25-07-2021, 05:01 PM
बयान - 20
महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह को पकड़ने के लिए भेज कर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गए, मगर दिल उनका रंभा की जुल्फों में ऐसा फँस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता था। उस महारानी से भी हँस कर बोलने की नौबत न आई।
महारानी ने पूछा - ‘आपका चेहरा सुस्त क्यों हैं?’
महाराज ने कहा - ‘कुछ नहीं, जागने से ऐसी कैफियत है।’
महारानी ने फिर से पूछा - ‘आपने वादा किया था कि उस गाने वाली को महल में ला कर तुम्हें भी उसका गाना सुनवाएँगे, सो क्या हुआ?’ जवाब दिया - ‘वह हमीं को उल्लू बना कर चली गई, तुमको किसका गाना सुनाएँ?’
यह सुन कर महारानी कलावती को बड़ा ताज्जुब हुआ। पूछा - ‘कुछ खुलासा कहिए, क्या मामला है?’
‘इस समय मेरा जी ठिकाने नहीं है, मैं ज्यादा नहीं बोल सकता।’ यह कह कर महाराज वहाँ से उठ कर अपने खास कमरे में चले गए और पलँग पर लेट कर रंभा को याद करने लगे और मन में सोचने लगे - ‘रंभा कौन थी? इसमें तो कोई शक नहीं कि वह थी औरत ही, फिर तेजसिंह को क्यों छुड़ा ले गई? उस पर वह आशिक तो नहीं थी, जैसा कि उसने कहा था। हाय रंभा, तूने मुझे घायल कर डाला। क्या इसी वास्ते तू आई थी? क्या करूँ, कुछ पता भी नहीं मालूम जो तुमको ढूँढूँ।’
दिल की बेताबी और रंभा के ख्याल में रात-भर नींद न आई। सुबह को महाराज ने दरबार में आ कर दरियाफ्त किया - ‘घसीटासिंह और चुन्नीलाल का पता लगा कर आए या नहीं?’
मालूम हुआ कि अभी तक वे लोग नहीं आए। ख्याल रंभा ही की तरफ था। इतने में बद्रीनाथ, नाजिम, ज्योतिषी जी, और क्रूरसिंह पर नजर पड़ी। उन लोगों ने सलाम किया और एक किनारे बैठ गए। उन लोगों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी देख कर और भी रंज बढ़ गया, मगर कचहरी में कोई हाल उनसे न पूछा। दरबार बर्खास्त करके तखलिए में गए और पंडित बद्रीनाथ, क्रूरसिंह, नाजिम और जगन्नाथ ज्योतिषी को तलब किया। जब वे लोग आए और सलाम करके अदब के साथ बैठ गए तब महाराज ने पूछा - ‘कहो, तुम लोगों ने विजयगढ़ जा कर क्या किया?’
पंडित बद्रीनाथ ने कहा - ‘हुजूर काम तो यही हुआ कि भगवानदत्त को तेजसिंह ने गिरफ्तार कर लिया और पन्नालाल और रामनारायण को एक चंपा नामी औरत ने बड़ी चालाकी और होशियारी से पकड़ लिया, बाकी मैं बच गया।’
उनके आदमियों में सिर्फ तेजसिंह पकड़ा गया जिसको ताबेदार ने हुजूर में भेज दिया था सिवाय इसके और कोई काम न हुआ। महाराज ने कहा - ‘तेजसिंह को भी एक औरत छुड़ा ले गई। काम तो उसने सजा पाने लायक किया मगर अफसोस। यह तो मैं जरूर कहूँगा कि वह औरत ही थी जो तेजसिंह को छुड़ा ले गई, मगर कौन थी, यह न मालूम हुआ। तेजसिंह को तो लेती ही गई, जाती दफा चुन्नीलाल और घसीटासिंह पर भी मालूम होता है कि हाथ फेरती गई, वे दोनों उसकी खोज में गए थे मगर अभी तक नहीं आए। क्रूर की मदद करने से मेरा नुकसान ही हुआ। खैर, अब तुम लोग यह पता लगाओ कि वह औरत कौन थी जिसने गाना सुना कर मुझे बेताब कर दिया और सभी की आँखों में धूल डाल कर तेजसिंह को छुड़ा ले गई? अभी तक उसकी मोहिनी सूरत मेरी आँखों के आगे फिर रही है।’
नाजिम ने तुरंत कहा - ‘हुजूर मैं पहचान गया। वह जरूर चंद्रकांता की सखी चपला थी, यह काम सिवाय उसके दूसरे का नहीं।’ महाराज ने पूछा - ‘क्या चपला चंद्रकांता से भी ज्यादा खूबसूरत है?’
