26-07-2021, 08:48 PM
निर्मला कमरे का दरवाजा बंद करके धीरे धीरे चलते हुए आदमकद़ आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई सोने से पहले वह कपड़े बदल कर सकती थी इसलिए वह आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर के कुछ पल के लिए अपने रुप को निहारने लगी और फिर वह अपने साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी।
साड़ी के पल्लू के नीचे गिरते ही विशालकाय चुचियों की रंगत ब्लाउज में से बाहर साफ साफ नजर आ रही थी।
आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था और निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी की कपड़े बदलते वक़्त वहां आईने में से अशोक को नजर आ रही होगी।
वह जानबूझकर अशोक को रिझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसकी नजर अभी आईने पर नहीं घूमीें थी।
लेकिन निर्मला की कोशिश जारी थी, वह धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के बटन को खोलने के लगी।
जैसे जैसे वह ब्लाउज के बटन को खोले जा रही थी वैसे वैसे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज के बाहर आने को छटपटा रही थी।
धीरे धीरे करके उसने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और उसकी नजर लगातार आईने में नजर आ रही है उसके ऊपर टिकी हुई थी। जो कि अभी भी लैपटॉप में ही व्यस्त था।
ब्लाउज के बटन खोलने के बाद वह आहिस्ते आहिस्ते अपने ब्लाउज को अपनी बाहों से निकालकर वहीं पास में पड़ी टेबल पर रख दी।
चूचियां काफी बड़ी होने के कारण और ब्रा का साइज कुछ छोटा होने की वजह से चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आती थी।
यह नजारा देखकर तो खुद निर्मला कि जाँघों के बीच भी सुरसुराहट होने लगती थी तो सोचो मर्दों का क्या हालत होता होगा।
निर्मला जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से अशोक का ध्यान इधर हो और सच में ऐसा हुआ अभी अशोक का ध्यान लैपटॉप से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया।
अशोक की नजर आईने पर देखते ही निर्मला एक पल भी गंवाएं बिना अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी।
अगले ही पल उसने ब्रा के हुक को खोलकर धीरे धीरे अपनी ब्रा को बाहों में से निकालने लगी और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी। निर्मला की दोनों चुचीया एकदम आजाद हो चुकी थी।
एकदम कसी हुई और तनी हुई जिसे के आकर्षण में अशोक अभी तक अपनी नजरें आईने में गड़ाए हुए था।
निर्मला अशोक को उसकी तरफ से देखते हुए मन ही मन मुस्कुराने लगी और यह जाहिर नहीं होने दी कि वह अशोक को उस को निहारते हुए देख रही है।
अशोक को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी।
सीधी सादी संस्कारी निर्मला की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर अशोक पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था। यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का संचार हो रहा था।
अपनी हरकत की वजह से निर्मला को अपनी बुर से हल्का हल्का रिसाव सा महसूस हो रहा था, जोकि निर्मला के उन्माद को बढ़ा रहा था।
अशोक की आंखे आईने पर टीकी हुई देखकर निर्मला एक पल भी करवाना उचित नहीं समझती थी इसलिए उसने तुरंत अपनी कमर में बनी हुई साड़ी को खोलने लगी और अगले पल उसके बदन से साड़ी भी उतर कर टेबल पर पड़ी हुई थी।
निर्मला के बदन पर केवल पेटीकोट ही रह गई थी।जिसमें से उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी जिस पर अब अशोक की नजर बराबर टिकी हुई थी।
अशोक की नजरें उसकी गांड पर टिकी हुई है यह जानकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी उसकी धड़कन तेज चलने लगी और उसके हाथ धीरे से पेटीकोट की डोरी पर चली गई और हल्के से अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए पेटीकोट की डोरी को एक झटके से खींच दी।
