30-07-2021, 12:16 PM
दो घंटे रात बीते तक कुमार सोए रहे। इसके बाद बीन की और उसके साथ ही किसी के गाने की आवाज कानों में पड़ी, झट आँखें खोल इधर-उधर देखने लगे, मालूम हुआ कि यह वह कमरा नहीं है जिसमें भोजन करके सोए थे, बल्कि इस वक्त अपने को एक निहायत खूबसूरत सजी हुई बारहदरी में पाया जिसके बाहर से बीन और गाने की आवाज आ रही थी।
कुमार पलँग पर से उठे और बाहर देखने लगे। रात बिल्कुल अधेरी थी मगर रोशनी खूब हो रही थी जिससे मालूम पड़ा कि यह बाग भी वह नहीं है जिसमें दिन को स्नान और भोजन किया था।
इस वक्त यह नहीं मालूम होता था कि यह बाग कितना बड़ा है क्योंकि इसके दूसरे तरफ की दीवार बिल्कुल नजर नहीं आती थी। बड़े-बड़े दरख्त भी इस बाग में बहुत थे। रोशनी खूब हो रही थी। कई औरतें जो कमसिन और खूबसूरत थीं, टहलती और कभी-कभी गाती या बजाती हुई नजर पड़ीं, जिनका तमाशा दूर से खड़े हो कर कुमार देखने लगे। वे आपस में हँसती और ठिठोली करती हुई एक रविश से दूसरी और दूसरी से तीसरी पर घूम रही थीं। कुमार का दिल न माना और ये धीरे धीरे उनके पास जा कर खड़े हो गए।
वे सब कुमार को देख कर रुक गईं और आपस में कुछ बातें करने लगीं, जिसको कुमार बिल्कुल नहीं समझ सकते थे, मगर उनके हाथ-पैर हिलाने के भाव से मालूम होता था कि वे कुमार को देख कर ताज्जुब कर रही हैं। इतने में एक औरत आगे बढ़ कर कुमार के पास आई और उनसे बोली - ‘आप कौन हैं और बिना हुक्म इस बाग में क्यों चले आए?’
कुमार ने उसे नजदीक से देखा तो निहायत हसीन और चंचल पाया। जवाब दिया - ‘मैं नहीं जानता यह बाग किसका है, अगर हो सके तो बताओ कि यहाँ का मालिक कौन है?’
औरत – ‘हमने जो कुछ पूछा है पहले उसका जवाब दे लो फिर हमसे जो पूछोगे सो बता देंगे।’
कुमार – ‘मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि मैं यहाँ क्यों कर आ गया।’
औरत – ‘क्या खूब। कैसे सीधे-सादे आदमी हैं (दूसरी औरत की तरफ देख कर) बहिन, जरा इधर आना, देखो कैसे भोले-भाले चोर इस बाग में आ गए हैं जो अपने आने का सबब भी नहीं जानते।’
उस औरत के आवाज देने पर सभी ने आ कर कुमार को घेर लिया और पूछना शुरू किया - ‘सच बताओ तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए?’
दूसरी औरत – ‘जरा इनके कमर में तो हाथ डालो, देखो कुछ चुराया तो नहीं?’
तीसरी – ‘जरूर कुछ न कुछ चुराया होगा।’
चौथी – ‘अपनी सूरत इन्होंने कैसी बना रखी है, मालूम होता है कि किसी राजा के लड़के हैं।’
पहली – ‘भला यह तो बताइए कि ये कपड़े आपने कहाँ से चुराए?’
