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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
#43
बयान - 11

कुमार का मिजाज बदल गया। वे बातें जो उनमें पहले थीं अब बिल्कुल न रहीं। माँ-बाप की फिक्र, विजयगढ़ का ख्याल, लड़ाई की धुन, तेजसिंह की दोस्ती, चंद्रकांता और चपला के मरते ही सब जाती रहीं। किले से ये तीनों बाहर आए, आगे शिवदत्त की गठरी लिए देवीसिंह और उनके पीछे कुमार को बीच में लिए तेजसिंह चले जाते थे। कुँवर वीरेंद्रसिंह को इसका कुछ भी ख्याल न था कि वे कहाँ जा रहे हैं। दिन चढ़ते-चढ़ते ये लोग बहुत दूर एक घने जंगल में जा पहुँचे, जहाँ तेजसिंह के कहने से देवीसिंह ने महाराज शिवदत्त की गठरी जमीन पर रख दी और अपनी चादर से एक पत्थर खूब झाड़ कर कुमार को बैठने के लिए कहा, मगर वे खड़े ही रहे, सिवाय जमीन देखने के कुछ भी न बोले।

कुमार की ऐसी दशा देख कर तेजसिंह बहुत घबराए। जी में सोचने लगे कि अब इनकी जिंदगी कैसे रहेगी? अजब हालत हो रही है, चेहरे पर मुर्दनी छा रही है, तनोबदन की सुधा नहीं, बल्कि पलकें नीचे को बिल्कुल नहीं गिरतीं, आँखों की पुतलियाँ जमीन देख रही हैं, जरा भी इधर-उधर नहीं हटतीं। यह क्या हो गया? क्या चंद्रकांता के साथ ही इनका भी दम निकल गया? यह खड़े क्यों हैं? तेजसिंह ने कुमार का हाथ पकड़ बैठने के लिए जोर दिया, मगर घुटना बिल्कुल न मुड़ा, धम से जमीन पर गिर पड़े, सिर फूट गया, खून निकलने लगा मगर पलकें उसी तरह खुली-की-खुली, पुतलियाँ ठहरी हुईं, साँस रुक-रुक कर निकलने लगी।

अब तेजसिंह कुमार की जिंदगी से बिल्कुल नाउम्मीद हो गए, रोकने से तबीयत न रुकी, जोर से पुकार कर रोने लगे। इस हालत को देख देवीसिंह की भी छाती फटी, रोने में तेजसिंह भी शरीक हुए।

तेजसिंह पुकार-पुकार कर कहने लगे कि - ‘हाय कुमार, क्या सचमुच अब तुमने दुनिया छोड़ ही दी? हाय, न मालूम वह कौन-सी बुरी सायत थी कि कुमारी चंद्रकांता की मुहब्बत तुम्हारे दिल में पैदा हुई जिसका नतीजा ऐसा बुरा हुआ। अब मालूम हुआ कि तुम्हारी जिंदगी इतनी ही थी।’

तेजसिंह इस तरह की बातें कह कर रो रहे थे कि इतने में एक तरफ से आवाज आई - ‘नहीं, कुमार की उम्र कम नहीं है बहुत बड़ी है, इनको मारने वाला कोई पैदा नहीं हुआ। कुमारी चंद्रकांता की मुहब्बत बुरी सायत में नहीं हुई बल्कि बहुत अच्छी सायत में हुई, इसका नतीजा बहुत अच्छा होगा। कुमारी से शादी तो होगी ही साथ ही इसके चुनारगढ़ की गद्दी भी कुँवर वीरेंद्रसिंह को मिलेगी। बल्कि और भी कई राज्य इनके हाथ से फतह होंगे। बड़े तेजस्वी और इनसे भी ज्यादा नाम पैदा करने वाले दो वीर पुत्र चंद्रकांता के गर्भ से पैदा होंगे। क्या हुआ है जो रो रहे हो?’

