30-07-2021, 12:12 PM
बयान - 7
आज तेजसिंह के वापस आने और बाँके-तिरछे जवान के पहुँच कर बातचीत करने और खत लिखने में देर हो गई, दो पहर दिन चढ़ आया। तेजसिंह ने बद्रीनाथ को होश में ला कर पहरे में किया और कुमार से कहा - ‘अब स्नान-पूजा करें फिर जो कुछ होगा सोचा जाएगा, दो रोज से तिलिस्म का भी कोई काम नहीं होता।’
कुमार ने दरबार बर्खास्त किया, स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर खेमे में बैठे, ऐयार लोग और फतहसिंह भी हाजिर हुए। अभी किसी किस्म की बातचीत नहीं हुई थी कि चोबदार ने आ कर अर्ज किया - ‘एक बूढ़ी औरत बाहर हाजिर हुई है, कुछ कहना चाहती है, हम लोग पूछते हैं तो कुछ नहीं बताती, कहती है जो कुछ है कुमार से कहूँगी क्योंकि उन्हीं के मतलब की बात है।’
कुमार ने कहा - ‘उसे जल्दी अंदर लाओ।’ चोबदार ने उस बुढ़िया को हाजिर किया, देखते ही तेजसिंह के मुँह से निकला - ‘क्या पिशाचों और डाकिनियों का दरबा खुल पड़ा है?’
उस बुढ़िया ने भी यह बात सुन ली, लाल-लाल आँखें कर तेजसिंह की तरफ देखने लगी और बोली - ‘बस कुछ न कहूँगी जाती हूँ, मेरा क्या बिगड़ेगा, जो कुछ नुकसान होगा कुमार का होगा।’
यह कह कर खेमे के बाहर चली गई। कुमार का इशारा पा चोबदार समझा-बुझा कर उसे पुनः ले आया।
यह औरत भी अजीब सूरत की थी। उम्र लगभग सत्तर वर्ष के होगी, बाल कुछ-कुछ सफेद, आधे से ज्यादा दाँत गायब, लेकिन दो बड़े-बड़े और टेढ़े आगे वाले दाँत दो-दो अंगुल बाहर निकले हुए थे जिनमें जर्दी और कीट जमी हुई थी। मोटे कपड़े की साड़ी बदन पर थी जो बहुत ही मैली और सिर की तरफ से चिक्कट हो रही थी। बड़ी-सी पीतल की नथ नाक में और पीतल ही के घूँघरू पैर में पहने हुए थे।
तेजसिंह ने कहा - ‘क्यों क्या चाहती हो?’
बुढ़िया – ‘जरा दम ले लूँ तो कहूँ, फिर तुमसे क्यों कहने लगी जो कुछ है खास कुमार ही से कहूँगी।’
कुमार – ‘अच्छा मुझ ही से कह, क्या कहती है?’
बुढ़िया – ‘तुमसे तो कहूँगी ही, तुम्हारे बड़े मतलब की बात है।’ (खाँसने लगती है)
देवीसिंह – ‘अब डेढ़ घंटे तक खाँसेगी तब कहेगी?’
बुढ़िया – ‘फिर दूसरे ने दखल दिया।’
कुमार – ‘नहीं-नहीं, कोई न बोलेगा।’
बुढ़िया – ‘एक बात है, मैं जो कुछ कहूँगी तुम्हारे मतलब की कहूँगी, जिसको सुनते ही खुश हो जाओगे, मगर उसके बदले में मैं भी कुछ चाहती हूँ।’
कुमार – ‘हाँ-हाँ तुझे भी खुश कर देंगे।’
बुढ़िया – ‘पहले तुम इस बात की कसम खाओ कि तुम या तुम्हारा कोई आदमी मुझको कुछ न कहेगा, और मारने-पीटने या कैद करने का तो नाम भी न लेगा।’
कुमार – ‘जब हमारे भले की बात है तो कोई तुमको क्यों मारने या कैद करने लगा।’
बुढ़िया – ‘हाँ यह तो ठीक है, मगर मुझे डर मालूम होता है क्योंकि मैंने आपके लिए वह काम किया है कि अगर हजार बरस भी आपके ऐयार लोग कोशिश करते तो वह न होता, इस सबब से मुझे डर मालूम होता है कि कहीं आपके ऐयार लोग खार-खा कर मुझे तंग न करें।’
उस बूढ़ी की बात सुन कर सब दंग हो गए और सोचने लगे कि यह कौन-सा ऐसा काम कर आई है कि आसमान पर चढ़ी जाती है। आखिर कुमार ने कसम खाई कि चाहे तू कुछ कहे मगर हम या हमारा कोई आदमी तुझे कुछ न कहेगा।
तब वह फिर बोली - ‘मैं उस वनकन्या का पूरा पता आपको दे सकती हूँ और एक तरकीब ऐसी बता सकती हूँ कि आप घड़ी भर में बिल्कुल तिलिस्म तोड़ कर कुमारी चंद्रकांता से जा मिलें।’
बुढ़िया की बात सुन कर सब खुश हो गए। कुमार ने कहा - ‘अगर ऐसा ही है तो जल्द बता कि वह वनकन्या कौन है और घड़ी भर में तिलिस्म कैसे टूटेगा?’