नाजिम ने कहा - ‘महाराज चंद्रकांता को तो चपला क्या पाएगी मगर उसके बाद दुनिया में कोई खूबसूरत है तो चपला ही है, और वह तेजसिंह पर आशिक भी है।’
इतना सुन महाराज कुछ देर तक हैरानी में रहे फिर बोले - ‘चाहे जो हो, जब तक चंद्रकांता और चपला मेरे हाथ न लगेंगी मुझको आराम न मिलेगा। बेहतर है कि मैं इन दोनों के लिए जयसिंह को चिट्ठी लिखूँ।’
क्रूरसिंह बोला - ‘महाराज जयसिंह चिट्ठी को कुछ न मानेंगे।’
महाराज ने जवाब दिया - ‘क्या हर्ज है, अगर चिट्ठी का कुछ ख्याल न करेंगे तो विजयगढ़ को फतह ही करूँगा।’ यह कह कर उन्होनें मीर मुंशी को तलब किया, जब वह आ गया तो हुक्म दिया, राजा जयसिंह के नाम मेरी तरफ से खत लिखो कि चंद्रकांता की शादी मेरे साथ कर दें और दहेज में चपला को दे दें।’
मीर मुंशी ने बमूजिब हुक्म के खत लिखा जिस पर महाराज ने मोहर करके पंडित बद्रीनाथ को दिया और कहा - ‘तुम्हीं इस चिट्ठी को ले कर जाओ, यह काम तुम्हीं से बनेगा।’
पंडित बद्रनाथ को क्या हर्ज था, खत ले कर उसी वक्त विजयगढ़ की तरफ रवाना हो गए।
महाराज शिवदत्तसिंह ने घसीटासिंह और चुन्नीलाल को तेजसिंह को पकड़ने के लिए भेज कर दरबार बर्खास्त किया और महल में चले गए, मगर दिल उनका रंभा की जुल्फों में ऐसा फँस गया था कि किसी तरह निकल ही नहीं सकता था। उस महारानी से भी हँस कर बोलने की नौबत न आई।
महारानी ने पूछा - ‘आपका चेहरा सुस्त क्यों हैं?’
महाराज ने कहा - ‘कुछ नहीं, जागने से ऐसी कैफियत है।’
महारानी ने फिर से पूछा - ‘आपने वादा किया था कि उस गाने वाली को महल में ला कर तुम्हें भी उसका गाना सुनवाएँगे, सो क्या हुआ?’ जवाब दिया - ‘वह हमीं को उल्लू बना कर चली गई, तुमको किसका गाना सुनाएँ?’
यह सुन कर महारानी कलावती को बड़ा ताज्जुब हुआ। पूछा - ‘कुछ खुलासा कहिए, क्या मामला है?’
‘इस समय मेरा जी ठिकाने नहीं है, मैं ज्यादा नहीं बोल सकता।’ यह कह कर महाराज वहाँ से उठ कर अपने खास कमरे में चले गए और पलँग पर लेट कर रंभा को याद करने लगे और मन में सोचने लगे - ‘रंभा कौन थी? इसमें तो कोई शक नहीं कि वह थी औरत ही, फिर तेजसिंह को क्यों छुड़ा ले गई? उस पर वह आशिक तो नहीं थी, जैसा कि उसने कहा था। हाय रंभा, तूने मुझे घायल कर डाला। क्या इसी वास्ते तू आई थी? क्या करूँ, कुछ पता भी नहीं मालूम जो तुमको ढूँढूँ।’
दिल की बेताबी और रंभा के ख्याल में रात-भर नींद न आई। सुबह को महाराज ने दरबार में आ कर दरियाफ्त किया - ‘घसीटासिंह और चुन्नीलाल का पता लगा कर आए या नहीं?’