इन सभी की बातें सुन कर कुमार बड़े हैरान हुए। जी में सोचने लगे कि अजब आफत में आ फँसे, कुछ समझ में नहीं आता, जरूर इन्हीं लोगों की बदमाशी से मैं यहाँ तक पहुँचा और यही लोग अब मुझे चोर बनाती हैं। यों ही कुछ देर तक सोचते रहे, बाद इसके फिर बातचीत होने लगी।
कुमार – ‘मालूम होता है कि तुम्हीं लोगों ने मुझे यहाँ ला कर रखा है।’
एक औरत – ‘हम लोगों को क्या गरज थी जो आपको यहाँ लाते या आप ही खुश हो हमें क्या दे देंगे जिसकी उम्मीद में हम लोग ऐसा करते। अब यह कहने से क्या होता है, जरूर चोरी की नीयत से ही आप आए हैं।’
कुमार – ‘मुझको यह भी मालूम नहीं कि यहाँ आने या जाने का रास्ता कौन-सा है। अगर यह भी बतला दो तो मैं यहाँ से चला जाऊँ।’
दूसरी – ‘वाह, क्या बेचारे अनजान बनते हैं। यहाँ तक आए भी और रास्ता भी नहीं मालूम।’
तीसरी – ‘बहिन, तुम नहीं समझतीं यह चालाकी से भागना चाहते हैं।’
चौथी – ‘अब इनको गिरफ्तार करके ले चलना चाहिए।’
कुमार – ‘भला मुझे कहाँ ले चलोगी?’
एक औरत – ‘अपने मालिक के सामने।’
कुमार – ‘तुम्हारे मालिक का क्या नाम है?’
एक – ‘ऐसी किसकी मजाल है जो हमारे मालिक का नाम ले।’
कुमार – ‘क्या तुम्हें अपने मालिक का नाम बताने में भी कुछ हर्ज है।’
दूसरी – ‘हर्ज! नाम लेते ही जुबान कट कर गिर पड़ेगी।’
कुमार – ‘तो तुम लोग अपने मालिक से बातचीत कैसे करती हो?’
दूसरी – ‘मालिक की तस्वीर से बातचीत करते हैं, सामना नहीं होता।’
कुमार – ‘अगर कोई पूछे कि तुम किसकी नौकर हो तो कैसे बताओगी?’
तीसरी – ‘हम लोग अपने मालिक राजकुमारी की तस्वीर अपने गले में लटकाए रहती हैं जिससे मालूम हो कि हम सब फलाने की लौंडी हैं।’
कुमार – ‘क्या यहाँ कई राजकुमारी हैं जो लौंडियों की पहचान में गड़बड़ी हो जाने का डर है?’
पहली – ‘नहीं, यहाँ सिर्फ दो राजकुमारी हैं और दोनों के यहाँ यही चलन है, कोई अपने मालिक का नाम नहीं ले सकता। जब पहचान की जरूरत होती है तो गले की तस्वीर दिखा दी जाती है।’
कुमार – ‘भला मुझे भी वह तस्वीर दिखाओगी?’
‘हाँ-हाँ, लो देख लो।’ कह कर एक ने अपने गले की छोटी-सी तस्वीर जो धुकधुकी की तरह लटक रही थी निकाल कर कुमार को दिखाई जिसे देखते ही उनके होश उड़ गए।
‘हैं। यह तस्वीर तो कुमारी चंद्रकांता की है। तो क्या ये सब उन्हीं की लौंडी हैं। नहीं-नहीं, कुमारी चंद्रकांता यहाँ भला कैसे आएँगी? उनका राज्य तो विजयगढ़ है। अच्छा पूछें तो यह मकान किस शहर में है?’
कुमार – ‘भला यह तो बताओ इस शहर का क्या नाम है जिसमें हम इस वक्त हैं।’
एक - इस शहर का नाम चित्रनगर है क्योंकि सभी के गले में कुमारी की तस्वीर लटकती रहती है।’
कुमार – ‘और इस शहर का यह नाम कब से पड़ा?’
एक – ‘हजारों बरस से यही नाम है और इसी रंग की तस्वीर कई पुश्त से हम लोगों के गले में है। पहले मेरी परदादी को सरकार से मिली थी, होते-होते अब मेरे गले में आ गई।’
कुमार – ‘क्या तब से यही राजकुमारी यहाँ का राज्य करती आई हैं, कोई इनका माँ-बाप नहीं है?’
