30-07-2021, 12:05 PM
बयान - 3
कल रात से आज की रात कुमार को और भी भारी गुजरी। बार-बार उस बरवे को पढ़ते रहे। सवेरा होते ही उठे, स्नान-पूजा कर जंगल में जाने के लिए तेजसिंह को बुलाया, वे भी आए। आज फिर तेजसिंह ने मना किया मगर कुमार ने न माना, तब तेजसिंह ने उन तिलिस्मी फूलों में से गुलाब का फूल पानी में घिस कर कुमार और फतहसिंह को पिलाया और कहा कि अब जहाँ जी चाहे घूमिए, कोई बेहोश करके आपको नहीं ले जा सकता, हाँ जबर्दस्ती पकड़ ले तो मैं नहीं कह सकता।’
कुमार ने कहा - ‘ऐसा कौन है जो मुझको जबर्दस्ती पकड़ ले।’
पाँचों आदमी जंगल में गए, कुछ दूर कुमार और फतहसिंह को छोड़ तीनों ऐयार अलग-अलग हो गए। कुँवर वीरेंद्रसिंह फतहसिंह के साथ इधर-उधर घूमने लगे। घूमते-घूमते कुमार बहुत दूर निकल गए, देखा कि दो नकाबपोश सवार सामने से आ रहे हैं। जब कुमार से थोड़ी दूर रह गए तो एक सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और जमीन पर कुछ रख के फिर सवार हो गया। कुमार उसकी तरफ बढ़े, जब पास पहुँचे तो वे दोनों सवार यह कह के चले गए कि इस किताब और खत को ले लीजिए।
कुमार ने पास जा कर देखा तो वही तिलिस्मी किताब नजर पड़ी, उसके ऊपर एक खत और बगल में कलम दवात और कागज भी मौजूद पाया। कुमार ने खुशी-खुशी उस किताब को उठा लिया और फतहसिंह की तरफ देख के बोले - ‘यह किताब दे कर दोनों सवार चले क्यों गए सो कुछ समझ में नहीं आता, मगर बोली से मालूम होता है कि वह सवार औरत है जिसने मुझे किताब उठा लेने के लिए कहा। देखें खत में क्या लिखा है?’ यह कह खत खोल पढ़ने लगे, यह लिखा था-
‘मेरा जी तुमसे अटका है और जिसको तुम चाहते हो वह बेचारी तिलिस्म में फँसी है। अगर उसको किसी तरह की तकलीफ होगी तो तुम्हारा जी दुखी होगा। तुम्हारी खुशी से मुझको भी खुशी है यह समझ कर किताब तुम्हारे हवाले करती हूँ। खुशी से तिलिस्म तोड़ो और चंद्रकांता को छुड़ाओ, मगर मुझको भूल न जाना, तुम्हें उसी की कसम जिसको ज्यादा चाहते हो। इस खत का जवाब लिख कर उसी जगह रख देना जहाँ से किताब उठाओगे।’
खत पढ़ कर कुमार ने तुरंत जवाब लिखा -
‘इस तिलिस्मी किताब को हाथ में लिए मैंने जिस वक्त तुमको देखा उसी वक्त से तुम्हारे मिलने को जी तरस रहा है। मैं उस दिन अपने को बड़ा भाग्यवान जनूँगा जिस दिन मेरी आँखें दोनों प्रेमियों को देख ठंडी होगी, मगर तुमको तो मेरी सूरत से नफरत है।
- तुम्हारा वीरेंद्र।’
जवाब लिख कर कुमार ने उसी जगह पर रख दिया। वे दोनों सवार दूर खड़े दिखाई दिए, कुमार देर तक खड़े राह देखते रहे मगर वे नजदीक न आए, जब कुमार कुछ दूर हट गए तब उनमें से एक ने आ कर खत का जवाब उठा लिया और देखते-देखते नजरों की ओट हो गया। कुमार भी फतहसिंह के साथ लश्कर में आए।
कुछ रात गए तेजसिंह वगैरह भी वापस आ कर कुमार के खेमे में इकट्ठे हुए। तेजसिंह ने कहा - ‘आज भी किसी का पता न लगा, हाँ कई नकाबपोश सवारों को इधर-उधर घूमते देखा। मैंने चाहा कि उनका पता लगाऊँ मगर न हो सका क्योंकि वे लोग भी चालाकी से घूमते थे, मगर कल जरूर हम उन लोगों का पता लगा लेंगे।’
कुमार ने कहा - ‘देखो तुम्हारे किए कुछ न हुआ मगर मैंने कैसी ऐयारी की कि खोई हुई चीज को ढूँढ़ निकाला, देखो यह तिलिस्मी किताब।’ यह कह कुमार ने किताब तेजसिंह के आगे रख दी।
तेजसिंह ने कहा - ‘आप जो कुछ ऐयारी करेंगे, वह तो मालूम ही है मगर यह बताइए कि किताब कैसे हाथ लगी? जो बात होती है ताज्जुब की।’
कुमार ने बिल्कुल हाल किताब पाने का कह सुनाया, तब वह खत दिखाई और जो कुछ जवाब लिखा था वह भी कहा।
ज्योतिषी जी ने कहा - ‘क्यों न हो, फिर तो बड़े घर की लड़की है, किसी तरह से कुमार को दु:ख देना पसंद न किया। सिवाय इसके खत पढ़ने से यह भी मालूम होता है कि वह कुमार के पूरे-पूरे हाल से वाकिफ है, मगर हम लोग बिल्कुल नहीं जान सकते कि वह है कौन।’
कुमार ने कहा - ‘इसकी शर्म तो तेजसिंह को होनी चाहिए कि इतने बड़े ऐयार होकर दो-चार औरतों का पता नहीं लगा सकते।’
तेजसिंह पता तो ऐसा लगाएँगे कि आप भी खुश हो जाएँगे, मगर अब किताब मिल गई है तो पहले तिलिस्म के काम से छुट्टी पा लेनी चाहिए।
कुमार – ‘तब तक क्या वे सब बैठी रहेंगी?’