एक झटके से डोरी को खींचते ही पेटीकोट का कसाव कमर के ऊपर से ढीला पड़ गया और पेटीकोट ढीली पड़ते ही निर्मला ने हाथ में पकड़ी हुई डोरी पेटीकोट सहित छोड़ दी। निर्मला ने यह हरकत जिंदगी में पहली बार करी थी न जाने कहां से उसमें यह करने की हिम्मत आ गई थी।
निर्मला तो अशोक को रिझाने की कोशिश तो हमेशा से करती ही आ रही थी लेकिन आज इस कोशिश में यह हरकत पहली बार शामिल हुई थी।
पेटीकोट के छोड़ते ही पेटीकोट सीधी कमर से फीसलती हुई भरावदार नितंबों को उजागर करते हुए नीचे कदमों में आ गिरी। जिससे निर्मला पूरी की पूरी आईने के सामने नंगी हो गई उसके बदन पर मात्र एक पेंटी ही बची थी लेकिन पेंटी भी ऊसकी बड़ी बड़ी भरावदार गांड को ढंक पाने मे असमर्थ साबित हो रही थी।
अशोक को आज अपनी बीवी को रिझाने का यह रवैया बहुत ही कामुक लगा वह इसलिए तो एकटक आंख फाड़े अपनी बीवी की खूबसूरती को देखे जा रहा था और यह बात निर्मला को भी अच्छी लग रही थी और अगले ही पल निर्मला ने अपने हाथों की दोनों अंगुलियों को पैंटी के इर्द-गिर्द ऊलझाकर धीरे धीरे पेंटिं को नीचे सरकानै लगी।
निर्मला की यह कामुक अदा और हरकत अशोक को इस समय बेहद अचंभे में डाल रही थी क्योंकि जिस तरह की हरकत निर्मला आज कर रही थी इस तरह की हरकत ऊसनें पहले कभी नहीं की थी ।
वह पेंटिं उतारते समय जिस तरह से अपनी भरावदार बड़ी-बड़ी उभरी हुई गांड को दांए बांए कर के मटका रही थी। कसम से अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसका तो खड़े खड़े ही पानी निकल जाए।
निर्मला जिस तरह से अपनी गांड मटकाते हुए पेंटी को उतार रही थी उससे एक अजीब प्रकार की थिरकन हो रही थी और ऊस थिरकन को देखकर अशोक का मन एक पल के लिए ललच सा गया।
इसमें अशोक का दोष बिल्कुल भी नहीं था निर्मला के बदन की बनावट ही भगवान ने कुछ इस तरह की बनाई थी की उसे अगर दुनिया का कोई भी इंसान किस अवस्था में देख ले तो उसका मन उसे पाने को ललच जाएं।
स्वर्ग की अप्सरा भी निर्मला की खूबसूरती देखकर शर्मा जाए इस तरह से भगवान ने उसे बनाया था। निर्मला अपनी खूबसूरती और अपनी कामुक अदाओं के जलवे बिखेरते हुए धीरे-धीरे अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए अपने भारी भारी गोल नितंबों के नीचे तक ला दी।
नितंबों के ठीक नीचे पैंटी की इलास्टिक रबर कसी हुई थी और इस तरह से इलास्टिक की डोरी कसी होने की वजह से निर्मला की गोल गांड और भी ज्यादा कामुक और उभरी हुई लग रही थी। जिसे देख कर अशोक की सांसे थम गई निर्मला भी लगातार आईने में अशोक को निहारते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।
आज जो उसने हिम्मत दिखाई थी उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था अपनी कामुक हरकतों की वजह से आज मन ही मन उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रहीे थी, जिसकी वजह से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव बड़ी तेजी से हो रहा था। निर्मला का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था।
अगले ही पल निर्मला ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी। पेंटी को घुटनो से नीचे पहुंचते ही निर्मला सीधी खड़ी हो गई और केवल पैरों के सहारे से ही वहां अपनी पैंटी को नीचे कर के पेऱ से बाहर निकाल दी।
अब निर्मला के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में अशोक की आंखें चौंधिया जा रही थी।
निर्मला मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे लगने लगा था कि आज अशोक जी भर के ऊसे प्यार करेगा क्योंकि आज उसने अशोक को रिझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी।
इस समय निर्मला बहुत ही पसंद नजर आ रही थी उसने कभी अपने मुंह से इस बात को जाहिर नहीं होने दी थी लेकिन मन ही मन यह जरूर चाहती थी कि उसका पति संभोग करते समय से बेहद प्यार करे अपने लंड को उसकी बुर की गहराई तक जोर-जोर से डालते हुए उसे चोदे लेकिन आजकल अशोक ज्यादा देर तक टिक भी नहीं पाता था।
