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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
दूसरे दिन सवेरे ही फिर इश्तिहार लिए हुए एक पहरे वाला दरबार में हाजिर हुआ। हरदयालसिंह ने इश्तिहार ले कर देखा, यह लिखा था -

‘इन पाँच सवारों की क्या मजाल थी जो मेरे हाथ से बच कर निकल जाते। आज तो इन्हीं पर गुजरी, कल से तुम्हारे महल में खेल मचाऊँगा। लो अब खूब सँभल कर रहना। तुमने यह मुनादी कराई है कि जालिम खाँ को गिरफ्तार करने वाला दस हजार इनाम पाएगा। मैं भी कहे देता हूँ कि जो कोई मुझे गिरफ्तार करेगा उसे बीस हजार इनाम दूँगा।।

- वही जालिम खाँ।।’

आज का इश्तिहार पढ़ने से लोगों की क्या स्थिति हुई वे ही जानते होंगे। महाराज के तो होश उड़ गए। उनको अब उम्मीद न रही कि हमारी खबर नौगढ़ पहुँचेगी। एक खत के साथ पूरी पलटन को भेजना यह भी जवाँमर्दी से दूर था। सिवाय इसके दरबार में जासूसों ने यह खबर सुनाई कि जालिम खाँ के खौफ से शहर काँप रहा है, ताज्जुब नहीं कि दो या तीन दिन में तमाम रियाया शहर खाली कर दे। यह सुन कर और भी तबीयत घबरा उठी।

महाराज ने कई आदमी उन सवारों की लाशों को लाने के लिए रवाना किए। वहाँ जाते उन लोगों की जान काँपती थी मगर हाकिम का हुक्म था, क्या करते लाचार जाना पड़ता था।

पाँचों आदमियों की लाशें लाई गईं। उन सभी के सिर कटे हुए न थे, मालूम होता था फाँसी लगा कर जान ली गई है, क्योंकि गरदन में रस्से के दाग थे।

इस कैफियत को देख कर महाराज हैरान हो चुपचाप बैठे थे। कुछ अक्ल काम नहीं करती थी। इतने में सामने से पंडित बद्रीनाथ आते दिखाई दिए।

आज पंडित बद्रीनाथ का ठाठ देखने लायक था। पोर-पोर से फुर्तीलापन झलक रहा था। ऐयारी के पूरे ठाठ से सजे थे, बल्कि उससे फाजिल तीर-कमान लगाए, चुस्त जांघिया कसे, बटुआ और खंजर कमर से, कमंद पीठ पर लगाए पत्थरों की झोली गले में लटकती हुई, छोटा-सा डंडा हाथ में लिए कचहरी में आ मौजूद हुए।

महाराज को यह खबर पहले ही लग चुकी थी कि राजा शिवदत्त अपनी रानी को ले कर तपस्या करने के लिए जंगल की तरफ चले गए और पंडित बद्रीनाथ, पन्नालाल वगैरह सब ऐयार राजा सुरेंद्रसिंह के साथ हो गए हैं।
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 30-07-2021, 12:46 PM



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