तेजसिंह – ‘क्या अब आपको कुमारी चंद्रकांता की फिक्र न रही?’
कुमार – ‘क्यों नहीं, कुमारी की मुहब्बत भी मेरे नस-नस में बसी हुई है, मगर तुम भी तो इंसाफ करो कि इसकी मुहब्बत मेरे साथ कैसी सच्ची है, यहाँ तक कि मेरे ही सबब से कुमारी चंद्रकांता को मुझसे भी बढ़ कर समझ रखा है।’
तेजसिंह हम यह तो नहीं कहते कि उसकी मुहब्बत की तरफ ख्याल न करें, मगर तिलिस्म का भी तो ख्याल होना चाहिए।
कुमार – ‘तो ऐसा करो जिसमें दोनों का काम चले।’
तेजसिंह – ‘ऐसा ही होगा, दिन को तिलिस्म तोड़ने का काम करेंगे, रात को उन लोगों का पता लगाएँगे।’
आज की रात फिर उसी तरह काटी, सवेरे मामूली कामों से छुट्टी पा कर कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और ज्योतिषी जी तिलिस्म में घुसे, तिलिस्मी किताब साथ थी। जैसे-जैसे उसमें लिखा हुआ था उसी तरह ये लोग तिलिस्म तोड़ने लगे।
तिलिस्मी किताब में पहले ही यह लिखा हुआ था कि तिलिस्म तोड़ने वाले को चाहिए कि जब पहर दिन बाकी रहे तिलिस्म से बाहर हो जाए और उसके बाद कोई काम लितिस्म तोड़ने का न करे।
कल रात से आज की रात कुमार को और भी भारी गुजरी। बार-बार उस बरवे को पढ़ते रहे। सवेरा होते ही उठे, स्नान-पूजा कर जंगल में जाने के लिए तेजसिंह को बुलाया, वे भी आए। आज फिर तेजसिंह ने मना किया मगर कुमार ने न माना, तब तेजसिंह ने उन तिलिस्मी फूलों में से गुलाब का फूल पानी में घिस कर कुमार और फतहसिंह को पिलाया और कहा कि अब जहाँ जी चाहे घूमिए, कोई बेहोश करके आपको नहीं ले जा सकता, हाँ जबर्दस्ती पकड़ ले तो मैं नहीं कह सकता।’
कुमार ने कहा - ‘ऐसा कौन है जो मुझको जबर्दस्ती पकड़ ले।’
पाँचों आदमी जंगल में गए, कुछ दूर कुमार और फतहसिंह को छोड़ तीनों ऐयार अलग-अलग हो गए। कुँवर वीरेंद्रसिंह फतहसिंह के साथ इधर-उधर घूमने लगे। घूमते-घूमते कुमार बहुत दूर निकल गए, देखा कि दो नकाबपोश सवार सामने से आ रहे हैं। जब कुमार से थोड़ी दूर रह गए तो एक सवार घोड़े पर से उतर पड़ा और जमीन पर कुछ रख के फिर सवार हो गया। कुमार उसकी तरफ बढ़े, जब पास पहुँचे तो वे दोनों सवार यह कह के चले गए कि इस किताब और खत को ले लीजिए।
कुमार ने पास जा कर देखा तो वही तिलिस्मी किताब नजर पड़ी, उसके ऊपर एक खत और बगल में कलम दवात और कागज भी मौजूद पाया। कुमार ने खुशी-खुशी उस किताब को उठा लिया और फतहसिंह की तरफ देख के बोले - ‘यह किताब दे कर दोनों सवार चले क्यों गए सो कुछ समझ में नहीं आता, मगर बोली से मालूम होता है कि वह सवार औरत है जिसने मुझे किताब उठा लेने के लिए कहा। देखें खत में क्या लिखा है?’ यह कह खत खोल पढ़ने लगे, यह लिखा था-
‘मेरा जी तुमसे अटका है और जिसको तुम चाहते हो वह बेचारी तिलिस्म में फँसी है। अगर उसको किसी तरह की तकलीफ होगी तो तुम्हारा जी दुखी होगा। तुम्हारी खुशी से मुझको भी खुशी है यह समझ कर किताब तुम्हारे हवाले करती हूँ। खुशी से तिलिस्म तोड़ो और चंद्रकांता को छुड़ाओ, मगर मुझको भूल न जाना, तुम्हें उसी की कसम जिसको ज्यादा चाहते हो। इस खत का जवाब लिख कर उसी जगह रख देना जहाँ से किताब उठाओगे।’
खत पढ़ कर कुमार ने तुरंत जवाब लिखा -