बुढ़िया – ‘पहले मेरे इनाम की बात तो कर लीजिए।’
कुमार – ‘अगर तेरी बात सच हुई तो जो कहेगी वही इनाम मिलेगा।’
बुढ़िया – ‘तो इसके लिए कसम खाइए।’
कुमार – ‘अच्छा क्या इनाम लेगी, पहले यह तो सुन लूँ।’
बुढ़िया – ‘बस और कुछ नहीं केवल इतना ही कि आप मुझसे शादी कर लें, वनकन्या और चंद्रकांता से तो चाहे जब शादी हो मगर मुझसे आज ही हो जाए क्योंकि मैं बहुत दिनों से तुम्हारे इश्क में फँसी हुई हूँ, बल्कि तुम्हारे मिलने की तरकीब सोचते-सोचते बूढ़ी हो चली। आज मौका मिला कि तुम मेरे हाथ फँस गए, बस अब देर मत करो नहीं तो मेरी जवानी निकल जाएगी, फिर पछताओगे।’
बुढ़िया की बातें सुन मारे गुस्से के कुमार का चेहरा लाल हो गया और उनके ऐयार लोग भी दाँत पीसने लगे मगर क्या करें लाचार थे, अगर कुमार कसम न खा चुके होते तो ये लोग उस बूढ़ी की पूरी दुर्गति कर देते।
तेजसिंह ने ज्योतिषी जी से पूछा - ‘आप बताइए यह कोई ऐयार है या सचमुच जैसी दिखाई देती है वैसी ही है? अगर कुमार कसम न खाए होते तो हम लोग किसी तरकीब से मालूम कर ही लेते।’
ज्योतिषी जी ने अपनी नाक पर हाथ रख कर श्वांस का विचार करके कहा - ‘यह ऐयार नहीं है, जो देखते हो वही है।’ अब तो तेजसिंह और भी बिगड़े, बूढ़ी से कहा - ‘बस तू यहाँ से चली जा, हम लोग कुमार के कसम खाने को पूरा कर चुके कि तुझे कुछ न कहा, अगर अब जाने में देर करेगी तो कुतों से नुचवा डालूँगा। क्या तमाशा है। ऐसी-ऐसी चुड़ैलें भी कुमार पर आशिक होने लगीं।’
बुढ़िया ने कहा - ‘अगर मेरी बात न मानोगे तो पछताओगे, तुम्हारा सब काम बिगाड़ दूँगी, देखो उस तहखाने में मैंने कैसा ताला लगा दिया कि तुमसे खुल न सका, आखिर बद्रीनाथ की गठरी ले कर वापस आए, अब जा कर महाराज शिवदत्त को छुड़ा देती हूँ, फिर और फसाद करूँगी।’ यह कहती हुई गुस्से के मारे लाल-लाल आँखें किए खेमे के बाहर निकल गई, तेजसिंह के इशारे से देवीसिंह भी उसके पीछे चले गए।
कुमार – ‘क्यों तेजसिंह, यह चुड़ैल तो अजब आफत मालूम पड़ती है, कहती है कि तहखाने में मैंने ही ताला लगा दिया था।’
तेजसिंह – ‘क्या मामला है कुछ समझ में नहीं आता।’
ज्योतिषी – ‘अगर इसका कहना सच है तो हम लोगों के लिए यह एक बड़ी भारी बला पैदा हुई।’
तेजसिंह – ‘इसकी सच्चाई-झुठाई तो शिवदत्त के छूटने ही से मालूम हो जाएगी, अगर सच्ची निकली तो बिना जान से मारे न छोडूँगा।’
ज्योतिषी – ‘ऐसी को मारना ही जरूरी है।’
तेजसिंह – ‘कुमार ने कुछ यह कसम तो खाई नहीं है कि जन्म भर कोई उसको कुछ न कहेगा।’
कुमार - (लंबी साँस ले कर) ‘हाय, आज मुझको यह दिन भी देखना पड़ा।’
तेजसिंह – ‘आप चिंता न कीजिए, देखिए तो हम लोग क्या करते हैं, देवीसिंह उसके पीछे गए ही हैं कुछ पता लिए बिना नहीं आते।’