तेजसिंह और देवीसिंह का रोना एकदम बंद हो गया, इधर-उधर देखने लगे। तेजसिंह सोचने लगे कि हैं, यह कौन है, ऐसी मुर्दे को जिलाने वाली आवाज किसके मुँह से निकली? क्या कहा? कुमार को मारने वाला कौन है। कुमार के दो पुत्र होंगे। हैं, यह कैसी बात है? कुमार का तो यहाँ दम निकला जाता है। ढूँढ़ना चाहिए यह कौन है? तेजसिंह और देवीसिंह इधर-उधर देखने लगे पर कहीं कुछ पता न चला।

फिर आवाज आई - ‘इधर देखो।’ आवाज की सीध पर एक तरफ सिर उठा कर तेजसिंह ने देखा कि पेड़ पर से जगन्नाथ ज्योतिषी नीचे उतर रहे हैं।

जगन्नाथ ज्योतिषी उतर कर तेजसिंह के सामने आए और बोले - ‘आप हैरान मत होइए, ये सब बातें जो ठीक होने वाली हैं, मैंने ही कही हैं। इसके सोचने की भी जरूरत नहीं कि मैं महाराज शिवदत्त का तरफदार होकर आपके हित में बातें क्यों कहने लगा? इसका सबब भी थोड़ी देर में मालूम हो जाएगा और आप मुझको अपना सच्चा दोस्त समझने लगेगे, पहले कुमार की फिक्र कर लें तब आपसे बातचीत हो।’

इसके बाद जगन्नाथ ज्योतिषी ने तेजसिंह और देवीसिंह के देखते-देखते एक बूटी जिसकी तिकोनी पत्ती थी और आसमानी रंग का फूल लगा हुआ था, डंठल का रंग बिल्कुल सफेद और खुरदुरा था, उसी समय पास ही से ढूँढ़ कर तोड़ी और हाथ में खूब मल के दो बूँद उसके रस की कुमार की दोनों आँखों और कानों में टपका दीं, बाकी जो सीठी बची उसको तालू पर रख कर अपनी चादर से एक टुकड़ा फाड़ कर बाँधा दिया और बैठ कर कुमार के आराम होने की राह देखने लगे।

आधी घड़ी भी नहीं बीतने पाई थी कि कुमार की आँखों का रंग बदल गया, पलकों ने गिर कर कौड़ियों को ढाँक लिया, धीरे-धीरे हाथ-पैर भी हिलने लगे, दो-तीन छींकें भी आईं, जिसके साथ ही कुमार होश में आ कर उठ बैठे।

सामने ज्योतिषी जी के साथ तेजसिंह और देवीसिंह को बैठे देख कर पूछा - ‘क्यों, मुझको क्या हो गया था?’ तेजसिंह ने सब हाल कहा। कुमार ने जगन्नाथ ज्योतिषी को दंडवत किया और कहा - ‘महाराज, आपने मेरे ऊपर क्यों कृपा की, इसका हाल जल्द कहिए, मुझको कई तरह के शक हो रहे हैं।’

ज्योतिषी जी ने कहा - ‘कुमार, यह ईश्वर की माया है कि आपके साथ रहने को मेरा जी चाहता है। महाराज शिवदत्त इस लायक नहीं है कि मैं उसके साथ रह कर अपनी जान दूँ। उसको आदमी की पहचान नहीं, वह गुणियों का आदर नहीं करता, उसके साथ रहना अपने गुण की मिट्ठी खराब करना है। गुणी के गुण को देख कर कभी तारीफ नहीं करता, वह बड़ा भारी मतलबी है। अगर उसका काम किसी से कुछ बिगड़ जाए तो उसकी आँखें उसकी तरफ से तुरंत बदल जाती हैं, चाहे वह कैसा ही गुणी क्यों न हो। सिवाय इसके वह अधर्मी भी बड़ा भारी है, कोई भला आदमी ऐसे के साथ रहना पसंद नहीं करेगा, इसी से मेरा जी फट गया। मैं अगर रहूँगा तो आपके साथ रहूँगा। आप-सा कदरदान मुझको कोई दिखाई नहीं देता, मैं कई दिनों से इस फिक्र में था मगर कोई ऐसा मौका नहीं मिलता था कि अपनी सचाई दिखा कर आपका साथी हो जाता, क्योंकि मैं चाहे कितनी ही बातें बनाऊँ मगर ऐयारों की तरफ से ऐयारों का जी साफ होना मुश्किल है। आज मुझको ऐसा मौका मिला, क्योंकि आज का दिन आप पर बड़े संकट का था, जो कि महाराज शिवदत्त के धोखे और चालाकी ने आपको दिखाया।’ इतना कह ज्योतिषी जी चुप हो गए।

ज्योतिषी जी की आखिरी बात ने सभी को चौंका दिया। तीनों आदमी खिसक कर उनके पास आ बैठे।

तेजसिंह ने कहा - ‘हाँ ज्योतिषी जी जल्दी खुलासा कहिए, शिवदत्त ने क्या धोखा दिया?’

