30-07-2021, 12:14 PM
बयान - 10
सुबह को कुमार ने स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तिलिस्म तोड़ने का इरादा किया और तीनों ऐयारों को साथ ले तिलिस्म में घुसे। कल की तरह तहखाने और कोठरियों में से होते हुए उसी बाग में पहुँचे। स्याह पत्थर के दालान में बैठ गए और तिलिस्मी किताब खोल कर पढ़ने लगे, यह लिखा हुआ था -
‘जब तुम तहखाने में उतर धुएँ से जो उसके अंदर भरा होगा दिमाग को बचा कर तारों को काट डालोगे, तब उसके थोड़ी ही देर बाद कुल धुआँ जाता रहेगा। स्याह पत्थर की बारहदरी में संगमरमर के सिंहासन पर चौखूटे सुर्ख पत्थर पर कुछ लिखा हुआ तुमने देखा होगा, उसके छूने से आदमी के बदन में सनसनाहट पैदा होती है, बल्कि उसे छूने वाला थोड़ी देर में बेहोश हो कर गिर पड़ता है, मगर ये कुल बातें उन तारों के कटने से जाती रहेंगी क्योंकि अंदर-ही-अंदर यह तहखाना उस बारहदरी के नीचे तक चला गया है और उसी सिंहासन से उन तारों का लगाव है जो नीचे मसालों और दवाइयों में घुसे हुए हैं। दूसरे दिन फिर धुएँ वाले तहखाने में जाना, धुआँ बिल्कुल न पाओगे। मशाल जला लेना और बेखौफ जा कर देखना कि कितनी दौलत तुम्हारे वास्ते वहाँ रखी हुई है। सब बाहर निकाल लो और जहाँ मुनासिब समझो रखो। जब तक बिल्कुल दौलत तहखाने में से निकल न जाए, तब तक दूसरा काम तिलिस्म का मत करो। स्याह बारहदरी में संगमरमर के सिंहासन पर जो चौखूँटा सुर्ख पत्थर रखा है उसको भी ले जाओ। असल में वह एक छोटा-सा संदूक है, जिसके भीतर बहुत-सी नायाब चीजें हैं। उसकी ताली इसी तिलिस्म में तुमको मिलेगी।’
कुमार ने इन सब बातों को फिर दोहरा के पढ़ा, बाद उसके उस धुएँ वाले तहखाने में जाने को तैयार हुए। तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी तीनों ने मशाल बाल ली और कुमार के साथ उस तहखाने में उतरे। अंदर उसी कोठरी में गए जिसमें बहुत-सी तारें काटी थीं। इस वक्त रोशनी में मालूम हुआ कि तारें कटी हुई इधर-उधर फैल रही हैं, कोठरी खूब लंबी-चौड़ी है। सैकड़ों लोहे और चाँदी के बड़े-बड़े संदूक चारों तरफ पड़े हैं, एक तरफ दीवार में खूँटी के साथ तालियों का गुच्छा भी लटक रहा है।
कुमार ने उस ताली के गुच्छे को उतार लिया। मालूम हुआ कि इन्हीं संदूकों की ये तालियाँ हैं। एक संदूक को खोल कर देखा तो हीरे के जड़ाऊ जनाने जेवरों से भरा पाया, तुरंत बंद कर दिया और दूसरे संदूक को खोला, कीमती हीरों से जड़ी नायाब कब्जों की तलवारें और खंजर नजर आए। कुमार ने उसे भी बंद कर दिया और बहुत खुश हो कर तेजसिंह से कहा - ‘बेशक इस कोठरी में बड़ा भारी खजाना है। अब इसको यहाँ खोल कर देखने की कोई जरूरत नहीं, इन संदूकों को बाहर निकलवाओ, एक-एक करके देखते और नौगढ़ भिजवाते जाएँगे। जहाँ तक हो जल्दी इन सभी को उठवाना चाहिए।’
तेजसिंह ने जवाब दिया - ‘चाहे कितनी ही जल्दी की जाए मगर दस रोज से कम में इन संदूकों का यहाँ से निकलना मुश्किल है। अगर आप एक-एक को देख कर नौगढ़ भेजने लगेगे तो बहुत दिन लग जाएँगे और तिलिस्म तोड़ने का काम अटका रहेगा, इससे मेरी समझ में यह बेहतर है कि इन संदूकों को बिना देखे ज्यों-का-त्यों नौगढ़ भेजवा दिया जाए। जब सब कामों से छुट्टी मिलेगी तब खोल कर देख लिया जाएगा। ऐसा करने से किसी को मालूम भी न होगा कि इसमें क्या निकला और दुश्मनों की आँख भी न पड़ेगी। न मालूम कितनी दौलत इसमें भरी हुई है जिसकी हिफाजत के लिए इतना बड़ा तिलिस्म बनाया गया।’
इस राय को कुमार ने पसंद किया और देवीसिंह और ज्योतिषी जी ने भी कहा कि ऐसा ही होना चाहिए। चारों आदमी उस तहखाने के बाहर हुए और उसी मालूमी रास्ते से खँडहर के दालान में आ कर पत्थर की चट्टान से ऊपर वाले तहखाने का मुँह ढाँप, तिलिस्मी ताली से बंद कर, खँडहर से बाहर हो अपने खेमे में चले आए।
आज ये लोग बहुत जल्दी तिलिस्म के बाहर हुए। अभी कुल दो पहर दिन चढ़ा था। कुमार ने तिलिस्म की और खजाने की तालियों का गुच्छा तेजसिंह के हवाले किया और कहा कि अब तुम उन संदूकों को निकलवा कर नौगढ़ भेजवाने का इंतजाम करो।’