इसका एक कारण यह भी था कि अशोक उसे पहले की तरह प्यार नहीं करता था बल्कि उसकी खूबसूरती को उसके बदन को खुद निर्मला को नजरअंदाज करता था और दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि निर्मला अंदर ही अंदर बहुत ही प्यासी थी।
हां यह बात अलग है कि उस के संस्कार नहीं इस बात को कभी जाहिर होने नहीं दिया लेकिन अंदर ही अंदर वहां जबरजस्त चुदाई को तड़प रही थी और इस कदर संभोग की प्यासी होने की वजह से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें इतनी ज्यादा गर्म होती थी कि अशोक अपना लंड डालते ही बुर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और कुछ ही मिनटों में बिस्तर के मैदान पर हथियार नीचे रखते हुए हार मान लेता था।
इस वजह से निर्मला हमेशा प्यासी ही रहती थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि परसों की दबी हुई प्यार आज भी जरूर बुझेगी। इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे जो कि उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद निर्मला शर्मा करो और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी और तुरंत अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली।
गाऊन के पहनते ही एक बड़े ही उत्तेजक उन्माद से भरे हुए कामुक दृश्य पर पर्दा पड़ चुका था। उत्साहजनक और बेहद कामुकता से भरे हुए वातावरण को निर्मला की इस हरकत में निराशाजनक बना दिया।
अशोक भी जोकि उत्तेजित हुए जा रहा था निर्मला की इस हरकत से उस पर भी ठंडा पानी पड़ गया था।
निर्मला की हरकत देखते हुए अशोक को आज निर्मला से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी उसे लगने लगा था कि निर्मला शायद आज और भी ज्यादा अपने बदन के जलवे बिखेरेगी लेकीन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ इसलिए निराश होकर के वह वापस लैपटॉप में व्यस्त हो गया और निर्मला मन में ढेर सारे उम्मीदे लिए अपने ऊपर खुशबूदार स्प्रे का छिड़काव कर रही थी ताकी कमरे का वातावरण और ज्यादा रोमांटिक हो जाए।
निर्मला अपने आप को बिस्तर पर जाने से पहले पूरी तरह से तैयार कर ली थी और वह बिस्तर पर जाने के लिए कल भी तो अशोक को लैपटॉप में व्यस्त पाकर थोड़ा सा उदास हुई लेकिन शायद अशोक अपने पिछले व्यवहार के कारण इस तरह से कर रहा है यह सोचकर वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई।
निर्मला की पीठ अशोक की तरफ थी और वह इंतजार कर रही थी कि अशोक कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी।
अशोक के ऊपर उसके तन-बदन में निर्मला काम भावना जगाने में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी लेकिन अंतिम क्षण में उसने गाउन पहन कर जो गलती कर दी थी उससे अशोक का मन बदल गया था।
इसलिए वह अब निर्मला पर ध्यान दिए बिना ही लैपटॉप में व्यस्त हो चुका था और दूसरी तरफ निर्मला अशोक का इंतजार करते-करते पेड़ से प्यार करते हुए थक हारकर नींद की आगोश में चली गई एक बार फिर से निर्मला को निराशा ही हाथ लगी थी।
निर्मला सो चुकी थी और अभी भी अशोक लैपटॉप पर ऑफिस का काम करने में व्यस्त था।
निर्मला के सोने के एकाध घंटे बाद ही अशोक की नजर फिर से निर्मला की भरावदार गांड पर गई जो कि गांऊन के अंदर थी लेकिन सोने की वजह से निर्मला का गांव अस्त व्यस्त हो चुका था और चढ़कर जांघो तक आ चुका था।
निर्मला की आधी नंगी जांघ को देख कर अशोक से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से निर्मला के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे निर्मला की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया।
निर्मला के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी इसलिए अशोक की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए अशोक के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही और अशोक जी निर्मला की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।