ज्योतिषी जी ने कहा - ‘महाराज शिवदत्त का यह कायदा है कि जब कोई भारी काम किया जाता है तो पहले मुझ से जरूर पूछता है, लेकिन चाहे राय दूँ या मना करूँ, करता है अपने ही मन की और धोखा भी खाता है। कई दफा पंडित बद्रीनाथ भी इन बातों से रंज हो गए कि जब अपने ही मन की करनी है जो ज्योतिषी जी से पूछने की जरूरत ही क्या है। आज रात को जो चालाकी उसने आपसे की उसके लिए भी मैंने मना किया था मगर कुछ न माना, आखिर नतीजा यह निकला कि घसीटासिंह और भगवानदत्त ऐयारों की जान गई, इसका खुलासा हाल मैं तब कहूँगा जब आप इस बात का वादा कर लें कि मुझको अपना ऐयार या साथी बनावेंगे।’

ज्योतिषी जी की बात सुन कुमार ने तेजसिंह की तरफ देखा। तेजसिंह ने कहा - ‘ज्योतिषी जी, मैं बड़ी खुशी से आपको साथ रखूँगा परंतु आपको इसके पहले अपने साफ दिल होने की कसम खानी पड़ेगी।’

ज्योतिषी जी ने तेजसिंह के मन से शक मिटाने के लिए जनेऊ हाथ में ले कर कसम खाई, तेजसिंह ने उठ के उन्हें गले लगा लिया और बड़ी खुशी से अपने ऐयारों की पंगत में मिला लिया। कुमार ने अपने गले से कीमती माला निकाल ज्योतिषी जी को पहना दी।

ज्योतिषी जी ने कहा - ‘अब मुझसे सुनिए कि कुमार महल में क्यों कैद किए गए थे और जो रात को खून-खराबा हुआ उसका असल भेद क्या है?

जब आप लोग लश्कर से कुमारी की खोज में निकले थे तो रास्ते में बद्रीनाथ ऐयार ने आपको देख लिया था। आप लोगों के पहले वे वहाँ पहुँचे और चंद्रकांता को दूसरी जगह छिपाने की नीयत से उस खोह में उसको लेने गए मगर उनके पहुँचने से पहले ही कुमारी वहाँ से गायब हो गई थी और वे खाली हाथ वापस आए, तब नाजिम को साथ ले आप लोगो की खोज में निकले और आपको इस जंगल में पा कर ऐयारी की। नाजिम ने ढेला फेंका था, देवीसिंह उसको पकड़ने गए, तब तक बद्रीनाथ जो पहले ही तेजसिंह बन कर आए थे, न मालूम किस चालाकी से आपको बेहोश कर किले में ले गए और जिसमें आपकी तबीयत से चंद्रकांता की मुहब्बत जाती रहे और आप उसकी खोज न करें तथा उसके लिए महाराज शिवदत्त से लड़ाई न ठानें इसलिए भगवानदत्त और घसीटासिंह जो हम सभी में कम उम्र थे चंद्रकांता और चपला बनाए गए जिनको आपने खत्म किया, बाकी हाल तो आप जानते ही हैं।’

ज्योतिषी जी की बात सुन कुमार मारे खुशी के उछल पड़े। कहने लगे - ‘हाय, क्या गजब किया था। कितना भारी धोखा दिया। अब मालूम हुआ कि बेचारी चंद्रकांता जीती-जागती है मगर कहाँ है इसका पता नहीं, खैर, यह भी मालूम हो जाएगा।’

अब क्या करना चाहिए इस बात को सभी ने मिल कर सोचा और यह पक्का किया कि

1. महाराज शिवदत्त को तो उसी खोह में जिसमें ऐयार लोग पहले कैद किए गए थे, डाल देना चाहिए और दोहरा ताला लगा देना चाहिए क्योंकि पहले ताले का हाल जो शेर के मुँह में से जुबान खींचने से खुलता है, बद्रीनाथ को मालूम हो गया है, मगर दूसरे ताले का हाल सिवाय तेजसिंह के अभी कोई नहीं जानता।

2. कुमार को विजयगढ़ चले जाना चाहिए क्योंकि जब तक महाराज शिवदत्त कैद हैं लड़ाई न होगी, मगर हिफाजत के लिए कुछ फौज सरहद पर जरूर होनी चाहिए।

3. देवीसिंह कुमार के साथ रहें।

4. तेजसिंह और ज्योतिषी जी कुमारी की खोज में जाएँ।

कुछ और बातचीत करके सब उठ खड़े हुए और वहाँ से चल पड़े।
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 25-07-2021, 06:13 PM



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