30-07-2021, 12:06 PM
बयान - 4
तिलिस्मी खँडहर में घुस कर पहले वे उस दालान में गए जहाँ पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया।
जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था उसके सिरहाने की तरफ पाँच हाथ हट कर कुमार ने अपने हाथ से जमीन खोदी। गज भर खोदने के बाद एक सफेद पत्थर की चट्टान देखी जिसमें उठाने के लिए लोहे की मजबूत कड़ी लगी हुई भी दिखाई पड़ी। कड़ी में हाथ डाल के पत्थर उठा कर बाहर किया। तहखाना मालूम पड़ा, जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी थीं।
तेजसिंह ने मशाल जला ली, उसी की रोशनी में सब कोई नीचे उतरे। खूब खुलासी कोठरी देखी, कहीं गर्द या कूड़े का नमो-निशान नहीं, बीच में संगमरमर पत्थर की खूबसूरत पुतली एक हाथ में काँटी दूसरे हाथ में हथौड़ी लिए खड़ी थी।
कुमार ने उसके हाथ से हथौड़ी-काँटी ले कर उसी के बाएँ कान में काँटी डाल हथौड़ी से ठोक दी, साथ ही उस पुतली के होंठ हिलने लगे और उसमें से बाजे की-सी आवाज आने लगी, मालूम होता था मानो वह पुतली गा रही है।
थोड़ी देर तक यही कैफियत रही, यकायक पुतली के बाएँ-दाहिने दोनों अंगो के दो टुकड़े हो गए और उसके पेट में से आठ अंगुल का छोटा-सा गुलाब का पौधा जिसमें कई फूल भी लगे हुए थे और डाल में एक ताली लटक रही थी निकला, साथ ही इसके एक छोटा-सा तांबे का पत्र भी मिला जिस पर कुछ लिखा हुआ था। कुमार ने उसे पढ़ा -
‘इस पेड़ को हमारे यहाँ के वैद्य अजायबदत ने मसाले से बनाया है। इन फूलों से बराबर गुलाब की खुशबू निकल कर दूर-दूर तक फैला करेगी। दरबार में रखने के लिए यह एक नायाब पौधा सौगात के तौर पर वैद्य जी ने तुम्हारे वास्ते रखा है।’
इसको पढ़ कर कुमार बहुत खुश हुए और ज्योतिषी जी की तरफ देख कर बोले - ‘यह बहुत अच्छी चीज मुझको मिली, देखिए इस वक्त भी इन फूलों में से कैसी अच्छी खुशबू निकल कर फैल रही है।’
तेजसिंह – ‘इसमें तो कोई शक नहीं।’
देवीसिंह – ‘एक-से-एक बढ़ कर कारीगरी दिखाई पड़ती है।’
अभी कुमार बात कर रहे थे कि कोठरी के एक तरफ का दरवाजा खुल गया। अँधेरी कोठरी में अभी तक इन लोगों ने कोई दरवाजा या उसका निशान नहीं देखा था पर इस दरवाजे के खुलने से कोठरी में बखूबी रोशनी पहुँची। मशाल बुझा दी गई और ये लोग उस दरवाजे की राह से बाहर हुए। एक छोटा-सा खूबसूरत बाग देखा। यह बाग वही था जिसमें चपला आई थी और जिसका हाल हम दूसरे भाग में लिख चुके हैं।