दूसरी – ‘अब यह सब हम लोग क्या जानें, कुछ राजकुमारी से तो मुलाकात होती नहीं जो मालूम हो कि यही हैं या दूसरी, जवान हैं या बूढ़ी हो गईं।’
कुमार – ‘तो कचहरी कौन करता है?’
दूसरी – ‘एक बड़ी-सी तस्वीर हम लोगों के मालिक राजकुमारी की है, उसी के सामने दरबार लगता है। जो कुछ हुक्म होता है उसी तस्वीर से आवाज आती है।’
कुमार – ‘तुम लोगों की बातों ने तो मुझे पागल बना दिया है। ऐसी बातें करती हो जो कभी मुमकिन ही नहीं, अक्ल में नहीं आ सकतीं। अच्छा उस दरबार में मुझे भी ले जा सकती हो?’
औरत – ‘इसमें कहने की कौन-सी बात है, आखिर आपको गिरफ्तार करके उसी दरबार में तो ले चलना है, आप खुद ही देख लीजिएगा।’
कुमार – ‘जब तुम लोगों का मालिक कोई भी नहीं या अगर है तो एक तस्वीर, तब हमने उसका क्या बिगाड़ा? क्यों हमें बाँध के ले चलोगी?’
औरत – ‘हमारी राजकुमारी सभी की नजरों से छिप कर अपने राज्य भर में घूमा करती हैं और अपने मकान और बगीचों की सैर किया करती हैं मगर किसी की निगाह उन पर नहीं पड़ती। हम लोग रोज बाग और कमरों की सफाई करती हैं, और रोज ही कमरों का सामान, फर्श, पलँग के बिछौने वगैरह ऐसे हो जाते हैं जैसे किसी के मसरफ (इस्तेमाल) में आए हों। वह रौंदे जाते और मैले भी हो जाते हैं, इससे मालूम होता है कि हमारी राजकुमारी सभो की नजरों से छिप कर घूमा करती हैं, जिनकी हजारों बरस की उम्र है, और इसी तरह हमेशा जीती रहेंगी।
दूसरी – ‘बहिन तुम इनकी बातों का जवाब कब तक देती रहोगी? ये तो इसी तरह जान बचाना चाहते हैं?’
पहली – ‘नहीं-नहीं, ये जरूर किसी रईस राजा के लड़के हैं, इनकी बातों का जवाब देना मुनासिब है और इनको इज्जत के साथ कैद करके दरबार में ले चलना चाहिए।’
तीसरी - भला इनका और इनके बाप का नामधाम भी तो पूछ लो कि इसी तरह राजा का लड़का समझ लोगी। (कुमार की तरफ देख कर) क्यों जी आप किसके लड़के हैं और आपका नाम क्या है?’
कुमार – ‘मैं नौगढ़ के महाराज सुरेंद्रसिंह का लड़का वीरेंद्रसिंह हूँ।’
इनका नाम सुनते ही वे सब खुश हो कर आपस में कहने लगीं - ‘वाह, इनको तो जरूर पकड़ के ले चलना चाहिए, बहुत कुछ इनाम मिलेगा, क्योंकि इन्हीं को गिरफ्तार करने के लिए सरकार की तरफ से मुनादी की गई थी, इन्होंने बड़ा भारी नुकसान किया है, सरकारी तिलिस्म तोड़ डाला और खजाना लूट कर घर ले गए। अब इनसे बात न करनी चाहिए। जल्दी इनके हाथ-पैर बाँधो और इसी वक्त सरकार के पास ले चलो। अभी आधी रात नहीं गई है, दरबार होता होगा, देर हो जाएगी तो कल दिन भर इनकी हिफाजत करनी पड़ेगी, क्योंकि हमारे सरकार का दरबार रात ही को होता है।’
इन सभी की ये बातें सुन कर कुमार की तो अक्ल चकरा गई। कभी ताज्जुब, कभी सोच, कभी घबराहट से इनकी अजब हालत हो गई। आखिर, उन औरतों की तरफ देख कर बोले - ‘फसाद क्यों करती हो, हम तो आप ही तुम लोगों के साथ चलने को तैयार हैं, चलो देखें तुम्हारी राजकुमारी का दरबार कैसा है।’
एक – ‘जब आप खुद चलने को तैयार हैं तब हम लोगों को ज्यादा बखेड़ा करने की क्या जरूरत है, चलिए।’
कुमार – ‘चलो।’
