25-07-2021, 05:46 PM
बयान - 4
महाराज शिवदत्त का शमला लिए हुए देवीसिंह कुँवर वीरेंद्रसिंह के पास पहुँचे और जो कुछ हुआ था बयान किया।
कुमार यह सुन कर हँसने लगे और बोले - ‘चलो सगुन तो अच्छा हुआ?’
तेजसिंह ने कहा - ‘सबसे ज्यादा अच्छा सगुन तो मेरे लिए हुआ कि शागिर्द पैदा कर लाया।’ यह कह शमले में से सरपेंच खोल बटुए में दाखिल किया।
कुमार ने कहा - ‘भला तुम इसका क्या करोगे, तुम्हारे किस मतलब का है?’
तेजसिंह ने जवाब दिया - ‘इसका नाम फतह का सरपेंच है, जिस रोज आपकी बारात निकलेगी महाराज शिवदत्त की सूरत बना इसी को माथे पर बाँध मैं आगे-आगे झंडा ले कर चलूँगा।’
यह सुन कर कुमार ने हँस दिया, पर साथ ही इसके दो बूँद आँसू आँखों से निकल पड़े जिनको जल्दी से कुमार ने रूमाल से पोंछ लिया। तेजसिंह समझ गए कि यह चंद्रकांता की जुदाई का असर है। इनको भी चपला का बहुत कुछ ख्याल था।
देवीसिंह से बोले - ‘सुनो देवीसिंह, कल लड़ाई जरूर होगी इसलिए एक ऐयार का यहाँ रहना जरूरी है और सबसे जरूरी काम चंद्रकांता का पता लगाना है।’
देवीसिंह ने तेजसिंह से कहा - ‘आप यहाँ रह कर फौज की हिफाजत कीजिए। मैं चंद्रकांता की खोज में जाता हूँ।’
तेजसिंह ने कहा - ‘नहीं चुनारगढ़ की पहाड़ियाँ तुम्हारी अच्छी तरह देखी नहीं हैं और चंद्रकांता जरूर उसी तरफ होगी, इससे यही ठीक होगा कि तुम यहाँ रहो और मैं कुमारी की खोज में जाऊँ।’
देवीसिंह ने कहा - ‘जैसी आपकी खुशी।’
तेजसिंह ने कुमार से कहा - ‘आपके पास देवीसिंह है। मैं जाता हूँ, जरा होशियारी से रहिएगा और लड़ाई में जल्दी न कीजिएगा।’
कुमार ने कहा - ‘अच्छा जाओ, ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें।’
बातचीत करते शाम हो गई बल्कि कुछ रात भी चली गई, तेजसिंह उठ खड़े हुए और जरूरी चीजें ले, ऐयारी के सामान से लैस हो वहाँ के एक घने जंगल की तरफ चले गए।
महाराज शिवदत्त का शमला लिए हुए देवीसिंह कुँवर वीरेंद्रसिंह के पास पहुँचे और जो कुछ हुआ था बयान किया।
कुमार यह सुन कर हँसने लगे और बोले - ‘चलो सगुन तो अच्छा हुआ?’
तेजसिंह ने कहा - ‘सबसे ज्यादा अच्छा सगुन तो मेरे लिए हुआ कि शागिर्द पैदा कर लाया।’ यह कह शमले में से सरपेंच खोल बटुए में दाखिल किया।
कुमार ने कहा - ‘भला तुम इसका क्या करोगे, तुम्हारे किस मतलब का है?’
तेजसिंह ने जवाब दिया - ‘इसका नाम फतह का सरपेंच है, जिस रोज आपकी बारात निकलेगी महाराज शिवदत्त की सूरत बना इसी को माथे पर बाँध मैं आगे-आगे झंडा ले कर चलूँगा।’
यह सुन कर कुमार ने हँस दिया, पर साथ ही इसके दो बूँद आँसू आँखों से निकल पड़े जिनको जल्दी से कुमार ने रूमाल से पोंछ लिया। तेजसिंह समझ गए कि यह चंद्रकांता की जुदाई का असर है। इनको भी चपला का बहुत कुछ ख्याल था।
देवीसिंह से बोले - ‘सुनो देवीसिंह, कल लड़ाई जरूर होगी इसलिए एक ऐयार का यहाँ रहना जरूरी है और सबसे जरूरी काम चंद्रकांता का पता लगाना है।’
देवीसिंह ने तेजसिंह से कहा - ‘आप यहाँ रह कर फौज की हिफाजत कीजिए। मैं चंद्रकांता की खोज में जाता हूँ।’
तेजसिंह ने कहा - ‘नहीं चुनारगढ़ की पहाड़ियाँ तुम्हारी अच्छी तरह देखी नहीं हैं और चंद्रकांता जरूर उसी तरफ होगी, इससे यही ठीक होगा कि तुम यहाँ रहो और मैं कुमारी की खोज में जाऊँ।’
देवीसिंह ने कहा - ‘जैसी आपकी खुशी।’
तेजसिंह ने कुमार से कहा - ‘आपके पास देवीसिंह है। मैं जाता हूँ, जरा होशियारी से रहिएगा और लड़ाई में जल्दी न कीजिएगा।’
कुमार ने कहा - ‘अच्छा जाओ, ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें।’
बातचीत करते शाम हो गई बल्कि कुछ रात भी चली गई, तेजसिंह उठ खड़े हुए और जरूरी चीजें ले, ऐयारी के सामान से लैस हो वहाँ के एक घने जंगल की तरफ चले गए।