बमूजिब लिखे तिलिस्मी किताब के कुमार ने उस ताली में एक रस्सी बाँधी जो पुतली के पेट से निकली थी। रस्सी हाथ में थाम ताली को जमीन में घसीटते हुए कुमार बाग में घूमने लगे। हर एक रविशों और क्वारियों में घूमते हुए एक फव्वारे के पास ताली जमीन से चिपक गई। उसी जगह ये लोग भी ठहर गए। कुमार के कहे मुताबिक सभी ने उस जमीन को खोदना शुरू किया, दो-तीन हाथ खोदा था कि ज्योतिषी जी ने कहा - ‘अब पहर भर दिन बाकी रह गया, तिलिस्म से बाहर होना चाहिए।’
कुमार ने ताली उठा ली और चारों आदमी कोठरी की राह से होते हुए ऊपर चढ़ के उस दालान में पहुँचे जहाँ चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था, उसके सिरहाने की तरफ जमीन खोद कर जो पत्थर की चट्टान निकली थी, उसी को उलट कर तहखाने के मुँह पर ढाँप दिया। उसके दोनों तरफ उठाने के लिए कड़ी लगी हुई थी, और उलटी तरफ एक ताला भी बना हुआ था। उसी ताली से जो पुतली के पेट से निकली थी यह ताला बंद भी कर दिया।
चारों आदमी खँडहर से निकल कुमार के खेमे में आए। थोड़ी देर आराम कर लेने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी कुमार से कह के वनकन्या की टोह में जंगल की तरफ रवाना हुए। इस समय दिन अनुमानत, दो घंटे बाकी होगा।
ये तीनों ऐयार थोड़ी ही दूर गए होंगे कि एक नकाबपोश जाता हुआ दिखा। देवीसिंह वगैरह पेड़ों की आड़ दिए उसी के पीछे-पीछे रवाना हुए। वह सवार कुछ पश्चिम हटता हुआ सीधे चुनारगढ़ की तरफ जा रहा था। कई दफा रास्ते में रुका, पीछे फिर कर देखा और बढ़ा।
सूरज अस्त हो गया। अँधेरी रात ने अपना दखल कर लिया, घना जंगल अँधेरी रात में डरावना मालूम होने लगा। अब ये तीनों ऐयार सूखे पत्तो की आवाज पर जो टापों के पड़ने से होती थी जाने लगे। घंटे भर रात जाते-जाते उस जंगल के किनारे पहुँचे।
नकाबपोश सवार घोड़े पर से उतर पड़ा। उस जगह बहुत से घोड़े बँधे थे। वहीं पर अपना घोड़ा भी बाँध दिया, एक तरफ घास का ढेर लगा हुआ था, उसमें से घास उठा कर घोड़े के आगे रख दी और वहाँ से पैदल रवाना हुआ।
उस नकाबपोश के पीछे-पीछे चलते हुए ये तीनों ऐयार पहर रात बीते गंगा किनारे पहुँचे। दूर से जल में दो रोशनियाँ दिखाई पड़ीं, मालूम होता था जैसे दो चंद्रमा गंगाजी में उतर आए हैं। सफेद रोशनी जल पर फैल रही थी। जब पास पहुँचे देखा कि एक सजी हुई नाव पर कई खूबसूरत औरतें बैठी हैं, बीच में ऊँची गद्दी पर एक कमसिन नाजुक औरत जिसका रोआब देखने वालों पर छा रहा है बैठी है, चाँद-सा चेहरा दूर से चमक रहा है। दोनों तरफ माहताब जल रहे हैं।
नकाबपोश ने किनारे पहुँच कर जोर से सीटी बजाई, साथ ही उस नाव में से इस तरह सीटी की आवाज आई जैसे किसी ने जवाब दिया हो। उन औरतों में से जो उस नाव पर बैठी थीं दो औरतें उठ खड़ी हुईं तथा नीचे उतर एक डोंगी जो उस नाव के साथ बँधी थी, खोल कर किनारे ला नकाबपोश को उस पर चढ़ा ले गई।
