30-07-2021, 12:28 PM
यकायक भारी आवाज के साथ दालान के एक तरफ की दीवार फट गई और उसमें से एक वृद्ध महापुरुष ने निकल कर कुमार का हाथ पकड़ लिया।
कुमार ने फिर कर देखा। लगभग अस्सी वर्ष की उम्र, लंबी-लंबी सफेद रूई की तरह दाढ़ी नाभी तक आई हुई, सिर की लंबी जटा जमीन तक लटकती हुई, तमाम बदन में भस्म लगाए, लाल और बड़ी-बड़ी आँखें निकाले, दाहिने हाथ में त्रिशूल उठाए, बाएँ हाथ से कुमार को थामे, गुस्से से बदन कँपाते, तापसी रूप शिव जी की तरह दिखाई पड़े जिन्होंने कड़क कर आवाज दी और कहा - ‘खबरदार जो किसी को विधवा करेगा।’
यह आवाज इस जोर की थी कि सारा मकान दहल उठा, तीनों ऐयारों के कलेजे काँप उठे। कुँवर वीरेंद्रसिंह का बिगड़ा हुआ दिमाग फिर ठिकाने आ गया। देर तक उन्हें सिर से पैर तक देख कर कुमार ने कहा - ‘मालूम हुआ, मैं समझ गया कि आप साक्षात शिव जी या कोई योगी हैं, मेरी भलाई के लिए आए हैं। वाह-वाह खूब किया जो आ गए। अब मेरा धर्म बच गया, मैं क्षत्रिय होकर आत्महत्या न कर सका। एक हाथ आपसे लड़ूँगा और इस अद्भुत त्रिशूल पर अपनी जान न्यौछावर करूँगा? आप जरूर इसीलिए आए हैं, मगर महात्मा जी, यह तो बताइए कि मैं किसको विधवा करूँगा? आप इतने बड़े महात्मा होकर झूठ क्यों बोलते हैं? मेरा है कौन? मैंने किसके साथ शादी की है? हाय, कहीं यह बात कुमारी सुनती तो उसको जरूर यकीन हो जाता कि ऐसे महात्मा की बात भला कौन काट सकता है?’
वृद्ध योगी ने कड़क कर कहा - ‘क्या मैं झूठा हूँ? क्या तू क्षत्रिय है? क्षत्रियों के यही धर्म होते हैं? क्यों वे अपनी प्रतिज्ञा को भूल जाते हैं? क्या तूने किसी से विवाह की प्रतिज्ञा नहीं की? ले देख, पढ़ किसका लिखा हुआ है?’
यह कह कर अपनी जटा के नीचे से एक खत निकाल कर कुमार के हाथ में दे दिया।
पढ़ते ही कुमार चौंक उठे। ‘हैं, यह तो मेरा ही लिखा है। क्या लिखा है? ‘मुझे सब मंजूर है।’ इसके दूसरी तरफ क्या लिखा है? हाँ, अब मालूम हुआ, यह तो उस वनकन्या का खत है। इसी में उसने अपने साथ ब्याह करने के लिए मुझे लिखा था, उसके जवाब में मैंने उसकी बात कबूल की थी। मगर खत इनके हाथ कैसे लगा? वनकन्या का इनसे क्या वास्ता?’
कुछ ठहर कर कुमार ने पूछा - ‘क्या इस वनकन्या को आप जानते हैं?’
इसके जवाब में फिर कड़क के वृद्ध योगी बोले - ‘अभी तक जानने को कहता है? क्या उसे तेरे सामने कर दूँ?’
इतना कह कर एक लात जमीन पर मारी, जमीन फट गई और उसमें से वनकन्या ने निकल कर कुमार के पाँव पकड़ लिए।
कुमार ने फिर कर देखा। लगभग अस्सी वर्ष की उम्र, लंबी-लंबी सफेद रूई की तरह दाढ़ी नाभी तक आई हुई, सिर की लंबी जटा जमीन तक लटकती हुई, तमाम बदन में भस्म लगाए, लाल और बड़ी-बड़ी आँखें निकाले, दाहिने हाथ में त्रिशूल उठाए, बाएँ हाथ से कुमार को थामे, गुस्से से बदन कँपाते, तापसी रूप शिव जी की तरह दिखाई पड़े जिन्होंने कड़क कर आवाज दी और कहा - ‘खबरदार जो किसी को विधवा करेगा।’
यह आवाज इस जोर की थी कि सारा मकान दहल उठा, तीनों ऐयारों के कलेजे काँप उठे। कुँवर वीरेंद्रसिंह का बिगड़ा हुआ दिमाग फिर ठिकाने आ गया। देर तक उन्हें सिर से पैर तक देख कर कुमार ने कहा - ‘मालूम हुआ, मैं समझ गया कि आप साक्षात शिव जी या कोई योगी हैं, मेरी भलाई के लिए आए हैं। वाह-वाह खूब किया जो आ गए। अब मेरा धर्म बच गया, मैं क्षत्रिय होकर आत्महत्या न कर सका। एक हाथ आपसे लड़ूँगा और इस अद्भुत त्रिशूल पर अपनी जान न्यौछावर करूँगा? आप जरूर इसीलिए आए हैं, मगर महात्मा जी, यह तो बताइए कि मैं किसको विधवा करूँगा? आप इतने बड़े महात्मा होकर झूठ क्यों बोलते हैं? मेरा है कौन? मैंने किसके साथ शादी की है? हाय, कहीं यह बात कुमारी सुनती तो उसको जरूर यकीन हो जाता कि ऐसे महात्मा की बात भला कौन काट सकता है?’
वृद्ध योगी ने कड़क कर कहा - ‘क्या मैं झूठा हूँ? क्या तू क्षत्रिय है? क्षत्रियों के यही धर्म होते हैं? क्यों वे अपनी प्रतिज्ञा को भूल जाते हैं? क्या तूने किसी से विवाह की प्रतिज्ञा नहीं की? ले देख, पढ़ किसका लिखा हुआ है?’
यह कह कर अपनी जटा के नीचे से एक खत निकाल कर कुमार के हाथ में दे दिया।
पढ़ते ही कुमार चौंक उठे। ‘हैं, यह तो मेरा ही लिखा है। क्या लिखा है? ‘मुझे सब मंजूर है।’ इसके दूसरी तरफ क्या लिखा है? हाँ, अब मालूम हुआ, यह तो उस वनकन्या का खत है। इसी में उसने अपने साथ ब्याह करने के लिए मुझे लिखा था, उसके जवाब में मैंने उसकी बात कबूल की थी। मगर खत इनके हाथ कैसे लगा? वनकन्या का इनसे क्या वास्ता?’
कुछ ठहर कर कुमार ने पूछा - ‘क्या इस वनकन्या को आप जानते हैं?’
इसके जवाब में फिर कड़क के वृद्ध योगी बोले - ‘अभी तक जानने को कहता है? क्या उसे तेरे सामने कर दूँ?’
इतना कह कर एक लात जमीन पर मारी, जमीन फट गई और उसमें से वनकन्या ने निकल कर कुमार के पाँव पकड़ लिए।
(तीसरा अध्याय समाप्त)