30-07-2021, 12:06 PM
बयान - 5
तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के जाने के बाद कुँवर वीरेंद्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इंतजार में रात-भर जागते रह गए। ज्यों-ज्यों रात गुजरती थी कुमार की तबीयत घबराती थी। सवेरा होने ही वाला था जब ये तीनों ऐयार लश्कर में पहुँचे। तेजसिंह की राय हुई कि इसी तरह नंग-धड़ंग कुमार के पास चलना चाहिए, आखिर तीनों उसी तरह उनके खेमे में गए।
कुँवर वीरेंद्रसिंह जाग रहे थे, शमादान जल रहा था, इन तीनों ऐयारों की विचित्र सूरत देख हैरान हो गए। पूछा - ‘यह क्या हाल है?’ तेजसिंह ने कहा - ‘बस अभी तो सूरत देख लीजिए बाकी हाल जरा दम ले के कहेंगे।’
तीनों ऐयारों ने अपने-अपने कपड़े मँगवा कर पहरे, इतने में साफ सवेरा हो गया। कुमार ने तेजसिंह से पूछा - ‘अब बताओ तुम लोग किस बला में फँस गए?’
तेजसिंह – ‘ऐसा धोखा खाया कि जन्म भर याद करेंगे।’
कुमार – ‘वह क्या?’
तेजसिंह – ‘जिनके ऊपर आप जान दिए बैठे हैं, जिनकी खोज में हम लोग मारे-मारे फिरते हैं, इसमें तो कोई शक नहीं कि उनका भी प्रेम आपके ऊपर बहुत है, मगर न मालूम इतनी छिपी क्यों फिरती हैं और इसमें उन्होंने क्या फायदा सोचा है?’
कुमार – ‘क्या कुछ पता लगा?’
तेजसिंह – ‘पता क्या, आँख से देख आए हैं तभी तो इतनी सजा मिली। उनके साथ भी एक-से-एक बढ़ कर ऐयार हैं, अगर ऐसा जानते तो होशियारी से जाते।’
कुमार – ‘भला खुलासा कहो तो कुछ मालूम भी हो।’
तेजसिंह ने सब हाल कहा, कुमार सुन कर हँसने लगे और ज्योतिषी जी से बोले - ‘आपके रमल को भी उन लोगों ने धोखा दिया।’
ज्योतिषी – ‘कुछ न पूछिए, सब आफत हैं।’
कुमार – ‘उन लोगों का खुलासा हाल नहीं मालूम हुआ तो भला इतना ही विचार लेते कि शिवदत्त के ऐयारों की कुछ ऐयारी तो नहीं है?’
ज्योतिषी – ‘नहीं, शिवदत्त के ऐयारों से और उन लोगों से कोई वास्ता नहीं, बल्कि उन लोगों को इनकी खबर भी न होगी, इस बात को मैं खूब विचार चुका हूँ।
तेजसिंह – ‘इतनी ही खैरियत है।’
देवीसिंह – ‘आज दिन ही को चल कर पता लगाएँगे।’
तेजसिंह – ‘तिलिस्म तोड़ने का काम कैसे चलेगा?’
कुमार – ‘एक रोज काम बंद रहेगा तो क्या होगा?’
तेजसिंह – ‘इसी से तो मैं कहता हूँ कि चंद्रकांता की मुहब्बत आपके दिल से कम हो गई है।’
कुमार – ‘कभी नहीं, चंद्रकांता से बढ़ कर मैं दुनिया में किसी को नहीं चाहता मगर न मालूम क्या सबब है कि वनकन्या का हाल मालूम करने के लिए भी जी बेचैन रहता है।
तेजसिंह - (हँस कर) ‘खैर, पहले तो पंडित बद्रीनाथ ऐयार को ले जा कर उस खोह में कैद करना है फिर दूसरा काम देखेंगे, कहीं ऐसा न हो कि वे छूट के चल दें।’
कुमार – ‘आज ही ले जा कर छोड़ आओ।’
तेजसिंह – ‘हाँ, अभी उनको ले जाता हूँ, वहाँ रख कर रातों-रात लौट आऊँगा, पंद्रह कोस का मामला ही क्या है, तब तक देवीसिंह और ज्योतिषी जी वनकन्या की खोज में जाए।
तेजसिंह की राय पक्की ठहरी, वे स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तैयार हुए, खाने की चीजों में बेहोशी की दवा मिला कर बद्रीनाथ को खिलाई गईं और जब वे बेहोश हो गए तब तेजसिंह गट्ठर बाँध कर पीठ पर लाद खोह की तरफ रवाना हुए। कुमार ने देवीसिंह और ज्योतिषी जी को वनकन्या की टोह में भेजा।
तेजसिंह पंडित बद्रीनाथ की गठरी लिए शाम होते-होते तहखाने में पहुँचे। शेर के मुँह में हाथ डाल जुबान खींची और तब दूसरा ताला खोला, मगर दरवाजा न खुला। अब तो तेजसिंह के होश उड़ गए, फिर कोशिश की, लेकिन किवाड़ न खुला। बैठ के सोचने लगे, मगर कुछ समझ में न आया। आखिर लाचार हो बद्रीनाथ की गठरी लादे वापस हुए।
तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी के जाने के बाद कुँवर वीरेंद्रसिंह इन लोगों के वापस आने के इंतजार में रात-भर जागते रह गए। ज्यों-ज्यों रात गुजरती थी कुमार की तबीयत घबराती थी। सवेरा होने ही वाला था जब ये तीनों ऐयार लश्कर में पहुँचे। तेजसिंह की राय हुई कि इसी तरह नंग-धड़ंग कुमार के पास चलना चाहिए, आखिर तीनों उसी तरह उनके खेमे में गए।
कुँवर वीरेंद्रसिंह जाग रहे थे, शमादान जल रहा था, इन तीनों ऐयारों की विचित्र सूरत देख हैरान हो गए। पूछा - ‘यह क्या हाल है?’ तेजसिंह ने कहा - ‘बस अभी तो सूरत देख लीजिए बाकी हाल जरा दम ले के कहेंगे।’
तीनों ऐयारों ने अपने-अपने कपड़े मँगवा कर पहरे, इतने में साफ सवेरा हो गया। कुमार ने तेजसिंह से पूछा - ‘अब बताओ तुम लोग किस बला में फँस गए?’