अब ये तीनों ऐयार आपस में बातें करने लगे -
तेजसिंह – ‘वाह, इस नाव पर छूटते हुए दो माहताबों के बीच ये औरतें कैसी भली मालूम होती हैं।’
ज्योतिषी – ‘परियों का अखाड़ा मालूम होता है, चलो तैर कर के उनके पास चलें।’
देवीसिंह – ‘ज्योतिषी जी, कहीं ऐसा न हो कि परियाँ आपको उड़ा ले जाएँ, फिर हमारी मंडली में एक दोस्त कम हो जाएगा।’
तेजसिंह – ‘मैं जहाँ तक ख्याल करता हूँ यह उन्हीं लोगों की मंडली है जिन्हें कुमार ने देखा था।’
देवीसिंह – ‘इसमें तो कोई शक नहीं।’
ज्योतिषी – ‘तो तैर कर के चलते क्यों नहीं? तुम तो जल से ऐसा डरते हो जैसे कोई बूढ़ा आफियूनी डरता हो।’
देवीसिंह – ‘फिर तुम्हारे साथ आने से क्या फायदा हुआ? तुम्हारी तो बड़ी तारीफ सुनते थे कि ज्योतिषी जी ऐसे हैं, वैसे हैं, पहिया हैं, चर्खे हैं, मगर कुछ नहीं, एक अदनी-सी मंडली का पता नहीं लगा सकते।’
ज्योतिषी – ‘मैं क्या खाक बताऊँ? वे लोग तो मुझसे भी ज्यादा उस्ताद मालूम होती हैं। सभी ने अपने-अपने नाम ही बदल दिए हैं, असल नाम का पता लगाना चाहते हैं तो अजीबो-गरीब नामों का पता लगता है। किसी का नाम वियोगिनी, किसी का नाम योगिनी, किसी का भूतनी, किसी का डाकिनी, भला बताइए क्या मैं मान लूँ कि इन लोगों के यही नाम हैं?
तेजसिंह - ‘तो इन लोगों ने अपना नाम क्यों बदल लिया?’
ज्योतिषी – ‘हम लोगों को उल्लू बनाने के लिए।’
देवीसिंह – ‘अच्छा नाम जाने दीजिए, इनके मकाम का पता लगाइए।’
ज्योतिषी – ‘मकाम के बारे में जब रमल से दरियाफ्त करते हैं तो मालूम होता है कि इन लोगों का मकाम जल में है, तो क्या हम समझ लें कि ये लोग जलवासी अर्थात मछली हैं।’
तेजसिंह – ‘यह तो ठीक ही है, देखिए जलवासी हैं कि नहीं?’
ज्योतिषी – ‘भाई सुनो, रमल के काम में ये चारों पदार्थ - हवा, पानी, मिट्टी और आग हमेशा विघ्न डालते हैं। अगर कोई आदमी ज्योतिषी या रम्माल को छकाना चाहे तो इन चारों के हेर-फेर से खूब छकाया जा सकता है। ज्योतिषी बेचारा खाक न कर सके, पोथी-पत्र बेकार का बोझ हो जाए।
तेजसिंह – ‘यह कैसे? खुलासा बताओ तो कुछ हम लोग भी समझें, वक्त पर काम ही आएगा।’
ज्योतिषी – ‘बता देंगे, इस वक्त जिस काम को आए हो वह करो। चलो तैर कर चलें।’
तेजसिंह – ‘चलो।’
ये तीनों ऐयार तैर कर कर नाव के पास गए। बटुआ ऐयारी का कमर में बाँधा कपड़ा-लत्ता किनारे रख कर जल में उतर गए। मगर दो-चार हाथ गए होंगे कि पीछे से सीटी की आवाज आई, साथ ही नाव पर जो माहताब जल रहे थे बुझ गए, जैसे किसी ने उन्हें जल्दी से जल में फेंक दिया हो। अब बिल्कुल अँधेरा हो गया, नाव नजरों से छिप गई।
देवीसिंह ने कहा - ‘लीजिए, चलिए तैर कर के।’
तेजसिंह – ‘ये सब बड़ी शैतान मालूम होती हैं?’
