16-04-2019, 08:00 AM
(This post was last modified: 14-09-2019, 11:28 AM by komaalrani. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
गुड मॉर्निंग
सुबह के पहले एक राउंड और उनका हुआ, मम्मी के साथ।
………………………………………………………………………………………
और जब सुबह की पहली किरण आ ही रही थी, मम्मी किर एक बार चेहरे पे बैठी, और वो जोर-जोर से मम्मी की ‘रसमलाई’ चूस रहे थे।
जितना मजा मम्मी को आ रहा था, उससे ज्यादा उनको आ रहा था।
मैं अधखुली आूँखों से देख रही थी, मम्मी कसमसा रही थीं -
“छोडो न, बस आ रही हूूँ अभी…”
वो जिद कर रही थीं
लेकिन उनकी पकड़ से कौन छूट सकता है।
“क्यों…”
शरारत से जान के भी उन्होंने पूछा।
“आ रही है बड़ी जोर से…”
“आने दीजिये न…”
“हो जायगी, जाने दो ना…”
“हो जाने दीजिये न…”
नटखट अंदाज में वो बोले और उनकी जीभ की टिप ठीक उसी जगह,
सुबह की सुनहली धूप छन-छन के पड़ रही थी, और मम्मी से नहीं रुका गया, एक फिर दो सुनहली बूँद
“अगर एक भी बूँद बाहर गयी न तो बहुत पीटूँगी …”
उन्होंने छेड़ा,
और फिर छल छल छल छल,… घल घल घल घल सुनहली शराब की धार
मैं कनखियों से देख रही थी और सोच रही थी , कल मम्मी ने अपने दामाद को जो बीयर पिलाई थी , उसमें भी तो आधे से ज्यादा ,
मम्मी की यही ' सुनहली शराब ' मिली थी , और आज फिर सुबह सुबह मम्मी ने अपने दामाद को ' गुड मॉर्निंग ' करा दिया।
लेकिन फिर मुझे याद आया मेरी होली की शुरुआत भी तो ,
मेरी सासू माँ ने बड़े से ग्लास में भरकर सुबह सुबह ,... और सिर्फ वही क्यों ,... मेरी सभी गाँव की रिश्तेकी सास ,
मेरी बड़ी ननद , यहां तक की जेठानी ने भी ,...
और मैंने भी तो अपनी कच्ची उम्र वाली सबसे छोटी ननद को दबोच कर , यही शरबत ,...
और गुटुर गुटुर वो सब गटक गयी थी।
और कुछ देर में वो दोनों लोग सो गए
एक दूसरे की बांहो में चिपके लपटे।
मैं उठ के किचेन में चली गयी, काम धाम के लिए
अगला दिन शुरू हो गया था।
सुबह के पहले एक राउंड और उनका हुआ, मम्मी के साथ।
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और जब सुबह की पहली किरण आ ही रही थी, मम्मी किर एक बार चेहरे पे बैठी, और वो जोर-जोर से मम्मी की ‘रसमलाई’ चूस रहे थे।
जितना मजा मम्मी को आ रहा था, उससे ज्यादा उनको आ रहा था।
मैं अधखुली आूँखों से देख रही थी, मम्मी कसमसा रही थीं -
“छोडो न, बस आ रही हूूँ अभी…”
वो जिद कर रही थीं
लेकिन उनकी पकड़ से कौन छूट सकता है।
“क्यों…”
शरारत से जान के भी उन्होंने पूछा।
“आ रही है बड़ी जोर से…”
“आने दीजिये न…”
“हो जायगी, जाने दो ना…”
“हो जाने दीजिये न…”
नटखट अंदाज में वो बोले और उनकी जीभ की टिप ठीक उसी जगह,
सुबह की सुनहली धूप छन-छन के पड़ रही थी, और मम्मी से नहीं रुका गया, एक फिर दो सुनहली बूँद
“अगर एक भी बूँद बाहर गयी न तो बहुत पीटूँगी …”
उन्होंने छेड़ा,
और फिर छल छल छल छल,… घल घल घल घल सुनहली शराब की धार
मैं कनखियों से देख रही थी और सोच रही थी , कल मम्मी ने अपने दामाद को जो बीयर पिलाई थी , उसमें भी तो आधे से ज्यादा ,
मम्मी की यही ' सुनहली शराब ' मिली थी , और आज फिर सुबह सुबह मम्मी ने अपने दामाद को ' गुड मॉर्निंग ' करा दिया।
लेकिन फिर मुझे याद आया मेरी होली की शुरुआत भी तो ,
मेरी सासू माँ ने बड़े से ग्लास में भरकर सुबह सुबह ,... और सिर्फ वही क्यों ,... मेरी सभी गाँव की रिश्तेकी सास ,
मेरी बड़ी ननद , यहां तक की जेठानी ने भी ,...
और मैंने भी तो अपनी कच्ची उम्र वाली सबसे छोटी ननद को दबोच कर , यही शरबत ,...
और गुटुर गुटुर वो सब गटक गयी थी।
और कुछ देर में वो दोनों लोग सो गए
एक दूसरे की बांहो में चिपके लपटे।
मैं उठ के किचेन में चली गयी, काम धाम के लिए
अगला दिन शुरू हो गया था।