सुबह को कुमार ने स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तिलिस्म तोड़ने का इरादा किया और तीनों ऐयारों को साथ ले तिलिस्म में घुसे। कल की तरह तहखाने और कोठरियों में से होते हुए उसी बाग में पहुँचे। स्याह पत्थर के दालान में बैठ गए और तिलिस्मी किताब खोल कर पढ़ने लगे, यह लिखा हुआ था -
‘जब तुम तहखाने में उतर धुएँ से जो उसके अंदर भरा होगा दिमाग को बचा कर तारों को काट डालोगे, तब उसके थोड़ी ही देर बाद कुल धुआँ जाता रहेगा। स्याह पत्थर की बारहदरी में संगमरमर के सिंहासन पर चौखूटे सुर्ख पत्थर पर कुछ लिखा हुआ तुमने देखा होगा, उसके छूने से आदमी के बदन में सनसनाहट पैदा होती है, बल्कि उसे छूने वाला थोड़ी देर में बेहोश हो कर गिर पड़ता है, मगर ये कुल बातें उन तारों के कटने से जाती रहेंगी क्योंकि अंदर-ही-अंदर यह तहखाना उस बारहदरी के नीचे तक चला गया है और उसी सिंहासन से उन तारों का लगाव है जो नीचे मसालों और दवाइयों में घुसे हुए हैं। दूसरे दिन फिर धुएँ वाले तहखाने में जाना, धुआँ बिल्कुल न पाओगे। मशाल जला लेना और बेखौफ जा कर देखना कि कितनी दौलत तुम्हारे वास्ते वहाँ रखी हुई है। सब बाहर निकाल लो और जहाँ मुनासिब समझो रखो। जब तक बिल्कुल दौलत तहखाने में से निकल न जाए, तब तक दूसरा काम तिलिस्म का मत करो। स्याह बारहदरी में संगमरमर के सिंहासन पर जो चौखूँटा सुर्ख पत्थर रखा है उसको भी ले जाओ। असल में वह एक छोटा-सा संदूक है, जिसके भीतर बहुत-सी नायाब चीजें हैं। उसकी ताली इसी तिलिस्म में तुमको मिलेगी।’
कुमार ने इन सब बातों को फिर दोहरा के पढ़ा, बाद उसके उस धुएँ वाले तहखाने में जाने को तैयार हुए। तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी तीनों ने मशाल बाल ली और कुमार के साथ उस तहखाने में उतरे। अंदर उसी कोठरी में गए जिसमें बहुत-सी तारें काटी थीं। इस वक्त रोशनी में मालूम हुआ कि तारें कटी हुई इधर-उधर फैल रही हैं, कोठरी खूब लंबी-चौड़ी है। सैकड़ों लोहे और चाँदी के बड़े-बड़े संदूक चारों तरफ पड़े हैं, एक तरफ दीवार में खूँटी के साथ तालियों का गुच्छा भी लटक रहा है।
कुमार ने उस ताली के गुच्छे को उतार लिया। मालूम हुआ कि इन्हीं संदूकों की ये तालियाँ हैं। एक संदूक को खोल कर देखा तो हीरे के जड़ाऊ जनाने जेवरों से भरा पाया, तुरंत बंद कर दिया और दूसरे संदूक को खोला, कीमती हीरों से जड़ी नायाब कब्जों की तलवारें और खंजर नजर आए। कुमार ने उसे भी बंद कर दिया और बहुत खुश हो कर तेजसिंह से कहा - ‘बेशक इस कोठरी में बड़ा भारी खजाना है। अब इसको यहाँ खोल कर देखने की कोई जरूरत नहीं, इन संदूकों को बाहर निकलवाओ, एक-एक करके देखते और नौगढ़ भिजवाते जाएँगे। जहाँ तक हो जल्दी इन सभी को उठवाना चाहिए।’
तेजसिंह ने जवाब दिया - ‘चाहे कितनी ही जल्दी की जाए मगर दस रोज से कम में इन संदूकों का यहाँ से निकलना मुश्किल है। अगर आप एक-एक को देख कर नौगढ़ भेजने लगेगे तो बहुत दिन लग जाएँगे और तिलिस्म तोड़ने का काम अटका रहेगा, इससे मेरी समझ में यह बेहतर है कि इन संदूकों को बिना देखे ज्यों-का-त्यों नौगढ़ भेजवा दिया जाए। जब सब कामों से छुट्टी मिलेगी तब खोल कर देख लिया जाएगा। ऐसा करने से किसी को मालूम भी न होगा कि इसमें क्या निकला और दुश्मनों की आँख भी न पड़ेगी। न मालूम कितनी दौलत इसमें भरी हुई है जिसकी हिफाजत के लिए इतना बड़ा तिलिस्म बनाया गया।’
इस राय को कुमार ने पसंद किया और देवीसिंह और ज्योतिषी जी ने भी कहा कि ऐसा ही होना चाहिए। चारों आदमी उस तहखाने के बाहर हुए और उसी मालूमी रास्ते से खँडहर के दालान में आ कर पत्थर की चट्टान से ऊपर वाले तहखाने का मुँह ढाँप, तिलिस्मी ताली से बंद कर, खँडहर से बाहर हो अपने खेमे में चले आए।
आज ये लोग बहुत जल्दी तिलिस्म के बाहर हुए। अभी कुल दो पहर दिन चढ़ा था। कुमार ने तिलिस्म की और खजाने की तालियों का गुच्छा तेजसिंह के हवाले किया और कहा कि अब तुम उन संदूकों को निकलवा कर नौगढ़ भेजवाने का इंतजाम करो।’