ज्योतिषी – ‘मैंने तो पहले ही कहा कि ये सब-की-सब आफत हैं, अब आपको मालूम हुआ न कि मैं सच कहता था, इन लोगों ने हमारे नजूम को मिट्टी कर दिया है।’
देवीसिंह – ‘चलिए किनारे, इन्होंने तो बेढब छकाया, मालूम होता है कि किनारे पर कोई पहरे वाला खड़ा देखता था। जब हम लोग तैर कर के जाने लगे उसने सीटी बजाई, बस अँधेरा हो गया, पहले ही से इशारा बँधा हुआ था।’
ज्योतिषी – ‘इस नालायक को यह क्या सूझी कि जब हम लोग पानी में उतर चुके, तब सीटी बजाई, पहले ही बजाता तो हम लोग क्यों भीगते?’
ये तीनो ऐयार लौट कर किनारे आए, पहनने के वास्ते अपना कपड़ा खोजते हैं तो मिलते ही नहीं।
देवीसिंह – ‘ज्योतिषी जी पांलागी, लीजिए कपड़े भी गायब हो गए। हाय इस वक्त अगर इन लोगों में से किसी को पाऊँ तो कच्चा ही चबा जाऊँ!’
तेजसिंह – ‘हम तो उन लोगों की तारीफ करेंगे, खूब ऐयारी की।’
देवीसिंह – ‘हाँ-हाँ खूब तारीफ कीजिए जिससे उन लोगों में से अगर कोई सुनता हो तो अब भी आप पर रहम करे और आगे न सतावे।’
ज्योतिषी – ‘अब क्या सताना बाकी रह गया। कपड़े तक तो उतरवा लिए।’
तेजसिंह – ‘चलिए अब लश्कर में चलें, इस वक्त और कुछ करते बन न पड़ेगा।’
आधी रात जा चुकी होगी, जब ये लोग ऐयारी के सताए बदन से नंग-धड़ंग काँपते-कलपते लश्कर की तरफ रवाना हुए।
तिलिस्मी खँडहर में घुस कर पहले वे उस दालान में गए जहाँ पत्थर के चबूतरे पर पत्थर ही का आदमी सोया हुआ था। कुमार ने इसी जगह से तिलिस्म तोड़ने में हाथ लगाया।
जिस चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था उसके सिरहाने की तरफ पाँच हाथ हट कर कुमार ने अपने हाथ से जमीन खोदी। गज भर खोदने के बाद एक सफेद पत्थर की चट्टान देखी जिसमें उठाने के लिए लोहे की मजबूत कड़ी लगी हुई भी दिखाई पड़ी। कड़ी में हाथ डाल के पत्थर उठा कर बाहर किया। तहखाना मालूम पड़ा, जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनी थीं।
तेजसिंह ने मशाल जला ली, उसी की रोशनी में सब कोई नीचे उतरे। खूब खुलासी कोठरी देखी, कहीं गर्द या कूड़े का नमो-निशान नहीं, बीच में संगमरमर पत्थर की खूबसूरत पुतली एक हाथ में काँटी दूसरे हाथ में हथौड़ी लिए खड़ी थी।
कुमार ने उसके हाथ से हथौड़ी-काँटी ले कर उसी के बाएँ कान में काँटी डाल हथौड़ी से ठोक दी, साथ ही उस पुतली के होंठ हिलने लगे और उसमें से बाजे की-सी आवाज आने लगी, मालूम होता था मानो वह पुतली गा रही है।
थोड़ी देर तक यही कैफियत रही, यकायक पुतली के बाएँ-दाहिने दोनों अंगो के दो टुकड़े हो गए और उसके पेट में से आठ अंगुल का छोटा-सा गुलाब का पौधा जिसमें कई फूल भी लगे हुए थे और डाल में एक ताली लटक रही थी निकला, साथ ही इसके एक छोटा-सा तांबे का पत्र भी मिला जिस पर कुछ लिखा हुआ था। कुमार ने उसे पढ़ा -
