27-07-2021, 06:48 PM
(This post was last modified: 28-07-2021, 10:34 AM by CopyPornstar. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
नहाने के तुरंत बाद वह डाइनिंग टेबल के करीब आए तो देखी की प्लेट में ब्रेड के कुछ टुकड़े पड़े हुए हैं जिससे वह समझ गई थी अशोक नाश्ता कर चुका है।
वह डाइनिंग टेबल के करीब खड़ी थी कि अशोक रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो निर्मला उससे बोली।
आप मुझे बुला लिया होता तो मैं आपके लिए नाश्ता तैयार कर देती। इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें अच्छा नहीं लगता ना।
हा,,, हां,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया। ( अशोक की बात सुनते ही निर्मला बोली।)
लेकिन आज तो संडे है ऑफिस में भी छुट्टी है तो आपको क्या जरूरी काम है।
देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और काम अपना है इसमें छुट्टी कैसी। अशोक शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला,,,
अशोक की बात सुनकर निर्मला उदास हो गई वह जितनी भी ज्यादा मीठी बातें करके अशोक का मन बहलाने की कोशिश करती लेकिन अशोक हमेशा कड़वी जुबान से ही बोलता था।
निर्मला उदास होकर के रसोईघर में चली गई और अशोक ऑफिस के लिए निकल गया। रसोईघर में निर्मला शुभम के लिए नाश्ता तैयार करने लगी और बाहर गाड़ी की आवाज सुनकर उसे यह पता चल गया कि अशोक जा रहा है।
अशोक की लगातार बढ़ती नजरअंदाजी की वजह से निर्मला का मन खिन्न होने लगा था वह अशोक के ऊपर से ध्यान ना हटाकर नाश्ता तैयार करने में जुट गई।
समय ज्यादा हो चुका था इसलिए वह समझ गई थी कि शुभम पूजा-पाठ कर चुका होगा और नाश्ता भी कर चुका होगा लेकिन आज रविवार था इसलिए वह उसके लिए पराठे बना रही थी क्योंकि रविवार के दिन बाद ज्यादातर समय घर के बाहर मैदान पर क्रिकेट खेल कर दोस्तों के साथ ही बिताता था।
निर्मला का मन किसी काम में नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से वह शुभम के लिए परांठे तैयार कर रही थी और मन में ढेर सारी वेदनाएं,,, दर्द,, तड़प उसे पल-पल तड़पा रही थी। उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया था धीरे-धीरे करके समय रेत की तरह उसकी हथेली से निकल चुका था। वह तो भगवान की बड़ी कृपा थी कि अब भी उसकी खूबसूरती बरकरार थी।
पराठा तैयार हो चुका था निर्मला ने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया क्योंकि उसे भूख ही नहीं थी और जिस चीज की भूख थी। वह उस के नसीब में ही नहीं था या उसे पाने का उसने पूरी तरह से प्रयास ही नहीं की थी ।
कभी-कभी तो वह मां बाप से पाई हुई तहजीब और संस्कार को लेकर के भगवान से मन ही मन बोला करती थी कि भगवान तूने इतनी संस्कारी क्यों बनाया क्यों दूसरी औरतों के तरह थोड़ी सी बेशर्मी नहीं भर दी।
तहजीब और संस्कार किसी के लिए दुख का कारण बन सकते हैं, यह बात निर्मला से ज्यादा अच्छी तरह भला कौन जान सकता है ।
पराठा बन चुका था और शुभम पढ़ाई में लगा हुआ था वह जानती थी कि शुभम थोड़ा लेट ही खाएगा इसलिए वह घर के काम में लग गई।
वह डाइनिंग टेबल के करीब खड़ी थी कि अशोक रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो निर्मला उससे बोली।
आप मुझे बुला लिया होता तो मैं आपके लिए नाश्ता तैयार कर देती। इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें अच्छा नहीं लगता ना।
हा,,, हां,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया। ( अशोक की बात सुनते ही निर्मला बोली।)
लेकिन आज तो संडे है ऑफिस में भी छुट्टी है तो आपको क्या जरूरी काम है।
देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और काम अपना है इसमें छुट्टी कैसी। अशोक शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला,,,
अशोक की बात सुनकर निर्मला उदास हो गई वह जितनी भी ज्यादा मीठी बातें करके अशोक का मन बहलाने की कोशिश करती लेकिन अशोक हमेशा कड़वी जुबान से ही बोलता था।
निर्मला उदास होकर के रसोईघर में चली गई और अशोक ऑफिस के लिए निकल गया। रसोईघर में निर्मला शुभम के लिए नाश्ता तैयार करने लगी और बाहर गाड़ी की आवाज सुनकर उसे यह पता चल गया कि अशोक जा रहा है।
अशोक की लगातार बढ़ती नजरअंदाजी की वजह से निर्मला का मन खिन्न होने लगा था वह अशोक के ऊपर से ध्यान ना हटाकर नाश्ता तैयार करने में जुट गई।
समय ज्यादा हो चुका था इसलिए वह समझ गई थी कि शुभम पूजा-पाठ कर चुका होगा और नाश्ता भी कर चुका होगा लेकिन आज रविवार था इसलिए वह उसके लिए पराठे बना रही थी क्योंकि रविवार के दिन बाद ज्यादातर समय घर के बाहर मैदान पर क्रिकेट खेल कर दोस्तों के साथ ही बिताता था।
निर्मला का मन किसी काम में नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से वह शुभम के लिए परांठे तैयार कर रही थी और मन में ढेर सारी वेदनाएं,,, दर्द,, तड़प उसे पल-पल तड़पा रही थी। उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया था धीरे-धीरे करके समय रेत की तरह उसकी हथेली से निकल चुका था। वह तो भगवान की बड़ी कृपा थी कि अब भी उसकी खूबसूरती बरकरार थी।
पराठा तैयार हो चुका था निर्मला ने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया क्योंकि उसे भूख ही नहीं थी और जिस चीज की भूख थी। वह उस के नसीब में ही नहीं था या उसे पाने का उसने पूरी तरह से प्रयास ही नहीं की थी ।
कभी-कभी तो वह मां बाप से पाई हुई तहजीब और संस्कार को लेकर के भगवान से मन ही मन बोला करती थी कि भगवान तूने इतनी संस्कारी क्यों बनाया क्यों दूसरी औरतों के तरह थोड़ी सी बेशर्मी नहीं भर दी।
तहजीब और संस्कार किसी के लिए दुख का कारण बन सकते हैं, यह बात निर्मला से ज्यादा अच्छी तरह भला कौन जान सकता है ।
पराठा बन चुका था और शुभम पढ़ाई में लगा हुआ था वह जानती थी कि शुभम थोड़ा लेट ही खाएगा इसलिए वह घर के काम में लग गई।