साड़ी के पल्लू के नीचे गिरते ही विशालकाय चुचियों की रंगत ब्लाउज में से बाहर साफ साफ नजर आ रही थी।
आईना ऐसी जगह पे लगा हुआ था कि जहां से बिस्तर पर बैठा हुआ इंसान आईने में नजर आता था और बिस्तर पर बैठ कर भी आईने में सब कुछ देख सकता था और निर्मला भी अच्छी तरह से जानती थी की कपड़े बदलते वक़्त वहां आईने में से अशोक को नजर आ रही होगी।
वह जानबूझकर अशोक को रिझाने की कोशिश कर रही थी लेकिन उसकी नजर अभी आईने पर नहीं घूमीें थी।
लेकिन निर्मला की कोशिश जारी थी, वह धीरे-धीरे अपने ब्लाउज के बटन को खोलने के लगी।
जैसे जैसे वह ब्लाउज के बटन को खोले जा रही थी वैसे वैसे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां ब्लाउज के बाहर आने को छटपटा रही थी।
धीरे धीरे करके उसने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी और उसकी नजर लगातार आईने में नजर आ रही है उसके ऊपर टिकी हुई थी। जो कि अभी भी लैपटॉप में ही व्यस्त था।
ब्लाउज के बटन खोलने के बाद वह आहिस्ते आहिस्ते अपने ब्लाउज को अपनी बाहों से निकालकर वहीं पास में पड़ी टेबल पर रख दी।
चूचियां काफी बड़ी होने के कारण और ब्रा का साइज कुछ छोटा होने की वजह से चुचियों के बीच की लकीर कुछ ज्यादा ही गहरी नजर आती थी।
यह नजारा देखकर तो खुद निर्मला कि जाँघों के बीच भी सुरसुराहट होने लगती थी तो सोचो मर्दों का क्या हालत होता होगा।
निर्मला जानबूझकर अपनी कलाइयों में पहनी हुई रंग बिरंगी चूड़ियां खनका रही थी कि शायद चूड़ियों की खनखनाहट से अशोक का ध्यान इधर हो और सच में ऐसा हुआ अभी अशोक का ध्यान लैपटॉप से हटकर एक पल के लिए आईने पर चला गया।
अशोक की नजर आईने पर देखते ही निर्मला एक पल भी गंवाएं बिना अपने दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अपनी ब्रा की हुक को खोलने लगी।
अगले ही पल उसने ब्रा के हुक को खोलकर धीरे धीरे अपनी ब्रा को बाहों में से निकालने लगी और अगले ही पल उसकी ब्रा भी उसकी दोनों चुचियों को आजाद करते हुए टेबल पर पड़ी थी। निर्मला की दोनों चुचीया एकदम आजाद हो चुकी थी।
एकदम कसी हुई और तनी हुई जिसे के आकर्षण में अशोक अभी तक अपनी नजरें आईने में गड़ाए हुए था।
निर्मला अशोक को उसकी तरफ से देखते हुए मन ही मन मुस्कुराने लगी और यह जाहिर नहीं होने दी कि वह अशोक को उस को निहारते हुए देख रही है।
अशोक को रिझाने के लिए वह अपने दोनों हाथों से एक बार अपनी बड़ी बड़ी छातियों को हथेली में भरकर हल्के से दबाई और फिर छोड़ दी।
सीधी सादी संस्कारी निर्मला की यह हरकत बड़ी ही कामुक थी और इसका असर अशोक पर भी हुआ वह एकटक अपनी नजरें आईने पर गड़ाए हुए था। यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसके बदन में उत्तेजना का संचार हो रहा था।
अपनी हरकत की वजह से निर्मला को अपनी बुर से हल्का हल्का रिसाव सा महसूस हो रहा था, जोकि निर्मला के उन्माद को बढ़ा रहा था।
अशोक की आंखे आईने पर टीकी हुई देखकर निर्मला एक पल भी करवाना उचित नहीं समझती थी इसलिए उसने तुरंत अपनी कमर में बनी हुई साड़ी को खोलने लगी और अगले पल उसके बदन से साड़ी भी उतर कर टेबल पर पड़ी हुई थी।
निर्मला के बदन पर केवल पेटीकोट ही रह गई थी।जिसमें से उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा उभरी हुई नजर आ रही थी जिस पर अब अशोक की नजर बराबर टिकी हुई थी।
अशोक की नजरें उसकी गांड पर टिकी हुई है यह जानकर निर्मला की उत्तेजना बढ़ने लगी उसकी धड़कन तेज चलने लगी और उसके हाथ धीरे से पेटीकोट की डोरी पर चली गई और हल्के से अपनी उंगलियों को हरकत देते हुए पेटीकोट की डोरी को एक झटके से खींच दी।
एक झटके से डोरी को खींचते ही पेटीकोट का कसाव कमर के ऊपर से ढीला पड़ गया और पेटीकोट ढीली पड़ते ही निर्मला ने हाथ में पकड़ी हुई डोरी पेटीकोट सहित छोड़ दी। निर्मला ने यह हरकत जिंदगी में पहली बार करी थी न जाने कहां से उसमें यह करने की हिम्मत आ गई थी।