‘इस पेड़ को हमारे यहाँ के वैद्य अजायबदत ने मसाले से बनाया है। इन फूलों से बराबर गुलाब की खुशबू निकल कर दूर-दूर तक फैला करेगी। दरबार में रखने के लिए यह एक नायाब पौधा सौगात के तौर पर वैद्य जी ने तुम्हारे वास्ते रखा है।’
इसको पढ़ कर कुमार बहुत खुश हुए और ज्योतिषी जी की तरफ देख कर बोले - ‘यह बहुत अच्छी चीज मुझको मिली, देखिए इस वक्त भी इन फूलों में से कैसी अच्छी खुशबू निकल कर फैल रही है।’
तेजसिंह – ‘इसमें तो कोई शक नहीं।’
देवीसिंह – ‘एक-से-एक बढ़ कर कारीगरी दिखाई पड़ती है।’
अभी कुमार बात कर रहे थे कि कोठरी के एक तरफ का दरवाजा खुल गया। अँधेरी कोठरी में अभी तक इन लोगों ने कोई दरवाजा या उसका निशान नहीं देखा था पर इस दरवाजे के खुलने से कोठरी में बखूबी रोशनी पहुँची। मशाल बुझा दी गई और ये लोग उस दरवाजे की राह से बाहर हुए। एक छोटा-सा खूबसूरत बाग देखा। यह बाग वही था जिसमें चपला आई थी और जिसका हाल हम दूसरे भाग में लिख चुके हैं।
बमूजिब लिखे तिलिस्मी किताब के कुमार ने उस ताली में एक रस्सी बाँधी जो पुतली के पेट से निकली थी। रस्सी हाथ में थाम ताली को जमीन में घसीटते हुए कुमार बाग में घूमने लगे। हर एक रविशों और क्वारियों में घूमते हुए एक फव्वारे के पास ताली जमीन से चिपक गई। उसी जगह ये लोग भी ठहर गए। कुमार के कहे मुताबिक सभी ने उस जमीन को खोदना शुरू किया, दो-तीन हाथ खोदा था कि ज्योतिषी जी ने कहा - ‘अब पहर भर दिन बाकी रह गया, तिलिस्म से बाहर होना चाहिए।’
कुमार ने ताली उठा ली और चारों आदमी कोठरी की राह से होते हुए ऊपर चढ़ के उस दालान में पहुँचे जहाँ चबूतरे पर पत्थर का आदमी सोया था, उसके सिरहाने की तरफ जमीन खोद कर जो पत्थर की चट्टान निकली थी, उसी को उलट कर तहखाने के मुँह पर ढाँप दिया। उसके दोनों तरफ उठाने के लिए कड़ी लगी हुई थी, और उलटी तरफ एक ताला भी बना हुआ था। उसी ताली से जो पुतली के पेट से निकली थी यह ताला बंद भी कर दिया।
चारों आदमी खँडहर से निकल कुमार के खेमे में आए। थोड़ी देर आराम कर लेने के बाद तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषी जी कुमार से कह के वनकन्या की टोह में जंगल की तरफ रवाना हुए। इस समय दिन अनुमानत, दो घंटे बाकी होगा।
ये तीनों ऐयार थोड़ी ही दूर गए होंगे कि एक नकाबपोश जाता हुआ दिखा। देवीसिंह वगैरह पेड़ों की आड़ दिए उसी के पीछे-पीछे रवाना हुए। वह सवार कुछ पश्चिम हटता हुआ सीधे चुनारगढ़ की तरफ जा रहा था। कई दफा रास्ते में रुका, पीछे फिर कर देखा और बढ़ा।
