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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
#74
बयान - 12

कुँवर वीरेंद्रसिंह के गायब होने से उनके लश्कर में खलबली पड़ गई।

तेजसिंह और देवीसिंह ने घबरा कर चारों तरफ खोज की मगर कुछ पता न लगा। दिन भर बीत जाने पर ज्योतिषी जी ने तेजसिंह से कहा - ‘रमल से जान पड़ता है कि कुमार को कई औरतें बेहोशी की दवा सुँघा बेहोश कर उठा ले गई हैं और नौगढ़ के इलाके में अपने मकान के अंदर कैद कर रखा है, इससे ज्यादा कुछ मालूम नहीं होता।’

ज्योतिषी जी की बात सुन कर तेजसिंह बोले - ‘नौगढ़ में तो अपना ही राज्य है, वहाँ कुमार के दुश्मनों का कहीं ठिकाना नहीं। महाराज सुरेंद्रसिंह की अमलदारी से उनकी रियाया बहुत खुश तथा उनके और उनके खानदान के लिए वक्त पर जान देने को तैयार है, फिर कुमार को ले जा कर कैद करने वाला कौन हो सकता है।’

बहुत देर तक सोच-विचार करते रहने के बाद तेजसिंह, कुमार की खोज में जाने के लिए तैयार हुए। देवीसिंह और ज्योतिषी जी ने भी उनका साथ दिया और ये तीनों नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। जाते वक्त महाराज शिवदत्त के दीवान को चुनारगढ़ विदा करते गए जो कुँवर वीरेंद्रसिंह की मुलाकात को महाराज शिवदत्त की तरफ से तोहफा और सौगात ले कर आए हुए थे, और तिलिस्मी किताब फतहसिंह सिपहसालार के सुपुर्द कर दी, जो कुँवर वीरेंद्रसिंह के गायब हो जाने के बाद उनके पलँग पर पड़ी हुई पाई गई थी।

ये तीनों ऐयार आधी रात गुजर जाने के बाद नौगढ़ की तरफ रवाना हुए। पाँच कोस तक बराबर चले गए, सवेरा होने पर तीनों एक घने जंगल में रुके और अपनी सूरतें बदल कर फिर रवाना हुए। दिन भर चल कर भूखे-प्यासे शाम को नौगढ़ की सरहद पर पहुँचे। इन लोगों ने आपस में यह राय ठहराई कि किसी से मुलाकात न करें बल्कि जाहिर भी न होकर छिपे-ही-छिपे कुमार की खोज करें।

तीनों ऐयारों ने अलग-अलग हो कर कुमार का पता लगाना शुरू किया। कहीं मकान में घुस कर, कहीं बाग में जा कर, कहीं आदमियों से बातें करके उन लोगों ने दरियाफ्त किया मगर कहीं पता न लगा। दूसरे दिन तीनों इकट्ठे हो कर सूरत बदले हुए राजा सुरेंद्रसिंह के दरबार में गए और एक कोने में खड़े हो बातचीत सुनने लगे।

उसी वक्त कई जासूस दरबार में पहुँचे जिनकी सूरत से घबराहट और परेशानी साफ मालूम होती थी। तेजसिंह के बाप दीवान जीतसिंह ने उन जासूसों से पूछा - ‘क्या बात है जो तुम लोग इस तरह घबराए हुए आए हो?’

एक जासूस ने कुछ आगे बढ़ कर जवाब दिया - ‘लश्कर से कुमार की खबर लाया हूँ।’

जीतसिंह – ‘क्या हाल है, जल्द कहो?’

जासूस – ‘दो रोज से उनका कहीं पता नहीं है।’

जीतसिंह – ‘क्या कहीं चले गए?’

जासूस – ‘जी नहीं, रात को खेमे में सोए हुए थे, उसी हालत में कुछ औरतें उन्हें उठा ले गईं, मालूम नहीं कहाँ कैद कर रखा है।’

जीतसिंह - (घबरा कर) ‘यह कैसे मालूम हुआ कि उन्हें कई औरतें ले गईं?’

जासूस – ‘उनके गायब हो जाने के बाद ऐयारों ने बहुत तलाश किया। जब कुछ पता न लगा तो ज्योतिषी जगन्नाथ जी ने रमल से पता लगा कर कहा कि कई औरतें उन्हें ले गई हैं और इस नौगढ़ के इलाके में ही कहीं कैद कर रखा है?’