कुमार पलँग पर से उठे और बाहर देखने लगे। रात बिल्कुल अधेरी थी मगर रोशनी खूब हो रही थी जिससे मालूम पड़ा कि यह बाग भी वह नहीं है जिसमें दिन को स्नान और भोजन किया था।
इस वक्त यह नहीं मालूम होता था कि यह बाग कितना बड़ा है क्योंकि इसके दूसरे तरफ की दीवार बिल्कुल नजर नहीं आती थी। बड़े-बड़े दरख्त भी इस बाग में बहुत थे। रोशनी खूब हो रही थी। कई औरतें जो कमसिन और खूबसूरत थीं, टहलती और कभी-कभी गाती या बजाती हुई नजर पड़ीं, जिनका तमाशा दूर से खड़े हो कर कुमार देखने लगे। वे आपस में हँसती और ठिठोली करती हुई एक रविश से दूसरी और दूसरी से तीसरी पर घूम रही थीं। कुमार का दिल न माना और ये धीरे धीरे उनके पास जा कर खड़े हो गए।
वे सब कुमार को देख कर रुक गईं और आपस में कुछ बातें करने लगीं, जिसको कुमार बिल्कुल नहीं समझ सकते थे, मगर उनके हाथ-पैर हिलाने के भाव से मालूम होता था कि वे कुमार को देख कर ताज्जुब कर रही हैं। इतने में एक औरत आगे बढ़ कर कुमार के पास आई और उनसे बोली - ‘आप कौन हैं और बिना हुक्म इस बाग में क्यों चले आए?’
कुमार ने उसे नजदीक से देखा तो निहायत हसीन और चंचल पाया। जवाब दिया - ‘मैं नहीं जानता यह बाग किसका है, अगर हो सके तो बताओ कि यहाँ का मालिक कौन है?’
औरत – ‘हमने जो कुछ पूछा है पहले उसका जवाब दे लो फिर हमसे जो पूछोगे सो बता देंगे।’
कुमार – ‘मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि मैं यहाँ क्यों कर आ गया।’
औरत – ‘क्या खूब। कैसे सीधे-सादे आदमी हैं (दूसरी औरत की तरफ देख कर) बहिन, जरा इधर आना, देखो कैसे भोले-भाले चोर इस बाग में आ गए हैं जो अपने आने का सबब भी नहीं जानते।’
उस औरत के आवाज देने पर सभी ने आ कर कुमार को घेर लिया और पूछना शुरू किया - ‘सच बताओ तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए?’
दूसरी औरत – ‘जरा इनके कमर में तो हाथ डालो, देखो कुछ चुराया तो नहीं?’
तीसरी – ‘जरूर कुछ न कुछ चुराया होगा।’
चौथी – ‘अपनी सूरत इन्होंने कैसी बना रखी है, मालूम होता है कि किसी राजा के लड़के हैं।’
पहली – ‘भला यह तो बताइए कि ये कपड़े आपने कहाँ से चुराए?’
इन सभी की बातें सुन कर कुमार बड़े हैरान हुए। जी में सोचने लगे कि अजब आफत में आ फँसे, कुछ समझ में नहीं आता, जरूर इन्हीं लोगों की बदमाशी से मैं यहाँ तक पहुँचा और यही लोग अब मुझे चोर बनाती हैं। यों ही कुछ देर तक सोचते रहे, बाद इसके फिर बातचीत होने लगी।
कुमार – ‘मालूम होता है कि तुम्हीं लोगों ने मुझे यहाँ ला कर रखा है।’
एक औरत – ‘हम लोगों को क्या गरज थी जो आपको यहाँ लाते या आप ही खुश हो हमें क्या दे देंगे जिसकी उम्मीद में हम लोग ऐसा करते। अब यह कहने से क्या होता है, जरूर चोरी की नीयत से ही आप आए हैं।’
कुमार – ‘मुझको यह भी मालूम नहीं कि यहाँ आने या जाने का रास्ता कौन-सा है। अगर यह भी बतला दो तो मैं यहाँ से चला जाऊँ।’
दूसरी – ‘वाह, क्या बेचारे अनजान बनते हैं। यहाँ तक आए भी और रास्ता भी नहीं मालूम।’
तीसरी – ‘बहिन, तुम नहीं समझतीं यह चालाकी से भागना चाहते हैं।’
चौथी – ‘अब इनको गिरफ्तार करके ले चलना चाहिए।’
कुमार – ‘भला मुझे कहाँ ले चलोगी?’