‘इस तिलिस्मी किताब को हाथ में लिए मैंने जिस वक्त तुमको देखा उसी वक्त से तुम्हारे मिलने को जी तरस रहा है। मैं उस दिन अपने को बड़ा भाग्यवान जनूँगा जिस दिन मेरी आँखें दोनों प्रेमियों को देख ठंडी होगी, मगर तुमको तो मेरी सूरत से नफरत है।
- तुम्हारा वीरेंद्र।’
जवाब लिख कर कुमार ने उसी जगह पर रख दिया। वे दोनों सवार दूर खड़े दिखाई दिए, कुमार देर तक खड़े राह देखते रहे मगर वे नजदीक न आए, जब कुमार कुछ दूर हट गए तब उनमें से एक ने आ कर खत का जवाब उठा लिया और देखते-देखते नजरों की ओट हो गया। कुमार भी फतहसिंह के साथ लश्कर में आए।
कुछ रात गए तेजसिंह वगैरह भी वापस आ कर कुमार के खेमे में इकट्ठे हुए। तेजसिंह ने कहा - ‘आज भी किसी का पता न लगा, हाँ कई नकाबपोश सवारों को इधर-उधर घूमते देखा। मैंने चाहा कि उनका पता लगाऊँ मगर न हो सका क्योंकि वे लोग भी चालाकी से घूमते थे, मगर कल जरूर हम उन लोगों का पता लगा लेंगे।’
कुमार ने कहा - ‘देखो तुम्हारे किए कुछ न हुआ मगर मैंने कैसी ऐयारी की कि खोई हुई चीज को ढूँढ़ निकाला, देखो यह तिलिस्मी किताब।’ यह कह कुमार ने किताब तेजसिंह के आगे रख दी।
तेजसिंह ने कहा - ‘आप जो कुछ ऐयारी करेंगे, वह तो मालूम ही है मगर यह बताइए कि किताब कैसे हाथ लगी? जो बात होती है ताज्जुब की।’
कुमार ने बिल्कुल हाल किताब पाने का कह सुनाया, तब वह खत दिखाई और जो कुछ जवाब लिखा था वह भी कहा।
ज्योतिषी जी ने कहा - ‘क्यों न हो, फिर तो बड़े घर की लड़की है, किसी तरह से कुमार को दु:ख देना पसंद न किया। सिवाय इसके खत पढ़ने से यह भी मालूम होता है कि वह कुमार के पूरे-पूरे हाल से वाकिफ है, मगर हम लोग बिल्कुल नहीं जान सकते कि वह है कौन।’
कुमार ने कहा - ‘इसकी शर्म तो तेजसिंह को होनी चाहिए कि इतने बड़े ऐयार होकर दो-चार औरतों का पता नहीं लगा सकते।’
तेजसिंह पता तो ऐसा लगाएँगे कि आप भी खुश हो जाएँगे, मगर अब किताब मिल गई है तो पहले तिलिस्म के काम से छुट्टी पा लेनी चाहिए।
कुमार – ‘तब तक क्या वे सब बैठी रहेंगी?’
तेजसिंह – ‘क्या अब आपको कुमारी चंद्रकांता की फिक्र न रही?’
कुमार – ‘क्यों नहीं, कुमारी की मुहब्बत भी मेरे नस-नस में बसी हुई है, मगर तुम भी तो इंसाफ करो कि इसकी मुहब्बत मेरे साथ कैसी सच्ची है, यहाँ तक कि मेरे ही सबब से कुमारी चंद्रकांता को मुझसे भी बढ़ कर समझ रखा है।’
तेजसिंह हम यह तो नहीं कहते कि उसकी मुहब्बत की तरफ ख्याल न करें, मगर तिलिस्म का भी तो ख्याल होना चाहिए।
कुमार – ‘तो ऐसा करो जिसमें दोनों का काम चले।’
तेजसिंह – ‘ऐसा ही होगा, दिन को तिलिस्म तोड़ने का काम करेंगे, रात को उन लोगों का पता लगाएँगे।’
आज की रात फिर उसी तरह काटी, सवेरे मामूली कामों से छुट्टी पा कर कुँवर वीरेंद्रसिंह, तेजसिंह और ज्योतिषी जी तिलिस्म में घुसे, तिलिस्मी किताब साथ थी। जैसे-जैसे उसमें लिखा हुआ था उसी तरह ये लोग तिलिस्म तोड़ने लगे।
तिलिस्मी किताब में पहले ही यह लिखा हुआ था कि तिलिस्म तोड़ने वाले को चाहिए कि जब पहर दिन बाकी रहे तिलिस्म से बाहर हो जाए और उसके बाद कोई काम लितिस्म तोड़ने का न करे।