जीतसिंह - (ताज्जुब से) ‘इसी नौगढ़ के इलाके में। यहाँ तो हम लोगों का कोई दुश्मन नहीं है।’

जासूस – ‘जो कुछ हो, ज्योतिषी जी ने तो ऐसा ही कहा है।’

जीतसिंह – ‘फिर तेजसिंह कहाँ गया?’

जासूस – ‘कुमार की खोज में कहीं गए हैं, देवीसिंह और ज्योतिषी जी भी उनके साथ हैं। मगर उन लोगों के जाते ही हमारे लश्कर पर आफत आई?’

जीतसिंह – (चौंक कर) ‘हमारे लश्कर पर क्या आफत आई?’

जासूस – ‘मौका पा कर महाराज शिवदत्त ने हमला कर दिया।’

हमले का नाम सुनते ही तेजसिंह वगैरह ऐयार लोग जो सूरत बदले हुए एक कोने में खड़े थे आगे की सब बातें बड़े गौर से सुनने लगे।

जीतसिंह – ‘पहले तो तुम लोग यह खबर लाए थे कि महाराज शिवदत्त ने कुमार की दोस्ती कबूल कर ली और उनका दीवान बहुत कुछ नजर ले कर आया है, अब क्या हुआ?’

जासूस - उस वक्त की वह खबर बहुत ठीक थी, पर आखिर में उसने धोखा दिया और बेईमानी पर कमर बाँध ली।’

जीतसिंह – ‘उसके हमले का क्या नतीजा हुआ?’

जासूस – ‘पहर भर तक तो फतहसिंह सिपहसालार खूब लड़े, आखिर शिवदत्त के हाथ से जख्मी हो कर गिरफ्तार हो गए। उनके गिरफ्तार होते ही बेसिर की फौज तितिर-बितिर हो गई।’

अभी तक सुरेंद्रसिंह चुपचाप बैठे इन बातों को सुन रहे थे। फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और लश्कर के भाग जाने का हाल सुन आँखें लाल हो गईं, दीवान जीतसिंह की तरफ देख कर बोले - ‘हमारे यहाँ इस वक्त फौज तो है नहीं, थोड़े-बहुत सिपाही जो कुछ हैं, उनको ले कर इसी वक्त कूच करूँगा। ऐसे नामर्द को मारना कोई बड़ी बात नहीं है।’

जीतसिंह – ‘ऐसा ही होना चाहिए, सरकार के कूच की बात सुन कर भागी हुई फौज भी इकट्ठी हो जाएगी।

ये बातें हो ही रही थीं कि दो जासूस और दरबार में हाजिर हुए। पूछने से उन्होंने कहा - ‘कुमार के गायब होने, ऐयारों के उनकी खोज में जाने, फतहसिंह के गिरफ्तार हो जाने और फौज के भाग जाने की खबर सुन कर महाराज जयसिंह अपनी कुल फौज ले कर चुनारगढ़ पर चढ़ गए हैं। रास्ते में खबर लगी कि फतहसिंह के गिरफ्तार होने के दो ही पहर बाद रात को महाराज शिवदत्त भी कहीं गायब हो गए और उनके पलँग पर एक पुर्जा पड़ा हुआ मिला जिसमें लिखा हुआ था कि इस बेईमान को पूरी सजा दी जाएगी, जन्म भर कैद से छुट्टी न मिलेगी। बाद इसके सुनने में आया कि फतहसिंह भी छूट कर तिलिस्म के पास आ गए और कुमार की फौज फिर इकट्ठी हो रही है।’

इस खबर को सुन कर राजा सुरेंद्रसिंह ने दीवान जीतसिंह की तरफ देखा।

जीतसिंह – ‘जो कुछ भी हो महाराज जयसिंह ने चढ़ाई कर ही दी, मुनासिब है कि हम भी पहुँच कर चुनारगढ़ का बखेड़ा ही तय कर दें, यह रोज-रोज की खटपट अच्छी नहीं।’

राजा - तुम्हारा कहना ठीक है, ऐसा ही किया जाए, क्या कहें हमने सोचा था कि लड़के के ही हाथ से चुनारगढ़ फतह हो, जिससे उसका हौसला बढ़े, मगर अब बर्दाश्त नहीं होता।
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 30-07-2021, 12:18 PM



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