एक औरत – ‘अपने मालिक के सामने।’
कुमार – ‘तुम्हारे मालिक का क्या नाम है?’
एक – ‘ऐसी किसकी मजाल है जो हमारे मालिक का नाम ले।’
कुमार – ‘क्या तुम्हें अपने मालिक का नाम बताने में भी कुछ हर्ज है।’
दूसरी – ‘हर्ज! नाम लेते ही जुबान कट कर गिर पड़ेगी।’
कुमार – ‘तो तुम लोग अपने मालिक से बातचीत कैसे करती हो?’
दूसरी – ‘मालिक की तस्वीर से बातचीत करते हैं, सामना नहीं होता।’
कुमार – ‘अगर कोई पूछे कि तुम किसकी नौकर हो तो कैसे बताओगी?’
तीसरी – ‘हम लोग अपने मालिक राजकुमारी की तस्वीर अपने गले में लटकाए रहती हैं जिससे मालूम हो कि हम सब फलाने की लौंडी हैं।’
कुमार – ‘क्या यहाँ कई राजकुमारी हैं जो लौंडियों की पहचान में गड़बड़ी हो जाने का डर है?’
पहली – ‘नहीं, यहाँ सिर्फ दो राजकुमारी हैं और दोनों के यहाँ यही चलन है, कोई अपने मालिक का नाम नहीं ले सकता। जब पहचान की जरूरत होती है तो गले की तस्वीर दिखा दी जाती है।’
कुमार – ‘भला मुझे भी वह तस्वीर दिखाओगी?’
‘हाँ-हाँ, लो देख लो।’ कह कर एक ने अपने गले की छोटी-सी तस्वीर जो धुकधुकी की तरह लटक रही थी निकाल कर कुमार को दिखाई जिसे देखते ही उनके होश उड़ गए।
‘हैं। यह तस्वीर तो कुमारी चंद्रकांता की है। तो क्या ये सब उन्हीं की लौंडी हैं। नहीं-नहीं, कुमारी चंद्रकांता यहाँ भला कैसे आएँगी? उनका राज्य तो विजयगढ़ है। अच्छा पूछें तो यह मकान किस शहर में है?’
कुमार – ‘भला यह तो बताओ इस शहर का क्या नाम है जिसमें हम इस वक्त हैं।’
एक - इस शहर का नाम चित्रनगर है क्योंकि सभी के गले में कुमारी की तस्वीर लटकती रहती है।’
कुमार – ‘और इस शहर का यह नाम कब से पड़ा?’
एक – ‘हजारों बरस से यही नाम है और इसी रंग की तस्वीर कई पुश्त से हम लोगों के गले में है। पहले मेरी परदादी को सरकार से मिली थी, होते-होते अब मेरे गले में आ गई।’
कुमार – ‘क्या तब से यही राजकुमारी यहाँ का राज्य करती आई हैं, कोई इनका माँ-बाप नहीं है?’
दूसरी – ‘अब यह सब हम लोग क्या जानें, कुछ राजकुमारी से तो मुलाकात होती नहीं जो मालूम हो कि यही हैं या दूसरी, जवान हैं या बूढ़ी हो गईं।’
कुमार – ‘तो कचहरी कौन करता है?’