मालूम हुआ कि अभी तक वे लोग नहीं आए। ख्याल रंभा ही की तरफ था। इतने में बद्रीनाथ, नाजिम, ज्योतिषी जी, और क्रूरसिंह पर नजर पड़ी। उन लोगों ने सलाम किया और एक किनारे बैठ गए। उन लोगों के चेहरे पर सुस्ती और उदासी देख कर और भी रंज बढ़ गया, मगर कचहरी में कोई हाल उनसे न पूछा। दरबार बर्खास्त करके तखलिए में गए और पंडित बद्रीनाथ, क्रूरसिंह, नाजिम और जगन्नाथ ज्योतिषी को तलब किया। जब वे लोग आए और सलाम करके अदब के साथ बैठ गए तब महाराज ने पूछा - ‘कहो, तुम लोगों ने विजयगढ़ जा कर क्या किया?’
पंडित बद्रीनाथ ने कहा - ‘हुजूर काम तो यही हुआ कि भगवानदत्त को तेजसिंह ने गिरफ्तार कर लिया और पन्नालाल और रामनारायण को एक चंपा नामी औरत ने बड़ी चालाकी और होशियारी से पकड़ लिया, बाकी मैं बच गया।’
उनके आदमियों में सिर्फ तेजसिंह पकड़ा गया जिसको ताबेदार ने हुजूर में भेज दिया था सिवाय इसके और कोई काम न हुआ। महाराज ने कहा - ‘तेजसिंह को भी एक औरत छुड़ा ले गई। काम तो उसने सजा पाने लायक किया मगर अफसोस। यह तो मैं जरूर कहूँगा कि वह औरत ही थी जो तेजसिंह को छुड़ा ले गई, मगर कौन थी, यह न मालूम हुआ। तेजसिंह को तो लेती ही गई, जाती दफा चुन्नीलाल और घसीटासिंह पर भी मालूम होता है कि हाथ फेरती गई, वे दोनों उसकी खोज में गए थे मगर अभी तक नहीं आए। क्रूर की मदद करने से मेरा नुकसान ही हुआ। खैर, अब तुम लोग यह पता लगाओ कि वह औरत कौन थी जिसने गाना सुना कर मुझे बेताब कर दिया और सभी की आँखों में धूल डाल कर तेजसिंह को छुड़ा ले गई? अभी तक उसकी मोहिनी सूरत मेरी आँखों के आगे फिर रही है।’
नाजिम ने तुरंत कहा - ‘हुजूर मैं पहचान गया। वह जरूर चंद्रकांता की सखी चपला थी, यह काम सिवाय उसके दूसरे का नहीं।’ महाराज ने पूछा - ‘क्या चपला चंद्रकांता से भी ज्यादा खूबसूरत है?’
नाजिम ने कहा - ‘महाराज चंद्रकांता को तो चपला क्या पाएगी मगर उसके बाद दुनिया में कोई खूबसूरत है तो चपला ही है, और वह तेजसिंह पर आशिक भी है।’
इतना सुन महाराज कुछ देर तक हैरानी में रहे फिर बोले - ‘चाहे जो हो, जब तक चंद्रकांता और चपला मेरे हाथ न लगेंगी मुझको आराम न मिलेगा। बेहतर है कि मैं इन दोनों के लिए जयसिंह को चिट्ठी लिखूँ।’
क्रूरसिंह बोला - ‘महाराज जयसिंह चिट्ठी को कुछ न मानेंगे।’
महाराज ने जवाब दिया - ‘क्या हर्ज है, अगर चिट्ठी का कुछ ख्याल न करेंगे तो विजयगढ़ को फतह ही करूँगा।’ यह कह कर उन्होनें मीर मुंशी को तलब किया, जब वह आ गया तो हुक्म दिया, राजा जयसिंह के नाम मेरी तरफ से खत लिखो कि चंद्रकांता की शादी मेरे साथ कर दें और दहेज में चपला को दे दें।’
मीर मुंशी ने बमूजिब हुक्म के खत लिखा जिस पर महाराज ने मोहर करके पंडित बद्रीनाथ को दिया और कहा - ‘तुम्हीं इस चिट्ठी को ले कर जाओ, यह काम तुम्हीं से बनेगा।’
पंडित बद्रनाथ को क्या हर्ज था, खत ले कर उसी वक्त विजयगढ़ की तरफ रवाना हो गए।