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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
#57
Heart 
यह खबर चारों तरफ मशहूर हो गई कि चुनारगढ़ के इलाके में कोई तिलिस्म है जिसमें कुमारी चंद्रकांता और चपला फँस गई हैं। उनको छुड़ाने और तिलिस्म तोड़ने के लिए कुँवर वीरेंद्रसिंह ने मय फौज के उस जगह डेरा डाला है।

तिलिस्म किसको कहते हैं? वह क्या चीज है? उसमें आदमी कैसे फँसता है? कुँवर वीरेंद्रसिंह उसे क्यों कर तोड़ेंगे? इत्यादि बातों को जानने और देखने के लिए दूर-दूर के बहुत से आदमी उस जगह इकट्ठे हुए जहाँ कुमार का लश्कर उतरा हुआ था, मगर खौफ के मारे खँडहर के अंदर कोई पैर नहीं रखता था, बाहर से ही देखते थे।

कुमार के लश्कर वालों ने घूमते-फिरते कई नकाबपोश सवारों को भी देखा जिनकी खबर उन लोगों ने कुमार तक पहुँचाई।

पंडित बद्रीनाथ, अहमद और नाजिम को साथ ले कर महाराज शिवदत्त को छुड़ाने गए थे, तहखाने में शेर के मुँह से जुबान खींच, किवाड़ खोलना चाहा मगर न खुल सका, क्योंकि यहाँ तेजसिंह ने दोहरा ताला लगा दिया था। 

जब कोई काम न निकला, तब वहाँ से लौट कर विजयगढ़ गए, ऐयारी की फिक्र में थे कि यह खबर कुँवर वीरेंद्रसिंह की इन्होंने भी सुनी। लौट कर इसी जगह पहुँचे। 

पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल भी उसी ठिकाने जमा हुए और इन सभी की यह राय होने लगी कि किसी तरह तिलिस्म तोड़ने में बाधा डालनी चाहिए। इसी फिक्र में ये लोग भेष बदल कर इधर-उधर तथा लश्कर में घूमने लगे।
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 29-07-2021, 07:53 PM



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