दूसरी – ‘एक बड़ी-सी तस्वीर हम लोगों के मालिक राजकुमारी की है, उसी के सामने दरबार लगता है। जो कुछ हुक्म होता है उसी तस्वीर से आवाज आती है।’
कुमार – ‘तुम लोगों की बातों ने तो मुझे पागल बना दिया है। ऐसी बातें करती हो जो कभी मुमकिन ही नहीं, अक्ल में नहीं आ सकतीं। अच्छा उस दरबार में मुझे भी ले जा सकती हो?’
औरत – ‘इसमें कहने की कौन-सी बात है, आखिर आपको गिरफ्तार करके उसी दरबार में तो ले चलना है, आप खुद ही देख लीजिएगा।’
कुमार – ‘जब तुम लोगों का मालिक कोई भी नहीं या अगर है तो एक तस्वीर, तब हमने उसका क्या बिगाड़ा? क्यों हमें बाँध के ले चलोगी?’
औरत – ‘हमारी राजकुमारी सभी की नजरों से छिप कर अपने राज्य भर में घूमा करती हैं और अपने मकान और बगीचों की सैर किया करती हैं मगर किसी की निगाह उन पर नहीं पड़ती। हम लोग रोज बाग और कमरों की सफाई करती हैं, और रोज ही कमरों का सामान, फर्श, पलँग के बिछौने वगैरह ऐसे हो जाते हैं जैसे किसी के मसरफ (इस्तेमाल) में आए हों। वह रौंदे जाते और मैले भी हो जाते हैं, इससे मालूम होता है कि हमारी राजकुमारी सभो की नजरों से छिप कर घूमा करती हैं, जिनकी हजारों बरस की उम्र है, और इसी तरह हमेशा जीती रहेंगी।
दूसरी – ‘बहिन तुम इनकी बातों का जवाब कब तक देती रहोगी? ये तो इसी तरह जान बचाना चाहते हैं?’
पहली – ‘नहीं-नहीं, ये जरूर किसी रईस राजा के लड़के हैं, इनकी बातों का जवाब देना मुनासिब है और इनको इज्जत के साथ कैद करके दरबार में ले चलना चाहिए।’
तीसरी - भला इनका और इनके बाप का नामधाम भी तो पूछ लो कि इसी तरह राजा का लड़का समझ लोगी। (कुमार की तरफ देख कर) क्यों जी आप किसके लड़के हैं और आपका नाम क्या है?’
कुमार – ‘मैं नौगढ़ के महाराज सुरेंद्रसिंह का लड़का वीरेंद्रसिंह हूँ।’
इनका नाम सुनते ही वे सब खुश हो कर आपस में कहने लगीं - ‘वाह, इनको तो जरूर पकड़ के ले चलना चाहिए, बहुत कुछ इनाम मिलेगा, क्योंकि इन्हीं को गिरफ्तार करने के लिए सरकार की तरफ से मुनादी की गई थी, इन्होंने बड़ा भारी नुकसान किया है, सरकारी तिलिस्म तोड़ डाला और खजाना लूट कर घर ले गए। अब इनसे बात न करनी चाहिए। जल्दी इनके हाथ-पैर बाँधो और इसी वक्त सरकार के पास ले चलो। अभी आधी रात नहीं गई है, दरबार होता होगा, देर हो जाएगी तो कल दिन भर इनकी हिफाजत करनी पड़ेगी, क्योंकि हमारे सरकार का दरबार रात ही को होता है।’
इन सभी की ये बातें सुन कर कुमार की तो अक्ल चकरा गई। कभी ताज्जुब, कभी सोच, कभी घबराहट से इनकी अजब हालत हो गई। आखिर, उन औरतों की तरफ देख कर बोले - ‘फसाद क्यों करती हो, हम तो आप ही तुम लोगों के साथ चलने को तैयार हैं, चलो देखें तुम्हारी राजकुमारी का दरबार कैसा है।’
एक – ‘जब आप खुद चलने को तैयार हैं तब हम लोगों को ज्यादा बखेड़ा करने की क्या जरूरत है, चलिए।’
कुमार – ‘चलो।’