निर्मला तो अशोक को रिझाने की कोशिश तो हमेशा से करती ही आ रही थी लेकिन आज इस कोशिश में यह हरकत पहली बार शामिल हुई थी।
पेटीकोट के छोड़ते ही पेटीकोट सीधी कमर से फीसलती हुई भरावदार नितंबों को उजागर करते हुए नीचे कदमों में आ गिरी। जिससे निर्मला पूरी की पूरी आईने के सामने नंगी हो गई उसके बदन पर मात्र एक पेंटी ही बची थी लेकिन पेंटी भी ऊसकी बड़ी बड़ी भरावदार गांड को ढंक पाने मे असमर्थ साबित हो रही थी।
अशोक को आज अपनी बीवी को रिझाने का यह रवैया बहुत ही कामुक लगा वह इसलिए तो एकटक आंख फाड़े अपनी बीवी की खूबसूरती को देखे जा रहा था और यह बात निर्मला को भी अच्छी लग रही थी और अगले ही पल निर्मला ने अपने हाथों की दोनों अंगुलियों को पैंटी के इर्द-गिर्द ऊलझाकर धीरे धीरे पेंटिं को नीचे सरकानै लगी।
निर्मला की यह कामुक अदा और हरकत अशोक को इस समय बेहद अचंभे में डाल रही थी क्योंकि जिस तरह की हरकत निर्मला आज कर रही थी इस तरह की हरकत ऊसनें पहले कभी नहीं की थी ।
वह पेंटिं उतारते समय जिस तरह से अपनी भरावदार बड़ी-बड़ी उभरी हुई गांड को दांए बांए कर के मटका रही थी। कसम से अगर कोई इस नजारे को देख ले तो उसका तो खड़े खड़े ही पानी निकल जाए।
निर्मला जिस तरह से अपनी गांड मटकाते हुए पेंटी को उतार रही थी उससे एक अजीब प्रकार की थिरकन हो रही थी और ऊस थिरकन को देखकर अशोक का मन एक पल के लिए ललच सा गया।
इसमें अशोक का दोष बिल्कुल भी नहीं था निर्मला के बदन की बनावट ही भगवान ने कुछ इस तरह की बनाई थी की उसे अगर दुनिया का कोई भी इंसान किस अवस्था में देख ले तो उसका मन उसे पाने को ललच जाएं।
स्वर्ग की अप्सरा भी निर्मला की खूबसूरती देखकर शर्मा जाए इस तरह से भगवान ने उसे बनाया था। निर्मला अपनी खूबसूरती और अपनी कामुक अदाओं के जलवे बिखेरते हुए धीरे-धीरे अपनी पैंटी को नीचे सरकाते हुए अपने भारी भारी गोल नितंबों के नीचे तक ला दी।
नितंबों के ठीक नीचे पैंटी की इलास्टिक रबर कसी हुई थी और इस तरह से इलास्टिक की डोरी कसी होने की वजह से निर्मला की गोल गांड और भी ज्यादा कामुक और उभरी हुई लग रही थी। जिसे देख कर अशोक की सांसे थम गई निर्मला भी लगातार आईने में अशोक को निहारते हुए मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।
आज जो उसने हिम्मत दिखाई थी उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था अपनी कामुक हरकतों की वजह से आज मन ही मन उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ रहीे थी, जिसकी वजह से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव बड़ी तेजी से हो रहा था। निर्मला का दिल बड़े जोरों से धड़क रहा था। उत्तेजना और उन्माद के मारे उसका गला सूख रहा था।
अगले ही पल निर्मला ने धीरे-धीरे पैंटी को घुटनों से नीचे सरका दी। पेंटी को घुटनो से नीचे पहुंचते ही निर्मला सीधी खड़ी हो गई और केवल पैरों के सहारे से ही वहां अपनी पैंटी को नीचे कर के पेऱ से बाहर निकाल दी।
अब निर्मला के बदन पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था वह पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पूरी तरह से नंगी ट्यूबलाइट की दुधीया प्रकाश में उसका गोरा बदन और भी ज्यादा निखरकर सामने आ रहा था जिसकी चकाचौंध में अशोक की आंखें चौंधिया जा रही थी।
निर्मला मन ही मन प्रसन्न हो रही थी उसे लगने लगा था कि आज अशोक जी भर के ऊसे प्यार करेगा क्योंकि आज उसने अशोक को रिझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी।
इस समय निर्मला बहुत ही पसंद नजर आ रही थी उसने कभी अपने मुंह से इस बात को जाहिर नहीं होने दी थी लेकिन मन ही मन यह जरूर चाहती थी कि उसका पति संभोग करते समय से बेहद प्यार करे अपने लंड को उसकी बुर की गहराई तक जोर-जोर से डालते हुए उसे चोदे लेकिन आजकल अशोक ज्यादा देर तक टिक भी नहीं पाता था।
इसका एक कारण यह भी था कि अशोक उसे पहले की तरह प्यार नहीं करता था बल्कि उसकी खूबसूरती को उसके बदन को खुद निर्मला को नजरअंदाज करता था और दूसरा सबसे बड़ा कारण यह था कि निर्मला अंदर ही अंदर बहुत ही प्यासी थी।