सूरज अस्त हो गया। अँधेरी रात ने अपना दखल कर लिया, घना जंगल अँधेरी रात में डरावना मालूम होने लगा। अब ये तीनों ऐयार सूखे पत्तो की आवाज पर जो टापों के पड़ने से होती थी जाने लगे। घंटे भर रात जाते-जाते उस जंगल के किनारे पहुँचे।
नकाबपोश सवार घोड़े पर से उतर पड़ा। उस जगह बहुत से घोड़े बँधे थे। वहीं पर अपना घोड़ा भी बाँध दिया, एक तरफ घास का ढेर लगा हुआ था, उसमें से घास उठा कर घोड़े के आगे रख दी और वहाँ से पैदल रवाना हुआ।
उस नकाबपोश के पीछे-पीछे चलते हुए ये तीनों ऐयार पहर रात बीते गंगा किनारे पहुँचे। दूर से जल में दो रोशनियाँ दिखाई पड़ीं, मालूम होता था जैसे दो चंद्रमा गंगाजी में उतर आए हैं। सफेद रोशनी जल पर फैल रही थी। जब पास पहुँचे देखा कि एक सजी हुई नाव पर कई खूबसूरत औरतें बैठी हैं, बीच में ऊँची गद्दी पर एक कमसिन नाजुक औरत जिसका रोआब देखने वालों पर छा रहा है बैठी है, चाँद-सा चेहरा दूर से चमक रहा है। दोनों तरफ माहताब जल रहे हैं।
नकाबपोश ने किनारे पहुँच कर जोर से सीटी बजाई, साथ ही उस नाव में से इस तरह सीटी की आवाज आई जैसे किसी ने जवाब दिया हो। उन औरतों में से जो उस नाव पर बैठी थीं दो औरतें उठ खड़ी हुईं तथा नीचे उतर एक डोंगी जो उस नाव के साथ बँधी थी, खोल कर किनारे ला नकाबपोश को उस पर चढ़ा ले गई।
अब ये तीनों ऐयार आपस में बातें करने लगे -
तेजसिंह – ‘वाह, इस नाव पर छूटते हुए दो माहताबों के बीच ये औरतें कैसी भली मालूम होती हैं।’
ज्योतिषी – ‘परियों का अखाड़ा मालूम होता है, चलो तैर कर के उनके पास चलें।’
देवीसिंह – ‘ज्योतिषी जी, कहीं ऐसा न हो कि परियाँ आपको उड़ा ले जाएँ, फिर हमारी मंडली में एक दोस्त कम हो जाएगा।’
तेजसिंह – ‘मैं जहाँ तक ख्याल करता हूँ यह उन्हीं लोगों की मंडली है जिन्हें कुमार ने देखा था।’
देवीसिंह – ‘इसमें तो कोई शक नहीं।’
ज्योतिषी – ‘तो तैर कर के चलते क्यों नहीं? तुम तो जल से ऐसा डरते हो जैसे कोई बूढ़ा आफियूनी डरता हो।’
देवीसिंह – ‘फिर तुम्हारे साथ आने से क्या फायदा हुआ? तुम्हारी तो बड़ी तारीफ सुनते थे कि ज्योतिषी जी ऐसे हैं, वैसे हैं, पहिया हैं, चर्खे हैं, मगर कुछ नहीं, एक अदनी-सी मंडली का पता नहीं लगा सकते।’
ज्योतिषी – ‘मैं क्या खाक बताऊँ? वे लोग तो मुझसे भी ज्यादा उस्ताद मालूम होती हैं। सभी ने अपने-अपने नाम ही बदल दिए हैं, असल नाम का पता लगाना चाहते हैं तो अजीबो-गरीब नामों का पता लगता है। किसी का नाम वियोगिनी, किसी का नाम योगिनी, किसी का भूतनी, किसी का डाकिनी, भला बताइए क्या मैं मान लूँ कि इन लोगों के यही नाम हैं?
तेजसिंह - ‘तो इन लोगों ने अपना नाम क्यों बदल लिया?’