कुमार – ‘आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। कुछ वनकन्या का पता लगाया, कुछ अब डाकिनी की खबर लगाओगे।’
कुमार की यह बात तेजसिंह और ज्योतिषी जी को तीर के समान लगी मगर कुछ बोले नहीं, सिर्फ उठ के खेमे के बाहर चले गए।
इन लोगों के चले जाने के बाद कुमार खेमे में अकेले रह गए, तरह-तरह की बातें सोचने लगे, कभी चंद्रकांता की बेबसी और तिलिस्म में फँस जाने पर, कभी तिलिस्म टूटने में देर और वनकन्या की खबर या ठीक-ठीक हाल न पाने पर, कभी इस बूढ़ी चुड़ैल की बातों पर जो अभी शादी करने आई थी अफसोस और गम करते रहे। तबीयत बिल्कुल उदास थी। आखिर दिन बीत गया और शाम हुई।
कुमार ने फतहसिंह को बुलाया, जब वे आए तो पूछा - ‘तेजसिंह कहाँ हैं?’
उन्होंने जवाब दिया - ‘कुछ मालूम नहीं, ज्योतिषी जी को साथ ले कर कहीं गए हैं?’
आज तेजसिंह के वापस आने और बाँके-तिरछे जवान के पहुँच कर बातचीत करने और खत लिखने में देर हो गई, दो पहर दिन चढ़ आया। तेजसिंह ने बद्रीनाथ को होश में ला कर पहरे में किया और कुमार से कहा - ‘अब स्नान-पूजा करें फिर जो कुछ होगा सोचा जाएगा, दो रोज से तिलिस्म का भी कोई काम नहीं होता।’
कुमार ने दरबार बर्खास्त किया, स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर खेमे में बैठे, ऐयार लोग और फतहसिंह भी हाजिर हुए। अभी किसी किस्म की बातचीत नहीं हुई थी कि चोबदार ने आ कर अर्ज किया - ‘एक बूढ़ी औरत बाहर हाजिर हुई है, कुछ कहना चाहती है, हम लोग पूछते हैं तो कुछ नहीं बताती, कहती है जो कुछ है कुमार से कहूँगी क्योंकि उन्हीं के मतलब की बात है।’
कुमार ने कहा - ‘उसे जल्दी अंदर लाओ।’ चोबदार ने उस बुढ़िया को हाजिर किया, देखते ही तेजसिंह के मुँह से निकला - ‘क्या पिशाचों और डाकिनियों का दरबा खुल पड़ा है?’
उस बुढ़िया ने भी यह बात सुन ली, लाल-लाल आँखें कर तेजसिंह की तरफ देखने लगी और बोली - ‘बस कुछ न कहूँगी जाती हूँ, मेरा क्या बिगड़ेगा, जो कुछ नुकसान होगा कुमार का होगा।’
यह कह कर खेमे के बाहर चली गई। कुमार का इशारा पा चोबदार समझा-बुझा कर उसे पुनः ले आया।
यह औरत भी अजीब सूरत की थी। उम्र लगभग सत्तर वर्ष के होगी, बाल कुछ-कुछ सफेद, आधे से ज्यादा दाँत गायब, लेकिन दो बड़े-बड़े और टेढ़े आगे वाले दाँत दो-दो अंगुल बाहर निकले हुए थे जिनमें जर्दी और कीट जमी हुई थी। मोटे कपड़े की साड़ी बदन पर थी जो बहुत ही मैली और सिर की तरफ से चिक्कट हो रही थी। बड़ी-सी पीतल की नथ नाक में और पीतल ही के घूँघरू पैर में पहने हुए थे।
तेजसिंह ने कहा - ‘क्यों क्या चाहती हो?’
