26-07-2021, 10:47 AM
(This post was last modified: 26-07-2021, 08:35 PM by CopyPornstar. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
निर्मला अपनी किस्मत को कोसते हुए अपने कमरे की तरफ जाने लगी।
इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई। अशोक अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था।
दरवाजा बंद करते हुए निर्मला एक नजर अशोक पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह लेपटॉप से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे।
बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है, लेकिन निर्मला की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था।
निर्मला का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, निर्मला की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी।
बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे और यही उम्मीद निर्मला के मन में हमेशा जागरुक रहती थी आखिरकार वह भी एक औरत थी।
दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है। इसी भूख से वह भी तड़प रही थी।
अशोक को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन अशोक ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि निर्मला के कामुक हरकतों का बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था।
निर्मला भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ निर्मला करती थी।
लेकिन अशोक के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। निर्मला बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी।
अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार इजाजत नही देते थे और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो। बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो।
यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और कॉलेज की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई। अशोक अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था।
दरवाजा बंद करते हुए निर्मला एक नजर अशोक पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह लेपटॉप से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे।
बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है, लेकिन निर्मला की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था।
निर्मला का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, निर्मला की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी।
बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे और यही उम्मीद निर्मला के मन में हमेशा जागरुक रहती थी आखिरकार वह भी एक औरत थी।
दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है। इसी भूख से वह भी तड़प रही थी।
अशोक को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन अशोक ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि निर्मला के कामुक हरकतों का बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था।
निर्मला भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ निर्मला करती थी।
लेकिन अशोक के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। निर्मला बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी।
अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार इजाजत नही देते थे और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो। बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो।
यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और कॉलेज की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।