तेजसिंह – ‘ऐसा धोखा खाया कि जन्म भर याद करेंगे।’
कुमार – ‘वह क्या?’
तेजसिंह – ‘जिनके ऊपर आप जान दिए बैठे हैं, जिनकी खोज में हम लोग मारे-मारे फिरते हैं, इसमें तो कोई शक नहीं कि उनका भी प्रेम आपके ऊपर बहुत है, मगर न मालूम इतनी छिपी क्यों फिरती हैं और इसमें उन्होंने क्या फायदा सोचा है?’
कुमार – ‘क्या कुछ पता लगा?’
तेजसिंह – ‘पता क्या, आँख से देख आए हैं तभी तो इतनी सजा मिली। उनके साथ भी एक-से-एक बढ़ कर ऐयार हैं, अगर ऐसा जानते तो होशियारी से जाते।’
कुमार – ‘भला खुलासा कहो तो कुछ मालूम भी हो।’
तेजसिंह ने सब हाल कहा, कुमार सुन कर हँसने लगे और ज्योतिषी जी से बोले - ‘आपके रमल को भी उन लोगों ने धोखा दिया।’
ज्योतिषी – ‘कुछ न पूछिए, सब आफत हैं।’
कुमार – ‘उन लोगों का खुलासा हाल नहीं मालूम हुआ तो भला इतना ही विचार लेते कि शिवदत्त के ऐयारों की कुछ ऐयारी तो नहीं है?’
ज्योतिषी – ‘नहीं, शिवदत्त के ऐयारों से और उन लोगों से कोई वास्ता नहीं, बल्कि उन लोगों को इनकी खबर भी न होगी, इस बात को मैं खूब विचार चुका हूँ।
तेजसिंह – ‘इतनी ही खैरियत है।’
देवीसिंह – ‘आज दिन ही को चल कर पता लगाएँगे।’
तेजसिंह – ‘तिलिस्म तोड़ने का काम कैसे चलेगा?’
कुमार – ‘एक रोज काम बंद रहेगा तो क्या होगा?’
तेजसिंह – ‘इसी से तो मैं कहता हूँ कि चंद्रकांता की मुहब्बत आपके दिल से कम हो गई है।’
कुमार – ‘कभी नहीं, चंद्रकांता से बढ़ कर मैं दुनिया में किसी को नहीं चाहता मगर न मालूम क्या सबब है कि वनकन्या का हाल मालूम करने के लिए भी जी बेचैन रहता है।
तेजसिंह - (हँस कर) ‘खैर, पहले तो पंडित बद्रीनाथ ऐयार को ले जा कर उस खोह में कैद करना है फिर दूसरा काम देखेंगे, कहीं ऐसा न हो कि वे छूट के चल दें।’
कुमार – ‘आज ही ले जा कर छोड़ आओ।’
तेजसिंह – ‘हाँ, अभी उनको ले जाता हूँ, वहाँ रख कर रातों-रात लौट आऊँगा, पंद्रह कोस का मामला ही क्या है, तब तक देवीसिंह और ज्योतिषी जी वनकन्या की खोज में जाए।
तेजसिंह की राय पक्की ठहरी, वे स्नान-पूजा से छुट्टी पा कर तैयार हुए, खाने की चीजों में बेहोशी की दवा मिला कर बद्रीनाथ को खिलाई गईं और जब वे बेहोश हो गए तब तेजसिंह गट्ठर बाँध कर पीठ पर लाद खोह की तरफ रवाना हुए। कुमार ने देवीसिंह और ज्योतिषी जी को वनकन्या की टोह में भेजा।
तेजसिंह पंडित बद्रीनाथ की गठरी लिए शाम होते-होते तहखाने में पहुँचे। शेर के मुँह में हाथ डाल जुबान खींची और तब दूसरा ताला खोला, मगर दरवाजा न खुला। अब तो तेजसिंह के होश उड़ गए, फिर कोशिश की, लेकिन किवाड़ न खुला। बैठ के सोचने लगे, मगर कुछ समझ में न आया। आखिर लाचार हो बद्रीनाथ की गठरी लादे वापस हुए।