बुढ़िया – ‘जरा दम ले लूँ तो कहूँ, फिर तुमसे क्यों कहने लगी जो कुछ है खास कुमार ही से कहूँगी।’
कुमार – ‘अच्छा मुझ ही से कह, क्या कहती है?’
बुढ़िया – ‘तुमसे तो कहूँगी ही, तुम्हारे बड़े मतलब की बात है।’ (खाँसने लगती है)
देवीसिंह – ‘अब डेढ़ घंटे तक खाँसेगी तब कहेगी?’
बुढ़िया – ‘फिर दूसरे ने दखल दिया।’
कुमार – ‘नहीं-नहीं, कोई न बोलेगा।’
बुढ़िया – ‘एक बात है, मैं जो कुछ कहूँगी तुम्हारे मतलब की कहूँगी, जिसको सुनते ही खुश हो जाओगे, मगर उसके बदले में मैं भी कुछ चाहती हूँ।’
कुमार – ‘हाँ-हाँ तुझे भी खुश कर देंगे।’
बुढ़िया – ‘पहले तुम इस बात की कसम खाओ कि तुम या तुम्हारा कोई आदमी मुझको कुछ न कहेगा, और मारने-पीटने या कैद करने का तो नाम भी न लेगा।’
कुमार – ‘जब हमारे भले की बात है तो कोई तुमको क्यों मारने या कैद करने लगा।’
बुढ़िया – ‘हाँ यह तो ठीक है, मगर मुझे डर मालूम होता है क्योंकि मैंने आपके लिए वह काम किया है कि अगर हजार बरस भी आपके ऐयार लोग कोशिश करते तो वह न होता, इस सबब से मुझे डर मालूम होता है कि कहीं आपके ऐयार लोग खार-खा कर मुझे तंग न करें।’
उस बूढ़ी की बात सुन कर सब दंग हो गए और सोचने लगे कि यह कौन-सा ऐसा काम कर आई है कि आसमान पर चढ़ी जाती है। आखिर कुमार ने कसम खाई कि चाहे तू कुछ कहे मगर हम या हमारा कोई आदमी तुझे कुछ न कहेगा।
तब वह फिर बोली - ‘मैं उस वनकन्या का पूरा पता आपको दे सकती हूँ और एक तरकीब ऐसी बता सकती हूँ कि आप घड़ी भर में बिल्कुल तिलिस्म तोड़ कर कुमारी चंद्रकांता से जा मिलें।’
बुढ़िया की बात सुन कर सब खुश हो गए। कुमार ने कहा - ‘अगर ऐसा ही है तो जल्द बता कि वह वनकन्या कौन है और घड़ी भर में तिलिस्म कैसे टूटेगा?’
