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चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास
#29
बयान - 19

तेजसिंह को छुड़ाने के लिए जब चपला चुनारगढ़ गई तब चंपा ने जी में सोचा कि ऐयार तो बहुत से आए हैं और मैं अकेली हूँ, ऐसा न हो, कभी कोई आफत आ जाए। ऐसी तरकीब करनी चाहिए जिसमें ऐयारों का डर न रहे और रात को भी आराम से सोने में आए। यह सोच कर उसने एक मसाला बनाया। जब रात को सब लोग सो गए और चंद्रकांता भी पलँग पर जा लेटी तब चंपा ने उस मसाले को पानी में घोल कर जिस कमरे में चंद्रकांता सोती थी उसके दरवाजे पर दो गज इधर-उधर लेप दिया और निश्चिंत हो राजकुमारी के पलँग पर जा लेटी। इस मसाले में यह गुण था कि जिस जमीन पर उसका लेप किया जाए सूख जाने पर अगर किसी का पैर उस जमीन पर पड़े तो जोर से पटाखे की आवाज आए, मगर देखने से यह न मालूम हो कि इस जमीन पर कुछ लेप किया है। रात-भर चंपा आराम से सोई रही। कोई आदमी उस कमरे के अंदर न आया, सुबह को चंपा ने पानी से वह मसाला धो डाला। दूसरे दिन उसने दूसरी चालाकी की। मिट्टी की एक खोपड़ी बनाई और उसको रँग-रँगा कर ठीक चंद्रकांता की मूरत बना कर जिस पलँग पर कुमारी सोया करती थी तकिए के सहारे वह खोपड़ी रख दी, और धड़ की जगह कपड़ा रख कर एक हल्की चादर उस पर चढ़ा दी, मगर मुँह खुला रखा, और खूब रोशनी कर उस चारपाई के चारों तरफ वही लेप कर दिया।

कुमारी से कहा - ‘आज आप दूसरे कमरे में आराम करें।’

चंद्रकांता समझ गई और दूसरे कमरे में जा लेटी। जिस कमरे में चंद्रकांता सोई उसके दरवाजे पर भी लेप कर दिया और जिस कमरे में पलँग पर खोपड़ी रखी थी उसके बगल में एक कोठरी थी, चिराग बुझा कर आप उसमें सो गई।

आधी रात गुजर जाने के बाद उस कमरे के अंदर से जिसमें खोपड़ी रखी थी, पटाखे की आवाज आई। सुनते ही चंपा झट उठ बैठी और दौड़ कर बाहर से किवाड़ बंद कर खूब गुल करने लगी, यहाँ तक कि बहुत-सी लौंडियाँ वहाँ आ कर इकट्ठी हो गईं और एक ने जा कर महाराज को खबर दी कि चंद्रकांता के कमरे में चोर घुसा है। यह सुन महाराज खुद दौड़े आए और हुक्म दिया कि महल के पहरे से दस-पाँच सिपाही अभी आएँ। जब सब इकट्ठे हुए, कमरे का दरवाजा खोला गया। देखा कि रामनारायण और पन्नालाल दोनों ऐयार भीतर हैं। बहुत-से आदमी उन्हें पकड़ने के लिए अंदर घुस गए, उन ऐयारों ने भी खंजर निकाल चलाना शुरू किया। चार-पाँच सिपाहियों को जख्मी किया, आखिर पकड़े गए। महाराज ने उनको कैद में रखने का हुक्म दिया और चंपा से हाल पूछा। उसने अपनी कार्रवाई कह सुनाई। महाराज बहुत खुश हुए और उसको इनाम दे कर पूछा - ‘चपला कहाँ है?’ उसने कहा - ‘वह बीमार है’। फिर महाराज ने और कुछ न पूछा अपने आरामगाह में चले गए।

सुबह को दरबार में उन ऐयारों को तलब किया। जब वे आए तो पूछा - ‘तुम्हारा क्या नाम है?’

पन्नालाल बोला - ‘सरतोड़सिंह।’ महाराज को उसकी ढिठाई पर बड़ा गुस्सा आया। कहने लगे कि - ‘ये लोग बदमाश हैं, जरा भी नहीं डरते। खैर, ले जा कर इन दोनों को खूब होशियारी के साथ कैद रखो।’ हुक्म के मुताबिक वे कैदखाने में भेज दिए गए।

महाराज ने हरदयालसिंह से पूछा - ‘कुछ तेजसिंह का पता लगा?’

हरदयालसिंह ने कहा - ‘महाराज अभी तक तो पता नहीं लगा। ये ऐयार जो पकड़े गए हैं उन्हें खूब पीटा जाए तो शायद ये लोग कुछ बताएँ।’

महाराज ने कहा - ‘ठीक है, मगर तेजसिंह आएगा तो नाराज होगा कि ऐयारों को क्यों मारा? ऐसा कायदा नहीं है। खैर, कुछ दिन तेजसिंह की राह और देख लो फिर जैसा मुनासिब होगा, किया जाएगा, मगर इस बात का ख्याल रखना, वह यह कि तुम फौज के इंतजाम में होशियार रहना क्योंकि शिवदत्तसिंह का चढ़ आना अब ताज्जुब नहीं है।’

हरदयालसिंह ने कहा - ‘मैं इंतजाम से होशियार हूँ, सिर्फ एक बात महाराज से इस बारे में पूछनी थी जो एकांत में अर्ज करूँगा।’

जब दरबार बर्खास्त हो गया तो महाराज ने हरदयालसिंह को एकांत में बुलाया और पूछा - ‘वह कौन-सी बात है?’

उन्होंने कहा - ‘महाराज तेजसिंह ने कई बार मुझसे कहा था बल्कि कुँवर वीरेंद्रसिंह और उनके पिता ने भी फर्माया था कि यहाँ के सब * क्रूर की तरफदार हो रहे हैं, जहाँ तक हो इनको कम करना चाहिए। मैं देखता हूँ तो यह बात ठीक मालूम होती है, इसके बारे में जैसा हुक्म हो, किया जाए।’

महाराज ने कहा - ‘ठीक है, हम खुद इस बात के लिए तुमसे कहने वाले थे। खैर,, अब कहे देते हैं कि तुम धीरे-धीरे सब *ों को नाजुक कामों से बाहर कर दो।’

हरदयालसिंह ने कहा - ‘बहुत अच्छा, ऐसा ही होगा।’ यह कह महाराज से रुखसत हो अपने घर चले आए।
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RE: चन्द्रकान्ता - देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास - by usaiha2 - 25-07-2021, 05:00 PM



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