ज्योतिषी – ‘हम लोगों को उल्लू बनाने के लिए।’
देवीसिंह – ‘अच्छा नाम जाने दीजिए, इनके मकाम का पता लगाइए।’
ज्योतिषी – ‘मकाम के बारे में जब रमल से दरियाफ्त करते हैं तो मालूम होता है कि इन लोगों का मकाम जल में है, तो क्या हम समझ लें कि ये लोग जलवासी अर्थात मछली हैं।’
तेजसिंह – ‘यह तो ठीक ही है, देखिए जलवासी हैं कि नहीं?’
ज्योतिषी – ‘भाई सुनो, रमल के काम में ये चारों पदार्थ - हवा, पानी, मिट्टी और आग हमेशा विघ्न डालते हैं। अगर कोई आदमी ज्योतिषी या रम्माल को छकाना चाहे तो इन चारों के हेर-फेर से खूब छकाया जा सकता है। ज्योतिषी बेचारा खाक न कर सके, पोथी-पत्र बेकार का बोझ हो जाए।
तेजसिंह – ‘यह कैसे? खुलासा बताओ तो कुछ हम लोग भी समझें, वक्त पर काम ही आएगा।’
ज्योतिषी – ‘बता देंगे, इस वक्त जिस काम को आए हो वह करो। चलो तैर कर चलें।’
तेजसिंह – ‘चलो।’
ये तीनों ऐयार तैर कर कर नाव के पास गए। बटुआ ऐयारी का कमर में बाँधा कपड़ा-लत्ता किनारे रख कर जल में उतर गए। मगर दो-चार हाथ गए होंगे कि पीछे से सीटी की आवाज आई, साथ ही नाव पर जो माहताब जल रहे थे बुझ गए, जैसे किसी ने उन्हें जल्दी से जल में फेंक दिया हो। अब बिल्कुल अँधेरा हो गया, नाव नजरों से छिप गई।
देवीसिंह ने कहा - ‘लीजिए, चलिए तैर कर के।’
तेजसिंह – ‘ये सब बड़ी शैतान मालूम होती हैं?’
ज्योतिषी – ‘मैंने तो पहले ही कहा कि ये सब-की-सब आफत हैं, अब आपको मालूम हुआ न कि मैं सच कहता था, इन लोगों ने हमारे नजूम को मिट्टी कर दिया है।’
देवीसिंह – ‘चलिए किनारे, इन्होंने तो बेढब छकाया, मालूम होता है कि किनारे पर कोई पहरे वाला खड़ा देखता था। जब हम लोग तैर कर के जाने लगे उसने सीटी बजाई, बस अँधेरा हो गया, पहले ही से इशारा बँधा हुआ था।’
ज्योतिषी – ‘इस नालायक को यह क्या सूझी कि जब हम लोग पानी में उतर चुके, तब सीटी बजाई, पहले ही बजाता तो हम लोग क्यों भीगते?’
ये तीनो ऐयार लौट कर किनारे आए, पहनने के वास्ते अपना कपड़ा खोजते हैं तो मिलते ही नहीं।
देवीसिंह – ‘ज्योतिषी जी पांलागी, लीजिए कपड़े भी गायब हो गए। हाय इस वक्त अगर इन लोगों में से किसी को पाऊँ तो कच्चा ही चबा जाऊँ!’
तेजसिंह – ‘हम तो उन लोगों की तारीफ करेंगे, खूब ऐयारी की।’
देवीसिंह – ‘हाँ-हाँ खूब तारीफ कीजिए जिससे उन लोगों में से अगर कोई सुनता हो तो अब भी आप पर रहम करे और आगे न सतावे।’
ज्योतिषी – ‘अब क्या सताना बाकी रह गया। कपड़े तक तो उतरवा लिए।’
तेजसिंह – ‘चलिए अब लश्कर में चलें, इस वक्त और कुछ करते बन न पड़ेगा।’
आधी रात जा चुकी होगी, जब ये लोग ऐयारी के सताए बदन से नंग-धड़ंग काँपते-कलपते लश्कर की तरफ रवाना हुए।