बुढ़िया – ‘पहले मेरे इनाम की बात तो कर लीजिए।’
कुमार – ‘अगर तेरी बात सच हुई तो जो कहेगी वही इनाम मिलेगा।’
बुढ़िया – ‘तो इसके लिए कसम खाइए।’
कुमार – ‘अच्छा क्या इनाम लेगी, पहले यह तो सुन लूँ।’
बुढ़िया – ‘बस और कुछ नहीं केवल इतना ही कि आप मुझसे शादी कर लें, वनकन्या और चंद्रकांता से तो चाहे जब शादी हो मगर मुझसे आज ही हो जाए क्योंकि मैं बहुत दिनों से तुम्हारे इश्क में फँसी हुई हूँ, बल्कि तुम्हारे मिलने की तरकीब सोचते-सोचते बूढ़ी हो चली। आज मौका मिला कि तुम मेरे हाथ फँस गए, बस अब देर मत करो नहीं तो मेरी जवानी निकल जाएगी, फिर पछताओगे।’
बुढ़िया की बातें सुन मारे गुस्से के कुमार का चेहरा लाल हो गया और उनके ऐयार लोग भी दाँत पीसने लगे मगर क्या करें लाचार थे, अगर कुमार कसम न खा चुके होते तो ये लोग उस बूढ़ी की पूरी दुर्गति कर देते।
तेजसिंह ने ज्योतिषी जी से पूछा - ‘आप बताइए यह कोई ऐयार है या सचमुच जैसी दिखाई देती है वैसी ही है? अगर कुमार कसम न खाए होते तो हम लोग किसी तरकीब से मालूम कर ही लेते।’
ज्योतिषी जी ने अपनी नाक पर हाथ रख कर श्वांस का विचार करके कहा - ‘यह ऐयार नहीं है, जो देखते हो वही है।’ अब तो तेजसिंह और भी बिगड़े, बूढ़ी से कहा - ‘बस तू यहाँ से चली जा, हम लोग कुमार के कसम खाने को पूरा कर चुके कि तुझे कुछ न कहा, अगर अब जाने में देर करेगी तो कुतों से नुचवा डालूँगा। क्या तमाशा है। ऐसी-ऐसी चुड़ैलें भी कुमार पर आशिक होने लगीं।’
बुढ़िया ने कहा - ‘अगर मेरी बात न मानोगे तो पछताओगे, तुम्हारा सब काम बिगाड़ दूँगी, देखो उस तहखाने में मैंने कैसा ताला लगा दिया कि तुमसे खुल न सका, आखिर बद्रीनाथ की गठरी ले कर वापस आए, अब जा कर महाराज शिवदत्त को छुड़ा देती हूँ, फिर और फसाद करूँगी।’ यह कहती हुई गुस्से के मारे लाल-लाल आँखें किए खेमे के बाहर निकल गई, तेजसिंह के इशारे से देवीसिंह भी उसके पीछे चले गए।
कुमार – ‘क्यों तेजसिंह, यह चुड़ैल तो अजब आफत मालूम पड़ती है, कहती है कि तहखाने में मैंने ही ताला लगा दिया था।’
तेजसिंह – ‘क्या मामला है कुछ समझ में नहीं आता।’
ज्योतिषी – ‘अगर इसका कहना सच है तो हम लोगों के लिए यह एक बड़ी भारी बला पैदा हुई।’
तेजसिंह – ‘इसकी सच्चाई-झुठाई तो शिवदत्त के छूटने ही से मालूम हो जाएगी, अगर सच्ची निकली तो बिना जान से मारे न छोडूँगा।’
ज्योतिषी – ‘ऐसी को मारना ही जरूरी है।’
तेजसिंह – ‘कुमार ने कुछ यह कसम तो खाई नहीं है कि जन्म भर कोई उसको कुछ न कहेगा।’
कुमार - (लंबी साँस ले कर) ‘हाय, आज मुझको यह दिन भी देखना पड़ा।’
तेजसिंह – ‘आप चिंता न कीजिए, देखिए तो हम लोग क्या करते हैं, देवीसिंह उसके पीछे गए ही हैं कुछ पता लिए बिना नहीं आते।’
कुमार – ‘आजकल तुम लोगों की ऐयारी में उल्ली लग गई है। कुछ वनकन्या का पता लगाया, कुछ अब डाकिनी की खबर लगाओगे।’
कुमार की यह बात तेजसिंह और ज्योतिषी जी को तीर के समान लगी मगर कुछ बोले नहीं, सिर्फ उठ के खेमे के बाहर चले गए।
इन लोगों के चले जाने के बाद कुमार खेमे में अकेले रह गए, तरह-तरह की बातें सोचने लगे, कभी चंद्रकांता की बेबसी और तिलिस्म में फँस जाने पर, कभी तिलिस्म टूटने में देर और वनकन्या की खबर या ठीक-ठीक हाल न पाने पर, कभी इस बूढ़ी चुड़ैल की बातों पर जो अभी शादी करने आई थी अफसोस और गम करते रहे। तबीयत बिल्कुल उदास थी। आखिर दिन बीत गया और शाम हुई।
कुमार ने फतहसिंह को बुलाया, जब वे आए तो पूछा - ‘तेजसिंह कहाँ हैं?’
उन्होंने जवाब दिया - ‘कुछ मालूम नहीं, ज्योतिषी जी को साथ ले कर कहीं गए हैं?’