Thread Rating:
  • 4 Vote(s) - 3 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
#75
इन सब बातों और खबरों को सुन तीनों ऐयार वहाँ से रवाना हो गए और एकांत में जा कर आपस में सलाह करने लगे।

तेजसिंह – ‘अब क्या करना चाहिए?’

देवीसिंह – ‘चाहे जो भी हो पहले तो कुमार को ही खोजना चाहिए।’

तेजसिंह – ‘मैं कहता हूँ कि तुम लश्कर की तरफ जाओ और हम दोनों कुमार की खोज करते हैं।’

ज्योतिषी – ‘मेरी बात मानो तो पहले एक दफा उस तहखाने (खोह) में चलो जिसमें महाराज शिवदत्त को कैद किया था।’

तेजसिंह – ‘उसका तो दरवाजा ही नहीं खुलता।’

ज्योतिषी – ‘भला चलो तो सही, शायद किसी तरकीब से खुल जाए।’

तेजसिंह – ‘इसकी कोशिश तो आप बेफायदे करते हैं, अगर दरवाजा खुला भी तो क्या काम निकलेगा?’

ज्योतिषी – ‘अच्छा चलो तो।’

तेजसिंह – ‘खैर, चलो।’

तीनों ऐयार तहखाने की तरफ रवाना हुए।
Like Reply


Messages In This Thread
RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 30-07-2021, 12:18 PM



Users browsing this thread: 9 Guest(s)