हां यह बात अलग है कि उस के संस्कार नहीं इस बात को कभी जाहिर होने नहीं दिया लेकिन अंदर ही अंदर वहां जबरजस्त चुदाई को तड़प रही थी और इस कदर संभोग की प्यासी होने की वजह से उसकी बुर की अंदरूनी दीवारें इतनी ज्यादा गर्म होती थी कि अशोक अपना लंड डालते ही बुर की गर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और कुछ ही मिनटों में बिस्तर के मैदान पर हथियार नीचे रखते हुए हार मान लेता था।
इस वजह से निर्मला हमेशा प्यासी ही रहती थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि परसों की दबी हुई प्यार आज भी जरूर बुझेगी। इसलिए वह मदमस्त अंगड़ाई लेते हुए बालों के जुड़े को खोल दी जिससे उसके रेशमी काले घने बाल खुलकर हवा में लहराने लगे। खुले बालों की वजह से उसकी खूबसूरती में चार चांद लग रहे थे जो कि उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे।
आईने में अपने रूप और नंगे बदन की खूबसूरती को देखकर खुद निर्मला शर्मा करो और ज्यादा देर तक इस अवस्था में खड़ी ना रह सकी और तुरंत अलमारी में से अपना गांऊन निकाल कर पहन ली।
गाऊन के पहनते ही एक बड़े ही उत्तेजक उन्माद से भरे हुए कामुक दृश्य पर पर्दा पड़ चुका था। उत्साहजनक और बेहद कामुकता से भरे हुए वातावरण को निर्मला की इस हरकत में निराशाजनक बना दिया।
अशोक भी जोकि उत्तेजित हुए जा रहा था निर्मला की इस हरकत से उस पर भी ठंडा पानी पड़ गया था।
निर्मला की हरकत देखते हुए अशोक को आज निर्मला से कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी उसे लगने लगा था कि निर्मला शायद आज और भी ज्यादा अपने बदन के जलवे बिखेरेगी लेकीन ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ इसलिए निराश होकर के वह वापस लैपटॉप में व्यस्त हो गया और निर्मला मन में ढेर सारे उम्मीदे लिए अपने ऊपर खुशबूदार स्प्रे का छिड़काव कर रही थी ताकी कमरे का वातावरण और ज्यादा रोमांटिक हो जाए।
निर्मला अपने आप को बिस्तर पर जाने से पहले पूरी तरह से तैयार कर ली थी और वह बिस्तर पर जाने के लिए कल भी तो अशोक को लैपटॉप में व्यस्त पाकर थोड़ा सा उदास हुई लेकिन शायद अशोक अपने पिछले व्यवहार के कारण इस तरह से कर रहा है यह सोचकर वह बिस्तर पर जाकर करवट लेकर के लेट गई।
निर्मला की पीठ अशोक की तरफ थी और वह इंतजार कर रही थी कि अशोक कब ऊसके बदन को स्पर्श करता है और इसी उम्मीद की वजह से उसके बदन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी।
अशोक के ऊपर उसके तन-बदन में निर्मला काम भावना जगाने में पूरी तरह से कामयाब हो चुकी थी लेकिन अंतिम क्षण में उसने गाउन पहन कर जो गलती कर दी थी उससे अशोक का मन बदल गया था।
इसलिए वह अब निर्मला पर ध्यान दिए बिना ही लैपटॉप में व्यस्त हो चुका था और दूसरी तरफ निर्मला अशोक का इंतजार करते-करते पेड़ से प्यार करते हुए थक हारकर नींद की आगोश में चली गई एक बार फिर से निर्मला को निराशा ही हाथ लगी थी।
निर्मला सो चुकी थी और अभी भी अशोक लैपटॉप पर ऑफिस का काम करने में व्यस्त था।
निर्मला के सोने के एकाध घंटे बाद ही अशोक की नजर फिर से निर्मला की भरावदार गांड पर गई जो कि गांऊन के अंदर थी लेकिन सोने की वजह से निर्मला का गांव अस्त व्यस्त हो चुका था और चढ़कर जांघो तक आ चुका था।
निर्मला की आधी नंगी जांघ को देख कर अशोक से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से निर्मला के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे निर्मला की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया।
निर्मला के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी इसलिए अशोक की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए अशोक के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही और अशोक जी निर्मला की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।