘जब यह चाहेगी।’

इतना सुन कुमार वनकन्या की तरफ देखने लगे। इस वक्त उसकी अजीब हालत थी। बदन में घड़ी-घड़ी कँपकँपी हो रही थी, घबराई-सी नजर पड़ती थी। उसकी ऐसी गति देख कर एक दफा योगी ने अपनी कड़ी और तिरछी निगाह उस पर डाली, जिसे देखते ही वह सँभल गई। कुँवर वीरेंद्रसिंह ने भी इसे अच्छी तरह से देखा और फिर कहा -

कुमार - ‘अगर आपकी कृपा होगी तो मैं चंद्रकांता से अवश्य मिल सकूँगा।’

योगी – ‘नहीं यह काम बिल्कुल (वनकन्या को दिखा कर) इसी के हाथ में है, मगर यह मेरे हुक्म में है, अस्तु आप घबराते क्यों हैं। और जो-जो बातें आपको पूछनी हो पूछ लीजिए, फिर चंद्रकांता से मिलने की तरकीब भी बता दी जाएगी।’

कुमार - ‘अच्छा यह बताइए कि यह वनकन्या कौन है?’

योगी – ‘यह एक राजा की लड़की है।’

कुमार - ‘मुझ पर इसने बहुत उपकार किए, इसका क्या सबब है?’

योगी - इसका यही सबब है कि कुमारी चंद्रकांता में और इसमें बहुत प्रेम है।’

कुमार - ‘अगर ऐसा है तो मुझसे शादी क्यों किया चाहती है?’

योगी – ‘तुम्हारे साथ शादी करने की इसको कोई जरूरत नहीं और न यह तुमको चाहती ही है। केवल चंद्रकांता की जिद्द से लाचार है, क्योंकि उसको यही मंजूर है।’

योगी की आखिरी बात सुन कर कुमार मन में बहुत खुश हुए और फिर योगी से बोले - ‘जब चंद्रकांता में और इनमे इतनी मुहब्बत है तो यह उसे मेरे सामने क्यों नहीं लातीं?’

योगी – ‘अभी उसका समय नहीं है।’

कुमार - ‘क्यो’

योगी – ‘जब राजा सुरेंद्रसिंह और जयसिंह को आप यहाँ लाएँगे, तब यह कुमारी चंद्रकांता को ला कर उनके हवाले कर देगी।’

कुमार - ‘तो मैं अभी यहाँ से जाता हूँ, जहाँ तक होगा उन दोनों को ले कर बहुत जल्द आऊँगा।’
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 30-07-2021, 12:51 PM



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